Monday 13 April 2015

मध्य युगीन संतों का निर्गुण-भक्ति-काव्य


मध्य युगीन संतों का निर्गुण-भक्ति-काव्य : कुछ प्रश्न[मध्‍य युग ने मोक्ष का अतिक्रमण कर, भक्‍ति की स्‍थापना की। हिन्‍दी साहित्‍य के इतिहास में भक्‍तिकाल का विवेचन करते समय विद्वानों ने निर्गुण भक्‍ति एवं सगुण भक्‍ति में भेद किया है तथा संतों एवं सूफियों के काव्‍य की परम्‍परा को निर्गुण भक्‍ति के अन्‍तर्गत रखा है। सभी संतों ने अपने काव्‍य में निर्गुण एवं निराकार उपास्‍य के प्रति अपना भक्‍ति-भाव अभिव्‍यंजित किया है। जब हम संतों के निर्गुण-भक्‍ति काव्‍य पर विचार करते हैं तो हमारी अध्‍ययन-सीमा के अन्‍तर्गत (1) नामदेव (2) कबीर (3) रैदास (4) नानक (5) जसनाथ (6) धर्मदास (7) सिंगा जी (8) दादू दयाल (9) सुन्‍दरदास (11 )षाह ष्‍बुल्‍ला (12) गुलाल साहब (13) पलटू साहब (14) मलूकदास (15) बाबा लाल(16) प्राणनाथ (17) जगजीवन साहब (18) धरनीदास (19) दरिया साहब (20) शिवनारायण (21) किनाराम (22) चरणदास (23) तुलसी साहब आदि संतों के द्वारा रचित साहित्‍य आता है। जब हम इन संतों के काव्‍य के सैद्धान्‍तिक पक्षों पर विचार करते हैं तो पंथों के रूप में (1) कबीर पंथ (2) नानक पंथ (3) दादू पंथ (4) बाबरी पंथ (5) मलूक पंथ (6) धरतीश्‍वरी पंथ (7) प्रणामी पंथ (8) सतनामी पंथ (9) शिवनारायणी पंथ (10) साहिब पंथ आदि आते हैं। इन पंथों में सैद्धान्‍तिक मत-वैभिन्‍नय भी मिलता है। प्रत्‍येक रचनाकार के साहित्‍य की अपनी विशिष्‍ट छटा भी दृष्‍टिगत होती है। सम्‍प्रति, इनके सामान्‍य पक्ष के कुछ बिन्‍दुओं पर विचार करना ही अभीष्‍ट है।]
भक्‍ति या उपासना के लिए गुणों की सत्‍ता आवश्‍यक है। ब्रह्म के सगुण स्‍वरूप को आधार बनाकर तो भक्‍ति / उपासना की जा सकती है किन्‍तु जो निर्गुण एवं निराकार है उसकी भक्‍ति किस प्रकार सम्‍भव है ? निर्गुण के गुणों का आख्‍यान किस प्रकार किया जा सकता है ? गुणातीत में गुणों का प्रवाह किस प्रकार माना जा सकता है ? जो निरालम्‍ब है, उसको आलम्‍बन किस प्रकार बनाया जा सकता है। जो अरूप है, उसके रूप की कल्‍पना किस प्रकार सम्‍भव है। जो रागातीत है, उसके प्रति रागों का अर्पण किस प्रकार किया जा सकता है ? रूपातीत से मिलने की उत्‍कंठा का क्‍या औचित्‍य हो सकता है। जो नाम से भी अतीत है, उसके नाम का जप किस प्रकार किया जा सकता है।.......

Pt.P.S Tripathi
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