जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
स्त्री और पुरुष संतान प्राप्ति की कामना के लिए विवाह करते हैं वंश परंपरा की वृद्धि के लिए परमात्मा को श्रृष्टि रचना में सहयोग देने के लिए यह आवश्यक भी है पुरुष पिता बन कर तथा स्त्री माता बन कर ही पूर्णता का अनुभव करते हैं धर्म शास्त्र भी यही कहते हैं कि संतान हीन व्यक्ति के यज्ञ दान एव अन्य सभी पुण्यकर्म निष्फल हो जाते हैं महाभारत के शान्ति पर्व में कहा गया है कि पुत्र ही पिता को पुत् नामक नर्क में गिरने से बचाता है मुनिराज अगस्त्य ने संतानहीनता के कारण अपने पितरों को अधोमुख स्थिति में देखा और विवाह करने के लिए प्रवृत्त हुए प्रश्न मार्ग के अनुसार संतान प्राप्ति कि कामना से ही विवाह किया जाता है जिस से वंश वृद्धि होती है और पितर प्रसन्न होते हैं
जन्म कुंडली से संतान सुख का विचार
प्राचीन फलित ग्रंथों में संतान सुख के विषय पर बड़ी गहनता से विचार किया गया है भाग्य में संतान सुख है या नहीं पुत्र होगा या पुत्री अथवा दोनों का सुख प्राप्त होगा एo संतान कैसी निकलेगी एo संतान सुख कब मिलेगा और संतान सुख प्राप्ति में क्या बाधाएं हैं और उनका क्या उपचार है इन सभी प्रश्नों का उत्तर पति और पत्नी की जन्म कुंडली के विस्तृत व गहन विश्लेषण से प्राप्त हो सकता है
जन्म कुंडली के किस भाव से विचार करें
जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो एo उस से पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है] भाव स्थित राशि व उसका स्वामी एo भाव कारक बृहस्पति और उस से पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुंडली इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है पति एव पत्नी दोनों की कुंडलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए पंचम भाव से प्रथम संतान का एo उस से तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उस से तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए उस से आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है
Pt.P.S Tripathi
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