Sunday 24 July 2016

भाग्य का उदय

भाग्य के साथ देने पर व्यक्ति का पुरूषार्थ भी सफल होता है। एक स्वस्थ, सुशिक्षित, धनी, सुशील पत्नी तथा पुत्रों सहित सुखी जीवन का आनंद लेते व्यक्ति को देखकर सभी उसे भाग्यशाली कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपना भाग्य (भविष्य) जानने के लिए उत्सुक रहता है। भाग्य व्यक्ति के प्रारब्ध (पिछले जन्म के कर्मफल) को दर्शाता है। जन्मकुंडली के नवम् भाव को भाग्य स्थान माना गया है। नवम् भाव से भाग्य, पिता, पुण्य, धर्म, तीर्थ यात्रा तथा शुभ कार्यों का विचार किया जाता है। नवम भाव कुंडली का सर्वोच्च त्रिकोण स्थान है। उसे लक्ष्मी का स्थान माना गया है। नवम भाव, एकादश (लाभ) भाव से एकादश होने के कारण ‘लाभ का लाभ’, अर्थात जातक के जीवन की बहुमुखी समृद्धि दर्शाता है। ‘मानसागरी’ ग्रंथ के अनुसार:- ‘‘विहाय सर्वं गणकैर्विचिन्त्यो भाग्यालयः केवलमन्न यलात्।’’ अर्थात्’ ‘‘एक ज्योतिषाचार्य को दूसरे सब भावों को छोड़कर केवल नवम् भाव का यत्नपूर्वक विचार करना चाहिए, क्योंकि नवम् भाव का नाम भाग्य है। जब नवम भाव अपने स्वामी या शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो मनुष्य भाग्यशाली होता है। नवमेश भी शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो सर्वदा शुभकारी होता है। यदि पाप ग्रह भी अपनी, मित्र, मूल त्रिकोण अथवा उच्च राशि में नवम् भाव में स्थित हो तो अपने बलानुसार शुभ फल देता है। जैसे शनि भाग्येश होकर भाग्य भाव में स्थित हो तो जातक जीवन पर्यन्त भाग्यशाली रहता है। (भाग्य योग करें सौरे स्थिते च जन्मनि। - मानसागरी)। लग्नेश यदि भाग्य भाव में स्थित हो तब भी जातक परम भाग्यशाली होता है। बृहस्पति नवम भाव का कारक ग्रह है। जब बलवान बृहस्पति नवम भाव में हो, या लग्न, तृतीय अथवा पंचम भाव में स्थित होकर नवम् भाव पर दृष्टिपात करें तो विशेष भाग्यकारक होता है। नवम भाव में सुस्थित बृहस्पति यदि शुक्र और बुध के साथ हो तो पूर्ण शुभ फलदायक होता है। परंतु इन पर शनि, मंगल व राहु की दृष्टि हो तो आधा ही शुभ फल मिलता है। नवम् भाव व नवमेश निर्बल अथवा पीड़ित हो तो जातक भाग्यहीन होता है। भाग्य भाव पंचम भाव लग्न भाव होता है। अतः उसका स्वामी (लग्नेश) भी भाग्यकारक होता है। ‘भावात् भावम्’ सिद्धांत के अनुसार नवम् से नवम् अर्थात पंचम भाव और पंचमेश भी भाग्यकारक होते हैं। ज्ञातव्य है कि नवम और पंचम (त्रिकोण भाव) को लक्ष्मी स्थान की संज्ञा दी गई है। जब ये तीनों ग्रह (नवमेश, लग्नेश और पंचमेश) बलवान हों तथा शुभ भाव में अपनी स्वयं, उच्च, अथवा मूलत्रिकोण राशि में शुभ दृष्ट हों, तो व्यक्ति जीवन पर्यन्त भाग्यशाली होता है। कारक बृहस्पति का संबंध शुभ फल में वृद्धि करता है। भाग्योदय काल त्रिक भावों (6, 8, 12) के अतिरिक्त अन्य भाव में स्थित नवमेश अपने बलानुसार उस भाव के कारकत्व के फल में वृद्धि करता है। नवमेश, नवम भाव स्थित ग्रह तथा नवम भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों की दशा में भाग्योदय होता है। ‘फलित मार्तण्ड’ ग्रंथ के अनुसार नवमेश, नवम भाव स्थित ग्रह व नवम भाव पर दृष्टिपात करने वाले बलवान ग्रह अपने निर्धारित वर्ष में जातक का भाग्योदय करते हैं। ग्रहों के भाग्योदय वर्ष इस प्रकार हैंः- सूर्य- 22, चंद्रमा- 24, मंगल- 28, बुध-32, बृहस्पति -16 (40), शुक्र-21 (25), शनि-36, राहु-42 और केतु -48 वर्ष। बृहत पाराशर होरा शास्त्र ग्रंथ के अनुसार 1. भाग्य स्थान में बृहस्पति और भाग्येश केंद्र में हो तो 20वें वर्ष से भाग्योदय होता है। 2. यदि नवमेश द्वितीय भाव में और द्वितीयेश नवम भाव में हो तो 32वें वर्ष से भाग्योदय, वाहन प्राप्ति और यश मिलता है। 3. यदि बुध अपने परमोच्चांश (कन्या राशि-150 ) पर और भाग्येश भाग्य स्थान में हो तो जातक का 36वें वर्ष से भाग्योदय होता है। सौभाग्यकारी गोचर 1. जब गोचर में नवमेश की लग्नेश से युति हो, या फिर परस्पर दृष्टि विनिमय हो अथवा लग्नेश का नवम भाव से गोचर हो तो भाग्योदय होता है। परंतु उस समय नवमेश निर्बल राशि में हो तो शुभ फल नहीं मिलता। 2. नवमेश से त्रिकोण (5, 9) राशि में गुरु का गोचर शुभ फलदायक होता है। 3. जब जन्म राशि से नवम्, पंचम या दशम भाव में चंद्रमा आए उस दिन जातक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। उपरोक्त ज्योतिष सूत्रों को दर्शाती कुछ कुंडलियां इस प्रकार हैं:- नवमेश बुध, एकादशेश सूर्य तथा बृहस्पति तृतीय भाव से नवम भाव पर दृष्टिपात कर रहे हैं। योगकारक शनि लग्न में ‘शश’ योग बना रहा है। लग्नेश शुक्र दशमेश चंद्रमा के साथ द्वितीय भाव में है।

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