Tuesday 14 April 2015

ब्रज.


ब्रज.......भगवान्‌ श्रीकृष्ण धन्य हैं, उनकी लीलाएं धन्य हैं और इसी प्रकार वह भूमि भी धन्य है, जहां वह त्रिभुवनपति मानस रूप में अवतरित हुए और ब्रजभूमि जहां उन्होंने वे परम पुनीत अनुपम अलौकिक लीलाएं कीं।
हिंदुस्थान में अनेक तीर्थ स्थान हैं, सबका महात्म्य है, भगवान्‌ के और-और भी जन्मस्थान हैं पर यहां की बात ही कुछ निराली है। यहां के नगर-ग्राम, मठ-मंदिर, वन-उपवन, लता-कुंज आदि की अनुपम शोभा भिन्न-भिन्न ऋतुओं में भिन्न-भिन्न प्रकार से देखने को मिलती है।
अपनी जन्मभूमि से सभी को प्रेम होता है फिर वह चाहे खुला खंडहर हो और चाह सुरम्य स्थान, वह जन्मस्थान है, यह विचार ही उसके प्रति होने के लिए पर्याप्त है।
इसी से सब प्रकार से सुंदर द्वारका में वास करते हुए भी भगवान्‌ श्रीकृष्ण जब ब्रज का स्मरण करते थे, तब उनकी कुछ विचित्र ही दशा हो जाती थी।जब ब्रज भूमि के वियोग से स्वयं ब्रज के अधीश्वर भगवान्‌ श्रीकृष्ण का ही यह हाल हो जाता है, तब फिर उस पुण्यभूमि की रही-सही नैसर्गिक छटा के दर्शन के लिए, उस छटा के लिए जिसकी एक झांकी उस पुनीत युग का, उस जगद् गुरु का, उसकी लौकिक रूप में की गई अलौकिक लीलाओं का अद्भुत प्रकार से स्मरण कराती, अनुभव का आनंद देती और मलिन मन-मंदिर को सर्वथा स्वच्छ करने में सहायता प्रदान करती है, भावुक भक्त तरसा करते हैं।
इसमें आश्चर्य ही क्या है? नैसर्गिक शोभा न भी होती, प्राचीन लीलाचिह्न भी न मिलते होते तो भी केवल साक्षात्‌ परब्रह्म का यहां विग्रह होने के नाते ही यह स्थान आज हमारे लिए तीर्थ था, यह भूमि हमारे लिए तीर्थ थी, जहां की पावन रज को ब्रह्मज्ञ उद्धव ने अपने मस्तक पर धारण किया था।वह ब्रजवासी भी दर्शनीय थे, जिनके पूर्वजों के भाग्य की साराहना करते-करते भक्त सूरदास के शब्दों में बड़े-बड़े देवता आकर उनकी जूठन खाते थे, क्योंकि उनके बीच में भगवान अवतरित हुए थे।
व्रज-वासी-पटतर कोउ नाहिं।
ब्रह्म सनक सिव ध्यान न पावत, इनकी जूठनि लै लै खाहिं॥
हलधर कह्यौ, छाक जेंवत संग, मीठो लगत सराहत जाहिं।
'सूरदास' प्रभु जो विश्वम्भर, सो ग्वालनके कौर अघाहिं॥
तब फिर यहां तो अनन्त दर्शनीय स्थान हैं, अनन्त सुंदर मठ-मंदिर, वन-उपवन, सर-सरोवर हैं, जो अपनी शोभा के लिए दर्शनीय हैं और पावनता के लिए भी दर्शनीय हैं। सबके साथ अपना-अपना इतिहास है।
यद्यपि मुसलमानों के आक्रमण पर आक्रमण होने से ब्रज की सम्पदा नष्टप्राय हो गई है। कई प्रसिद्ध स्थानों का चिह्न तक मिट गया है, मंदिरों के स्थान पर मस्जिदें खड़ी हैं, तथापि धर्मप्राण जनों की चेष्टा से कुछ स्थानों की रक्षा तथा जीर्णोद्धार होने से वहां की जो आज शोभा है, वह भी दर्शनीय ही है।

Pt.P.S.Tripathi
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