Monday 18 July 2016

आलस्य देता है राहु -ज्योतिष्य विश्लेषण

आलस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रं, अमित्रस्य कुतो सुखम्।।
व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु है आलस्य, अकर्मण्यता ... जो पुरुषार्थ नहीं करता उसे संसार में कुछ नही मिलता.. आलस्य और दुर्भाग्य एक ही वस्तु के दो नाम हैं। जो आलसी है, न श्रम का महत्व समझता है, न समय का मूल्य ऐसे मनुष्य को कोई सफलता नहीं मिल सकती। सौभाग्य का पुरस्कार उनके लिए सुरक्षित है, जो उसका मूल्य चुकाने के लिये तत्पर हैं। यह मूल्य कठोर श्रम के रूप में चुकाना पड़ता है। कभी कभार आलस्य आ जाए तो कोई दोष की बात नहीं कि यह स्वाभाविक मामला है कि शरीर को कभी कभी विश्राम की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन दोष की बात यह है कि आलस्य एक इनसान की पहचान ही बन जाए। अगर ज्योतिष से देखा जाए तो किसी भी व्यक्ति के लग्न, तीसरे अथवा एकादश स्थान में राहु हो तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति आलसी प्रवृत्ति का होता है। अतः राहु की शांति कराकर जीवन में आत्मनियंत्रण करने से आलस्य की परेशानी से बचा जा सकता है। 

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