मनुष्य की वास्तविकता वह क्या बोलता, सोचता या करता है, में नहीं बल्कि वह सब करते वक्त उसके भाव क्या हैं, उसमें छिपी होती है, और उसके भावों के अनुसार ही उसका अपना एक ऑरा बनता चला जाता है। यदि उसके भाव नकारात्मक होंगे तो उसका ऑरा नकारात्मक होगा। फिर वह कितना ही अच्छा बोल-सोच या कर रहा हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ठीक वैसे ही बाहर आदमी कड़क भाषा या डांटता-पीटता भी नजर आए परंतु यदि उस डांट-डपट या कड़क भाषा के पीछे भी उसका भाव सकारात्मक होगा तो उसका ऑरा भी सकारात्मक ही होगा। जन्म से न कोई मनुष्य अच्छा होता है न बुरा, किन्तु उसका व्यवहार एवं कर्म ही उसे अच्छा-बुरा बनाते हैं। किसी की विशिष्टता तथा उसके सरल-विनम्र व्यवहार ही उस व्यक्ति को समाज या लोगो के बीच अच्छा या बुरा बनाती है। हम अपने कर्मों को एवं व्यवहार को सुधार कर अपना औरा साकारात्मक बना सकते हैं और अपनापन तथा प्रतिष्ठा पा सकते हैं। समाज में आपको लोगों के बीच आपकी छवि जैसी बनेगी उसका कारण आपकी कुंडली में देखा जा सकता है। यदि किसी की कुंडली में लग्न में राहु या लग्नेष राहु से आक्रांत होकर कहीं भी बैठा हो तो लोग आपको लापरवाह तथा झूठा समझ सकते हैं उसी प्रकार यदि लग्नेष या तृतीयेष सूर्य मंगल जैसे ग्रह हों और छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में हो जाए तो गुस्सैल की छवि बनती है और लोग आपके बचना चाहते हैं। यदि द्वितीय या तृतीय भाव में गुरू हो या इस भाव का कारक गुरू होकर पंचम या भाग्य स्थान में हो तो लोगो का आपके प्रति आदर होता है। इसी प्रकार यदि आपको अपने व्यवहार के किसी पक्ष को उभारना हो तो अपने ग्रहो की स्थिति का पता लगाकर उन ग्रहों की शांति, मंत्रजाप तथा ग्रहदान कर अपने व्यवहार को दुनिया के सामने प्रस्तुत कर सकते हैं, और अपने औरा को साकारात्मक बनाकर लोगों का प्यार तथा मान पा सकते हैं।
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