Wednesday 27 July 2016

शनि सिखाता है धैर्य........

धैर्यवान होना सरल काम नहीं है और यह कहना शायद गलत न हो कि आज की दुनिया मेंं धैर्यवान बनना सबसे कठिन काम हैं। धैर्यवान होना बहुत अच्छी विशेषता है जिसे विकसित होना चाहिए। धैर्यवान बनने के लिए अभ्यास सरल काम नहीं है किन्तु जो लोग धैर्यवान होते हैं उन्हें विभिन्न मार्गों से इसका फल मिलता है। हर व्यक्ति का अपनी दिनचर्या के लक्ष्य होते हैं जो उसके प्रयास का कारण बनते हैं केवल इस अंतर के साथ उद्देश्यों का महत्व एक जैसा नहीं होता। उद्गम से गंतव्य तक पहुंचना सरल काम नहीं होता बल्कि इस बात की संभावना होती है कि लंबे मार्ग मेंं समस्याओं के कारण मनुष्य की रफ़्तार कम या फिर पूरी तरह रुक जाए। यदि व्यक्ति के पास पर्याप्त अनुभव न हो तो संभव है कि वह आरंभिक रुकावटों का सामना होने पर हताश व निराश हो जाए और आगे बढऩे से रुक जाए और इस प्रकार लक्ष्य की प्राप्ति से हाथ उठा ले। किन्तु यदि व्यक्ति के पास पर्याप्त अनुभव हो और वह उद्देश्य तक पहुंचने मेंं सहायता करने वाले तत्वों को पहचानता हो तो इस बात मेंं संदेह नहीं कि उसकी सफलता की संभावना कई गुना बढ़ जाएगी। धैर्य रखने का अर्थ शांति के साथ कदम उठाना और परिणाम की प्रतीक्षा करना है। उतावलेपन का अर्थ तुरंत परिणाम तक पहुंचने की प्रतीक्षा करना है कि यह मनुष्य की बहुत बड़ी कमियों मेंं से एक है। शब्दकोष मेंं धैर्य का अर्थ मन का वह गुण या शक्ति जिसकी सहायता से मनुष्य कष्ट या विपत्ति पडऩे पर भी विचलित या व्यग्र नहीं होता और शान्त रहता है अथवा संकट के समय भी उद्विग्नता, घबराहट, विकलता आदि से रहित होने की अवस्था या भाव व सब्र के साथ प्रतीक्षा करता है, धैर्य क्रिया धरना है। इसलिए धैर्य की आम परिभाषा यह होगी कि ख़ुद को किसी काम के करने मेंं बिना विचलित हुए शांत बने रहना जो लक्ष्य तक पहुंचने मेंं रुकावट या उस तक देर तक पहुंचने का कारण बने। इस परिभाषा के अंतर्गत धैर्य अपने आप मेंं कोई नैतिक गुण नहीं कहलाएगा बल्कि यह एक प्रकार का प्रतिरोध है जो मन पर क़ाबू होने से प्राप्त होता है। यह प्रतिरोध ऐसी स्थिति मेंं नैतिक विशेषता कहलाएगी कि धैर्यवान व्यक्ति का उद्देश्य नैतिक परिपूर्णत: तक पहुंचना और ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करना हो।
धैर्य का अर्थ मन मेंं स्थिरता और शांति तथा समस्याओं व मुसीबतों का मुक़ाबला करने मेंं व्याकुल न होना। इस प्रकार मुक़ाबला करे उसके चेहरे से बेचैनी प्रकट न हो। वह शांत दिखाई दे। अपनी ज़बान से शिकवा न करे और अपने अंगों को गलत काम से रोके। जब तक व्यक्ति मेंं धैर्य न होगा वह उच्च स्थान तक नहीं पहुंच सकता। सांसारिक जीवन मेंं बहुत सी समस्याओं व मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। अनुकंपाओं के पीछे मुसीबत घात लगाए रहती है ताकि वे हाथ से चली जाएं। जो चीज मनुष्य को इन मुसीबतों के गंभीर खतरे से सुरक्षित रखती वह धैर्य व प्रतिरोध है। मनुष्य धैर्य व प्रतिरोध द्वारा न केवल यह कि नकारात्मक तत्वों का मुकाबला करता है बल्कि इसके द्वारा वह अपने लक्ष्य तक पहुंचने मेंं सक्षम हो जाएगा। यही कारण है कि धैर्य को सफलताओं की मुख्य कुंजी कहा गया है।
बड़े बड़े विद्वानों व धर्मगुरुओं के जीवन मेंं जो विशेषता सबसे अधिक झलकती है वह उनका धैर्य था। इसी धैर्य द्वारा वे बड़े बड़े आविष्कार व खोज करने मेंं सफल हुए। चूंकि हर कठिनाई के बाद सुख मिलता है इसलिए जीवन की कठिनाइयों का जब सामना हो तो उसके निदान की आशा के साथ धैर्य रखना चाहिए। इस आधार पर ईश्वर की ओर से मनुष्य को हर कठिनाई के बाद राहत का वादा, उसमेंं कठिनाइयों को सहन करने की क्षमता बढ़ा देगा और उसमेंं धैर्य आ जाएगा। उच्च स्थान की प्राप्ति के धैर्य की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है कि इस मूल्यवान गुण के बिना ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करना संभव नहीं है। जैसा कि ईश्वर बुराई के बदले मेंं भलाई करने और दरियादिली को उन लोगों की विशेषता गिनवाया है जो धैर्यवान हैं। धैर्यवान और ईश्वर पर आस्था एवं उससे भय रखने वालों के सिवा कोई और इस स्थान तक नहीं पहुंचता।
धैर्य की विशेषता यह है कि इसके बिना दूसरे गुणों व मूल्यों का कोई महत्व नहीं रहेगा। यही कारण है कि धैर्यवान बनो कि ईमान के लिए धैर्य का वही स्थान है जो सिर का शरीर के लिए स्थान है। बिना धैर्य के ईमान वैसा ही है जैसे बिना सिर के शरीर का महत्व नहीं है। इस बात मेंं संदेह नहीं कि ईश्वर के निर्णयों पर आस्था और उसे मान लेने से धैर्य मेंं वृद्धि होती है। ईश्वर पर आस्था रखने वाले को इस बात का विश्वास होता है कि ईश्वर अपने की भलाई के सिवा कुछ और नहीं चाहता। इसलिए वह ईश्वर से प्रेम के कारण उसके आदेशों के सामने नतमस्तक और प्रसन्न रहता है। इस बिन्दु विचार योग्य है कि धैर्य का अर्थ हर समस्या व दुख के मुक़ाबले मेंं दृढ़ता दिखाना है। धैर्य का अर्थ अपमान को सहन करना और हार का कारण बनने वाले तत्वों के सामने नत्मस्तक होना कदापि नहीं है जैसा कि कुछ लोग धैर्य का यह अर्थ निकालते हैं। समस्याओं की स्थिति मेंं कई प्रकार के लोग सामने आते हैं। पहला गुट उन लोगों का है जो समस्या के सामने स्वंय को असहाय पाते हैं और रोने-धोने लगते हैं। दूसरा गुट उसका दृढ़ता से सामना करता है। तीसरा गुट वह है जो दृढ़ता से मुक़ाबला करने के साथ साथ ईश्वर का आभार भी व्यक्त करता है और चौथा व अंतिम गुट ऐसे लोगों का है जो कठिनाइयों से निपटने के लिए उठ खड़े होते हैं और उसके नकारात्मक प्रभाव को निष्क्रिय बनाने की योजना बनाते हैं, वह संघर्ष द्वारा समस्या को दूर करने का प्रयास करते हैं। कृष्ण का जीवन सोलह कला-संपूर्ण, राम के व्यक्तित्व की अपेक्षा अधिक लालित्य-ललाम है। वे गोपियों के अंतरंग सखा के रूप मेंं उनके साथ-साथ नृत्य करते हैं, बांसुरी की तान पर उन्हें रचाने की लीला करते हैं, तो संकट के समय गोवर्धन पर्वत को उठाकर संपूर्ण ब्रजमंडल की रक्षा भी करते हैं। यही नहीं युद्ध-भूमि मेंं युद्ध की विभीषिका और भीषण तनाव के बीच भी वे अपने धैर्य को बनाए रखते हैं, और विकट परिस्थितियों के बीच गीता का उपदेश देते हैं. युद्धस्थल पर अपने सखा अर्जुन को दिया गया निष्काम कर्म का उनका उपदेश अनूठा है, जिसमेंं वे न केवल सांसारिक व्यवहार की ऊंच-नीच से अर्जुन को परचाते है, बल्कि विषम परिस्थितियों मेंं अपनी मानसिक एकाग्रता कायम रखने का उदाहरण भी प्रस्तुत करते हैं। कृष्ण का यही गुण उन्हें असाधारण बनाते हुए ईश्वरीय गरिमा से विभूषित करता है।
एक साधु था, वह रोज घाट किनारे बैठ कर चिल्लाया करता था- जो चाहोगे सो पाओगे, जो चाहोगे सो पाओगे। बहुत से लोग वहां से गुजरते थे, लेकिन कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीं देता। सब उसे एक पागल आदमी समझते थे। एक दिन एक युवक वहां से गुजरा और उसने साधु की आवाज सुनी- जो चाहोगे सो पाओगे, जो चाहोगे सो पाओगे। आवाज सुनते ही वह उसके पास चला गया। उसने साधु से पूछा, ‘महाराज आप बोल रहे थे कि जो चाहोगे सो पाओगे, तो क्या आप मुझे वो दे सकते हैं, जो मैं चाहता हूं?’ साधु उसकी बात सुन कर बोला, ‘हां बेटा, तू जो कुछ भी चाहता है, मैं वह जरूर दूंगा। बस तुम्हें मेंरी बात माननी होगी। पहले यह तो बताओ कि तुम्हें आखिर चाहिए क्या?’ युवक बोला, ‘मैं हीरों का बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूं।’ साधु बोला, ‘कोई बात नहीं। मैं तुम्हें एक हीरा और एक मोती देता हूं। उससे तुम जितने भी हीरे-मोती बनाना चाहोगे, बना पाओगे और ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुए कहा, ‘पुत्र, मैं तुम्हें दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं, लोग इसे ‘समय’ कहते हैं। इसे तेजी से अपनी मु_ी मेंं पकड़ लो और इसे कहीं मत गंवाना। तुम इससे जितने चाहो, उतने हीरे बना सकते हो।’ युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि साधु उसकी दूसरी हथेली पकड़ते हुए बोला, ‘पुत्र, इसे पकड़ो, यह दुनिया का सबसे कीमती मोती है। लोग इसे ‘धैर्य’ कहते हैं। जब कभी समय देने के बावजूद परिणाम न मिले, तो इस मोती को धारण कर लेना। याद रखना, जिसके पास यह मोती है, वह दुनिया मेंं कुछ भी प्राप्त कर सकता है।’
ज्योतिष मेंं शनि ग्रह को सुस्त या धैर्य के साथ चलने वाला ग्रह माना जाता है, शनि ग्रह मनुष्य के धैर्य, साहस और जीवटता की कड़ी परीक्षा लेता है। शनि जिस मनुष्य की राशि मेंं प्रभावी होता है उसके जीवन मेंं अत्यधिक कष्ट एवं सहायता भी हो सकती है। शनि किसी भी जीवन यात्रा मेंं बाधक बन सकता है तो किसी के जीवन मेंं सहायक भी हो सकता है। कठिन परीक्षा जिसकी राशि मेंं शनि का प्रभाव होता है ऐसे मनुष्य को अधिक कठिनाइयों एवं चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन इसका सत्परिणाम यह है कि मनुष्य कठिनाइयों का सामना करते-करते अत्यंत कुशल, सशक्त एवं मजबूत बन जाता है। ऐसे व्यक्ति की राशि मेंं जब शनि का प्रभाव समाप्त हो जाता है तो उसकी प्रगति और सफलता की गति अत्यधिक बढ़ जाती है। जिसे बाधाओं मेंं कांटों भरे रास्ते पर चलने का अनुभव हो ऐसा व्यक्ति बाधा रहित मार्ग पर बड़ी तीव्रता से प्रगति एवं सफलता प्राप्त करता है। नैतिक जीवन ही समाधान है सात्विक, पवित्र एवं नैतिक जीवन जीने वाला व्यक्ति यदि कठोर परिश्रम पूर्वक जीवन व्यतीत करता है तो उसके जीवन मेंं शनि के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त रहता है। मनुष्य के कर्मफल, संस्कार एवं ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव मिलकर जीवन को प्रभावित तो करते हैं किंतु पूरी तरह नियंत्रित नहीं कर सकते। मनुष्य के पास प्रचंड शक्तिशाली चेतना या आत्मा होती है। मनुष्य अपने कर्मों से अपना भाग्य गढ़ता है। अपने पूर्व कर्मों से ही मनुष्य का वर्तमान बना है तथा वर्तमान के कर्मों से ही उसका भविष्य निर्धारित होगा। सर्वशक्तिमान मनोबलनिष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि यदि राशि मेंं शनि का प्रभाव है तो भी मनुष्य को मन मेंं कोई भय या शंका नहीं लाना चाहिए। राशि मेंं शनि का प्रभाव हो तो मनुष्य को निर्भय होकर और भी अधिक कड़ा परिश्रम करना चाहिए। मनुष्य यदि ठान ले तो वह हर कठिनाई और चुनौति का सामना सरफलतापूर्वक कर सकता है। आत्मबल, मनोबल, इच्छा शक्ति एवं आत्मविश्वास जैसी महान शक्तियां हैं, जिनके बल पर दुर्भाग्य एवं ग्रहों के प्रभाव आदि का सामना सफलता पूर्वक कर सकता है। जीवन मेंं अनुशासित जीना और रहना सीख लेते हैं, वे लोग अपने जीवन मेंं कठिनाइयों और बाधाओं को हंसते-हंसते पार कर जाते हैं। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मेंं अनुशासन का महत्व है। अनुशासन से धैर्य और समझदारी का विकास होता है। समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। इससे कार्य क्षमता का विकास होता है तथा व्यक्ति मेंं नेतृत्व की शक्ति जाग्रत होने लगती है। इसलिए हमें हमेंशा अनुशासनपूर्वक आगे बढने का प्रयत्न करना चाहिए, जो धैर्यवान बनकर ही आ सकता है. हाथ की उंगलियां एवं हथेली मेंं स्थित विभिन्न ग्रहों के पर्वत व्यक्ति के विचारों एवं भावनाओं को दर्शाते हैं। मनुष्य के विचार एवं भावनाएं सत्व, राजस एवं तमस गुणों का मिश्रण होते हैं। सत्व गुण की मुख्य विशेषता ज्ञान एवं सहनशीलता है। अन्य विशेषताएं करुणा, विश्वास, प्रेम, आत्म-नियंत्रण, समझ, शुद्धता धैर्य, और स्मृति हैं। मनुष्य के विचारों मेंं किस गुण की प्रधानता है इसका निर्धारण उस मनुष्य की हाथ के हथेलियों में स्थित विभिन्न ग्रहों के पर्वत एवं उंगलियों को देखकर किया जा सकता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार हाथ की हथेली को मुख्यत: तीन भागों में विभाजित किया जाता है। ये तीन भाग सत्व, राजस एवं तमस गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हथेली के अग्र भाग में स्थित गुरु, शनि, सूर्य एवं बुध के पर्वत जो कि क्रमश: तर्जनी, मध्यमा, अनामिका एवं कनीष्टिका उंगलियों के ठीक नीचे स्थित होते हैं, जो मनुष्य के सात्विक गुणों को दर्शाते है। जिस ग्रह का पर्वत जितना उभरा हुआ होगा व्यक्ति मेंं उस ग्रह से संबन्धित गुण उतने ही अधिक होंगे। हाथ की उंगलियों की स्थिति जिस व्यक्ति की पूर्ण रूप से व्यस्थित होती है वे व्यक्ति जीवन मेंं बहुत सफल होते हैं। लंबी एवं पतली उंगलियों वाले व्यक्ति भावुक होते हैं जबकि मोटी उंगलियों वाले व्यक्ति मेंहनती होते हैं। जिन व्यक्तियों की उंगलियां कोण के आकार की होती हैं वे अत्यधिक संवदेनशील होते हैं तथा अपनी वेषभूषा एवं सौन्दर्य का विशेष ध्यान रखते हैं। जिन व्यक्तियों की उंगलियां ऊपर से नुकीली होती हैं वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के होते हैं तथा इनकी कल्पना शक्ति अद्भुत होती है। स्वभाव से ये नम्र और धैर्यवान होते हैं।

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