Saturday 23 July 2016

कौन से ग्रह शासक को क्रांतिकारी तानाशाह या लोकतांत्रिक बनाते हैं.........

मनुष्य की जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों के विभिन्न प्रकार के संयोग और बलाबल के अध्ययन से व्यक्ति विशेष के आचरण, आदर्श और सिद्धांत का तथा उनसे किसी देश या राज्य पर पड़ने वाले प्रभाव का बोध हो सकता है, कौन से ग्रह योग शासक को क्रांतिकारी तानाशाह और कौन सुहृदय लोकतांत्रिक बनाते हैं। धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में मनुष्य के चिंतन, दर्शन और कार्यशैली पर आकाशीय ग्रहों की रश्मियों के रुप में कुछ अदृश्य प्रेरणाओं का नियंत्रण होता है, जिससे अनेक प्रकार की विचारधाराओं जैसे - व्यक्तिवाद, आदर्शवाद, समाजवाद, माक्र्सवाद, गांधीवाद और उपयोगितावाद इत्यादि का प्रस्फुटन होता है। मनुष्य की जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों के विभिन्न प्रकार के संयोग और बलाबल के अध्ययन से व्यक्ति विशेष के आचरण, आदर्श और सिद्धांत का तथा उनसे किसी देश या राज्य पर पड़ने वाले प्रभाव का बोध हो सकता है, जिससे उस व्यक्ति के सकारात्मक या नकारात्मक दृष्टिकोण में से सार्थकता की उपज की आशा की जा सकती है। ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार दशम भाव, दशमेश, सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु और शनि की बलवान अवस्था में राजनीतिज्ञों का जन्म होता है। इनमें सर्वप्रथम दशम भाव और इसके स्वामी का बल महत्वपूर्ण होता है, तत्पश्चात अन्य ग्रहों का। सूर्य और चंद्र दोनों शाही ग्रह हैं, जो बली अवस्था में नेतृत्व, अधिकार और सत्ता के कारक होते हैं। सूर्य स्वयं राजा है, जो प्राणियों को अन्न, जल और प्रकाश के रुप में ऊर्जा प्रदान करता है। चंद्र मन का कारक होने के कारण किसी कार्य हेतु व्यक्ति के मन को एकाग्र करता है। मनुष्य का मन अनेक भावनाओं का समुद्र है, जिसमें उसकी अपनी प्रवृत्तियां और इच्छाएं होती हैं, जिनके अनुसार उसकी मानसिकता, व्यवहारिकता और कार्य प्रणाली नियंत्रित होती है। इसलिए चंद्र के माध्यम से मनुष्य के मन का ज्योतिषीय अध्ययन करके उसकी मानसिक शक्ति, प्रवृत्ति और कार्यशैली का बोध हो सकता है तथा किसी कार्य हेतु उसकी विगुणता, न्यूनता या कमियों को दूर करने के उपाय बताये जा सकते हैं। निर्बल चंद्र से मनुष्य का व्यक्तित्व अनेक मानसिक विकृतियों जैसे चिंता, भय, तनाव, द्वेष, ईष्र्या के कारण श्रीहीन होता है, जिसका सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में कोई स्थान नहीं हैं।राजनीतिज्ञ और खिलाड़ियों के लिए मंगल और राहु की ऊर्जा से विरोध, दबाव और तनाव सहने की क्षमता उत्पन्न होती है। मंगल क्रूर, क्षत्रिय और युद्धप्रिय स्वभाव का होता है जिसके संग अत्याचारी, उच्छृंखल और अचानक घटनाओं को उत्पन्न करने वाला, राहु उद्दीपन का कार्य करता है। जब इन दोनों में से किसी एक या दोनों का संयोग मन-कारक किसी ग्रह से होता है तो मनुष्य की वैचारिकता का विध्वंसक रुप मुखरित होने लगता है। अतः जब किसी व्यक्ति की कुंडली के केंद्र भावों में सूर्य, मंगल, शनि और राहु में से दो या तीन का समूह हो, तो ऐसी युति से क्रांतिकारी वैचारिकता का जन्म होता है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक अभिशाप है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति उग्र, उष्ण, उद्विग्न, क्रोधी, अभिमानी, कलहकारी और महत्वाकांक्षी स्वभाव के होते हैं, जिसके कारण वे राजनैतिक क्षेत्र में तानाशाही सिद्ध होते हैं। अर्द्धशताब्दी पूर्व इटली में मुसोलिनी और जर्मनी में हिटलर ऐसे दो घृणास्पद तानाशाही शासक थे, जिनके लिए संपूर्ण विश्व में कोई सम्मान नहीं है। इनकी कुंडलियों का ज्योतिषीय विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इनके लग्न, लग्नेश और चंद्र पर पाप ग्रहों के प्रभाव होने के कारण इन दोनों का स्वभाव क्रांतिकारी मगर ईष्र्यालु, प्रतिकारी, कलहकारी और युद्धप्रिय था, जिसके कारण वे मानवीय सहृदयता के प्रतिकूल कार्य करते थे। वास्तविकता यह है कि कुंडली में उपर्युक्त ग्रह विन्यास से मनुष्य के अंदर असीम शक्ति का संचार होता है। असीमित शक्ति से मनुष्य के आचरण की शालीनता, सात्विकता, सहिष्णुता, विनम्रता और आत्मीयता का क्षरण होने लगता है, जिसके कारण उसकी राक्षसी प्रवृत्ति प्रभावी होने लगती है। परिणामस्वरुप मनुष्य इस शक्ति का सदुपयोग अपने अन्तःकरण की आवाज अर्थात् अपनी प्रज्ञा और अपने विवेक के अनुसार नहीं कर पाता।

No comments: