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Saturday 20 June 2015

विवाह में मूहुर्त गणना का पूर्ण महत्व


विवाह संस्कार को भारतीय समाज में एक धर्म का दर्जा दिया गया है, जिसमें दो व्यक्ति का जीवन एक होकर उनका नया जन्म माना जाता है। इस आधार पर देखा जाए तो विवाह के समय शुभ लग्न उसी प्रकार महत्व रखता है, जिस प्रकार जन्म का समय। विवाह का मूहुर्त निकालते समय वर एवं वधु की कुंडलियों का परीक्षण कर दोनों की कुंडली के मिलान तथा नक्षत्रों की अनुकूल स्थिति के अनुरूप अनुकूल ग्रह दषाओं के अनुसार विवाह का समय निर्धारित करना चाहिए। माना जाता है जिस समय वर-कन्या का विवाह संस्कार होता है, उसी तिथि तथा समय को वर-कन्या का नया जन्म मान कर विवाह का समय निर्धारित करते हुए उन ग्रह दषाओं का अनुकूल और प्रतिकूल असर उनके वैवाहिक जीवन के सुख-दुख तथा आपसी संबंधों में मिठास या मतभेद का पता लगाया जा सकता है। विवाह का समय निर्धारित करते समय विषेष रूप से तीन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। पहला वर का सूर्य बल अर्थात् जिस तिथि में विवाह हो रहा हो, उस समय वर के सूर्य की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। वर की जन्मराषि से तीसरे, छठे, दसवें, ग्यारहवे स्थान में सूर्य होतो शुभ होता है, पाॅचवें, दूसरे, सांतवें, नवें में मध्यम तथा चार, आठ, बारहवें भाव में अषुभ फल देता है। इसी तरह से विवाह के समय कन्या की बृहस्पति की स्थिति अनुकूल होनी चाहिए बृहस्पति की अच्छी स्थिति दो, पाॅच, सात, नौ, ग्यारह में उत्तम एक, तीन, छः, दस भाव में मध्यम और चार, आठ, बारह में अषुभ होता है। साथ ही दोनों की मिलाकर चंद्रमा की स्थिति बेहतर होनी चाहिए। दोनों की कुंडलियों में जन्मराषि से चंद्रमा की स्थिति दो, पाॅच, सात, नौ, ग्यारह में उत्तम, एक, तीन, छः भाव में मध्यम तथा चार, आठ, बारह भाव में अषुभकारी होता है। अतः इन ग्रह दषाओं तथा ग्रहों के अनुकूल स्थिति पर विवाह होने पर वैवाहिक सुख तथा जीवन में प्रेमभाव बना रहता है साथ ही जीवन के सभी सुख समय पर प्राप्त होते हैं।
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जीवन शैली तिन चीजों पर आधारीत :सत्व, तमस और राजस



यजुर्वेद तथा भगवदगीता के अनुसार हमारा व्यवहार, विचार, भोजन और जीवनषैली तीन चीजों पर आधारित होती है वह है सत्व, तमस और राजस। सात्विक विचारों वाला व्यक्ति निष्चित स्वभाव का होता है जोकि उसे सृजनषील बनाता है वहीं राजसी विचारों वाला व्यक्ति महत्वाकांक्षी होता है जोकि स्वभाव में लालच भी देता है तथा तामसी व्यवहार वाला व्यक्ति नाकारात्मक विचारों वाला होने पर गलत कार्यो की ओर अग्रसर हो सकता है। मानव व्यवहार मूल रूप से राजसी और तामसी प्रवृत्ति का होता है, जिसके कारण जीवन में नाकारात्मक उर्जा बढ़ती है, जिससे साकारात्मक बनाने हेतु पुराणों में व्रत तथा उपवास पर जोर दिया गया है। मानव जीवन में व्रत की उपयोगिता वैदिक काल से जारी है। जिसका आधार होता है कि उपवास पाॅच ज्ञानेंद्रियों और पाॅच कर्मेद्रिंयों पर नियंत्रण करता है। अनुषासित बनाने तथा मन को आध्यामिक प्रवृत्ति की ओर अग्रसर करने हेतु उपवास तथा मंत्र जीवन में साकारात्मक दिषा देता है। उपवास जीवन में मानसिक शुद्धिकरण के अलावा शारीरिक शुद्धि हेतु भी सहायक होता है चूॅकि उपवास के दौरान अनुष्ठान करने की परंपरा भी है अतः अनुष्ठान के दौरान किया जाना वाला जाप, ध्यान, सत्संग, दान शारीरिक शुद्धता के लिए भी कार्य करती है। भोग लगाने वाले पदार्थ जैसे फल, मेवा, दूध, धी आदि का सेवन भी सात्विक गुणों को बढ़ता है।
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जीवन में निरंतर बदलाव हेतु कुंडली में देखें केतु की दशा




निरंतर चलायमान रहने अर्थात् किसी जातक को अपने जीवन में निरंतर उन्नति करने हेतु प्रेरित करने तथा बदलाव हेतु तैयार तथा प्रयासरत रहने हेतु जो ग्रह सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है, उसमें एक महत्वपूर्ण ग्रह है केतु। ज्योतिष शास्त्र में राहु की ही भांति केतु भी एक छायाग्रह है तथा यह अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसका स्वभाग मंगल ग्रह की तरह प्रबल और क्रूर माना जाता है। केतु ग्रह विषेषकर आध्यात्म, पराषक्ति, अनुसंधान, मानवीय इतिहास तथा इससे जुड़े सामाजिक संस्थाएॅ, अनाथाश्रम, धार्मिक शास्त्र आदि से संबंधित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। केतु ग्रह की उत्तम स्थिति या ग्रह दषाएॅ या अंतरदषाओं में जातक को उन्नति या बदलाव हेतु प्रेरित करता है। केतु की दषा में परिवर्तन हेतु प्रयास होता है। पराक्रम तथा साहस दिखाई देता है। राहु जहाॅ आलस्य तथा कल्पनाओं का संसार बनाता है वहीं पर केतु के प्रभाव से लगातार प्रयास तथा साहस से परिवर्तन या बेहतर स्थिति का प्रयास करने की मन-स्थिति बनती है। केतु की अनुकूल स्थिति जहाॅ जातक के जीवन में उन्नति तथा साकारात्मक प्रयास हेतु प्रेरित करता है वहीं पर यदि केतु प्रतिकूल स्थिति या नीच अथवा विपरीत प्रभाव में हो तो जातक के जीवन में गंभीर रोग, दुर्घटना के कारण हानि,सर्जरी, आक्रमण से नुकसान, मानसिक रोग, आध्यात्मिक हानि का कारण बनता है। केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि तथा अषुभ प्रभाव को कम करने हेतु केतु की शांति करानी चाहिए जिसमें विषेषकर गणपति भगवान की उपासना, पूजा, केतु के मंत्रों का जाप, दान तथा बटुक भैरव मंत्रों का जाप करना चाहिए जिससे केतु का शुभ प्रभाव दिखाई देगा तथा जीवन में निरंतर उन्नति बनेगी।
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अक्षय तृतीया की खास विशेषताएं और मान्यताएं

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अक्षय तृतीया के रूप में प्रख्यात वैशाख शुक्ल तीज को स्वयं सिद्ध मुहुर्तों में से एक माना जाता है। पौराणिक मान्यताएं इस तिथि में आरंभ किए गए कार्यों को कम से कम प्रयास में ज्यादा से ज्यादा सफलता प्राप्ति का संकेत देती है। समान्यत: अक्षय तृतीया में 42 घड़ी और 21 पल होते हैं। पद्म पुराण, अपरान्ह काल को व्यापक फल देने वाला मानता है। भौतिकता के अनुयायी इस काल को स्वर्ण खरीदने का श्रेष्ठ काल मानते हैं। इसके पीछे शायद इस तिथि की अक्षय प्रकृति ही मुख्य कारण है। सोच यह है कि इस काल में हम यदि घर में स्वर्ण लाएंगे तो अक्षय रूप से स्वर्ण आता रहेगा। अध्ययन या अध्ययन का आरंभ करने के लिए यह काल सर्वश्रेष्ठ है।
यह समय अपनी योग्यता को निखारने और अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए उत्तम है। यह मुहूर्त अपने कर्मों को सही दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। शायद यही मुख्य कारण है कि इस काल को दान इत्यादि के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।
दान को वैज्ञानिक तर्कों में उर्जा के रूपांतरण से जोड़ कर देखा जा सकता है। दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने के लिए यह दिवस सर्वश्रेष्ठ है। यदि अक्षय तृतीया सोमवार या रोहिणी नक्षत्र को आए तो इस दिवस की महत्ता हजारों गुणा बढ़ जाती है, ऐसी मान्यता है। इस दिन प्राप्त आशीर्वाद बेहद तीव्र फलदायक माने जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है। सतयुग, त्रेता और कलयुग का आरंभ इसी तिथि को हुआ और इसी तिथि को द्वापर युग समाप्त हुआ था।
रेणुका के पुत्र परशुराम और ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का प्राकट्य इसी दिन हुआ था। इस दिन श्वेत पुष्पों से पूजन कल्याणकारी माना जाता है। धन और भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति तथा भौतिक उन्नति के लिए इस दिन का विशेष महत्व है। धन प्राप्ति के मंत्र, अनुष्ठान व उपासना बेहद प्रभावी होते हैं। स्वर्ण, रजत, आभूषण, वस्त्र, वाहन और संपत्ति के क्रय के लिए मान्यताओं ने इस दिन को विशेष बताया और बनाया है। बिना पंचांग देखे इस दिन को श्रेष्ठ मुहुर्तों में शुमार किया जाता है। लोक भाषाओं में इसे 'आखातीज, 'अखाती और 'अकतीÓ कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में आख्यान आता है कि देवताओं को यह तिथि बहुत प्रिय है। इसलिए इसे उत्तम और पवित्र तिथि माना गया है। ये ऐसी तिथि है जिसमें हर घड़ी, हर पल को शुभ माना जाता है। बड़े से बड़े काम की सफलता तय मानी जाती है।
क्यों खास होती है आखा-तीज :
भविष्य पुराण के अनुसार 'अक्षय तृतीया के दिन सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही धरा पर आए। तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के पट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं।
वृंदावन के बांके बिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया को होते हैं। वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है, उसमें प्रमुख स्थान 'अक्षय तृतीया का है। ये हैं- चैत्र शुक्ल गुड़ी पड़वा, वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया सम्पूर्ण दिन, आश्विन शुक्ल विजयादशमी तथा दीपावली की पड़वा का आधा दिन।
ऐसे करें अक्षय तृतीया पर व्रत पूजा :
वैसाख शुक्ल 'तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। चूंकि इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अत: इसे 'अक्षय तृतीया कहते हैं।
- व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें।
- घर की सफाई व नित्य कर्म से निवृत्त होकर पवित्र या शुद्ध जल से स्नान करें।
- घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
मंत्र से संकल्प करें -
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सकल शुभ फल प्राप्तये
भगवत्प्रीतिकामनया देवत्रयपूजनमहं करिष्ये।
संकल्प करके भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। षोडशोपचार विधि से भगवान विष्णु का पूजन करें। नैवेद्य में जौ या गेहूं का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पण करें। अगर हो सके तो विष्णु सहस्रनाम का जप करें। अंत में तुलसी जल चढ़ाकर भक्तिपूर्वक आरती करनी चाहिए। इसके पश्चात उपवास रहें।
लोक अंचलों में ऐसे मनायी जाती है 'आखा तीज:
अक्षय तृतीया का शास्त्रों में तो बड़ा महत्व है ही और लोग शास्त्रों में उल्लेखित पद्धति के अनुसार पूजन करते हैं वहीं इसे मनाने के लिए कई तरह की लोक परंपराएं भी हैं। माना जाता है कि इस दिन पवित्र सरोवरों और नदियों में डुबकी लगाने से मन को शांति मिलती है साथ ही बुरे कर्मों का प्रभाव कम होता है। इस दिन नदियों के घाटों पर जन सैलाब उमड़ पड़ता है। साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस दिन दिया गया दान स्वर्ग में दस हजार गुना होकर मिलता है और भगवान विष्णु के धाम की प्राप्ति होती है। आंचलिक रीति-रिवाजों के अनुसार घरों में सुबह से ही इस पर्व का आनंद दिखाई देता है। बाजार में मिट्टी के घड़ों, इमली और खरबूजों की दुकाने सज जाती है। आज के दिन जल और इमली के शर्बत से भरे कुंभ का दान दिया जाता है। भगवान के सामने नए मिट्टी के नए कुंभ को स्थापित किया जाता है। इसे लीप-पोतकर मंगल स्वस्तिक बनाकर हरे आम्र पत्र और पान के पत्तों से सजाया जाता है। जल से भरे इस कलश के भीतर पैसे और अखंड सुपारी डाली जाती है। पलाश के पत्तों के दोने से इसे ढका जाता है। दोने में इमली व गुड़ से बना शर्बत भरा जाता है। इसका भोग भगवान को लगा कर सबको बांटा जाता है।
खास बात ये है इस कलश को मिट्टी के चार ढेलों पर रखा जाता है। ये चार ढेले आषाढ़, श्रावण, भादों और क्वार मास के प्रतीक हैं। माना जाता है कि जिस मास का ढेला अधिक गीला होता है उस मास में अधिक वर्षा होगी है। देश के किसी हिस्से में मिट्टी के जल से भरे नए घड़े पर खरबूज रखकर दान किया जाता है तो कहीं घड़े के साथ सत्तू या इमली-गुड़ का शर्बत दान देते हैं। इस त्यौहार पर दान की सामग्री का वैज्ञानिक विश्लेषण करें तो तेज धूप, ऊंचे तापमान और लू के थपेड़ों के बीच खरबूज, सत्तू और इमली का शर्बत और घड़े का शीतल जल राहत दिलाता है। लोक भाषाओं के 'आखातीज, 'अखाती और 'अकाती की हर घड़ी, हर पल को शुभ माना जाता है।
तीज पर सोने की शुभ खरीदारी:
अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना अत्यंत शुभदायी माना जाता है और इसलिए सोना खरीदने की परंपरा भी इस त्यौहार से जुड़ी हुई हैं। लोग ठोस सोने के साथ ही सोने के आभूषण भी इस तिथि को खरीदते हैं। बदलते जमाने के साथ ही यह त्यौहार पर भी आधुनिकता की छाप दिखने लगी है। पुराण, पंडित और ज्योतिषी तो सैकड़ो सालों से इस दिन सोना खरीदने की सलाह देते आ रहे हैं और अब इंवेस्टमेंट अडवाईजर्स भी सोना खरीदने की राय दे रहे हैं। इसी कारण सोना खरीदने के साथ ही इस दिन लोग गोल्ड एक्सचेंज ट्रैडेड फंड के जरिए डीमैट फार्मेंट में सोने की खरीदारी करने लगे हैं और सोने को बतौर निवेश देखने लगे हैं। अक्षय तृतीया को स्वर्ण युग की आरंभ तिथि भी मानी गई है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन खरीदा और धारण किए गए सोने और चांदी के गहने अखंड सौभाग्य का प्रतीक माने गए हैं। मान्यताओं के मुताबिक सोने और चांदी के आभूषण खरीदने से घर में बरकत ही बरकत आती है। अक्षय तृतीया के मौके पर सोना खरीदना बड़ा ही शुभ माना जाता है। दरअसल सोने में मां लक्ष्मी का वास माना जाता है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि इस दिन सोना खरीदने के शुभ फल का भी क्षय नहीं होता अर्थात मां लक्ष्मी उस सोने के रूप में उस घर में स्थिरा हो जाती है। जिससे घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने और पहनने की भी परंपरा है।
अक्षय तृतीया पर शादी का मुहूर्त:
ऐसा माना जाता है कि इस दिन जिनका परिणय होता है, उनका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए किए गए अनुष्ठान का अखंड पुण्य मिलता है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। अक्षय तृतीया पर सूर्यदेवता अपनी उच्च राशि मेष में रहेंगे और वे इस दिन के स्वामी होंगे। रात्रि के स्वामी चंद्रमा भी अपनी उच्च राशि वृषभ में रहेंगे। शुक्र का वृषभ राशि में रहने से 27 तरह के योगों में अक्षय तृतीया का सौभाग्य योग रहेगा। यह अपने नाम के अनुसार ही फलदायी होगा। सूर्य के साथ मंगल कार्यों के स्वामी बृहस्पति अपनी मित्र राशि मेष में होंगे। ऐसी स्थिति प्रत्येक 12 वर्ष बाद बनती है।
दान का खास महत्व है:
पुराणों के अनुसार अक्षय तृतीया पर दान-धर्म करने वाले व्यक्ति को वैकुंठ धाम में जगह मिलती है। इसीलिए इस दिन को दान का महापर्व भी माना जाता है। इस दिन नए कार्य शुरू करने के लिए इस तिथि को शुभ माना गया है। भगवान विष्णु को सत्तू का भोग लगाया जाता है और प्रसाद में इसे ही बांटा जाता है। अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान करके जौ का हवन, जौ का दान, सत्तू को खाने से मनुष्य के सब पापों का नाश होता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति पर चंदन या इत्र का लेपन भी किया जाता है।


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जानिये कब होगा स्वयं का मकान

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जो लोग किराए के मकान में रहते हैं, उनका सिर्फ एक ही सपना होता है कि उनका भी एक छोटा ही सही, लेकिन सुंदर सा मकान हो। जहां वह निश्चिंत होकर अपने परिवार के साथ रह सके। न मकान मालिक की टेंशन हो और न ही दूसरे किराएदारों की झिकझिक। हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की हाथ की रेखा देखकर यह बताया जा सकता है कि उस व्यक्ति का कभी अपना मकान भी होगा या नहीं, और यदि होगा तो यह स्थिति कब बनेगी।
आज हम आपको उन रेखाओं के बारे में बता रहे हैं, जो किसी भी व्यक्ति के स्वयं के मकान के बारे में बताते हैं-
1- भूमि का ग्रह मंगल है। हस्तरेखा में मंगल का क्षेत्र से भूमि व भवन का पता चलता है। वस्तुत: मंगल का क्षेत्र का उच्च का होना उत्तम भवन प्राप्ति का योग देता है। मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत का बली होना भवन प्राप्ति का अच्छा संकेत है।
2- हस्तरेखा में मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत के उपर किसी रेखा का होन भी ऐसे व्यक्ति को स्वश्रम से निर्मित उत्तम सुख-सुविधाओं ये युक्त भवन प्राप्त होता है।
3- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत मजबूत हो तो भी ऐसा व्यक्ति स्व पराक्रम व पुरुषार्थ से अपना घर(भवन) बनाता है।
4- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत से कोई रेखा भाग्य रेखा तक जाये तो ऐसे व्यक्ति के पास अपना बंगला या महलनुमा भवन होता है जिसमें कलात्मक बगीचा या जलाशय होता है।
5- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत एवं चंद्रमा और शनि का क्षेत्र या पर्वत विकसित हो तो ऐसे व्यक्ति का भवन दूसरों से अलग, सुंदर आकर्षक एवं नूतन साज-सज्जा से युक्त होता है।
6- हस्तरेखा के मंगल और शुक्र का क्षेत्र या पर्वत एवं चंद्रमा और शनि का क्षेत्र या पर्वत विकसित हो साथ में इन रेखाओ से चलकर कोई रेखा भाग्य या जीवन रेखा तक जाये तो ऐसे व्यक्ति को अचानक निर्मित भवन की प्राप्ति होती है।
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किस कैरिअर को चुनें जाने अपने हथेली से

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अगर रास्ता सही मिल जाए तो मंजिल तक पहुंचना आसान होता है। इसी प्रकार अगर कैरियर का सही चुनाव कर लिया जाए तो कामयाबी कदम चूमती है और व्यक्ति सफलता की राह पर आगे बढ़ता रहता है। लेकिन जब कैरियर के चुनाव की बात आती है तब अक्सर लोग चुनाव करने में ग़लती कर बैठते हैं जिससे काफी संघर्ष करने के बाद भी निराशा और असफलता का दर्द महसूस होता रहता है। इस समस्या से बचने के लिए हस्तरेखा की सहायता ले सकते हैं। हाथों की बनावट और हस्तरेखाओं से आप यह जान सकते हैं कि ईश्वर आपको किन क्षेत्रों में सफलता प्रदान करेगा। अगर रेखाओं को ध्यान से देखें तो जान सकते हैं कि भाग्य ने आपके लिए किस तरह का करियर चुना है।
उच्चाधिकारी बनाती हैं ऐसी रेखाएं:
सूर्य को सरकार एवं सरकारी क्षेत्र में सफलता का कारक माना जाता है। जिस व्यक्ति की हथेली में सूर्य रेखा स्पष्ट और गहरी होती है तथा इस रेखा पर शुभ चिन्ह जैसे त्रिभुज, चतुर्भुज या सितारों का चिन्ह होता है वह सरकारी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त करते हैं। छोटी उंगली का अनामिका उंगली के तीसरे पोर की जड़ तक पहुंचना। मंगल पर्वत अथवा जीवनरेखा से किसी रेखा का निकलकर सूर्य पर्वत तक पहुंचना भी शुभ माना जाता है। ऐसे व्यक्ति सरकारी क्षेत्र में अधिकारी होते हैं। निष्कंलक अर्थात् शुद्घ भाग्य रेखा अनामिका की तुलना में लम्बी तर्जनी, कनिष्ठा, अनामिका के पहले पोरे को पारकर जाए। शाखायुक्त मस्तिष्क रेखा, अच्छा मजबूत दोषयुक्त सूर्य क्षेत्र तथा श्रेष्ठ अन्य रेखाएं जातक को प्रशासन संबंधी कार्यों की ओर ले जाने का संकेत करती हैं।
इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफलता:
इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कैरियर बनने के लिए शनि पर्वत यानी मध्यमा उंगली की जड़ के पास हथेली उभरी हुई हो। भाग्य रेखा शनि पर्वत पर आकर रुक गई हो। गुरू पर्वत यानी तर्जनी के पास हथेली का उभरा हुआ होना भी इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कैरियर बनाने में सहायक होता है। मजबूत शनि, लम्बी गहरी मस्तिष्क रेखा, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां जातक का रूझान मशीनरी क्षेत्र में होता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाबी:
जिनकी हथेली में बुध, मंगल एवं सूर्य पर्वत उभरा हुआ होता है वह चिकित्सा के क्षेत्र में सफल एवं प्रसिद्घ होते हैं। कनिष्ठा उंगली पर कई सीधी रेखाएं हों और मंगल उभरा हुआ होना बताता है कि व्यक्ति शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाब होगा। अच्छे बुध पर तीन-चार खड़ी लाइनें, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां तथा वर्गाकार हथेली तथा अच्छी आभास रेखा चिकित्सा क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।
फिल्म एवं टेलीविजन में कैरियर:
हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार अगर कोई व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में कैरियर बनाने की सोच रहा है तो जरूरी है कि सूर्य पर्वत और शुक्र पर्वत उभरा हुआ हो। सूर्य पर्वत अनामिका के जड़ के पास के भाग को कहते हैं और शुक्र पर्वत अंगूठे के जड़ वाले भाग को कहा जाता है। इसके साथ ही हाथ की सभी उंगलियां कोमल और हथेली के पीछे की ओर झुकती हों। अनामिका उंगली की लंबाई मध्यमा की जड़ तक हो। और भाग्य रेखा को कोई अन्य रेखा नहीं काटती हो। जिनकी हथेली ऐसी होती है वह अभिनय के क्षेत्र में सफल होते हैं। ऐसे व्यक्ति लोकप्रिय एवं धन-संपन्न होते है। इसमे भी अभिनय के क्षेत्र में सफलता लम्बी एवं शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा जिसकी एक शाखा बुध पर जाए, विकसित बुध तथा शुक्र तथा सूर्य एवं अच्छा चन्द्र एवं लम्बी कनिष्ठा अंगुली ऐक्टिंग के लिए उपयुक्त है। अंगुलियों की तुलना में लम्बी हथेली, कोणाकार अंगुलियां, मस्तिष्क एवं जीवन रेखा में प्रारम्भ से ही गैप तथा शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा एवं शुक्र व चन्द्र अच्छे हों, तो गायकी के क्षेत्र में सफलतादायी होती है। लचीला अंगूठा, लचीली एवं हथेली की तुलना में लम्बी अंगुलियां होने पर नृत्य के क्षेत्र में नाम प्रदान करती है। अगर सूर्य, बुध पर्वत उभरे हुए हों, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा अच्छी हो, मस्तिष्क रेखा चंद्र पर्वत के नीचे तक आए तो छोटी आयु में ही बडा संगीतज्ञ बनने के योग बनते हैं।
कानून के क्षेत्र में कैरियर:
अपने उदय के समय मस्तिष्क रेखा एवं जीवन रेखा थोड़ा गैप लेकर चले तथा मस्तिष्क रेखा के अंत में कोई द्विशाखा हो, कनिष्ठा का पहला पोरा लम्बा एवं मजबूत हो तथा अच्छा बुध, तीन खड़ी लाइन युक्त हो तथा मजबूत अंगूठे का दूसरा पोर सबल हो तो यह न्याय के क्षेत्र में ले जाने का संकेत है। मस्तिष्क रेखा अंत में अर्ध वृत्ताकार चलती हुई बुध पर्वत की ओर मुड जाए तो उसे नीति और चतुराई से समस्या को हल करने में महारत प्राप्त होता है।
सैन्य सेवाओ के क्षेत्र में कैरियर:
लम्बा एवं सख्त मजबूत अंगूठा, उन्नत शुक्र एवं मंगल अच्छी सूर्य एवं भाग्य रेखा तथा वर्गाकार या चमसाकार अंगुलियां सैन्य सेवा के लिए अच्छी हैं। इसके साथ यदि मंगल अति विकसित एवं सख्त है तो थल सेना के लिए उपयुक्त है। यदि उक्त के साथ विकसित बृहस्पति एवं मजबूत एवं थोड़ा सा अन्तराल लिए मस्तिष्क एवं जीवन रेखा का उदय हो तो हवाई सेना के लिए संकेत हैं। जीवन रेखा और भाग्य रेखा के मध्य कोई त्रिभुज हो तो सेना में उच्च पद प्राप्त होता है।
अकाउट के क्षेत्र में कैरियर:
अगर भाग्य रेखा एवं प्रभाव रेखा गुरू पर्वत की ओर जाए तो व्यक्ति धन से संबंधित हिसाब-किताब का कार्य करता है। अच्छा बुध, सूर्य एवं अच्छी भाग्यरेखा तथा मजबूत अंगूठा एवं अंगुलियों की सबल विकसित दूसरी संधि गांठ हो, तो अकांटिंग का कार्य करता है।
व्यापार के क्षेत्र में कैरियर:
अगर भाग्य रेखा का बुध पर्वत पर अंत हो तो जातक को व्यापार में सफलता प्राप्त होती है। अगर मस्तिष्क रेखा अंत में तीन शाखाओं में बँट जाए तो व्यक्ति डिप्लोमेट होता है। इसमें से अगर एक शाखा चंद्र पर्वत तक जाए और दूसरी शाखा बुध पर्वत तक जाए तो व्यक्ति में गजब की व्यापारिक क्षमता होती है और अपनी योग्यता से धन कमाने में सफल होता है। स्वास्थ्य रेखा से कोई प्रभाव रेखा निकल कर नीचे ओर सूर्य रेखा को स्पर्श करें तो यह व्यापार में अच्छी सफलता प्रदान करता है। पर यदि यह रेखा सूर्य रेखा को काट दे तो साझेदारी के लिए हानिकारक होता है।
ज्योतिष के क्षेत्र में कैरियर:
अगर मस्तिष्क रेखा चंद्र पर्वत के बीच तक जाएॅ और तर्जनी के दूसरे पर्व में खडी रेखाएॅ हों तो व्यक्ति ज्योतिष तथा तंत्रमंत्र विद्याओं में पारंगत होता है। बुध पर्वत से चंद्रक्षेत्र तक कोई गोलाई लिये हुए रेखा आए, उसे अंत: प्रेरणा रेखा कहते हैं, तो उसे ज्योतिष का अच्छा ज्ञान होता है। यदि अंत: प्रेरणा रेखा, भाग्य रेखा और मस्तक रेखा मिलकर कोई छोटा क्रास बनाये तो गुप्त विद्यओं का अच्छा ज्ञान होता है। यदि शनि पर्वत के नीचे चतुर्भुज में क्रास हो जिसे कोई भी बडी रेखा स्पर्श ना करें तो उसकी बोली हुई बातें सच साबित होती है तथा ज्योतिष के क्षेत्र में उसे बडी सफलता प्राप्त होती है।

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जाने कुंडली में सरकारी नौकरी प्राप्ति के योग कैसे

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सभी की चाह होती है कि उच्च पद तथा सम्मान अपने जीवन में प्राप्त करें। साथ ही यह चाह भी कि जीवन में स्थिरता बनी रहे। इस का एक तरीका सरकारी नौकरी प्राप्त करना भी है। किंतु कई बार देखा जाता है कोई व्यक्ति बहुत प्रयास के बाद भी सफल नहीं हो पाता है वहीं किसी को एक बार में अच्छी सफलता प्राप्त हो जाती है। इसका कारण अथक मेहनत के साथ जन्मपत्री में ग्रह योग भी होते हैं। यदि ग्रह योग राजकीय पद पर कार्य करने का है तो थोड़े से प्रयास से भी अच्छा पद प्राप्त हो सकता है किंतु इसके लिए व्यक्ति की ग्रह दषाओं के साथ दषा एवं अंतरदषा भी प्रभाव डालती है। प्रत्येक जातक अपने ग्रह स्थिति हेतु कुंडली में सूर्य, गुरू, मंगल, चंद्रमा तथा राहु की स्थिति का विष्लेषण तथा प्रयास के दौरान ग्रह दषाओं के साथ दषा तथा अंतरदषा का मूल्यांकन कर अपनी सफलता का आकलन कर सकता है। यदि किसी जातक की ग्रह स्थिति अनुकूल हो तो दषा के प्रतिकूल होने पर आवष्यक उपाय द्वारा भी सफलता प्राप्ति का रास्ता खोल सकता है। प्रतियोगिता परीक्षा में निष्चित सफलता प्राप्ति तथा मन की एकाग्रता में वृद्धि हेतु पूर्व दिषा में मुख कर नित्य अष्म स्तोत्र का पाठ का पाठ करना चाहिए।
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आत्मविश्वास की कमी जाने ज्योतिष्य कारण


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आत्मविश्वास वस्तुत: एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति है। आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है और इसके कारण ही महान कार्यों में सरलता और सफलता मिलती है। इसी के द्वारा आत्मरक्षा होती है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास से ओत-प्रोत है, उसे अपने भविष्य के प्रति किसी प्रकार की चिन्ता नहींं सताती। दूसरे व्यक्ति जिन सन्देहों और शंकाओं से दबे रहते हैं, वह उनसे सदैव मुक्त रहता है। यह प्राणी की आंतरिक भावना है। इसके बिना जीवन में सफल होना अनिश्चित है। आत्मविश्वास वह अद्भुत शक्ति है जिसके बल पर एक अकेला मनुष्य हजारों विपत्तियों एवं शत्रुओं का सामना कर लेता है। निर्धन व्यक्तियों की सबसे बड़ी पूंजी और सबसे बड़ा मित्र आत्मविश्वास ही है। इस संसार में जितने भी महान कार्य हुए हैं या हो रहे हैं, उन सबका मूल तत्व आत्मविश्वास ही है। संसार में जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, यदि हम उनका जीवन इतिहास पढ़ें तो पाएंगे कि इन सभी में एक समानता थी और वह समानता थी- आत्मविश्वास की।
जब किसी व्यक्ति को यह अनुभव होने लगता है कि वह उन्नति कर रहा है, ऊंचा उठ रहा है, तब उसमें स्वत: आत्मविश्वास से पूर्ण बातें करने की शक्ति आ जाती है। उसे शंका पर विजय प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति के मुखमण्डल पर विजय का प्रकाश जगमगा रहा हो, सारा संसार उसका आदर करता है और उसकी विजय, विश्वास में परिणीत हो जाती है। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है, वह स्वत: दिव्य दिखाई पडऩे लगता है, जिसके कारण हम उसकी ओर खिंच जाते हैं और उसकी शक्ति पर विश्वास करने लगते हैं। कहते हैं उस व्यक्ति के लिए मौके की और सफलता की कोई कमी नहींं है जिसमें आत्मविश्वास होता है। परफेक्ट पर्सनलिटी वही होता है जिसमें कॉन्फीडेन्स होता है। आत्मविश्वास वह चॉबी है जो जिस व्यक्ति के हाथ में होती है उसके लिए हर ताले को खोलने की कला सिखा देता है। कोई व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान हो, कितना भी सुन्दर हो लेकिन अगर उसमें आत्मविश्वास नहींं है तो वह चाहकर भी वह सफलता प्राप्त नहींं कर पाता है।
आत्मविश्वास की कमी से हममें असुरक्षा और हीनता का भाव आ जाता है। अगर हमारा आत्मविश्वास कम हो तो हमारा रवैया नकारात्मक् रहता है और हम तनाव से ग्रस्त रहते हैं। नतीजतन हमारी एकाग्रता भी कम हो जाती है और हम निर्णय लेते समय भ्रमित और गतिहीन से हो जाते हैं। इससे हमारा व्यक्तित्व पूरी तरह से खिल नहींं पाता। ऐसे में सफलता तो कोसों दूर रहती है।
कैसे बढ़ाएं आत्मविश्वास:
हमें सर्वप्रथम् खुद को अपनी ही नजरों में उठना पड़ेगा। इसलिए हमें देखना पड़ेगा की हम कभी अपने को किसी से कम न समझें और न ही किसी और के साथ अपना मुल्याँकन करें या करने दें। यह जान लें कि हम सब अपनी-अपनी जगह पर सही व पूर्ण हैं। और जब-जब हम अपनी तुलना किसी और से करते हैं तब-तब हम अपने साथ एक बहुत बड़ा अपराध करते हैं।
आत्मविश्वास को बढ़ाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम होगा जब हम खुद को मायूस कर देने वाले व्यक्तियों व नकारात्मक् परिस्थितियों से कोसों दूर रखें क्योंकि यह हमारे आत्मविश्वास को एकदम क्षीण कर देती हैं। इनसब के विपरीत हमें अपना उत्साह बढ़ाने के लिए खुद को सकारात्मक वैचारिक-संदेश देते रहना चाहिए कि मैं श्रेष्ठ हूँ, पूर्ण हूँ, सम्पूर्ण हूँ। मुझमें कोई कमी नहींं है। मैं कोई भी कार्य करने में सक्षम् हूँ। मैं सही हूँ।
यह भी याद रखें कि हमारे हाथ में केवल कर्म करना होता है, और कर्मठता से प्रयास करने वाले ही को प्रभु सफलता देता है। अगर हम किसी कार्य को करते हुये विफल भी होते हैं तो इसमें किसी प्रकार का दुख या रंज करने की जरूरत नहींं होनी चाहिए, क्योंकि हमने तो उक्त कार्य में अपनी १०० फीसदी क्षमता का पूर्ण उपयोग किया है। इस तरह के सोच से आपमें अवसाद और निराशा नहीं रहेगी बल्कि एक प्रकार की नई स्फूर्ति और तेज आयेगा कि हम तो ईश्वर के दिये हुये कार्य को मन लगाकर कर रहे हैं, बाकि तो सब उसके हाथ है।
ज्योतिषीय शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। यदि सूर्य कमजोर होता है तो ऐसा व्यक्ति चाहकर भी आगे नहींं बढ़ पाता है। क्योंकि ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह माना गया है। उसी तरह कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मन का कारक ग्रह होता है। अगर कुंडली में सूर्य, पाप ग्रहों से पिडि़त हो या कुंडली में खराब घर यानी छठे, आंठवें या बारहवें भाव में हो तो अशुभ फल देता है। इससे व्यक्ति का आत्मविश्वास कम होने का योग बनता है। चंद्रमा अगर कुंडली में नीच राशि, वृश्चिक के साथ अपने शत्रु ग्रह की राशि में हो या कुंडली के अशुभ घर में हो तो व्यक्ति का मन कमजोर तो हो ही जाता है साथ ही वह डरपोक होता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है।
अगर चंद्रमा के साथ ही गुरू और बुद्धि का स्वामी बुध, अच्छी स्थिति में हो तो वो व्यक्ति बहुत ही बुद्धिमान होता है। मतलब जन्मकुंडली में सूर्य और चन्द्र अच्छी स्थिति में हो तो उसका व्यक्तित्व, आत्मविश्वास से भरा होता है। वैसे तो इंसान अपना आत्मविश्वास खुद बढ़ाता है लेकिन ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति का आत्मविश्वास तभी कम होता है जब उसकी जन्मकुंडली में सूर्य या चन्द्र कमजोर स्थिति में होते है। अत: किसी भी जातक की कुंडली में इन ग्रहों के कमजोर होने, नीच के होने या शत्रु स्थान या ग्रहों से पीडि़त होने की स्थिति में इन ग्रहों के उपाय कर तथा उचित कर्मकाण्ड से ग्रहों को मजबूत कर के भी आत्मविश्वास को बढ़ाया जा सकता है।
आत्मविश्वास को बढ़ाने के ये उपाय करें-
* तृतीयेश के मंत्रों का जाप करना, उस ग्रह के पदार्थ का दान करना चाहिए।
* लग्रेश को बली करने के लिए लग्र के रत्न को धारण करना, लग्रेश ग्रह का व्रत, मंत्रजाप तथा दान करना चाहिए।
* आत्मविश्वास का कारक ग्रह सूर्य है, अत: प्रत्येक व्यक्ति को सूर्य को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए सूर्य का मंत्र ''ú घृणि सूर्याय नम: का सूर्योदय के समय जाप करना चाहिए।
* चंद्रमा को बलवान करने के लिए चंद्रमा के मंत्र का जाप सफेद पदार्थ जैसे चावल, दूध, शक्कर आदि का दान करना चाहिए।
* कालपुरुष की कुंडली में तीसरा स्थान बुध को प्रदान किया गया है, अत: बुध के मंत्रों का जाप, गणेश जी की उपासना, हरी चीजों का दान, गणेश जी को भोग लगाकर प्रसाद वितरण करना चाहिए।

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वास्तु के नियम अनुसार आपका घर

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वास्तु ऐसा माध्यम है जिससे आप जान सकते हैं कि किस प्रकार आप अपने घर को सुखी व समृद्धशाली बना सकते हैं। नीचे वास्तु सम्मत ऐसी ही जानकारी दी गई है जो आपके लिए उपयोगी होगी-
1- ऐसे मकान जिनके सामने एक बगीचा हो, भले ही वह छोटा हो, अच्छे माने जाते हैं, जिनके दरवाजे सीधे सड़क की ओर खुलते हों क्योंकि बगीचे का क्षेत्र प्राण के वेग के लिए अनुकूल माना जाता है। घर के सामने बगीचे में ऐसा पेड़ नहीं होना चाहिए, जो घर से ऊंचा हो।
2- वास्तु नियम के अनुसार हर दो घरों के बीच खाली जगह होना चाहिए। हालांकि भीड़भाड़ वाले शहर में कतारबद्ध मकान बनाना किफायती होता है लेकिन वास्तु के नियमों के अनुसार यह नुकसानदेय होता है क्योंकि यह प्रकाश, हवा और ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के आगमन को रोकता है।
3- आमतौर पर उत्तर दिशा की ओर मुंह वाले कतारबद्ध घरों में तमाम अच्छे प्रभाव प्राप्त होते हैं जबकि दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाले मकान बुरे प्रभावों को बुलावा देते हैं। हालांकि पूर्व और पश्चिम की ओर मुंह वाले कतारबद्ध मकान अनुकूल स्थिति में माने जाते हैं क्योंकि पश्चिम की ओर मुंह वाले मकान सामान्य ढंग के न्यूट्रल होते हैं।
4- पूर्व की ओर मुंह वाले घर लाभकारी होते हैं। कतार के आखिरी छोर वाले मकान लाभकारी हो सकते हैं यदि उनका दक्षिणी भाग किसी अन्य मकान से जुड़ा हो या पूरी तरह बंद हो। ऐसी स्थिति में जहां कतारबद्ध घर एक-दूसरे के सामने हों, वहां सीध में फाटक या दरवाजे लगाने से बचना चाहिए।
5- यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दक्षिण की ओर मुंह वाले घर यदि सही तरीके से बनाए जाएं तो लाभकारी परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। घर और वास्तु का गहरा नाता है। यही वजह है कि अपने सपनों का घर बनवाते हुए लोग आर्किटेक्ट से सुझाव लेना नहीं भूलते। कई बार वास्तु के हिसाब से चूक होने पर लोग घर में तोड़-फोड़ कराकर इसे दुरुस्त करने में हजारों-लाखों रुपये बर्बाद कर देते हैं। शायद आपको मालूम न हो, इस स्थिति में पेड़-पौधे ये नुकसान रोक सकते हैं। ज्योतिष और वास्तु में ये घर को सकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत करने वाले बताए गए हैं। बस जरूरत है थोड़ी जानकारी और प्रयास की। यदि आपके घर में वास्तु दोष है तो इसे मिटाने के लिए हरियाली का दामन थामना आपके लिए हर लिहाज से बेहतर विकल्प है।
ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार जीवनदायिनी प्रकृति के सहारे आशियाने को सेहत, सौंदर्य और समृद्धि से सराबोर किया जा सकता है। अगर मकान के खुले स्थान पर बगीचा लगा दें तो पूरा घर तरोताजा हवा एवं प्राकृतिक सौंदर्य से महक उठेगा। वास्तुशास्त्र के नजर से पेड़-पौधे उगाते हैं तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी होगा। चूंकि पेड़-पौधों जीवित होते हैं, इसलिए इनकी जीवंत ऊर्जा का सही उपयोग हमारे शरीर और चित्त को प्रसन्न रख सकता है। बस थोड़ा ध्यान रखना होगा कि पेड़-पौधे वास्तुशास्त्र के लिहाज से लगाए जाएं।
वास्तु और पौधे-
वास्तु में माना जाता है कि सकारात्मक ऊर्जा तरंगें हमेशा पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तथा पूर्वोत्तर से दक्षिण-पश्चिम में नैऋत्य कोण की ओर बहती है। ऐसे में ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व एवं उत्तर की ओर हल्के, छोटे व कम घने पेड़-पौधे उगाए जाएं। ताकि घर में आने वाली सकारात्मक ऊर्जा के रास्ते में कोई अवरोध न हो।
तुलसी बेहद उपयोगी-
इन दिशाओं से होकर घर में आने वाली हवा में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के खातिर तुलसी के पौधे बेहद उपयोगी माने जाते हैं। वास्तु के लिहाज से माना जाता है कि तुलसी के पौधों से होकर आने वाली वायु में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है साथ ही ये शुद्ध व स्वास्थ्यवर्धक भी हो जाती है।
इसके अतिरिक्त इन दिशाओं में अन्य औषधीय पौधों का रोपण भी वास्तु में लाभकारी बताया गया है। घर के पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में पुदीना, लेमनग्रास, खस, धनिया, सौंफ, हल्दी, अदरक आदि की उपस्थिति भी तन-मन को ताजगी देते हुए चुस्ती-फुर्ती और आरोग्य देने वाली मानी जाती है।
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री-
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री भी लोग घर में लगाते हैं। दोनों पौधे वास्तु की दृष्टि से समृद्धि कारक माने जाते हैं। शहर में कई परिवारों ने इन पौधों को अपने घरों में लगा रखा है। क्रिसमस ट्री इसाई परिवारों ने अपने घरों में तो मनी प्लांट का पौधा हर धर्म और जाति के लोगों के घरों में देखा जा सकता है।
खूबसूरत बालकनी-
अपने मकान के मुख्य द्वार के आसपास, पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में बालकनी पर गुलाब, बेला, चमेली, ग्लेडियोलाई, कॉसमोस, कोचिया, जीनिया, गेंदा और सदाबहार जैसे फूलों के पौधे लगाए जा सकते हैं। अगर जगह कम हो तो स्टैंड वाले गमले में इन्हें लगाया जा सकता है।
पश्चिम या दक्षिणमुखी घर होने पर-
घर पश्चिम और दक्षिणमुखी होने की दशा में उसके आगे या मुख्य द्वार की ओर बड़े-बड़े पेड़-पौधों समेत लताओं वाले पौध लगाए जा सकते हैं।
* पेड़ों को घर की दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगाएं। पेड़ सिर्फ एक दिशा में ही न लग कर इन दोनों दिशाओं में लगे होने चाहिए।
* एक तुलसी का पौधा घर में जरूर लगाएं। इसे उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्वी दिशा या फिर घर के सामने भी लगा सकते हैं।
* मुख्य द्वार पर पेड़ कभी भी न लगाएं। श्वेतार्क मुख्य द्वार पर लगाना वास्तु की दृष्टि से शुभ फलदायक होता है।
* नीम, चंदन, नींबू, आम, आवला, अनार आदि के पेड़-पौधे घर में लगाए जा सकते हैं।
* काटों वाले पौधे नहीं लगाएं। गुलाब के अलावा अन्य काटों वाले पौधे घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करते हैं।
* ध्यान रखें कि आपके आगन में लगे पेड़ों की गिनती 2, 4, 6, 8.. जैसी सम संख्या में होनी चाहिए, विषम में नहीं।
लोग अपने घरों की फुलवारी में या लॉन में छोटे-छोटे पौधे लगाया करते हैं। भवन में छोटे पौधों का अपने आप में बहुत महत्व होता है। घर में लगाए जाने वाले छोटे पौधों में कई पौधे ऐसे होते हैं जिनका औषधीय महत्व है। साथ ही उनका रसोई या सौंंदर्यवद्र्धन संबंधी महत्व भी है।
आज के समय में स्थान के अभाव में प्राय: लोग गमलों में ही पौधे लगाते हैं या लॉन तथा ड्राइंगरूम में सजाकर रख देते हैं। इन पौधों एवं लताओं की वजह से छोटे फ्लैटों में निवास करने वाले खुद को प्रकृति के नजदीक महसूस करते हैं एवं स्वच्छ हवा तथा स्वच्छ वातावरण का आनंद उठाते हैं।
तुलसी का पौधा इसी प्रकार का एक छोटा पौधा है जिसके औषधीय एवं आध्यात्मिक दोनों ही महत्व हैं। प्राय: प्रत्येक हिन्दू परिवार के घर में एक तुलसी का पौधा अवश्य होता है। इसे दिव्य पौधा माना जाता है। माना जाता है कि जिस स्थान पर तुलसी का पौधा होता है वहां भगवान विष्णु का निवास होता है। साथ ही वातावरण में रोग फैलाने वाले कीटाणुओं एवं हवा में व्याप्त विभिन्न विषाणुओं के होने की संभावना भी कम होती है। तुलसी की पत्तियों के सेवन से सर्दी, खांसी, एलर्जी आदि की बीमारियां भी नष्ट होती हैं।
किस दिशा में लगाए जाएं कौन से पौधे:
वास्तुशास्त्र के अनुसार छोटे-छोटे पौधों को घर की किस दिशा में लगाया जाए ताकि उन पौधों के गुणों को हम पा सकें, इसकी विवेचना यहां की जा रही है।
1. तुलसी के पौधों को यदि घर की उत्तर-पूर्व दिशा में रखा जाए तो उस स्थान पर अचल लक्ष्मी का वास होता है अर्थात उस घर में आने वाली लक्ष्मी टिकती है।
2. घर की पूर्वी दिशा में फूलों के पौधे, हरी घास, मौसमी पौधे आदि लगाने से उस घर में भयंकर बीमारियों का प्रकोप नहीं होता।
3. पान का पौधा, चंदन, हल्दी, नींबू आदि के पौधों को भी घर में लगाया जा सकता है। इन पौधों को पश्चिम-उत्तर के कोण में रखने से घर के सदस्यों में आपसी प्रेम बढ़ता है।
4. घर के चारों कोनों को ऊर्जावान बनाने के लिए गमलों में भारी प्लांट को लगाकर भी रखा जा सकता है। दक्षिण -पश्चिम कोने में अगर कोई भारी प्लांट है तो उस घर के मुखिया को व्यर्थ की चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
5. कैक्टस जैसे रुप के पौधे जिनमें नुकीले कांटे होते हैं उन्हें घर के अंदर लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं।
6. पलाश, नागकेशकर, अरिष्ट, शमी आदि का पौधा घर के बगीचे में लगाना शुभ होता है। शमी का पौधा ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए जो घर से निकलते समय दाहिनी ओर पड़ता हो।
7. घर के बगीचे में पीपल, बबूल, कटहल आदि का पौधा लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार ठीक नहीं। इन पौधों से युक्त घर के अंदर हमेशा अशांति का अम्बार लगा ही रहता है ।
8. फूल के पौधों में सभी फूलों, गुलाब, रात की रानी, चम्पा, जास्मीन आदि को घर के अंदर लगाया जा सकता है किन्तु लाल गेंदा और काले गुलाब को लगाने से चिंता एवं शोक की वृद्धि होती है।
9. शयनकक्ष के अंदर पौधे लगाना अच्छा नहीं माना जाता। बेल (लता) वाले पौधों को अगर शयनकक्ष के अंदर दीवार के सहारे चढ़ाकर लगाया जाता है तो इससे दाम्पत्य संबंधों में मधुरता एवं आपसी विश्वास बढ़ता है।
10. अध्ययन कक्ष के अंदर सफेद फूलों के पौधे लगाने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। अध्ययन कक्ष के पूर्व एवं दक्षिण के कोने में गमले को रखा जाना चाहिए।
11. रसोई घर के अंदर गमलों में पुदीना, धनिया, पालक, हरी मिर्च आदि के छोटे-छोटे पौधों को लगाया जा सकता है। वास्तुशास्त्र एवं आहार विज्ञान के अनुसार जिन रसोईघरों में ऐसे पौधे होते हैं वहां मक्खियां एवं चींटियां अधिक तंग नहीं करतीं तथा वहां पकने वाली सामग्री सदस्यों को स्वस्थ रखती है।
12. घर के अंदर कंटीले एवं वैसे पौधे जिनसे दूध निकलता हो, नहीं लगाने चाहिएं। ऐसे पौधों के लगाने से घर के अंदर वैमनस्य का भाव बढ़ता है एवं वहां हमेशा अशांति का वातावरण बना रहता है।
13. बोनसाई पौधों को घर के अंदर लगाना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं क्योंकि बोनसाई को प्रकृति के विरुद्ध छोटा कद प्रदान किया जाता है। जिस प्रकार बोनसाई का विस्तार संभव नहीं होता, उसी प्रकार उस घर की वृद्धि भी बौनी ही रह जाती है।
१४. छोटे पौधों को उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। इस बात का खयाल रखें कि उत्तर-पूर्व में खुला स्थान बना रहे। लम्बे वृक्षों को बगीचे/भवन के पश्चिम, दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगाएं। इन्हें लगाते हुए यह खयाल रखें कि ये भवन की इमारत से पर्याप्त दूरी पर हों व सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच इनकी छाया इमारत पर न पड़े।
१५. विशाल दरख्तों जैसे पीपल, नीम आदि को भवन से पर्याप्त दूरी पर लगाना चाहिए, क्योंकि इनकी जड़ें भवन की नींव को क्षति पहुंचा सकती हैं। इस बात का भी खयाल रखें कि इन दरख्तों की छाया सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच इमारत पर न पड़े।
१६. कांटेदार पौधों को घर में कभी नहीं लगाना चाहिए क्योंकि ऐसे पौधे नकारात्मक ऊर्जा के वाहक होते हैं। खासकर कैक्टस तो बिल्कुल भी नहीं। इनकी घर में उपस्थिति अशुभ मानी जाती है। अगर आपके घर में कोई कांटेदार पौधा है भी, तो उसे तुरंत उखाड़ फेंकें।
१७. लताओं यानी बेलनुमा पौधों को आंगन या घर की दीवार पर न फैलने दें। इन्हें बगीचे में ही लगाएं और इन्हें अपनी सहायता से आप फैलने दें, लेकिन इन्हें बढऩे के लिए घर या आंगन की दीवार का सहारा न दें। मनी प्लांट अवश्य घर के भीतर लगाया जा सकता है। जो वृक्ष सांप, मधुमक्खी, कीड़े, चीटिंयों, उल्लू आदि को आमंत्रित करते हैं, ऐसे वृक्षों को बगीचे में न लगाएं।


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Friday 19 June 2015

कठिन परिश्रम के बाद भी भाग्योदय में बाधा......जाने क्यों



कठिन परिश्रम के बाद भी किस्मत साथ नहीं दे, और धक्के खाने पड़े तो व्यक्ति निराश हो जाता है। कहावत है कि जैसा करोगे वैसा ही भरोगे। लगातार मेहनत और व्यापार करने पर लाभ की जगह घटा हो रहा हो। ईमानदारी से और कठिन परिश्रम करने के बावजूद भी नौकरी नहीं मिलती हो। योग्यता व पात्रता के आधार पर अच्छा वेतन नहीं मिलता है। आपके जूनियर तरक्की करते जाय आप इसी पद पर वर्षों से रहे। आप अपने आपको कोस रहे हैं। जी हां यदि मेहनत, श्रम और ईमानदारी से काम करने और योग्यता के आधार पर यश, धन, नौकरी, व्यापार, पढ़ाई, विवाह, मकान, दुकान, रोग और सेहत में सुख नहीं मिले लगातार निरंतर हानि, अपयश, रोग, दरिद्रता कम तनख्वाह किराये का मकान में रहना आदि दुख पीछा नहीं छोड़ता है, तो समझ लेना चाहिए, कि भाग्य साथ नहीं दे रहा है।
प्रश्न उठता है कि आखिर आप के साथ ही क्यों होता है?
1 भाग्य की बाधा के लिये जन्मपत्री में नवम भाव व नवमेश का गहराई से अध्ययन करना चाहिए।
2 नवम से नवम अर्थात पंचम भाव व पंचमेश की स्थिति का भी निरीक्षण ध्यानपूर्वक करना चाहिए।
3 भाग्य-यश के दाता सूर्य की स्थिति, पाप ग्रहों की दृष्टि नीच ग्रहों की दृष्टि नीच ग्रहों की दृष्टि के प्रभाव में तो नहीं है।
4 धन, वैभव, नौकरी, पति, पुत्र व समृद्धि का दायक गुरु कहीं नीच का होकर पाप प्रभाव में तो नहीं है।
5 लग्नेश व लग्न पर कहीं पाप व नीच ग्रहों का प्रभाव तो नहीं है।
भाग्य में बाधा डालने वाले कुछ दोष:
1. लग्नेश यदि नीच राशि में, छठे, आठवे, 12 भाव में हो तो भाग्य में बाधा आती है।
2. राहू यदि लग्न में नीच का शनि जन्मपत्री में किसी भी स्थान में हो, तथा मंगल चतुर्थ स्थान में हो तो भाग्य में बाधा आती है।
3. लग्नेश सूर्य चंद्र व राहू के साथ 12वें भाव में हो तो भाग्य में बाधा आती है।
4. लग्नेश यदि तुला राशि के सूर्य तथा शनि के साथ छठे, 8वें में हो तो जातक का भाग्य साथ नहीं देता।
5. पंचम भाव का स्वामी यदि नीच का हो या वक्री हो तथा छठे, आठवें, 12वें भाव में स्थित हो तो भाग्य के धोखे सहने पड़ते हैं।
6.पंचम भाव का स्वामी तथा नवमेश यदि नीच के होकर छठे भाव में हो तो शत्रुओं द्वारा बाधा आती है।
7. पंचम भाव पर राहु, केतु तथा सूर्य का प्रभाव हो लग्नेश छठे भाव में हो पितृदोष के कारण भाग्य में बाधा आती है।
8. मकर राशि का गुरु पंचम भाव में यदि हो तो भाग्य के धक्के सहने पड़ते हैं।
9. पंचमेश यदि 12वें भाव में मीन राशि के बुध के साथ हो भाग्य में बाधा आती है।
10. पंचम या नवम भाव में सूर्य उच्च के शनि के साथ हो तो भाग्य में बाधा देखी जाती है।
11. नवम भाव में यदि राहु के साथ नवमेश हो तो भाग्य बन जाता है।
12. नवम भाव में सूर्य के साथ शुक्र यदि शनि द्वारा देखा जाता हो। तो भाग्य साथ नहीं देता।
13. नवमेश यदि 12वें या 8वें भाव में पाप ग्रह द्वारा देखा जाता हो, तो भाग्य साथ नही देता।
14. नवम भाव का स्वामी 8वें भाव में राहु के साथ स्थित हो तो पग-पग पर ठोकरे खानी पड़ती है।
15. नवमेश यदि द्वितीय भाव में राहु-केतु के साथ, शनि द्वारा देखा जाता है, तो व्यक्ति का भाग्य बंध जाता है।
16. नवमेश यदि द्वादश भाव में षष्ठेश के साथ स्थित होकर पाप ग्रहों द्वारा देखा जाता हो, तो बीमारी कर्जा व रोग के कारण कष्ट उठाने पड़ते है।
17. नीच का गुरु नवमेश के साथ अष्टम भाव में राहु, केतु द्वारा दृष्ट हो तो गुरु छठे, 8वें, 12वें राहु शनि द्वारा देखा जाता हो तो भाग्य साथ नहीं देता।
18. नीचे का गुरु छठे, 8वें, और 12वें राहु शनि द्वारा देखा जाता हो तो भाग्य साथ नहीं देता।
भाग्य बाधा निवारण के उपाय:
सूर्य गुरु लग्नेश व भाग्येश के शुभ उपाय करने से भाग्य संबंधी बाधाएं दूर हो जाती है।
1. गायत्री मंत्र का जाप करके भगवान सूर्य को जल दें।
2. प्रात:काल उठकर माता-पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लें।
3. अपने ज्ञान, सामर्थ और पद प्रतिष्ठा का कभी भी अहंकार न करें।
4. किसी भी निर्बल व असहाय व्यक्ति की बददुआ न ले।
5. वद्धाश्रम और कमजोर वर्ग की यदाशक्ति तन, मन और धन से मदद करें।
6. सप्ताह में एक दिन मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा जाकर ईश्वर से शुभ मंगल की प्रार्थना करें। मंदिर निर्माण में लोहा, सीमेंट, सरिया इत्यादि का दान देकर मंदिर निर्माण में मदद करें।
7. पांच सोमवार रुद्र अभिषेक करने से भाग्य संबंधी अवरोध दूर होते है।
8. 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्र का जाप 108 बार रोज करने से बंधा हुआ भाग्य खुलने लगता है।
9. भाग्यस्थ अथवा अष्टमस्थ राहु अथवा इन दोनों स्थानों पर राहु की दृष्टि भाग्योदय में बाधा का बडा कारण होती है। राहु की दशा, अंतदर्शा अथवा प्रत्यंतर दशा में अकसर भाग्य बाधित होता है। अत: कुंडली में इस प्रकार के योग बन रहे हों तो उक्त राहु की शांति करानी चाहिए। इसके लिए अज्ञात पितर दोष निवृत्ति हेतु नारायणबली, नागबली एवं कालसर्प शांति कराने से जीवन में भाग्योदय का रास्ता खुलता है।

जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार

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स्त्री और पुरुष संतान प्राप्ति की कामना के लिए विवाह करते हैं] वंश परंपरा की वृद्धि के लिए एवaaaaaaa परमात्मा को श्रृष्टि रचना में सहयोग देने के लिए यह आवश्यक भी हैa] पुरुष पिता बन कर तथा स्त्री माता बन कर ही पूर्णता का अनुभव करते हैं] धर्म शास्त्र भी यही कहते हैं कि संतान हीन व्यक्ति के यज्ञ दान एव अन्य सभी पुण्यकर्म निष्फल हो जाते हैंA महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है कि पुत्र ही पिता को पुत् नामक नर्क में गिरने से बचाता है] मुनिराज अगस्त्य ने संतानहीनता के कारण अपने पितरों को अधोमुख स्थिति में देखा और विवाह करने के लिए प्रवृत्त हुए प्रश्न मार्ग के अनुसार संतान प्राप्ति कि कामना से ही विवाह किया जाता है जिस से वंश वृद्धि होती है और पितर प्रसन्न होते हैंA
जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया है भाग्य में संतान सुख है या नहीं पुत्र होगा या पुत्री अथवा दोनों का सुख प्राप्त होगा एo संतान कैसी निकलेगी एo संतान सुख कब मिलेगा और संतान सुख प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं और उनका क्या उपचार है इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति और पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत व गहन विश्लेषण से प्राप्त हो सकता है
जन्म कुंडली के किस भाव से विचार करें
जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो एo उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है] भाव स्थित राशि व उसका स्वामी एo भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है] पति एव पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए] पंचम भाव से प्रथम संतान का एo उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए] उस से आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है
संतान सुख प्राप्ति के योग
पंचम भाव में बलवान शुभ ग्रह गुरु एo शुक्र एo बुध एo शुक्ल पक्ष का चन्द्र स्व मित्र उच्च राशि नवांश में स्थित हों या इनकी पूर्ण दृष्टि भाव या भाव स्वामी पर हो एo भाव स्थित राशि का स्वामी स्व मित्र एo उच्च राशि नवांश का लग्न से केन्द्र एo त्रिकोण या अन्य शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो एo संतान कारक गुरु भी स्व एमित्र एउच्च राशि दृ नवांश का लग्न से शुभ स्थान पर शुभ युक्त शुभ दृष्ट हो ए गुरु से पंचम भाव भी शुभ युक्त दृदृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की प्राप्ति होती है द्य शनि मंगल आदि पाप ग्रह भी यदि पंचम भाव में स्व एमित्र एउच्च राशि दृ नवांश के हों तो संतान प्राप्ति करातें हैं द्य पंचम भाव एपंचमेश तथा कारक गुरु तीनों जन्मकुंडली में बलवान हों तो संतान सुख उत्तम एदो बलवान हों तो मध्यम एएक ही बली हो तो सामान्य सुख होता है सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में बलवान हो एo शुभ स्थान पर हो तथा सप्तमांश लग्न भी शुभ ग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो निश्चित रूप से संतान सुख की अनुभूति होती है द्य प्रसिद्ध फलित ग्रंथों में वर्णित कुछ प्रमुख योग निम्नलिखित प्रकार से हैं जिनके जन्मकुंडली में होने से संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती हैA
१ जन्मकुंडली में लग्नेश और पंचमेश का या पंचमेश और नवमेश का युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध शुभ भावों में हो]
२ लग्नेश पंचम भाव में मित्र एo उच्च राशि नवांश का हो]
३ पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो]
४ पंचम भाव पर बलवान शुभ ग्रहों की पूर्ण दृष्टि हो द्य
५ जन्म कुंडली में गुरु स्व एo मित्र एउच्च राशि नवांश का लग्न से शुभ भाव में स्थित हो द्य
६ एकादश भाव में शुभ ग्रह बलवान हो कर स्थित हों द्य
संतान सुख हीनता के योग
लग्न एवम चंद्रमा से पंचम भाव में निर्बल पाप ग्रह अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में स्थित हों एपंचम भाव पाप कर्तरी योग से पीड़ित हो ए पंचमेश और गुरु अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में लग्न से 6ए8 12 वें भाव में स्थित हों ए गुरु से पंचम में पाप ग्रह हो ए षष्टेश अष्टमेश या द्वादशेश का सम्बन्ध पंचम भाव या उसके स्वामी से होता हो ए सप्तमांश लग्न का स्वामी जन्म कुंडली में 6ए8 12 वें भाव में अस्त एशत्रु दृनीच राशि नवांश में स्थित हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है द्य जितने अधिक कुयोग होंगे उतनी ही अधिक कठिनाई संतान प्राप्ति में होगी द्य
पंचम भाव में अल्पसुत राशि ; वृष एसिंह कन्या एवृश्चिक द्ध हो तथा उपरोक्त योगों में से कोई योग भी घटित होता हो तो कठिनता से संतान होती है द्य
गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पंचम स्थान शुभ बिंदु से रहित हो तो संतानहीनता होती है द्य
सप्तमेश निर्बल हो कर पंचम भाव में हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है द्य
गुरु एलग्नेश एपंचमेश एसप्तमेश चारों ही बलहीन हों तो अन्पतत्यता होती है द्य
गुरु एलग्न व चन्द्र से पांचवें स्थान पर पाप ग्रह हों तो अन्पतत्यता होती है द्य
पुत्रेश पाप ग्रहों के मध्य हो तथा पुत्र स्थान पर पाप ग्रह हो एशुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अन्पतत्यता होती है द्य
पुत्र या पुत्री योग
सूर्य एमंगलए गुरु पुरुष ग्रह हैं द्य शुक्र एचन्द्र स्त्री ग्रह हैं द्य बुध और शनि नपुंसक ग्रह हैं द्य संतान योग कारक पुरुष ग्रह होने पर पुत्र तथा स्त्री ग्रह होने पर पुत्री का सुख मिलता है द्य शनि और बुध योग कारक हो कर विषम राशि में हों तो पुत्र व सम राशि में हो तो पुत्री प्रदान करते हैं द्य सप्तमान्शेष पुरुष ग्रह हो तो पुत्र तथा स्त्री ग्रह हो तो कन्या सन्तिति का सुख मिलता है द्य गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पांचवें स्थान पर पुरुष ग्रह बिंदु दायक हों तो पुत्र स्त्री ग्रह बिंदु दायक हो तो पुत्री का सुख प्राप्त होता है द्यपुरुष और स्त्री ग्रह दोनों ही योग कारक हों तो पुत्र व पुत्री दोनों का ही सुख प्राप्त होता है द्य पंचम भाव तथा पंचमेश पुरुष ग्रह के वर्गों में हो तो पुत्र व स्त्री ग्रह के वर्गों में हो तो कन्या सन्तिति की प्रधानता रहती है द्य
पंचमेश के भुक्त नवांशों में जितने पुरुष ग्रह के नवांश हों उतने पुत्र और जितने स्त्री ग्रह के नवांश हों उतनी पुत्रियों का योग होता है द्य जितने नवांशों के स्वामी कुंडली में अस्त एनीच दृशत्रु राशि में पाप युक्त या दृष्ट होंगे उतने पुत्र या पुत्रियों की हानि होगी द्य
संतान बाधा के कारण व निवारण के उपाय
सर्वप्रथम पति और पत्नी की जन्म कुंडलियों से संतानोत्पत्ति की क्षमता पर विचार किया जाना चाहिए द्यजातकादेशमार्ग तथा फलदीपिका के अनुसार पुरुष की कुंडली में सूर्य स्पष्ट एशुक्र स्पष्ट और गुरु स्पष्ट का योग करें द्यराशि का योग 12 से अधिक आये तो उसे 12 से भाग दें द्यशेष राशि ; बीज द्धतथा उसका नवांश दोनों विषम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमताएएक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों सम हों तो अक्षमता होती है द्य इसी प्रकार स्त्री की कुंडली से चन्द्र स्पष्ट एमंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट से विचार करें द्यशेष राशि; क्षेत्र द्ध तथा उसका नवांश दोनों सम हों तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमताएएक सम एक विषम हो तो कम क्षमता तथा दोनों विषम हों तो अक्षमता होती है द्य बीज तथा क्षेत्र का विचार करने से अक्षमता सिद्ध होती हो तथा उन पर पाप युति या दृष्टि भी हो तो उपाय करने पर भी लाभ की संभावना क्षीण होती है एशुभ युति दृष्टि होने पर शान्ति उपायों से और औषधि उपचार से लाभ होता है द्य शुक्र से पुरुष की तथा मंगल से स्त्री की संतान उत्पन्न करने की क्षमता का विचार करें द्य पुरुष व स्त्री जिसकी अक्षमता सिद्ध होती हो उसे किसी कुशल वैद्य से परामर्श करना चाहिए द्य
सूर्यादि ग्रह नीच एशत्रु आदि राशि नवांश मेंएपाप युक्त दृष्ट एअस्त एत्रिक भावों का स्वामी हो कर पंचम भाव में हों तो संतान बाधा होती है द्य योग कारक ग्रह की पूजा एदान एहवन आदि से शान्ति करा लेने पर बाधा का निवारण होता है और सन्तिति सुख प्राप्त होता है द्य फल दीपिका के अनुसार रू.
एवं हि जन्म समये बहुपूर्वजन्मकर्माजितं दुरितमस्य वदन्ति तज्ज्ञाः द्य
ततद ग्रहोक्त जप दान शुभ क्रिया भिस्तददोषशान्तिमिह शंसतु पुत्र सिद्धयै द्यद्य
अर्थात जन्म कुंडली से यह ज्ञात होता है कि पूर्व जन्मों के किन पापों के कारण संतान हीनता है द्य बाधाकारक ग्रहों या उनके देवताओं का जाप एदान एहवन आदि शुभ क्रियाओं के करने से पुत्र प्राप्ति होती है द्य
सूर्य संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पितृ पीड़ा है द्य पितृ शान्ति के लिए गयाजी में पिंड दान कराएं द्य हरिवंश पुराण का श्रवण करें द्यसूर्य रत्न माणिक्य धारण करें द्य रविवार को सूर्योदय के बाद गेंहुएगुड एकेसर एलाल चन्दन एलाल वस्त्र एताम्बाए सोना तथा लाल रंग के फल दान करने चाहियें द्य सूर्य के बीज मन्त्र ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः के 7000 की संख्या में जाप करने से भी सूर्य कृत अरिष्टों की निवृति हो जाती है द्य गायत्री जाप से ए रविवार के मीठे व्रत रखने से तथा ताम्बे के पात्र में जल में लाल चन्दन एलाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य को अर्घ्य देने पर भी शुभ फल प्राप्त होता है द्य विधि पूर्वक बेल पत्र की जड़ को रविवार में लाल डोरे में धारण करने से भी सूर्य प्रसन्न हो कर शुभ फल दायक हो जाते हैं द्य
चन्द्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण माता का शाप या माँ दुर्गा की अप्रसन्नता है जिसकी शांति के लिए रामेश्वर तीर्थ का स्नान एगायत्री का जाप करें द्य श्वेत तथा गोल मोती चांदी की अंगूठी में रोहिणी एहस्त एश्रवण नक्षत्रों में जड़वा कर सोमवार या पूर्णिमा तिथि में पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप एपुष्प एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्य
सोमवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र का ११००० संख्या में जाप करें द्यसोमवार को चावल एचीनी एआटाए श्वेत वस्त्र एदूध दही एनमक एचांदी इत्यादि का दान करें द्य
मंगल संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण भ्राता का शाप एशत्रु का अभिचार या श्री गणपति या श्री हनुमान की अवज्ञा होता है जिसकी शान्ति के लिए प्रदोष व्रत तथा रामायण का पाठ करें द्यलाल रंग का मूंगा सोने या ताम्बे की अंगूठी में मृगशिरा एचित्रा या अनुराधा नक्षत्रों में जड़वा कर मंगलवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए लाल पुष्पए गुड एअक्षत आदि से पूजन कर लें
मंगलवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ क्रां क्रीं क्रों सः भौमाय नमः मन्त्र का १०००० संख्या में जाप करें द्य मंगलवार को गुड शक्कर एलाल रंग का वस्त्र और फल एताम्बे का पात्र एसिन्दूर एलाल चन्दन केसर एमसूर की दाल इत्यादि का दान करें द्य
बुध संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण मामा का शाप एतुलसी या भगवान विष्णु की अवज्ञा है जिसकी शांति के लिए विष्णु पुराण का श्रवण एविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें द्यहरे रंग का पन्ना सोने या चांदी की अंगूठी में आश्लेषाएज्येष्ठा एरेवती नक्षत्रों में जड़वा कर बुधवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की कनिष्टिका अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए लाल पुष्पए गुड एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्य बुधवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ ब्रां ब्रीं ब्रों सः बुधाय नमः मन्त्र का ९००० संख्या में जाप करें द्य बुधवार को कर्पूरएघीए खांडए एहरे रंग का वस्त्र और फल एकांसे का पात्र एसाबुत मूंग इत्यादि का दान करें द्य तुलसी को जल व दीप दान करना भी शुभ रहता है द्य
बृहस्पति संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गुरु एब्राह्मण का शाप या फलदार वृक्ष को काटना है जिसकी शान्ति के लिए पीत रंग का पुखराज सोने या चांदी की अंगूठी मेंपुनर्वसु एविशाखा एपूर्व भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर गुरुवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए पीले पुष्पए हल्दी एअक्षत आदि से पूजन कर लें द्यपुखराज की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न सुनैला या पीला जरकन भी धारण कर सकते हैं द्य केले की जड़ गुरु पुष्य योग में धारण करें द्यगुरूवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सःगुरुवे नमः मन्त्र का १९००० की संख्या में जाप करें द्य गुरूवार को घीए हल्दीए चने की दाल एबेसन पपीता एपीत रंग का वस्त्र एस्वर्णए इत्यादि का दान करें द्यफलदार पेड़ सार्वजनिक स्थल पर लगाने से या ब्राह्मण विद्यार्थी को भोजन करा कर दक्षिणा देने और गुरु की पूजा सत्कार से भी बृहस्पति प्रसन्न हो कर शुभ फल देते हैं द्य
शुक्र संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण गौ .ब्राह्मण एकिसी साध्वी स्त्री को कष्ट देना या पुष्प युक्त पौधों को काटना है जिसकी शान्ति के लिए गौ दान एब्राह्मण दंपत्ति को वस्त्र फल आदि का दान एश्वेत रंग का हीरा प्लैटिनम या चांदी की अंगूठी में पूर्व फाल्गुनी एपूर्वाषाढ़ व भरणी नक्षत्रों में जड़वा कर शुक्रवार को सूर्योदय के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए श्वेत पुष्पए अक्षत आदि से पूजन कर लें
हीरे की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न श्वेत जरकन भी धारण कर सकते हैं द्यशुक्रवार के नमक रहित व्रत रखें ए ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः मन्त्र का १६ ००० की संख्या में जाप करें द्य शुक्रवार को आटा एचावल दूध एदहीए मिश्री एश्वेत चन्दन एइत्रए श्वेत रंग का वस्त्र एचांदी इत्यादि का दान करें द्य
शनि संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण पीपल का वृक्ष काटना या प्रेत बाधा है जिसकी शान्ति के लिए पीपल के पेड़ लगवाएंएरुद्राभिषेक करें एशनि की लोहे की मूर्ती तेल में डाल कर दान करेंद्य नीलम लोहे या सोने की अंगूठी में पुष्य एअनुराधा एउत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए नीले पुष्पए काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लेंद्य
नीलम की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न संग्लीली ए लाजवर्त भी धारण कर सकते हैं द्य काले घोड़े कि नाल या नाव के नीचे के कील का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है द्यशनिवार के नमक रहित व्रत रखें द्य ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनये नमः मन्त्र का २३००० की संख्या में जाप करें द्य शनिवार को काले उडद एतिल एतेल एलोहाएकाले जूते एकाला कम्बल ए काले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें द्यश्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना भी शनि दोष शान्ति का उत्तम उपाय है द्य
दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च द्यनमः कालाग्नि रूपाय कृतान्ताय च वै नमः द्यद्य
नमो निर्मोसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च द्य नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते द्यद्य
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः द्य नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट नमोस्तुतेद्यद्य
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरिक्ष्याय वै नमःद्य नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने द्यद्य
नमस्ते सर्व भक्षाय बलि मुख नमोस्तुतेद्यसूर्य पुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च द्यद्य
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुतेद्य नमो मंद गते तुभ्यम निंस्त्रिशाय नमोस्तुते द्यद्य
तपसा दग्धदेहाय नित्यम योगरताय चद्य नमो नित्यम क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमःद्यद्य
ज्ञानचक्षुर्नमस्ते ऽस्तु कश्यपात्मजसूनवे द्यतुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात द्यद्य
देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा द्य त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतःद्यद्य
प्रसादं कुरु में देव वराहोरऽहमुपागतः द्यद्य
पद्म पुराण में वर्णित शनि के दशरथ को दिए गए वचन के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक शनि की लोह प्रतिमा बनवा कर शमी पत्रों से उपरोक्त स्तोत्र द्वारा पूजन करके तिल एकाले उडद व लोहे का दान प्रतिमा सहित करता है तथा नित्य विशेषतः शनिवार को भक्ति पूर्वक इस स्तोत्र का जाप करता है उसे दशा या गोचर में कभी शनि कृत पीड़ा नहीं होगी और शनि द्वारा सदैव उसकी रक्षा की जायेगी द्य
राहु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण सर्प शाप है जिसकी शान्ति के लिए नाग पंचमी में नाग पूजा करें एगोमेद पञ्च धातु की अंगूठी में आर्द्राएस्वाती या शतभिषा नक्षत्र में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें द्य धारण करने से पहले ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र के १०८ उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूपएदीप ए नीले पुष्पए काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लेंद्यरांगे का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है द्य ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों सः राहवे नमः मन्त्र का १८००० की संख्या में जाप करें द्य शनिवार को काले उडद एतिल एतेल एलोहाएसतनाजा एनारियल ए रांगे की मछली एनीले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें द्य मछलियों को चारा देना भी राहु शान्ति का श्रेष्ठ उपाय है द्य
केतु संतान प्राप्ति में बाधक है तो कारण ब्राह्मण को कष्ट देना है जिसकी शान्ति के लिए ब्राह्मण का सत्कार करें ए सतनाजा व नारियल का दान करें और ॐ स्रां स्रीं स्रों सः केतवे नमः का १७००० की संख्या में जाप करें द्य
संतान बाधा दूर करने के कुछ शास्त्रीय उपाय
जन्म कुंडली में अन्पत्तयता दोष स्थित हो या संतान भाव निर्बल एवम पीड़ित होने से संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो निम्नलिखित पुराणों तथा प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित शास्त्रोक्त उपायों में से किसी एक या दो उपायों को श्रद्धा पूर्वक करें द्य आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी द्य
1ण् संकल्प पूर्वक शुक्ल पक्ष से गुरूवार के १६ नमक रहित मीठे व्रत रखें द्य केले की पूजा करें तथा ब्राह्मण बटुक को भोजन करा कर यथा योग्य दक्षिणा दें द्य १६ व्रतों के बाद उद्यापन कराएं ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं गुरुवे नमः का जाप करें द्य
2ण् पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की तर्जनी में गुरु रत्न पुखराज स्वर्ण में विधिवत धारण करें द्य
3ण् यजुर्वेद के मन्त्र दधि क्राणों ; २३ध्३२द्ध से हवन कराएं द्य
4ण् अथर्व वेद के मन्त्र अयं ते योनि ; ३ध्२०ध्१द्ध से जाप व हवन कराएं द्य
5 संतान गोपाल स्तोत्र
ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः द्य
उपरोक्त मन्त्र की १००० संख्या का जाप प्रतिदिन १०० दिन तक करें द्य तत्पश्चात १०००० मन्त्रों से हवनए१००० से तर्पण ए१०० से मार्जन तथा १० ब्राह्मणों को भोजन कराएं द्य
6 संतान गणपति स्तोत्र
श्री गणपति की दूर्वा से पूजा करें तथा उपरोक्त स्तोत्र का प्रति दिन ११ या २१ की संख्या में पाठ करें द्य
7ण् संतान कामेश्वरी प्रयोग
उपरोक्त यंत्र को शुभ मुहूर्त में अष्ट गंध से भोजपत्र पर बनाएँ तथा षोडशोपचार पूजा करें तथा ॐ क्लीं ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवति संतान कामेश्वरी गर्भविरोधम निरासय निरासय सम्यक शीघ्रं संतानमुत्पादयोत्पादय स्वाहा एमन्त्र का नित्य जाप करें द्य ऋतु काल के बाद पति और पत्नी जौ के आटे में शक्कर मिला कर ७ गोलियाँ बना लें तथा उपरोक्त मन्त्र से २१ बार अभिमन्त्रित करके एक ही दिन में खा लें तो लाभ होगा द्य द्य
8ण्पुत्र प्रद प्रदोष व्रत ; निर्णयामृत द्ध
शुक्ल पक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार हो उस दिन से साल भर यह प्रदोष व्रत करेंद्यप्रातःस्नान करके पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत का संकल्प करें द्य सूर्यास्त के समय शिवलिंग की भवाय भवनाशाय मन्त्र से पूजा करें जौ का सत्तू एघी एशक्कर का भोग लगाएं द्य आठ दिशाओं में दीपक रख कर आठ .आठ बार प्रणाम करें द्य नंदी को जल व दूर्वा अर्पित करें तथा उसके सींग व पूंछ का स्पर्श करें द्य अंत में शिव पार्वती की आरती पूजन करें द्य
9ण् पुत्र व्रत ;वराह पुराण द्ध
भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को उपवास करके विष्णु का पूजन करें द्य अगले दिन ओम् क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी जन वल्लभाय स्वाहा मन्त्र से तिलों की १०८ आहुति दे कर ब्राह्मण भोजन कराएं द्य बिल्व फल खा कर षडरस भोजन करें द्य वर्ष भर प्रत्येक मास की सप्तमी को इसी प्रकार व्रत रखने से पुत्र प्राप्ति होगी
स्त्री की कुंडली में जो ग्रह निर्बल व पीड़ित होता है उसके महीने में गर्भ को भय रहता है अतः उस महीने के अधिपति ग्रह से सम्बंधित पदार्थों का निम्न लिखित सारणी के अनुसार दान करें जिस से गर्भ को भय नहीं रहेगा
गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनका दान
गर्भाधान से नवें महीने तक प्रत्येक मास के अधिपति ग्रह के पदार्थों का उनके वार में दान करने से गर्भ क्षय का भय नहीं रहता द्य गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनके दान निम्नलिखित हैं कृकृ
प्रथम मास कृ दृ शुक्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा शुक्रवार को द्ध
द्वितीय मास कृमंगल ; गुड एताम्बा एसिन्दूर एलाल वस्त्र ए लाल फल व दक्षिणा मंगलवार को द्ध
तृतीय मास कृ गुरु ; पीला वस्त्र एहल्दी एस्वर्ण ए पपीता एचने कि दाल ए बेसन व दक्षिणा गुरूवार को द्ध
चतुर्थ मास कृ सूर्य ; गुड ए गेहूं एताम्बा एसिन्दूर एलाल वस्त्र ए लाल फल व दक्षिणा रविवार को द्ध
पंचम मास कृ. चन्द्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को द्ध
षष्ट मास कृ दृ.शनि ; काले तिल एकाले उडद एतेल एलोहा एकाला वस्त्र व दक्षिणा शनिवार को द्ध
सप्तम मास कृदृ बुध ; हरा वस्त्र एमूंग एकांसे का पात्र एहरी सब्जियां व दक्षिणा बुधवार को द्ध
अष्टम मास कृ. गर्भाधान कालिक लग्नेश ग्रह से सम्बंधित दान उसके वार में द्ययदि पता न हो तो अन्न एवस्त्र व फल का दान अष्टम मास लगते ही कर दें द्य
नवं मास कृ. चन्द्र ;चावल एचीनी एगेहूं का आटा एदूध एदही एचांदी एश्वेत वस्त्र व दक्षिणा सोमवार को द्ध
संतान सुख की प्राप्ति के समय का निर्धारण
पति और पत्नी दोनों की कुंडली का अवलोकन करके ही संतानप्राप्ति के समय का निर्धारण करना चाहिए द्यपंचम भाव में स्थित बलवान और शुभ फलदायक ग्रह एपंचमेश और उसका नवांशेश एपंचम भाव तथा पंचमेश को देखने वाले शुभ फलदायक ग्रहएपंचमेश से युक्त ग्रह एसप्तमान्शेष एबृहस्पति एलग्नेश तथा सप्तमेश अपनी दशा अंतर्दशा प्रत्यंतर दशा में संतान सुख की प्राप्ति करा सकते हैं द्य
दशा के अतिरिक्त गोचर विचार भी करना चाहिए द्य गुरु गोचर वश लग्न एपंचम भाव एपंचमेश से युति या दृष्टि सम्बन्ध करे तो संतान का सुख मिलता है द्य लग्नेश तथा पंचमेश के राशि अंशों का योग करें द्य प्राप्त राशि अंक से सप्तम या त्रिकोण स्थान पर गुरु का गोचर संतान प्राप्ति कराता है द्य गोचर में लग्नेश और पंचमेश का युति ए दृष्टि या राशि सम्बन्ध हो तो संतानोत्पत्ति होती है द्य पंचमेश लग्न में जाए या लग्नेश पंचम भाव में जाए तो संतान सम्बन्धी सुख प्राप्त होता है द्य बृहस्पति से पंचम भाव का स्वामी जिस राशि नवांश में है उस से त्रिकोण ;पंचम एनवम स्थान द्ध में गुरु का गोचर संतान प्रद होता है द्यलग्नेश या पंचमेश अपनी राशि या उच्च राशि में भ्रमण शील हों तो संतान प्राप्ति हो सकती है द्य लग्नेश एसप्तमेश तथा पंचमेश तीनों का का गोचरवश युति दृष्टि या राशि सम्बन्ध बन रहा हो तो संतान लाभ होता है द्य
स्त्री की जन्म राशि से चन्द्र 1 ए2 ए4 ए5 ए7 ए9 ए1 2 वें स्थान पर हो तथा मंगल से दृष्ट हो और पुरुष जन्म राशि से चन्द्र 3 ए6 10 ए11 वें स्थान पर गुरु से दृष्ट हो तो स्त्री .पुरुष का संयोग गर्भ धारण कराने वाला होता है द्य आधान काल में गुरु लग्न एपंचम या नवम में हो और पूर्ण चन्द्र व् शुक्र अपनी राशि के हो तो अवश्य संतान लाभ होता है द्य
विशेष
प्रमुख ज्योतिष एवम आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार रजस्वला स्त्री चौथे दिन शुद्ध होती है द्य रजस्वला होने की तिथि से सोलह रात्रि के मध्य प्रथम तीन दिन का त्याग करके ऋतुकाल जानना चाहिए जिसमें पुरुष स्त्री के संयोग से गर्भ ठहरने की प्रबल संभावना रहती है द्यरजस्वला होने की तिथि से 4ए6ए8ए10ए12ए14ए16 वीं रात्रि अर्थात युग्म रात्रि को सहवास करने पर पुत्र तथा 5ए7ए9 वीं आदि विषम रात्रियों में सहवास करने पर कन्या संतिति के गर्भ में आने की संभावना रहती हैद्य याज्ञवल्क्य के अनुसार स्त्रियों का ऋतुकाल 16 रात्रियों का होता है जिसके मध्य युग्म रात्रियों में निषेक करने से पुत्र प्राप्ति होती है द्य
वशिष्ठ के अनुसार उपरोक्त युग्म रात्रियों में पुरुष नक्षत्रों पुष्य एहस्तएपुनर्वसु एअभिजितएअनुराधा एपूर्वा फाल्गुनी ए पूर्वाषाढ़एपूर्वाभाद्रपद और अश्वनी में गर्भाधान पुत्र कारक होता है द्य कन्या के लिए विषम रात्रियों में स्त्री कारक नक्षत्रों में गर्भाधान करना चाहिए द्य ज्योतिस्तत्व के अनुसार नंदा और भद्रा तिथियाँ पुत्र प्राप्ति के लिए और पूर्णा व जया तिथियाँ कन्या प्राप्ति के लिए प्रशस्त होती हैं अतः इस तथ्य को भी ध्यान में रखने पर मनोनुकूल संतान प्राप्ति हो सकती है
मर्त्यः पितृणा मृणपाशबंधनाद्विमुच्यते पुत्र मुखावलोकनात द्य
श्रद्धादिभिहर्येव मतोऽन्यभावतः प्राधान्यमस्येंत्य यमी रितोऽजंसा

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Wednesday 17 June 2015

कोई अपना जब दूर होने लगे तो दिखायें अपनी कुंडली



अगर आपका कोई भी रिश्ता चाहे वैवाहिक हो या दोस्ती का, टूटने की कगार पर आ गया है और आप इस उलझन में हैं कि अपने साथी या दोस्त या हमदर्द से अलग हों या नहीं, और यह भी जानते हैं कि ऐसा करना आपके लिए आसान नहीं होगा और ना ही आपके साथी के लिए। क्योंकि आपको जिंदगी को फिर से नए सिरे से शुरू करना होगा। जिसका मतलब होगा, हर चीज में बदलाव। इसलिए अपने रिश्ते को तोडऩे से बेहतर है कि उसे कम से कम एक मौका दें। व्यवहारिक रूप से अपने आपसी मतभेदों को प्यार और समझदारी से सुलझाने की कोशिश करें। रिश्ते बड़े नाजुक होते हैं इन्हें प्यार, सामंजस्य और समझदारी से निभाने की जरुरत होती है। इसके निभाने हेतु जहांआपसी समझदारी की आवश्यकता होती है वहीं कुंडली के ग्रहों की आपस में मेलापक ज्ञात कर जिन ग्रहों के कारण आपसी तनाव की स्थिति निर्मित हो रही हो, उन ग्रहों की शांति कराना चाहिए। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में अगर सप्तम भाव या भावेश अपने स्थान से षड़ाषटक या द्वि-द्वादश बनाये तो ऐसे में आपस में मतभेद उभरने के कारण बनते हैं। ऐसी ग्रह स्थिति में विशेषकर इस प्रकार की ग्रह-दशाओं के समय आपसी मतभेद उभरकर आते हैं। अत: अगर रिश्तों में कटुआ आ जाए तो ग्रह दशाओं का आकलन कराया जाकर शांति कराने से आपसी मतभेद मिटाकर, रिश्तों को बेहतर किया जा सकता है।

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जून माह मे मेष राशि का हाल


यह माह आपके लिए मिश्रित फल देने वाला रह सकता है. आपके कुटुम्ब तथा परिवार में मतभेद बने रह सकते हैं. कार्यक्षेत्र पर आपको अनुकूल फलों की प्राप्ति हो सकती है. आपको उन्नति के उचित अवसर मिल सकते हैं.
कैरियर: कैरियर के नजरिए से यह माह अनुकूल रहने की संभावना बनती है. माह मध्य तक आपकी तरक्की और उन्नति के योग अच्छे बनते हैं. इसलिए आप जितने प्रयास और भाग-दौड़ कर सकते हैं वह इस दौरान कर लें. आप यदि बिजनेस करते हैं तब आपको अपने काम के लिए अत्यधिक भागना पड़ सकता है.
विद्या: विद्यार्थियों के लिए यह माह मिश्रित रहेगा क्योंकि आपके रूटिन हाउस में चंद्रमा होने से आपके अंदर पढने की इच्छाशक्ति नहीं होने से कम पढ़ाई करेगें.
स्वास्थ: आपको आँख से संबंधित रोग परेशान कर सकते हैं इसलिए आप नेत्रों के प्रति सजग रहें और समय पर चिकित्सक की सलाह लेते रहें. आपको दाँत से जुड़े दर्द भी सता सकते हैं.
परिवार: पारीवारिक मुद्दों के लिए यह माह कुछ तनाव भरा रह सकता है क्योकि आपके कुटुम्ब भाव में सूर्य का गोचर हो रहा है और दूसरे भाव में मंगल तथा बुध साथ में स्थित है तब आपकी अपनी जुबान बहुत कड़वी हो सकती है. आप छोटी यात्राओं पर जाने का कार्यक्रम बना सकते हैं.
उपाय: आप इस माह प्रतिदिन उगते हुए सूर्य को अध्र्य दें. जल देते समय ú घृणि सूर्याय नम: का मंत्र बोलें.



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लाल किताब एवं संतान योग



कुण्डली का पांचवा घर संतान भाव के रूप में विशेष रूप से जाना जाता है. ज्योतिषशास्त्री इसी भाव से संतान कैसी होगी, एवं माता पिता से उनका किस प्रकार का सम्बन्ध होगा इसका आंकलन करते हैं. इस भाव में स्थित ग्रहों को देखकर व्यक्ति स्वयं भी काफी कुछ जान सकता है जैसे:
पांचवें घर में सूर्य:
लाल किताब के नियमानुसार पांचवें घर में सूर्य का नेक प्रभाव होने से संतान जब गर्भ में आती है तभी से व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होना शुरू हो जाता है. इनकी संतान जन्म से ही भाग्यवान होती है. यह अपने बच्चों पर जितना खर्च करते हैं उन्हें उतना ही शुभ परिणाम प्राप्त होता है. इस भाव में सूर्य अगर मंदा या कमजोर होता है तो माता पिता को बच्चों से सुख नहीं मिल पाता है. वैचारिक मतभेद के कारण बच्चे माता पिता के साथ नहीं रह पाते हैं.
पांचवें घर में चन्द्रमा:
चन्द्रमा पंचवें घर में संतान का पूर्ण सुख देता है. संतान की शिक्षा अच्छी होती है. व्यक्ति अपने बच्चों के भविष्य के प्रति जागरूक होता है. व्यक्ति जितना उदार और जनसेवी होता है बच्चों का भविष्य उतना ही उत्तम होता है. इस भाव का चन्द्रमा अगर मंदा हो तो संतान के विषय मे मंदा फल देता है. लाल किताब का उपाय है कि बरसात का जल बोतल में भरकर घर में रखने से चन्द्र संतान के विषय में अशुभ फल नहीं देता है.
पांचवें घर में मंगल:
लाल किताब के अनुसार मंगल अगर खाना संख्या पांच में है तो संतान मंगल के समान पराक्रमी और साहसी होगी. संतान के जन्म के साथ व्यक्ति का पराक्रम और प्रभाव बढ़ता है. शत्रु का भय इन्हें नहीं सताता है. इस खाने में मंगल अगर मंदा है तो व्यक्ति को अपनी चारपायी या पलंग के सभी पायों में तांबे की कील ठोकनी चाहिए. इस उपाय से संतान सम्बन्धी मंगल का दोष दूर होता है.
पांचवें घर में बुध:
बुध का पांचवें घर में होना इस बात का संकेत है कि संतान बुद्धिमान और गुणी होगी. संतान की शिक्षा अच्छी होगी. अगर व्यक्ति चांदी धारण करता है तो यह संतान के लिए लाभप्रद होता है. संतान के हित में पंचम भाव में बुध वाले व्यक्ति को अकारण विवादों में नहीं उलझना चाहिए अन्यथा संतान से मतभेद होता है.
पांचवें घर में गुरू:
पंचम भाव में गुरू शुभ होने से संतान के सम्बन्ध में शुभ परिणाम प्राप्त होता है. संतान के जन्म के पश्चात व्यक्ति का भाग्य बली होता है और दिनानुदिन कामयाबी मिलती है. संतान बुद्धिमान और नेक होती है. अगर गुरू मंदा हो तो संतान के विषय में शुभ फल प्राप्त नहीं होता है. मंदे गुरू वाले व्यक्ति को गुरू का उपाय करना चाहिए.
पांचवें घर में शुक्र:
पांचवें घर में शुक्र का प्रभाव शुभ होने से संतान के विषय में शुभ फल प्राप्त होता है. इनके घर संतान का जन्म होते ही धन का आगमन तेजी से होता है. व्यक्ति अगर सद्चरित्र होता है तो उसकी संतान पसिद्ध होती है. अगर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व और चरित्र का ध्यान नहीं रखता है तो संतान के जन्म के पश्चात कई प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना होता है. शुक्र अगर इस भाव में मंदा हो तो दूध से स्नान करना चाहिए.
पांचवें घर में शनि:
शनि पांचवें घर में होने से संतान सुख प्राप्त होता है. शनि के प्रभाव से संतान जीवन में अपनी मेहनत और लगन से उन्नति करती है. इनकी संतान स्वयं काफी धन सम्पत्ति अर्जित करती है. अगर शनि इस खाने में मंदा होता है तो कन्या संतान की ओर से व्यक्ति को परेशानी होती है. इस भाव में शनि की शुभता के लिए व्यक्ति को मंदिर में बादाम चढ़ाने चाहिए और उसमें से 5-7 बादाम वापस घर में लाकर रखने चाहिए.
पांचवें घर में राहु:
खाना नम्बर पांच में राहु होने से संतान सुख विलम्ब से प्राप्त होता है. अगर रहु शुभ स्थिति में हो तो पुत्र सुख की संभावना प्रबल रहती है. मंदा राहु पुत्र संतान को कष्ट देता है. लाल किताब के अनुसार मंदा राहु होने पर व्यक्ति को संतान के जन्म के समय उत्सव नहीं मनाना चाहिए. अगर संतान सुख में बाधा आ रही हो तो व्यक्ति को अपनी पत्नी से दुबारा शादी करनी चाहिए.
पांचवें घर में केतु:
केतु भी राहु के समान अशुभ ग्रह है लेकिन पंचम भाव में इसकी उपस्थिति शुभ हो तो संतान के जन्म के साथ ही व्यक्ति को आकस्मिक लाभ मिलना शुरू हो जाता है. यदि केतु इस खाने में मंदा हो तो व्यक्ति को मसूर की दाल का दान करना चाहिए. इस उपाय से संतान के विषय में केतु का मंदा प्रभाव कम होता है.


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हाथ की लकीरें बताएंगी....कहां मिलेगी सफलता?



हाथों की बनावट और हस्तरेखाओं से आप यह जान सकते हैं कि ईश्वर आपको किन क्षेत्रों में सफलता प्रदान करेगा। गुरू पर्वत कहते हैं। अगर आपकी हथेली में यह स्थान उभरा हुआ है तो आप शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा कर सकते हैं। प्रबंधन, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, राजनीति, सरकारी क्षेत्र में बड़े अधिकारी, शिक्षक एवं ज्योतिष के क्षेत्र में करियर बनाएं तो आपको जल्दी और बड़ी कामयाबी मिल सकती है।शनि का स्थान है इसे समुद्रशास्त्र में शनि पर्वत कहा जाता है। जिनकी हथेली में शनि पर्वत अधिक उभरा होता है उनका शनि प्रभावशाली होता है। अगर आपकी हथेली में भी ऐसा है तो आप जीवन में सफल तो होंगे लेकिन अधिक परिश्रम करना होगा। कैरियर के मामले में आपके लिए इंजीनियरिंग, शोधकर्ता, वैज्ञानिक, पुरातत्ववेत्ता, फूलों का कारोबार अच्छा रहता है। ऐसे व्यक्ति ठेकेदारी और प्राचीनकलाओं से जुड़ी चीजों में भी कामयाब होते हैं।सूर्य का स्थान है इसे सूर्य पर्वत कहते हैं। जिनकी हथेली में सूर्य पर्वत उभरा हुआ होता है वह इलेक्ट्रॉनिक्स, विज्ञापन, पेंटिंग, डेकोरेशन, सरकारी नौकरी एवं सरकारी क्षेत्र से जुड़े ठेके का काम करें तो बड़ी कामयाबी मिलती है।बुध पर्वत कहलाता है। जिनकी दोनों हथेली में यह स्थान अधिक उभरा होता है उनके व्यवसाय में सफल होने की संभावना अधिक रहती है। इस पर्वत के अच्छी स्थिति में होने से बैंकिेग, वाणिज्य, लेखन, पत्रकारिता, वकालत, विज्ञान एवं दवाईयों के कारोबार में कैरियर बना सकते हैं। शुक्र पर्वत के नाम से जाना जाता है। शुक्र पर्वत उभरा हुआ हो और उन पर कटी हुई रेखाएं नहीं बन रही हों तो आप विज्ञापन, संगीत, कला, सजावट, रेडिमेड कपड़ों के कारोबार या ब्यूटी इंडस्ट्री में कैरियर बना सकते हैं।चन्द्र पर्वत है। जिनकी हथेली में यह स्थान उभरा हुआ होता है और यहां पर जाल एवं कट का निशान नहीं होता है उनका चन्द्रमा प्रबल होता है। ऐसे व्यक्ति संगीत, कला, लेखन, पत्रकारिता, रंग मंच, साहित्य एवं टूर एण्ड ट्रैवल्स के क्षेत्र में कामयाब होते हैं। इन्हें सरकारी क्षेत्र से भी लाभ मिलता है, चाहें तो सरकारी नौकरी के लिए भी प्रयास कर सकते हैं।मंगल पर्वत कहलाता है। अंगूठे के नीचे वाला भाग निम्न मंगल और दूसरा स्थान उच्च मंगल कहलाता है। इन स्थानों के उभार और यहां मौजूद रेखाओं से पता चलता है कि आप सेना, पुलिस, सुरक्षा एजेंसी, खेल, जमीन से जुड़ा कारोबार, एवं खनन के क्षेत्र में जल्दी सफल हो सकते हैं।अगर हथेली में कोई रेखा हथेली के अंतिम सिरे से चलकर छोटी उंगली तक पहुंचती है तो आप व्यापार जगत में बड़ी कामयाबी हासिल कर सकते हैं। आप बैंकिंग और वाणिज्य के क्षेत्र में भी अच्छा कर सकते हैं।मणिबंध से निकलकर सीधी रेखा शनि पर्वत तक पहुंचती है तो इस बात की प्रबल संभावना बनती है कि व्यक्ति नौकरी में सफल होगा। ऐसा व्यक्ति नौकरी से खूब धन कमाते हैं और प्रतिष्ठित होते हैं।हस्त रेखा शास्त्र द्वारा भी रोजगार चयन में सहायता प्राप्त हो जाती है। किन्तु सर्वप्रथम यह जान लेना आवश्यक है कि आप किस क्षेत्र में सफल हो सकते हैं।
यदि अंगुलियों के पहले पोरे सबल एवं लम्बे हैं तो आप में सीखने की ललक अच्छी है। यानी आप उच्चा शिक्षा ग्रहण करने में सफल हो जाएंगे। यदि अगुंलियों के दूसरे पोरे लम्बे और सबल हैं तो आप प्रैक्ट्रिकल फील्ड में चल जाएंगे। अर्थात आप के अंदर देखकर सीखने की क्षमता है। इसके विपरीत यदि तीसरा पोरा ज्यादा सबल है तो आपका उत्पादन, व्यापार या व्यवसाय के क्षेत्र में जाना ज्यादा उचित होगा।
सर्वप्रथम यह तय कर लेना जरूरी है कि भाग्य किस ग्रह द्वारा संचालित है यानी हाथ में कौनसा पर्वत क्षेत्र ज्यादा प्रभावी है। उसके स्वामी द्वारा ही उसका जीवन ज्यादा प्रभावित रहता है। उसे संक्षिप्त रूप में हम इस प्रकार जान सकते हैं:
1. बृहस्पति: राजनीति, सेना या सामाजिक संगठनों में उच्च पद, अध्ययन-अध्यापन, सलाहकार, कर/आर्थिक विभाग, कानून एवं धर्म क्षेत्र।
2. शनि: तंत्र, धर्म, जासूसी, रसायन, भौतिकी, गणित, मशीनरी, कृषि, पशुपालन, तेल, अनगढ़ कलाकृतियां इत्यादि।
3. सूर्य: कला, साहित्य, प्रशासन संबंधी।
4. बुध: इनडोर गेम्स, बोलने से जुड़े व्यवसाय, मार्केटिंग, विज्ञान, व्यापार, वकालत, चिकित्सा क्षेत्र, बैंक आदि।
5. मंगल: साहसी कार्य, अन्वेषण खोज, खिलाड़ी, पर्वतरोहण, खतरों से भरे कार्य, सैनिक, पुलिस, जंगल या वन क्षेत्र इत्यादि।
6. चन्द्र: कला, काव्य, जलीय व्यवसाय, तैराक, तरल वस्तुएं।
7. शुक्र: कला, संगीत, चित्रकारी या गंधर्व कलाएं, नाटक इत्यादि, महिला विभाग, कम्प्यूटर, हस्तशिल्प, पयर्टन आदि।
फिल्म एवं टेलीविजन में कैरियर:
हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार अगर कोई व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में कैरियर बनाने की सोच रहा है तो जरूरी है कि सूर्य पर्वत और शुक्र पर्वत उभरा हुआ हो। सूर्य पर्वत अनामिका के जड़ के पास के भाग को कहते हैं और शुक्र पर्वतक अंगूठे के जड़ वाले भाग को कहा जाता है।
इसके साथ ही यह भी ध्यान रखें कि हाथ ही सभी उंगलियां कोमल और हथेली के पीछे की ओर झुकती हों। अनामिका उंगली की लंबाई मध्यमा की जड़ तक हो। और भाग्य रेखा को कोई अन्य रेखा नहीं काटती हो। जिनकी हथेली ऐसी होती है वह अभिनय के क्षेत्र में सफल होते हैं। ऐसे व्यक्ति लोकप्रिय एवं धन-संपन्न होते है।
उच्चाधिकारी बनाती हैं ऐसी रेखाएं:
सूर्य को सरकार एवं सरकारी क्षेत्र में सफलता का कारक माना जाता है। जिस व्यक्ति की हथेली में सूर्य रेखा स्पष्ट और गहरी होती है तथा इस रेखा पर शुभा चिन्ह जैसे त्रिभुज, चतुर्भुज या सितारों का चिन्ह होता है वह सरकारी क्षेत्र में उच्च पद प्राप्त करते हैं। छोटी उंगली का अनामिका उंगली के तीसरे पोर की जड़ तक पहुंचना। मंगल पर्वत अथवा जीवनरेखा से किसी रेखा का निकलकर सूर्य पर्वत तक पहुंचना भी शुभ माना जाता है। ऐसे व्यक्ति सरकारी क्षेत्र में अधिकारी होते हैं।
इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सफलता:
जो व्यक्ति इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कैरियर बनाने की सोच रहे हैं उन्हें यह देखना चाहिए कि शनि पर्वत यानी मध्यमा उंगली की जड़ के पास हथेली उभरी हुई हो। भाग्य रेखा शनि पर्वत पर आकर रुक गई हो। गुरू पर्वत यानी तर्जनी के पास हथेली का उभरा हुआ होना भी इस क्षेत्र में कैरियर बनाने में सहायक होता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाबी:
जिनकी हथेली में बुध, मंगल एवं सूर्य पर्वत उभरा हुआ होता है वह चिकित्सा के क्षेत्र में सफल एवं प्रसिद्घ होते हैं। कनिष्ठा उंगली पर कई सीधी रेखाएं हों और मंगल उभरा हुआ होना बताता है कि व्यक्ति शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाब होगा।


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