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Monday 15 June 2015

जन्म-मरण



जन्म-मरण मन की चंचलता और आसक्ति का फल है। दुःख-क्लेश का मूल है, मन की चंचलता और आसक्ति। गीता में अर्जुन कहता है श्रीकृष्ण सेः
चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद् दृढ़म्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।
ʹहे कृष्ण ! यह मन बड़ा चंचल और प्रमथन स्वभाव वाला है तथा बड़ा दृढ़ और बलवान है, इसलिए इसको वश में करना वायु की भाँति अति दुष्कर मानता हूँ।ʹ
तब श्री कृष्ण कहते हैं-
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।
ʹहे महाबाहो ! निःसन्देह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है, परंतु हे कुंतीपुत्र अर्जुन ! अभ्यास से अर्थात् स्थिति के लिए बारंबार यत्न करने से और वैराग्य से मन वश में होता है।ʹ (गीताः 6.34.35)
ज्यों-ज्यों मन शांत होता जायेगा, त्यों-त्यों उसमें परमात्मा का सुख उभरता जायेगा। ज्यों-ज्यों मन अनासक्त होगा, त्यों-त्यों मन परमात्म-प्रेम में पावन होता जायेगा।
आलस्य को भगाने के लिए परिश्रम, उत्साह, स्फूर्ति और तत्परता के विचार सहायक हैं। ऐसे ही कामुकता को दूर करने के लिए ब्रह्मचर्य के विचार, मातृभावना, पवित्रता एवं संयम के विचार, विकारों के परिणाम के विचार करना मददरूप बनता है। क्रोध को भगाना हो तो शांति, प्रेम, क्षमा, मैत्री, सहानुभूति, सज्जनता, उदारता एवं आत्मभाव के विचार सहायक हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, निराशा-हताशा, आलस्य आदि आत्मसुख को लूटने वाले विकार हैं।
विकारों की जगह पर निर्विकारता ले आओ। आपका जीवन सुखमय हो जायेगा, आनंदमय हो जायेगा, मधुमय हो जायेगा। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- अगर तुम्हें इसी जीवन में अपने जीवनदाता स्वभाव को पाना है, सारे दुःखों से सदा के लिए छूटना तो...
जितात्मनः प्रशांतस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः।।
जिसने अपने-आप पर विजय कर ली है, वह शीत-उष्ण अर्थात् अनुकूलता और प्रतिकूलता को सहने वाला शरीर के प्रभाव से प्रभावित नहीं होता वरन् शरीर पर उसका प्रभाव बढ़ जाता है। दुःख और सुख मन को होता है। दुःख-सुख में जो सम रहता है, वह मन के प्रभाव से दबता नहीं और वह मन का स्वामी होने में सफल हो जाता है। मान-अपमान की गाँठ बुद्धि को होती है, यह समझकर जो उससे परे हो जाता है, उसे मान-अपमान प्रभावित नहीं कर सकते। जैसे, भगवान का प्रभाव प्रकृति पर पड़ता है वैसे ही इस जीवात्मा का प्रभाव शरीर, मन और बुद्धि पर पड़ जाये तो जीवात्मा का प्रभाव शरीर, मन और बुद्धि पर पड़ जाये तो जीवात्मा परमात्मा से अभिन्न हो जाये। अगर मन पर अपना प्रभाव पड़ा तो वासनाएँ शांत होने लगेंगी और अपने चित्त में परमात्मा से दूरी की जो भ्रांति है, वह दूर हो जायेगी। फिर अपने ही मन में परमात्मा का सुख, परमात्मा का वैभव, परमात्मा का आनंद और परमात्मा का माधुर्य उभरने लगेगा। जैसे, बादल के हटने पर सूर्य दिखता है अथवा तो शीतकाल में आकाश स्वच्छ होता है, वैसे ही शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक प्रभावों से ज्यों-ज्यों अपने को दूर करता जायेगा, त्यों-त्यों अपना साफ-सुथरा आत्मसुख, आत्मवैभव प्रगट होता जायेगा।
धनबल, जनबल, बाहुबल और बुद्धिबल इन सारे बलों को जहाँ से बल मिलता है वह है आत्मवैभव। अगर आत्मवैभव मिल गया तो बाकी के वैभव तुम्हारे दास होने लगेंगे, बाकी के वैभव फिर तुम्हें आसक्त नहीं कर पायेंगे।
जैसे, व्यक्ति दूसरों को सुधारने के लिए तत्पर होता है, शत्रु का दोष बड़ी तत्परता से खोज निकालता है, ऐसे ही अपनी कमजोरियाँ खोज निकाले तो वह महापुरुष बन जायेगा।
बुद्ध के सत्संग में सत्संगी आते थे, बुद्धिमान, संयमी भिक्षु भी आते थे और आम आदमी भी आते थे। बुद्ध ने सत्संग पूरा किया। आम आदमी तो चल दिये लेकिन एक किशोर और कुछ साधक भिक्षु बैठे रहे। उस किशोर ने बुद्ध से प्रश्न कियाः "भन्ते ! सबसे छोटा आदमी कौन है ?"
वह किशोर बड़ा धीर-गम्भीर, शांत, चंचलतारहित चित्तवाला लग रहा था। बुद्ध ने उसका प्रश्न सुना और वे गंभीर हो गये। बच्चे का प्रश्न बढ़िया था। बुद्ध तनिक देर के लिए अपने-आपमें आ गये, फिर बोलेः
"सबसे छोटा आदमी वह है जो केवल अपने लिये ही सोचता है, जो केवल अपने स्वार्थ में ही मशगूल रहता है। जो केवल अपने लिये ही जीता है, वह सबसे छोटा व्यक्ति है।"
ज्यों-ज्यों सोच का दायरा, विचार का दायरा व्यापक होता जायेगा, त्यों-त्यों व्यक्ति बड़ा होता जायेगा। दूसरों के दुःख हरने में और दूसरों के चित्त में सुख भरने में, दूसरों की अशांति हरने में एवं शांति भरने में जितना-जितना चित्त मशगूल होगा उतना-उतना चित्त चैतन्य के साथ तदाकार होता जायेगा और दूसरों का दुःख हरने का सामर्थ्य आता है दुःखहारी श्रीहरि में गोता मारने से। जरा-जरा बात में, जरा सी शारीरिक सुविधा-असुविधा से प्रभावित मत हो, मानसिक सुख-दुःख से प्रभावित मत हो और बुद्धिगत मान-अपमान से भी प्रभावित मत हो, क्योंकि असुविधाएँ तुम्हं, डराकर डरपोक बना देंगी और सुविधाएँ तुम्हें आसक्त करके खोखला कर देंगी। सुख तुम्हें आसक्त करके खोखला कर देगा और दुःख तुम्हारे अंतःकरण को अशुद्ध कर देगा।
भगवान कहते हैं- जितात्मनः प्रशांतस्य। आप प्रशांत रहो। अशांत नहीं, शांत नहीं वरन् प्रशांत रहो अर्थात् सुव्यस्थित शांत रहो। शारीरिक, मानसिक या बौद्धिक चाहे कोई भी प्रतिकूलता आये या अनुकूलता, आप प्रशांतात्मा रहो, जितात्मा रहो। ज्यों-ज्यों आप जितात्मा होंगे, त्यों-त्यों आपका जीवन सशक्त होगा, निखरेगा और आप सफलता के उन शिखरों पर पहुँच जायेंगे, जहाँ पहुँचना साधारण आदमी के लिए असाध्य है, दुर्लभ है। श्रीकृष्ण की दिव्य वाणी को किः शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः। शीत और उष्ण ये दो शब्द कहकर भगवान श्रीकृष्ण ने तमाम शारीरिक सुविधा-असुविधाओं से अप्रभावित रहने की प्रेरणा दी है। ʹसुख-दुःखʹ ये दो शब्द कहकर मानसिक प्रभावों से अप्रभावित रहने की प्रेरणा दी है और मान-अपमान ये दो शब्द कहकर बौद्धिक प्रभावों से अप्रभावित रहने की प्रेरणा दी है ताकि आपका अपना दिव्य स्वभाव प्रगट हो सके।
अनुकूलताएँ और प्रतिकूलताएँ आयें तो तुम उनमें फँसो मत, नहीं तो वे तुम्हें ले डूबेंगी। शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक तीनों ही प्रभावी से अगर थोड़े-से सावधान हो गये तो योगी का योग सफल होने लगेगा, तपी का तप सफलता की सुवास बिखरेगा, ध्यानी का ध्यान सफल होने लगेगा, भक्त की भक्ति सफल होने लगेगी और जपी का जप भी आत्मरस प्रगटने में सफल हो जायेगा।
जो दुनिया की ʹतू-तू... मैं-मैंʹ से प्रभावित नहीं होता, जो दुनियादारों की निंदा-स्तुति से प्रभावित नहीं होता और जो दुनिया के सुख-दुःख से प्रभावित नहीं होता, वह दुनिया को हिलाने में अवश्य सफल हो जाता है।
सुविधा-असुविधा, यह इन्द्रियों का धोखा है, सुख-दुःख, यह मन की वृत्तियों का धोखा है और मान-अपमान यह बुद्धिवृत्ति का धोखा है। इन तीनों से बच जाओ तो संसार आपके लिए नंदनवन हो जायेगा। अगर इन तीन प्रभावों से आप ऊपर उठ गये तो आपका चित्त कहीं जाकर नहीं, कुछ पाकर नहीं, कुछ छोड़कर नहीं, मरने के बाद नहीं वरन् आप जहाँ हो वहीं के वहीं और उसी समय चैतन्य का सुख पा लेगा।
सरदार वल्लभभाई पटेल, लौह पुरुष एक बार रेल के दूसरे दर्जे में यात्रा कर रहे थे। कम्पार्टमेन्ट में भीड़-भाड़ नहीं थी, वरन् वे अकेले थे। इतने में स्टेशन पर गाड़ी रूकी और एक अंग्रेज माई आयी। उसने देखा कि ʹइनके पास तो खूब सामान-वामान है।ʹ
"यह सामान देकर तुम चले जाओ, नहीं तो मैं शोर मचाऊँगी। राज्य हमारा है और तुम इण्डियनʹ आदमी हो। मैं तुम्हारी बुरी तरह पिटाई करवाऊँगी।ʹ
जो आदमी परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होता, वह परिस्थतियों को प्रभावित कर देता है. सरदार वल्लभभाई पटेल को युक्ति लड़ाने में देर नहीं लगी। उन्होंने माई की बात सुनी तो सही किन्तु ऐसा स्वांग किया कि मानो वे बहरे हों। वे इशारे से बोलेः "तुम क्या बोलती हो, वह मैं नहीं सुन पा रहा हूँ। तुम जो बोलना चाहती हो, वह लिखकर दे दो।"
उस अंग्रेज माई ने समझा कि ʹयह बहरा है, सुनता नहीं हैʹ अतः उसने लिखकर दे दिया। जब चिट्ठी सरदार के हाथ में आ गयी तो वे खूब जोर से हँसने लगे। अब माई बेचारी क्या करे ? उसने तो धमकी देनी चाही थी किन्तु अपने हस्ताक्षर वाली चिट्ठी देकर खुद ही फँस गयी।
ऐसे ही प्रकृति माई से हस्ताक्षर करवा लो तो फिर वह क्या शोर मचायेगी ? क्या पिटाई करवायेगी और क्या तुम्हें जन्म-मरण के चक्कर में डालेगी ? इस प्रकृति माई की यही तीन बाते हैं- शीत-उष्ण, सुख-दुःख और मान-अपमान। इनसे अपने को अप्रभावित रखो तो विजय तुम्हारी है। किन्तु गलती यह करते हैं कि हम साधन भी करते हैं और असाधन भी साथ में रखते हैं। हम सच्चे भी बनना चाहते हैं और झूठ भी साथ में रखते हैं। हम सच्चे भी बनना चाहते हैं और झूठ भी साथ में रखते हैं। भले बने बिना भलाई खूब करते हैं और बुराई भी साथ में रखते हैं। भय भी साथ में रखते हैं और निर्भय होना भी चाहते हैं। आसक्ति साथ में रखकर अनासक्त होना चाहते हैं, इसीलिए परमात्मा का पथ लंबा हो जाता है।
अतः अपने स्वभाव में जागो। ʹस्वʹ भाव अर्थात् स्व का भाव। परभाव नहीं। सर्दी-गर्मी, सुख-दुःख, मान-अपमान आदि परभाव हैं क्योंकि ये शरीर, मन और बुद्धि के हैं, हमारे नहीं। सर्दी आयी तब भी हम थे, गर्मी आयी तब भी हम हैं। सुख आया तब भी हम थे और दुःख आया तब भी हम थे और दुःख आया तब भी हम हैं। अपमान आया तब भी हम थे और मान आया तब भी हम हैं। हम पहले भी थे, अब भी हैं और बाद में भी रहेंगे। अतः सदा रहने वाले अपने इसी ʹस्वʹ भाव में जागो।
शरीर की अनुकूलता और प्रतिकूलता, मन के सुखाकार और दुःखाकार भाव, बुद्धि के रागाकार और द्वेषाकार भाव इनको आप सत्य मत मानिये। ये तो आऩे जाने वाले हैं, बनने-मिटने वाले हैं, बदलने वाले हैं लेकिन अपने स्वभाव को जान लीजिये तो काम बन जायेगा। जितना-जितना आदमी जाने-अनजाने ʹस्वʹ के भाव में होता है उतना-उतना वह परिस्थितियों के प्रभाव से अप्रभावित रहता है और जितना वह अप्रभावित रहता है उतना ही उसका प्रभाव परिस्थितियों पर पड़ता है।


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Wednesday 10 June 2015

‘दर्शन’

‘दर्शन’ ......'दर्शन' शब्द पाणिनीय व्याकरण के अनुसार 'दृशिर् प्रेक्षणे' धातु से ल्युट् प्रत्यय करने से निष्पन्न होता है। अतएव दर्शन शब्द का अर्थ दृष्टि या देखना, ‘जिसके द्वारा देखा जाय’ या ‘जिसमें देखा जाय’ होगा। दर्शन शब्द का शब्दार्थ केवल देखना या सामान्य देखना ही नहीं है। इसीलिए पाणिनी ने धात्वर्थ में ‘प्रेक्षण’ शब्द का प्रयोग किया है। प्रकृष्ट ईक्षण, जिसमें अन्तश्चक्षुओं द्वारा देखना या मनन करके सोपपत्तिक निष्कर्ष निकालना ही दर्शन का अभिधेय है। इस प्रकार के प्रकृष्ट ईक्षण के साधन और फल दोनों का नाम दर्शन है। जहाँ पर इन सिद्धान्तों का संकलन हो, उन ग्रन्थों का भी नाम दर्शन ही होगा, जैसे-न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन मीमांसा दर्शन आदि-आदि।
दर्शन ग्रन्थों को दर्शनशास्त्र भी कहते हैं। यह शास्त्र शब्द ‘शासु अनुशिष्टौ’ से निष्पन्न होने के कारण दर्शन का अनुशासन या उपदेश करने के कारण ही दर्शन-शास्त्र कहलाने का अधिकारी है। दर्शन अर्थात् साक्षात्कृत धर्मा ऋषियों के उपदेशक ग्रन्थों का नाम ही दर्शन शास्त्र है।

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Friday 5 June 2015

क्यूॅ होते हैं बार-बार चोटिल जाने ज्योतिष से -


दुर्घटनाएँ सिर्फ नौजवानों और लापरवाह ड्राइवरों के साथ होती हैं। मैं गाड़ी इतनी सावधानी और देखकर चलाता हॅू, सो गाड़ी चलाते वक्त मेरा ऐक्सिडेंट हो, यह नामुमकिन है। कई लोग सोचते हैं कि गाड़ी चलाते वक्त वे कभी ऐक्सिडेंट कर ही नहीं सकते। क्या गाड़ी चलाते वक्त दुर्घटना स्वयं की ही गलती से होती है या कोई बहुत खराब गाड़ी चलाकर भी सुरक्षित रहता है वहीं कई लोग दुर्घटनाग्रस्त होते ही रहते हैं सामान्य तौर पर इस फंडे को नहीं जाना जा सकता है कि किसी के साथ ही ऐसा क्यों होता है और किसे के साथ नहीं हो सकता? इस बात का ज्ञान ज्योतिष द्वारा लगाया जा सकता है। जब भी किसी की कुंडली में लग्न, दूसरे, तीसरे, एकादश अथवा द्वादश स्थान पर मंगल या केतु हो अथवा इन स्थानों का स्वामी मंगल होकर छठवे, आठवे या बारहवे हो जाए तो ऐसे लोगों को दुर्घटना लगने के योग बनते हैं। वहीं यदि केतु का किसी भी प्रकार से इन स्थानों पर होकर शनि से संबंध बने तो सर्जरी होने के कारण बनते हैं। अतः किसी की कुंडली में इस प्रकार दुर्घटना में शारीरिक हानि या चोट की आशंका बन रही हो तो उसे नियम से तुला दान करना चाहिए, रक्तदान करना भी अच्छा विकल्प है चोट लगने का। साथ ही मंगल की शांति हेतु हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।



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क्या आपकी शादी लगकर टूट रही है???



विवाह की उम्र में अच्छा जीवनसाथी मिल जायें और विवाह तय हो जाएॅ। इससे ज्यादा खुशी का पल पूरे परिवार के कुछ नहीं होता किंतु कई बार सब कुछ अच्छा चलते चलते अचानक किसी मामूली बात पर भी रिश्ता टूट जाता है। सामाजिक तौर पर कारण चाहे जो भी बताया जाए, किंतु सच है कि ज्योतिषीय दृष्टि से देखा जाए तो किसी जातक की कुंडली में अगर लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम या दसम स्थान पर शनि हो अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा जैसे सौम्य ग्रह शनि से आक्रांत हो अथवा शनि की दशा चल रही हो तो रिश्ता तय होकर टूट सकता है। अतः कुंडली का विवेचन किसी विद्धान ज्योतिष से कराकर पहले ग्रह शांति कराना चाहिए, इसके लिए लड़के का अर्क विवाह के साथ कात्यायनी मंत्र का जाप और लड़की का कुंभ विवाह के साथ मंगल का व्रत करने से विवाह लगने में आने वाली परेशानी से बचा जा सकता है साथ ही योग्य जीवनसाथी का साथ मिलने के योग बनते हैं।


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सम्मान की प्राप्ति हेतु करें अन्न का दान-


जब किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि के क्षेत्र में चन्द्रमा स्थित हो और शनि से दृष्ट भी हो अथवा शनि व मंगल दृष्ट हो तो जातक विरक्ति का जीवन व्यतीत करता है परंतु इसके बाद भी संसार में ख्याति प्राप्त करता है। जब किसी व्यक्ति के लग्न, तीसरे, अष्टम या भाग्य स्थान में शनि तथा उस पर गुरू की किसी भी प्रकार से दृष्टि हो तो ऐसे लोग भोग विलास से दूर रहकर सादगीपूर्ण जीवन बिताते हैं। साथ ही यहीं ग्रह योग उन्हें जीवन में सफलता तथा मान भी प्रदान करता है। अतः किसी व्यक्ति को जीवन में सफलता के साथ मान भी प्राप्त करना हो तो अपने जीवन में सादगी तथा अनुषासन का पालन करना चाहिए और शनि तथा गुरू की शांति के साथ मंत्रजाप एवं दान करना चाहिए। विषेष रूप से अन्न का दान जीवन में सम्मान का कारक होता है। अतः जरूरतमंदों को अन्न का दान करना चाहिए।


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मानसून का मिजाज और ज्योतिषीय गणना -

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भारत की लगभग आधी से ज्यादा आबादी खेती के लिए बारिश पर निर्भर है, लेकिन बीते एक दशक में मानसून का मिजाज काफी बदल गया है. मानसून पर प्रदूषण और गर्मी के दिनों में जंगलों में आग लगने की वजह से पैदा हुए धुएं कारण गर्मियों में अब भारत के ऊपर भूरे रंग की एक धुएं की परत छाने की वजह से सूर्य की किरणें परावर्तित हो जाती हैं. मानसून का आना और सूर्य की किरणों का परावर्तित होना अलग अलग घटनाएं हैं, लेकिन जब ये दोनों टकराती हैं तो मानसून का व्यवहार बदल जाता है. भारत में बारिश के स्वभाव में आए बदलाव की वजह से हिमालयी राज्यों में कई नदियां रास्ता बदल चुकी हैं अब बारिश बहुत ज्यादा और लंबे समय तक हो रही है. इसकी वजह से नदियां लबालब हो रही हैं साथ ही जमीन की उर्वरता और जैव विविधता को भी भारी नुकसान हुआ है. इन घटनाओं का अगर हम ज्योतिषीय विवेचन करें तो देखते हैं कि बीते कुछ समय से, विषेषकर जब से राहु कलयुग में प्रभावी हुआ है तब से ही प्लीस्टिक या फाईबर की चीजों का चलन आरंभ हुआ और साथ ही जब से नीच के शनि का उच्चस्थ शनि की ओर भ्रमण चल रहा है और गुरू का गोचर में विपरीत प्रभाव शुरू हुआ तब से ही इंसान मनमर्जी करने के कारण राहु संबंधी चीजों का उपयोग कर वातावरण के प्रति असहिष्णु हो गया है, जिसके कारण प्रदूषण और भौतिकता की अति के कारण जंगल की कमी से वातावरण में इस प्रकार के परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं। बीते कई सालों से चल रही इस प्रकार की प्रक्रिया को अब जब शनि और गुरू गोचर में उच्च तथा अनुकूल राषि में चल रहे हैं तब कठोरता से प्रकृति के नियमों का पालन
करते हुए पृथ्वी तथा इंसान को बचाने का प्रयास करना चाहिए।

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सिकलसेल से बचने के ज्योतिषीय उपाय-



सिकल सेल रोग माता-पिता से प्राप्त असामान्य जीन से उत्पन्न आनुवांशिक विकार है। सामान्य लाल रक्त कोशिकाएं, अस्थि-मज्जा में बनती हैं व उभयावतल डिस्क के आकार की होती हैं और रक्तवाहिकाओं में आसानी से प्रवाहित होती हैं, लेकिन सिकल सेल रोग में लाल रक्त कोशिकाएं का आकार अर्धचंद्र/हंसिया(सिकल) जैसा हो जाता है। ये असामान्य लाल रक्त कोशिकाएं कठोर और चिपचिपी होती हैं तथा विभिन्न अंगों में रक्त प्रवाह को अवरुद्ध करती हैं। अवरूद्ध रक्त प्रवाह के कारण तेज दर्द होता है और विभिन्न अंगो को क्षति पहुँचाता है। सिकल सेल जीन मलेरिया के प्रति आंशिक सुरक्षा प्रदान करता है और सामान्यतः मलेरियाग्रस्त क्षेत्रों में पाया जाता है। सिकलसेल होने का ज्योतिषीय कारण है कि जब भी सप्तम भाव, नवम भाव या भावेष छठवे, आठवे या बारहवे बैठ जाए या इन ग्रहों पर राहु की दृष्टि हो जाए अथवा चंद्रमा शनि से पापाक्रांत होकर इन ग्रहों पर अपना असर दिखाए या लग्न में राहु अथवा शनि हो साथ ही शनि, मंगल अथवा चंद्रमा राहु से आक्रांत हो तो ऐसे जातक को सिकलसेल की बीमारी आसानी से पकड़ती है, यदि इसके साथ अष्टम या नवम भाव भी राहु ग्रसित हो अनुवांषिक बीमारी होने की स्थिति बनती है अतः ऐसे जातक कोे सिकलसेल की बीमारी होती है। अतः किसी विद्वान ज्योतिषीय से अपनी कुंडली का विष्लेषण कराकर उपर्युक्त ग्रह स्थिति में से कोई दोष बन रहा हो तो उसका उपयुक्त निदान लेना चाहिए।



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वट सावित्री व्रत-स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व



स्कन्दपुराण में कहा गया है-
अश्वत्थरूपी विष्णुः स्याद्वरूपी शिवो यतः
अर्थात् पीपलरूपी विष्णु व जटारूपी शिव हैं। वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा जी, तने में विष्णु और डालियों एवं पत्तों में शिव का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा कहने और सुनने से मनोकामना पूरी होती है। अतः किसी मंदिर में या बरगद (वट) के पेड़ के नीचे बैठ कर इस दिन व्रत पूजा करने का विधान है। अग्निपुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। इसीलिए संतान के लिए इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत रखकर वट वृक्ष के नीचे सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करने से पति की आयु लंबी होती है और संतान सुख प्राप्त होता है। मान्यता है कि इसी दिन सावित्री ने यमराज के फंदे से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि को हिन्दू महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखती हैं । भारतीय धर्म में वट सावित्री अमावस्या स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है। मूलतः यह व्रत-पूजन सौभाग्यवती स्त्रियों का है।
वट सावित्री व्रत और पूजन---

सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। वट वृक्ष की जड़ को दूध और जल से सींचें। इसके बाद कच्चे सूत को हल्दी में रंगकर वट वृक्ष में लपेटते हुए कम से कम तीन बार परिक्रमा करें। पूजा के बाद सावित्री और यमराज से पति की लंबी आयु एवं संतान हेतु प्रार्थना करें। व्रती को दिन में एक बार मीठा भोजन करना चाहिए। इस वर्ष वट सावित्री का व्रत रविवार (17  मई, 2015 ) को भरणी नक्षत्र और वृषभ राशि में हैं।

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स्कीन एलर्जी और ज्योतिषीय कारण

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खुजली या एलर्जी दरअसल यह त्वचा की दर्द तंत्रिकाओं की उत्तेजना है। जब हमारी तंत्रिकाएं उत्तेजित होती हैं, तो हमें खुजलाहट का अनुभव होता है, इसमें दर्द का अहसास नहीं होता। त्वचा में एलर्जी अथवा खुजली की समस्या से कमोबेश सभी को कभी न कभी सामना करना पड़ता है, जो कि स्कैबीज, जुआ, दाद, पायोडरमा, तेज गर्मी, कीड़े के काटने, एलर्जी या त्वचा के सूख जाने इत्यादि से हो सकती है। किंतु कई लोगों की यह आम समस्या होती है जो उन्हें अकसर होती रहती है। जिसे मेडिकल सांईस द्वारा नहीं जाना जा सकता है कि किसी को क्यू लगातार एलर्जी होती है। किंतु ज्योतिषीय गणना द्वारा पता चलता है कि अगर लग्न, तीसरे, छठवे, एकादष अथवा द्वादष स्थान में शनि या इन स्थानों के ग्रह स्वामी शनि से आक्रांत हों अथवा लग्न तीसरे स्थान में राहु हो तो ऐसे जातक को स्कीन एलर्जी की संभावना होती है। अगर इनकी ग्रह दषाएॅ चले तो ये समस्या ज्यादा बढ़ जाती है। अतः किसी जातक को लगातार ऐसे परेषानी दिखाई दे तो अपनी कुंडली में इन स्थानों में उपस्थित शनि अथवा राहु की शांति कराना, आहार में एलर्जी उत्पन्न करने वाले खाद्य पदार्थो से परहेज करना चाहिए।


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मधुमेह की बीमारी और ज्योतिषीय वजह-

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मधुमेह या चीनी की बीमारी एक खतरनाक रोग है। बीमारी में शरीर में अग्नाशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण होती है। रक्त में ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव भी असामान्य हो जाते हैं। किंतु इसका ज्योतिषीय कारण भी है। अगर किसी जातक की कुंडली में शुक्र शुभ भाव में हो और शुक्र की दषा चले अथवा शुक्र क्रूर ग्रहों से पापाक्रांत हो जाए तो शुक्र या राहु की दषा में मधुमेह जैसी बीमारी की शुरूआत होती है। अतः अपनी कुंडली का समय पूर्व विष्लेषण कराकर अपने ग्रह दषाओं का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। अगर आपकी कुंडली में शुक्र इत्यादि ग्रहों की उपयुक्त स्थिति बन रही हो तो चिकित्सकीय निदान के साथ आवष्यक ज्योतिषीय उपाय भी आजमाना चाहिए जिससे बेहतर स्वास्थ्य एवं सुख की प्राप्ति हो सके।


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प्रेम में पंगा क्यू ????

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सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे आधुनिक काल में प्रेम का नाम दिया जाता है। जब भी कोई अपनी पसंद रखता तब वह प्रेम करता है। यह प्रेम जब माता-पिता, भाई-बहनों, दोस्त-रिष्तेदारों से हो सकता है तब किसी से भी होता है। ज्योतिषीय रूप देखा जाए तो प्रेम करने हेतु लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम, दसम या द्वादष स्थान में शनि अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा, राहु या सप्तमेष अथवा द्वादषेष शनि से आक्रांत हो तो ऐसे लोगों को प्यार जरूर होता है। चूॅकि शनि स्वायत्तषासी बनाता है अतः प्रेम के बाद स्वयं की स्वेछा से कार्य करने के कारण अपने प्यार से ही पंगा भी कर लेते हैं। अतः जो ग्रह प्यार का कारक है वहीं ग्रह प्यार में पंगा भी देता है। अतः अगर किसी के प्यार में पंगा हो जाए तो उसे तत्काल शनि की शांति कराना चाहिए। इसके साथ शनि के मंत्रों का जाप, काली चीजों का दान एवं व्रत करना चाहिए। इससे प्यार हो और वह प्यार निभ भी जाए।


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अब शनि का ही भरोसा -

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वर्तमान परिवेष में जब शुचिता और न्याय का अपना कार्य प्रषासन स्तर पर संभव नहीं और लोगो का भरोसा शासन और प्रषासन से उठता जा रहा है। वहीं पर कुछ समय से लगातार वरिष्ठ और ताकतवर लोगों के न्यायिक प्रक्रिया द्वारा दोषी ठहराये जाने से ये साबित होता है कि अब धरातल पर न्याय और शुचिता स्थापित करने में कानून व्यवस्था को आगे आना ही पड़ेगा। किंतु कानून अपना कार्य भी तब ही कर पा रहा है जब दंडाधिकारी की महती भूमिका का निर्वाह संभव है अर्थात् तुला एवं वृष्चिक का शनि अब अपना काम कर रहा है और न्याय की धारा बहती दिख रही है। अतः जिस ने भी अन्याय किया या अन्याय का साथ दिया उसे जरूर ही अब सोचना चाहिए। शनि ने अपना दंड उठा लिया है...सावधान वृष्चिक का शनि अपनी चाल से चल


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Thursday 4 June 2015

बचत का ज्योतिषीय पहलू -


बचत क्या है? असल में बचत कमाई के बाद की गई खर्च के बाद भी बची हुई कमाई है। अर्थात् यदि आपकी कमाई खर्च से ज्यादा होगी तब ही आपकी बचत होगी और यदि आपकी कमाई खर्च से कम होगी तब आपके उपर ब्याज होगा। इसका सीधा सा मतलब है कि यदि आपको बचत करना होगा तो निष्चित ही आपको अपनी कमाई बढ़ानी होगी। यदि इसे हम ज्योतिषीय रूप में देखें तो कमाई को हम एकादष स्थान से और व्यय को द्वादष स्थान से देखते हैं तब यदि एकादष स्थान बलि होगा तो कमाई अधिक तथा यदि द्वादष स्थान बलि होगा तो खर्च अधिक। अतः यदि एकादष स्थान बलि हो तब ही किसी जातक के जीवन में बचत संभव है। इस प्रकार यदि बचत करना हो तो अपने एकादष स्थान के ग्रह की गणना कर उस ग्रह को बली बनाकर बचत संभव है.. इसके लिए एकादष भाव के स्वामी ग्रह की ग्रह शांति.. मंत्रजाप... एव दान करें...

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