Sunday 22 October 2017

कषाय है अस्वस्थ्य मन का कारण -जाने कुंडली से कैसे दूर करें इसे

किसी भी जातक के तीसरे स्थान से उसका मन देखा जाता है और ग्रहों में चंद्रमा को मन का कारण ग्रह माना जाता है। अगर किसी भी व्यक्ति में तीसरा स्थान और चंद्रमा विपरीतकारक हो अथवा दूषित हो अथवा पापक्रांत होकर छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर बैठ जाए अथवा तीसरे स्थान पर राहु, शनि जैसे ग्रह हों या चंद्रमा इन ग्रहों से अक्रांत होकर छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर हो जाए तो ऐसे में कषाय उपजता है और मन लगातार नाकारात्मक सोच से भरा रहता है। मानव मन की अशांति और तन की अस्वस्थता का मूलमंत्र कषाय है। कषाय से व्यक्ति का चिन्तन, वाणी और व्यवहार प्रभावित होता है परिणाम स्वरूप विविध शारीरिक, मानसिक व्याधियाँ जन्म लेती हैं। कषाय आत्मा का विकार है, व्यक्ति ंिचता, तनाव, कुण्ठा और मनोरोगों (हायपर टेंशन, डिप्रेशन, ब्लड प्रेशर) से ग्रस्त होता है। सुख और शांति तो जैसे कोसों दूर चले जाते हैं। इन सभी का मूल कारण कषाय है। क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषाय हैं। लोभ के वशीभूत मनुष्य की आकांक्षाएँ बढ़ती जाती हैं, इनकी प्राप्ति के लिए वह माया का सहारा लेता है। आकांक्षाएं पूर्ण होने पर उसे मान होता है, उसमें कोई बाधा हो तो वह क्रोध करता है। किसी कारणवश यदि वह अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति नहीं कर पाता है तो उसे तनाव (टेंशन) होता है या हीन भावना (डिप्रेशन) से ग्रस्त हो जाता है। परिणाम स्वरूप अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोग घर कर लेते हैं। रोग और द्वेष से उत्पन्न क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषाय हैं, जो भाव और विचारों को उत्तेजित कर देते हैं। शारीरिक बीमारियाँ का मूलकारण ही मानसिक तनाव है। मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है कि बीमारियों का असली कारण है मानसिक विकार या भावों का अशुभ होना और चार कषायों को आध्यात्मिक व्याधि कहा है। इस प्रकार कषाय ही अस्वास्थ्य, अमाया और अशांति का कारण है। कषाय को दूर करने के लिए चंद्रमा की शांति हेतु शिव पूजा करनी चाहिए, चंद्र को अध्र्य देकर, किसी योग्य को आहार कराने के उपरांत व्रत का पारण करना, ओं के मंत्र का जाप तथा दूध चावल का दान करना चाहिए। इससे कषाय दूर होता है।

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