Saturday, 23 May 2015

एक ही कतार के दरवाजे उचित या अनुचित

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वास्तु शास्त्र मुख्यत: दो ऊर्जाओं पर केंद्रित है। पहला सूर्य किरणों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा और दूसरा पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति से प्राप्त ऊर्जा। सूर्य ऊर्जा पूर्व दिशा से सूर्य के उगते समय प्राप्त होती है और चुंबकीय ऊर्जा उत्तर दिशा से प्राप्त होती है। इन दोनों दिशाओं के विपरीत की ऊर्जा ऋणात्मक ऊर्जा होती है अत: सकारात्मक ऊर्जा की दिशा में मकान का दरवाजा या खिड़की खोली जाए और नकारात्मक दिशा बंद रखी जाए तो जीवन में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य, शांति प्राप्त की जा सकती है।




वास्तुशास्त्र मेंं, सकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश एवं नकारात्मक ऊर्जा के निर्गम के लिए दरवाजा और खिड़की किसी भी घर के लिए महत्वपूर्ण हैं। जीवन में सुख और संतुष्टि के साथ समृद्धि बढ़ाने के लिए वास्तु के अनुसार घर मेंं रखी हर चीज का अपना अलग प्रभाव होता है। साथ ही घर के कमरे, खिड़की और दरवाजे आदि भी अच्छा-बुरा प्रभाव छोड़ते हैं।
घर का मुख्य दरवाजा सही स्थिति मेंं हो तो परिवार के सभी सदस्यों को इसका फायदा मिलता है। सभी के कार्य समय पर पूर्ण होते हैं और पारिवारिक तालमेल बना रहता है। कुछ लोगों के घरों मेंं मुख्य दरवाजे के अतिरिक्त अन्य दरवाजे भी होते हैं जहां से घर मेंं प्रवेश किया जा सकता है। वास्तु के अनुसार ऐसे दरवाजों से किसी व्यक्ति के घर मेंं प्रवेश नहींं करना चाहिए। घर मेंं प्रवेश हमेशा मुख्य दरवाजे से ही किया जाना चाहिए। ऐसा होने पर सकारात्मक विचारों का संचार होता है और हमारे बुरे विचार दूर हो जाते हैं। साथ ही जो लोग मुख्य द्वार के अतिरिक्त किसी और द्वार से घर मेंं प्रवेश करते हैं उनकी आर्थिक उन्नति होने मेंं काफी परेशानियां रहती हैं। संतान की वृद्धि उस घर मेंं नहींं होती तथा सदा परेशानी बनी रहती है। यदि किसी परिवार मेंं आर्थिक, मानसिक, शारीरिक या अन्य किसी प्रकार की परेशानियां चल रही हो और उसके घर मेंं एक कतार मेंं तीन या तीन से अधिक दरवाजे लगे हों तो वास्तुविद् उन्हें बहुत अशुभ बताते हुए एक दरवाजा कतार से हटाने की सलाह देते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि, वास्तुशास्त्र के किसी भी प्राचीन ग्रन्थ मेंं एक कतार मेंं तीन या तीन से अधिक दरवाजे से होने वाले अशुभ प्रभाव के बारे मेंं किसी प्रकार का कोई उल्लेख नहींं है, बल्कि इसके विपरीत भारत के ही कई प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिरों और महलों मेंं तीन या तीन से अधिक दरवाजे एक कतार मेंं देखने को मिलते हैं, जैसे - तिरुपति बालाजी, वृहदेश्वर मंदिर तंजावूर, एकाम्बरनाथ मंदिर कांचीपुरम्, मीनाक्षी मंदिर मदुरै, ज्योतिर्लिंग रामेंश्वरम् मंदिर, और तो और दक्षिण भारत के श्रीरंगम् स्थित चार किलोमीटर क्षेत्र मेंं फैला श्रीरंगनाथ स्वामी मंदिर मेंं तो सात दरवाजे एक कतार मेंं है, जिसका दक्षिण दिशा स्थित मुख्यद्वार 236फीट ऊँचा है।
किसी घर मेंं जब तीन या तीन से अधिक दरवाजे एक कतार मेंं होते हैं तो सामान्यत: पहला दरवाजा मुख्यद्वार और आखिरी वाला दरवाजा घर का पिछला दरवाजा होता है। यदि कोई भवन भारतीय वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों के अनुकूल बना हो तो तीन या तीन से अधिक दरवाजे एक कतार मेंं रखे जा सकते हैं और यह पूर्णत: शुभ होकर परिवार मेंं सुख-शांति और समृद्धि लाते हैं, जैसे किसी भी भवन का मुख्यद्वार पूर्व मेंं हो तो अंतिम द्वार पश्चिम मेंं होगा।
यदि मुख्यद्वार पश्चिम मेंं हो तो अंतिम द्वार पूर्व मेंं होगा। इसी प्रकार उत्तर दिशा मेंं मुख्यद्वार हो तो दक्षिण दिशा मेंं अंतिम द्वार होगा और यदि दक्षिण दिशा मेंं मुख्य द्वार हो तो अंतिम द्वार उत्तर दिशा मेंं होगा। ऐसी स्थिति मेंं एक कतार मेंं होने के कारण पूर्व आग्नेय का अंतिम दरवाजा पश्चिम नैऋत्य मेंं होता है और उत्तर वायव्य का अंतिम दरवाजा दक्षिण नैऋत्य मेंं होता है। इसी प्रकार मुख्यद्वार दक्षिण दिशा मेंं दक्षिण नैऋत्य मेंं रखा जाता है ताकि पिछला द्वार उत्तर वायव्य मेंं खुले और पश्चिम दिशा मेंं पश्चिम नैऋत्य मेंं रखा जाता है ताकि पिछला द्वार पूर्व आग्नेय मेंं खुले। दोषपूर्ण स्थान पर लगा एक ही दरवाजा अशुभ होता है और यदि एक ही कतार मेंं तीन या तीन से अधिक दरवाजे लगे हो और मुख्यद्वार के साथ-साथ अंतिम दरवाजा भी घर के पिछले भाग मेंं दोषपूर्ण स्थान पर खुलता हो तो यह स्थिति अत्यन्त दुखदायी एवं घातक होती है, किन्तु भारत के कुछ विद्वान् वास्तुविदों ने बिना किसी शोध के यह भ्राँति फैला दी है कि, किसी भी स्थिति मेंं चाहे वह स्थिति शुभ हो या अशुभ एक कतार मेंं तीन या तीन से अधिक द्वार शुभ नहींं होते हैं और एक द्वार कतार से हटाने से यह दोष दूर हो जाता है। घर के पूर्व आग्नेय मेंं द्वार होने पर घर मेंं कलह और चोरी से नुकसान होता है। यदि इसी के साथ वहाँ रेम्प, गड्ढा या ढलान हो तो घर का मालिक या मालकिन पाप कर्म करते हुए मानसिक दु:ख से पीडि़त रहते हैं।
पश्चिम नैऋत्य मेंं चारदीवारी या घर का द्वार हो तो घर के पुरुष बदनामी जेल, एक्सीडेंट या खुदकुशी के शिकार होते हैं। हार्ट अटैक, आपरेशन, एक्सिडेन्ट, हत्या, लकवा या किसी प्रकार की जालिम मौत से मरते हैं। यह द्वार शत्रु स्थान का है। यदि इसी के साथ यहाँ किसी भी प्रकार की रेम्प, नीचाईयाँ, भूमिगत पानी का स्रोत हो तो उस घर मेंं किसी पुरुष सदस्य की आत्महत्या या दुर्घटना से मृत्यु हो सकती है। अर्थात् परिवार के पुरुष सदस्य के साथ अनहोनी होती है।
उत्तरी वायव्य का प्रवेशद्वार दु:खदायी, कलहकारी, बैर भाव, मुकदमेबाजी व बदनामी लाने वाला रहता है। इसी के साथ यदि यहां रैंम्प, गड्ढा हो तो शत्रु की संख्या मेंं वृद्धि, स्त्री को कष्ट, घर मेंं मानसिक अशांति रहती है। दक्षिण नैऋत्य मेंं घर या कम्पाउण्ड वाल का द्वार हो तो उस घर की महिलाएँ गम्भीर बीमारियों की शिकार होती है।
यहाँ किसी भी प्रकार का भूमिगत पानी का स्रोत होगा तो आत्महत्या या दुर्घटना से मृत्यु हो सकती है या किसी प्रकार की अनहोनी का शिकार होती है। अनुभव मेंं आया है कि, जिस घर मेंं डाका पड़ता है, उस घर के दरवाजे सब एक कतार मेंं होते हैं। मुख्यद्वार उत्तर वायव्य मेंं होकर सबसे पीछे का बाहर पडऩे वाला दरवाजा अगर दक्षिण नैऋत्य मेंं हो या पूर्व आग्नेय से पश्चिम नैऋत्य मेंं एक कतार के दरवाजे हों तो वहाँ डाका पड़ सकता है। यदि इन दरवाजों के दोष के साथ-साथ पूर्व आग्नेय और पश्चिम नैऋत्य दोनों तरफ नीचाई हो तो डाके के दौरान हिंसा होती है और किसी पुरुष सदस्यों की हत्या तक हो सकती है और यदि उत्तर वायव्य और दक्षिण नैऋत्य मेंं यह स्थिति बने तो डाके के दौरान स्त्रियों के साथ दुराचार होता है साथ ही उनकी हत्या होने की सम्भावना होती है। ऐसी स्थिति मेंं कोई एक दरवाजा हटाने से इस दोष का निवारण जरूर हो जाता है, चाहे वह बीच का ही दरवाजा क्यों ना हो।
रसोई मेंं एक खिड़की ऐसी बनवाएं जो पूर्व दिशा को ओर खुलती हो, ताकि सूर्य की प्रात:कालीन किरणें रसोई घर मेंं प्रवेश कर सके। ऐसा होने पर हानिकारक सूक्ष्म कीटाणु नष्ट हो सकते हैं। नमी, सीलन आदि भी समाप्त हो सकती है।
1. यदि आपके घर का दरवाजा दक्षिण दिशा की ओर है तो आप इसे गहरे महरून, पेल यलो या वर्मिलियन रेड के शेड से रंग सकते है। इन सभी कलर शेड के कलर बाजार मेंं आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
2. मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर दिशा की ओर है तो छह छड़ वाली धातु की बनी विंड चाइम लगानी चाहिए। विंड चाइम की खनखनाहट से मुख्य दरवाजे के आसपास के बुरे प्रभाव दूर हो सकते हैं। यहां बताए जा रहे वास्तु के सभी आइटम्स बाजार मेंं आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
3. पश्चिम की ओर मुख वाले दरवाजे के लिए प्लॉट या यहां तक कि बालकनी के उत्तर-पूर्व क्षेत्र मेंं तुलसी का पौधा नकारात्मक प्रभावों को भी सकारात्मकता प्रदान कर सकता है। इसी तरह चमेंली की बेल भी सुगंध से प्रतिकूल प्रभावों को दूर करने का काम करती है।
4. दरवाजों के दोनों ओर काफी सारे हरे और लम्बे स्वस्थ पौधे लगाए जा सकते हैं जो गलत दिशा मेंं बने दरवाजे के दुष्प्रभावों को दूर करने का काम करेंगे।
5. मुख्य दरवाजे कोई पवित्र चिह्न लगाएं, जैसे ऊँ, श्रीगणेश, स्वस्तिक, शुभ-लाभ आदि। ऐसा करने पर घर पर सभी देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है और बुरी नजर से घर की रक्षा होती है।
6. मुख्य द्वार का मुख पूर्व या दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर है तो दरवाजे के अंदर बाएं ओर जल पात्र को पानी और फूल की पंखुडय़िों से भरकर रखें। इससे दिशा को सकारात्मक रुख देने मेंं मदद मिलेगी। वैसे वास्तु के हिसाब से पूर्व दिशा पवित्र समझी जाती है।
7. उत्तर दिशा के दरवाजे के लिए सफेद, पेल ब्लू कलर बेहतर होते हैं।
8. मुख्य दरवाजा पश्चिम दिशा की ओर मुख वाला हो तो सूर्यास्त के वक्त दुष्प्रभावों को रोकने के लिए द्वार के समीप क्रिस्टल ग्लास रखें।




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तमिलनाडु का भूतिया सुसाईड प्वाईंट



मित्रो आज हम भारत कीं एक ऐसी जगह के बारे में बता रहे हैं जहां मौतों का सिलसिला चलता है। तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले मेंत  कोदैक्नल नाम का एक शहर है जो कि सुसाइड प्वाईंट के नाम से कुख्यात है। इस जगह को एशिया के 10 सुसाइड प्वाईंट में से एक माना जाता है। इस जगह पर हमेशा लोग एक नेगेटिव एनर्जी महसूस करते हैं। यहां पर कई लोग अपनी इच्छा से या दुर्घटना वश मारे गये हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि कोई अदृश्य ताकइन लोगों को पहाड़ी के नीचे धक्का देती है।
इस 6000 फीट नीचे पहाडी की घाटी में केवल दो जनो के अलावा कोई नहीं जाता। वो दोनों स्थानीय लोग हैं जिनको मरे हुए लोगों की लाशों को पहाड़ी से ऊपर चढाना होता है। जब इन दोनों ने एक टीवी चैनल के इंटरव्यू में बताया कि जब वो लाशें लेनेे के लिए पहाड़ी की गहराई में उतरते हैं तो शराब पीकर जाते हैं क्योंकि वहां लाशों की हालत देखकर आपको उल्टी हो जायेगी। किसी का पेट पिचक गया और किसी के आँख और कान बिखरे गए हैंं। वो दोनों इस पहाड़ी के तल में जाने से पहले पूजा करते हैं और जाते वक्त अपने साथ नीबू ले जाते हैं जिससे वो आत्माओं से बचे रहें। उनका कहना है कि जब वो लाशों को बोरी में भरकर कंघे पर उठाकर लाते हैं तो उनको उठाना बड़ा मुश्किल होता है। वो दोनों कभी रात को घाटी में नहीं रुकते हैं क्योंकि रात को वहां अजीबोगरीब चीखने चिल्ताने की आवाज सुनाई देती है। अब चाहे यह सच हो या अंधविश्वास, मौतों का सिलसिला तो यहां आज भी बदस्तूर जारी है।



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भरणी नक्षत्र



कोई भी व्यक्ति जब जन्म लेता है तो उसके गुण-दोष, अच्छाई-बुराई, विशेषता, सभी के पीछे कोई कारण निहित होता है। एक ही परिवार के सदस्यों में भी विभिन्नता का कारण उस व्यक्ति के जन्म का समय, नक्षत्र और उसके जन्म में ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करती है। मनुष्य का जन्म अपने आप मेंं सृष्टि की रचनात्मकता का सबसे बड़ा उदाहरण है। इस प्रकार भरणी नक्षत्र अपने इस प्रतीक चिन्ह के माध्यम से रचनात्मकता तथ स्त्री जाति मेंं पायी जाने वाली अन्य कई विशेषताओं के साथ जुड़ जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार यमराज को भरणी नक्षत्र का देवता माना जाता है जिसके चलते यह नक्षत्र यमराज के प्रभाव मेंं भी आता है।

भारतीय वैदिक ज्योतिष की गणनाओं के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले सत्ताइस नक्षत्रों मेंं से भरणी को दूसरा नक्षत्र माना जाता है तथा इन वैदिक ज्योतिषियों की इस मान्यता के पीछे छिपे कारण को समझने के लिए भरणी नक्षत्र के प्रतीक चिन्ह को समझना आवश्यक है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार स्त्री के प्रजनन अंग अर्थात योनि को भरणी नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि पृथ्वी लोक पर जन्म लेने वाले सभी मनुष्य योनि के माध्यम से ही जन्म लेते हैं इसलिए बहुत से वैदिक ज्योतिषी भरणी नक्षत्र का रचनात्मकता के साथ गहरा संबंध मानते हैं क्योंकि मनुष्य का जन्म अपने आप मेंं सृष्टि की रचनात्मकता का सबसे बड़ा उदाहरण है। इस प्रकार भरणी नक्षत्र अपने इस प्रतीक चिन्ह के माध्यम से रचनात्मकता तथ स्त्री जाति मेंं पायी जाने वाली अन्य कई विशेषताओं के साथ जुड़ जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार यमराज को भरणी नक्षत्र का देवता माना जाता है जिसके चलते यह नक्षत्र यमराज के प्रभाव मेंं भी आता है। यमराज को धर्मराज का नाम भी दिया जाता है तथा प्राणियों के कर्मों के अनुसार उनके अगले जन्म के लिए उचित समय, स्थान तथा स्थितियों का निर्णय करना भी यमराज के कार्यक्षेत्र मेंं आता है। इस प्रकार प्राणियों की मृत्यु तथा मृत्यु के पश्चात उनके कर्मों के आधार पर उन्हें मिलने वाला दूसरा जीवन, ये दोनों ही कार्य यमराज के कार्यक्षेत्र मेंं आते हैं।
देवी महाकाली को भी भरणी नक्षत्र की देवी माना जाता है जिसके चलते इस नक्षत्र की कार्यशैली मेंं देवी महाकाली के गुणों का प्रभाव भी देखने मेंं आता है। जिस प्रकार देवी महाकाली भीषण से भीषण शत्रु का भी सहज ही संहार करने मेंं सक्षम है तथा सृष्टि के दुष्कर से दुष्कर कार्य भी उनके लिए सहज हैं, उसी प्रकार भरणी नक्षत्र के प्रबल प्रभाव मेंं आने वाले जातक भी कठिन से कठिन कार्य से भी चिंतित नहीं होते तथा इन कार्यों को बिना विचलित हुए करने का प्रयास करते हैं। शुक्र को भरणी नक्षत्र का स्वामी ग्रह माना जाता है तथा इसी के अनुसार शुक्र ग्रह की बहुत सी विशेषताएं भरणी नक्षत्र के माध्यम से साकार रुप प्राप्त करतीं हैं। वैदिक ज्योतिष मेंं शुक्र को स्त्री जाति तथा प्रजनन के साथ जोड़ा जाता है तथा शुक्र की यह विशेषताएं भरणी नक्षत्र मेंं भी पायीं जातीं हैं। इसके अतिरिक्त शुक्र ग्रह को रचनात्मकता के साथ भी जोड़ा जाता है तथा शुक्र की यह रचनात्मकता भी भरणी के माध्यम से प्रदर्शित होती है। भरणी नक्षत्र के सभी चरण मेष राशि मेंं स्थित होते हैं जिसके चलते इस नक्षत्र पर मेष राशि तथा इसके स्वामी मंगल ग्रह का प्रभाव भी देखने मेंं आता है। इस प्रकार भरणी जन्म देने मेंं सहायता करने वाले शुक्र से लेकर मृत्यु को निर्धारित करने वाले यमराज के प्रभाव मेंं आता है तथा इसी कारण भरणी नक्षत्र का स्वभाव निश्चित कर पाना बहुत कठिन हो जाता है तथा बहुत बार इस नक्षत्र के प्रभाव मेंं आने वाले जातक अपने जीवन मेंं जन्म तथा मृत्यु के जैसीं विपरीत चरम सीमाओं को छूते दिखाई देते हैं।
अधिकतर वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि भरणी नक्षत्र के प्रबल प्रभाव मेंं आने वाले विभिन्न जातक एक दूसरे से बिल्कुल ही विपरीत स्वभाव के स्वामी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए इस नक्षत्र के प्रबल प्रभाव मेंं आने वाला एक जातक बिल्कुल ही रचनात्मक प्रवृति का हो सकता है जबकि इसी नक्षत्र के प्रबल प्रभाव मेंं आने वाला दूसरा जातक बिल्कुल ही हिंसात्मक प्रवृति का हो सकता है। इसी प्रकार भरणी के प्रबल प्रभाव मेंं आने वाले विभन्न जातक अति बुद्धिमान अथवा बिल्कुल ही मंद बुद्धि, बहुत पदार्थवादी अथवा बिल्कुल ही तटस्थ हो सकते हैं। इसी अतिरेक के चलते भरणी नक्षत्र के जातक अपने जीवन मेंं कई बार ऐसी चरम सीमाओं को छूते हैं जो एक दूसरे से बिल्कुल ही विपरीत होती हैं तथा किसी कुंडली मेंं भरणी नक्षत्र का प्रबल प्रभाव जातक को अपने जीवन काल मेंं कई बार बहुत बड़े उतार-चढ़ावों का सामना करवा सकता है जिसके चलते कई बार तो ऐसे जातकों का जीवन एक तेज चलते झूले की तरह हो जाता है जो कभी बहुत वेग से एक छोर की ओर चला जाता है तो कभी उतने ही वेग से दूसरे छोर की ओर। भरणी जातकों के जीवन मेंं बार बार आने वाली अनिश्चितता की यह स्थिति इनके जीवन के व्यवसायिक, शारीरिक, मानसिक तथा अन्य कई प्रकार के क्षेत्रों पर अपना प्रभाव डालती है।
कुंडली मेंं भरणी नक्षत्र का प्रबल प्रभाव जातक के व्यक्तित्व को बल प्रदान करता है जिसके चलते भरणी के प्रबल प्रभाव मेंं आने वाले जातक सामान्यतया अपने जीवन मेंं आने वाली बड़ी से बड़ी कठिनाई से भी नहींं विचलित होते तथा ऐसे जातक बहुत बड़ी हानि उठाने के पश्चात भी शीघ्र ही संभल जाते हैं तथा पुन: अपने प्रयासों को आरंभ कर देते हैं। अपने चरित्र की इसी विशेषता के चलते भरणी के जातक अपने जीवन मेंं कई बार विफल होने के पश्चात भी हार नहींं मानते तथा अविचलित भाव से अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयास करते रहते हैं जिसके कारण ऐसे जातक अतत: अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेने मेंं बहुत बार सफल भी हो जाते हैं। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि भरणी के प्रबल प्रभाव मेंं आने वाले अधिकतर जातकों के लिए प्रयास करना मह्त्वपूर्ण होता है तथा ये जातक सफलता या असफलता को बहुत महत्व नहींं देते। शुक्र के प्रभाव मेंं आने के कारण भरणी के जातकों मेंं सामान्यतया किसी न किसी प्रकार की रचनात्मक प्रवृति भी प्रबल रहती है जिसके चलते ऐसे जातक रचनात्मक क्षेत्रों मेंं सफल देखे जा सकते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार भरणी नक्षत्र के प्रभाव मेंं आने वाले जातक कई प्रकार के व्यवसायिक क्षेत्रों मेंं कार्यशील पाए जा सकते हैं जैसे कि छोटे बच्चों से संबंधित व्यवासायों में लगे लोग, शिशु की देखभाल करने वाली आया, नर्स, दाई, शिशु का जन्म करवाने मेंं सहायता करने वाली चिकित्सक, छोटे बच्चों को पढ़ाने वाले अध्यापक तथा अध्यापिकाएं तथा बच्चों से जुड़े व्यवसायों मेंं काम करने वाले अन्य लोग, मृत्यु के पश्चात की जाने वाली प्रथाओं से जुड़े लोग जैसे कि शमशान भूमि मेंं कार्य करने वाले लोग, समाचार पत्रों मेंं मृतकों के बारे मेंं समाचार प्रकाशित करने वाले लोग, मृत्यु की जांच करने वाले जासूस तथा इसी प्रकार के लोग तथा अन्य कई प्रकार के रचनात्मक तथा विनाशकारी कार्यों को करने वाले लोग जिनमेंं कलाकारों से लेकर हथियारों का व्यापार करने वाले संगठन तथा इनमेंं काम करने वाले लोग, आतंकवादी संगठनों से जुड़े लोग तथा अन्य कई प्रकार के व्यवसायों से जुड़े लोग भी शामिल हैं।
आकारकत्व:- रक्त व मांस से सम्बंधित लोग जैसे कि रक्त का परीक्षण करने वाले मांस का व्यापार करने वाले, हिंसक प्राणी, कसाई, आतंकवादी, भूसे वाले सभी अनाज, नीच स्वभाव और नीच कुल के लोग, तांत्रिक और मृत शरीरों पर तंत्र साधना करने वाले तांत्रिक, जहर, शस्त्र, अस्त्र, कोर्ट व युद्ध भी इसी नक्षत्र से सम्बंधित है!
नक्षत्रफल:- दृढ़ निश्चय वाले सत्यवादी और सुखी, जिस काम को करने की सोच ले उसे करके ही छोड़ते हैं। व्यक्तित्व आकर्षक होता है। मनोविनोद मेंं इनका मन अधिक लगता है, शराब और स्त्री दोनों का पूर्ण लाभ लेना चाहते हैं।
पदार्थ:- भूसी वाले अनाज, ज्वारबाजरा, रंग, जहर व जहरीले पदार्थ, विभिन्न रसायन इत्यादि।
व्यक्ति:- ब्लड बैंक के कर्मचारी, स्वार्थी लोग, अत्यधिक धूम्रपान करने वाले, शराब के शौकीन, रसिक मिजाज वाले, साधारणतया रोगों से मुक्त रहने वाला।
भरणी नक्षत्र का वैदिक मंत्र:- यमाय त्वान्गिरस्यते पित्रीमते स्वाहा स्वाहा धर्माय स्वाहा धर्मपित्रे।
बीमारियाँ:- सिर मेंं चोट, आँखों के पास चोट, नशे की लत, कफ रोग इत्यादि।
मानसिक गुण:- खाने का शौकीन, क्रूर व्यक्तित्व, अपने से निचले तबके के लोगों के साथ रहने वाला अपने लक्ष्य को सदैव प्राप्त करता है। चतुर व्यक्तित्व का मालिक। इनके जीवन मेंं प्रेम सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है और दिमाग की बजाय दिल से अधिक सोचते है। इनके व्यक्तित्व मेंं सदैव एक कवि रहता है।
व्यवसाय:- संगीत, खेल-कूद, प्रचारक, चांदी के बर्तनों का काम, शादी करवाने वाले मध्यस्थ, कसाईखाना, होटल, रतिरोग, संपत्ति का मूल्यांकन करने वाला।
प्रतीक चिन्ह : त्रिकोण
रंग : लाल
भाग्यशाली अक्षर : ल
वृक्ष : युग्म वृक्ष
राशि स्वामी : मंगल
नक्षत्र स्वामी : शुक्र
देवता : यम
शारीरिक गठन : मध्यम कदकाठी, लम्बी गर्दन और सुंदर आंखें। यदि गर्दन छोटी है तो चेहरा गोल।
भौतिक सुख : व्यक्तित्व पर निर्भर रहेगा सुख, भाग्यशाली, भवन और वाहन का मालिक। इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र ग्रह होता है। जो व्यक्ति भरणी नक्षत्र मेंं जन्म लेते हैं वे सुख सुविधाओं एवं ऐशो आराम चाहने वाले होते हैं । इनका जीवन भोग विलास एवं आनन्द मेंं बीतता है। ये देखने मेंं आकर्षक व सुन्दर होते हैं। इनका स्वभाव भी सुन्दर होता है जिससे ये सभी का मन मोह लेते हैं। इनके जीवन मेंं प्रेम का स्थान सर्वोपरि होता है। इनके हृदय मेंं प्रेम तरंगित होता रहता है ये विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के प्रति आकर्षण एवं लगाव रखते हैं।
भरनी नक्षत्र के जातक उर्जा से परिपूर्ण रहते हैं। ये कला के प्रति आकर्षित रहते हैं और संगीत, नृत्य, चित्रकला आदि मेंं सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। ये दृढ़ निश्चयी एवं साहसी होते हैं। इस नक्षत्र के जातक जो भी दिल मेंं ठान लेते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। आमतौर पर ये विवाद से दूर रहते हैं फिर अगर विवाद की स्थिति बन ही जाती है तो उसे प्रेम और शान्ति से सुलझाने का प्रयास करते हैं। अगर विरोधी या विपक्षी बातों से नहींं मानता है तो उसे अपनी चतुराई और बुद्धि से पराजित कर देते हैं।
जो व्यक्ति भरणी नक्षत्र मेंं जन्म लेते हैं वे विलासी होते हैं। अपनी विलासिता को पूरा करने के लिए ये सदैव प्रयासरत रहते हैं और नई-नई वस्तुएं खरीदते हैं। ये साफ-सफाई और स्वच्छता मेंं विश्वास करते हैं। इनका हृदय कवि के समान होता है। ये किसी विषय मेंं दिमाग से ज्यादा दिल से सोचते हैं। ये नैतिक मूल्यों का आदर करने वाले और सत्य का पालन करने वाले होते हैं। ये रूढ़ीवादी नहींं होते हैं और न ही पुराने संस्कारों मेंं बंधकर रहना पसंद करते हें। ये स्वतंत्र प्रकृति के एवं सुधारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले होते हैं। इन्हें झूठा दिखावा व पाखंड पसंद नहींं होता। इनका व्यक्तित्व दोस्ताना होता है और मित्र के प्रति बहुत ही वफादार होते हैं। ये विषयों को तर्क के आधार पर तौलते हैं जिसके कारण ये एक अच्छे समालोचक होते हैं। इनकी पत्नी गुणवंती और देखने व व्यवहार में सुन्दर होती हैं। इन्हें समाज मेंं मान सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है।
सकारात्मक पक्ष : भरणी नक्षत्र मेंं जन्म होने से जातक सत्य वक्ता, उत्तम विचार, वचनबद्ध, रोगरहित, धार्मिक कार्यों के प्रति रुचि रखने वाला, साहसी, प्रेरणादायक, चित्रकारी एवं फोटोग्राफी मेंं अभिरुचि रखने वाला होता है। अपना उद्देश्य अंतिम रूप से प्राप्त करने मेंं समर्थ व्यक्ति। 33 साल की उम्र के बाद एक सकारात्मक मोड़।
नकारात्मक पक्ष : यदि मंगल और शुक्र की जन्म कुंडली मेंं स्थिति खराब है तो ऐसा व्यक्ति क्रूर, सदा अपयश का भागी, दूसरे की स्त्री मेंं अनुरक्त, विनोद मेंं समय व्यतीत करने वाला, जल से डरने वाला, चपल, निंदित तथा बुरे स्वभाव वाला होता है। ऐसा जातक बुद्धिमान होने के बावजूद निम्न स्तर के लोगों के मध्य रहने वाला, विरोधियों को नीचा दिखाने वाला, मदिरा अथवा रसीले पदार्थों का शौकीन, रोग बाधा से अधिकतर मुक्त रहने वाला, चतुर, प्रसन्नचित तथा उन्नति का आकांक्षी होता है। उसके इस स्वभाव से स्त्री और धन का सुख मिलने की कोई गारंटी नहींं।



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जानिए जून 2015 की शेयर मार्केट का हाल

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इस माह बृहस्पति-शुक्र युती शेयर बाजार की दिशा तय करने में मुख्य भूमिका अदा कर सकती है। वक्री शनि अभी भी कुछ क्षेत्रों में नकारात्मक प्रभाव डाले हुये है। किन्तु इस माह हस्त नक्षत्र का राहु कुछ क्षेत्रों में उछाल का कारण बन सकता है। माह के उत्तार्ध में मंगल का शत्रु राशि में गमन कुछ क्षेत्रों मुनाफा वसूली का संकेत दे रहा है। बुध एवं बृहस्पती इस माह बाजार को मजबूती देनें में सक्षम हो सकते हैं।

बैंकिंग: उच्चस्थ बृहस्पति और वृषभ के बुध से बैंकिंग के क्षेत्र में मजबूती के संकेत हैं। पीएसयू तथा प्राईवेट बैंकों में गिरावट पर खरीददारी करने की सलाह है। माह के अंतिम दशक में मुनाफा वसूली भी कर लेनी चाहिए।
मेटल: माह के पूर्वार्ध में मेटल में कुछ तेजी देखने मिलेगी, किन्तु उत्तार्ध में अथवा अंतिम सप्ताह में कुछ गिरावट हो सकती है।
पावर: माह के अंतिम दशक में पावर सेक्टर में तेजी की संभावना है, अत: गिरावट में निवेश किया जा सकता है।
क्रुड ऑयल: क्रुड में अत्याधिक उतार-चढ़ाव की स्थिति बन सकती है किन्तु इसकी मुख्य दिशा ऊपर की ओर रहने की आशा है। ऑयर गैस के शेयरों में तेजी रहने की आशा है।
टैक्टाईल: इस क्षेत्र में इस माह विशेष तेजी की संभावना है। विशेष तेजी ४-५ और १९-२१ जून को देखने को मिलेगा।
एफ.एम.सी.जी.: एफएमसीजी के क्षेत्र में इस माह तेजी रहने की उम्मीद है। गिरावट पर निवेश की सलाह है।
आईटी टेक्नोलॉजी: हस्त नक्षत्र का राहु इस माह आईटी और टेक्नोलॉजी क्षेत्र में हलचल लाने का काम कर सकती है। गिरावट पर खरीदने की सलाह है। २-३ और १९-२० को विशेष तेजी की संभावना है।
केमीकल फर्टिलाईजर: इस क्षेत्र में ९-११ जून के आस-पास अधिक खरीददारी हो सकती है। इस क्षेत्र में अत्याधिक उतार-चढ़ाव रहेगा। पीएसयू में निवेश करें।
ऑटो क्षेत्र में माह के प्रथम दशक में तेजी अथवा माह के अंतिम दशम में मंदी के आसार हैं। फार्मा और हेल्थ केयर के क्षेत्र से दूर ही रहें, इस क्षेत्र में ऊपरी स्तर पर बिकावली देखी जा सकती है। कैपिटल गुड्स और इंफ्रा का क्षेत्र इस माह मजबूत रह सकता है।

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जलाशय जलकूप या बोरिंग, ड्राईंग रूम एवं तिजोरी

जलाशय जलकूप या बोरिंग, ड्राईंग रूम एवं तिजोरी
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टोडरमल ने अपने ‘वास्तु सौखयम्’ नामक ग्रंथ में वर्णन किया है कि उत्तर में जलाशय जलकूप या बोरिंग करने से धन वृद्धि कारक तथा ईशान कोण में हो तो संतान वृद्धि कारक होता है। राजा भोज के समयंत्रण सूत्रधार में जल की स्थापना का वर्णन इस प्रकार किया-‘पर्जन्यनामा यश्चाय् वृष्टिमानम्बुदाधिप’। पर्जन्य के स्थान पर कूप का निर्माण उत्तम होता है, क्योंकि पर्जन्य भी जल के स्वामी हैं। विश्वकर्मा भगवान ने कहा है कि र्नैत्य, दक्षिण, अग्नि और वायव्य कोण को छोड़कर शेष सभी दिशाओं में जलाशय बनाना चाहिये। तिजोरी हमेशा उत्तर, पूर्व या ईशान कोण में रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त आग्नेय दक्षिणा, र्नैत्य पश्चिम एवं वायव्य कोण में धन का तिजोरी रखने से हानि होता है। ड्राईंग रूम को हमेशा भवन के उत्तर दिशा की ओर रखना श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि उत्तर दिशा के स्वामी ग्रह बुध एवं देवता कुबेर हैं। वाणी को प्रिय, मधुर एवं संतुलित बनाने में बुध हमारी सहायता करता है। वाणी यदि मीठी और संतुलित हो तो वह व्यक्ति पर प्रभाव डालती है और दो व्यक्तियों के बीच जुड़ाव पैदा करती है।
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प्राकृतिक शक्तियों का प्रवाह दिशा के अनुसार


प्राकृतिक शक्तियों का प्रवाह दिशा के अनुसार
किसी भी भवन में प्राकृतिक शक्तियों का प्रवाह दिशा के अनुसार होता है अतः यदि भवन सही दिशा में बना हो तो उस भवन में रहने वाला व्यक्ति प्राकृतिक शक्तियों का सही लाभ उठा सकेगा, किसकी भाग्य वृद्धि होगी। किसी भी भवन में कक्षों का दिशाओं के अनुसार स्थान इस प्रकार होता है।
वास्तुशास्त्र को लेकर हर प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है। भूखण्ड एवं भवन के दोषपूर्ण होने पर उसे उचित प्रकार से वास्तुनुसार साध्य बनाया जा सकता है। हमने अपने अनुभव से जाना है कि जिन घरों के दक्षिण में कुआं पाया गया उन घरों की गृहस्वामिनी का असामयिक निधन आकस्मिक रूप से हो गया तथा घर की बहुएं चिरकालीन बीमारी से पीड़ित मिली। जिन घरों या औद्योगिक संस्थानों ने नैऋत्य में बोरिंग या कुआं पाया गया वहां निरन्तर धन नाश होता रहा, वे राजा से रंक बन गये, सुख समृध्दि वहां से कोसों दूर रही, औद्योगिक संस्थानों पर ताले पड़ गये। जिन घरों या संस्थानों के ईशान कोण कटे अथवा भग्न मिले वहां तो संकट ही संकट पाया गया। यहां तक कि उस गृहस्वामी अथवा उद्योगपति की संतान तक विकलांग पायी गयी। जिन घरों के ईशान में रसोई पायी गयी उन दम्पत्तियों के यहां कन्याओं को जन्म अधिक मिला या फिर वे गृह कलह से त्रस्त मिले। जिन घरों में पश्चिम तल नीचा होता है तथा पश्चिमी नैऋत्य में मुख्य द्वार होती है, उनके पुत्र मेधावी होने पर भी निकम्मे तथा उल्टी-सीधी बातों में लिप्त मिले हैं।
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जानें वास्तु द्वारा कैसे करें भूमि परीक्षण

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भूमि परीक्षण
भूमि परीक्षण के लिये भूखंड के मध्य में भूस्वामी के हाथ के बराबर एक हाथ गहरा, एक हाथ लंबा एवं एक हाथ चौड़ा गड्ढा खोदकर उसमें से मिट्टी निकालने के पश्चात् उसी मिट्टी को पुनः उस गड्ढे में भर देना चाहिए। ऐसा करने से यदि मिट्टी शेष रहे तो भूमि उत्तम, यदि पूरा भर जाये तो मध्यम और यदि कम पड़ जाये तो अधम अर्थात् हानिप्रद है। अधम भूमि पर भवन निर्माण नहीं करना चाहिये। इसी प्रकार पहले के अनुसार नाप से गड्ढा खोद कर उसमें जल भरते हैं, यदि जल उसमें तत्काल शोषित न हो तो उत्तम और यदि तत्काल शोषित हो जाए तो समझें कि भूमि अधम है। भूमि के खुदाई में यदि हड्डी, कोयला इत्यादि मिले तो ऐसे भूमि पर भवन नहीं बनाना चाहिए।
यदि खुदाई में ईंट पत्थर निकले तो ऐसा भूमि लाभ देने वाला होता है। भूमि का परीक्षण बीज बोकर भी किया जाता है। जिस भूमि पर वनस्पति समय पर उगता हो और बीज समय पर अंकुरित होता हो तो वैसा भूमि उत्तम है। जिस भूखंड पर थके होकर व्यक्ति को बैठने से शांति मिलती हो तो वह भूमि भवन निर्माण करने योग्य है। वास्तु शास्त्र में भूमि के आकार पर भी विशेष ध्यान रखने को कहा गया है। वर्गाकार भूमि सर्वोत्तम, आयताकार भी शुभ होता है। इसके अतिरिक्त सिंह मुखी एवं गोमुखि भूखंड भी ठीक होता है। सिंह मुखी व्यावसायिक एवं गोमुखी आवासीय दृष्टि उपयोग के लिए ठीक होता है।



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जानिये आज 23/05/2015 के विषय के बारे में प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से"अन्न दान से पाएँ ख्याति"



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जानिये आज के सवाल जवाब 23/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से




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जानिये आज के सवाल जवाब 23/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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जानिये आज का राशिफल 23/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से



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जानिये आज का पंचांग 23/05/2015 प्रख्यात Pt.P.S tripathi (पं.पी एस त्रिपाठी) से




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वास्तु और ईशान दिशा


वास्तु और ईशान दिशा
कैसे पाएं ईशान दिशा के शुभ परिणाम
किसी भी भवन की ईशान दिशा सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। इसमें वास्तु अनुरूप भवन का निर्माण हमारी प्रगति में चार चांद लगा देता है। आइए जानते हैं किस प्रकार से भवन निर्माण कराने से आप शुभ परिणाम प्राप्त करेंगे :-
* ईशान दिशा अन्य दिशाओं की तुलना में बड़ी हो तो गृह के निवासी धन-संपत्ति से युक्त रहेंगे। उनके ऐश्वर्य में वृद्धि होगी तथा उनकी संतानें मेधावी होंगी।
* ईशान दिशा में जल का स्थल हो तो गृह के रहवासी निरंतर प्रगति करेंगे।
* ईशान दिशा नीचे हो तो गृह स्वामी अष्टविध संपत्ति के अधिकारी होंगे।
* ईशान ब्लाक में पूर्व की तरफ ढलान पुरुषों के लिए तथा उत्तर की तरफ वाला ढलान स्त्रियों के सर्वांगीण विकास के लिए श्रेष्ठतम होता है।
* ईशान दिशा में पूर्व तथा उत्तर वाली दीवारें पश्चिम तथा दक्षिण दिशा वाली दीवारों की तुलना में नीची होने से चिरकाल तक आरोग्य, सुख-संपत्ति तथा धन लाभ होता है।
* गृह का समस्त जल इस दिशा से बाहर निकलना चाहिए। वर्षा का जल भी इस दिशा से बाहर निकले तो गृह स्वामी के सुख में वृद्धि होती है।

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वास्तुशास्त्र में क्यों है दर्पण का महत्व

वास्तुशास्त्र में दर्पण को उत्प्रेरक बताया गया है, जिसके द्वारा भवन में तरंगित ऊर्जा की सृष्टि सुखद अहसास कराती है। इसके उचित उपयोग द्वारा हम अनेक लाभजनक उपलब्धियां अर्जित कर सकते हैं। कैसे, आइए जानें-
*भवन* भवन में छोटी और संकुचित जगह पर दर्पण रखना चमत्कारी प्रभाव पैदा करता है।
* दर्पण कहीं भी लगा हो, उसमें शुभ वस्तुओं का प्रतिबिंब होना चाहिए।
के पूर्व और उत्तर दिशा व ईशान कोण में दर्पण की उपस्थिति लाभदायक है।* दर्पण को खिड़की या दरवाजे की ओर देखता हुआ न लगाएं।
* आपका ड्राइंग रूम छोटा हो तो चारों दीवारों पर दर्पण के टाइल्स लगाएं, लगेगा नहीं कि आप अतिथियों के साथ छोटे कमरे में बैठे हैं।* कमरे में दीवारों पर आमने-सामने दर्पण लगाने से घर के सदस्यों में बेचैनी और उलझन होती है।
* दर्पण को मनमाने आकार में कटवाकर उपयोग में न लाएं।
* मकान का कोई हिस्सा असामान्य शेप का या अंधकारयुक्त हो वहां गोल दर्पण रखें।
यदि घर के बाहर इलेक्ट्रिकल पोल, ऊंची इमारतें, अवांछित पेड़ या नुकीले उभार हैं और आप उनका दबाव महसूस कर रहे हैं तो उनकी तरफ उत्तल दर्पण रखें।
* किसी भी दीवार में आईना लगाते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि वह न एकदम नीचे हो और न अधिक ऊपर। अन्यथा परिवार के सदस्यों को सिरदर्द हो सकता है।
* यदि बेडरूम में ठीक बिस्तर के सामने दर्पण लगा रखा हो उसे फौरन हटा दें। यहां दर्पण की उपस्थिति वैवाहिक और पारस्परिक प्रेम को तबाह कर सकती है।
* मकान के ईशान कोण में उत्तर या पूर्व की दीवार पर स्थित वॉशबेसिन के ऊपर दर्पण भी लगाएं। यह शुभ फलदायक है।
* यदि आपके घर के दरवाजे तक सीधी सड़क आने के कारण द्वार वेध हो रहा है और दरवाजा हटाना संभव नहीं है तो दरवाजे पर 'पा कुआ' दर्पण लगा दें। यह शक्तिशाली प्रतीक है। अत: इसे लगाने में सावधानी रखना चाहिए। इसे किसी पड़ोसी के घर की ओर केंद्रित करके न लगाएं।
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इन उपायों :से मिलेगी व्यवसाय में सफलता

इन उपायों :से मिलेगी व्यवसाय में सफलता
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सभी को अपने व्यवसाय में सफलता की चाहत होती है। अगर जीतोड़ मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिल पा रही है तो आपके लिए हम लाए हैं आसान उपाय। लाभ के लिए जरूरी है कि आप जहां कारोबार कर रहे हैं वहां धन आगमन की अनुकूल स्थिति हो। यह अनुकूल स्थिति तब बनती है जब दुकान या व्यापारिक प्रतिष्ठान का वास्तु सही हो नहीं तो मेहनत और समय खर्च करने के बाद भी लाभ को लेकर निराशा जनक स्थिति बनी रहती है।
वास्तु विज्ञान के अनुसार व्यापार में बेहतर लाभ पाने के लिए सबसे पहले तो यह करें कि व्यापारिक प्रतिष्ठान की दीवारों पर गहरे रंग नहीं लगवाएं। सफेद, क्रीम एवं दूसरे हल्के रंगों का प्रयोग सकारात्मक उर्जा का संचार करता है जो लाभ वृद्घि में सहायक होता है। दीपावली आने वाली है तो रंग-रोगन करवाते समय इन बातों का ध्यान रखिएगा।
दूसरी बात जो गौर करने की है वह यह है कि व्यापारिक प्रतिष्ठान का दरवाजा अंदर की ओर खुले। बाहर की ओर दरवाजे का खुलना लाभ को कम करता है क्योंकि आय के साथ व्यय भी बढ़ा रहता है।
दुकानों में उत्तर एवं पश्चिम दिशा की ओर शोकेस का निर्माण करवाना चाहिए। इससे खरीदारों की संख्या बढ़ती है। धन में वृद्घि के लिए तिजोरी का मुंह उत्तर की ओर रखें क्योंकि यह देवाताओं के कोषाध्याक्ष कुबेर की दिशा है।
अगर आपके व्यापारिक प्रतिष्ठा में सीढ़ियां बनी हुई है तो इस बात का ध्यान रखें कि सीढ़ियों की संख्या सम नहीं होनी चाहिए।

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क्‍या होता है वास्‍तु दोष, जाने कारण और निवारण

क्‍या होता है वास्‍तु दोष, जाने कारण और निवारण
वास्‍तु दोष के कई कारण होते हैं। ये किसी भी वजह से हो सकता है। अपने आस पास की भूमि के दोषों, वातावरण के साथ सामंजस्य की कमी, मकान की बनावट के दोषों, घरेलू उपकरणों को गलत जगह रखे होने आदि से उत्पन्न होते हैं। हमारा शरीर और समस्त ब्रह्माण्ड पंच महाभूतों से मिल कर बना है। महाभूतों , दिशाओं, प्राकृतिक ऊर्जाओं के तारतम्य से भवन का निर्माण होने पर जीवन में शुभता आती है और जीवन में सभी प्रकार से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। पंचभूतों के सही समायोजन के अनुसार, दिशाओं के वास्तुनियमों के अनुसार भवन का निर्माण हमारे जीवन को, हमारे विचारों की दिशा, हमारी जीवन पद्धति और स्वास्थ्य आदि सभी भावों को पूर्णतया प्रभावित करते हैं। हम आपको बता रहे हैं वास्‍तु दोष के मुख्‍य कारण और उसके उपाय। पढ़ें और जानें...
मकान कैसी भूमि पर स्थित है ?
मकान जिस भूमि पर स्थित है, उसका आकार क्या है ?
भवन में कमरों, खिड़कियों, स्तम्भों, जल निकास व्यवस्था, मल के निकास की व्यवस्था, प्रवेश द्वार, मुख्य द्वार आदि का संयोजन किस प्रकार का है ?
भवन में प्रकाश, वायु और विद्युत चुम्कीय तरंगों के प्रवेश और निकास की क्या व्यवस्था है ?
भवन के चारों ओर अन्य इमारतें किस प्रकार बनी हुई हैं ?
भवन के किस हिस्से में परिवार का कौन सा व्यक्ति रहता है ?
भवन में किस दिशा में निर्माण सबसे भारी और किस दिशा में हल्का है ?
भवन की कौनसी दिशा ऊँची है और कौनसी नीची ?
भवन में किस दिशा में खुला स्थान है ?
इस प्रकार की सभी बातें घर के वास्तु को प्रभावित करती हैं। वास्तुशास्त्र में इन सब बातों के लिए नियम बनाए गए हैं, इनमें रहे दोष ही वास्तु दोष कहलाते हैं। भवन निर्माण में रहे वास्तु दोष जीवन में गंभीर दुष्परिणाम देते हैं।
इस प्रकार भवन से जुड़ी हर गतिविधि का प्रभाव भवन में रहने वाले व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है। इन्हीं सब व्यवस्थाओं पर जीवन निर्भर होने के कारण जीवन का हर पहलू वास्तु संबंधी कारणों से जुड़ा होता है। जीवन का हर पहलू इनसे कभी अछूता नहीं रह पाता।
भवन के निर्माण और उपयोग में रहे दोषों को ही वास्तुदोष कहा जाता है। भवन के निर्माण से पहले वास्तु पुरुष की पूजा आवयश्क रूप से की जाती है, ताकि भवन के निर्माण में रही खामियों से भवन और भवन में रहने वाले लागों के जीवन को वास्तु दोष के प्रभावों से मुक्त रखा जा सके।
वास्तु दोष के कारण होने वाले दुष्प्रभाव
आर्थिक समस्याएं – आर्थिक उन्नति न होना, धन का कहीं उलझ जाना, लाभों का देरी से मिलना, आय से अधिक व्यय होना, आवश्यकता होने पर धन की व्यवस्था ना हो पाना, धन का चोरी हो जाना आदि।
पारिवारिक समस्याएं – वैवाहिक संबंधों में विवाद, अलगाव, विवाह में विलम्ब, पारिवारिक शत्रुता हो जाना, पड़ोसियों से संबंध बिगड़ना, पारिवारिक सदस्यों से किसी भी कारण अलगाव, विश्वासघात आदि।
संतान संबंधी चिन्ताएं – संतान का न होना, देरी से होना, पुत्र या स्त्री संतान का न होना, संतान का गलत मार्ग पर चले जाना, संतान का गलत व्यवहार, संतान की शिक्षा व्यवस्था में कमियां रहना आदि।
व्यावसायिक समस्याएं – कैरियर के सही अवसर नहीं मिल पाना, मिले अवसरों का सही उपयोग नहीं कर पाना, व्यवसाय में लाभों का कम होना, साझेदारों से विवाद, व्यावसायिक प्रतिद्वन्द्विता में पिछड़ना, नौकरी आदि में उन्नति व प्रोमोशन नहीं होना, हस्तान्तरण सही जगह नहीं होना, सरकारी विभागों में काम अटकना, महत्वाकांक्षाओं का पूरा नहीं हो पाना आदि।
स्वास्थ्य समस्याएं – भवन के मालिक और परिवार जनों की दुर्घटनाएं, गंभीर रोग, व्यसन होना, आपरेशन होना, मृत्यु आदि।
कानूनी विवाद, दुर्घटनाएं, आग, जल, वायु प्रकोप आदि से भय, राज्य दण्ड, सम्मान की हानि आदि भयंकर परिणाम देखने को मिलते हैं।
वास्तुदोषों के निराकरण के लिए करते हैं वास्तु संबंधी उपकरणों की स्थापना
वास्तु संबंधी दोषों के उपचार दोषों की प्रकृति पर और उससे होने वाले परिणामों की गंभीरता पर निर्भर होते हैं। हल्के वास्तु दोषों का उपचार कम प्रयासों से संभव हो जाता है, जबकि कई बार कमियां इतनी बड़ी हो जाती हैं कि उनके दुष्प्रभावों से मुक्ति के लिए बड़े बदलावों की आवश्यकता पड़ती है। वास्तु संबंधी उपचार कई प्रकार से किए जाते हैं। ये उपचार शास्त्रोक्त पद्धतियों के साथ साथ बदलते हुए परिवेश में विशेषज्ञ के अनुभवों पर भी निर्भर करते हैं।
वास्तु दोषों को शान्त करने के लिए संभवतया पहला प्रयास निर्माण संबंधी बड़ी खामियों को दूर करना होता है। इसमें भवन में आमूल चूल परिवर्तन करके दिशाओं के अनुरूप पुनः निर्माण करवाया जाता है। लेकिन ऐसा कर पाना कई बार संभव नहीं हो पाता है।
भवन की किस दिशा में किस व्यक्ति को रहना चाहिए, इसके अनुसार भवन के उपयोग में बदलाव लाकर भी वास्तु संबंधी कमियों को दूर किया जाता है। जैसे भवन के दक्षिण पश्चिम में घर के मालिक को रहना चाहिए, विवाहयोग्य संतान को उत्तर पश्चिम दिशा में।
भवन में काम में लिए जाने वाले घरेलू संसाधनों जैसे टी वी, सोफा, डाइनिंग टेबल, बेड, अलमारी आदि की दिशा बदलकर भी वास्तु संबंधी समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
मुख्य द्वार का स्थान बदलकर भी वास्तु दोषों का निवारण किया जा सकता है।
घर में उपयुक्त पालतू पशु या पक्षी रखकर भी वास्तु दोषों से मुक्ति पायी जाती है।
उपयुक्त व शुभ वृक्षों और पौधों के सही दिशा में संयोजन से भी वास्तु दोषों के दुष्परिणाम कम होते हैं।
जल संग्रह की दिशा बदलने से वास्तु दोषों के दुष्परिणामों में बड़ी सफलता मिलती है।
भूमि की आकृतियों को सुधार कर वास्तु के बड़े दुष्परिणामों से मुक्ति मिलती है।
पूजन, हवन व यज्ञ आदि कर्मों द्वारा भवन में शुभता व सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने से भी वास्तु संबंधी दोषों के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है। ऐसी स्थिति में जब घर के निर्माण संबंधी या अन्य बदलावों से यथेच्छ परिणाम मिलने की स्थिति ना बन पाए तब वास्तु संबंधी उपकरणों की उपयुक्त दिशा में स्थापना करके वास्तु दोषों का निराकरण किया जाता है।
जल से भरे पात्रों , झरनों व चित्रों आदि की स्थापना।
वास्तुयंत्र की स्थापना
विभिन्न यंत्रों की स्थापना ( वास्तु दोषों के अनुरूप श्रीयंत्र, कुबेर यंत्रादि )
विभिन्न देवों की मूर्तियों व चित्रों की स्थापना
गणपति की मूर्तियों व चित्रों आदि की स्थापना ( वास्तु दोषों के अनुरूप विघ्न विनायक, सिद्धि दायक आदि विभिन्न मुद्राओं में )
श्री लक्ष्मी की मूर्ति व चित्रों की स्थापना ( वास्तु दोषों के अनुरूप विभिन्न मुद्राओं में )
श्री बालगोपाल की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री दुर्गा व नवदुर्गा की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री हनुमान की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री कृष्ण की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री सरस्वति की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री राम दरबार की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री शिव की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री शिव परिवार की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री लक्ष्मी गणेश की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
श्री लक्ष्मीनारायण की मूर्ति व चित्रों की स्थापना
पारिवारिक सदस्यों के सुखद चित्रों की स्थापना
सांकेतिक चित्रों की स्थापना
दिशाओं के अनुरूप रंगों का प्रयोग करके
गाय और बछड़े की शुभ आकृतियों की स्थापना
शुभ वृक्षों और पौधों की स्थापना


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Friday, 22 May 2015

कुंडली में ग्रहों की दशा और आपका स्वस्थ्य


आधुनिक युग में अधिकांश मनुष्य चिंता, उन्माद, अवसाद, भय आदि से प्रभावित है। मनोविज्ञान में इन्हें मनोरोगों के एक प्रकार मनस्ताप (न्यूरोटाॅसिज्म) के अंतर्गत रखा गया है। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकार है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएॅं उत्पन्न होती हैं। मनस्ताप यद्यपि एक साधारण मानसिक विकास है, किंतु इससे स्वास्थ्य संबधी गंभीर समस्याएॅं उत्पनन होती हैं। मनस्ताप के कारण व्यक्ति का व्यक्तिगत एवं सामाजिक समायोजन कठिन हो जाता है। साथ ही इससे व्यक्ति में अंतर्द्धंद्ध एवं कुंठा उत्पन्न होती है। मतस्ताप के लक्षण बहुत तीव्र नहीं होते और इससे पीडि़त रोगियों का व्यवहार भी आक्रामक नहीं होता । अतएव इन्हें मानसिक चिकित्सालयों में भरती कराने की अपेक्षा एक मनोचिकित्सक की अधिक आवश्यकता होती है। चूॅकि इन व्यक्तियों का संबध वास्तविकता से बना रहता है, अतः इन्हें अपने दैनिक कार्यो के निष्पादन मे थोड़ी परेशानी होती है।
मानवीय जीवन मुख्यतः विचारों, भावों से संचालित होता है। इनकी दिशा जिस ओर होती है, उसी के अनुसार व्यक्ति का जीवन भी गति करता है। मानवीय जीवन पर बहुत सारे कारकों, जैसे पारिवारिक वातावरण, परिस्थितियाॅं, सामाजिक स्थिति, सदस्यों से संपर्क आदि का प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूपा उसके विचारों एवं भावों में उतार-चढ़ाव आता रहता है। इसके अलावा भी जीवन की जो सबसे अधिक प्रभावित करता है, वह है अंतग्रही दशाओं का प्रभाव। यद्यपि ये ग्रह पृथ्वी से दूर स्थित है, लेकिन व्यक्ति के जीवन को क्षण-क्षण में प्रभावित करते हैं। इनकी स्थिति-परिस्थितियाॅें का निर्धारण व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्मो के अनुसार होता है। पूर्व जन्म के पाप एवं पुण्य कर्मो के अनुसार इन ग्रहों की गति, स्थिति व प्रभाव का निर्धारण होता है। प्राचीन भारतीय विद्याओं में जयोतिष विज्ञान एक ऐसी विद्या है, जिसमें ग्रहों की दशा तथा अंतर्दशा के आधार पर शुभ व अशुभ घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है। चिकित्सा ज्योतिष भी भारतीय ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण भाग है। चिकित्सा ज्योतिष के द्वारा जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति व दशा-चाल से मनुष्य को भविष्य में कौन-कौन से रोग होने की संभावना है, यह जाना जा सकता है । इसी चिकित्सा ज्योतिष के अंतर्गत मानसिक रोगों को समय से पूर्व जाना जा सकता है।
रोगी की जन्मकुंडली में वर्तमान मंे चल रही महादशा (विभिन्न समूय अंतरालों में ग्रहों की स्थिति), अंतर्दशा (उस समय अंतरालों में आने वाले ग्रहों के छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव), प्रत्यंतदशा (अंतर्दशा में ग्रहों के सूक्ष्म उतार-चढ़ाव) ज्ञात कर एवं गोचर (वर्तमान समय में ग्रहों की स्थिति) की सही स्थिति जानकर चिकित्सक रोग का सही निदान करके सफल चिकित्सा कर सकता है।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की शोधार्थी पूजा कौशिक ने सन् 2009 में ‘ग्रहों के ज्योतिषीय योगों का मनस्तापीयता पर पड़ने वाले प्रभाव का
अध्ययन‘ विषय पर शोधकार्य किया। यह शोधकार्य कुलाधिपति डाॅ0 प्रणव पण्डया के संरक्षण, प्रो0 देवीप्रसाद त्रिपाठी के निर्देशन एवं डाॅ0 प्रेरणा पुरी के सहनिर्देशन में किया गया। इस शोध अध्ययन में देहरादून के दो मनोचिकित्सालयों मे से आकस्मिक प्रतिचयन विधि द्वारा 200 मनस्तापी व्यक्तियों का चयन किया गया, जिसमें 108 पुरूष प्रयोज्य एवं 92 महिला प्रयोज्य शामिल थे। इस शोध अध्ययन में ग्रहों के ज्योतिषीय शेगों के मनस्तापीय स्तर को जाॅचने के लिए ज्योतिषीय उपकरण के रूपा में जन्मकुंडली (जिसके लिए मुख्य रूप से प्रयोज्यों की जन्म तारीख, जन्म समय एवं जन्म स्थान को नोट किया गया) एवं मनोवैज्ञानिक उपकरण के रूप में न्यूरेसिस मापनी स्केल का प्रयोग किया। प्राप्त आॅकड़ो के यंख्यिकीय विश्लेषण के लिए काई-टेस्ट को प्रयुक्त किया गया।
परिणामों में यह पाया गया कि 200 स्त्री-पुरूषोूं में से 150 स्त्री-पुरूषों की जन्मपत्रिका में ज्योतिष अध्ययन के अनुसार ग्रहयोग (चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शनि और छाया ग्रह राहु) प्रभावित कर रहे थे। विशेषतः मनस्ताप एवं ग्रहयोगों से पीडि़त स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में लग्न भाव (जिससे संपूर्ण देह एवं मस्तिष्क का विचार किया जाता है), चतुर्थ भाव (जिसमे मन एवं विचार का) तथा पंचम भाव (जिससे बुद्धि का विचार किया जाता है) विशेष रूप से प्रभावित एव पीडि़त पाए गए, किंतु 200 स्त्री-पुरूषों में से 50 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली में ग्रहयोग उपयुक्त स्थानों से अन्यत्र स्थान में होने पर भी अपनी महादशा, अंतर्दशा में व्यक्ति के मन को संतापित करते हुए पााए गए तथा साथ ही यह भी पाया गया कि 173 स्त्री-पुरूषों (86.5 प्रतिशत) की कुंडली में पापग्रह शनि, राहु, केतु तथा क्षीण चंद्रमा अपनी महादशा एवं अंतर्दशा से व्यक्ति को प्रभावित कर रहे थे।
इस अध्ययन में मनस्तापी व्यक्तियों की कुंडली की विवेचना करने पर यह भी ज्ञात हुआ है कि 200 स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडलियों में से 118 जन्मकुंडलियाॅं ऐसे स्त्री-पुरूषों की पाई गई, जिनका जन्म कृष्णपक्ष मे हुआ, अर्थात 59 प्रतिशत मनस्तापी व्यक्तियों का जन्म शुक्ल-पक्ष की तुलना में कृष्णपक्ष में ज्यादा हुआ। मनस्तापी व्यक्तियों की जन्मकुंडलियों की विवेचना से यह भी ज्ञात हुआ कि 200 में से 123 मनस्तापी व्यक्तियों के चतुर्थ भाव तथा पंचम भाव पापग्रह-क्षीण चंद्रमा, अस्त बुध, शनि, राहु एवं केतु से प्रभावित पाए गए, अर्थात 61.5 प्रतिशत मनस्तापी स्त्री-पुरूषों की जन्मकुंडली का चतुर्थ एवं पंचम भाव पापग्रहों के प्रभाव से प्रभावित पाया गया।
इस अध्ययन में 200 मनस्तापी व्यक्तियों मंे से 54 प्रतिशत पुरूष एवं 46 प्रतिशत स्त्रियाॅं मनस्ताव से प्रभावित पाई गई। साथ ही युवा वर्ग (21 से 32 आयु वर्ग) में मनस्ताप एवं ग्रहों का प्रभाव सर्वाधिक पाया गया एवं शिक्षा का स्तर भी ऐसे स्त्री-पुरूषों में सामान्य पाया गया। ऐसे स्त्री-पुरूष स्नातक स्तर तक शिक्षित पाए गए एवं ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक संख्या में शहरी क्षेत्र के मध्यम वर्ग से संबधित पाए गए । इस प्रकार 200 स्त्री-पुरूषों की कुंडलियों के अध्ययन से यह पता चला कि विभिन्न ग्रहयोगों का संबध व्यक्ति के मन की विभिन्न संतप् क्रियाओं से होता है। अतः निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि मानचीय स्वास्थ्य, अंतग्रही गतिविधियों एवं परिवर्तनों से असाधारण रूप से प्रभावित होता है।
पं0 श्रीराम शर्मा आचार्या जी के अनुसार रोगों की उत्पत्ति में प्रत्यक्ष स्थूल कारणों को महत्व दिया जाता है और स्कूल उपचारों की बात सोची जाती है, यदि अदृश्य किंतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ग्रह-नक्षत्रों के ज्ञान का भी चिकित्सा अनुसंधान की कड़ी से जोड़ा जा सके, तो रोगों के कारण और निवारण में अनेक चमत्कारों, सूत्र हाथ लग सकते हैं, जिनसे अपरिचित बने रहने से रोगोपचार में चिकित्सक अपने को अक्षम पाते हैं। निदान और उपचार की प्रक्रिया में ऐसे अनेक रहस्य इस अनुसंधान-प्रक्रिया में खुलने की संभावना है। यद्यपि इस विषय पर वर्तमान में कई शोधकार्य किए जा रहे हैं और ऐसी संभावना है कि आने वाले समय में चिकित्सा विज्ञान में ज्योतिषीय चिकित्सा को स्वीकारा जाएगा और इसके लिए सर्वप्रथम वयक्ति को शुभकर्मो की ओर प्रेरित किया जाएगा। यह पूर्णतः व्यक्ति के हाथ में है।

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Impressive Dongargarh

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Still there is many history are hidden behind bamleshwari temple. In the mountain remains of sages auterity were found. Also on the second side there is inaccessible cliff. Down to the hills there is Ashram and lake of sages. Many People believed that bathing into the lake and by drinking it they get rid of all diseases. Today that ashram is called as ascetic temple.
There is a story that there is fort on that hill on which there is a house of kaamkandla who is the lover of an anecdote named Madhavnal-kaamkandla . In this fort both meet. This love story is very famous in Chhattisgarh.
In the history of dongargarh this love story penetrates. Nearly around two thousand five years ago this place was called kamakhya which was ruled by a king called kaamsen who was the contemporary of king of ujjain Vikramaditya. This city is famous for the art, dance and music in which there is a dancer named kamkandla . She is maste in dance and she is very beautiful. One day she was dancing in the darbar then at that time a singer named madhavnal came but the concierge didn't allow him to go inside. Then he sits down there and enjoying music inside. Then he felt that the dance left feet thumb is fake and there in pebble in the dancer gunghrun so there inaccuracy in the rhythm in the music. He thought that he came here for just vain. He told there is no one in the fort who understands the impurities in music. Gatekeeper heared all these thing and he goes infront of the king and he tell all about what he is saying. Then king allows him to came inside. To prove his words king allow him to sing. From here madhavnal and kamkandla's love story started. But the king himself is fascinated at her but they did not get together. For their life bot madhavnal and kamkandla moved to ujjain infront of king vikramaditya they begged infront of him for their survival. King Vikramaditya give justice to them and he reconcile them both. There is a legend that for giving justice to them Vikramaditya had to fight with the king of kaamwati to stop them goddess Bhawani and lord Shiva came. Dongargarh 'Kamkandla-Madhavanl lake is the witness for this.There is one more legend (story) behind dongargarh. According to that 147 dancers came here from nandgaonraj to perform. When queen heared this news then she was upset because she was in fear that his son could not be fascinate on anyone. So she made a paste with turmeric and water mixed and asked his son to spread on all dancers before going to dance. By doing this all dancers changed in boulder. There are so many boulders in the dongargarh hills which is known as these boulders are of dancers.In dongargarh a lake called Motibeer in that there is a stone pillar in which there is an article engraved on that in French. This pillar was kept now in the Ghasidas museum in Raipur. Similarly, there is another pillar there is an inscription which had no been read till now. Regardless of all that, in dongargarh the bamleshwari temple is so famous that today also people go there for worship


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