इंसान की प्रथम जरुरत रोटी, कपड़ा व मकान की प्राप्ती करना होता हैं। आज के समय में रोटी कपड़ा सभी को असानी से प्राप्त हो जाता हैं। परन्तु मकान का सुख सभी को प्राप्त नही हो पाता। जनसंख्या का विस्फोटक विस्तार स्थान की कमी उत्पन्न करता हैं। ऐसे समय में कई लोगों को ऐडी-चौटी का जोर लगाने पर भी मकान सुख नही मिल पाता। जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव से मकान के सुख के बारें में जाना जाता हैं। मंगल भूमि पुत्र होने के कारण मकान व जमीन का कारक हैं। शुक्र और शनि भी मकान का सुख देने वाले ग्रह हैं। किन स्थितियों में ग्रह मकान सुख देते हैं आइये इससे विस्तार से समझें...
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखकर यह बताया जा सकता है कि उसके पास स्वयं का घर होगा या नहीं या फिर वह कितने मकानों का मालिक होगा। मनुष्य जीवन में एक ड्रीम हॉउस / स्वप्न महल / सुंदर सा एक बंगला बने न्यारा, ऐसी प्राय: सभी की इच्छा रहती है। कुछ भाग्यवानों को यह सुख कम आयु में ही प्राप्त हो जाता है। तो कुछेक लोग पूरी जिंदगी किरायेदार होकर ही व्यतीत कर देते है। पूर्व जन्म के शुभाशुभ कर्मो के अनुसार ही भवन सुख की प्राप्ति होती है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार भवन सुख हेतु कुण्डली मे चतुर्थ भाव व चतुर्थेश का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी भवन पर ग्रहों का भी शुभाशुभ प्रभाव अवश्य पड़ता है। लाल किताब के अनुसार वास्तु संबंधी दोषों के निवारण के बारे में इस लेख में उल्लेख है। लाल किताब में वास्तु अर्थात भवन या मकान का कारण ग्रह शनि है। किसी की जन्मकुंडली में शनि उच्च का हो तो उसे भवन सुख मिलता है। इसके विपरीत शनि, नीच, अस्त या क्षीण शत्रु ग्रहों से युक्त हो तो जातक को मकान सुख से वंचित रखता है।
किसी भी जन्मकुंडली में भारतीय ज्योतिषानुसार चतुर्थ स्थान मकान कारक माना गया ह।ै लेिकन लाल किताब में मकान का कारक द्वितीय स्थान या दूसरे घर को माना गया है। सातवें भाव से भी भवन के सुख-दुख का विचार किया जाता है। जिस तरह किसी भी जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति दर्शाई जाती है, उसी तरह लाल किताब में भी किसी भी मकान में किस स्थान पर किस ग्रह से संबंधित वस्तु रखने या न रखने से क्या प्रभाव होता है। इसके संकेत दिये गये हैं। लाल किताबनुसार मकान में वस्तुएं निम्न ग्रहों अनुसार रखनी चाहिए। उपरोक्तानुसार ग्रह से संबंधित वस्तुएं, जहां ग्रह की स्थिति दर्शाई गई है उसी स्थान या दिशा में रखने से भवन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। ठीक इसके विपरीत रखने पर खराब प्रभाव मकान पर पड़ेगा। मनुष्य पर ग्रहों का शुभाशुभ प्रभाव पड़ता है और लाल किताब में ग्रहों को जजों की संज्ञा दी गयी है। इसमें भी शनि को मुख्य न्यायाधीश माना गया है अत: शनि का भावानुसार शुभाशुभ फल प्रथम बतलाए जा रहे हैं। किसी भी व्यक्ति द्वारा जब स्वयं का मकान बनाया जाता है तो मकान बनाने के प्रारंभिक 3 से 18वर्षों के दौरान शनि का उस भवन पर शुभाशुभ प्रभाव पड़ता है, जिससे व्यक्ति का जीवन भी प्रभावित होता है।
* लाल किताब के अनुसार जन्मकुंडली में यदि शनि पहले घर में हो और सातवां व दसवां घर खाली हो तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वरना वह लोगों का ऋणी हो जाता है और उसे नुकसान होता है।
* यदि शनि दूसरे स्थान में हो तो व्यक्ति मकान का निर्माण मध्य में न रोकें। ऐसा करने से सुखी रहेगा वरना उप परिणाम भुगतने होंगे।
* यदि शनि तीसरे घर में हो तो व्यक्ति मकान बना लेने के बाद तीन कुश्रे पाले। ऐसा करने से व्यक्ति सुखी रहेगा वरना दुख भोगने होंगे।
* यदि शनि चैथे घर में हो तो व्यक्ति किराए के मकान में रह ले, वही अच्छा है। क्योंकि निजी मकान बनवाने से सास, माँ, मामा, दादी आदि को कष्ट उठाने होंगे।
* यदि शनि पांचवे घर में हो और व्यक्ति निजी मकान बनवाए तो संतान को पीड़ा रहेगी। इसके विपरीत यदि संतान द्वारा निर्मित मकान में रहे तो ठीक होगा। व्यक्ति स्वयं का मकान यदि बनवाए तो 48की उम्र पार करके ही बनवाए। मकान बनवाने से पहले खुदाई के समय या उससे पहले काले भैंसे को खूब खिला-पिलाकर पूजन करके छोड़ दें इसे अशुभ फल नष्ट हो जाएगा।
* यदि शनि छठे घर में हो तो व्यक्ति 36से 39 की उम्र होने पर ही मकान बनावाए अन्यथा बेटी की ससुराल में परेशानी उत्पन्न जो जाएगी।
* यदि शनि सातवें घर में हो तो व्यक्ति मकान बनवाने पर सुखी रहता है तथा वह एक के बाद एक मकान बनाता है या बना हुआ ही खरीदता रहता है। ऐसा तभी होता है जब शनि शुभ हो। वरना अपना भी मकान बेचना पड़ता है। लेकिन मकान के बिकने तक अर्थात सौदा होने के बाद खरीदने वाला आकर रहने लगे, उससे पूर्व तक यदि वह उस मकान की देहली को पूजे तो फिर से मकान बना लेता है।
* यदि शनि आठवें घर में हो, व्यक्ति मकान बनाने लगे तो उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वह कष्ट में रहता है। लेकिन राहु-केतु यदि शुभ हों तो अच्छे फल भी मिलते हैं।
* यदि शनि नवें घर में हो तो व्यक्ति नया मकान बनाना तब प्रारंभ करे जब घर में कोई स्त्री गर्भ से हो। ऐसा व्यक्ति मकान निर्माण में अपना पैसा लगाएगा तो पिता की मौत देखेगा। इसका हल है कि अपना पैसा ऋण चुकाने में उपयोग करें। मकान एक या दो ही बनाएं।
* यदि शनि दसवें घर में हो और व्यक्ति अपना मकान बनाकर रहे तो उसे सुख प्राप्त नहीं होता। अपने मकान में जाते ही वह दरिद्र हो जाता है। इससे अच्छा यही है कि वह किराए के मकान में रहे।
* यदि शनि ग्यारहवें घर में हो तो व्यक्ति बुढ़ापे में मकान बनवाता है।
* यदि शनि बारहवें घर में हो तो व्यक्ति को आयताकार मकान बनवाना शुभ रहेगा। मकान बनवाते समय अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अत: धीरे-धीरे बनवाने में ही फायदा है, लेकिन बनवाता रहे। निर्माण कार्य रोके नहीं।
जातक तत्व के अनुसार ‘‘गृह ग्राम चतुष्टपद मित्र क्षेत्रो।’’ अर्थात भवन सुख हेतु चतुर्थ भाव, चतुर्थेश की कुण्डली में शुभ एवं बलवान होकर स्थित होना जातक को उत्तम भवन सुख की प्राप्ति करवाता है तो निर्बल होकर स्थित होना लाख चाहने पर भी उचित भवन की व्यवस्था नहीं करवा पाता। चतुर्थ भाव में चतुर्थेश होना व लग्न में लग्नेश होने से या दोनों में परस्पर व्यत्यय हाने से एवं शुभ ग्रहो के पूर्ण दृष्टि प्रभाव का होना भी जातक को उत्तम भवन सुख की प्राप्ति करवाता है। मकान/भवन सुख प्राप्ति के कुछ ज्योतिषिय योग -
1. लग्नेश से युक्त होकर चतुर्थेश सर्वोच्च या स्वक्षेत्र में हो तो भवन सुख उत्तम होता है।
2. तृतीय स्थान में यदि बुध हो तथा चतुर्थेश का नंवाश बलवान हो, तो जातक विशाल परकोट से युक्त भवन स्वामी होता है।
3. नवमेश केन्द्र में हो, चतुर्थेश सर्वोच्च राशि में या स्वक्षेत्री हो, चतुर्थ भाव में भी स्थित ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो जातक को आधुनिक साज-सज्जा से युक्त भवन की प्राप्ति होगी
4. चतुर्थेश व दशमेश, चन्द्र व शनि से युति करके स्थित हो तो अक्समात ही भव्य बंगले की प्राप्ति होती है।
5. कारकांश लग्न में यदि चतुर्थ स्थान में राहु व शनि हो या चन्द्र व शुक्र हो तो भव्य महल की प्राप्ति होनी है।
6. कारकांश लग्न में चतुर्थ में उच्चराशिगत ग्रह हो या चतुर्थेश शुभ षष्टयांश में स्थित हो तो जातक विशाल महल का सुख भोगता है।
7. यदि कारकांश कुण्डली में चतुर्थ में मंगल व केतु हो तो भी पक्के मकान का सुख मिलता है।
8. यदि चतुर्थेश पारवतांश में हो, चन्द्रमा गोपुरांश में हो, तथा बृहस्पति उसे देखता हो तो जातक को बहुत ही सुन्दर स्वर्गीय सुखों जैसे घरो की प्राप्ति होती है।
9. यदि चतुर्थेश व लग्नेश दोनों चतुर्थ में हो तो अक्समात ही उत्तम भवन सुख प्राप्त होता है।
10. भवन सुखकारक ग्रहो की दशान्तर्दशा में शुभ गोचर आने पर सुख प्राप्त होता है।
11. चतुर्थ स्थान, चतुर्थेश व चतुर्थ कारक, तीनों चर राशि में शुभ होकर स्थित हों या चतुर्थेश शुभ षष्टयांश में हो या लग्नेश, चतुर्थेश व द्वितीयेश तीनो केन्द्र त्रिकोण में, शुभ राशि में हों, तो अनेक मकानों का सुख प्राप्त होता है। यदि भवन कारक भाव-चतुर्थ में निर्बल ग्रह हो, तो जातक को भवन का सुख नही मिल पाता। इन कारकों पर जितना पाप प्रभाव बढ़ता जाएगा या कारक ग्रह निर्बल होते जाएंगे उतना ही भवन सुख कमजोर रहेगा। पूर्णयता निर्बल या नीच होने पर आसमान तले भी जीवन गुजारना पड़ सकता है। किसी स्थिति में जातक को भवन का सुख कमजोर रहता है, या नहीं मिल पाता इसके कुछ प्रमुख ज्योतिषीय योगों की और ध्यान आकृष्ट करें तो पाते हैं कि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश का रहना प्रमुख है।
इसके अतिरिक्त भवन/मकान प्राप्ति के कुछ ज्योतिषिय योग...
* कारकांश कुण्डली में चतुर्थ स्थान में बृहस्पति हो तो लकड़ी से बने घर की प्राप्ति होती है। यदि सूर्य हो तो घास फूस से बने मकान की प्राप्ति होती है। चतुर्थेश, लग्नेश व द्वितीयेश पर पापग्रहों का प्रभाव अधिक होने पर जातक को अपने भवन का नाश देखना पडता है।
* चतुर्थेश अधिष्ठित नवांशेष षष्ठ भाव में हो तो जातक को भवन सुख नही मिलता। चतुर्थेश व चतुर्थ कारक यदि त्रिक भावो में स्थित हो तो जातक को भवन सुख की प्राप्ति नही होती। शनि यदि चतुर्थ भाव मे स्थित हो तो जातक को परदेश में ऐसे भवन की प्राप्ति होगी, जो टुटा-फूटा एवं जीर्ण-शीर्ण पुराना हो।
* द्वितीय, चतुर्थ, दशम व द्वादश का स्वामी, पापग्रहो के साथ त्रिक स्थान में हो, तो भवन का नाश होता है।
* चतुर्थ भावस्थ पापग्रह की दशा में भवन की हानि होती है। भवन सुख हेतु कुण्डली में इसके अतिरिक्त नवम, दशम, एकादश, पंचम भावो भाव का बल भी परखना चाहिए। क्योकि इन भावो के बली होने पर जातक को अनायाश ही भवन की प्राप्ति होते देखी गई है। इन भावों में स्थित ग्रह, यदि शुभ होकर बली हो व भावेश भी बली होकर स्थित हो तो निश्चयात्मक रूप से उत्तम भवन सुख मिलता है। भवन सुख हेतु बाधक ग्रह का वैदिक उपाय करने पर भवन सुख अवश्य मिलता हैं।
कुछ योग जिनसे आप जान सकते हैं कि आपके भाग्य में कितने मकान हैं-
1- जन्म कुण्डली के चौथे भाव में या चौथे भाव का स्वामी चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) में हो और चौथे भाव का स्वामी शुभ ग्रहों से युत हो तो ऐसा व्यक्ति अनेक भवनों में रहता है और उसे अनेक भवन बदलने पड़ते हैं। यदि चर की जगह स्थिर राशि (वृष, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) हो तो व्यक्ति के पास स्थाई भवन होते हैं।
2. जन्मकुण्डली के चौथे भाव का स्वामी (चतुर्थेश) बली हो तथा लग्न का स्वामी, चौथे भाव का स्वामी, दूसरे भाव का स्वामी इन तीनों में से जितने ग्रह केंद्र-त्रिकोण (1, 4, 5, 7, 10) भाव में हो उतने भवन होते हैं।
3. जन्मकुण्डली में नौंवे भाव का स्वामी दूसरे भाव में और दूसरे भाव का स्वामी नौवें भाव में स्थित हो अर्थात परिवर्तन योग हो तो ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय बारहवें वर्ष में होता है और 32 वें वर्ष के उपरांत उसे वाहन, भवन और नौकर का सुख मिलता है।
भूमि/भवनसुख दायक प्रयोग:
1. यदि आपको लगता है कि आपके पास ही घर क्यों नहीं है? आपके पास ही संपत्ति क्यों नहीं है? क्या इतनी बड़ी दुनिया में आपको थोड़ी सी जगह मिलेगी भी या नहीं, तो परेशान मत होइए केवल कूर्म स्वरुप विष्णु जी की पूजा कीजिये, विष्णु जी की प्रतिमा के सामने कूर्म की प्रतिमा रखें या कागज पर बना कर स्थापित करें। इस कछुए के नीचे नौ बार नौ का अंक लिख दें। भगवान् को पीले फल व पीले वस्त्र चढ़ाएं, तुलसी दल कूर्म पर रखें और पुष्प अर्पित कर भगवान् की आरती करें। आरती के बाद प्रसाद बांटे व कूर्म को ले जा कर किसी अलमारी आदि में छुपा कर रख लें। इस प्रयोग से भूमि संपत्ति भवन के योग रहित जातक को भी इनका सुख प्राप्त होता है
२. सोते समय अपने सिरहाने तांबे के पात्र में जल भरें और उस जल में एक चुटकी रोली एवं एक छोटी डली गुड की रखें। सुबह उठकर उस जल को पीपल के वृक्ष में डाल दें। यह उपाय करने से भवन बाधा समाप्त हो जाएगी
३. शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को आप सांध्यकाल में निकट के किसी भी हनुमान मन्दिर में चमेली के तेल का दीपक और गुग्गुल की धूप के साथ आठ सौ ग्राम साबूत चने एवं सवा सौ ग्राम गुड का नैवेद्य अर्पित कर श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें। इसके पश्चात् हनुमानजी के बायें पैर के सिन्दूर से स्वयं का तिलक करें। नैवेद्य के चने और गुड में से थोडा-थोडा एक स्थान पर निकालकर बाकी को बांट दें। निकाली हुई सामग्री के साथ सवा किलो तथा सवा किलो गुड मिलाकर, चने बन्दरों को खिला दें और गुड गाय को खिला दें। इसके पश्चात् नित्य श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें।
योग निष्कर्ष:
घर का सुख देखने के लिए मुख्यत: चतुर्थ स्थान को देखा जाता है। फिर गुरु, शुक्रऔर चंद्र के बलाबल का विचार प्रमुखता से किया जाता है। जब-जब मूल राशि स्वामी या चंद्रमा से गुरु, शुक्र या चतुर्थ स्थान के स्वामी का शुभ योग होता है, तब घर खरीदने, नवनिर्माण या मूल्यवान घरेलू वस्तुएँ खरीदने का योग बनता है। व्यक्ति के जीवन पुरुषार्थ, पराक्रम एवं अस्तित्व की पहचान उसका निजी मकान है। महंगाई और आबादी के अनुरूप हर व्यक्ति को मकान मिले यह संभव नहीं है। आधी से ज्यादा दुनिया किराये के मकानों मेंं रहती है। कुछ किरायेदार, जबरदस्ती मकान मालिक बने बैठे हैं। कुछ लोगों को मकान हर दृष्टि से फलदायी है। कोई टूटे-फूटे मकानों मेंं रहता है तो कोई आलिशान बंगले का स्वामी है। सुख-दुख जीवन के अनेक पहलुओं पर मकान एक परमावश्यकता बन गई है।
जन्मपत्री मेंं भूमि का कारक ग्रह मंगल है। जन्मपत्री का चौथा भाव भूमि व मकान से संबंधित है। चतुर्थेश उच्च का, मूलत्रिकोण, स्वग्रही, उच्चाभिलाषी, मित्रक्षेत्री शुभ ग्रहों से युत हो या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो अवश्य ही मकान सुख मिलेगा।
साथ ही मंगल की स्थिति का सुदृढ़ होना भी आवश्यक है। मकान सुख के लिये मंगल और चतुर्थ भाव का ही अध्ययन पर्याप्त नहीं है। भवन सुख के लिये लग्न व लग्नेश का बल होना भी अनिवार्य है। इसके साथ ही दशमेंश, नवमेंश और लाभेश का सहयोग होना भी जरूरी है।
1. स्वअर्जित भवन सुख (परिवर्तन से):
निष्पत्ति- लग्नेश चतुर्थ स्थान मेंं हो चतुर्थेश लग्न मेंं हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- इस योग मेंं जन्म लेने वाला जातक पराक्रम व पुरुषार्थ से स्वयं का मकान बनाता है।
2. उत्तम ग्रह योग:
निष्पत्ति- चतुर्थेश किसी शुभ ग्रह के साथ युति करे, केंद्र-त्रिकोण (1, 4, 7, 9, 10) मेंं हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- ऐसे व्यक्ति को अपनी मेहनत से कमाये रुपये का मकान प्राप्त होता है। मकान से सभी प्रकार की सुख सुविधायें होती है।
3. अकस्मात घर प्राप्ति योग:
निष्पत्ति- चतुर्थेश और लग्नेश दोनों चतुर्थ भाव मेंं हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- अचानक घर की प्राप्ति होती है। यह घर दूसरों का बनाया होता है।
4. एक से अधिक मकानों का योग:
निष्पत्ति- चतुर्थ स्थान पर चतुर्थेश दोनों चर राशियों मेंं (1, 4, 7, 10) हो। चतुर्थ भाव के स्वामी पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो एक से अधिक मकान प्राप्ति के योग बनते हैं।
परिणाम- ऐसे व्यक्ति के अलग-अलग जगहों पर मकान होते हैं। वह मकान बदलता रहता है।
5. वाहन, मकान व नौकर सुख योग (परिवर्तन से):
निष्पत्ति- नवमेंश, दूसरे भाव मेंं और द्वितीयेश नवम भाव मेंं परस्पर स्थान परिवर्तन करें तो यह योग बनता है।
परिणाम- इस योग मेंं जन्मेंं जातक का भाग्योदय 12वें वर्ष मेंं होता है। 32वें वर्ष के बाद जातक को वाहन, मकान और नौकर-चाकर का सुख मिलता है।
6. बड़े बंगले का योग:
निष्पत्ति- चतुर्थ भाव मेंं यदि चंद्र और शुक्र हो अथवा चतुर्थ भाव मेंं कोई उच्च राशिगत ग्रह हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- ऐसा जातक बड़े बंगले व महलों का स्वामी होता है। घर के बाहर बगीचा जलाशय एवं सुंदर कलात्मक ढंग से भवन बना होता है।
7. बिना प्रयत्न प्राप्ति योग:
निष्पत्ति- लग्नेश व सप्तमेंश लग्न मेंं हो तथा चतुर्थ भाव पर गुरु, शुक्र या चंद्रमा का प्रभाव हो।
परिणाम- ऐसा जातक बड़े बंगले व महलों का स्वामी होता है। घर के बाहर बगीचा, जलाशय एवं सुंदर कलात्मक ढंग से भवन बना होता है।
8. बिना प्रयत्न ग्रह प्राप्ति का दूसरा योग:
निष्पत्ति- चतुर्थ भाव का स्वामी उच्च, मूल त्रिकोण या स्वग्रही हो तथा नवमेंश केंद्र मेंं हो तो ये योग बनता है।
परिणाम- ऐसे जातक को बिना प्रयत्न के घर मिल जाता है।
9. ग्रहनाश योग:
निष्पत्ति- चतुर्थेश के नवमांश का स्वामी 12वें चला गया हो तो, यह दोष बनता है।
परिणाम- ऐसे जातक को अपनी स्वयं की संपत्ति व घर से वंचित होना पड़ता है।
10. उत्तम कोठी योग:
निष्पत्ति- चतुर्थेश और दशमेंश एक साथ केंद्र त्रिकोण मेंं हो तो उत्तम व श्रेष्ठ घर प्राप्त होता है।
परिणाम- कोठी, बड़ा मकान व संपत्ति प्राप्ति होती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखकर यह बताया जा सकता है कि उसके पास स्वयं का घर होगा या नहीं या फिर वह कितने मकानों का मालिक होगा। मनुष्य जीवन में एक ड्रीम हॉउस / स्वप्न महल / सुंदर सा एक बंगला बने न्यारा, ऐसी प्राय: सभी की इच्छा रहती है। कुछ भाग्यवानों को यह सुख कम आयु में ही प्राप्त हो जाता है। तो कुछेक लोग पूरी जिंदगी किरायेदार होकर ही व्यतीत कर देते है। पूर्व जन्म के शुभाशुभ कर्मो के अनुसार ही भवन सुख की प्राप्ति होती है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार भवन सुख हेतु कुण्डली मे चतुर्थ भाव व चतुर्थेश का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी भवन पर ग्रहों का भी शुभाशुभ प्रभाव अवश्य पड़ता है। लाल किताब के अनुसार वास्तु संबंधी दोषों के निवारण के बारे में इस लेख में उल्लेख है। लाल किताब में वास्तु अर्थात भवन या मकान का कारण ग्रह शनि है। किसी की जन्मकुंडली में शनि उच्च का हो तो उसे भवन सुख मिलता है। इसके विपरीत शनि, नीच, अस्त या क्षीण शत्रु ग्रहों से युक्त हो तो जातक को मकान सुख से वंचित रखता है।
किसी भी जन्मकुंडली में भारतीय ज्योतिषानुसार चतुर्थ स्थान मकान कारक माना गया ह।ै लेिकन लाल किताब में मकान का कारक द्वितीय स्थान या दूसरे घर को माना गया है। सातवें भाव से भी भवन के सुख-दुख का विचार किया जाता है। जिस तरह किसी भी जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति दर्शाई जाती है, उसी तरह लाल किताब में भी किसी भी मकान में किस स्थान पर किस ग्रह से संबंधित वस्तु रखने या न रखने से क्या प्रभाव होता है। इसके संकेत दिये गये हैं। लाल किताबनुसार मकान में वस्तुएं निम्न ग्रहों अनुसार रखनी चाहिए। उपरोक्तानुसार ग्रह से संबंधित वस्तुएं, जहां ग्रह की स्थिति दर्शाई गई है उसी स्थान या दिशा में रखने से भवन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। ठीक इसके विपरीत रखने पर खराब प्रभाव मकान पर पड़ेगा। मनुष्य पर ग्रहों का शुभाशुभ प्रभाव पड़ता है और लाल किताब में ग्रहों को जजों की संज्ञा दी गयी है। इसमें भी शनि को मुख्य न्यायाधीश माना गया है अत: शनि का भावानुसार शुभाशुभ फल प्रथम बतलाए जा रहे हैं। किसी भी व्यक्ति द्वारा जब स्वयं का मकान बनाया जाता है तो मकान बनाने के प्रारंभिक 3 से 18वर्षों के दौरान शनि का उस भवन पर शुभाशुभ प्रभाव पड़ता है, जिससे व्यक्ति का जीवन भी प्रभावित होता है।
* लाल किताब के अनुसार जन्मकुंडली में यदि शनि पहले घर में हो और सातवां व दसवां घर खाली हो तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वरना वह लोगों का ऋणी हो जाता है और उसे नुकसान होता है।
* यदि शनि दूसरे स्थान में हो तो व्यक्ति मकान का निर्माण मध्य में न रोकें। ऐसा करने से सुखी रहेगा वरना उप परिणाम भुगतने होंगे।
* यदि शनि तीसरे घर में हो तो व्यक्ति मकान बना लेने के बाद तीन कुश्रे पाले। ऐसा करने से व्यक्ति सुखी रहेगा वरना दुख भोगने होंगे।
* यदि शनि चैथे घर में हो तो व्यक्ति किराए के मकान में रह ले, वही अच्छा है। क्योंकि निजी मकान बनवाने से सास, माँ, मामा, दादी आदि को कष्ट उठाने होंगे।
* यदि शनि पांचवे घर में हो और व्यक्ति निजी मकान बनवाए तो संतान को पीड़ा रहेगी। इसके विपरीत यदि संतान द्वारा निर्मित मकान में रहे तो ठीक होगा। व्यक्ति स्वयं का मकान यदि बनवाए तो 48की उम्र पार करके ही बनवाए। मकान बनवाने से पहले खुदाई के समय या उससे पहले काले भैंसे को खूब खिला-पिलाकर पूजन करके छोड़ दें इसे अशुभ फल नष्ट हो जाएगा।
* यदि शनि छठे घर में हो तो व्यक्ति 36से 39 की उम्र होने पर ही मकान बनावाए अन्यथा बेटी की ससुराल में परेशानी उत्पन्न जो जाएगी।
* यदि शनि सातवें घर में हो तो व्यक्ति मकान बनवाने पर सुखी रहता है तथा वह एक के बाद एक मकान बनाता है या बना हुआ ही खरीदता रहता है। ऐसा तभी होता है जब शनि शुभ हो। वरना अपना भी मकान बेचना पड़ता है। लेकिन मकान के बिकने तक अर्थात सौदा होने के बाद खरीदने वाला आकर रहने लगे, उससे पूर्व तक यदि वह उस मकान की देहली को पूजे तो फिर से मकान बना लेता है।
* यदि शनि आठवें घर में हो, व्यक्ति मकान बनाने लगे तो उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वह कष्ट में रहता है। लेकिन राहु-केतु यदि शुभ हों तो अच्छे फल भी मिलते हैं।
* यदि शनि नवें घर में हो तो व्यक्ति नया मकान बनाना तब प्रारंभ करे जब घर में कोई स्त्री गर्भ से हो। ऐसा व्यक्ति मकान निर्माण में अपना पैसा लगाएगा तो पिता की मौत देखेगा। इसका हल है कि अपना पैसा ऋण चुकाने में उपयोग करें। मकान एक या दो ही बनाएं।
* यदि शनि दसवें घर में हो और व्यक्ति अपना मकान बनाकर रहे तो उसे सुख प्राप्त नहीं होता। अपने मकान में जाते ही वह दरिद्र हो जाता है। इससे अच्छा यही है कि वह किराए के मकान में रहे।
* यदि शनि ग्यारहवें घर में हो तो व्यक्ति बुढ़ापे में मकान बनवाता है।
* यदि शनि बारहवें घर में हो तो व्यक्ति को आयताकार मकान बनवाना शुभ रहेगा। मकान बनवाते समय अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अत: धीरे-धीरे बनवाने में ही फायदा है, लेकिन बनवाता रहे। निर्माण कार्य रोके नहीं।
जातक तत्व के अनुसार ‘‘गृह ग्राम चतुष्टपद मित्र क्षेत्रो।’’ अर्थात भवन सुख हेतु चतुर्थ भाव, चतुर्थेश की कुण्डली में शुभ एवं बलवान होकर स्थित होना जातक को उत्तम भवन सुख की प्राप्ति करवाता है तो निर्बल होकर स्थित होना लाख चाहने पर भी उचित भवन की व्यवस्था नहीं करवा पाता। चतुर्थ भाव में चतुर्थेश होना व लग्न में लग्नेश होने से या दोनों में परस्पर व्यत्यय हाने से एवं शुभ ग्रहो के पूर्ण दृष्टि प्रभाव का होना भी जातक को उत्तम भवन सुख की प्राप्ति करवाता है। मकान/भवन सुख प्राप्ति के कुछ ज्योतिषिय योग -
1. लग्नेश से युक्त होकर चतुर्थेश सर्वोच्च या स्वक्षेत्र में हो तो भवन सुख उत्तम होता है।
2. तृतीय स्थान में यदि बुध हो तथा चतुर्थेश का नंवाश बलवान हो, तो जातक विशाल परकोट से युक्त भवन स्वामी होता है।
3. नवमेश केन्द्र में हो, चतुर्थेश सर्वोच्च राशि में या स्वक्षेत्री हो, चतुर्थ भाव में भी स्थित ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो जातक को आधुनिक साज-सज्जा से युक्त भवन की प्राप्ति होगी
4. चतुर्थेश व दशमेश, चन्द्र व शनि से युति करके स्थित हो तो अक्समात ही भव्य बंगले की प्राप्ति होती है।
5. कारकांश लग्न में यदि चतुर्थ स्थान में राहु व शनि हो या चन्द्र व शुक्र हो तो भव्य महल की प्राप्ति होनी है।
6. कारकांश लग्न में चतुर्थ में उच्चराशिगत ग्रह हो या चतुर्थेश शुभ षष्टयांश में स्थित हो तो जातक विशाल महल का सुख भोगता है।
7. यदि कारकांश कुण्डली में चतुर्थ में मंगल व केतु हो तो भी पक्के मकान का सुख मिलता है।
8. यदि चतुर्थेश पारवतांश में हो, चन्द्रमा गोपुरांश में हो, तथा बृहस्पति उसे देखता हो तो जातक को बहुत ही सुन्दर स्वर्गीय सुखों जैसे घरो की प्राप्ति होती है।
9. यदि चतुर्थेश व लग्नेश दोनों चतुर्थ में हो तो अक्समात ही उत्तम भवन सुख प्राप्त होता है।
10. भवन सुखकारक ग्रहो की दशान्तर्दशा में शुभ गोचर आने पर सुख प्राप्त होता है।
11. चतुर्थ स्थान, चतुर्थेश व चतुर्थ कारक, तीनों चर राशि में शुभ होकर स्थित हों या चतुर्थेश शुभ षष्टयांश में हो या लग्नेश, चतुर्थेश व द्वितीयेश तीनो केन्द्र त्रिकोण में, शुभ राशि में हों, तो अनेक मकानों का सुख प्राप्त होता है। यदि भवन कारक भाव-चतुर्थ में निर्बल ग्रह हो, तो जातक को भवन का सुख नही मिल पाता। इन कारकों पर जितना पाप प्रभाव बढ़ता जाएगा या कारक ग्रह निर्बल होते जाएंगे उतना ही भवन सुख कमजोर रहेगा। पूर्णयता निर्बल या नीच होने पर आसमान तले भी जीवन गुजारना पड़ सकता है। किसी स्थिति में जातक को भवन का सुख कमजोर रहता है, या नहीं मिल पाता इसके कुछ प्रमुख ज्योतिषीय योगों की और ध्यान आकृष्ट करें तो पाते हैं कि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश का रहना प्रमुख है।
इसके अतिरिक्त भवन/मकान प्राप्ति के कुछ ज्योतिषिय योग...
* कारकांश कुण्डली में चतुर्थ स्थान में बृहस्पति हो तो लकड़ी से बने घर की प्राप्ति होती है। यदि सूर्य हो तो घास फूस से बने मकान की प्राप्ति होती है। चतुर्थेश, लग्नेश व द्वितीयेश पर पापग्रहों का प्रभाव अधिक होने पर जातक को अपने भवन का नाश देखना पडता है।
* चतुर्थेश अधिष्ठित नवांशेष षष्ठ भाव में हो तो जातक को भवन सुख नही मिलता। चतुर्थेश व चतुर्थ कारक यदि त्रिक भावो में स्थित हो तो जातक को भवन सुख की प्राप्ति नही होती। शनि यदि चतुर्थ भाव मे स्थित हो तो जातक को परदेश में ऐसे भवन की प्राप्ति होगी, जो टुटा-फूटा एवं जीर्ण-शीर्ण पुराना हो।
* द्वितीय, चतुर्थ, दशम व द्वादश का स्वामी, पापग्रहो के साथ त्रिक स्थान में हो, तो भवन का नाश होता है।
* चतुर्थ भावस्थ पापग्रह की दशा में भवन की हानि होती है। भवन सुख हेतु कुण्डली में इसके अतिरिक्त नवम, दशम, एकादश, पंचम भावो भाव का बल भी परखना चाहिए। क्योकि इन भावो के बली होने पर जातक को अनायाश ही भवन की प्राप्ति होते देखी गई है। इन भावों में स्थित ग्रह, यदि शुभ होकर बली हो व भावेश भी बली होकर स्थित हो तो निश्चयात्मक रूप से उत्तम भवन सुख मिलता है। भवन सुख हेतु बाधक ग्रह का वैदिक उपाय करने पर भवन सुख अवश्य मिलता हैं।
कुछ योग जिनसे आप जान सकते हैं कि आपके भाग्य में कितने मकान हैं-
1- जन्म कुण्डली के चौथे भाव में या चौथे भाव का स्वामी चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) में हो और चौथे भाव का स्वामी शुभ ग्रहों से युत हो तो ऐसा व्यक्ति अनेक भवनों में रहता है और उसे अनेक भवन बदलने पड़ते हैं। यदि चर की जगह स्थिर राशि (वृष, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) हो तो व्यक्ति के पास स्थाई भवन होते हैं।
2. जन्मकुण्डली के चौथे भाव का स्वामी (चतुर्थेश) बली हो तथा लग्न का स्वामी, चौथे भाव का स्वामी, दूसरे भाव का स्वामी इन तीनों में से जितने ग्रह केंद्र-त्रिकोण (1, 4, 5, 7, 10) भाव में हो उतने भवन होते हैं।
3. जन्मकुण्डली में नौंवे भाव का स्वामी दूसरे भाव में और दूसरे भाव का स्वामी नौवें भाव में स्थित हो अर्थात परिवर्तन योग हो तो ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय बारहवें वर्ष में होता है और 32 वें वर्ष के उपरांत उसे वाहन, भवन और नौकर का सुख मिलता है।
भूमि/भवनसुख दायक प्रयोग:
1. यदि आपको लगता है कि आपके पास ही घर क्यों नहीं है? आपके पास ही संपत्ति क्यों नहीं है? क्या इतनी बड़ी दुनिया में आपको थोड़ी सी जगह मिलेगी भी या नहीं, तो परेशान मत होइए केवल कूर्म स्वरुप विष्णु जी की पूजा कीजिये, विष्णु जी की प्रतिमा के सामने कूर्म की प्रतिमा रखें या कागज पर बना कर स्थापित करें। इस कछुए के नीचे नौ बार नौ का अंक लिख दें। भगवान् को पीले फल व पीले वस्त्र चढ़ाएं, तुलसी दल कूर्म पर रखें और पुष्प अर्पित कर भगवान् की आरती करें। आरती के बाद प्रसाद बांटे व कूर्म को ले जा कर किसी अलमारी आदि में छुपा कर रख लें। इस प्रयोग से भूमि संपत्ति भवन के योग रहित जातक को भी इनका सुख प्राप्त होता है
२. सोते समय अपने सिरहाने तांबे के पात्र में जल भरें और उस जल में एक चुटकी रोली एवं एक छोटी डली गुड की रखें। सुबह उठकर उस जल को पीपल के वृक्ष में डाल दें। यह उपाय करने से भवन बाधा समाप्त हो जाएगी
३. शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को आप सांध्यकाल में निकट के किसी भी हनुमान मन्दिर में चमेली के तेल का दीपक और गुग्गुल की धूप के साथ आठ सौ ग्राम साबूत चने एवं सवा सौ ग्राम गुड का नैवेद्य अर्पित कर श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें। इसके पश्चात् हनुमानजी के बायें पैर के सिन्दूर से स्वयं का तिलक करें। नैवेद्य के चने और गुड में से थोडा-थोडा एक स्थान पर निकालकर बाकी को बांट दें। निकाली हुई सामग्री के साथ सवा किलो तथा सवा किलो गुड मिलाकर, चने बन्दरों को खिला दें और गुड गाय को खिला दें। इसके पश्चात् नित्य श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें।
योग निष्कर्ष:
घर का सुख देखने के लिए मुख्यत: चतुर्थ स्थान को देखा जाता है। फिर गुरु, शुक्रऔर चंद्र के बलाबल का विचार प्रमुखता से किया जाता है। जब-जब मूल राशि स्वामी या चंद्रमा से गुरु, शुक्र या चतुर्थ स्थान के स्वामी का शुभ योग होता है, तब घर खरीदने, नवनिर्माण या मूल्यवान घरेलू वस्तुएँ खरीदने का योग बनता है। व्यक्ति के जीवन पुरुषार्थ, पराक्रम एवं अस्तित्व की पहचान उसका निजी मकान है। महंगाई और आबादी के अनुरूप हर व्यक्ति को मकान मिले यह संभव नहीं है। आधी से ज्यादा दुनिया किराये के मकानों मेंं रहती है। कुछ किरायेदार, जबरदस्ती मकान मालिक बने बैठे हैं। कुछ लोगों को मकान हर दृष्टि से फलदायी है। कोई टूटे-फूटे मकानों मेंं रहता है तो कोई आलिशान बंगले का स्वामी है। सुख-दुख जीवन के अनेक पहलुओं पर मकान एक परमावश्यकता बन गई है।
जन्मपत्री मेंं भूमि का कारक ग्रह मंगल है। जन्मपत्री का चौथा भाव भूमि व मकान से संबंधित है। चतुर्थेश उच्च का, मूलत्रिकोण, स्वग्रही, उच्चाभिलाषी, मित्रक्षेत्री शुभ ग्रहों से युत हो या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो अवश्य ही मकान सुख मिलेगा।
साथ ही मंगल की स्थिति का सुदृढ़ होना भी आवश्यक है। मकान सुख के लिये मंगल और चतुर्थ भाव का ही अध्ययन पर्याप्त नहीं है। भवन सुख के लिये लग्न व लग्नेश का बल होना भी अनिवार्य है। इसके साथ ही दशमेंश, नवमेंश और लाभेश का सहयोग होना भी जरूरी है।
1. स्वअर्जित भवन सुख (परिवर्तन से):
निष्पत्ति- लग्नेश चतुर्थ स्थान मेंं हो चतुर्थेश लग्न मेंं हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- इस योग मेंं जन्म लेने वाला जातक पराक्रम व पुरुषार्थ से स्वयं का मकान बनाता है।
2. उत्तम ग्रह योग:
निष्पत्ति- चतुर्थेश किसी शुभ ग्रह के साथ युति करे, केंद्र-त्रिकोण (1, 4, 7, 9, 10) मेंं हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- ऐसे व्यक्ति को अपनी मेहनत से कमाये रुपये का मकान प्राप्त होता है। मकान से सभी प्रकार की सुख सुविधायें होती है।
3. अकस्मात घर प्राप्ति योग:
निष्पत्ति- चतुर्थेश और लग्नेश दोनों चतुर्थ भाव मेंं हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- अचानक घर की प्राप्ति होती है। यह घर दूसरों का बनाया होता है।
4. एक से अधिक मकानों का योग:
निष्पत्ति- चतुर्थ स्थान पर चतुर्थेश दोनों चर राशियों मेंं (1, 4, 7, 10) हो। चतुर्थ भाव के स्वामी पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो एक से अधिक मकान प्राप्ति के योग बनते हैं।
परिणाम- ऐसे व्यक्ति के अलग-अलग जगहों पर मकान होते हैं। वह मकान बदलता रहता है।
5. वाहन, मकान व नौकर सुख योग (परिवर्तन से):
निष्पत्ति- नवमेंश, दूसरे भाव मेंं और द्वितीयेश नवम भाव मेंं परस्पर स्थान परिवर्तन करें तो यह योग बनता है।
परिणाम- इस योग मेंं जन्मेंं जातक का भाग्योदय 12वें वर्ष मेंं होता है। 32वें वर्ष के बाद जातक को वाहन, मकान और नौकर-चाकर का सुख मिलता है।
6. बड़े बंगले का योग:
निष्पत्ति- चतुर्थ भाव मेंं यदि चंद्र और शुक्र हो अथवा चतुर्थ भाव मेंं कोई उच्च राशिगत ग्रह हो तो यह योग बनता है।
परिणाम- ऐसा जातक बड़े बंगले व महलों का स्वामी होता है। घर के बाहर बगीचा जलाशय एवं सुंदर कलात्मक ढंग से भवन बना होता है।
7. बिना प्रयत्न प्राप्ति योग:
निष्पत्ति- लग्नेश व सप्तमेंश लग्न मेंं हो तथा चतुर्थ भाव पर गुरु, शुक्र या चंद्रमा का प्रभाव हो।
परिणाम- ऐसा जातक बड़े बंगले व महलों का स्वामी होता है। घर के बाहर बगीचा, जलाशय एवं सुंदर कलात्मक ढंग से भवन बना होता है।
8. बिना प्रयत्न ग्रह प्राप्ति का दूसरा योग:
निष्पत्ति- चतुर्थ भाव का स्वामी उच्च, मूल त्रिकोण या स्वग्रही हो तथा नवमेंश केंद्र मेंं हो तो ये योग बनता है।
परिणाम- ऐसे जातक को बिना प्रयत्न के घर मिल जाता है।
9. ग्रहनाश योग:
निष्पत्ति- चतुर्थेश के नवमांश का स्वामी 12वें चला गया हो तो, यह दोष बनता है।
परिणाम- ऐसे जातक को अपनी स्वयं की संपत्ति व घर से वंचित होना पड़ता है।
10. उत्तम कोठी योग:
निष्पत्ति- चतुर्थेश और दशमेंश एक साथ केंद्र त्रिकोण मेंं हो तो उत्तम व श्रेष्ठ घर प्राप्त होता है।
परिणाम- कोठी, बड़ा मकान व संपत्ति प्राप्ति होती है।