Tuesday 17 October 2017

मातामह श्राद्ध

मातामह श्राद्ध अपने आप में एक ऐसा श्राद्ध है जो एक पुत्री द्वारा अपने पिता को व एक नाती द्वारा अपने नाना को तर्पण किया जाता है। इस श्राद्ध को सुख शांति का प्रतीक माना जाता है। पिता के जीवित होने पर भी नाना का श्राद्ध किया जा सकता है.
श्राद्ध विधि -
गरुड़ पुराण के अनुसार इस श्राद्ध के दिन दोपहर के समय पूजा शुरु करनी चाहिए। अग्निकुंड में अग्नि जलाकर या उपला जलाकर हवन करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण या योग्य पंडित की सहायता से मंत्रोच्चारण करने चाहिए। पूजा के बाद जल से तर्पण करना चाहिए। इसके बाद गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए ग्रास (उनका हिस्सा) निकाल देना चाहिए। इन्हें भोजन देते समय अपने पितरों का ध्यान करना चाहिए और मन ही मन उनसे निवेदन करना चाहिए कि आप आएं और यह श्राद्ध ग्रहण करें। पशुओं को भोजन देने के बाद तिल, जौ, कुशा, तुलसी के पत्ते, मिठाई और अन्य पकवान ब्राह्मण को परोस कर उन्हें भोजन कराना चाहिए। भोज कराने के बाद ब्राह्मण को दान अवश्य देना चाहिए।
पितरों का श्राद्ध अगर गया या गंगा नदी के किनारे किया जाए तो सर्वोत्तम होता है। ऐसा ना होने पर जातक घर पर भी श्राद्ध कर सकते हैं। पितृ पक्ष के दौरान जिस दिन पूर्वजों की मृत्यु की तिथि हो उस दिन व्रत करना चाहिए। इस दिन खीर और अन्य कई पकवान बनाने चाहिए। मान्यता है कि जो व्यक्ति नियमपूर्वक श्राद्ध करता है वह पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। पितृ श्राद्ध पक्ष में किए गए दान और श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं और जातक को सदैव स्वस्थ, समृद्ध और खुशहाल होने का आशीर्वाद देते हैं।

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