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Friday 22 May 2015

टेंडर एज और लक्ष्य से भटकाव - ज्योतिष कारण और निवारण -


टेंडर एज और लक्ष्य से भटकाव - ज्योतिष कारण और निवारण -
आज के आधुनिक युग में जहाॅ सभी प्रकार की सुख-सुविधाएॅ जुटाने का प्रयास हर जातक करता है, वहीं पर उन सुविधाओं के उपयोग से आज की युवा पीढ़ी भटकाव की दिषा में अग्रसर होती जा रही है। पैंरेंटस् जिन वस्तुओं का सुविधाएॅ अपने बच्चों को उपयेाग हेतु मुहैया कराते हैं, वहीं वस्तुएॅ बच्चों को गलत दिषा में ले जाती है। कई बार देखने में आता है कि जो बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्षन करते रहे हैं वे भी ठीक कैरियर के समय अपने दिषा से भटक कर अपने अध्ययन तथा लक्ष्य से भटकर अपना पूरा कैरियर खराब कर देते हैं। कई बार माता-पिता इन सभी बातों से पूर्णतः अंज्ञान रहते हैं और कई बार जानते हुए भी कोई हल निकालने में असमर्थ होते हैं। सभी इन समस्याओं का दोषारोपण आधुनिक सुविधाओं को देते हुए मूक दर्षक बन रहना चाहते हैं किंतु सच्चाई यह है कि यदि आप थोड़े से ज्योतिष और समय रहते उनके प्रतिकूल असर पर काबू पाने का प्रयास कर उपयुक्त समाधान तलाष लें तो भटकाव से पूर्व ही अपने संतान को सही मार्गदिषा देकर उन्हें उचित निर्णय तथा कैरियर हेतु लक्ष्य मंें बनाये रखने में सक्षम हो सकते हैं। यदि बच्चों के व्यवहार में अचानक बदलाव दिखाई दें, जैसे बच्चा अचानक गुस्सैल हो जाए, उसमें अहं की भावना जागृत होने लगे। दोस्तों में ज्यादा समय बिताने या इलेक्टानिक्स गजट पर पूरा ध्यान केंद्रित करें, बड़ों की बाते बुरी लगे तो तत्काल सावधानी आवष्यक है। किसी विद्वान ज्योतिषीय से अपने संतान की कुंडली का ग्रह दषा जानें तथा पता लगायें कि आपके संतान की शुक्र, राहु, सप्तमेष, पंचमेष की दषा तो नहीं चल रही है और इनमें से कोई ग्रह विपरीत स्थिति में या नीच का होकर तो नहीं बैठा है। अगर ऐसी कोई स्थिति दिखाई दे तो उपयुक्त उपाय तथा थोड़े से अनुषासन से अपने संतान के भटकाव पर काबू पाते हुए उसके लक्ष्य के प्रति एकाग्रता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।


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उच्च कैरिअर में सफलता पाएँ ज्योतिषीय गणना से -


उच्च कैरिअर में सफलता पाएँ ज्योतिषीय गणना से -
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आज कल हर पैरेंटस की दिली तमन्ना होती है कि उनकी संतान उच्च तकनीकी षिक्षा प्राप्त करें, जिससे उसके कैरियर की शुरूआत ही एक अच्छे पैकेज से हो, किंतु सभी इसमें सफलता प्राप्त तो नहीं कर सकते किंतु अपने संतान की कुंडली के ज्योतिषीय विवेचन तथा उचित समाधान कर एक अच्छे कैरियर हेतु प्रयास किया जा सकता है। आज के युग में आईआईटी में सफल होना उच्च कैरियर की गारंटी मानी जाती है। अतः जाने की क्या आपकी संतान में ऐसे योग हैं। आधुनिक टेक्नाॅलाजी का कारक ग्रह शुक्र, अग्नि व इलेक्टानिक्स कारक सूर्य, आकाषीय वायु कारक राहु, तकनीकी मषीन कारक मंगल, तकनीकी ग्रह कारक शनि आज की आधुनिक तकनीकी पाठ्यक्रमों हेतु अति महत्वूपर्ण ग्रह हैं। षिक्षा कारक ग्रह गुरू, जोकि तर्कषक्ति तथा गणित जैसे विषयों का कारक ग्रह होता है यदि गुरू का संबंध इन में से किसी भाव या भावेष के साथ बनें तो जातक कम्प्यूटर, इलेक्टानिक्स, इलेक्टिकल, साफ्टवेयर, दूरसंचार में इंजीनियरिंग का योग बनता है। मंगल औजार तथा शनि इनका प्रयोग और शुक्र औजारों में प्रयोग का रिफाइनमेंट देता है अतः यदि इन ग्रहों का संबंध दषमभाव या दषमेष से बने तो जातक इंजीनियर बनता है। यदि इनमें मंगल बली होतो जातक धातु से संबंधित क्षेत्र में इंजीनियर होता है, यदि सूर्य चंद्र की युति हो तो माइनिंग से संबंधित क्षेत्र में जाता है। यदि शनि और मंगल की सीधी दृष्टि हो तो सिविल इंजीनियर तथा सूर्य, केतु के साथ बुध का उच्च संबंध दषम भाव से बने तो आईआईटी से इंजीनियर होता है। किंतु उच्च ग्रह स्थिति होने के बावजूद यदि गोचर में ग्रह दषाएॅ अनुकूल ना हो तो जातक को सफलता प्राप्त होने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अतः अपने संतान के ग्रह स्थिति के अलावा ग्रह दषाओं का आकलन समय से पूर्व कराया जाकर उनके उचित उपाय करने से आईआईटी जैसे उच्च संस्थान से इंजीनियरिंग कर एक सफल कैरियर की प्राप्ति संभव है।



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पुत्रदा एकादशी का महत्व



पौष मास की शुक्लपक्ष की एकादषी को पुत्रदा एकादषी के रूप में मनाया जाता है। पद्यपुराण के अनुसार श्री कृष्ण ने इस व्रत का वर्णन युधिष्ठिर से किया था। चराचर प्राणियों सहित त्रिलोक में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है, जो संतान कष्ट से संबंधित दुखों को हर सके। इस दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है। सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पष्चात् श्रीहरि का ध्यान करना चाहिए। सबसे पहले धूप-दीप आदि से भगवान नारायण की अर्चना की जाती है। इसके बाद फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामथ्र्य अनुसार भगवान नारायण को अर्पित करते हैं। पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनकर संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करने के पष्चात् फलाहार किया जाता है। इस दिन दीप दान करने का महत्व है। जैसा के इसके नाम से ज्ञात होता है कि जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएॅ होती हो अथवा जो व्यक्ति पुत्र प्राप्ति की कामना करते हों, उनके लिए पुत्रदा एकादषी का व्रत बहुत ही शुभ फलदायक होता है। इसलिए संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को विषेष रूप से करना चाहिए। साथ ही यदि कोई संतान संबंधी कष्ट जैसे संतान के स्वास्थ्य, षिक्षा या अन्य संतान से संबंधित अन्य सुखों को प्राप्त करने का अभिलाषी हो, उसे इस व्रत के करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।


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आपकी इच्छा विदेश यात्रा का है

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प्राचीन काल में विदेष यात्रा अषुभ माना जाता था, संभवतः जिसके कारण प्राचीन पुस्तकों में विदेष यात्रा के लिए किसी विषेष कारक का उल्लेख नहीं किया गया है। परंतु प्राचीन काल में जहाज यात्रा का जिक्र अवष्य है, जोकि प्रायः लंबी दूरी की यात्रा या विदेष की यात्रा मानी जाती थी। आधुनिक काल में विदेष यात्रा तथा वहाॅ निवास करने की महत्ता इतनी ज्यादा है कि प्रायः हर व्यक्ति जानना चाहता है कि वह जीवन में विदेष यात्रा कर पायेगा या नहीं अथवा उसकी कुंडली में विदेष यात्रा के योग हैं कि नहीं। किसी व्यक्ति की विदेष यात्रा से संबंधित जानकारी हेतु उस व्यक्ति का लग्नाधिपति, द्वादषेष, नवमभाव तथा नवमाधिपति तथा सप्तमेष या सप्तमाधिपति पर विचार किया जाता है। छोटी यात्रा को तीसरे स्थान तथा दूरस्थ स्थान पर निवासरत होने के लिए चतुर्थेष को भी महत्व दिया जाना चाहिए। यदि किसी जातक के लग्नाधिपति की अपे्रक्षा द्वादषेष उत्तम स्थिति में हो, या उच्च तथा मित्र राषि में हो तो जातक जन्मभूमि में सफलता प्राप्त करता है। चतुर्थेष, पंचमेष और नवमेष परस्पर संबंधित हो तो जातक उच्च षिक्षण हेतु विदेष जाता है। यदि इनका संबंध बुध ग्रह से हो तो जातक षिक्षा, अनुसंधान, अध्ययन या लेखन कार्य हेतु यदि इनका संबंध बृहस्पति ग्रह से हो तो प्रोफेसर या व्याख्यान हेतु जाता है। नवमाधिपति और दसमाधिपति संबंधित हो तो जातक जीवनवृत्ति अथवा व्यवसाय या नौकरी हेतु विदेष जाता है। इनके साथ यदि षष्ठेष की भी युति हो तो जातक सरकारी कार्य से विदेष जाता है तथा उसे नियोक्ता द्वारा भेजा जाता है। यदि द्वादषेष तथा दषमेष एवं एकादषेष का संबंध हो तो जातक राजनैतिक उद्देष्य से विदेष यात्रा करता है। यदि सप्तमाधिपति तथा सूर्य का संबंध भी बन रहा हो तो राजनयिक या षिष्टमंडल के रूप में विदेष प्रवास करता है। यदि द्वादषेष, लग्नाधिपति का संबंध किसी प्रकार से शुक्र या सप्तमेष से स्थापित हो रहा हो तो विवाह के उपरांत विदेष प्रवास के योग बनते हैं। यदि एकादषेष तथा द्वादषेष का संबंध किसी प्रकार से शुक्र और शनि का संबंध बन रहा हो तो कला या हुनर के प्रदर्षन हेतु विदेष प्रवास कर यष प्राप्त करता है। यदि कमजोर लग्नाधिपति तथा षष्ठेष से संबंध स्थापित हो रहा हो तो चिकित्सा कारणों से विदेष प्रवास होता है। यदि नवमेष या द्वादषेष का पापग्रहों से प्रभाव हो तो धृणित कार्यो अथवा अपराध हेतु विदेष जाना बनता है। यदि द्वादषेष तथा नवमेष का संबंध शनि एवं बृहस्पति से संबंध स्थापित हो रहा हो तो धार्मिक कर्म या आध्यात्मिक उद्देष्य हेतु विदेष प्रवास करता है। इस प्रकार किसी जातक की जन्म कुंडली तथा निरयणभाव का सूक्ष्म अध्ययन कर विदेष प्रवास के योग तथा कारणों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है साथ ही ग्रहों के गोचर के अनुसार ग्रह दषाओं में विदेष यात्रा का समय ज्ञात किया जा सकता है।




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कहीं आप अपने सयम जल्दी खो देते है: ज्योतिष उपाय


आधुनिक भागदौड़ के इस जीवन में प्रायः सभी व्यक्तियों को चिंता सताती रहती है। हर आयुवर्ग तथा हर प्रकार के क्षेत्र से संबंधित अपनी-अपनी चिंता होती हैं। चिंता को भले ही हम आज रोग ना माने किंतु इसके कारण कई प्रकार के लक्षण ऐसे दिखाई देते हैं जोकि सामान्य रोग को प्रदर्षित करते हैं। अगर यह चिंता कारण विषेष या समय विषेष पर हो तो चिंता की बात नहीं होती किंतु कई बार व्यक्ति चिंता करने का आदि होता है, जिसके कारण उसे हर छोटी बात पर चिंता हो जाती है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसे रासायनिक स्त्राव का असंतुलन माना जाता है किंतु वैदिक ज्योतिष के अनुसार इस चिंता का दाता मन को संचालित करने वाला ग्रह चंद्रमा तथा व्यक्ति की जन्मकुंडली में तृतीय स्थान को माना जाता है। चंद्रमा के प्रत्यक्ष प्रभाव को आप सभी महसूस करते हैं जब ज्वार-भाठा या पूर्णिमा अमावस्या आती है। चंद्रमा का पूर्ण संबंध हमारे मानसिक क्रियाकलापों से है अगर चंद्रमा या तृतीयेष नीच राषि में स्थिति हो या षष्ठेष से युति या षष्ठस्थ हो या राहु केतु से युत हो तो व्यक्ति में तनाव जन्मजात गुण होता है। चूॅकि कालपुरूष का चतुर्थभाव चंद्रमा का भाव होता है अतः बहुत हद तक चतुर्थभाव का प्रतिकूल होना या चतुर्थेष का प्रतिकूल होना भी तनाव का कारण होता है। चंद्रमा या तृतीयेष का अष्टमस्थ या द्वादषस्थ होना भी लगातार तनाव का कारण देता रहता है। विषेषकर इन ग्रह या इनसे संबंधित ग्रहों की गोचर में व्यक्ति पर मानसिक असंतुलन दिखाई देती है। चिंता से मुक्ति हेतु पीडि़त व्यक्ति को अपनी वर्तमान परिथितियों पर नजर रखते हुए उनमें बदलाव का प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा अपने जीवन में लगातार चिंता के कारणों तथा उससे जुड़े लोग तथा स्थिति को बेहतर करने का प्रयास करने के अलावा चंद्रमा को मजबूत करने तथा राहु की शांति के अलावा तृतीयेष का उपयुक्त उपाय करने से व्यक्ति को चिंता से मुक्ति मिल सकती है।


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ज्योतिष क्यों जरूरी -



ज्योतिष क्यों जरूरी -
आज मानव जिंदगी बहुत ज्यादा उतार-चढ़ावों से भरी हुई है। कभी कोई घटना हमें आष्चर्य में डाल देती है तो कभी स्तब्ध भी करती है। कभी-कभी हम इतनी ज्यादा निराषा में पड़ जाते हैं कि चेतना शक्ति शून्य होती दिखाई देती है। कई बार हमें लगता है कि किस्मत धोखा दे रही है। पूरे प्रयास के उपरांत भी सफलता हमसे दूर ही रहना चाहती हैं तो कई बार रिष्तों के साथ हमें तनाव सताता है। हमें प्राप्त उपलब्धियों से हम स्वयं को भाग्यषाली नहीं मानते किंतु कुछ विपरीत होते ही अपने को दुर्भाग्यषाली की श्रेणी में जरूर खड़ा पाते हैं। हमें हर परिस्थिति में एक मार्गदर्षक की तलाष करते रहते हैं जो हमें सुख-दुख के साथ भविष्य के प्रति आस्था और विष्वास बनाये रखने में मदद करें तो हमारी उत्सुकता आने वाले कल में भी रहती है कि अगले चरण में हमारे साथ क्या होने वाला है और हमारे किस प्रकार के प्रयास से हमें लाभ मिल सकता है या कोई हानि हो तो क्या सावधानी हमें उस हानि से बचा सकती है। ऐसा क्या है कि कोई अमीर तो कोई गरीब किसी की कम योग्यता के बावजूद उच्च पद प्राप्त होता है तो कोई बहुत प्रयास के बाद भी सामान्य सुविधा नहीं जुटा पाता। भविष्य को जानने की जिज्ञासा मानवीय प्रकृति का अंग है। भविष्य विज्ञान की विभिन्न परंपराओं में से एक परंपरा प्राचीन काल से बहुत सफल मानी जाती है, जिसके द्वारा इन सभी का जवाब हमें प्राप्त हो सकता है और वह परंपरा अतीत या वर्तमान के साथ भविष्य की जिज्ञासाओं को भी शांत करने में बहुत हद तक सार्थक साबित हुई है। अतः जीवन के विभिन्न सुख-दुख, लाभ-हानि तथा सफलता-असफलता का आकलन कर उससे पर्याप्त सुख प्राप्त करने तथा दुख या हानि की स्थिति में बचाव का उपाय सुझाती है, इस विज्ञान को ज्योतिष शास्त्र कहा जाता है।
ज्योतिष के बारह भाव में जीवन के प्रत्येक अंग का विवेचन छुपा हुआ है, जिसमें स्थिति ग्रह, उस ग्रह के स्वामी तथा उस स्वामी ग्रह की स्थिति का आकलन कर पूरे जीवनचक्र की विवेचना किया जाना संभव है। आज से नये साल की शुरूआत हो रही है अतः बारह राषियों के जातकों के पूरे साल में उनके विभिन्न क्षेत्रों में जीवन के सुख-दुख, लाभ-हानि, सफलता-असफलता तथा जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं के अनुसार आपका आने वाला साल कैसा होगा तथा उसके अनुरूप उपाय क्या हो सकता है। जानते हैं, बारह राषियों के जातकों के कुंडली विष्लेषण से कि उनका वर्ष, 2012 उनके लिए क्या खुषियाॅ लेकर आने वाला है तो उनके स्वास्थ्य तथा षिक्षा की स्थिति क्या होगी तथा यदि कोई विपरीत परिस्थिति है तो उनके उपाय क्या होंगे।



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Thursday 21 May 2015

जानिये आज 21/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से"बार-बार गर्भपात क्यू??"





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जानिये आज के सवाल जवाब(1) 21/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से







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जानिये आज के सवाल जवाब 21/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से







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जानिये आज का राशिफल 21/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से





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जानिये आज का पंचांग 21/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से







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अपनी असफलता के करण तनाव : ज्योतिष उपाय

अपनी असफलता के करण तनाव : ज्योतिष उपाय


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वर्तमान युग की आरामदायी जीवनषैली तथा भौतिकतावादी वस्तुओं की भरमार के बीच उच्च प्रतिस्पर्धी और असुरक्षित जीवन को सुरक्षा तथा सुविधा संपन्न बनाने के प्रयास में अपने कैरियर को उच्च दिषा तथा दषा देने के फेर में कई बार बहुत बुद्धिमान तथा योग्य व्यक्ति भी स्वयं असंतुष्ट होकर तनाव में आ जाते हैं तथा कई बार यह तनाव अवसाद की स्थिति भी निर्मित होती है। तनाव या अवसाद की विभिन्न स्थिति को कुंडली के माध्यम से बहुत अच्छी प्रकार विष्लेषित किया जा सकता है। यदि किसी जातक का तृतीयेष बुध होकर अष्टम स्थान में हो तो जल्दी तनाव में आने का कारण बनता है वहीं किसी प्रकार से क्रूर ग्रह या राहु से आक्रांत या दृष्ट होने पर यह तनाव अवसाद में जाने का प्रमुख माध्यम बन जाता है। जब बुध की दषा या अंतरदषा चले तो ऐसे में तनाव का होना प्रभावी रूप से दिखाई देता है। ऐसे में व्यक्ति को कम नींद, आहार तथा व्यवहार में अंतर दिखाई देता है, जिसके परिणामस्वरूप जातक कई बार व्यसन का भी आदि हो जाता है। अतः यदि किसी भी प्रकार से तृतीयेष बुध अष्टम में हो और बुध की दषा या अंतरदषा चले तो जातक को बुध की शांति के साथ गणपति के मंत्रों का वैदिक जाप हवन तर्पणा मार्जन आदि कराकर हरी वस्तुओं के सेवन के साथ तनाव से बाहर आकर सामान्य प्रयास करने से भी अवसाद कम करने में मददगार साबित होती है।

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कहीं आपका पढाई में मन लगना कम होगया है : ज्योतिष उपाय


स्कूल षिक्षा तक बहुत अच्छा प्रदर्षन करने वाला अचानक अपने एजुकेषन में गिरावट ले आता है तथा इससे कैरियर में तो प्रभाव पड़ता ही है साथ ही मनोबल भी प्रभावित होता हैं अतः यदि आपके भी उच्च षिक्षा या कैरियर बनाने की उम्र में पढ़ाई प्रभावित हो रही हो या षिक्षा में गिरावट दिखाई दे रही हो तो सर्वप्रथम व्यवहार तथा अपने दैनिक रूटिन पर नजर डालें। इसमें क्या अंतर आया है, उसका निरीक्षण करने के साथ ही अपनी कुंडली किसी विद्धान ज्योतिष से दिखा कर यह पता करें कि क्या कुंडली में राहु या शुक्र प्रभावकारी है। यदि कुंडली में राहु या शुक्र दूसरे, तीसरे, अष्टम या भाग्यस्थान में हो साथ ही इनकी दषा, अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा चल रही हो तो गणित या फिजिक्स जैसे विषय की पढ़ाई प्रभावित होती है साथ ही ऐसे लोगों के जीवन में कल्पनाषक्ति प्रधान हो जाती है। पहली उम्र का असर उस के साथ ही राहु शुक्र का प्रभावकारी होना एजुकेषन या कैरियर में बाधक हो सकता है। यदि इस प्रकार की बाधा दिखाइ्र दे तो शांति के लिए भृगुरा पूजन साथ कुंडली के अनुरूप आवष्यक उपाय आजमाने से कैरियर की बाधाएॅ समाप्त होकर अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है।


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खुद की इच्छा की कैरिअर चुनने का ज्योतिष योग


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आज के भौतिक युग में प्रत्येक व्यक्ति की एक ही मनोकामना होती है की उसे अच्छा कैरियर प्राप्त हो तथा उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ रहें तथा जीवन में हर संभव सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती रहे। किसी जातक के पास नियमित कैरियर के प्रयास में सफलता तथा आय का साधन कितना तथा कैसा होगा इसकी पूरी जानकारी उस व्यक्ति की कुंडली से जाना जा सकता है। कुंडली में दूसरे स्थान से उच्च षिक्षा तथा धन की स्थिति के संबंध में जानकारी मिलती है इस स्थान को धनभाव या मंगलभाव भी कहा जाता है अतः इस स्थान का स्वामी अगर अनुकूल स्थिति में है या इस भाव में शुभ ग्रह हो तो षिक्षा, धन तथा मंगल जीवन में बनी रहती है तथा जीवनपर्यन्त धन तथा संपत्ति बनी रहती है। चतुर्थ स्थान को सुखेष कहा जाता है इस स्थान से सुख तथा घरेलू सुविधा की जानकारी प्राप्त होती है अतः चतुर्थेष या चतुर्थभाव उत्तम स्थिति में हो तो घरेलू सुख तथा सुविधा, खान-पान तथा रहन-सहन उच्च स्तर का होता है तथा घरेलू सुख प्राप्ति निरंतर बनी रहती है। पंचमभाव से अध्ययन, सामाजिक स्थिति के साथ धन की पैतृक स्थिति देखी जाती है अतः पंचमेष या पंचमभाव उच्च या अनुकूल होतो संपत्ति सामाजिक प्रतिष्ठा अच्छी होती है। दूसरे भाव या भावेष के साथ कर्मभाव या लाभभाव तथा भावेष के साथ मैत्री संबंध होने से जीवन में धन की स्थिति तथा अवसर निरंतर अच्छी बनी रहती है। जन्म कुंडली के अलावा नवांष में भी इन्हीं भाव तथा भावेष की स्थिति अनुकूल होना भी आवष्यक होता है।  अतः जीवन में इन पाॅचों भाव एवं भावेष के उत्तम स्थिति तथा मैत्री संबंध बनने से व्यक्ति के जीवन में अस्थिर या अस्थिर संपत्ति की निरंतरता तथा साधन बने रहते हैं। इन सभी स्थानों के स्वामियों में से जो भाव या भावेष प्रबल होता है, धन के निरंतर आवक का साधन भी उसी से निर्धारित होता है। अतः जीवन में धन तथा सुख समृद्धि निरंतर बनी रहे इसके लिए इन स्थानों के भाव या भावेष को प्रबल करने, उनके विपरीत असर को कम करने का उपाय कर जीवन में सुख तथा धन की स्थिति को बेहतर किया जा सकता है। आर्थिक स्थिति को लगातार बेहतर बनाने के लिए प्रत्येक जातक को निरंतर एवं तीव्र पुण्यों की आवष्यकता पड़ती है, जिसके लिए जीव सेवा करनी चाहिए। सूक्ष्म जीवों के लिए आहार निकालना चाहिए। अपने ईष्वर का नाम जप करना चाहिए। कैरियर को बेहतर बनाने के लिए शनिवार का व्रत करें।


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Wednesday 20 May 2015

जानिये आज 19/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से "सिकलसेल से बचने के ज्योतिषीय उपाय-"









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जानिये आज के सवाल जवाब(1) 19/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से







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जानिये आज का राशिफल 19/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से







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जानिये आज का पंचांग 19/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से







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Tuesday 19 May 2015

पति और पत्नी के जीवन में वास्तु का महत्व

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आज के भौतिक संसार में मनुष्य अध्यात्म को छोड़कर भौतिक सुखों के पीछे भाग रहा है। समय के अभाव ने उसे रिश्तों के प्रति उदासीन बना दिया है। किंतु आज भी मनुष्य अपने घर में संसार के सारे सुखों को भोगना चाहता है। इसके लिए हमें वैवाहिक जीवन को वास्तु से जोड़ना होगा। वास्तव में हम ऐसा क्या करें कि पति-पत्नी के बीच अहंकार की जगह प्रेम, प्रतियोगिता के स्थान पर सानिध्य मिले।

यद्यपि गृहस्थ जीवन में या व्याहारिक जीवन में कोई भी छोटा सा कारण एक बड़े कारण में परिवर्तित हो जाता है। चाहे वह आर्थिक हो या घर के अन्य सदस्यों को लेकर हो। इसका सीधा प्रभाव पति-पत्नी के आपसी संबंधों पर पड़ता है। इसलिए घर का वातावरण ऐसा होना चाहिए कि ऋणात्मक शक्तियां कम तथा सकारात्मक शक्तियां अधिक क्रियाशील हों। यह सब वास्तु के द्वारा ही संभव हो सकता है।

घर के ईशान कोण का बहुत ही महत्व है। यदि पति-पत्नी साथ बैठकर पूजा करें तो उनका आपस का अहंकार खत्म होकर संबंधों में मधुरता बढ़ेगी। गृहलक्ष्मी द्वारा संध्या के समय तुलसी में दीपक जलाने से नकारात्मक शक्तियों को कम किया जा सकता है। घर के हर कमरे के ईशान कोण को साफ रखें, विशेषकर शयनकक्ष के।

पति-पत्नी में आपस में वैमनस्यता का एक कारण सही दिशा में शयनकक्ष का न होना भी है। अगर दक्षिण-पश्चिम दिशाओं में स्थित कोने में बने कमरों में आपकी आवास व्यवस्था नहीं है तो प्रेम संबंध अच्छे के बजाए, कटुता भरे हो जाते हैं।

शयनकक्ष के लिए दक्षिण दिशा निर्धारित करने का कारण यह है कि इस दिशा का स्वामी यम, शक्ति एवं विश्रामदायक है। घर में आराम से सोने के लिए दक्षिण एवं नैऋत्य कोण उपयुक्त है। शयनकक्ष में पति-पत्नी का सामान्य फोटो होने के बजाए हंसता हुआ हो, तो वास्तु के अनुसार उचित रहता है।

घर के अंदर उत्तर-पूर्व दिशाओं के कोने के कक्ष में अगर शौचालय है तो पति-पत्नी का जीवन बड़ा अशांत रहता है। आर्थिक संकट व संतान सुख में कमी आती है। इसलिए शौचालय हटा देना ही उचित है। अगर हटाना संभव न हो तो शीशे के एक बर्तन में समुद्री नमक रखें। यह अगर सील जाए तो बदल दें। अगर यह संभव न हो तो मिट्टी के एक बर्तन में सेंधा नमक डालकर रखें।

घर के अंदर यदि रसोई सही दिशा में नहीं है तो ऐसी अवस्था में पति-पत्नी के विचार कभी नहीं मिलेंगे। रिश्तों में कड़वाहट दिनों-दिन बढ़ेगी। कारण अग्नि का कहीं ओर जलना। रसोई घर की सही दिशा है आग्नेय कोण। अगर आग्नेय दिशा में संभव नहीं है तो अन्य वैकल्पिक दिशाएं हैं। आग्नेय एवं दक्षिण के बीच, आग्नेय एवं पूर्व के बीच, वायव्य एवं उत्तर के बीच।

अत: यदि हम अपने वैवाहिक जीवन को सुखद एवं समृद्ध बनाना चाहते हैं और अपेक्षा करते हैं कि जीवन के सुंदर स्वप्न को साकार कर सकें। इसके लिए पूर्ण निष्ठा एवं श्रद्धा से वास्तु के उपायों को अपनाकर अपने जीवन में खुशहाली लाएं।