Friday 20 May 2016

बुधवार को कर्ज नहीं देना चाहिए......

कर्ज चुकाने की स्थिति आदमी को बहुत दुविधा में डाल देती है। कर्ज में डुबे इंसान का मन में रात-दिन सिर्फ उसे चुकाने के लिए तनावग्रस्त रहता है, लेकिन जैसी स्थिति व मुश्किलें कर्ज लेने वाले के लिए होती है कई बार उन्हीं मुसीबतों का सामना कर्ज देने पर भी करना पड़ता है। ऐसे में कई बार कर्ज देने वाले को भी अटके हुए पैसों के कारण आर्थिक तंगी या बिजनेस में नुकसान का सामना करना पड़ता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुध को व्यापार का कारक ग्रह माना गया है। कोई भी व्यक्ति कर्ज देता है तो यह बुध यानी व्यापार के कारक ग्रह का ही प्रभाव होता है। बुध को कार्यक्षेत्र का ग्रह तो माना ही जाता है। साथ ही, इसे नपुंसक ग्रह भी माना गया है। इसी वजह से शास्त्रों द्वारा बुधवार को कर्ज देना वर्जित किया गया है। इस दिन लोन पर बहुत कम परिस्थितियों में कोई व्यक्ति इसे चुका पाता है।
बुध को कर्ज लेने से यह चुका पाना बहुत मुश्किल होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन कर्ज देने पर व्यक्ति के बच्चों तक को इस कर्ज से मुसीबतें उठाना पड़ती हैं। बुधवार को कर्ज देने से पैसा डूबता है और व्यापार में हानि होती है। इसी कारण बुधवार के दिन कर्ज देना अच्छा नहीं माना गया है।कहते हैं सुबह जल्दी भगवान की पूजा करने से मन को शांति मिलती है। जबकि देर से उठने पर दिनभर आलस्य बना रहता है। सुबह जल्दी जागना, स्नान, पूजन आदि का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि दिन के पहले प्रहर में उठकर साधना करना श्रेष्ठ होता है। ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह 3 से 4 के बीच का समय दिन की शुरुआत के लिए सबसे अच्छा होता है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने इस मुहूर्त में ही जागने की परंपरा स्थापित की है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है और आध्यात्मिक शांति के लिए भी। सूर्योदय के पूर्व का और रात का अंतिम समय होने से ठंडक भी होती है। नींद से जागने पर ताजगी रहती है और मन एकाग्र करने के अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते।
इसके विपरीत दोपहर में पूजा इसलिए नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि दोपहर का समय भगवान के विश्राम का होता है। इसलिए उस समय मंदिर के पट बंद हो जाते हैं। साथ ही, सुबह बारह बजे के बाद पूजन का पूरा फल नहीं मिलता है, क्योंकि दोपहर के समय पूजा में मन पूरी तरह एकाग्र नहीं होता है। इसलिए सुबह की गई पूजा का ज्यादा महत्व माना गया है।

अष्टम भावस्थ शनि का विवाह पर प्रभाव



प्राचीन ज्योतिषाचार्यों ने एकमत से जातक की कुंडली के सप्तम भाव को विवाह का निर्णायक भाव माना है और इसे जाया भाव, भार्या भाव, प्रेमिका भाव, सहयोगी, साझेदारी भाव स्वीकारा है। अतः अष्टम भावस्थ शनि विवाह को क्यों और कैसे प्रभावित करता है यह विचारणीय हो जाता है क्योंकि अष्टम भाव सप्तम भाव का द्वितीय भाव है। विवाह कैसे घर में हो, जान - पहचान में या अनजाने पक्ष में हो, पति/पत्नी सुंदर, सुशील होगी या नहीं, विवाह में धन प्राप्ति होगी या नहीं आदि प्रश्न विवाह प्रसंग में प्रायः उठते हैं और यह आवश्यक भी है क्योंकि विवाह संबंध पूर्ण जीवन के लिए होते हैं। इन सब प्रश्नों का उत्तर सप्तम भाव से मिलना चाहिए। परंतु जब अष्टम भाव में शनि हो तो विवाह से जुड़े इन सब प्रश्नों पर प्रभाव पड़ता है। देखें कैसे? अष्टम भाव विवाह भाव (सप्तम) का द्वितीय भाव है तो यह विवाह का मारक स्थान होगा, जीवन साथी का धन होगा, परिवार तथा जीवन साथी की वाणी इत्यादि होगा। अतः अष्टम भावस्थ शनि इन सब बातों को प्रभावित करेगा। यदि शनि शुभ प्रभावी है तो जातक को जीवन साथी द्वारा परिवार, समाज में सम्मान, धन (दहेज या साथी द्वारा अर्जित) प्राप्ति, सुख, मधुर भाषी साथी प्राप्त हो सकता है। यदि शनि अशुभ प्रभाव में हो तो जातक के लिए मारक और उसके साथी द्वारा प्राप्त होने वाले शुभ फलों का ह्रास होगा। अष्टम भावस्थ शनि की दृष्टि दशम भाव पर होती है जो जातक का कर्म भाव है और उसके जीवन साथी का चतुर्थ भाव अर्थात परिवार, समाज, गृह सुख, विद्या आदि है; अतः जातक का यश, समाज में प्रतिष्ठा, परिवार सुख, धन समृद्धि, शिक्षा, व्यवसाय आदि प्रभावित होते हैं। अष्टम भावस्थ शनि की दूसरी दृष्टि द्वितीय भाव पर होती है तो जीवन साथी का अष्टम भाव है, अतः उसके दुःख कष्ट, आकस्मिक घटनाएं, गुप्त कृत्य आदि तथा स्वयं के संचित धन को प्रभावित करेगा। अष्टम भावस्थ शनि की तीसरी दृष्टि पंचम भाव पर होती है तो जीवन साथी का एकादश भाव है। अतः प्रभाव संतान पर, शिक्षा पर और जीवन साथी के हर लाभ पर होता है। विवाह जनित जितने भी सुख हैं वह अष्टम भावस्थ शनि से प्रभवित होते हैं जिनमें मुख्य हैं धन, संतान, शिक्षा, व्यवसाय, पैतृक संपत्ति, परिवार सुख आदि। शुभ शनि शुभ परिणाम देता है और अशुभ शनि शुभ फलों को कम कर देता है। इन धारणाओं को मन में रखते हुए कुछ कुंडलियों का अध्ययन किया गया है और पाया गया कि अष्टम भावस्थ शनि निश्चित रूप से विवाह जनित सुख-दुख को प्रभावित करता है।

स्वप्न विचार

बृहदारण्यक मेंं जाग्रत एवं सुषुप्त अवस्था के समान मानव के मन की तीसरी अवस्था स्वप्न अवस्था मानी गई हैं। जिस प्रकार मनुष्य के संस्कार उसे जाग्रतावस्था मेंं आत्मिक संतोष और प्रसन्नता प्रदान करते हैं, उसी प्रकार जो भी स्वप्न आएंगे वे उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं के प्रतिबिंब ही होंगे।
जागते हुए जो दिवा स्वप्न हम देखते हैं वे मात्र कल्पनाएं ही होती हैं पर सुषुप्तावस्था मेंं जो कल्पनाएं की जाती हैं उन्हें स्वप्न कहते हैं। निरर्थक, असंगत स्वप्न उथली नींद मेंं ही आते हैं जो उद्विग्न करने वाले होते हैं। वस्तुत: मनुष्य निरंतर जागता नहींं रह सकता। यदि किसी को सोने ही न दिया जाए तो वह मर जाएगा। मनुष्य अपने जीवन का एक तिहाई भाग निद्रा मेंं व्यतीत करता है और निद्रा का अधिकांश भाग स्वप्नों से आच्छादित रहता है।
भारतीय शास्त्रादि स्वप्न को दृश्य और अदृश्य के बीच का द्वार अर्थात संधि द्वार मानते हैं। मनुष्य इस संधि स्थल से इस लोक को भी देख सकता है और उस परलोक को भी। इस लोक को संधि स्थान व स्वप्न स्थान कहते हैं।
स्वप्नों का संबंध मन व आत्मा से होता है तो इनका संबंध चंद्र और सूर्य की युति से लगाते हैं। गोविंद राज विरचित रामायण भूषण के स्वप्नाध्याय का वचन है कि जो स्त्री या पुरुष स्वप्न मेंं अपने दोनोंं हाथों से सूर्यमंडल अथवा चंद्र मंडल को छू लेता है, उसे विशाल राज्य की प्राप्ति होती है। अत: स्पष्टतया किसी भी व्यक्ति को शुभ समय की सूचना देने वाले स्वप्नों से यह पूर्वानुमान किया जा सकता है। चंद्र की स्थिति व दशाएं शुभ होने पर एवं सूर्य की स्थिति व दशाएं आदि कारक होने पर शुभ स्वप्न दिखाई प?ेंगे अन्यथा अशुभ। प्रत्यक्ष रूप मेंं देखा जाए तो स्वप्न का आने या न आने का कारण सूर्य व चंद्र ग्रह ही होते हैं क्योंकि सूर्य का संबंध आत्मा से और चंद्र का संबंध मनुष्य के मन से होता है। दु:खद या दु:स्वप्नों के आने का कारण हमारा मोह और पापी मन ही है। यही बात अथर्ववेद मेंं भी आती है। ‘यस्त्वा स्वप्नेन तमसा मोहयित्वा निपद्यते’ अर्थात मनुष्य को अपने अज्ञान और पापी मन के कारण ही विपत्तिसूचक दु:स्वप्न आते रहते हैं। इनके निराकरण का उपाय बतलाते हुए ऋषि पिप्लाद कहते हैं कि यदि स्वप्नावस्था मेंं हमेंंं बुरे भाव आते हों तो ऐसे दु:स्वप्नों को पाप-ताप, मोह-अज्ञान एवं विपत्ति जन्य जानकर उनके निराकरण के लिए ब्रह्म की उपासना शुरू कर देनी चाहिए ताकि हमारी दुर्भावनाएं, दुर्जनाएं, दुष्प्रवृत्तियां शांत हो जाएं जिससे मन मेंं सद्प्रवृत्तियों, सदाचरणों, सद्गुणों की अभिवृद्धि हो और शुभ स्वप्न दिखाई देने लगे और आत्मा की अनुभूति होने लगे। वाल्मीकि रामायण के प्रसंगों से स्पष्ट है कि पापी ग्रह मंगल, शनि, राहु तथा केतु की दशा अंतर्दशा तथा गोचर से अशुभ स्थानों मेंं होने पर बुरे स्वप्न दिखाई देते हैं जो जीवन मेंं आने वाली दुरवस्था का मनुष्य को बोध कराते हैं। साथ ही शुभ ग्रहों की दशा अंतर्दशा मेंं शुभ ग्रहों के शुभ स्थान पर गोचर मेंं अच्छे स्वप्न दिखाई देते हैं। आकाश मेंं ऊपर उठना उन्नति तथा अभ्युदय का द्योतक है जबकि ऊपर से नीचे गिरना अवनति व कष्ट का परिचायक है।
बुरे स्वप्न आना तभी संभव है जब लग्न को, चतुर्थ एवं पंचम भाव को प्रभावित करता हुआ ग्रहण योग (राहु+चंद्र, केतु+सूर्य, राहु+सूर्य, केतु+चंद्र) और चांडाल योग (गुरु व राहु की युति) वाली ग्रह स्थिति निर्मित हो या इसी के समकक्ष दशाओं गोचरीय ग्रहों का दुर्योग बन जाए। इसके विपरीत लग्न, चतुर्थ/पंचम भाव को प्रभावित करते हुए शुभ ग्रहों के संयोग के समय अच्छे स्वप्न आने की कल्पना की जा सकती है।
जब हमेंंं कोई अच्छे सुखद स्वप्न दिखाई देते हैं, तो हमारा मन पुलकित हो जाता है, हमेंंं सुख की अनुभूति होने लगती और हम प्रसन्न हो जाते हैं। परंतु जब हमेंंं बुरे स्वप्न दिखते हैं तो मन घबरा जाता है, हमेंंं एक अदृश्य भय सताने लगता है और हम दुखी हो जाते हैं। विद्वानों के अनुभवों से हमेंंं यह बात ज्ञात होती है कि इस तरह के बुरे, डरावने स्वप्न दिखाई देने पर यदि नींद खुल जाए तो हमेंंं पुन: सो जाना चाहिए।
स्वप्नों के स्वरूप:
फलित ज्योतिष मेंं स्वप्नों को विश्लेषणों के आधार पर सात भागों मेंं बांटा जाता है- दृष्ट स्वप्न, शृत स्वप्न, अनुभूत स्वप्न, प्रार्थित स्वप्न, सुम्मोहन या हिप्नेगोगिया स्वप्न, भाविक स्वप्न और काल्पनिक स्वप्न।
दृष्ट स्वप्न:
दिन प्रतिदिन के क्रिया कलापों को सोते समय स्वप्न रूप मेंं देखे जाने वाले सपनों को दृष्ट स्वप्न कहा जाता है। ये सपने कार्य क्षेत्र मेंं अत्यधिक दबाव और किसी वस्तु या कार्य मेंं अत्यधिक लिप्तता के कारण या मन के चिंताग्रस्त होने पर दिखाई देते हैं। इसलिए इनका कोई फल नहींं होता। कभी सोने से पूर्व किसी प्रकरण पर विचार विमर्श किया गया हो और किसी बात ने मन को प्रभावित या उद्वलित किया हो, तो भी मनुष्य सपनों के संसार मेंं विचरण करता है।
शृत स्वप्न:
भयावह फिल्म देखकर या उपन्यास पढक़र सपनों मेंं भयभीत होने वालों की संख्या कम नहींं है। इन सपनों को शृत स्वप्न कहा जाता है। ये सपने भी वाह्य कारणों से दिखाई देने के कारण निष्फल होते हैं।श्
अनुभूत स्वप्न:
जाग्रत अवस्था मेंं कोई बात कभी मन को छू जाए या किसी विशेष घटना का मन पर प्रभाव पड़ा हो और उस घटना की स्वप्न रूप मेंं पुनरावृत्ति हो जाए, तो ऐसा स्वप्न अनुभूत सपनों की श्रेणी मेंं आता है। इनका भी कोई फल नहींं होता।
प्रार्थित स्वप्न:
जाग्रत अवस्था मेंं देवी देवता से की गई प्रार्थना, उनके सम्मुख की गई पूजा-अर्चना या इच्छा सपने मेंं दिखाई दे, तो ऐसा स्वप्न प्रार्थित स्वप्न कहा जाता है। इन सपनों का भी कोई फल नहींं होता।
काल्पनिक स्वप्न:
जाग्रत अवस्था मेंं की गई कल्पना सपने मेंं साकार हो सकती है किंतु यथार्थ जीवन मेंं नहींं और इस प्रकार के सपनों की गणना भी फलहीन सपनों मेंं की जाती है।
सम्मोहन या हिप्नेगोगिया स्वप्न:
मनुष्य रोगों से पीडि़त होने पर, वात, पित्त या कफ बिगडऩे पर जो स्वप्न देखता है, वे भी निष्फल ही होते हैं। नींद की वह अवस्था, जिसे मेंडिकल साइंस की भाषा मेंं हिप्नेगोगिया और भारतीय भाषा मेंं सम्मोहन कहा जाता है। इसमेंंं व्यक्ति न तो पूरी तरह से सोया रहता है और न पूरी तरह से जागा। इसमेंंं देखे गए सपने भी निष्फल होते हैं।
इस तरह ऊपर वर्णित सभी छ: प्रकार के सपने निष्फल होते हैं। ये सभी असंयमित जीवन जीने वालों के सपने हैं। विश्व मेंं 99.9 प्रतिशत लोग असंयमित जीवन ही अधिक जीते हैं। यही कारण है कि ये लोग स्वप्न की भाषा नहींं समझकर स्वप्न विज्ञान की, स्वप्न ज्योतिष की खिल्लियां उड़ाते रहते हैं। स्वप्न के बारे मेंं इनकी धारणाएं नकारात्मक सोच वाली ही होती हैं।
भाविक स्वप्न:
जो स्वप्न कभी देखे न गए हों, कभी सुने न गए हों, अजीबोगरीब हों, जो भविष्य की घटनाओं का पूर्वाभास कराएं, वे भाविक स्वप्न ही फलदायी होते हैं। पाप रहित मंत्र साधना द्वारा देखे गए स्वप्न भी घटनाओं का पूर्वाभास कराते हैं। मानव का प्रयोजन इसी प्रकार के स्वप्नों से है। जन्मकालीन या गोचरीय कालसर्प योग वाली ग्रह स्थिति अर्थात राहु-केतु के मुख मेंं सभी ग्रहों के समा जाने वाली स्थिति के निर्मित हो जाने पर भगवान शंकर के कंठहार पंचमी तिथि के देवता स्वप्न मेंं आकर मनुष्यों के दिल को दहला देते हैं। ऐसा सपना देखकर मनुष्य का मन मस्तिष्क विचलित हो उठता है। अरिष्टप्रद सूर्य, चंद्र, राहु और केतु के मंत्र जप व स्तोत्र पाठ से तथा, दान, शांति कर्म के उपायों को अपनाकर व्यक्ति दुखद स्वप्नों के अनिष्टों से बचने मेंं समर्थ हो सकता है।
नौ ग्रहों की दशा अंतर्दशा मेंं देखे जाने वाले स्वप्न:
स्वप्न के आधार पर फल कथन करने मेंं ज्योतिषियों को आसानी होती है। अगर जातक की राहु, केतु या शनि की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो और जन्मकुंडली मेंं वे नीच स्थिति मेंं हों, तो उसे हमेंंशा डरावने स्वप्न आते हैं जैसे बार-बार सर्प दिखाई देना राहु केतु से बनने वाले कालसर्प योग के द्योतक होते हैं। यदि राहु, केतु व शनि की महादशा या अंतर्दशा हो और वे जन्मकुंडली मेंं स्वराशि या उच्च की राशि मेंं बैठे हों, तो जातक को शुभ स्वप्न आते हैं जैसे जर्मनी के फ्रेडरिक कैक्यूल को राहु से संबंधित सांप का वर्तुल आकार मेंं घूमकर स्वर्ण की अंगूठी जैसे आकार का बनकर अपने-आपको काटते हुए दिखाई देना। इसी भांति सिलाई मशीन के आविष्कारक इलिहास होव को शनि की महादशा अंतर्दशा व कुंडली मेंं उनकी उच्च स्थिति होने के कारण उसके सिर मेंं राक्षस के दूतों द्वारा भाला भोंकने की स्वप्न की घटना जिसके फलस्वरूप उसने सिलाई मशीन का आविष्कार किया। उसी प्रकार यदि सूर्य या मंगल की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो और वे नीचस्थ हों, तो आग एवं चोट लगने के स्वप्न दिखाई देते हैं। यदि उपर्युक्त महादशा व अंतर्दशा चल रही हो और जातक की जन्मकुंडली मेंं सूर्य और मंगल उच्च या स्वराशि मेंं हो, तो अशुभ स्वप्न नहींं बल्कि शुभ स्वप्न दिखाई देंगे जैसे राजकार्य मेंं जय, मांगलिक कार्य संपन्न होना आदि। यदि चंद्र और गुरु की महादशा अंतर्दशा हो और वे नीचस्थ हों तो कफ, पेट आदि से संबंधित रोग होते हैं। इसके विपरीत यदि चंद और गुरु उच्चस्थ हों, तो महादशा अंतर्दशा मेंं राजगद्दी प्राप्त होने के स्वप्न दिखाई देंगे। वहीं यदि शुक्र की उच्च स्थिति हो, तो सुख, ऐशो आराम, धन लक्ष्मी आदि से संबंधित और नीचस्थ हो, तो अनेक बीमारियों के स्वप्न दिखाई देते हैं।
नीचस्थ सूर्य की दशा/परिस्थिति या गोचरीय दशा आने पर रेतीले मरुस्थलों की सैर, मरुस्थलों का जहाज उंट, गर्म हवाओं के थपेड़े खाता हुआ बेतहासा मजनूं की तरह भागता मनुष्य, सूर्य का सारथी, उष्ण कटिबंधों के दृश्य, सूखा, फटती हुई जमीन, घर-मकान की दीवारों की दरारें, भूख प्यास से व्याकुल पागलों की तरह भटकते लोग, खौलता हुआ झरना, तपेदिक के मरीज, मृगतृष्णा का जल, मौत का सन्नाटा, तपे हुए लोहे के सिक्के लुटाती हुई अलक्ष्मी, सिर पर सेहरे की जगह कफन, ओले की जगह टपकते अंगारे, चांदनी बिखराता सूर्य, तपता हुआ चंद्रमा, हंसता हुआ सियार, चूहे की भांति दुबका हुआ शेर, आकाश मेंं पक्षियों की तरह उड़ता हुआ प्राणी, रोता हुआ मुर्दा आदि दिखाई देने की संभावना रहती है।
इसी तरह के स्वप्न गोचर मेंं वृष राशि मेंं प्रवेश करते हुए सूर्य की दशा मेंं अथवा उसकी दशांतर्दशा मेंं आ सकते हंै। काला बाबा की राशि मकर या कुंभ मेंं सूर्य के प्रवेश की दशा मेंं पर्वतारोहण करते मगरमच्छ, दिन मेंं देखते उल्लू, चलने हुए गरुण, दीपावली की रात्रि मेंं चमकता हुआ शरद पूर्णिमा के चंद्रमा, निशीथ काल मेंं खिलती हुई कुमुदिनी, चंद्रोदय होते ही खिलते हुए कमल से निकलते हुए भौंरे, पर्वत से पानी निकालती हुई पनिहारिन, दिन मेंं उदित होते चंद्रमा, रात्रि मेंं धूप, बीहड़ घने काले अंधियारे जंगल मेंं नाचते सफेद मोर, काले हंस, गुलाबी रंग की भैंस आदि के समान स्वप्न आ सकते है जिनका फल सदैव अशुभ ही होता है।
* चंद्र के दशा परिवर्तन से स्वप्नावस्था मेंं शरीर मेंं नाड़ी की गति मध्यम पड़ जाती है, खून का प्रवाह शिथिल हो जाता है, इंद्रियों की गति मंद हो जाती है और कफ का प्रकोप बढ़़ जाता है।
* मंगल की दशा अथवा गोचर मेंं परिवर्तन होने से मनुष्य को चोट-चपेट, दुर्घटना, अग्नि-कांड, शव-दाह, खून-खराबे, मृत्यु-दंड, यान-दुर्घटना, युद्ध के तांडव, उल्कापात, गर्भपात, पक्की इमारतों का भरभराकर गिर जाना, ज्वालामुखी पर्वत और उनके खौलते हुए एवं छलछलाने लावे के दृश्य स्वप्न मेंं दिखलाई देते हैं। मित्र लडऩे को उद्यत दिखाई देता है।
* बुध की अंतर्दशा मेंं सुंदर उपवन, हरे-भरे खेत, खंजन पक्षी, तोता विद्या प्राप्त करते बटुक, वृक्षों की ठंडी शीतल छांव मेंं विश्राम करते बटोही, परीक्षा के डर से भयभीत होते बच्चे, छड़ी दिखाता शिक्षार्थी, परीक्षा मेंं पास हो जाने पर हंसते मुस्कराते विद्यार्थी, सुंदरियों को वस्त्र लुटाता बजाज, बंध्या और पुत्र, मुनीमी करता सेठ, गीत सुनता बधिर, वक्ता बना गूंगा, बगुला भगत, सज्जन बना बातुल, बादशाही करता फकीर, शिष्ट तथा सुसंस्कृत बना गंवार, सुंदर हरे भरे ताजे फलों की डलिया, आदि नाना प्रकार के स्वप्न आते हैं। बुध की दशा मेंं पोथी प्रदान करती हुई सरस्वती जी यदि स्वप्न मेंं दर्शन दें, तो जातक वाणी की अधिष्ठात्री देवी वागीश्वरी की अनुपम कृपा का पात्र जातक बन जाता है।
गुरु की दशाओं मेंं भी जलीय दृश्य कफ प्रकृति जातकों को स्वप्न मेंं दिखलाई दे सकते हैं। गुरु की एक राशि मीन है जो जल तत्व वाली राशि है। उदर शूल, उदर व्रण, पाचन संस्थान संबंधी रोग, कफ जनित व्याधियों, वेदाध्ययन, वेद-पाठ, वेद-पुराण- उपनिषदों आदि के दर्शन, धर्म प्रवचन, संत-समागम, तीर्थ -यात्रा, गंगा-स्नान आदि से संबंधित विविध शुभाशुभ स्वप्न गुरु की अंतर्दशा मेंं दिखाई दे सकते हैं। राज्याभिषेक संबंधी आनंदातिरेक देने वाले स्वप्न भी गुरु की दशा मेंं दिखाई दे सकते हैं।
* राहु, केतु या शनि की महादशा, अंतर्दशा या गोचर मेंं इनकी अरिष्टकारक दशा चल रही हो, तो जातकों को बेहद भयानक स्वप्न दिखाई दे सकते हैं। राहु के अत्यधिक अशुभ होने पर स्वप्न ही नहींं, यथार्थ मेंं भी बिजली का करंट लग जाया करता है। डरावने स्वप्नों का वेग गहरी निद्रा मेंं डूबे हुए व्यक्ति को एकदम चैंका देता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि डरावने स्वप्न देखता हुआ व्यक्ति उससे त्राण पा लेने को उठकर भाग जाना चाहता है परंतु स्वप्न के भारी दबाव के कारण वह बिस्तर से उठ भी नहींं पाता। आयुर्वेद के मुताबिक वात, पित्त, कफ ये शरीर के तीन दोष हैं। वात प्रधान लोगों को स्वप्न मेंं पर लग जाते हैं। वे नील गगन मेंं स्वप्न मेंं उडऩे का आनंद प्राप्त करते हैं। पित्त प्रकृति के लोग स्वप्न मेंं सारे जगत को जगमग ज्योति के रूप मेंं निहारने लगते हैं। वे चांद, सितारे, उल्का और सूरज की रज को प्राप्त कर लेना चाहते हैं। उन्हें चांद-सूरज, तारा गण सप्तर्षि आदि अपना बना लेना चाहते हैं। वे गगन को देखकर मगन हो जाते हैं। कफ प्रकृति वाले कूप, तड़ाग, बावलियों, नहरों, नदियों नालों झरनों, फव्वारों जलस्रोतों को स्वप्न मेंं देखकर स्वयं जल का देवता वरुण बन जाना चाहते हैं। वे चांदनी रात मेंं नौका-विहार करने लग जाते हैं। कोई स्वप्न मेंं स्वयं को जलतरंग बजाता हुआ देखता है, कोई जलधर ही बन जाता है, कोई जल प्रपात देखता है तो कोई जल प्रलय। उन्हें जल से जन्म लेने वाला जलज स्वप्न मेंं दिखाई देने लगता है। जल मेंं कभी वे जलपरी का जलवा देखते हैं, कभी जलजहाज को जल डमरूमध्य मेंं, तो कभी अपने को गोता लगाता हुआ देखते हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि शुभाशुभ स्वप्न विभिन्न ग्रह स्थितियों मेंं तब आते हैं जब ग्रहों की महादशाओं की अंतर्दशाओं मेंं नीच, उच्च, स्वगृही, मित्र गृही, शत्रुगृही होते हैं। कोई भी ग्रह नीच, व शत्रुग्रही हो, तो जातक का बुरे व अशुभ स्वप्न आते हैं और यदि वह उच्च, स्वगृही व मित्र राशि मेंं हो, तो अच्छे व शुभ, उसके मनोनुकूल, स्वप्न आते हैं।
परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर उस परिवार के सदस्यों को दु:स्वप्न दिखाई देते हैं। याद भी रहते हैं जिससे वे विचलित दिखाई देते है।
धन लाभ कराने वाले स्वप्न:
कुछ स्वप्न व्यक्ति को धन लाभ कराने वाले होते हैं। हाथी, घोड़े, बैल, सिंह की सवारी, शत्रुओं के विनाश, वृक्ष तथा किसी दूसरे के घर पर चढ़े होने दही, छत्र, फूल, चंवर, अन्न, वस्त्र, दीपक, तांबूल, सूर्य, चंद्रमा, देवपूजा, वीणा, अस्त आदि के सपने धन लाभ कराने वाले होते हैं। कमल और कनेर के फूल देखना, कनेर के नीचे स्वयं को पुस्तक पढ़ते हुए देखना, नाखून एवं रोमरहित शरीर देखना, चिडिय़ों के पैर पकडक़र उड़ते हुए देखना, आदि धन लक्ष्मी की प्राप्ति व जमीन मेंं गड़े हुए धन मिलने के सूचक हैं।
मृत्यु सूचक स्वप्न:
कुछ स्वप्न स्वयं के लिए अनिष्ट फलदायक होते हैं। स्वप्न मेंं झूला झूलना, गीत गाना, खेलना, हंसना, नदी मेंं पानी के अंदर चले जाना, सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों व नक्षत्रों को गिरते हुए देखना, विवाह, गृह प्रवेश आदि उत्सव देखना, भूमि लाभ, दाढ़ी, मूंछ, बाल बनवाना, घी, लाख देखना, मुर्गा, बिलाव, गीदड़, नेवला, बिच्छू, मक्खी, शरीर पर तेल मलकर नंगे बदन, भैंसे, गधे, ऊंट, काले बैल या काले घोड़े पर सवार होकर दक्षिण दिशा की यात्रादि करना आदि मृत्यु सूचक हैं।
कुछ अनुभूत स्वप्न:
एक महिला का पुत्र बहुत बुरी स्थिति मेंं दिल्ली के एक अस्पताल मेंं दाखिल था। महिला स्वयं बीमारी के कारण बिस्तर से लगी थीं। उसे एक रात स्वप्न मेंं दिखाई दिया कि उसके गले की मोती की माला टूट गई है। मोती बिखर गए हैं। नींद खुली तो उसने देखा कि माला टूटी हुई थी। बहुत ढूंढने पर भी मोती पूरे नहींं मिले। ठीक उसी समय अस्पताल मेंं उसके युवा पुत्र ने अपने प्राण त्याग दिए थे।
जालंधर के एक व्यक्ति की पत्नी की छाती के कैंसर का ओपरेशन हो रहा था। उसे स्वप्न मेंं दिखाई दिया कि कुछ लोग उन्हें मारने को दौड़े चले आ रहे हैं। वह भाग रहा और लोग पीछा कर रहे हैं। अचानक वह अस्पताल के निकट फ्लाई-ओवर पर चढ़ जाता है। स्वयं फिर वह अपने घर (जालंधर) के पास पहुंचा हुआ पाता है। वे लोग अब भी उसका पीछा कर रहे हैं। आस-पास के लोग उन्हें बचाने की कोशिश करते हैं और वह खुद भाग कर घर मेंं छुपने की कोशिश करता है और नींद टूट जाती है। फिर उसने एक अच्छे दैवज्ञ से सलाह ली। स्वप्न का फल यही समझा गया कि उसकी पत्नी स्वस्थ हो जाएगी। यह बात अप्रैल 1980 की है। उसकी पत्नी आज भी जीवित और स्वस्थ है। लेकिन उस व्यक्ति का अचानक हृदय गति रुक जाने से जनवरी 1989 मेंं देहांत हो गया।
इस तरह स्पष्ट है कि मनुष्य के जीवन मेंं आने वाली दुर्घटनाओं, उन्नति और शुभ समय के आगमन से संबंधित स्वप्न कई बार सच्चे साबित हो जाते हैं।
स्वप्न फल विचार:
जब भी किसी व्यक्ति के जीवन मेंं कोई असाधारण परिस्थिति होती है, स्वप्न आते हैं। कुछ विशिष्ट स्वप्न याद भी रहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त के स्वप्न अक्सर सच भी होते हैं। रात के प्रथम, द्वितीय अथवा तृतीय प्रहर मेंं दिखने वाले स्वप्न लंबे समय के बाद सच होते हुए पाए जाते हैं। स्वप्नों के विषय मेंं कुछ प्रतीकों को हमारी लोक संस्कृति मेंं मान्यता प्राप्त है, जो इस प्रकार हैं।
* किसी की मृत्यु देखना -उसकी लंबी आयु होना।
* सीढ़ी चढऩा - उन्नति
* आकाश मेंं उडऩा - उन्नति
* सर्प अथवा जल देखना - धन की प्राप्ति
* बीमार व्यक्ति द्वारा काला सर्प देखना - मृत्यु
* सिर मुंडा देखना - मृत्यु
* स्वप्न मेंं भोजन करना - बीमारी
* दायां बाजू कटा देखना - बढ़़े भाई की मृत्यु
* बायां बाजू कटा देखना - छोटे भाई की मृत्यु
* पहाड़ से नीचे गिरना - अवनति
* स्वयं को पर्वतों पर चढ़ता देखना- सफलता
* विद्यार्थी का स्वयं को फेल होते देखना - सफलता
* कमल के पत्तों पर खीर खाते हुए देखना - राजा के समान सुख
* अतिथि आता दिखाई देना - अचानक विपत्ति
* अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देना - कष्ट या मानहानि
* स्वयं को मृत देखना - आयु वृद्धि,
* आत्म हत्या करना - दीर्धायु
* उल्लू दिखाई देना - रोग व शोक
* आग जलाकर उसे पकड़ता हुआ देखना - अनावश्यक व्यय
* ओपरेशन होता दिखाई देना - किसी बीमारी का सूचक
* इमारत बनती दिखाई देना - धन लाभ व तरक्की
* खुद को कैंची चलाता देखना - व्यर्थ के वाद विवाद व लड़ाई झगड़ा
* कौआ बोलता दिखाई देना - किसी बीमारी या बुरे समाचार का सूचक
* इमारत बनती दिखाई देना - धन लाभ व तरक्की
* कबूतर दिखाई देना - शुभ समाचार का सूचक
* काला नाग दिखाई देना - राजकीय सम्मान
* कोढ़ी दिखाई देना- रोग सूचक
* कोयला देखना- झगड़ा,
* श्मशान या कब्रिस्तान देखना - प्रतिष्ठा मेंं वृद्धि
* गोबर देखना - पशुधन लाभ
* ग्रहण देखना - रोग व चिंता
* गोली चलता देखना- मनोकामना पूर्ति
* गरीबी देखना -सुख समृद्धि
* गर्भपात देखना - गंभीर रोग
* शुक्र तारा देखना - शीध्र विवाह
* स्वयं रोटी बनाना - रोग
* स्वयं को नंगा देखना - मान प्रतिष्ठा की हानि, कष्ट
* देव दर्शन या देव स्थान दर्शन- लाभदायी
* राजदरबार देखना - मृत्यु सूचक
* दवाइयां देखना - उत्तम स्वास्थ्य
* किसी दम्पति का तलाक - गृह कलह
* ताज महल देखना - पति-पत्नी के संबंध विच्छेद
* नाई से हजामत बनवाना - अशुभ
* पति-पत्नी का मिलन - दाम्पत्य सुख,
* सूखी लकडिय़ां देखना - मृत्यु सूचक
* किसी कैदी या अपराधी को देखना - अशुभ प्यार
* भंडारा कराते देखना - धन लाभ
* सगाई देखना - अशुभ
* सूखा वृक्ष/ठूठ दिखाई देना - अशुभ प्यार
* तोता या तितली दिखाई देना - लाभप्रद।
इसी प्रकार स्वप्न मेंं दांत टूटना - दुख, झंझट, दरवाजा देखना - बढ़़े व्यक्ति से मित्रता, दरवाजा बंद देखना - परेशानियां, दलदल देखना - व्यर्थ की चिंता मेंं वृद्धि, सुपारी देखना - रोग मुक्ति, धुआं देखना - हानि एवं विवाद, रस्सी देखना - यात्रा, रूई देखना - स्वस्थ होना, खेती देखना - लापरवाह या संतान प्राप्ति, भूकंप देखना - संतान कष्ट, दुख, सीढ़ी देखना - सुख संपत्ति मेंं वृद्धि, सुराही देखना - बुरी संगत, चश्मा लगाना - विद्वत्ता मेंं वृद्धि, खाई देखना - धन एवं प्रसिद्धि की प्राप्ति, कैंची देखना - गृह कलह, कुत्ता देखना - उत्तम मित्र की प्राप्ति कलम देखना - महान पुरुष के दर्शन, टोपी देखना - दुख से मुक्ति, उन्नति, धनुष खींचना - लाभप्रद यात्रा, कीचड़ मेंं फंसना - कष्ट, व्यय, गाय या बैल देखना- मोटे से लाभ, दुबले से प्रसिद्धि, घास का मैदान देखना - धन की वृद्धि, घोड़ा देखना - संकट से बचाव, घोड़े पर सवार होना - पदोन्नति, लोहा देखना - किसी धनी से लाभ, लोमड़ी देखना - किसी संबंधी से धोखा, मोती देखना - कन्या की प्राप्ति, मुर्दे का पुकारना - विपत्ति एवं दुख, मुर्दे से बात करना - मुराद पूरी होने का संकेत, बाजार देखना - दरिद्रता से मुक्ति, बढ़़ी दीवार देखना - सम्मान की प्राप्ति, दीवार मेंं कील ठोकना - किसी वृद्ध से लाभ, दातुन करना - पाप का प्रायश्चित व सुख की प्राप्ति, खूंटा देखना - धर्म मेंं रुचि, धरती पर बिस्तर लगाना - दीर्घायु की प्राप्ति, सुख मेंं वृद्धि, उंचे स्थान पर चढऩा - पदोन्नति व प्रसिद्धि, बिल्ली देखना -चोर या शत्रु भय, बिल्ली या बंदर का काटना - रोग व अर्थ संकट, नदी का जल पीना - राज्य लाभ व परिश्रम, सफेद पुष्प देखना - दुख से मुक्ति, लाल फूल देखना - पुत्र सुख, भाग्योदय, पत्थर देखना - विपत्ति, मित्र का शत्रुवत व्यवहार, तलवार देखना - युद्ध मेंं विजय, तालाब या पोखरे मेंं स्नान करना - संन्यास की प्राप्ति, सिंहासन देखना - अतीव सुख की प्राप्ति, जंगल देखना - दुख से मुक्ति व विजय की प्राप्ति, अर्थी देखना - रोग से मुक्ति व आयु मेंं वृद्धि, जहाज देखना - परेशानी दूर होना या व्यय होना, चांदी देखना - धन व अहंकार मेंं वृद्धि, झरना देखना।

रोगी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के योग

लग्न मेंं स्थित बलवान ग्रह शीघ्र स्वास्थ्य लाभ देता है। और यदि लग्नेश और दशमेंश मित्र हो अथवा यदि चतुर्थेश और सप्तमेंश के बीच मित्रता हो तो भी रोगी शीघ्र रोग मुक्त होता है। लग्नेश का चन्द्र के साथ संबंध हो और चन्द्र शुभ ग्रहों के प्रभाव मेंं या केन्द्र मेंं स्थित हो तो भी ऐसा होता है, इसी प्रकार शुभ ग्रहों के प्रभाव के अंतर्गत केन्द्र मेंं लग्नेश और चन्द्र की स्थिति शीघ्र लाभ बताती है। इस योग मेंं सप्तमेंश वक्री नहींं होना चाहिए और सप्तमेंश सूर्य या अष्टम भाव के स्वामी से प्रभावित नहींं होना चाहिए।
चन्द्रमा से रोग मुक्ति :
अपनी राशि अथवा उच्च राशि मेंं बलवान चन्द्रमा एक शुभ ग्रह के साथ संबंध बनाए तो रोगी जल्द रोग मुक्त होता है, चन्द्र चर अथवा द्विस्वभाव राशि मेंं होकर, लग्न और लग्नेश ग्रहो द्वारा दृष्ट हो, तब ऐसा होता है। चन्द्रमा अपनी राशी मेंं चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव मेंं स्थित हो तो भी रोगी जल्दी ठीक होता है व शुभ ग्रहो से दृष्ट चन्द्र अथवा सूर्य एक, चार या सातवें भाव मेंं स्थित हो तो भी रोगी ठीक होता है।
देरी या कोई स्वास्थ्य लाभ नहींं:
यदि लग्नेश और दशमेश के बीच अथवा चतुर्थेश और सप्तमेंश के बीच शत्रुता हो तो रोग और बढ़़ जाता है, यह सभी विषम लग्नों मेंं सत्य होगा, जबकि सम लग्नों मेंं वे मित्र होंगे। षष्टेश रोग बताता है, और यदि किसी प्रश्न कुण्डली मेंं षष्टेश का अष्टमेंश अथवा द्वादशेश के साथ संबंध बनाए तो स्वास्थ्य लाभ की संभावनाएँ नहींं होती। लग्न मेंं चन्द्र अथवा शुक्र हो तो रोगी जल्दी ठीक नहींं होता है, प्रश्न कुण्डली मेंं लग्नेश एवं मंगल की युति का होना भी कोई स्वास्थ्य लाभ नहींं देता है, द्वादश भाव मेंं लग्नेश स्थित हो तो रोगी देर से ठीक होता है, इसी प्रकार यदि लग्नेश षष्टम, अष्टम भाव मेंं स्थित हो और अष्टमेंश केन्द्र मेंं स्थित हो तो रोगी जल्दी ठीक नहींं होता है।
रोगी के मृत्यु की संभावनाएँ:
लग्नेश, सप्तमेंश से चतुर्थ, षष्ट भाव या सप्तम भाव मेंं स्थित हो तो रोगी की मृत्यु की संभावनाएँ बढ़़ जाती है, या अष्टमेंश की अपेक्षा लग्नेश बलहीन हो तो भी ऐसा होता है, लग्नेश केन्द्र मेंं स्थित हो और वक्री ग्रह अथवा अस्त ग्रह के साथ संबंध बनाए, लग्नेश और अष्टमेंश युति मेंं हो, क्रूर ग्रहों से पीडि़त होकर केन्द्र मेंं स्थित होने पर रोगी ठीक नहींं होता है, यदि लग्न मेंं चर राशि है तो प्रारम्भ मेंं तो रोगी ठीक होता लगता है लेकिन रोग वापस आने से मृत्यु हो जाती है।

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Thursday 19 May 2016

पढाई-लिखाई में सफलता के शास्त्रीय उपाय

पढाई-लिखाई मेंं सफलता के शास्त्रीय उपाय विद्यार्थी जगत की उपलब्धियों मेंं पुस्तक, विद्यालय और शिक्षक के अलावा जिन महत्वपूर्ण बातों का विशिष्ट योगदान रहता है। उनमेंं परिवेश अर्थात वास्तु एवं अन्य कारकों का सही योगदान होने और कुछ छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने से उपलब्धि की गुणवत्ता निश्चित रूप से कई गुना बढ़़ जाती है। यहां ऐसे कुछ घटक तत्वों और कारकों का उल्लेख है जिनका लाभ सभी विद्यार्थी उठा सकते हैं। अध्ययन कक्ष एक ऐसा स्थान है, जहां पर व्यक्ति ज्ञान, बुद्धि के साथ-साथ पढ़ऩे के शौक को पूरा करता है। इस कक्ष का वास्तविक क्षेत्र, भवन के उत्तर-पूर्व मेंं होता है। इसके अलावा यह कक्ष उत्तर, पूर्व तथा पश्चिम दिशा के बीच भी हो सकता है। दक्षिण-पश्चिम (नैत्य कोण) दक्षिण, वायव्य कोण अध्ययन कक्ष के लिए उपयुक्त नहींं होते। उत्तर-पश्चिम दिशा के बढ़़े हुए भाग मेंं बच्चों को कभी अध्ययन न करने दें। यहां अध्ययन करने से बच्चे के घर से भागने की इच्छा होगी। अध्ययन-कक्ष मेंं विद्यार्थियों को सदैव पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की तरफ मुंह करके पढ़ऩा चाहिए। इससे वह विलक्षण प्रतिभा का धनी व ज्ञानवान होगा। पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पढ़ऩे वाले बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस अधिकारी तक हो सकते हैं। पूर्व दिशा लिखने-पढ़ऩे के लिए सर्वोत्तम होती है। उत्तर-पूर्व मेंं रहने वाले बच्चे की सेहत भी काफी अच्छी रहती है। मकान के उत्तर-पूर्व कोण के बने कमरे मेंं दक्षिण या पश्चिम की ठोस दीवार के सहारे बैठकर पढ़ऩे से सफलता जल्दी मिलती है। इस कमरे मेंं उत्तर-पूर्व की दीवार पर रोशनदान या खिडक़ी जरूर होनी चाहिए। बच्चे को आग्नेय कोण मेंं बैठकर पढ़ऩे से मना करें, क्योंकि यहां बैठने से रक्तचाप बढ़़ता है और बच्चा हमेशा ही परेशान रहता है। मेहनत करने के बावजूद भी सफलता हाथ नहींं लगती। पढ़़ाई हो या दफ्तर, पीठ के पीछे खिडक़ी शुभ नहींं होती। इससे पढ़़ाई/नौकरी छूट जाती है। पीछे व कंधे पर रोशनी या हवा का आना अशुभता को ही दर्शाता है। जिस मकान मेंं, जहां कहीं भी तीन या इससे अधिक दरवाजे एक सीध मेंं हो या गली की सीध मेंं हों तो उसके बीच मेंं बैठकर नहींं पढ़ऩा चाहिए। इसके बीच मेंं बैठकर पढ़ऩे से बच्चे की सेहत ठीक नहींं रहती, साथ ही पढ़ऩे मेंं भी मन नहींं लगता। विद्यार्थियों को किसी बीम या दुछत्ती के नीचे बैठकर पढ़ऩा या सोना नहींं चाहिए, अन्यथा मानसिक तनाव उत्पन्न होता है। अध्ययन कक्ष की दीवार या पर्दे का रंग हल्का पीला, हल्का हरा, हल्का आसमानी हो तो बेहतर है। कुंडली के अनुसार शुभ रंग जानकर अगर दीवारों पर करवाया जाये, तो ज्यादा बेहतर परिणाम सामने आते हैं। यदि विद्यार्थी कम्प्यूटर का प्रयोग करते हैं तो कम्प्यूटर आग्नेय से दक्षिण व पश्चिम के मध्य कहीं भी रख सकते हैं। ईशान कोण मेंं कभी भी कम्प्यूटर न रखें। अध्ययन-कक्ष के टेबल पर उत्तर-पूर्व कोण मेंं एक गिलास पानी का रखें। इसके अलावा टेबल के सामने या पास मेंं मुंह देखने वाला आईना न रखें। अध्ययन कक्ष मेंं सोना मना है। इस कारण से वहां पर पलंग, गद्दा-रजाई आदि नहींं होनी चाहिए। वैसे सोते समय बच्चे का सिर पूर्व दिशा या दक्षिण दिशा की ओर अच्छा रहता है।
रुद्राक्ष रत्न कवच:
यह कवच चार मुखी रुद्राक्ष एवं पन्ना रत्न के संयुक्त मेंल से निर्मित होता है। चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा जी का स्वरूप होने से इसे विद्या प्राप्ति के लिए धारण करना शुभ होता है। पन्ना रत्न से बुद्धि का विकास होता है, जिससे पढ़़ाई मेंं अच्छी सफलता प्राप्त होती है।
सरस्वती यंत्र:
जिन विद्यार्थियों को अधिक मेंहनत करने पर भी परीक्षा मेंं अच्छे अंक प्राप्त नहींं होते, उन्हें यह यंत्र घर मेंं स्थापित करना चाहिए और श्रद्धा से धूप, दीप, गंध, अक्षत आदि से पूजन तथा निम्न मंत्र का जप करना चाहिए।
मंत्र: ऐं ह्रीं क्लीं सरस्वत्यै नम:॥ या देवि सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
फेंगशुई:
अगर बच्चे का पढ़़ाई मेंं मन नहींं लगा रहा हो, तो टेबल पर एजुकेशन टावर लगाना चाहिए। इसके प्रभाव से बच्चे की पढ़़ाई मेंं एकाग्रता बढ़़ेगी और पढ़़ाई मेंं बच्चे का मन लगने लगेगा। बच्चे की परीक्षा मेंं शानदार सफलता के लिए अध्ययन कक्ष मेंं स्फटिक गोले उत्तर दिशा मेंं लटकाने चाहिए। नवरत्न का पौधा बच्चे के नवग्रह को ठीक करता है। इसे उत्तर दिशा मेंं लगाना चाहिए। विद्यार्थी अपनी मेंज पर ग्लोब रखें और इसे दिन मेंं तीन बार घुमाएं।
पिरामिड :
पिरामिड का जल अगर बच्चे को पिलाया जाये तो बच्चे की सेहत ठीक रहेगी और बच्चे की पढ़़ाई मेंं रुचि बढ़़ेगी।

प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता के ज्योतिष्य मन्त्र

मानव के समस्त कार्य और व्यवसाय को संचालित करने मेंं नेत्रों की भूमिका जिस प्रकार अग्रगण्य मानी गई है, ठीक उसी प्रकार ज्ञान, विज्ञान विद्या के क्षेत्र मेंं ज्योतिष विज्ञान दृष्टि का कार्य करता है। वेदचक्षु: क्लेदम् स्मृतं ज्योतिषम्। ज्योतिष को वेद की आंख कहा गया है। जिस प्रकार वट वृक्ष का समावेष उसके बीज मेंं होता है ठीक उसी प्रकार जन्म-जन्मांतरों के कर्मों का बीज रूप होता है जातक की जन्मपत्री। जन्मपत्री के पंचम भाव से विद्या का विचार उत्तर भारत मेंं किया जाता है। दक्षिण भारत मेंं चतुर्थ भाव व द्वितीय भाव से विद्या बुद्वि का विचार किया जाता है। द्वितीय भाव धन व वाणी का स्थान है और विद्या को मनीषियों ने धन ही कहा है जिसका कोई हरण नहींं कर सकता है। विद्या एक ऐसा धन है जिसे न कोई छीन सकता है न चोरी कर सकता है। विद्या धन देने से बढ़़ती है। विद्या ज्ञान की जननी है। जीवन को सफल बनाने की दिशा मेंं शिक्षा ही एक उच्च सोपान है जो अज्ञानता के अंधकार से बंधन मुक्त करती है। शिक्षा के बल से ही मानव ने गूढ़ से गूढ़तम (अंधकार) रहस्य से पर्दा उठाया है। आदिकाल से ही मानव को अपना शुभाशुभ भविष्य जानने की उत्कंठा रही है। ज्योतिष विज्ञान इस जिज्ञासा वृत्ति का सहज उत्कर्ष है। जन्मकुंडली का चतुर्थ भाव बुद्वि, पंचम भाव ज्ञान, नवम भाव उच्च शिक्षा की स्थिति को दर्शाता है तो द्वादश भाव की स्थिति जातक को उच्च शिक्षा हेतु विदेश गमन कराती है। ज्ञात हो कि अष्टम भावस्थ क्रूर ग्रह भी शिक्षा हेतु विदेश वास कराता है। किसी भी परीक्षा मेंं सफलता की कुंजी है छात्र की योग्यता और कठिन परीश्रम। यदि इसके साथ-साथ जन्मकुंडली के ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त हो तो सफलता मिलती ही है। अपने देश मेंं यह आम धारणा बनी है कि सर्विस पाने के लिए ही शिक्षा ग्रहण की जाती है, यह विचार बहुत ही संकीर्ण है। विद्या व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारती व संवारती है। वेद पुराण सभी मेंं वर्णित है कि जातक को प्रथम विद्या अध्ययन करना चाहिए तत्तपश्चात् कार्य क्षेत्र मेंं उतरे। शिक्षित व्यक्ति को ही विद्याबल से यश, मान, प्रतिष्ठा स्वत: मिलती चली जाती है। शिक्षा हो अथवा सर्विस सभी जगह व्यक्ति को प्रतियोगिता का सामना करना ही पड़ता है। परीक्षा मेंं सफलता हेतु आवश्यक है लगन, कड़ी मेंहनत व संबंधित विषयों का विशद् गहन अध्ययन। किंतु सारी तैयारियां हो जाने के पश्चात् भी कभी-कभी असफलता ही हाथ लगती है। जैसे
(1) अचानक बीमार पड़ जाना।
(2) परीक्षा भवन मेंं सब कुछ भूल जाना।
(3) परीक्षा से भयभीत होकर पूर्ण निराश होना।
(4) स्वयं के साथ अनायास दुर्घटना घट जाना कि परीक्षा मेंं बैठ ही न सके।
(5) परिवार मेंं अनायास दु:खद घटना घट जाना, जिससे पढऩे से मन उचाट होना आदि अनेक कारणों से परीक्षा मेंं व्यवधान आते हैं जिससे छात्रों को असफलता का मुंह देखना पड़ता है।
ग्रहों का प्रभाव (चंद्र):
चंद्र मन का कारक ग्रह है और परीक्षा मेंं सफलता हेतु मन की एकाग्रता अति आवश्यक है। ज्योतिषिय दृष्टि से यदि चंद्र शुभ, निर्मल, डिग्री आधार पर बलवान हो, किसी शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो व्यक्ति बढ़़ी आसानी से (लगन से) अपने विषय मेंं महारत हासिल करेगा। चंद्र यदि पापाक्रांत हो राहु, शनि, केतु का साथ हो पंचमेंश छठे, आठवें, द्वाद्वश भाव मेंं हो तो शिक्षा अधूरी रह जाएगी। व्यक्ति सदैव चिंताग्रस्त व विकल रहेगा। बुध: बुध बुद्वि, विवेक, वाणी का कारक ग्रह है। बुध गणितिय योग्यता मेंं दक्ष और वाणी को ओजस्वी बनाता है। बुध यदि केंद्र मेंं भद्र योग बनाये। सूर्य के साथ बुधादित्य योग घटित करे, निज राशि मेंं बलवान हो तो व्यक्ति उच्च शिक्षा मेंं सफलता हासिल करता है किंतु यदि बुध नीच, निर्बल, अस्त, व क्रूर ग्रहों के लपेटे मेंं हो तो बुध अपनी शुभता खो देगा। फलत: गणितीय क्षेत्र, व्यापार क्षेत्र, कम्प्यूटर शिक्षा मेंं असफल हो जाता है। यदि जन्मकुंडली मेंं बुधादित्य-योग, गजकेसरी-योग, सरस्वती-योग, शारदा-योग, हंस-योग, भारती-योग, शारदा लक्ष्मी योग हो तो जातक उच्च शिक्षा अवश्य प्राप्त कर (अच्छे अंक से) सफल होगा। द्वितीय भाव का बुध मधुरभाषी व व्यक्ति को व्यवहार कुशल बनाता है व बुद्वि बल चतुरता से सफलता की ओर अग्रसर करता है। जबकि पंचम भाव का बुध व्यक्ति को कलाप्रिय व विविध विषयों का जानकार व अपने व्यवहार से दूसरों को वश मेंं करने वाला होता है। गुरु: उच्च स्तरीय ज्ञान-गुरु ही दिलाते हैं। गुरु ज्ञान का विस्तार करते हैं। अत: जन्मकुंडली मेंं गुरु की शुभ स्थिति विद्या क्षेत्र व प्रतियोगी परीक्षाओं मेंं सफलता दिलाती है। गुरु $ शुक्र का समसप्तक योग यदि पंचम व एकादश भाव मेंं बने व केंद्र मेंं शनि, बुध, उच्च का हो तो व्यक्ति कानून की पढ़़ाई मेंं उच्च शिक्षित होगा और शनि गुरु की युति न्यायाधीश बना देगी।
ज्योतिष के आधार पर परीक्षा मेंं असफलता के योग:
(1) यदि चतुर्थेश, छठे, आठवें द्वाद्वश हो तो उच्च शिक्षा मेंं बाधा, पढ़़ाई मेंं मन नहींं लगेगा।
(2) यदि चतुर्थेष निर्बल, अस्त, पाप, व क्रूर ग्रहों से आक्रांत हो तो शिक्षा प्राप्ति मेंं बाधा।
(3) यदि द्वितियेश पर चतुर्थ, पंचम भाव पर क्रूर ग्रह की दृष्टि हो या इन भावों ने अपना शुभत्व खो दिया हो तो शिक्षा प्राप्ति मेंं बाधा।
(4) ग्रहण योग बना हो। उक्त स्थानों मेंं या ग्रहणकाल मेंं जन्म हुआ हो तो शिक्षा अधूरी।
(5) गुरु नीच, निर्बल, पापाक्रांत होने सेे उच्च शिक्षा प्राप्ति का मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा।
(6) जन्मकुंडली मेंं केंद्रुम योग हो। शिक्षा मेंं बाधा।
(7) चंद्र के साथ शनि उक्त स्थानों मेंं विष योग बना रहा हो तो पढ़़ाई अवरुद्ध।
(8) कुंडली मेंं क्षीण चंद्र हो तो शिक्षा मेंं बाधा आती है।
(9) बुध नीच, निर्बल, अशुभ हो तो शिक्षा पूर्ण नहीेंं होगी। (10) आत्मकारक ग्रह सूर्य यदि पीडि़त, निर्बल अशुभ प्रभाव मेंं हो तो प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा मेंं ही छात्र का आत्म बल घट जाने से प्रायोगिक (प्रेक्टिकल) परीक्षा मेंं ही घबरा कर घर बैठ जाएगा। उच्च शिक्षा से वंचित हो जाएगा।
(11) पंचम, द्वितीय, चतुर्थ, व अष्टम मेंं शनि नीच का हो तो शिक्षा अधूरी रहे। त्वरित उपाय करें।
ग्रहयोगों के आधार पर प्रतिस्पर्धा मेंं सफलता:
(1) लग्नेश पंचमेंश चतुर्थेश का संबंध केंद्र या त्रिकोण से बनता हो या इनमेंं स्थान परिर्वतन हो तो सफलता मिलेगी।
(2) कुंडली मेंं कहीं पर भी बुधादित्य योग हो तो सफलता मिलेगी लेकिन बुध दस अंश के ऊपर न हो।
(3) केंद्र मेंं उच्च के गुरु, चंद्र शुक्र, शनि यदि हो तो जातक परीक्षा (प्रतियोगिता) मेंं असफल नहींं होता।
(4) पंचम के स्वामी गुरु हो और दशम भाव के स्वामी शुक्र हो तथा गुरु दशम भाव मेंं शुक्र पंचम भाव मेंं हो तो निश्चित सफलता मिलती है।
(5) लग्नेश बलवान हो। भाग्येश उच्च का होकर केंद्र या त्रिकोण मेंं स्थित हो तो सफलता हर क्षेत्र मेंं मिलती है।
(6) लग्नेश त्रिकोण मेंं धनेश एकादश मेंं तथा पंचम भाव मेंं पंचमेंश की शुभ दृष्टि हो तो जातक विद्वान होता है। प्रतियोगिता मेंं सफलता प्राप्त करता है।
(7) चंद्रगुरु मेंं स्थान परिवर्तन हो चंद्रमा पर गुरु की दृष्टि हो तो सरस्वती योग बनने से ऐसा जातक सभी क्षेत्र मेंं सफल होगा, कहीं भी प्रयास नहींं करना पड़ेगा।
(8) चारों केंद्र स्थान मेंं कहीं से भी गजकेसरी योग बनता हो तो ऐसा बालक प्रतिस्पर्धा मेंं अवश्य सफल होता है।
(9) गुरु लग्न भावस्थ हो और बुध केंद्र मेंं नवमेंश, दशमेंश, एकादशेश से युति कर रहा हो या मेंष लग्न मेंं शुक्र बैठे हो सूर्य शुभ हो और शुक्र पर शुभ-ग्रह की दृष्टि हो तो ऐसा जातक उच्च स्तरीय प्रशासनिक प्रतियोगिता परीक्षा मेंं सफल होगा ही।
(10) कुंडली मेंं पदमसिंहासन योग úचाई देगा।
(11) पंचमस्थ गुरु जातक को बुद्धिमान बनाता है।
(12) गुरु द्वितियेश हो व गुरु बली सूर्य, शुक्र से दृष्ट हों तो व्याकरण के क्षेत्र मेंं सफलता।
(13) केंद्र या त्रिकोण मेंं गुरु हो, शुक्र व बुध उच्च के हो तो जातक साइन्स विषय मेंं सफलता पाता है।
(14) धनेश बुध उच्च का हो, गुरु लग्न मेंं और शनि आठवें मेंं हो तो विज्ञान क्षेत्र मेंं सफलता मिलेगी।
(15) यदि द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम, का संबंध बुध, सूर्य, गुरु व शनि इनमेंं से हो तो जातक वाणिज्य संबंधी विषयों से अपनी शिक्षा पूर्ण करता है।
(16) यदि द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, दशम का संबंध सूर्य मंगल चंद्र शनि व राहु से हो तो जातक को चिकित्सा संबंधी विषयों मेंं अपनी शिक्षा पूर्ण करनी चाहिये।
(17) यदि द्वितीय, चतुर्थ, पंचम व दशम का संबंध सूर्य, मंगल, शनि व शुक्र हो तो जातक इन्जीनियरिंग संबंधी विषयों से अपनी शिक्षा पूर्ण करता है।
(18) द्वितीय भाव, चतुर्थ भाव, पंचम, नवम, दशम का संबंध सूर्य, बुध, शुक्र, गुरु, ग्रहों से हो तो जातक कला क्षेत्र मेंं अपनी शिक्षा अवश्य पूर्ण करता है।
(19) द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम, स्थान से सूर्य, मंगल, गुरु, चंद्र, शनि, व राहु का संबंध हो तो जातक विज्ञान संबंधी विषय मेंं शिक्षा अवश्य पूर्ण करता है। समाधान: स्मरण शक्ति मेंं वृद्धि एवं तीव्र बुद्धि के लिए गायत्री यंत्र का लॉकेट पहनें श्री गायत्री वेदों की माता है जो वेद वेदांत, अध्यात्मिक, भौतिक उन्नति व ज्ञान-विज्ञान की दात्री है।
बुद्धि मेंं वृद्धि के उपाए:
(1) बुद्वि के प्रदाता श्रीगणेश जी के निम्न मंत्र का जप 21 बार बालक स्वयं करें। ú ऐं बुद्धिं वर्द्धये चैतन्यं देहित ॠ नम:। बालक के नाम से माता पिता भी कर सकते हैं।
(2) श्रीगणेश चतुर्थी को गणेश पूजन करके 21 दूर्बा श्रीस्फटिक गणेश जी पर श्रीगणेशजी के 21 नामों सहित अर्पण करें और गं गणपतये नम: की एक माला जप करें। एकदन्त महाबुद्वि: सर्व सौभाग्यदायक:। सर्वसिद्धिकरो देवा: गौरीपुत्रो विनायक:।। उक्त मंत्र को नियमित जपे व जिस समय परीक्षा हाल मेंं प्रश्न पत्र हल करने बैठें तब 3 बार इस मंत्र का स्मरण मन ही मन करें।
(3) ‘‘मंत्र ऐं सरस्वतै ऐं नम:’’ सरस्वती की मूर्ति अथवा चित्र या सरस्वती यंत्र के समक्ष उक्त मंत्र जपते हुए अष्टगंध से अपने ललाट पर तिलक लगाएं। पीला पुष्प अर्पण करें।
(4) परीक्षा देने से पूर्व मां अपने बेटे की जीभ मेंं शहद से श्री सरस्वती देवी का बीज मंत्र ऐं लिख दें। बालक को मीठा दही खिलाएं। बालक की स्मरण शक्ति तेज होगी। वाकपटु (श्रेष्ठवक्ता) होगा। बसंत पंचमी के दिन इस प्रयोग को संपन्न करने से बालक बालिका का मन पढ़़ाई मेंं लगता है व परीक्षा मेंं श्रेष्ठ अंक प्राप्त करते हैं।
(5) ‘‘सरस्वत्यै विद्महे ब्रम्हपुत्रयै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्’’ उच्च शिक्षा के क्षेत्र मेंं सफलता हेतु सरस्वती यंत्र का लॉकेट बहुत उपयोगी व लाभदायक है। परीक्षा मेंं अच्छे अंक के लिए अथवा किसी इन्टरव्यु मेंं सफलता प्राप्त करनी हो या शिक्षा से संबंधित कोई भी क्षेत्र हो यह लॉकेट बालक, बालिका के गले मेंं अद्भुत रूप से लाभदायी सिद्व होगा।
(6) ‘‘बुद्विहीन तनु जानिके सुमिरौ पवन कुमार। बल बुद्वि विद्या देहु मोहि, हरहु क्लेश विकार’’ मंगलवार या शनिवार के दिन श्री हनुमान जी के मंदिर मेंं दीप जलाएं व शुद्ध पवित्र मन से एक माला उक्त मंत्र का जप करें। परीक्षाफल निकलने तक यह क्रम बनाए रखें।
(7) विद्या प्रदायक श्री गणपति: जिन घरों मेंं बच्चे विद्या अध्ययन मेंं रुचि नहींं रखते उन्हें अपने अध्ययन कक्ष मेंं टेबल के ऊपर शुभ मुहूर्त मेंं श्री विद्या प्रदायक श्री गणपति की मूर्ति स्थापित करनी चाहिये।
(8) पढऩे की टेबल मेंं मां सरस्वती का फोटो रखें। क्योंकि मां सरस्वती की आराधना जीवन मेंं हमेंंं उच्च शिखर एवं यश प्रतिष्ठा दिलाती है। मां सरस्वती का चित्र ही हमेंंं शिक्षित करता है कि जीवन मेंं यदि विद्या ग्रहण करनी है तो आसन कठोर होना चाहिए। मां के चार हाथों मेंं से दो मेंं वीणा है जो बताती है कि विद्यार्थी जीवन वीणा की तार की तरह होना चाहिये, वीणा के तार को अधिक कसेंगे तो तार टूट जाएंगे और ढीला छोडेंग़े तो सरगम के सुर नहींं निकलेंगे, अत: विद्यार्थियों को अधिक भोजन नहींं करना चाहिए और न अधिक उपवास करना चाहिए। ज्यादा जागना, ज्यादा सोना आपके विद्याभ्यास को बिगाड़ सकता है। एक हाथ मेंं वेद पुस्तक व एक हाथ मेंं माला हमेंंं ज्ञान की ओर प्रेरित करती है। देवी सरस्वती का वाहन मयूर है। हमेंंं सरस्वती का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए उनका वाहन मयूर बनना है। मीठा, नम्र, विनीत, शिष्ट और आत्मीयतायुक्त संभाषण करना चाहिए। तभी मां सरस्वती हमेंंं अपने वाहन की तरह प्रिय पात्र मानेगी। प्रकृति ने मयूर को कलात्मक व सुसज्जित बनाया है। हमेंंं भी अपनी अभिरुचि परिस्कृत व क्रिया कलाप शालीन रखना चाहिए। सरस्वती अराधना हेतु सरस्वती स्त्रोत का पाठ भी करें।
(9) टेबल लैंप को मेंज के दक्षिण कोने मेंं रखना चाहिए।
(10) अध्ययन कक्ष की दीवारों के रंग गहरे न हों। हल्के हरे सफेद व गुलाबी रंग स्मरण शक्ति को बड़ाते हैं।
(11) दरवाजे के सामने पीठ करके न बैठें।
(12) बीम के नीचे बैठ कर पढ़ाई न करें।
(13) अध्ययन कक्ष के परदे हल्के पीले रंग के हों।
(14) बिस्तर या सोफे मेंं बैठ कर पढ़ाई न करें।
(15) जिनका मन पढ़ाई मेंं नहींं लगता हो वे ध्यानस्थ बगुले का चित्र अध्ययन कक्ष मेंं लगाएं।
(16) उत्तर पूर्व की ओर मुख करके अध्ययन करें।
(17) अध्ययन कक्ष के मध्य भाग को खाली रखें।
(18) अध्ययन कक्ष मेंं पढऩे की मेंज पर जूठे बर्तन कदापि न रखें।
(19) पंचमेंश यदि शुभ प्रभाव मेंं है तो उस ग्रह का रत्न धारण करें। उदारणार्थ कुंभ लग्न मेंं पंचमेंश बुध है अत: पन्ना की अंगूठी दाएं हाथ की कनिष्ठिका मेंं पहनें, विधि विधान से रत्न को अभिमंत्रित व प्राण प्रतिष्ठित करके ही पहनें।
(20) श्री गणेश ‘‘अथर्व-शीर्ष’’ का पाठ करते रहें। इससे बुद्धिबल व आत्मबल बढ़़ेगा तथा सफलता मिलेगी।
(21) इस मंत्र का जाप सुबह शाम दोनोंं समय करें।
(22) ‘‘गुरु गृह पढऩ गये रघुराई। अल्प काल विद्या सब पाई।।’’ अंाखों के खुलते ही दोनों हाथों की हथेलियों को देखते हुये निम्नलिखित श्लोक का पाठ करें। कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती। करमूले स्थितो ब्रम्हा प्रभाते करदर्शनम्।।
(23) माता पिता गुरु का आदर करें: उत्थाय मातापितरौ पूर्वमेंवाभिवादयत्। आचार्यश्च ततो नित्यमभिवाद्यो विजानता।। परिवार के वृद्ध व्यक्ति वट वृक्ष की तरह होते हैं। जिनकी स्निग्ध छाया मेंं परिवार के लोग जीवन की थकान मिटाते हैं। जिस प्रकार नदियां अपना जल नहींं पीती, पेढ़ अपना फल स्वयं नहींं खाते, मेंघ अपने लिए जल नहींं बरसाते। ठीक उसी प्रकार सज्जनों गुरुजनों की कृपा वर्षा, परोपकार के लिए होती है। ज्ञान व अनुभव की आभा बिखेरने वाले वृद्धजनों, गुरुजनों व माता-पिता का अनादर (उपेक्षा) न करें। अपितु मनोयोग से सेवा करें।
(24) मां गायत्री की साधना निम्न मंत्र सहित करें: यन्मण्डलं ज्ञानघनं त्वगम्यं, त्रैलोक्य पूज्यं त्रिगुणात्मरूपम्। समस्त-तेजोमय-दिव्य रूपं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्।

Wednesday 18 May 2016

विश्वास या अंधविश्वास क्या है आपको जाने अपने ग्रहों से -

विश्वास या अंधविश्वास क्या है आपको जाने अपने ग्रहों से -
जिन कार्यो को भाग्य, किसी अज्ञात भय या बिना तर्क के किया जाता है वह अंधविश्वास की सीमा में आते हैं। अतः किसी भी जातक में आस्था या विश्वास कब अन्धविश्वास में बदल जायेगा इसकी गणना उस जातक की कुंडली के नवम भाव से देखा जाता है यदि नवम भाव और तीसरा भाव कमजोर, नीच या क्रूर ग्रहों से पापाक्रांत हो तो व्यक्ति परेशानी या हताशा की स्थिति में आस्था से अंधविश्वास की राह में चला जाता है... यदि कोई व्यक्ति जरूरत से ज्यादा अंधविष्वासी हो तो उसके तीसरे तथा नवम स्थान का अंकलन कर उसके अनुरूप उपाय करने से इन अंधविष्वासों से छुटकारा पाया जा सकता है....कालपुरूष की कुंडली में नवम स्थान गुरू का है अतः जगत्गुरू श्रीकृष्ण की उपासना, पूजा तथा दही माखन का दान करने से इस प्रकार के अंधविश्वास से बचा जा सकता है...

Profession through astrology

It is not possible for an embodied soul to remain without work. He who renounces the fruits of action achieves renunciation" The Gita 18:11 We perform our Karmic duties as designed by the supreme power. But by performing the multifarious jobs we fulfil our Karmic obligations. In ancient time profession was destined. Jatak was forced to be in the same profession in which his fore fathers were engaged. But in the modern era, when professions are mushrooming and we all are finding new and varied ways of earning a living, deciding profession is decidedly not an easy exercise for an astrologer. Increasing competition and resultant specialization has opened up new and newer branches of career and vocation, which were unexplored in ancient time. In fact the number of avocations today is so vast and varied, that it is nearly impossible to ascertain, with any degree of accuracy, the exact nature of profession. It, therefore, requires intelligent interpretation of behaviour of planets and their combinations and permutations, as modified according to the present context. The judgement of profession begins with the analysis of 10th house. But practically this has been observed that some more factors are equally important and among them it is necessary to ascertain the intellectual, mental and physical ability of the native, by a careful examination of the strength, or the weakness of the Sun the Moon and Lagna respectively. The position of Mars is equally important. In Skand 10/chapter 47/ Shloka -67 - "our Karmas are desired by HIM, but the vibrations directing the inner self towards Karma are conveyed by Mangal, the planet Mars. When either Moon or Mercury receives a series of evil aspects, particularly those of Rahu and Saturn, one lacks the strength of mind, required to face adverse situations. In broad spectrum Jupiter and Mercury refer to intellectual avocations, Venus to aesthetic professions, Sun, Moon and Mars to economic occupations, Mercury to traders, Saturn to laborious jobs and Rahu/Ketu to routine Workers. But we can not draw any line of distinction between these categories. For instance, a doctor by profession may become a businessman. Therefore in his occupation both intellectual skill as well as economic aspect come in. The general significators in any horoscope are the ascendant, the tenth house, the Sun and the Moon. These signs are respectively known as the Lagna, the Dashama Lagna, the Surya Lagna and the Chandra Lagna. They exercise profound influence on one's life. But eastern as well as western astrologers recommended their consideration and careful judgement for arriving at correct conclusions. Besides these points, the lord of 10th house, the Karaka of 10th house and Mars also play a significant role in establishing the profession. Firstly note which planets are placed in the house, planets aspecting 10th house, the placement of 10th lord in Rasi and Navamsha and it's stellar position, its association and aspects with other planets. Lastly, the Karaka for profession is Sun. But if we are interested in the income from the profession, we must study Jupiter. According to "Jatak Parijata" , the Sun, Mercury, Jupiter and Saturn are the Karaka of different professions. But the question is how to find out the correct karaka of a birth chart, if the native is young and is in a state of utter confusion. The 2nd house and 10th house from Lagna have a control over occupation of the native, whereas the lords of 2nd and 10th signs of the natural zodiac i.e. Venus and Saturn are causative, or Karaka of career. No vocation can be decided by any single planet or it's placement. There is a group of planets whose influence over the planet's association or conjunction may determine one's vocation. Which planet helps to acquire wealth? Which planet is in the 10th house to the Lagna, or Moon? Whoever is stronger, acquisition of wealth will be through father if the planet is Sun, through mother if the planet is Moon, through an enemy if the planet is Mars, through friend if the planet is Mercury, through brother if the planet is Jupiter, through wife if the planet is Venus, through subordinates if the planet is Saturn. There are instances when a person suddenly changes his career from one field to another. This is explained by the fact that there is a special stimulus to certain qualities at certain ages, probably depending upon the directional influences (Dashas and Bhuktis) operating them. One of the abiding curiosities that has intrigued man since times, immemorial is why does a man do what he does? Why is a person inclined towards a particular profession? Why some natives are not satisfied with their jobs? While under same circumstances others enjoy? These whys, very pertinent, very important, can be answered by Vedic astrology. Each action of the native is controlled by the planets. The planetary configuration in a horoscope induces inclination towards a particular occupation. These inclinations fructify in a matching Dasha sequence, supported by transit that comes to pass the appropriate chronological age of that person. A mismatch of these indicators lead to fitting of square pegs in round holes. Connected to these whys is a when. When could a person join a profession and begin to earn money? Vedic astrology has answer to this query also. To answer this "when" the sages have devised a celestial clock- Dasha system. It is this timer which permits planets to cause an act to be performed, as well as it's effects on the performer. The frequent job changes in today's world result from greater opportunities, better information and superior communications. Thus, slight mismatch in Dasha, transit and planets now give stronger indication for a job change than, what it did a few decades earlier. In this the study of Lagna, lagnalord, the 6th house, 6th lord, the 10th house and the 10th lord, To get the measure of level of fructification and duration of career, the strength of planetary influence on the professional houses and planets become critical. Divisional charts give us the measure of planetary strength. From this base level the strength wanes and waxes, increases and decreases , in conformity with the unfolding Dashas. In divisional charts Navamsha chart indicates to us the debilitation of the planet's strength as assessed from the natal chart. Further, we add Dashamamsha chart to the natal and Navamsha chart. During the Dasha periods also, one experiences the results of the star lords. Hindu Astrology gives great importance to Yogas or special combinations, or configuration of planets in horoscope to decide one's profession. Presence of benefic Yogas greatly enhance the merit and status of the person, while bad Yogas bring discredit, obstacles to progress. Astrology works at two levels& the gross and the subtle. At the gross level it is mere desire. The subtle level desires are conditioned by duties and values, resulting in form of Karmas. Synthesising the two, we are made aware of the fact that actions will fructify through the body but not all the seeds will sprout and we also do not know which seed will spring when. In Vedic astrology our endeavour has always been to get astrology it's rightful place, that is the science which harmonieses life by showing the path to achieve the meshing of our desires with our capabilities.

संतान सुख में बाधा: संतानहीनता योग

विवाह के बाद प्रत्येक व्यक्ति ना सिर्फ वंष पंरपरा को बढ़़ाने हेतु अपितु अपनी अभिलाषा तथा सामाजिक जीवन हेतु संतान सुख की कामना करता है। शादी के दो-तीन साल तक संतान का ना होना संभावित माना जाता है किंतु उसके उपरांत सुख का प्राप्त ना होना कष्ट देने लगता है उसमेंं भी यदि संतान सुख मेंं बाधा गर्भपात का हो तो मानसिक संत्रास बहुत ज्यादा हो जाती है। कई बार चिकित्सकीय परामर्ष अनुसार उपाय भी कारगर साबित नहींं होते हैं किंतु ज्योतिष विद्या से संतान सुख मेंं बाधा गर्भपात का कारण ज्ञात किया जा सकता है तथा उस बाधा से निजात पाने हेतु ज्योतिषीय उपाय लाभप्रद होता है। सूर्य, शनि और राहु पृथकता-कारक प्रवृत्ति के होते हैं। मंगल मेंं हिंसक गुण होता है, इसलिए मंगल को विद्यटनकारक ग्रह माना जाता है। यदि सूर्य, शनि या राहु मेंं से किसी एक या एक से अधिक ग्रहों का पंचम या पंचमेंष पर पूरा प्रभाव हो तो गर्भपात की संभावना बनती है। इसके साथ यदि मंगल पंचम भाव, पंचमेंष या बृहस्पति से युक्त या दृष्ट हो तो गर्भपात का होना दिखाई देता है।
संतानहींनता के लिए महर्षि पाराषर ने अनेक कारणों का उल्लेख किया है, जिसमेंं प्रमुख कारण जातक का किसी ना किसी प्रकार से शाप से ग्रस्त होना भी बताया है। यदि जन्मांग मेंं पंचमस्थान का स्वामी शत्रुराषि का हो, छठवे, आठवे या बारहवें भाव मेंं हो या राहु से आक्रांत हो या मंगल की पूर्ण दृष्टि हो तो संतान प्राप्ति मेंं बाधा होती है। यदि संतान बाधाकारक ग्रह सूर्य हो तो पितरों का शाप संतान मेंं बाधा देता है। वहीं यदि चंद्रमा प्रतिबंधक ग्रह हो तो माता या किसी स्त्री को दुख पहुॅचाने के कारण संतानबाधक योग बनता है। यदि मंगल से संतान बाधक हो तो भाईबंधुओं के शाप से संतानसुख मेंं कमी होती है। यदि गुरू संतानहींनता मेंं कारक ग्रह बनता हो तो कुलगुरू के शाप के कारण संतानबाधा होती है। यदि शनि के कारण संतान बाधा हो तो पितरों को दुखी करने के कारण संतान मेंं बाधा होती है तथा राहु के कारण संतान प्राप्ति के मार्ग मेंं बाधा हो तो सर्पदोष के कारण संतानसुख बाधित होता है। इसी प्रकार ग्रहों की युक्ति या ग्रह दशाओं के कारण भी संतान मेंं बाधा या हीनता का कारण बनता हो तो उचित ज्योतिषीय निदान द्वारा संतानहींनता के दुख को दूर किया जा सकता है।

सूर्य का अन्य ग्रहों से परस्पर संबंध

यह जगतपिता है, इसी की शक्ति से समस्त ग्रह चलायमान है, यह आत्मा कारक और पितृ कारक है, पुत्र, राज्य-सम्मान, पद, भाई, शक्ति, दायीं आंख, चिकित्सा, पितरों की आत्मा, शिव और राजनीति का कारक है. मेष राशि मेंं उच्च का एवं तुला मेंं नीच का होता है, चन्द्रमा देव ग्रह है, तथा सूर्य का मित्र है, मंगल भी सूर्य का मित्र है, गुरु सूर्य का परम मित्र है, बुध सूर्य के आसपास रहता है, और सूर्य का मित्र है, शनि सूर्य पुत्र है लेकिन सूर्य का शत्रु है, कारण सूर्य आत्मा है और आत्मा का कोई कार्य नहीं होता है, जबकि शनि कर्म का कारक है, शुक्र का सूर्य के साथ संयोग नहीं हो पाता है, सूर्य गर्मी है और शुक्र रज है, सूर्य की गर्मी से रज जल जाता है, और संतान होने की गुंजायस नहीं रहती है, इसी लिये सूर्य का शत्रु है। राहु विष्णु का विराट रूप है, जिसके अन्दर सम्पूर्ण विश्व खत्म हो रहा है, राहु, सूर्य और चन्द्र दोनों का दुश्मन है, सूर्य के साथ होने पर पिता और पुत्र के बीच धुंआ पैदा कर देता है, और एक दूसरे को समझ नहीं पाने के कारण दोनों ही एक दूसरे से दूर हो जाते है। केतु सूर्य का सम है, और इसे किसी प्रकार की शत्रु या मित्र भावना नहीं है, सूर्य से सम्बन्धित व्यक्ति, पिता, चाचा, पुत्र और ब्रहमा विष्णु महेश आदि को जाना जाता है, आत्मा राज्य, यश, पित्त, दायीं आंख, गुलाबी रंग और तेज का कारक है।
सूर्य और चन्द्र का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य और चन्द्रमा अगर किसी भाव मेंं एक साथ होते है, तो कारकत्व के अनुसार फल देते है, सूर्य पिता है और चन्द्र यात्रा है, पुत्र को भी यात्रा हो सकती है, एक संतान की उन्नति बाहर होती है।
सूर्य और मंगल का आपसी सम्बन्ध:
मंगल के साथ एक साथ होने पर मंगल की गर्मी और पराक्रम के कारण अभिमान की मात्रा बढ़ जाती है, पिता प्रभावी और शक्ति मान बन जाता है, मन्गल भाई है, इसी लिये एक भाई सदा सहयोग में रहता है, मन्गल रक्त है, इसलिये ही पिता पुत्र को रक्त वाली बीमारिया होती है, एक दूसरे से एक सात और एक बारह मेंं भी यही प्रभाव होता है, स्त्री की कुन्डली मेंं पति प्रभावी होता है, लेकिन उसके ह्रदय मेंं प्रेम अधिक होता है।
सूर्य और बुध का आपसी सम्बन्ध
बुध के साथ होने पर पिता और पुत्र दोनों ही शिक्षित होते है, समाज मेंं प्रतिष्ठा होती है, जातक के अन्दर वासना अधिक होती है, पिता के पास भूमि भी होती है, और बहिन काफी प्रतिष्ठित परिवार से सम्बन्ध रखती है, व्यापारिक कार्यों के अन्दर पिता पुत्र दोनों ही निपुण होते है, पिता का सम्बन्ध किसी महिला से होता है।
सूर्य और गुरु का आपसी सम्बन्ध:
गुरु के साथ होने पर जीवात्मा का संयोग होता है, जातक का विश्वास ईश्व्वर मेंं अधिक होता है, जातक परिवार के किसी पूर्वज की आत्मा होती है, जातक के अन्दर परोपकार की भावना होती है, जातक के पास आभूषण आदि की अधिकता होती है, पद प्रतिष्ठा के अन्दर आदर मिलता रहता है।
सूर्य और शुक्र का आपसी सम्बन्ध
शुक्र के साथ होने पर मकान और धन की अधिकता होती है, दोनों की युति के चलते संतान की कमी होती है, स्त्री की कुन्डली मेंं यह युति होने पर स्वास्थ्य की कमी मिलती है, शुक्र अस्त हो तो स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पडता है।
सूर्य और शनि का आपसी सम्बन्ध:
शनि के साथ होने पर जातक या पिता के पास सरकार से सम्बन्धित कार्य होते है, पिता के जीवन मेंं जातक के जन्म के समय काफी परेशानी होती है, पिता के रहने तक पुत्र आलसी होता है, और पिता के बाद खुद जातक का पुत्र आलसी हो जाता है, पिता पुत्र के एक साथ रहने पर उन्नति नहीं होती है, वैदिक ज्योतिष मेंं इसे पितृ दोष माना जाता है, जातक को गायत्री के जाप के बाद सफलता मिलने लगती है।
सूर्य और राहु का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य के साथ राहु का होना भी पितामह के बारे मेंं प्रतिष्ठित होने की बात मालुम होती है, एक पुत्र की पैदायस अनैतिक रूप से भी मानी जाती है, जातक के पास कानून से विरुद्ध काम करने की इच्छायें चला करती है, पिता की मौत दुर्घटना मेंं होती है, या किसी दवाई के रियेक्सन या शराब के कारण होती है, जातक के जन्म के समय पिता को चोट लगती है, जातक को सन्तान भी कठिनाई से मिलती है, पत्नी के अन्दर गुप चुप रूप से सन्तान को प्राप्त करने की लालसा रहती है, पिता के किसी भाई को जातक के जन्म के बाद मौत जैसी स्थिति होती है।
सूर्य और केतु का आपसी सम्बन्ध:
केतु और सूर्य का साथ होने पर जातक और उसका पिता धार्मिक होता है, दोनों के कामों के अन्दर कठिनाई होती है, पिता के पास कुछ इस प्रकार की जमीन होती है, जहां पर खेती नहीं हो सकती है, नाना की लम्बाई अधिक होती है, और पिता के नकारात्मक प्रभाव के कारण जातक का अधिक जीवन नाना के पास ही गुजरता है।
सूर्य चन्द्र और मन्गल का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य चन्द्र और मन्गल के एक साथ होने पर पिता के पास खेती होती है, और उसका काम बागवानी या कृषि से जुडा होता है, पिता का निवास स्थान बदला जाता है, जातक को रक्त विकार भी होता है, माता को पिता के भाई के द्वारा कठिनाई भी होती है, माता या सास को गुस्सा अधिक होता है, एक भाई पहले किसी कार्य से बाहर गया होता है।
सूर्य चन्द्र और बुध का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य चन्द्र बुध का साथ होने पर खेती वाले कामो की ओर इशारा करता है, पिता का सम्बन्ध किसी बाहरी महिला से होता है, एक पुत्र का मन देवी भक्ति मेंं लगा रहता है, और वह अक्सर देवी यात्रा किया करता है, एक पुत्र की विदेश यात्रा भी होती है, पिता जब भी भूमि को बेचता या खरीदता है, तो उसे धोखा ही दिया जाता है।
सूर्य चन्द्र और गुरु का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य के साथ चन्द्र और गुरु के होने पर जातक का पिता यात्रा वाले कामो के अन्दर लगा रहता है, और अक्सर निवास स्थान का बदलाव हुआ करता है, जातक पिता का आज्ञाकारी होता है, और उसे बिना पिता की आज्ञा के किसी काम मेंं मन नहीं लगता है, जातक का सम्मान विदेशी लोग करते है।
सूर्य चन्द्र और शुक्र का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य के साथ चन्द्र और शुक्र के होने से भी पिता का जीवन दो स्त्रियों के चक्कर मेंं बरबाद होता रहता है, एक स्त्री के द्वारा वह छला जाता है, जातक की एक बहिन की शादी किसी अच्छे घर मेंं होती है, पिता पुत्र के द्वारा कमाया गया धन एक बार जरूर नाश होता है, किसी प्रकार से छला जाता है, जातक की माता के नाम से धन होता है, जमीन भी होती है, मकान भी होता है, मकान पानी के किनारे होता है, या फिर मकान मेंं पानी के फव्वारे आदि होते है, जातक के अन्दर या पिता के अन्दर मधुमेंह की बीमारी होती है।
सूर्य चन्द्र और शनि का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य के साथ चन्द्र और शनि होने के कारण एक पुत्र की सेवा विदेश मेंं होती है, पिता का कार्य यात्रा से जुडा होता है, सूर्य पिता है तो शनि कार्य और चन्द्र यात्रा से जुडा माना जाता है, शनि के कारण माता का स्वास्थ खराब रहता है, उसे ठंड या गठिया वाली बीमारिया होती है।
सूर्य चन्द्र और राहु का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य के साथ चन्द्र और राहु होने से पिता और पुत्र दोनों को ही टीवी देखने और कम्प्यूटर पर चित्रण करने का शौक होता है, फोटोग्राफी का शौक भी होता है, दादा काफी विलासी रहे होते है, उनका जीवन शराब या लोगों की आदतों को समाप्त करने के अन्दर गया होता है, अथवा आयुर्वेद के इलाजो से उन्होने अपना समय ठीक बिताया होता है, एक पुत्र का अनिष्ट माना जाता है, चन्द्र गर्भ होता है, तो राहु मौत का नाम जाना जाता है, राहु चन्द्र मिलकर मुस्लिम महिला से भी लगाव रखते है, पिता का सम्बन्ध किसी विदेशी या मुस्लिम या विजातीय महिला से रहा होता है।
सूर्य चन्द्र और केतु का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य चन्द्र केतु के साथ होने पर पितामह एक वैदिक जानकार रहे होते है, नानी भी धार्मिक और वैदिक किताबों के पठन पाठन और प्रवचनों से जुड़ी होती है, माता को कफ की परेशानी होती है, जातक के पास खेती करने वाले या पानी से जुडे अथवा चांदी का काम करने वाले हथियार होते है, वह इन हथियारो की सहायता से इनका काम करना जानता है, चन्द्रमा खेती भी है और आयुर्वेद भी है एक पुत्र को आयुर्वेद या खेती का ज्ञान भी माना जाता है. शहरों मेंं इस काम को पानी के नलों को फिट करने वाला और मीटर की रीडिंग लेने वाले से भी जोड़ा जाता है.सरकारी पाइपलाइन या पानी की टंकी का काम भी इसी ग्रह युति में जोड़ा जाता है।
सूर्य मंगल और चन्द्र का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य के साथ मंगल और चन्द्र के होने से पिता पराक्रमी और जिद्दी स्वभाव का माना जाता है, जातक या पिता के पास पानी की मशीने और खेती करने वाली मशीने भी हो सकती है, जातक पानी का व्यवसाय कर सकता है, जातक के भाई के पास यात्रा वाले काम होते है, जातक या पिता का किसी न किसी प्रकार का सेना या पुलिस से लगाव होता है।
सूर्य मंगल और बुध का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य के साथ मन्गल और बुध के होने से तीन भाई का योग होता है, अगर तीनो ग्रह पुरुष राशि मेंं हो तो, सूर्य और मन्गल मित्र है, इसलिये जातक के दो भाई आज्ञाकारी होते है, बुध मन्गल के सामने एजेन्ट बन जाता है, अत: इस प्रकार के कार्य भी हो सकते है, मंगल कठोर और बुध मुलायम होता है, जातक के भाई के साथ किसी प्रकार का धोखा भी हो सकता है।
सूर्य मंगल और गुरु का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य मन्गल और गुरु के साथ होने पर जातक का पिता प्रभावशाली होता है, जातक का समाज मेंं स्थान उच्च का होता है, जीवात्मा संयोग भी बन जाता है, सूर्य और गुरु मिलकर जातक को मंत्री वाले काम भी देते है, अगर किसी प्रकार से राज्य या राज्यपरक भाव का मालिक हो, जातक का भाग्योदय उम्र की चौबीसवें साल के बाद चालू हो जाता है, जातक के पिता को अधिकार मेंं काफी कुछ मिलता है, जमीन और जागीरी वाले ठाठ पूर्वजों के जमाने के होते है।
सूर्य मंगल और शुक्र का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य मन्गल और शुक्र से पिता के पास एक भाई और एक बहिन का संयोग होता है, पिता की सहायतायें एक स्त्री के लिये हुआ करती है, जातक का चाचा अपने बल से पिता का धन प्राप्त करता है, जातक की पत्नी के अन्दर अहम की भावना होती है, और वह अपने को दिखाने की कोशिश करती है, एक बहिन या जातक की पुत्री के पास अकूत धन की आवक होती है, जातक के एक भाई की उन्नति शादी के बाद होती है।
सूर्य मंगल और शनि का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य के साथ मंगल और शनि के होने से जातक की सन्तान को कष्ट होता है, पिता के कितने ही दुश्मन होते है, और पिता से हारते भी है, जातक की उन्नति उम्र की तीस साल के बाद होती है, जीवन के अन्दर संघर्ष होता है, और जितने भी अपने सम्बन्धी होते है वे ही हर काम का विरोध करते है, भाई को अनिष्ट होता है, स्थान परिवर्तन समस्याओं के चलते रहना होता रहता है, कार्य कभी भी उंची स्थिति के नहीं हो पाते है, कारण सूर्य दिन का राजा है और शनि रात का राजा है दोनों के मिलने से कार्य केवल सुबह या शाम के रह जाते है, केवल पराक्रम से ही जीवन की गाडी चलती रहती है।
सूर्य मंगल और राहु का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य मन्गल के साथ राहु के होने से इन तीनो का योग पिता की कामों मेंं किसी प्रकार की इन्डस्ट्री की बात का इशारा देता है, जातक की एक भाई की दुर्घटना किसी तरह से होती है, जातक का अन्तिम जीवन परेशानी मेंं होता है, पुत्र से जातक को कष्ट होता है, कम्प्यूटर या फोटोग्राफी का काम भी जातक के पास होता है।
सूर्य मंगल और केतु का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य मन्गल और केतु के साथ होने से जातक के परिवार मेंं हमेंंशा अनबन रहती है, जातक को कानून का ज्ञान होता है, और जातक का जीवन आनन्द मय नहीं होता है उसका स्वभाव रूखापन लिये होता है, नेतागीरी वाले काम होते है, एक पुत्र को परेशानी ही रहती है, जातक के शरीर मेंं रक्त विकार हुआ करते है।
सूर्य बुध और चन्द्र का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य के साथ बुध और चन्द्रमा की युति होने से पिता का जीवन बुद्धि जीवी कामों मेंं गुजरता है, पिता कार्य के संचालन मेंं माहिर होता है, जातक या जातक का पिता दवाइयों वाले कामों के अन्दर माहिर होते है, चन्द्रमा फल फूल या आयुर्वेद की तरफ भी इशारा करता है, इसलिये बुध व्यापार की तरफ भी इशारा करता है, जातक की शिक्षा मेंं एक बार बाधा जरूर आती है लेकिन वह किसी न किसी प्रकार से अपनी बाधा को दूर कर देता है।
सूर्य बुध और मंगल का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य के साथ बुध और मन्गल के होने से जातक के पिता को भूमि का लाभ होता है, जातक की शिक्षा में अवरोध पैदा होता है, जातक के भाइयों के अन्दर आपसी मतभेद होते है, जो आगे चलकर शत्रुता मेंं बदल जाते है।
सूर्य बुध और गुरु का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य बुध और गुरु का साथ होने से जातक जवान से ज्ञान वाली बातों का प्रवचन करता है, योग और उपासना का ज्ञानी होता है, पिता को उसके जीवन के आरम्भ में कठिनाइयों का सामना करना पडता है, लेकिन जातक के जन्म के बाद पिता का जीवन सफल होना चालू हो जाता है, जातक का एक भाई लोकप्रिय होता है, पिता को समाज का काम करने में आनन्द आता है और वह अपने को सन्यासी जैसा बना लेता है।
सूर्य बुध और शुक्र का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य के साथ बुध और शुक्र के होने से जातक की एक संतान बहुत ही शिक्षित होती है, उसके पास भूमि भवन और सवारी के अच्छे साधन होते है, पिता के जीवन मेंं दलाली बाले काम होते है, वह शेयर या भवन या भूमि की दलाली के बाद काफी धन कमाता है, जातक या जातक के पिता को दो स्त्री या दो पति का सुख होता है, जातक समाज सेवी और स्त्री प्रेमी होता है।
सूर्य बुध और शनि का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य बुध के साथ शनि के होने पर जातक के पिता के साथ सहयोग नहीं होता है, पिता के पास जो भी काम होते है वे सरकारी और बुद्धि से जुड़े होते है, बुद्धि के साथ कर्म का योग होता है, जातक को सरकार से किसी न किसी प्रकार की सहायता मिलती है, राजकीय सेवा मेंं जाने का पूरा पूरा योग होता है।
सूर्य बुध और राहु का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य बुध के साथ राहु के होने से जातक एक पिता और पितामह दोनों ही प्रसिद्ध रहे होते है, पिता के पास धन और भूमि भी होती है, लेकिन वह जातक के जन्म के बाद धन को दवाइयों या आकस्मिक हादसों में अथवा शराब आदि मेंं उडाना चालू कर देता है, एयर लाइन्स वाले काम या उनसे सम्बन्धित एजेन्सी वाले काम भी मिलते है, यात्राओं को अरेन्ज करने वाले काम और सडक़ की नाप जोख के काम भी मिलते है, जातक को पैतृक सम्पत्ति कम ही मिल पाती है।
सूर्य बुध और केतु का आपसी सम्बन्ध:
सूर्य के साथ बुध और केतु होने से जातक के मामा का परिवार प्रभावी होता है, पिता या जातक को कोर्ट केशो से और बेकार के प्रत्यारोंपो से कष्ट होता है, पिता के अवैद्य संबन्धों के कारण परिवार मेंं तनाव रहता है, जातक को इन बातो से परेशानी होती है।
जन्म के सूर्य पर ग्रहों का गोचर से प्राप्त असर:
जन्म कुन्डली मेंं स्थापित सूर्य पर समय समय पर जब ग्रह गोचर से विचरण करते है, उसके बाद जो बाते सामने आती है, वे इस प्रकार से है।
* सूर्य का सूर्य के साथ गोचर: सूर्य जब जन्म के सूर्य के साथ गोचर करता है, तो जातक के पिता को बीमारी होती है, और जातक को भी बुखार आदि से परेशानी होती है, दिमाग मेंं उलझने होने से मन खुश नहीं रहता है।
* चन्द्रमा का सूर्य के साथ गोचर: जन्म के सूर्य पर जब चन्द्रमा गोचर करता है, तो पिता या खुद को अपमान सहन करना पडता है, कोई यात्रा भी हो सकती है।
* मंगल का सूर्य के साथ गोचर: जन्म के सूर्य पर जब मन्गल गोचर करता है, तो जातक को रक्त विकार वाली बीमारियां हो सकती है, पित्त वाले रोगों का जन्म हो सकता है, भाई को सरकार या समाज की तरफ से कोई न कोई कष्ट होता है।
* बुध का सूर्य के साथ गोचर: जन्म के सूर्य पर बुध जब गोचर करता है, तो पिता या खुद को भूमि का लाभ होता है, नये मित्रो से मिलना होता है, जो भी व्यापारिक कार्य चल रहे होते है उनमें सफलता मिलती है।
* गुरु का सूर्य के साथ गोचर: जन्म के सूर्य पर जब गुरु गोचर से भ्रमण करता है, तो जातक को किसी महान आत्मा से साक्षात्कार होता है, जीवन की सोची गयी योजनाओं मेंं सफलता का आभास होने लगता है, किसी न किसी प्रकार से यश और पदोन्नति का असर मिलता है, प्रतिष्ठा मेंं भी बढ़ोत्तरी होती है।
* शुक्र का सूर्य के साथ गोचर: जन्म के सूर्य पर जब शुक्र गोचर करता है, तो जातक को धन की कमी अखरने लगती है, पत्नी की बीमारी या वाहन का खराब होना भी पाया जाता है।
* शनि का सूर्य के साथ गोचर: जन्म के सूर्य पर जब शनि गोचर करता है, कार्य और व्यापार मेंं असंतोष मिलना चालू हो जाता है, जो भी काम के अन्दर उच्चाधिकारी लोग होते वे अधिकतर अप्रसन्न रहने लगते है, धन का नाश होने लगता है, नाम के पीछे कार्य या किसी आक्षेप से धब्बा लगता है।
* राहु का सूर्य के साथ गोचर: जन्म के सूर्य पर जब राहु गोचर से भ्रमण करता है, तो पिता या जातक को माया मोह की भावना जाग्रत होती है, पिता को या पुत्र को चोट लगती है, बुखार या किसी प्रकार का वायरल शरीर मेंं प्रवेश करता है, किसी प्रकार से मीडिया या कम्प्यूटर मेंं अपना नाम कमाने की कोशिश करता है, किसी भी काम का भूत दिमाग मेंं सवार होता है, अक्सर शाम के समय सिर भारी होता है, पिता को या खुद को या तो शराब की लत लगती है, या फिर किसी प्रकार की दवाइयों को खाने का समय चलता है, किसी के प्रेम सम्बन्ध का भूत भी इसी समय मेंं चढता है।
* केतु का सूर्य के साथ गोचर: जन्म के सूर्य के साथ केतु का गोचर होने से जातक के अन्दर नकारात्मकता का प्रभाव बढऩे लगता है, वह काम धन्धा छोड कर बैठ सकता है, मन मेंं साधु बनने की भावना आने लगती है, घर द्वार और संसार से त्याग करने की भावना का उदय होना माना जाता है, हर बात में जातक को प्रवचन करने की आदत हो जाती दाढी और बाल बढ़ाने की आदत हो जाती है, यन्त्र मन्त्र और तन्त्र की तरफ उसका दिमाग आकर्षित होने लगता है।
* सूर्य का अन्य ग्रहों पर गोचर गोचर: इसी प्रकार से सूर्य जब जन्म के अन्य ग्रहों के साथ गोचर करता है, तो मिलने वाले प्रभाव एक माह के लिये माने जाते है।
* सूर्य का चन्द्रमा के साथ गोचर: सूर्य जब जन्म के समय के चन्द्रमा के ऊपर गोचर करता है, तो जातक या जातक के पिता की यात्रायें होती है, और धन की प्राप्तिया होने लगती है, जनता मेंं किसी न किसी प्रकार से नाम का उछाल आता है, और जातक का दिमाग घूमने में अधिक लगता है, सरकार और सरकारी कामो का भूत दिमाग में हमेंंशा घूमा करता है राजनीति वाली बातो से मन ही नहीं भरता है।
* सूर्य का मंगल के साथ गोचर: इसी तरह से सूर्य जब जन्म के मन्गल के ऊपर विचरता है तो जातक का दिमाग जिद्दी होने लगता है, कार्य के स्थान मेंं परेशानिया आने लगती है, पुत्र को चोट लगने की पूरी पूरी सम्भावना होती है, मानसिक तनाव के चलते कोई काम नहीं बन पाता है, स्त्री की राशि में पति को क्रोध की भावना बढऩे लगती है, और पति अपने ऊपर अधिक अभिमान करने लगता है, सरकारी लोगो से दादागीरी वाली बाते भी सामने आने लगती है, अगर जातक किसी प्रकार से पुलिस या मिलट्री के क्षेत्र मेंं है तो कोई सरकारी छापा या रिस्वत का मामला परेशान करता है।
* सूर्य का बुध के साथ गोचर: सूर्य जब जन्म के बुध के ऊपर गोचर करता है तो दोस्त सहायता मेंं आ जाते है, पिता या पुत्र को जमीनी कामो मेंं सफलता मिलने लगती है, पिता या पुत्र के काम बहिन बुआ या बेटी के प्रति होने शुरु होते हैं, दिमाग मेंं व्यापार के प्रति सरकारी विभागों के काम आने लगते है, और इसी बात के लिये सरकार से सम्पर्क वाले काम किये जाते है।
* सूर्य का गुरु के साथ गोचर: सूर्य जब जन्म के गुरु के ऊपर गोचर करता है, तो एक माह के लिये जातक के अन्दर धार्मिकता की भावना का उदय होता है, किसी न किसी प्रकार का यश मिलता है, किसी न किसी प्रकार के धर्म के प्रति राजनीति दिमाग में आने लगती है, परिस्थितियां अगर किसी प्रकार से अनुकूल होती है, तो काम के अन्दर बढ़ोत्तरी और पदोन्नति के आसार बनने लगते है, मित्रो और सरकारी लोगो का उच्च तरीके से मिलन होने लगता है।
* सूर्य का शुक्र के साथ गोचर: सूर्य जब जन्म के शुक्र के ऊपर गोचर करता है तो पिता को धन का लाभ होने लगता है, अविवाहितो के लिये पुरुष वर्ग के लिये सम्बन्धो की राजनीति चलने लगती है, स्त्री वर्ग के लिये आभूषण या जेवरात बनाने वाली बाते सामने आती है, सजावटी वस्तुओं को खरीदने और लोगो को दिखावा करने की बात भी होती है।
* सूर्य का शनि के साथ गोचर: सूर्य जब जन्म के शनि के साथ गोचर करता है, तो पिता के कार्य में किसी व्यक्ति के द्वारा बेकार की कठिनाई पैदा की जाती है, पिता और पुत्र के विचारों मेंं असमानता होने से दोनों के अन्दर तनाव होने लगता है, सरकार से जमीन मकान या कार्य के अन्दर कठिनाई मिलती है, लेबर वाले कामो के अन्दर सरकारी दखल आना चालू हो जाता है, लेबर डिपार्टमेंन्ट या उससे जुडे विभागों के द्वारा लेबरों के प्रति जांच पडताल होने लगती है, मकान का काम सरकारी हस्तक्षेप के कारण रुक जाता है।
* सूर्य का राहु के साथ गोचर: सूर्य जब जन्म के राहु पर विचरण करता है, तो पिता को अपने कामो के अन्दर आलस आना चालू हो जाता है, कार्य के अन्दर असावधानी होने लगती है, और परिणाम के अन्दर दुर्घटना का जन्म होता है, किसी न किसी के मौत या दुर्घटना के समाचार मिलते रहते है, स्वास्थ्य मेंं खराबी होने लगती है, किसी न किसी प्रकार से शमशानी या अस्पताली या किसी भोज में जाने की यात्रा करनी पडती है।
* सूर्य का केतु के साथ गोचर: सूर्य जब जन्म के केतु के साथ गोचर करता है तो जातक के अन्दर धार्मिकता आजाती है, वह जो भी काम करता है, या किसी की सहायता करता है तो उस काम में राजनीति आ जाती है.सूर्य के साथ जब कोई ग्रह बक्री हो जाता है तो इस प्रकार के फल मिलते है, मन्गल के बक्री होने पर उत्साह में कमी आजाती है, शक्ति मेंं निर्बलता मालुम चलने लगती है, पिता का चलता हुआ इलाज किसी न किसी कारण से रुक जाता है, बुध के बक्री होने से शिक्षा का काम रुक जाता है, चलता हुआ व्यापार ठप हो जाता है, किसी से किसी व्यापारिक समझौते पर चलने वाली बात बदल जाती है, गुरु के बक्री होने से अगर संतान पैदा होने वाली है, तो किसी न किसी प्रकार से गर्भपात हो जाता है, सन्तान की इच्छा के लिये यह समय बेकार सा हो जाता है, ह्रदय वाली बीमारियों का जन्म हो जाता है, शुक्र के बक्री होते ही कामवासना की अधिकता होती है।