Friday 4 November 2016

सौभाग्य को बढ़ाने हेतु करें महालक्ष्मी व्रत

अनुकूल परिस्थितियाँ सौभाग्य हैं और प्रतिकूल परिस्थितियाँ दुर्भाग्य हैं। यही सुख और दुःख के रूप में फल देते हैं। कुण्डली से अपने भाग्य का पता लगाकर मनुष्य अपने सदाचारी, पापरहित, निस्वार्थ, पवित्र जीवन से अपने भाग्य को संवारकर सुख प्राप्त कर सकता हैं। सौभाग्य में वृद्धि तथा दुर्भाग्य में कमी का यही एक उपाय है। पुरुषार्थ से भाग्य का निर्माण आवश्य हो जाता है तथा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भी पुरुषार्थ का सहारा लेना पड़ता हैं, किन्तु भाग्य को पलटा नहीं जा सकता  उसमे केवल सुधार किया जा सकता हैं और पुरूषार्थ करने के लिए व्यक्ति की कुंडली में तीसरे, पंचम, दसम एवं एकादश स्थान को देखकर उन स्थानों के ग्रह एवं उन स्थानों से संबंधित ग्रहों के अनुकूल या प्रतिकूल का ज्ञान प्राप्त कर उस ग्रह से संबंधित प्रयास करने से व्यक्ति अपने पुरूषार्थ को बेहतर कर सकता है। जैसे यदि तीसरे स्थान का ग्रह यदि छठवे, आठवे या बारहवे हो जाए तो उस ग्रह से संबंधित मंत्रजाप, दान एवं ग्रह शांति कर उस ग्रह को अनुकूल कर पुरूषार्थ करने से मनोबल को बढ़ाया जा सकता है। इसी प्रकार पंचम के ग्रह को अनुकूल एकाग्रता को बढ़ाया जाता है। दसम के ग्रह को अनुकूल कर प्रयास को पुरूषार्थ द्वारा बढ़ाकर जीवन में सौभाग्य में बढ़ोतरी की जा सकती है और इसके लिए आज महालक्ष्मी व्रत करने से सौभाग्य को बढ़ाया जा सकता है।

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