अक्सर यह सुनने में आता है कि फलां व्यक्ति ने तनाव में आकर आत्महत्या कर ली, किसी ने घर वालो को जहर देकर खुद भी जहर खा लिया, तो कोई छात्र वांछित परीक्षा परिणाम न मिलने से सोसाईड कर लिया. ये सारी चीजें हमेंं एक प्रश्न के सामने ला खड़ा करती हैं. ‘‘क्या तनाव हम पर बहुत ज्यादा दबाव डालता है और क्या हम इसका मुकाबला करने मेंं असमर्थ हैं?’’प्रतीत होता है कि तनाव दुनिया मेंं किसी अन्य चीज से ज्यादा प्रचलित, स्वीकृत, हिंसक और खतरनाक चीज है. कोई तनाव की पहचान कैसे करे और इससे कैसे निपटे? हालांकि तनाव का मुकाबला करने के लिए कई तरह के कौशल हम विकसित कर सकते हैं लेकिन उन सब मेंं ध्यान सबसे उपर है. ध्यान करने के लिए एक शर्त आवश्यक है और वह है जागरूकता. अगर कोई अपने तनाव के प्रति सचेत नहीं है और इससे मुकाबला करने मेंं किसी प्रकार की कमी है, तो वह बैठकर ध्यान कैसे कर सकता है? हम अपनी दैनिक दिनचर्याओं मेंं कई गहरे तनाव से गुजरते हैं जिससे हम पूरी तरह अंजान रहते हैं और जिससे हम पीडि़त होते हैं. और जिस भी तनाव से हम पीडि़त होते हैं, उसका मूल स्थान हमारा रिश्ता, हमारा काम, हमारा एक दूसरे से बातचीत करना, हमारा सपना, हमारी महत्वकांक्षा, हमारा बैंक बैलैंस, लोन और मॉर्गिज या हमारे शौक और जुनून नहीं है बल्कि हमारी सोच है. तनाव हमारी सोच मेंं बसता है. अगर हम तनाव को परिभाषित करें तो यह घटनाओं, परिस्थितियों और लोगों के प्रति हमारी प्रतिक्रिया है. बाहरी दुनिया केवल एक ट्रिगर का काम करती है और हमारा तनाव हमारी प्रतिक्रिया को निर्धारित करता है. और ऐसा हो सकता है कि एक के प्रति तनाव का जो कारण हो वही कारण दूसरे के प्रति ना हो. तनाव को प्रभावहीन बनाने के लिए हमेंं अलग-अलग तरीकों का सहारा लेना चाहिए जो पलायनवाद, युक्तिकरण, स्वीकृति, आक्रामकता, सहनशीलता, धैर्य या एक अलग रूप धारण करना हो सकता है.
क्या होता है जब हम अत्यधिक तनाव मेंं होते हैं? जब हम महसूस करते हैं कि हम अवांछित या अप्रिय परिस्थिति का सामना कर रहें हैं तो हमारा शरीर असभ्य लड़ाई या लड़ाई की प्रतिक्रिया की मुद्रा मेंं चला जाता है और हमारे शरीर मेंं ऐसे हार्मोंस का स्राव होता है जो लडऩे के लिए या उस परिस्थिति से भाग जाने के लिए उकसाता है. लेकिन अब ज्यादातर तनाव हमेंं अपने डेस्क के सामने बैठे-बैठे हो जाता है और हमारे पास कुछ भी ऐसा नहीं होता जिससे हम भाग सकें या लड़ सकें. हालंकि ये शक्तिशाली हार्मोंस हमारी कोशिकाओं और उत्तकों पर अपना प्रभाव दिखाते हैं और समय के साथ उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं. इसके कारण हमारे कई अंग जैसे दिल, दिमाग, किडनी, पेट, आंत और अन्य अंग कई बिमारियां के चपेट मेंं आ जाती हैं.
तनाव से लडऩे का सबसे अच्छा तरीका क्या है? तनाव से लडऩे का कौशल हम सब के अंदर है लेकिन इसकी तुलना आज कल पैसों से की जा रही है. जब भी हम तनाव मेंं होते हैं, हम उससे बाहर आने के लिए कुछ पैसे खर्च कर देते हैं. इन पैसों को प्यार, हंसी, अच्छे संबंध, आनंदायक काम कर, अपने दिल का अनुसरण कर और जीवन के प्रति भावुकता से बदला जा सकता है. इसे संगीत, अध्ययन, अच्छे विचार, प्रार्थना और ध्यान के द्वारा परिपूर्ण किया जा सकता है. इन सबसे अधिक जिस चीज की आवश्यकता होती है वह है जागरूकता. हमारे शरीर, दिमाग, सोच, एहसास, शरीर के दर्द और तकलीफ की जागरूकता असामान्य नींद और भूख का अनुभव कराती है और ये सब तनाव के संकेत हैं. हमेंं स्थिति को शांत करने के लिए बैठकर इसका आत्मविश्लेषण करना चाहिए, इससे पहले कि काफी देर हो जाए. जरा इसके अध्यात्मिक पहलू पर भी ध्यान दें कि अगर हमारे कर्मबंधन में कष्ट भागना लिखा है तो हजार जन्म लेकर भी हमें हमारे किये गये पापों के हिसाब से कष्ट भोगना ही होगा. हम आत्महत्या करके दुख, तकलीफ , लोक-लज्जा, यश-अपयश या किसी रोग से पीछा नहीं छुड़ा सकते. अभी आत्महत्या करके मर जाएंगे तो अगले जन्म में काटने पड़ेंगे. इसके बाद फिर से जन्म, फिर से दुख, कष्ट, रोग और संताप। इसके लिए सबसे अच्छा रास्ता यही है कि अच्छे कर्म करके और अपने दायित्वों को निभाते हुये अपने पुराने पाप का प्रायश्चित करें, और धीरे-धीरे पुण्य करके पापों को काटें। सद्कर्म करें और फिर देखिये आपको सुख मिलना प्रारंभ हो जाएगा. और आगे भी कर्म अच्छे रहे तो निश्चित तौर पर स्वर्ग मिल जाएगा जिससे बार बार पृथ्वी में जन्म लेकर कष्ट भोगने की तकलीफ भी न रहेगी.
इतना मजबूर क्यूँ????
क्यों आत्महत्या या आत्महत्या की धमकी एक विकल्प का काम कर रही है? कभी-कभी असफल होने का भय लोगों को मरने पर मजबूर कर देता है. बौद्धनन सांग्ये खाद्रो कहती हैं कि जीवन की परेशानियों से निपटने का यह सही तरीका नहीं है. वो उन बौद्धों की बात करती हैं जिन्होंने बुद्ध के समय मेंं अपने जीवन को खत्म कर दिया था. ‘‘बुद्ध के कुछ अनुयायी पीड़ा पर ध्यान कर रहे थे और इस बात पर चिंतन कर रहे थे कि दुनियां मेंं इतना दुख कैसे है. वो इस चिंतन से निराशा मेंं चले गये और उन्होंने आत्महत्या कर ली. बुद्ध कहते हैं कि यह सही तरीका नहीं है. आप खुद को मारकर इस पीड़ा से मुक्ति नहीं पा सकते हैं.’’ खाद्रों कहती हैं कि आत्महत्या को किसी भी समस्या का एक कुशल समाधान नहीं माना जा सकता है क्योंकि बौद्धों का मानना है कि भले ही हम मर जाये पर इससे हमारा अस्तित्व खत्म नहीं हो जाता. यह केवल इस जीवन का अंत है, पर हमारे दिमाग और चेतना के रूप मेंं यह अस्तित्व जीवित रहेगी क्योंकि फिर से हम एक दूसरे जीवन मेंं प्रवेश करेंगे. कर्म के परिणामस्वरूप जिस भी पीड़ा का अनुभव हमने किया है उसका सृजन हमने इस जीवन और बीते हुए जीवन दोनों मेंं किया है. इस कर्म से मुक्त होने के लिए हमेंं आध्यात्मिक अभ्यास की आवश्यकता है ना कि आत्महत्या की.
वह कहती हैं, ‘‘हम अपने कर्म को आध्यात्मिक अभ्यास और ध्यान से शुद्ध कर सकते हैं. कर्म को समाप्त करने के लिए खुद को मारना आवश्यक नहीं है. कर्म जिससे आप पीडि़त हैं वो इस जन्म और अगले जन्म दोनों मेंं हमेंशा आपके साथ रहेगा. हो सकता है आपका अगला जीवन इससे भी ज्यादा पीड़ादायी हो.’’ खाद्रो के अनुसार हमेंं अपने जीवन को संजोना चाहिए और इसका पोषण करना चाहिए. वह कहती हैं, ‘‘आप बुजुर्ग तिब्बती पुरुषों और महिलाओं मंत्र जाप करते, प्रार्थना के मालाओं को घुमाते हुए और स्तूप के चारों ओर चक्कर लगाते देख सकते हैं. अगर आप सच मेंं बूढ़े हैं तो आप भी यही अभ्यास कर सकते हैं. इसका मूल ज्यादा से ज्यादा दिनों तक जीवित रहना है और इस राह को अपनाकर आप अच्छे कर्म कर सकते हैं और अपने बुरे कामों को शुद्ध कर सकते हैं.’’
क्या होता है जब हम अत्यधिक तनाव मेंं होते हैं? जब हम महसूस करते हैं कि हम अवांछित या अप्रिय परिस्थिति का सामना कर रहें हैं तो हमारा शरीर असभ्य लड़ाई या लड़ाई की प्रतिक्रिया की मुद्रा मेंं चला जाता है और हमारे शरीर मेंं ऐसे हार्मोंस का स्राव होता है जो लडऩे के लिए या उस परिस्थिति से भाग जाने के लिए उकसाता है. लेकिन अब ज्यादातर तनाव हमेंं अपने डेस्क के सामने बैठे-बैठे हो जाता है और हमारे पास कुछ भी ऐसा नहीं होता जिससे हम भाग सकें या लड़ सकें. हालंकि ये शक्तिशाली हार्मोंस हमारी कोशिकाओं और उत्तकों पर अपना प्रभाव दिखाते हैं और समय के साथ उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं. इसके कारण हमारे कई अंग जैसे दिल, दिमाग, किडनी, पेट, आंत और अन्य अंग कई बिमारियां के चपेट मेंं आ जाती हैं.
तनाव से लडऩे का सबसे अच्छा तरीका क्या है? तनाव से लडऩे का कौशल हम सब के अंदर है लेकिन इसकी तुलना आज कल पैसों से की जा रही है. जब भी हम तनाव मेंं होते हैं, हम उससे बाहर आने के लिए कुछ पैसे खर्च कर देते हैं. इन पैसों को प्यार, हंसी, अच्छे संबंध, आनंदायक काम कर, अपने दिल का अनुसरण कर और जीवन के प्रति भावुकता से बदला जा सकता है. इसे संगीत, अध्ययन, अच्छे विचार, प्रार्थना और ध्यान के द्वारा परिपूर्ण किया जा सकता है. इन सबसे अधिक जिस चीज की आवश्यकता होती है वह है जागरूकता. हमारे शरीर, दिमाग, सोच, एहसास, शरीर के दर्द और तकलीफ की जागरूकता असामान्य नींद और भूख का अनुभव कराती है और ये सब तनाव के संकेत हैं. हमेंं स्थिति को शांत करने के लिए बैठकर इसका आत्मविश्लेषण करना चाहिए, इससे पहले कि काफी देर हो जाए. जरा इसके अध्यात्मिक पहलू पर भी ध्यान दें कि अगर हमारे कर्मबंधन में कष्ट भागना लिखा है तो हजार जन्म लेकर भी हमें हमारे किये गये पापों के हिसाब से कष्ट भोगना ही होगा. हम आत्महत्या करके दुख, तकलीफ , लोक-लज्जा, यश-अपयश या किसी रोग से पीछा नहीं छुड़ा सकते. अभी आत्महत्या करके मर जाएंगे तो अगले जन्म में काटने पड़ेंगे. इसके बाद फिर से जन्म, फिर से दुख, कष्ट, रोग और संताप। इसके लिए सबसे अच्छा रास्ता यही है कि अच्छे कर्म करके और अपने दायित्वों को निभाते हुये अपने पुराने पाप का प्रायश्चित करें, और धीरे-धीरे पुण्य करके पापों को काटें। सद्कर्म करें और फिर देखिये आपको सुख मिलना प्रारंभ हो जाएगा. और आगे भी कर्म अच्छे रहे तो निश्चित तौर पर स्वर्ग मिल जाएगा जिससे बार बार पृथ्वी में जन्म लेकर कष्ट भोगने की तकलीफ भी न रहेगी.
इतना मजबूर क्यूँ????
क्यों आत्महत्या या आत्महत्या की धमकी एक विकल्प का काम कर रही है? कभी-कभी असफल होने का भय लोगों को मरने पर मजबूर कर देता है. बौद्धनन सांग्ये खाद्रो कहती हैं कि जीवन की परेशानियों से निपटने का यह सही तरीका नहीं है. वो उन बौद्धों की बात करती हैं जिन्होंने बुद्ध के समय मेंं अपने जीवन को खत्म कर दिया था. ‘‘बुद्ध के कुछ अनुयायी पीड़ा पर ध्यान कर रहे थे और इस बात पर चिंतन कर रहे थे कि दुनियां मेंं इतना दुख कैसे है. वो इस चिंतन से निराशा मेंं चले गये और उन्होंने आत्महत्या कर ली. बुद्ध कहते हैं कि यह सही तरीका नहीं है. आप खुद को मारकर इस पीड़ा से मुक्ति नहीं पा सकते हैं.’’ खाद्रों कहती हैं कि आत्महत्या को किसी भी समस्या का एक कुशल समाधान नहीं माना जा सकता है क्योंकि बौद्धों का मानना है कि भले ही हम मर जाये पर इससे हमारा अस्तित्व खत्म नहीं हो जाता. यह केवल इस जीवन का अंत है, पर हमारे दिमाग और चेतना के रूप मेंं यह अस्तित्व जीवित रहेगी क्योंकि फिर से हम एक दूसरे जीवन मेंं प्रवेश करेंगे. कर्म के परिणामस्वरूप जिस भी पीड़ा का अनुभव हमने किया है उसका सृजन हमने इस जीवन और बीते हुए जीवन दोनों मेंं किया है. इस कर्म से मुक्त होने के लिए हमेंं आध्यात्मिक अभ्यास की आवश्यकता है ना कि आत्महत्या की.
वह कहती हैं, ‘‘हम अपने कर्म को आध्यात्मिक अभ्यास और ध्यान से शुद्ध कर सकते हैं. कर्म को समाप्त करने के लिए खुद को मारना आवश्यक नहीं है. कर्म जिससे आप पीडि़त हैं वो इस जन्म और अगले जन्म दोनों मेंं हमेंशा आपके साथ रहेगा. हो सकता है आपका अगला जीवन इससे भी ज्यादा पीड़ादायी हो.’’ खाद्रो के अनुसार हमेंं अपने जीवन को संजोना चाहिए और इसका पोषण करना चाहिए. वह कहती हैं, ‘‘आप बुजुर्ग तिब्बती पुरुषों और महिलाओं मंत्र जाप करते, प्रार्थना के मालाओं को घुमाते हुए और स्तूप के चारों ओर चक्कर लगाते देख सकते हैं. अगर आप सच मेंं बूढ़े हैं तो आप भी यही अभ्यास कर सकते हैं. इसका मूल ज्यादा से ज्यादा दिनों तक जीवित रहना है और इस राह को अपनाकर आप अच्छे कर्म कर सकते हैं और अपने बुरे कामों को शुद्ध कर सकते हैं.’’