Thursday 7 July 2016

भ्रष्टाचार के अंत के बाद ही आयेंगे अच्छे दिन......

आज देश के सामने कई प्रकार की समस्यायें हैं जिनके साथ हम रोजाना जूझ भी रहे हैं व उनके साथ जी भी रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या कौन सी है इसको लेकर समाज में अलग-अलग प्रकार के लोगों के अलग-अलग मत हो सकते हैं। अनुभव ऐसा है कि जो जिस समय जिस समस्या से प्रभावित होता है उसके लिए वह उतनी ही बड़ी समस्या बन जाती हैं।
पर मेरे विचार से सबसे बड़ी समस्या वह है जिसे लोग समस्या मानना बन्द कर कर चुकें हैं और उसे अपने जीवन का एक हिस्सा मान कर जीने लगे हैं। और वह है भ्रष्टाचार। इस प्रकार देखा जाय तो भ्रष्टाचार आज देश की सबसे बड़ी समस्या बन गई है जिसे आज आम आदमी सहज ही स्वीकार कर ले रहा है। लेकिन अगर सोचा जाए तो देश में जो भी विकास के कार्य होने है या हुये हैं, केवल भ्रष्टाचार के कारण अच्छे या गुणवत्ता के साथ नहीं हो पाए, जिससे देश साल दर साल पीछे होता गया। अब समाज में इसे गलत नहीं समझा जाता बल्कि जो विरोध करता है उसे बेवकूफ या आदर्शवादी कह कर उसका मजाक बनाया जाता है। कुछ माह पूर्व तक समाज में सभी स्तरों पर व्याप्त भ्रष्टाचार आम चर्चा का विषय भी नहीं था। लोगों ने इसे अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया था- कि यह तो होगा ही या ये सब तो आवश्यक है।
भ्रष्टाचार का यह महारोग अभी पनपा है ऐसा नहीं है, मुगलों के समय में भी भ्रष्टाचार था पर वह आटे में नमक की तरह था। अंग्रेज तो भारत को लूटने ही आये थे इसलिये येन-केन-प्रकरेण अंग्रेजों ने तो हमें लूटा ही। पर आजादी के बाद आये प्रजातन्त्र में यह रूकना चाहिये था पर हुआ उल्टा देश मे पैदा हुये काले अंग्रेजों ने ही हमें लूटा ही नहीं बल्कि देश के भविष्य को भी गर्त में डाल दिया। भ्रष्टाचार की नाली दिन ब दिन चौड़ी होती गई और अब इसने महासागर का रूप ले लिया। कारण देश में प्रजातन्त्र तो आया पर प्रजा की सुनने वाला कोई तन्त्र नहीं बना। अगर देश का राजनैतिक नेतृत्व भ्रष्ट नहीं होता तो प्रजा भी ईमानदार बनी रहती। इन्हीं राजनेताओं ने अपने स्वार्थ के कारण पारदर्शी तन्त्र को बनने नहीं दिया, उल्टे जनता को भी ईमानदार नहीं रहने दिया।
आज हमारे भारत देश में समस्यायों का अम्बार लगा हुआ है, वर्षो की गुलामी ने हमारे दिल और दिमाग पर गहरा असर डाला है। जो हो चुका उसे हम बदल तो नहीं सकते पर क्या उससे सबक लेकर सुधार नहीं कर सकते? क्या वाकई हमारे देश में काबलियत की कमी हो गयी है या फिर हमे समस्याओ में रहने की आदत ही पड़ गयी है और हम सुधार करना ही नहीं चाहत? या फिर हमने मान लिया है की अब इन समस्याओं का कोई समाधान नहीं हो सकता और हमे इनकी आदत डाल लेनी ही होगी? यह बड़ा प्रश्न है।

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