Friday 24 November 2017

विपत्ति काल में रखें सद्गुण और सद्व्यवहार-

जब भी किसी का समय खराब आता है तो उसके जीवन में सद्संग तथा सद्व्यवहार दोनो कम होते हैं या समाप्त होने लगते हैं। बुरे समय का सबसे पहला असर बुद्धि पर पड़ता है और वह बुद्धि को विपरित करके भले को बुरा व बुरे को भला दिखलाने लगता है। एक सही व सामयिक निर्णय समृद्धि के शिखर पर पहुँचा सकता है तो गलत निर्णय बर्बादी के कगार पर ले जा सकता है। कुशलता का अर्थ ही सही काम, सही ढंग से, सही व्यक्तियों द्वारा, सही स्थान व सही समय पर होना है। निर्णय लेना अनिवार्य है किन्तु सही समय पर सही निर्णय लेना सक्षम व कुशल प्रबंधक का ही कार्य है। इसे हम ज्योतिषीय गणना में कालपुरूष की कुंडली द्वार उसके लग्नेष, तृतीयेष, भाग्येष और एकादषेष द्वारा देख सकते हैं। अगर किसी जातक की कुंडली में ये स्थान उच्च तथा उसके स्वामी अनुकूल स्थिति में हों तो उसके निर्णय सही साबित होते हैं और अगर क्रूर ग्रहों से आक्रांत होकर पाप स्थानों पर बैठ जाये तो निर्णय गलत हो जाता है। किंतु कई बार ऐसे विपरीत बैठे ग्रह दषाओं में लिए गए निर्णय बेहद कष्टकारी साबित होते हैं, जिसे कहा जा सकता है कि विनाष काले विपरीत बुद्धि। जैसे किसी की राहु की दषा प्रारंभ हो रही हो या होने वाली हो तो वह नौकरी छोड़ने या व्यापार करने का निर्णय ले ले, जिसमें हानि की संभावना शतप्रतिषत होती है। अतः किसी को अपनो के विरोध का सामना करना पड़े तो उसे ग्रह शांति जरूर करानी चाहिए।

'स्कंद षष्ठी' विशेष, Skanda Sashti Special !! Astrology Sitare Hamare

Tuesday 31 October 2017

पंचतत्वों और सतोगुण को संतुलित कर पायें सफलता और स्वास्थ्य

जीवन दो चीजों से बना है। एक शरीर दूसरा आत्मा। शरीर पंच तत्वों से बना हैं, जो पंच महाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश) का प्रतिनिधित्व करते हैं और मूलरूप से ये सब हमारे शरीर में बराबर मात्रा में रहने चाहिए। जब इनमें थोड़ी-सी भी गड़बड़ी होती है या किसी एक तत्व में वृद्धि या त्रुटि आ जाने से दूसरे तत्वों में गड़बड़ी आती है, जिससे शरीर में रोग उत्पन्न हो जाते हैं। साथ ही आत्मा सात गुणों से बनी हैं ज्ञान, पवित्रता, प्रेम, शांति, सुख, आनंद, खुशी, शक्ति इसलिए आत्मा को सतोगुणी कहा जाता हैं। लेकिन इन सात गुणों की कमी के कारण काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार, स्वार्थ जैसी चीजे आ जाती हैं। चरक संहित के अनुसार इन्हीं तत्वों के समायोजन से स्वाद भी बनते हैं- मीठा= पृथ्वी+जल, खारा= पृथ्वी+अग्नि, खट्टा= जल+अग्नि, तीखा= वायु+अग्नि, कसैला= वायु+जल, कड़वा= वायु+आकाश।
व्यक्ति बहुत परिश्रम तो करता है लेकिन न ही पञ्च भूतो और न ही सतोगुण को संतुलित करने के लिए कोई प्रयास करता, किसी व्यक्ति में अगर ये दोनों ही असंतुलित हो तो उसे सफलता की प्राप्ति नहीं होती और ना ही वह स्वास्थ्य लाभ ले पाता है. अत: किसी व्यक्ति को सुख, स्वास्थ्य, शांति और समृधि पाने के लिए अपने जीवन में शरीर और आत्मा को शुद्ध करने का कार्य करना चाहिए. इसके लिए ज्योतिष में कुंडली के ग्रहों का सहारा लिया जा सकता है. शरीर तथा आत्मा को स्वस्थ्य रखने के लिए लग्न, तीसरे और पंचम के ग्रहों के साथ ही सूर्य, चन्द्र इत्यादि ग्रहो को मजबूत करना चाहिए इसके लिए जीवन में अनुशासन रखना, लोगो की मदद करना और स्वयं को प्रसन्नचित्त रखना चाहिए. इस हेतु ईश्वर की उपासना करना अथवा ॐ नम: शिवाय का जाप करना, सूक्ष्म जीवो की सेवा करना और सत्संग, स्वाध्याय करना चाहिए.

ग्रहों को मजबूत कर पायें आत्मबल

मनुष्य का सबसे बड़ा संबल उसका आत्मविश्वास ही होता है |आत्मविश्वास वस्तुतः एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति है | आत्मविश्वास एक अद्भुत शक्ति होती है | आत्मविश्वास कम होता है तो इससे हीनभावना जागृत होती है | जिंदगी में कामयाब होने के लिए सबसे जरूरी है आत्मविश्वास | आत्म विश्वास में वह शक्ति है, जो सहस्रों विपत्तियों का सामना कर उनमें विजय प्राप्त करा सकती है | निर्धन का धन, असहाय का सहायक, अशक्त की सामर्थ्य यदि कोई है तो वह उसका आत्म- विश्वास ही हो सकता है | क्यो किसी में आत्मविश्वास कम होता है और किसी में ज्यादा | आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्णय को विकसित कैसें करें, इसे ग्रहों से जानेंगे | किसी भी जातक की कुंडली में लग्न, दूसरे, तीसरे तथा एकादश स्थान के ग्रहों से कर्म और मनोबल को जाना जा सकता है | अगर किसी जातक की कुंडली में लग्न या तीसरा स्थान विपरीतकारक अथवा प्रतिकूल हो जाए | अथवा इस स्थान पर क्रूर ग्रह हो या पाप प्रभाव में हो | जातक के जीवन में आत्मविश्वास तथा आत्मसंयम की कमी के कारण जीवन में सफलता दूर रहती है | इसी प्रकार एकादश स्थान का स्वामी क्रूर ग्रहों से पापक्रांत हो अथवा छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में हो | अनियमित दिनचर्या के कारण समय तथा क्षमता का उपयोग नहीं कर पाते, और आत्मबल कमजोर क्र लेते हैं...
उपाय - मन के लिए मन के कारक ग्रह चंद्रमा का मंत्रजाप ॐ नम: शिवाय का जाप करें ...
-चन्द्र को अर्ध्य देकर दूध का दान करें ..
- अनुशासन रखना चाहिए..
- नावाड मन्त्र का जाप करें...
- तीसरे स्थान के ग्रह अथवा बुध के लिए पन्ना धारण करें ...

धैर्य की कमी कारण होता है कुंडली में



किसी व्यक्ति में सह्नसिलता बहुत होती है तो कई बहुत अधीर होते हैं. कोई व्यक्ति हर कार्य को सावधानी और धीरज से करता है तो कोई इतनी हडबडी में की नुकसान और दुर्घटना हो जाती है. कई बार दुर्घटना स्वयं की ही गलती से होती है या कोई सुरक्षित रहता है वहीं कई लोग चोट खाते ही रहते हैं सामान्य तौर पर इस फंडे को नहीं जाना जा सकता है कि किसी के साथ ही ऐसा क्यों होता है और किसे के साथ नहीं हो सकता? इस बात का ज्ञान ज्योतिष द्वारा लगाया जा सकता है। जब भी किसी की कुंडली में लग्न, दूसरे, तीसरे, एकादश अथवा द्वादश स्थान पर मंगल या केतु हो अथवा इन स्थानों का स्वामी मंगल होकर छठवे, आठवे या बारहवे हो जाए तो ऐसे लोगों को दुर्घटना लगने के योग बनते हैं। वहीं यदि केतु का किसी भी प्रकार से इन स्थानों पर होकर शनि से संबंध बने तो सर्जरी होने के कारण बनते हैं। अतः किसी की कुंडली में इस प्रकार दुर्घटना में शारीरिक हानि या चोट की आशंका बन रही हो तो उसे नियम से तुला दान करना चाहिए, रक्तदान करना भी अच्छा विकल्प है चोट लगने का। साथ ही मंगल की शांति हेतु हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।

स्वयं मूल्यांकन करें कुंडली के ग्रहों से

प्रातः हर मनुष्य में अपने को बड़ा मानने की प्रवृत्ति सहज ही होती है और यह प्रवृत्ति बुरी भी नहीं है। किंतु अकसर अहं स्वयं को सही और दूसरो को गलत साबित करता है। आत्मसम्मान और स्वाभिमान के बीच बारीक रेखा होती है जिसमें अहंकार का कब समावेश होता है पता भी नहीं चलता। कोई कितना भी योग्य हो यदि वह अपनी योग्यता का स्वयं मूल्यांकन करता है तो आदर का पात्र नहीं बन पाता अतः बड़ा बनकर आदर का पात्र बनने हेतु अहंकार का त्याग जरूरी है। अहंकार का अतिरेक किसी जातक की कुंडली से देखा जा सकता है। यदि किसी जातक के लग्न, तीसरे, एकादश स्थान का स्वामी होकर सूर्य, शनि जैसे ग्रह छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में हो जाएं तो ऐसे जातक अहंकार के कारण रिष्तों में दूरी बना लेते हैं वहीं अगर इन स्थानों का स्वामी होकर गुरू जैसे ग्रह हों तो बड़प्पन कायम होता है। अतः यदि लोगों का आपके प्रति सच्चा आदर ना दिखाई दे और आदर का पात्र होते हुए भी आदर प्राप्त न कर पा रहें हो तो कुंडली का आकलन कराकर पता लगा लें कि कहीं जीवन में अहंकार का भाव प्रगाढ़ तो नहीं हो रहा। अथवा सूर्य की उपासना, अध्र्य देकर तथा सूक्ष्म जीवों के साथ असमर्थ की मदद कर अपने जीवन से अहंकार को कम कर जीवन में आदर तथा सम्मान प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ ही जगत गुरू श्री कृष्ण की पूजा करना, गुरू मंत्र का जाप करना, पीले पुष्प एवं पीले वस्त्र का दान चाहिए। बड़ो का आर्शीवाद लेने से भी अहं का नाश होता है और बड़प्पन आता है।

Sitare Hamare Saptahik Rashifal 30 October To 5 November 2017

Sunday 22 October 2017

बेस्ट आप्सन को चुनने के लिए करायें ग्रहों का आकलन

जीवन में हर मोड़ पर कई दिशाएॅ अथवा हर निर्णय के लिए कई आप्सन होते हैं। कई संभावनावों में से एक का चुनाव करना और उसके लिए अनुकूल प्रयासरत होना तथा उसमें सफल होना ही जीवन की सफलता है। जीवन में हमें ईश्वर द्वारा ‘कर्म संकेत’ मिलते हैं। कर्म संकेत यानी कुदरत आपको अपनी भाषा में कहती है कि ‘अब आप इस विषय पर, इस आयाम पर, अपने जीवन के इस पहलू पर कर्म करें।’ जैसे कोई बालक गणित में तो कमजोर होता है किंतु उसका आर्ट बहुत स्ट्रांग होता है किंतु अभिभावक चाहते हैं कि वह इंजिनियर ही बनें किंतु उसकी रूचि एक संगीतकार बनने की होती है और उसे संगीत नहीं सिखाया जाता अब उसे ना तो इंजिनियरिंग में सफलता प्राप्त होती है और ना ही वह अच्छा संगीतज्ञ बन पाता इस प्रकार वह अपने जीवन में असफल होकर हताश होता है। इसी प्रकार कई बच्चे अच्छा खेलते हैं कि माता पिता चाहते हैं कि वह पढ़ाई में ध्यान लगायें। इसी प्रकार कोई जातक अपनी नौकरी की स्थिति से असंतुष्ट होता है तो कोई पारिवारिक। इस प्रकार कहीं ना कहीं कर्म के कहीं फिल्ड या पसंद नापसंद की जानकारी के बिना किए गए कार्य में व्यक्ति हताश और असफल होता है। अस प्रकार कोई भी कर्म संकेत मिलने के बाद ही कर्म शुरू हो जाना चाहिए, तमोगुण मिटाना चाहिए। जो इंसान सही समय पर कर्म संकेत पहचान कर योग्य कर्म शुरू करता है, वही संपूर्ण सफलता, निरोगीकाया तथा समृद्धि प्राप्त करता है। सामान्यतः कर्म संकेत को पहचानना मुश्किल होता है। इसके पहचाने का एक जरिया है ज्योतिषीय ग्रह विश्लेषण। जब किसी की कुंडली में ग्रहों का स्थापन और ग्रहों के गोचर का अध्ययन किया जाता है तो उसके भविष्य में होने वाली लाभ-हानि, स्वास्थ्य, रिश्तों इत्यादि सभी के बारे में पता चलता है अतः जीवन में आगे क्या करना चाहिए? क्या नहीं करना चाहिए इसका निर्धारण करने के लिए अर्थात् कर्म संकेत जानने के लिए ग्रहों के गोचर का विश्लेषण कराना चाहिए। इसके लिए गुरू, बुध और शनि की स्थिति, उस पर राहु जैसे क्रूर ग्रहों का प्रभाव देखना चाहिए। सहीं कर्म संकेत प्राप्त करने के लिए दत्तात्रेय मंत्र का पाठ, गुरूजनों से आर्शीवाद प्राप्त करने हेतु पीले पुष्प, पीले वस्त्र एवं दाल का दान, सूक्ष्म एवं कमजोर लोगो की मदद तथा सेवा करना चाहिए।

विपरीत परिस्थितियों से निपटने के लिए करें ज्योतिषीय समाधान

एक जैसी कठिनाइयां झेलते हुए, एक जैसे दायित्व निभाते हुए, एक जैसी वस्तुएं पसंद या नापसंद करते हुए भी कुछ लोगों में नरमी और सुगम्यता होती है, तो कुछ कठोर और असहिष्णु होते हैं। कुछ प्रफुल्लचित्त होते हैं, तो कुछ उदास रहते हैं। कुछ में आत्मविश्वास होता है, तो कुछ कायर होते हैं। कुछ सब को साथ लेकर चल सकते हैं, तो कुछ ऐसा नहीं कर पाते। इसका ज्ञान सामान्य जीवन में मनुष्य को देखकर नहीं लगाया जा सकता है किंतु किसी व्यक्ति की कुंडली में उसका तीसरा स्थान देखकर इस बात की जानकारी प्राप्त की जा सकती है कि उसका व्यवहार विषेष परिस्थितियों में कैसा होगा। इसके लिए कुंडली में अगर तीसरे स्थान का स्वामी शनि होकर लग्न, तीसरे स्थान में अथवा छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में हो जाए तो ऐसा व्यक्ति विपरीत परिस्थिति में हताष हो सकता है। इसी प्रकार अगर तीसरे स्थान का स्वामी होकर गुरू तीसरे स्थान में ही हो तो ऐसे व्यक्ति को ज्ञान का अभाव हो सकता है अतः ऐसी स्थिति में उसके जीवन में निर्णय क्षमता प्रभावित होती है। इसी प्रकार अगर तीसरे स्थान में राहु हो जाए तो निर्णय में यर्थायवाद की कमी होती है और ऐसे लोग जीवनभर अपनी वर्तमान परिस्थिति का आकलन किए बिना निर्णय लेकर परेषान होते रहते हैं। इसी प्रकार अन्य ग्रह योगो आकलन कर वैयक्तिक गुण का आकलन किया जा सकता है और इसके सामान्य वैदिक उपाय लेकर इन परिस्थिति से आसानी से निकला ला सकता है। इसके लिए ग्रह शांति, मंत्रजाप तथा ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए। अगर बहुत ज्यादा कठिन दौर हो तो बटुक भैरव मंत्र का जाप 18 दिन तक 11 माला करें, तिल के तेल का दीपक जलाकर, जाप पूर्ण करने के उपरांत काली चिटि़यों के लिए आटा-शक्कर का भोग निकाले और मंत्रजाप पूर्ण होने पर जौ, काले तिल तथा कमलगट्टे से पंचआहुति करें, इससे परिस्थितियाॅ अनुकूल होती हैं।

शिक्षा को आजीविकापरक बनाने का ज्योतिषीय उपाय

जीवन का सबसे बड़ा प्रश्न ही रोटी अर्थात रोजगार है, तब हम ऐसी शिक्षा को श्रेष्ठ कह सकते हैं जो इस पहले मोर्चे पर ही असफल साबित हो जाए। निःसंदेह इसका जवाब न में ही हो सकता है। इस आधार और कसौटी पर तौलें तो डिग्री प्राप्त करने से ईतर स्वावलंबन परक शिक्षा की दरकार है। जिस समय नवीन अन्वेषण का समय है। अतः शिक्षा के क्षेत्र में भी कुछ नया करते हुये ऐसी शिक्षा देने का प्रयास करना चाहिए जिससे डिग्री या ज्ञान के साथ-साथ समर्थवान बन सके...
इस वक्त की शिक्षा प्रणाली को इस प्रकार का स्वरूप दिया जाए, जिससे हर मानव चाहे वह छोटा बच्चा हो, चाहे घरेलू महिला या कामकाजी कोई व्यक्ति, सभी को अपने हिस्से की सद्भावना और सहिष्णुता के साथ उसकी जरूरी आवश्यकता को आसानी से पूरा करने की योग्यता दी जा सके... इस समय हम सब को मिलकर एक नयी व्यवस्था की रचना करनी चाहिए। ये रचनात्मकता देश और दुनिया को शामिल करते हुए बड़े पैमाने पर किया जाए जिसमें सभी शामिल हों और सभी को इससे लाभ हो, बिना किसी नुकसान के, और इसके लिए सभी को इसमें शामिल होने की आवश्यता होगी। इसके लिए जब जन्मकुंडली पर नजर डालें तो तृतीयेश, पंचमेश भाग्येश, एकादशेश की स्थिति इसके साथ गुरू, सूर्य, बुध तथा शनि को अनुकूल करते हुए अनुशासन, दैनिकचर्या और नियमितता के साथ एकाग्रता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए, इसके अलावा राहु जैसे काल्पनिक ग्रह जो कि आज के युग की मांग है को अनुकूल करते हुए डिग्री प्राप्त करने के अलावा व्यक्ति की रूचि और व्यक्तित्व को नजर में रखते हुए आजीविका के साधन तैयार करने का प्रयास करना चाहिए। हम सब मिलकर संकल्प करें कि ना सिर्फ सरकार बल्कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति इस दिशा में एक छोटा सा प्रयास जरूर करेगा। व्यवहारिक तथा आत्मनिर्भरता परक शिक्षा एवं बेरोजगारी को कम करने हेतु ना सिर्फ तकनीकी या स्वरोजगार की योजना अपितु ज्योतिषीय गणनाओं का सहारा लेते हुए एक अच्छी शिक्षा व्यवस्था को आधार बनाते हुए रोटी तथा रोजगार मूलक शिक्षा को बढावा दिया जाए तो भविष्य में आने वाली पीढियों को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वालंब तो प्राप्त होगा ही उसके साथ मंहगाई तथा भ्रष्टाचार जैसे राक्षसों से भी निजात पाया जा सकता है।

कषाय है अस्वस्थ्य मन का कारण -जाने कुंडली से कैसे दूर करें इसे

किसी भी जातक के तीसरे स्थान से उसका मन देखा जाता है और ग्रहों में चंद्रमा को मन का कारण ग्रह माना जाता है। अगर किसी भी व्यक्ति में तीसरा स्थान और चंद्रमा विपरीतकारक हो अथवा दूषित हो अथवा पापक्रांत होकर छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर बैठ जाए अथवा तीसरे स्थान पर राहु, शनि जैसे ग्रह हों या चंद्रमा इन ग्रहों से अक्रांत होकर छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर हो जाए तो ऐसे में कषाय उपजता है और मन लगातार नाकारात्मक सोच से भरा रहता है। मानव मन की अशांति और तन की अस्वस्थता का मूलमंत्र कषाय है। कषाय से व्यक्ति का चिन्तन, वाणी और व्यवहार प्रभावित होता है परिणाम स्वरूप विविध शारीरिक, मानसिक व्याधियाँ जन्म लेती हैं। कषाय आत्मा का विकार है, व्यक्ति ंिचता, तनाव, कुण्ठा और मनोरोगों (हायपर टेंशन, डिप्रेशन, ब्लड प्रेशर) से ग्रस्त होता है। सुख और शांति तो जैसे कोसों दूर चले जाते हैं। इन सभी का मूल कारण कषाय है। क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषाय हैं। लोभ के वशीभूत मनुष्य की आकांक्षाएँ बढ़ती जाती हैं, इनकी प्राप्ति के लिए वह माया का सहारा लेता है। आकांक्षाएं पूर्ण होने पर उसे मान होता है, उसमें कोई बाधा हो तो वह क्रोध करता है। किसी कारणवश यदि वह अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति नहीं कर पाता है तो उसे तनाव (टेंशन) होता है या हीन भावना (डिप्रेशन) से ग्रस्त हो जाता है। परिणाम स्वरूप अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोग घर कर लेते हैं। रोग और द्वेष से उत्पन्न क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषाय हैं, जो भाव और विचारों को उत्तेजित कर देते हैं। शारीरिक बीमारियाँ का मूलकारण ही मानसिक तनाव है। मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है कि बीमारियों का असली कारण है मानसिक विकार या भावों का अशुभ होना और चार कषायों को आध्यात्मिक व्याधि कहा है। इस प्रकार कषाय ही अस्वास्थ्य, अमाया और अशांति का कारण है। कषाय को दूर करने के लिए चंद्रमा की शांति हेतु शिव पूजा करनी चाहिए, चंद्र को अध्र्य देकर, किसी योग्य को आहार कराने के उपरांत व्रत का पारण करना, ओं के मंत्र का जाप तथा दूध चावल का दान करना चाहिए। इससे कषाय दूर होता है।

दुख का विलाप ना बनायें पूजा -खुशियों का उत्सव है

जैसे हम जीवन में अच्छे पल को यादगार बनाना चाहते हैं और अपने इन बेहतरीन पल मेें उत्सव करते हैं और अपने लोगों को एकत्रित कर उत्सव मनाते हैं जैसे विवाह, बच्चे का जन्म, दिपावली या होली जैसे त्योहारो का मनाना अथवा जन्मदिन अथवा विवाह की सालगिरह का उत्सव मनाकर खास बनाते हैं और वहीं जब भी हम परेशान या कष्ट में होते हैं अथवा अपने जीवन में असफलता अथवा दुख का सामना कर रहे होते हैं तो पूजा-पाठ या तीर्थयात्रा करते हैं। किंतु कहा गया है कि दुख में सुमरन सब करें सुख में करें ना कोई, जो सुख में सुमरन करें तो दुख काहें को होई। अथार्त यदि हम जीवन में सुख तथा खुशियों में भी समस्त प्रकार की पूजा अथवा यज्ञ करें तो जीवन में कष्ट ही ना हों अतः जब भी आपके जीवन में सुख या कोई खुशियों का पल आये ंतो ईश्वर को धन्यवाद दें और अपने जीवन में कष्ट को दूर रखने हेतु विभिन्न पूजा अथवा यज्ञ करें जिसे आप अपने दुख के समय करने के प्रयोजन करते हैं। इससे आपके जीवन में कभी भी दुख का समावेश नहीं होगा। इस प्रकार आपका कोई भी खास पल हो ईश्वर को याद जरूर करें तथा पूजा करें तो दुख से हमेशा दूर रहेंगे कहा भी गया है कि विपद विस्मरणं विष्णोः सम्पन्नारायणस्मृतिः ॥
विपत्ति यथार्थ में विपत्ति नहीं है, सम्पत्ति भी सम्पत्ति नहीं। भगवान का विस्मरण होना ही विपत्ति है और सदैव उनका स्मरण बना रहे, यही सबसे बड़ी सम्पत्ति है। अतः सुख या संपत्ति के समय ईश्वर याद रहें तो विपत्ति नहीं आयेगी और ईश्वर हमेशा पास रहेंगे। इसके लिए विष्णु की पूजा करना, अन्न का दान करना तथा जरूरतमंदों की सेवा करनी चाहिए।

लगाव और समर्पण है मानव को ईश्वरीय देन

मानवीय शक्तियों में प्रेम को सबसे बड़ी शक्ति माना गया है। प्रेम में मनुष्य का जीवन बदल देने की शक्ति होती है। प्रेम के प्रसाद से मनुष्य की निर्बलता और दरिद्रता, शक्तिमत्ता और सम्पन्नता में बदल जाती है। किसी भी कठोर से कठोर और हृदयहीन व्यक्ति को भी लगाव और समर्पण से बदला जा सकता है। प्रेम मनुष्य जीवन का सर्वश्रेष्ठ वरदान माना गया है। किसी व्यक्ति को लगाव या समर्पण प्राप्त हो तो वह सफल संतुष्ट होता है फिर चाहे जैसी भी परिस्थिति हो, हॅसकर सभी परेशानियों से निजात पाना आसान होता है अगर अपने लोग विश्वास करते हों, लगाव रखते हों और रिश्तों में समर्पण हो तो जीवन सुखमय हो जाता है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में बारह भाव बारह प्रकार के रिश्तों को दर्शाता है तो वहीं जिस भी भाव अथवा रिश्तों से लगाव अथवा समर्पण देखना हो तो उस स्थान को देखना चाहिए। कुंडली के विश्लेषण से...किसी जातक की कुंडली में अगर किसी भी स्थान का स्वामी अपने स्थान छठवे आठवे या बारहवे स्थान पर हो तो उसे स्थान से संबंधित प्रेम की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि किसी वस्तु या व्यक्ति से सुख तथा आनंद की प्राप्ति ही प्रेम है। इसलिए जैसे किसी की कुंडली में दसम स्थान का स्वामी लग्न या भाग्य स्थान से अनुकूल संबंध ना बनाये तो उस व्यक्ति को अपने पिता, बाॅस, कार्य तथा अवसर की अनुकूल प्राप्तियाॅ नहीं होगी जिससे उसे सुख तथा आनंद नहीं प्राप्त होगा अतः यदि दसमेश छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर हो जाए या क्रूर ग्रहों से पापक्रांत हो तो उसे पिता का प्रेम प्राप्त नहीं होगा तथा कार्य का सुख भी प्राप्त नहीं होगा। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति का पंचमेश या सप्तमेश प्रतिकूल हो तो उसे पार्टनर का प्रेम, लगाव और समर्पण प्राप्त होने में बाधा आयेगी। इस प्रकार सुख तथा आनंद की प्राप्ति ही प्रेम है और यदि इसे संपूर्ण तौर पर प्राप्त करना चाहते हैं तो अपनी कुंडली का विश्लेषण कराकर पता करें कि आपके जीवन में किस प्रकार के सुख या प्रेम की कमी है और उस प्रेम को प्राप्त करने के लिए उससे संबंधित ग्रह की शांति जिसमें ग्रह दान, मंत्रजाप तथा रत्न धारण करना चाहिए।

Ahankar ko kaise dur karen ? अहंकार को कैसे दूर करें ? !! Astrology Sita...

Tuesday 17 October 2017

मातामह श्राद्ध

मातामह श्राद्ध अपने आप में एक ऐसा श्राद्ध है जो एक पुत्री द्वारा अपने पिता को व एक नाती द्वारा अपने नाना को तर्पण किया जाता है। इस श्राद्ध को सुख शांति का प्रतीक माना जाता है। पिता के जीवित होने पर भी नाना का श्राद्ध किया जा सकता है.
श्राद्ध विधि -
गरुड़ पुराण के अनुसार इस श्राद्ध के दिन दोपहर के समय पूजा शुरु करनी चाहिए। अग्निकुंड में अग्नि जलाकर या उपला जलाकर हवन करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण या योग्य पंडित की सहायता से मंत्रोच्चारण करने चाहिए। पूजा के बाद जल से तर्पण करना चाहिए। इसके बाद गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए ग्रास (उनका हिस्सा) निकाल देना चाहिए। इन्हें भोजन देते समय अपने पितरों का ध्यान करना चाहिए और मन ही मन उनसे निवेदन करना चाहिए कि आप आएं और यह श्राद्ध ग्रहण करें। पशुओं को भोजन देने के बाद तिल, जौ, कुशा, तुलसी के पत्ते, मिठाई और अन्य पकवान ब्राह्मण को परोस कर उन्हें भोजन कराना चाहिए। भोज कराने के बाद ब्राह्मण को दान अवश्य देना चाहिए।
पितरों का श्राद्ध अगर गया या गंगा नदी के किनारे किया जाए तो सर्वोत्तम होता है। ऐसा ना होने पर जातक घर पर भी श्राद्ध कर सकते हैं। पितृ पक्ष के दौरान जिस दिन पूर्वजों की मृत्यु की तिथि हो उस दिन व्रत करना चाहिए। इस दिन खीर और अन्य कई पकवान बनाने चाहिए। मान्यता है कि जो व्यक्ति नियमपूर्वक श्राद्ध करता है वह पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। पितृ श्राद्ध पक्ष में किए गए दान और श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं और जातक को सदैव स्वस्थ, समृद्ध और खुशहाल होने का आशीर्वाद देते हैं।

पूर्णिमा का श्राद्ध

हमारे यहाँ माना जाता है कि जो व्यक्ति विधिपूर्वक शांत चित्त होकर श्रद्धा के साथ श्राद्धकर्म करते हैं वह सर्व पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होते हैं। ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि ‘देशे काले च पात्रे च श्राद्धया विधिना चयेत। पितृनुद्दश्य विप्रेभ्यो दत्रं श्राद्धमुद्राहृतम॥’ जिस तिथि पर पूर्वजों की मृत्यु हुई थी, उस तिथि पर घरों में विशेष पूजा-अर्चना के साथ नदी, तालाब आदि स्थानों पर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ तर्पण किया जाता है। इसके अलावा पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को दान-पुण्य और भोजन भी कराया जाता है। आज पूर्णिमा 11 बजकर 57 मिनट से शुरू है. अत: आज के दिन 11 बजकर 57 मिनट का श्राद्ध है. इस दिन पूर्णिमा को मृत्यु प्राप्त करने वाले जातकों का श्राद्ध किया जाता है। यह केवल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है। (पूर्णिमा) के श्राद्ध में पिता, पितामह, प्रपितामह, माता, पितामही, प्रपितामही अर्थात् पिता का, पिता के पिता का, इसी प्रकार माता और दादी आदि का भी श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध व तर्पण करते समय तीन पीढ़ी तक के पुरखों का नाम लिया जाता है,
कैसे करें पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म:
आज पूर्णिमा होने से सुगंधित द्रव्य जैसे इलायची केशर और शहद मिलाकर खीर तैयार कर लें। गाय के गोबर के कंडे को जलाकर पूर्ण प्रज्वलित कर लें। उक्त प्रज्वलित कंडे को शुद्ध स्थान में किसी बर्तन में रखकर, खीर से तीन आहुति दें। भोजन में से सर्वप्रथम गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए ग्रास अलग से निकालकर उन्हें खिला दें। इसके पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराएं फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें। पश्चात ब्राह्मणों को यथायोग्य दक्षिणा दें।

कन्या लग्न वाले होते हैं सलीकेदार



आकाश के 150 डिग्री से 180 डिग्री तक के भाग को कन्‍या राशि के नाम से जाना जाता है. जिस जातक के जन्‍म समय में यह भाग आकाश के पूर्वी क्षितिज पर उदित होता दिखाई देता है उस जातक का लग्‍न कन्‍या माना जाता है. कन्या लग्न उत्तराफाल्गुनी (द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ चरण), हस्त नक्षत्र (चारों चरण), तथा चित्रा (प्रथम, द्वितीय चरण) के संयोग से कन्या लग्न बनता है.
कन्‍या लग्‍न की कुंडली के अनुसार मन का स्‍वामी चंद्र एकादश भाव का स्‍वामी होता है. व्यक्ति बौद्धिक रुचि वाले होते हैं। बड़े ही व्यवहार कुशल, मेहनती और सलीकेदार होते हैं। बुध की प्रतिकूल स्थिति इन्हें वाचाल, वहमी, चिढ़चिढ़ा भी बना सकती है। शुभ ग्रह : शुक्र धनेश व नवमेश तथा बुध लग्नेश व दशमेश होकर प्रबल कारक बन जाते हैं। इनकी शुभ स्थिति दशा-महादशा में प्रबल सुखकारक होती है। यदि ये ग्रह अशुभ हों तो इनका उपाय करना चाहिए। इन लोगों का पाचन तंत्र कमजोर होता है अत: खानपान का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए।
अशुभ ग्रह : बृहस्पति, चंद्रमा व मंगल इस लग्न के लिए अति अशु‍भ है। मंगल दशा में मारकेश है अत: इनकी दशा-महादशा में सावधानी रखते हुए योग्य उपाय करते रहना चाहिए। तटस्थ ग्रह : सूर्य और शनि इस लग्न के लिए तटस्थ (निष्क्रिय) ग्रहों का काम करते हैं।
इष्ट देव : गणपति, रत्न : पन्ना, रंग : हरा, सफेद
कन्‍या लग्‍न में बुध लग्‍न और दशवें भाव का स्‍वामी होता है। अत: इस लग्‍न के व्‍यक्तियों को पन्‍ना पहनने से लाभ होता है। बुध की शुभता बढाने के लिए बुधवार को हरे खाद्य पदार्थों का सेवन करें, जैसे मूंग, पालक आदि बुध से उत्पन्न कष्टों में कमी लाने के लिए श्वेतार्क का टुकड़ा बाजू में धारण करें | बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें। बुध का नाम मंत्र – ऊँ बुं बुधाय नम: का मंत्र जाप करने चाहिए. सुबह अथवा शाम किसी भी समय में बुध के मंत्र जाप किए जा सकते हैं.

बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लेते हैं सिंह लग्न वाले जातक

आकाश के 120 डिग्री से 150 डिग्री तक के भाग को सिंह राशि के नाम से जाना जाता है. इस लग्न को अग्नि तत्व राशि की श्रेणी में रखा गया है. सिंह लग्न मघा (चारों चरण), पूर्वा फाल्गुनी (चारों चरण) तथा उत्तरा फाल्गुनी (प्रथम चरण) के संयोग से बनता है. लग्न स्वामी सूर्य होता है. इस राशि की गणना स्थिर राशि में होती है अर्थात इस राशि के प्रभाव में आने वाला व्यक्ति स्थिर रहता है उसे जीवन में टिकाव पसंद होता है. इस लग्न का स्वामी ग्रह सूर्य है जिसे सभी ग्रहों में राजा की उपाधि प्राप्त है. सिंह राशि स्थिर स्वभाव की राशि है इसलिए आपके कार्यों में ठहराव रहेगा और आप बुद्धिमत्तापूर्ण रुप से निर्णय लेगें. सूर्य लग्नेश होकर अति शुभ बन जाता है. सिंह लग्न के लिए दूसरा शुभ ग्रह बृहस्पति होता है. बृहस्पति की मूल त्रिकोण राशि धनु, त्रिकोण स्थान, पंचम में पड़ती है, इसलिए यह ग्रह शुभ ही माना गया है. हालांकि बृहस्पति की मीन राशि अष्टम भाव में पड़ती है लेकिन तब भी इसे शुभ ही माना गया है. मंगल इस लग्न के लिए योगकारी होने से शुभफलदायी होते हैं क्योकि मंगल चतुर्थ व नवम भाव के स्वामी होते हैं. चतुर्थ भाव केन्द्र् माना गया है और नवम भाव त्रिकोण माना गया है. इसलिए मंगल केन्द्र्/त्रिकोण के स्वामी होकर अत्यधिक शुभ बन जाते है.
सिंह लग्न के लिए शनि छठे व सातवें के स्वामी होकर अति अशुभ बन जाते हैं. चंद्रमा द्वादश भाव के स्वामी होकर अशुभ होते हैं. द्वादश भाव को व्यय भाव के रुप में भी देखा जाता है. बुध इस लग्न के लिए धनेश व लाभेश होते हैं अर्थात दूसरे व एकादश भाव के स्वामी होते हैं. बुध इस लग्न के लिए दूसरे भाव के स्वामी होकर मारक बन जाते हैं और साथ ही त्रिषडाय भाव के स्वामी भी होने से और अशुभ हो जाते हैं.
उपाय -
1. सूर्य का रत्न माणिक्य है जन्म कुंडली में सूर्य की स्थिति अनुसार शुद्ध माणिक्य रत्न पंञ्चोपचार पूजन विधि द्वारा प्राण प्रतिष्ठित करके रविवार को सूर्योदय से एक घंटे की अवधि में अपने दायें हाथ की अनामिका उंगली में धारण करें।
2. सूर्य के शुभ फल प्राप्ति हेतु रविवार के व्रत रखना भी अति लाभकारी होता है। व्रत के दौरान मीठा आहार लें। फल, दूध तथा गुड़ द्वारा निर्मित भोजन लें। जब तक सूर्य का समय चले उपवास करते रहें।
3. यथाशक्ति गुड़ तथा गेहूं का दान करें।
4. सूर्य के अत्यंत शुभ फल प्राप्ति हेतु सूर्य के मंत्रों में से किसी एक को सवा लाख जाप करना अत्यंत शुभकारी है।
सूर्य का बीज मंत्र
ऊं ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:
सूर्य को अर्ध्य दें.

Thursday 28 September 2017

माँ सिद्धिदात्री कि पूजा से होती है सिद्धि की प्राप्ति

- आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को ‘महानवमी’ कहा जाता है. इस दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की पूजा विशेष रूप से की जाती है.

  - आदि शक्ति भगवती का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिनकी चार भुजाएँ हैं। उनका आसन कमल है। दाहिनी ओर नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है.
  - यह कमल पर विराजमान रहती हैं। इनके गले में सफेद फूलों की माला तथा माथे पर तेज रहता है। इनका वाहन सिंह है. हिमालय के नंदा पर्वत पर सिद्धिदात्री का पवित्र तीर्थ स्थान है.
  - माँ सिद्धिदात्री सुर और असुर दोनों के लिए पूजनीय हैं.
- देवी सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह आठ सिद्धियां हैं.
  - देवी पुराण के मुताबिक सिद्धिदात्री की उपासना करने का बाद ही शिव जी ने सिद्धियों की प्राप्ति की थी.
  - देवी सिद्धिदात्री की आराधना करने से लौकिक व परलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होती है.
  - मां के दिव्य स्वरूप का ध्यान अज्ञान, तमस, असंतोष आदि से निकालकर स्वाध्याय, उद्यम, उत्साह, कर्त्तव्यनिष्ठा की ओर ले जाता है और नैतिक व चारित्रिक रूप से सबल बनाता है.
  - हमारी तृष्णाओं व वासनाओं को नियंत्रित करके हमारी अंतरात्मा को दिव्य पवित्रता से परिपूर्ण करते हुए हमें स्वयं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति देता है.

पूजन विधि
सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नवान्न का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए। इस प्रकार नवरात्र का समापन करने से इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है. हवन से पूर्व सभी देवी दवाताओं एवं माता की पूजा कर लेनी चाहिए. हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से हवि यानी अहुति देनी चाहिए. बाद में माता के नाम से अहुति देनी चाहिए. दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अतः सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है. देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” से कम से कम 108 बार हवि दें. भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती करनी चाहिए. हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है जाता है उसे समस्त लोगों में बांटना चाहिए.
मंत्र
देवी की स्तुति के लिए निम्न मंत्र कहा गया है-
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेणसंस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र, कवच का पाठ करने से निर्वाण चक्र जाग्रत होता है, जिससे ऋद्धि, सिद्धि की प्राप्ति होती है। कार्यों में चले आ रहे व्यवधान समाप्त हो जाते हैं। कामनाओं की पूर्ति होती है।

कन्या पूजन
नवरात्र के अंतिम दिन महानवमी पर कन्या पूजन का विशेष विधान है। दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन आखरी नवरात्रों में इन कन्याओ को नौ देवी स्वरुप मानकर इनका स्वागत किया जाता है। माना जाता है की इन कन्याओ को देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज से माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती है और अपने भक्तो को सुख समृधि का वरदान देती हैं।

कन्या पूजन विधि
जिन कन्याओ को भोज पर खाने के लिए बुलाना है, उन्हें गृह प्रवेश पर कन्याओ का पुरे परिवार के सदस्य पुष्प वर्षा से स्वागत करे और नव दुर्गा के सभी नौ नामो के जयकारे लगाये। अब इन कन्याओ को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर इन सभी के पैरो को बारी बारी दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथो से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छुकर आशीष लेना चाहिए। उसके बाद पैरो पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए। फिर माँ भगवती का ध्यान करके इन देवी रुपी कन्याओ को इच्छा अनुसार भोजन कराये। भोजन के बाद कन्याओ को अपने सामर्थ के अनुसार दक्षिणा दे, उपहार दे और उनके पुनः पैर छूकर आशीष ले। इनके पूजन से दुःख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है। कन्या पूजन में कन्या की आयु के अनुसार फल प्राप्त होते हैं, जैसे-
1.त्रिमूर्ति- तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। इनके पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।
2.कल्याणी - चार वर्ष की कन्या कल्याणी के नाम से संबोधित की जाती है। कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
3.रोहिणी - पाँच वर्ष की कन्या रोहिणी कही जाती है। इसके पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है।
4.कालिका - छः वर्ष की कन्या कालिका की अर्चना से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है।
5.चण्डिका - सात वर्ष की कन्या चण्डिका के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।
6.शाम्भवी - आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी की पूजा से वाद-विवाद में विजय तथा लोकप्रियता प्राप्त होती है।
7.दुर्गा - नौ वर्ष की कन्या दुर्गा की अर्चना से शत्रु का संहार होता है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।
8.सुभद्रा - दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कही जाती है। सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होता है तथा लोक-परलोक में सब सुख प्राप्त होते हैं।

Tuesday 26 September 2017

माँ कात्यायनी पूजा से पायें भाग्य

“चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी॥“
- महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था, इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं. और नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी आराधना होती है.
- माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है।
- चन्द्रहास नामक तलवार के प्रभाव से जिनका हाथ चमक रहा है, श्रेष्ठ सिंह जिसका वाहन है, ऐसी असुर संहारकारिणी देवी कात्यायनी हैं.
- भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कालिंदी यमुना नदी के किनारे पर जाकर बृज की गोपिकाओं ने भी माँ कात्यायनी की पूजा कि थी.
- मां कात्यायनी देवी की पूजा करती हैं, तो उनके विवाह का योग जल्दी बनता है और योग्य वर की प्राप्ति होती है.
- षष्ठी देवी बालकों की रक्षिता और आयुप्रदा देवी हैं. षष्ठी देवी वंश विकास और रक्षा की देवी हैं. जन्म के छठे दिन मां कात्यायनी देवी भाग्य लिखने आती हैं. मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं. इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है।
माँ कात्यायनी की पूजा विधि -
छठे दिन माँ कात्यायनी जी की पूजा में सर्वप्रथम कलश और गणपति की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें. इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा की जाती है. पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान करें और ओम देवी कात्यायानाई नमः इस मंत्र का जाप 108 बार जाप करें.
देवी कात्यायनी के मंत्र -
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
देवी माँ कात्यायनी स्तोत्र का पाठ और देवी माँ कात्यायनी के कवच का पाठ भक्त को अवश्य रूप करना चाहिए. नवरात्री में देवी माँ दुर्गा सप्तशती पाठ का किया जाना भक्तों के लिए बेहद लाभ दायक सिद्ध होता है।