दसम भाव कर्म स्थान होता है। जिसका मुख्य रुप से यह अर्थ होता है कि जातक जीवन में क्या करेगाा। किसी व्यक्ति के अस्तित्व का महत्वपूर्ण पहलू उसका क्रियाकलाप होता है और भले ही वह सांसारिक या आध्यात्मिक हो, ये चीजे 10 वें भाव के भीतर आती है। सन्यास योग भी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस मामले में जातक अपने में या अपने आसपास दैवी षक्ति देखने के लिए अपने जीवन का लक्ष्य बनाता है।
नीचे कुछ योग दिये जाते है जिनसे 10 वे भाव के महत्व को दर्षाया गया है।
यदि 10 वे भाव में बृहस्पति, बुध, सूर्य और शनि पीडित हो तो वो व्यक्ति दुराचरण में फंस जाता है। यदि यहां पर चन्द्रमा पीडित हो तो जातक जुआरी और व्यवहार से प्रचण्ड होता है। यदि दसमाधिपति उच्च का हो किन्तु 6,8 या 12 वें भाव में स्थित हो तो वह जो भी अच्छा काम आरंभ करेगा वह पूरा नही होगा। यदि 9 या 10 वें भाव में शुभ ग्रह स्थित हो और उनके अधिपति तथा बृहस्पति उत्तम स्थिति में हो तो जातक परम्परा और नैतिकता के अनुरुप उच्च कर्म करने वाला उत्तम व्यक्ति होगा। यदि 5 व 10 वें भावों में ग्रह और लग्नाधिपति, 9 और 10 वां भाव सादबल में बली हो तो जातक धर्मग्रन्थों और वेद शास्त्र का विद्वान होगा। दीक्षा के परिणाम स्वरुप वह अन्तज्र्ञानी होगा।
यदि 10 वें भाव में तीन बली ग्रह अपनी राषि, उच्च या शुभ वर्ग में हो और दसमाधिपति भी बली हो तो जातक सन्यासी होगा। परन्तु यदि दसमाधिपति निर्बल हो और सप्तम भाव में हो तो जातक बुरे आचरण का होगा। यदि 10 वें भाव में द्वितीयेष और सप्तेष दोनों ग्रह हो तो जातक व्यसनी होगा। यदि केन्द्र या त्रिकोण में दसम भाव सहित पांच ग्रह विघमान हो तो जातक महान अध्यात्म शक्ति वाला साधु होगा जो जीवन मुक्त हो जाएगा। यदि 10 वें भाव में चार ग्रह हो तो जातक वैरागी होता है। यदि इन दोनो मामलों में एक ग्रह सूर्य हो और दबा हुआ हो तो पवित्र और आध्यात्मिक होते हुए जातक विष्व में विख्यात नही होगा।
यदि शनि के क्षेत्र में चन्द्रमा स्थित हो और शनि से दृष्ट भी हो अथवा यदि शनि व मंगल के नवांष में चन्द्रमा हो और शनि से दृष्ट हो तो जातक विरक्ति का जीवन व्यतीत करता है और संसार में ख्याति प्राप्त करता है। यदि लग्नाधिपति निर्बल हो और ग्रहों की दृष्टि से मुक्त हो किन्तु वह स्वयं शनि निर्बल लग्नाधिपति पर दृष्टि डाल रहा हो तब भी जातक सन्यासी होगा। यदि शनि या लग्नाधिपति की दृष्टि चन्द्र राषि पर हो तो जातक धार्मिक संस्था का सदस्य बनता है यदि चन्द्रमा मंगल की राषि में पडा हो और शनि से दृष्ट हो तो यह सन्यासी योग होता है।
Pt.P.S Tripathi
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