Wednesday 13 July 2016

जाने भारतीय सेना में कैरिअर के लिए : ज्योतिष्य विश्लेषण

शास्त्रों में सेना के व्यवसाय का संबंध क्षात्र धर्म से है। इस धर्म को भगवद्गीता में इस प्रकार परिभाषित किया गया है- शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्षयं युद्देचाप्यपलायनम् । दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्।। यह सभी गुण परंपरागत रूप से मंगल ग्रह से जुड़े होते हैं। मंगल शक्ति, पराक्रम, साहस व शौर्य का प्रतीक है। सेना विभाग में उत्कृष्टता सिद्ध करने के लिए साहस सबसे बड़ी सम्पदा है। मंगल प्रधान व्यक्ति अपनी प्रतिभा को प्रत्येक ऐसी जगह पर आसानी से सिद्ध कर लेता है जहां वीरता ही श्रेष्ठता का मापदण्ड हो। ज्योतिष में गुरु, शुक्र को ब्राह्मण, मंगल, सूर्य को क्षत्रिय, चंद्र, बुध को वैश्य और शनि को शूद्र माना गया है। सेनानायक बनने के लिए क्षत्रिय बल (पराक्रम, शक्ति, शौर्य व बाहु बल) के कारक मंगल का बल सर्वाधिक महत्वपूर्ण व आवश्यक है। इसलिए सेना विभाग में सफलता के लिए जन्मकुंडली में मंगल के बल की नापतौल करनी होगी। यदि मंगल मेष, सिंह, वृश्चिक या मकर राशि में स्थित हो तो बली समझा जाता है। मेष राशि का मंगल चमकदार व सुंदर व्यक्तित्व का धनी तो बनाता ही है साथ ही जातक को हमेशा ही ऊर्जावान, सक्रिय, कर्मशील, निर्भीक, खतरा उठाने की क्षमता से युक्त व गर्मजोशी वाला बनाए रखता है। ऐसे मंगल जातक को ऐसे कार्य करने की प्रेरणा देता है जिनके बारे में अन्य लोग सोच भी नहीं सकते। ऐसे जातक मौलिक, साधन सम्पन्न, चतुर, यांत्रिक कार्य करने की योग्यता वाले व अधिक साहसी होते हैं। ऐसे जातकों में अत्यधिक उत्साह होता है और उन्हें खेलों तथा मांसपेशियों के व्यायाम में विशेष आनन्द आता है। सिंह राशि का मंगल जातक को राजसी प्रवृति व साहस से भर देता है। ऐसा जातक स्वाभाविक रूप से नेतृत्व शक्ति सम्पन्न व विपरीत परिस्थितियों से निबटने की क्षमताओं से युक्त होते हैं। ऐसे जातक निर्भीक, मेहनती व मान-सम्मान के प्रति सजग तथा जिम्मेदारियों को समझने व निभाने वाले होते हैं। ऐसा मंगल जातक को शारीरिक ऊर्जा व शक्ति सम्पन्न बनाता है। वृश्चिक राशि का मंगल जातक को जासूसी स्वभाव वाला बनाता है। मकर राशि के मंगल से जातक में जबर्दस्त आत्मबल तथा किसी भी परिस्थिति से लड़ने की क्षमता व स्वयं को परिस्थितिजन्य हालात में ढालने की योग्यता देता है। इस प्रकार की योग्यताएं सैनिक बनने के लिए नितान्त आवश्यक होती हैं। यदि मंगल कुंडली के प्रथम, तृतीय, षष्ठ या दशम् भाव में उपरोक्त राशियों में बैठकर संबंध बनाए तो सेना विभाग में अवश्य सफलता देगा। कुंडली में लग्न से शारीरिक शक्ति, तीसरे भाव से पराक्रम व दशम भाव को राजकृपा का कारक भाव माना जाता है। इसलिए इस प्रकार के करियर के लिए लग्न, तृतीय व दशम् भाव बली होना आवश्यक है। जहां तीसरे भाव से लड़ने-भिड़ने की शक्ति व तुरंत निर्णय लेने की शक्ति का विचार किया जाता है वहीं छठे भाव से तुरंत निर्णय लेकर शत्रु पर टूट पड़ने की क्षमता व विजयी होने के सामथ्र्य के बारे में विचार किया जाता है। बुध बौद्धिक क्षमता, गुरु ज्ञान व प्रशासनिक योग्यता तथा सूर्य मान-सम्मान व राजकृपा का कारक है तो इन ग्रहों के उत्तम योग बली मंगल वाले जातक को साधारण सैनिक की अपेक्षा एक सफल सैनिक अधिकारी बना देंगे। यदि मंगल व शनि का दशम् भाव/दशमेश से संबंध हो तो जातक सेना विभाग में नौकरी करता है। बली गुरु और मंगल का योग पुलिस विभाग में अधिकारी बनने के लिए उत्तम माना गया है। बली बुध, गुरु और मंगल के प्रभाव से आई.ए.एस. अधिकारी बनने का बड़ा योग बनेगा। सूर्य राजकृपा का कारक है इसलिए यदि उपरोक्त योगों का दशमस्थ सूर्य से श्रेष्ठ संबंध बने तो जातक उच्च सरकारी पदों पर शीघ्रता से उन्नति व प्रोमोशन आदि प्राप्त करता है। यदि अष्टमस्थ मंगल बली हो तो जासूसी योग्यता होने से जटिल मामलों को सुलझाने में सफलता मिलती है। इसलिए जातक को सीक्रेट सर्विस, सी.बी.आई. या आमी के ऐसे विभाग में सफलता प्राप्त करते हुए देखा गया है जहां इस प्रकार की योग्यता की आवश्यकता होती है। सूर्य, मंगल व शनि के संबंध को भी सूक्ष्मता से समझा जाना चाहिए क्योंकि इन ग्रहों पर पाप ग्रहों का प्रभाव रहने या इनके शत्रुराशिगत रहने से जातक अपने पराक्रम व शक्ति को सरकार के विरुद्ध प्रयोग करता है। मंगल व शनि के अतिरिक्त राहु-केतु का महत्त्व भी कम नहीं है। राहु शनिवत् व केतु मंगलवत् होता है। इसलिए उपरोक्त योगायोग में इनका विचार करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। परंतु राहु-केतु छाया ग्रह हैं इसलिए ये गुप्त प्रकार के व्यवसायों में सफलता के कारक माने गये हैं जैसे अंडरकवर एजेंट (खुफिया एजेंट), जासूस, अंडरहैन्ड डीलिंग्स, सीक्रेट आॅपरेशन या गोरिल्ला युद्ध आदि। राहु, केतु नीच व पीड़ित आदि अवस्था में नहीं होने चाहिए अन्यथा जातक भय व भ्रम का शिकार होगा व इस प्रकार के कार्य का कुशलतापूर्वक संपादन नहीं कर सकेगा जहां आत्मविश्वास व साहस की अधिक आवश्यकता होती है।

कुंडली में उच्चस्थ केतु सद्गति प्रदान करता है.............

छाया ग्रह केतु परम पुण्यदायी और मोक्ष कारक है। जिस ग्रह के साथ केतु बैठता है उसी के अनुसार कार्य करता है। सामान्यतः यह मंगल के समान कार्य करता है। केतु की अच्छी स्थिति के बिना मोक्ष प्राप्ति संभव नहीं है। कारकांश कुंडली से राजयोग: जिस प्रकार लग्नेश व पंचमेश के संबंध से राजयोग देखा जाता है, उसी प्रकार आत्मकारक और पुत्र कारक से राजयोग देखना चाहिए।‘आत्मकारक और पुत्रकारक दोनों लग्न या पंचम भाव में बैठे हों अथवा परस्पर दृष्ट हों अथवा उनमें किसी प्रकार का संबंध हो और अपने उच्च नवांश या स्व की राशि में स्थित हो तथा शुभ ग्रहों द्वारा दृष्ट हो तो महाराज योग होता है। भाग्येश और आत्मकारक लग्न, पंचम या सप्तम में हो तो हाथी घोड़े और धन से युक्त राज्य देते हैं। कारक से 2, 4, 5 भाव में शुभ ग्रह हो तो निश्चय ही राजयोग प्रदान करते हैं। राजयोगों जन्मलग्नं पश्यंदुच्चग्रहों यदि। षष्ठाष्टमेगते नीचे लग्नं पश्यति योगकृत।।अपनी उच्चराशि में स्थित ग्रह लग्न को देखता हो तो राजयोग होता है। छठे, आठवें भाव में अपनी नीच राशि में बैठा ग्रह यदि लग्न को देखे तो वह राजयोग कारक होता है। अथवा षष्ठेश या अष्टमेश तीसरे या ग्यारहवें भाव में बैठकर लग्न को देखते हों तो राजयोग प्रदान करते हैं। सारांश यह है कि जन्मलग्न या कारकांश लग्न को देखने वाले ग्रह भी राजयोग कारक होते हैं। राहु-केतु के कारकत्व: दो ग्रहों के अंश समान होने पर सूर्य से राहु पर्यंत आठ ग्रहों में आत्मादि कारकों का विचार करना चाहिए। अतः आत्मादि कारकों में केतु को सम्मिलित नहीं किया गया है। महर्षि पाराशर जी ने केतु को घाव-फोड़ा आदि रोग, चर्म रोग, अत्यंत शूल (दर्द), भूख से कष्ट आदि का कारक बताया है।केतु वेदान्त दर्शन, महान तपस्या, वैराग्य, ब्रह्मज्ञान आदि शक्तियों के उत्थान का प्रतीक है। ‘केतौ कैवल्यम’ महर्षि जैमिनी ने केतु को मोक्ष का स्थिर कारक माना है। यदि केतु कारकांश लग्न से द्वाद्वश भाव में स्थित हो तो मनुष्य को मोक्ष प्राप्त हो जाता है। धनु राशि का केतु विशेष मोक्षप्रद: महर्षि जैमिनी के अनुसार कारकांश लग्न से द्वादश भाव में मीन या कर्क राशि में केतु हो तो विशेष मोक्षप्रद योग होता है। बृहद पाराशर होराशास्त्रम के अनुसार कारकांश से बारहवें भाव में मेष या धनु राशि में केतु स्थित हो तथा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति को मोक्षपद की प्राप्ति होती है। यह मत अधिक उपयुक्त है। सद्गति में कौन देवता सहायक: व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में कौन से देवी-देवता सहायक होंगे। किस देवी-देवता के सहारे साधक की जीवन नैया भवसागर से पार उतरेगी। अपने अनुकूल देवी-देवता को पहचान कर उसकी भक्ति-आराधना करनी चाहिए क्योंकि आपके अनुकूल देवी-देवता ही आपकी सद्गति में सहायक होता है तथा वह स्वर्ग लोक और मोक्ष आदि की प्राप्ति कराता है। कारकांश लग्न से बारहवें भाव में केतु सूर्य से युत हो तो जातक गौरा-पार्वती की भक्ति करने वाला शाक्त होता है। कारकांश लग्न से बारहवें भाव मंे केतु चंद्रमा से युत हो तो सूर्य का उपासक होता है। कारकांश लग्न से बारहवें भाव में केतु शुक्र से युत हो तो लक्ष्मी का उपासक और धनी होता है। कारकांश लग्न से बारहवें भाव में केतु मंगल से युत हो तो स्कंद (कार्तिकेय) का भक्त, बुध या शनि से युत हो तो भगवान विष्णु का उपासक, गुरु से युत हो तो शिव का उपासक होता है। कारकांश लग्न से बारहवें भाव में राहु हो तो तामसी दुर्गा (कालिका, चामुण्डा) का और भूत-प्रेतादि का सेवक होता है तथा केतु (अकेला) हो तो गणेश या स्कंद का उपासक होता है। Û कारकांश लग्न से बारहवें भाव में शनि या शुक्र पाप ग्रह की राशि में हो तो क्षुद्र देवता (छोटे देवता) का उपासक होता है। तत्व ज्ञाता का मरणान्त कृत्य: ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरम्। यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमांगतिम्।। भगवान विष्णु कहते हैं- हे गरुड़! एकाक्षर ब्रह्म ऊँकार का जप तथा मेरा स्मरण करते-करते जो जीव शरीर का त्याग करता है वह परमगति (मोक्ष) को प्राप्त होता है।’’ यह अकस्मात् संभव नहीं हो सकता, इसके लिए पहले से ही हमें ध्यान योग में अभ्यस्त होना पड़ेगा। अतः अपने मस्तक में हमंे ऊँ का ध्यान करना चाहिए। सूर्य की रश्मियां जीवात्मा को ब्रह्मलोक ले जाती है- छान्दोग्योपनिषद् (8/6/2) में बताया गया है कि सूर्य की रश्मियां मृत्युलोक व सूर्यलोक दोनों जगह गमन करती है। वे सूर्य मण्डल से निकलती हुई शरीर की नाड़ियों में व्याप्त हो रही है तथा नाड़ियों से निकलती हुई सूर्य में फैली हुई हैं। जब तक शरीर रहता है तब तक हर जगह और हर समय सूर्य रश्मियां शरीर की नाड़ियों में व्याप्त रहती हैं। अत ब्रह्मवेŸाा ज्ञानी पुरुष का किसी भी समय (दिन-रात, शुक्ल-कृष्ण पक्ष, उŸारायन या दक्षिणायन) में निधन होने पर, सूक्ष्म शरीर सहित जीवात्मा का, नाड़ियों द्वारा तत्काल सूर्य की रश्मियों से संबंध होता है। सूर्य की रश्मियां उसे सूर्य मार्ग (देवयान मार्ग) ब्रह्मलोक में ले जाती हैं। ऐसा ब्रह्म विद्या व तत्व ज्ञान के प्रभाव से होता है। जो ब्रह्मविद्या के रहस्य को जानते हैं तथा वन में रहकर श्रद्धापूर्वक सत्य की उपासना करते हैं, वे अर्चि (अग्नि) को प्राप्त होेते हैं। अर्चि से दिन को, दिन से शुक्ल पक्ष को, शुक्ल पक्ष से उत्तरायण के छः महीने को, उŸारायण के छः महीनों से संवत्सर को, संवत्सर से सूर्य को, सूर्य से ब्रह्मलोक को जाते हैं। यह देवयान मार्ग है- इस अर्चिआदि देवयान मार्ग का ही गीता में उल्लेख उत्तरायण मार्ग से किया गया है। अग्निज्र्योतिरहः शुक्लः षणमासा उत्तरायणम्। तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः।। पुण्यात्मा को स्वर्ग प्राप्ति: तत्वज्ञों/ब्रह्मवेŸााओं को मोक्ष और धार्मिकों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। आसक्त भाव से किये गये यज्ञ, दान, जप और परोपकार आदि शुभ कर्मों का फल स्वर्ग प्राप्ति है। छान्दोग्यो पनिषद् के अनुसार जो यहां (गांव या शहर में) रहकर इच्छापूर्वक दानादि सकाम पुण्यकर्म करते हैं वे धूम्र मार्ग से जाते हैं। धूम्र मार्ग से गये हुए पुण्यकर्मा पुरुष धूम्र रात्रि से कृष्णपक्ष को, कृष्णपक्ष से दक्षिणायन के छः महीनों को, वहां से चंद्रलोक को और चंद्रलोक से पितृलोक को तथा पितृलोक से स्वर्गलोक को जाते हंै। स्वर्गलोक में रहकर स्वर्ग के सुखों को भोगते हंै। बहुत समय पश्चात पुण्य कर्मों का फल क्षीण होने पर पुनः पृथ्वी लोक में मनुष्य योनी में जन्म लेते हैं। यहां रात्रि, कृष्णपक्ष व दक्षिणायन आदि काल नहीं है, इनका संबंध तो पितृयान मार्ग में पड़ने वाले कालाभिमानी देवताओं से है। इनका कार्य पुण्यात्मा पुरुष की सहायता करना है

वर्तमान परिवेश में दाम्पत्य सुख: ज्योतिष्य विश्लेषण

दाम्पत्य पुरुष और प्रकृति के संतुलन का पर्याय है। यह धरती और आकाश के संयोजन और वियोजन का प्रकटीकरण है। आकाश का एक पर्याय अंबर भी है जिसका अर्थ वस्त्र है। वह पृथ्वी को पूरी तरह अपने आवरण में रखता है। वह पृथ्वी के अस्तित्व से अछूता नहीं रहना चाहता। पुरुष और आकाश में कोई भिन्नता नहीं है। आकाश तत्व बृहस्पति का गुण है। स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव का कारक गुरु ही है। गुरु अर्थात गंभीर, वह जो अपने दायित्व के प्रति गंभीर रहे। क्या आज के पति अपने धर्म का पूर्ण निर्वाह कर पा रहे हैं? आर्थिक युग के इस दौर में स्त्री घर छोड़कर बाहर निकल रही है। ऐसे में स्वाभाविक है वायरस (राहु) का फैलना जिससे निर्मित होता है गुरु चांडाल योग। इस विषय में ज्योतिष के सिद्धांत क्या कहते हैं, इसी का विवरण यहां दिया जा रहा है। यदि लग्न या चंद्र से सातवें भाव में नवमेश या राशि स्वामी या अन्य कारक ग्रह स्थित हों या उस पर उनकी दृष्टि हो तो शादी से सुख प्राप्त होगा और पत्नी स्नेहमयी और भाग्यशाली होगी । यदि द्वितीयेश, सप्तमेश और द्वादशेश केंद्र या त्रिकोण में हों तथा बृहस्पति से दृष्ट हों, तो सुखमय वैवाहिक जीवन व पुत्रवती पत्नी का योग बनाते हैं। यदि सप्तमेश और शुक्र समराशि में हांे, सातवां भाव भी सम राशि हो और पंचमेश और सप्तमेश सूर्य के निकट न हों या किसी अन्य प्रकार से कमजोर न हों, तो शीलवती पत्नी और सुयोग्य संतति प्राप्त होती है। यदि गुरु सप्तम भाव में हो, तो जातक पत्नी से बहुत प्रेम करता है। सप्तमेश यदि व्यय भाव में हो, तो पहली पत्नी के होते हुए भी जातक दूसरा विवाह करेगा, सगोत्रीय शादी भी कर सकता है। इस योग के कारण पति और पत्नी की मृत्यु भी हो सकती है। यदि सप्तमेश पंचम या पंचमेश सप्तम भाव में हो, तो जातक शादी से संतुष्ट नहीं रहता अथवा उसके बच्चे नहीं होते। स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव में चंद्र और शनि के स्थित होने पर दूसरी शादी की संभावना रहती है जबकि पुरुष की कुंडली में ऐसा योग होने पर शादी या संतति नहीं होती है। लग्न में बुध या केतु हो, तो पत्नी बीमार रहती है। सातवें भाव में शनि और बुध स्थित हों, तो वैधव्य या विधुर योग बनता है। यदि सातवें भाव में मारक राशि और नवांश में चंद्र हो, तो पत्नी दुष्ट होती है। यदि सूर्य राहु से पीड़ित हो, तो जातक को अन्य स्त्रियों के साथ प्रेम प्रणय के कारण बदनामी उठानी पड़ सकती है। सूर्य मंगल से पीड़ित हो, तो वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है पति पत्नी दोनों एक दूसरे से घृणा करते हैं। जातक रक्तचाप और हृदय रोग से पीड़ित होता है। पुरुष के सप्तम भाव में मंगल की मेष या वृश्चिक राशि हो या मंगल का नवांश हो, यदि सप्तमेश नवांश लग्न से कमजोर हो अथवा राहु या केतु हो तो वह युवावस्था में ही अपनी पत्नी को त्याग देगा या पथभ्रष्ट हो जाएगा। यदि शुक्र और मंगल नवांश में स्थान परिवर्तन योग में हों, तो जातक विवाहेतर संबंध बनाता है। जातका के सप्तम भाव में यदि शुक्र, मंगल और चंद्र हों, तो वह अपने पति की स्वीकृति से विवाहेतर संबंध बनाएगी या अन्य पुरुष के साथ रहेगी। शादी के लिए कुंडली मिलान की प्रणाली का सहारा लिया जाना चाहिए, इससे कुछ हद तक प्रेम और वैवाहिक सौहर्द की स्थिरता को कायम रखा जा सकता है। पत्री मंे मंगल और शुक्र की स्थिति का विश्लेषण सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। संभव है कि शुक्र व मंगल की युति हो अथवा न भी हो, लेकिन अंतग्र्रस्त नक्षत्र का स्वामी अनिष्ट ग्रह हो सकता है। ऐसे में तलाक और अलगाव की समस्या उत्पन्न हो सकती हैैं। मंगल आवेश में वृद्धि करता है और शुक्र सम्मोहक पहलुओं से जोड़ता है। अतः जन्मांक में यदि ऐसे पहलू दिखें, तो माता पिता बच्चों का पालन पोषण अनुशासित ढंग से करें, उन्हें समझाएं कि क्षणिक आनंद और भोग विलास की तरफ आकर्षित न हों। शुक्र वैभव, रोमांश, मधुरता आदि सम्मोहक पहलुओं का द्योतक है। यह लैंगिक सौहार्द और सम्मिलन, कला, अनुरक्ति, पारिवारिक सुख, साधारण विवाह, वंशवृद्धि, जीवनी शक्ति, शारीरिक सौंदर्य और प्रेम का कारक है। मंगल बल, ऊर्जा, आक्रामकता का द्योतक है। जब शुक्र के साथ मंगल की युति हो, तो विषय वासना की प्रचुरता रहती है। अतः आवश्यक है कि जब वर व कन्या की कुंडलियां देख रहे हों, तब मंगल शुक्र की युति, स्थान परिवर्तन, दृष्टि संबंध और विपरीत स्थिति में बृहस्पति की अनुकूल स्थिति का शुभ प्रमाण अवश्य देखें। शरीर सौष्ठव में शुक्र, मंगल की युति शारीरिक सुंदरता के लिए महत्वपूर्ण है। किंतु गुरु और शनि के सौम्य प्रभाव का अभाव हो, तो कमी भी आ सकती है। शुक्र व मंगल व्यक्ति को भौतिकवादी, मनोरंजनप्रिय, शौकीन, आडंबरी और विषयी बनाते हैं। यदि ये दोनों विपरीत दृष्टि दे रहे हों, तो विषय संबंधी कठिनाई और वैवाहिक जीवन में समस्या आती है। शुक्र यदि उŸाम नक्षत्र या राशि में हो, तो मंगल का रूखापन (ज्वलन शक्ति) कम हो जाता है। लेकिन यदि राहु की युति हो, तो वह जातक को व्यभिचारी बना देती है। यदि अंतग्र्रस्त नक्षत्र, गुरु, बुध या चंद्र न हो, तो जातक में या जातका कामुकता प्रबल होती है शुभ विवाह के लिए केतु, शुक्र और मंगल का युति या दृष्टि संबंध अशुभ है । शुक्र पुरुष की कुंडली में दाम्पत्य का कारक है। गुरु स्त्री की कुंडली में शुभ वर समझा जाता है। जैसा कि ऊपर कहा गया है, शुक्र पौरुष शक्ति, सुंदरता मधुरता एवं प्रेम का द्योतक है। यह घर में आग्नेय कोण में पूर्वी आग्नेय और दक्षिणी आग्नेय के मध्य भाव का स्वामी है। यह स्थान अग्नि देवता से आरंभ होकर यम की हद तक पहुंच जाता है। आग्नेय एवं वायव्य कोणों में दोष होना दाम्पत्य सुख में बाधा उत्पन्न करता है। शयनकक्ष दक्षिणी आग्नेय कोण में नहीं बनाना चाहिए। कभी-कभी तलाक और अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। दहेज के मुकदमे आदि चालू हो जाते हैं। स्त्री की कुंडली में गुरु की स्थिति शुभ होती है। पूर्वी ईशान से उत्तरी ईशान तक के मध्य भाग में गुरु का समावेश रहता है। गुरु आकाश तत्व अर्थात कर्ण ज्ञानेंद्रिय का कारक है। स्त्रियों को सुनने की क्षमता बहुत समृद्ध रखनी चाहिए। उस स्थान पर शंका (राहु), अहंकार (शौचालय), वाचालता (सीढ़ी), रजोगुण(बुध), (चं) चंचलता को व्यवस्थित रखना चाहिए। पूर्वी ईशान कोण से उत्तरी वायव्य तक यदि दोष हो, तो स्त्रियों में दोष व्याप्त हो जाता है। इस दोष के फलस्वरूप कहीं कहीं विवाह भी नहीं हुए हैं। सुखी दाम्पत्य के लिए पति पत्नी को दरार युक्त बिस्तर पर शयन नहीं करना चाहिए। शयनकक्ष में खुला पानी, खुला शीशा आदि न रखें। आग्नेय कोण में जूठे बर्तन, झाडू इत्यादि न रखें। ईशान कोण शिव का स्थान माना जाता है। शिव आदि पुरुष हैं और आग्नेय कोण शक्ति का स्थान है, जो आदि नारी हैं। यही ब्रह्मांड के सुयोग्य पति पत्नी और हम सबके माता पिता हंै। देखने वाली बात यह है कि शिव (पुरुष) ने शक्ति के स्थान में और शक्ति ने शिव के स्थान में संतुलन बनाया। श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक ये दोनों परम पूज्य हैं।

सिर दर्द और उसका ज्योतिष्य कारण व् उपाय

मनुष्य को रोग का पूर्वाभास हो जाता है क्योंकि रोग आने से पहले मानव शरीर में कुछ ऐसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जिनसे उसे आभास हो जाता है कि रोग उसके द्वार पर दस्तक दे रहा है। ऐसा ही एक रोग है ‘सिर दर्द’ जो रोगों के आने का सूचक है। सिर दर्द एक ऐसा विकार है जो लगभग सभी में कम या अधिक मात्रा में होता है जिसकी ओर हम अक्सर ध्यान नहीं देते। मस्तिष्क की जानलेवा बीमारियों का आगमन सिर दर्द से ही होता है। सिर दर्द के कई कारण होते हैं। जैसे बुखार; बुखार चाहे जैसा भी हो वह सिर दर्द का कारण बनता है। दृष्टि के कमजोर हो जाने से, दांतों के विकार, सिर की मांसपेशियों में जकड़न आ जाने से, सिर में लगी चोट, कान के भीतर संक्रमण, मस्तिष्क के भीतर संक्रमण, सिर के भीतर की गांठ या रसौली की शुरूआत भी सिर दर्द से ही होती है। इसी तरह आधा सीसी का दर्द सिर से उठता है। मानसिक रोग जैसे चिंता, भय इत्यादि, हारमोन का असंतुलन, उच्च रक्तचाप, गर्दन की हड्डियों का घिसाव, जबड़े और सिर की हड्डियों के जोड़ का विकार भी सिर दर्द के कारण हो सकते हैं। ज्योतिषीय दृष्टि में सिर दर्द: ज्योतिषीय दृष्टि में प्रथम भाव जन्मकुंडली में मस्तिष्क, अर्थात् सिर का प्रतिनिधित्व करता है। प्रथम भाव अर्थात् लग्न, लग्नेश यदि जन्मकुंडली में पीड़ित हों तो जातक को मस्तिष्क संबंधित रोग होते हैं। सूर्य प्रथम भाव का कारक ग्रह है इसलिए सूर्य का पीड़ित होना भी सिर संबंधित रोग की उत्पत्ति का कारण बनता है। विभिन्न लग्नों में सिर दर्द: मेष लग्न: लग्न बुध से युक्त या दृष्ट हो, सूर्य राहु या केतु से दृष्ट या युक्त हो। लग्नेश मंगल षष्ठ भाव, अष्टम भाव में शनि से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को सिर दर्द संबंधित रोग हो सकता है। वृष लग्न: लग्नेश शुक्र अस्त होकर तृतीय, षष्ठ या अष्टम भाव में हो और राहु-केतु से युक्त हो या दृष्ट हो तो जातक सिर दर्द से पीड़ित होता है। मिथुन लग्न: लग्नेश बुध मंगल से युक्त हो या अष्टम दृष्टि में हो और अस्त न हो, गुरु पंचम या षष्ठ भाव में हो तो जातक सिर दर्द से परेशान होता है। कर्क लग्न: लग्नेश चंद्र पंचम भाव में हो, बुध से युक्त हो, लग्न में राहु या केतु हो, शनि चतुर्थ भाव या सप्तम भाव में हो तो जातक को सिर संबंधित रोग हो सकता है। सिंह लग्न: लग्नेश सूर्य राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, गुरु षष्ठ या अष्टम भाव में हो, लग्न शनि से दृष्ट या युक्त हो तो सिर दर्द संबंधित रोग हो सकता है। कन्या लग्न: लग्नेश बुध अस्त होकर लग्न, षष्ठ या अष्टम भाव में हो, मंगल लग्न पर दृष्टि देता हो। गुरु राहु-केतु से युक्त होकर पंचम या नवम भाव में हो तो सिर दर्द रोग होता है। तुला लग्न: लग्न में गुरु राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, शुक्र सूर्य से अस्त होकर पंचम, षष्ठ, अष्टम और नवम भाव में हो तो जातक को सिर दर्द संबंधित रोग होता है वृश्चिक लग्न: लग्नेश अस्त होकर अष्टम भाव, द्वादश भाव में हो, बुध राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, शनि लग्न, चतुर्थ, सप्तम भाव में हो तो जातक को सिर दर्द होता है। धनु लग्न: लग्नेश गुरु षष्ठ भाव, अष्टम भाव में हो, लग्न में शुक्र राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो। सूर्य शनि से युक्त होकर लग्न में दृष्टि दे तो सिर दर्द जैसा रोग हो सकता है। मकर लग्न: सूर्य-शनि एक दूसरे पर दृष्टि दे, गुरु राहु-केतु से युक्त या दृष्ट होकर लग्न पर दृष्टि दे, तो जातक को सिर दर्द जैसा रोग होता है। कुंभ: गुरु राहु-केतु से युक्त होकर पंचम या नवम भाव में हो, शनि षष्ठ भाव मे, चंद्र लग्न में मंगल से दृष्ट या युक्त हो तो जातक को सिर दर्द हो सकता है। मीन लग्न: लग्न में शनि, सूर्य तृतीय भाव, सप्तम भाव या दशम भाव में हो। शुक्र राहु केतु से युक्त होकर, पंचम भाव, नवम भाव में हो तो जातक को सिर दर्द होता है। रोग संबंधित ग्रह की दशा-अंतर्दशा और विपरीत गोचर के काल में होता है। इसके उपरांत रोग से राहत मिल जाती है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण आयुर्वेद सिद्धांत अनुसार रोग की उत्पत्ति तीन विकारों के अनुपात पर निर्भर करती है अर्थात् वात, पित्त, कफ। यदि शरीर में पित्त और वात बिगड़ जाएं तो सिर दर्द होता है। वात-पित्त का बढ़ना या कम होना इसका मुख्य कारण है। पित्त बढ़ जाने से शरीर में अग्नि तत्व की मात्रा बढ़ जाती है जिससे रक्त चाप बढ़ता है और सिर दर्द होने लगता है। अगर पित्त कम हो जाए तो अग्नि तत्व कम हो जाता है और वात-कफ अनुपाती तौर पर बढ़ जाते हैं जिससे सिर के अंदर की मांसपेशियों में जकड़न हो जाती है और छींकें आती हैं, नज़ला जुकाम होकर सिर दर्द होने लगता है। सिर दर्द होने पर मरहम लगाकर, सिर दबाकर, कसकर पट्टी बांधकर और घरेलू नुस्खों के प्रयोग से दर्द नाशक दवाओं के उपयोग से सिर दर्द का उपचार करना ठीक है। साधारण सिर दर्द होगा तो इन उपायों से ठीक हो जाएगा। लेकिन यदि दर्द बार-बार हो तो यह चिंताजनक है। हो सकता है कि यह किसी बड़ी बीमारी के आने का सूचक हो इसलिए अतिरिक्त सावधानियां करनी चाहिए। सिर दर्द के घरेलू उपचार - प्रातः काल खाली पेट एक मीठा सेब, नमक लगाकर, खाने से साधारण सिर दर्द दूर हो जाता है। - प्रातः काल थोड़ा व्यायाम करें, हरी घास पर नंगे पांव चलने से बार-बार होने वाला सिर दर्द दूर हो जाता है। - सरसों का तेल नाक में लगाकर सूंघने से सिर दर्द में आराम होता है। - गाय के देसी घी की दो-चार बूंदंे नाक में डालने से सिर दर्द में लाभ होता है। - देसी घी में केसर डालकर सूंघने से भी लाभ होता है। - सूखा आंवला और धनिया दोनों को पीसकर रात को पानी में भीगो दें और सुबह मसल कर छान लें। छने पानी में चीनी मिलाकर पीने से सिर दर्द में लाभ होता है। - रात को सोते समय सिर और पेट के तलवों में देसी घी या बादाम का तेल से मालिश करें। सरसों का तेल भी प्रयोग किया जा सकता है। - ब्राह्मी और बादाम के तेल को मिलाकर सिर से मालिश करने से सिर दर्द में लाभ होता है। - कलमी शोरा और काली मिर्च समान मात्रा में लेकर पीस लें और फिर गरम पानी से एक चम्मच खाने से सिर दर्द में लाभ होता है। - बादाम की पांच गिरी को पानी में भिगो दें। प्रातः छिलकर पीस लें और फिर रात को गाय के दूध में उबालें। चार काली मिर्च भी पीस कर साथ ही उबालें और एक चम्मच घी और बूरा डालकर दो सप्ताह तक पीने से सिर दर्द में लाभ होता है और स्मरण शक्ति बढ़ती है। - हरड़ के छिलके को पीसकर थोड़ा नमक मिलाकर रात को गर्म पानी के साथ फांकने से सिर दर्द में लाभ देता है। - तुलसी के पत्तों की चाय बनाकर पीने से सिर दर्द से राहत मिलती है। - मुलहठी, मोती इलायची और सौंफ को पीस लें तथा दो तुलसी के पत्ते पानी में उबाल कर थोड़ा दूध तथा चीनी मिलाकर पीने से सिर दर्द में आराम होता है।

दांपत्य सुख में कमी का कारण : ज्योतिष्य विवेचन

विवाह पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार ही होता है। यह एक पवित्र और मजबूत बंधन है। इससे मजबूत बंधन कोई नहीं और बंधन टूटे तो एक मिनट में टूट जाता है बंधन मजबूत जरूर है परंतु यह बंधन एक कच्चे धागे की तरह है। कच्चे धागे को यदि ज्यादा खींचें तो वह टूट जाएगा और यदि प्यार और प्रेम से रखें तो हमेशा आप के जीवन को सुखमय रखेगा। दाम्पत्य सुख का विचार सप्तम भाव से किया जाता है। इस भाव का स्थायी कारक ग्रह शुक्र होता है। इसलिए दाम्पत्य सुख का विचार सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र से किया जाता है। इन तीनों की स्थिति यदि लग्न कुंडली में अच्छी हो, तो वैवाहिक सुख अच्छा मिलेगा और इन तीनों में यदि एक भी पीड़ित हो, तो दाम्पत्य सुख में कमी आएगी। यह कमी ग्रह की पीड़ा के अनुपात में होगी। यदि तीनों ही पीड़ित हों, तो दाम्पत्य सुख प्राप्त नहीं होगा। लग्न कुंडली हमारे संचित कर्मों से बनती है। संचित वे कर्म होते हैं, जो हमने पिछले जन्मों में किए हैं। अभी जो हम कर्म कर रहे हैं, उनका फल अगले जन्म में मिलेगा। ज्योतिष शास्त्र में गणना जन्म तिथि, जन्म समय और जन्म स्थान के आधार पर की जाती है। एक अच्छा ज्योतिषी बच्चे के पैदा होते ही गणना कर के उस के पूरे भविष्य के बारे में बता देता है। लग्न कुडली में जो भाव, भावेश व भाव कारक अच्छी स्थिति में हों, उस भाव के जीवन में अच्छे फल मिलेंगे और जो भाव, भावेश व भाव कारक अशुभ स्थिति में हों, उसके फल नहीं मिलेंगे। अशुभ स्थितियां कई प्रकार की होती हैं। हमें सभी प्रकार के पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए। यहां इनकी विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत है। 1. सबसे पहले उपग्रहों पर विचार करना चाहिए कि सप्तम भाव में कोई उपग्रह तो नहीं बैठा है- विशेष कर मांदी (गुलिक) या धुम। ये दोनों उपग्रह सप्तम भाव को ज्यादा प्रभावित करते हैं और शादी ही नही होने देते। यदि धुम स्पस्ट और सप्तम भाव स्पष्ट की डिग्रियां समान हों, तो ऐसे व्यक्ति का विवाह नहीं होता और अनुकूल गोचर होने की वजह से होता भी है तो व्यक्ति संन्यास ले लेता है, अर्थात वैवाहिक संबंध समाप्त हो जाते हैं। 2. सप्तम भाव में बैठे ग्रह भी दाम्पत्य सुख में बाधा पहुंचाते हैं और एक से अधिक संबंध बना देते हैं या संबंध को तोड़ देते हैं, या फिर संबंध रहते आपस में प्रेम नहीं रहता। यह सब ग्रहों की सप्रम भाव में स्थिति पर निर्भर करता है जैसे यदि सप्तम भाव में छठे, आठवें व 12वें भावों के स्वामी बैठे हों और उन पर शुभ ग्रह की दृष्टि या प्रभाव न हो, तो व्यक्ति को जाया सुख नहीं मिलता है। इन उदाहरणों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है। सप्तमेश शुभ ग्रह से युत व दृष्ट न हो तथा छठे, आठवें व 12वें भावों में नीचस्थ हो, तो जाया सुख नहीं होता है अर्थात सप्तमेश या सप्तम भाव का संबंध छठे, आठवें व 12वें भावों से हो, तो व्यक्ति के सप्तम भाव में कमी रहती है। सप्तम भाव में पापी ग्रह या पापी भाव का स्वामी हो, तो जाया सुख में कमी रहती है। 3. शुक्र व मंगल की युति लग्न में, सप्तम भाव में या चंद्र के साथ या चंद्र से सप्तम भाव में हो, तो जाया सुख में कमी रहती है या सुख नहीं मिलता और शादी विलंब से होती है। 4. पंचमेश, सप्तमेश और द्वादशेश आपस में युति करते हों या एक साथ सम सप्तम बैठकर दृष्टि संबंध बनाते हों, तो व्यक्ति का प्रेम विवाह होता है। इस युति या दृष्टि संबंध में यदि शुभ ग्रह या शुभ भावों के साथ संबंध बनाते हों, तो विवाह सफल होता है और यदि अशुभ ग्रह शुभता रहित संबंध बनाते हैं, तो संबंध ज्यादा समय नहीं चलता है। 5. यदि लग्न, चंद्र लग्न व सप्तम भाव तीनों में द्विस्वभाव राशि हो और किसी प्रकार का सप्तम भाव पर शुभता का अभाव हो, तो दो पत्नियां होती हैं, अर्थात एक से संबंध समाप्त हो जाता है और फिर दूसरी शादी होती है, या फिर एक के रहते भी दूसरी पत्नी हो सकती है। इस तरह सुख में कमी रहती है क्योंकि द्विस्वभाव लग्न में सप्तम भाव बाधक होता है। पत्नी का हस्तक्षेप सभी कार्यों में ज्यादा रहता है। 6. लग्नेश, सप्तमेश, चंद्र लग्नेश व शुक्र चारों द्विस्वभाव राशि में हों, तो जातक के दो विवाह या दो स्त्रियां होती हैं अर्थात सुख में कमी रहती है। 7. अष्टक वर्ग में सप्तम व द्वादस भावों में यदि 22 या 22 से कम बिंदु हों, तो व्यक्ति का तलाक हो जाता है और दाम्पत्य सुख में कमी रहती है। यदि सुख है तो सप्तम भाव, भावेश व भाव कारक शुक्र तीनों ही अच्छी स्थिति में हैं, परंतु कमी जरूर रहेगी। जीवन साथी अपने से कमी वाला मिलेगा और उससे पूरा सुख नहीं मिलेगा। वक्री गुरु: जिन बहनों का बृहस्पति वक्री होता है उनके सुहाग सुख में कमी रहती है। ज्यादातर ऐसी बहनों का तलाक हो जाता है क्योंकि शुभ ग्रह यदि अति शुभ हो जाते हैं, तो अपने स्वभाव के विपरीत फल देते हैं। इसी प्रकार अशुभ ग्रह वक्री हों, तो अपने स्वभाव के विपरीत शुभफल देते हैं। 8. तात्पर्य यह कि सब कुछ यदि ठीक है, तो भी दाम्पत्य सुख में कमी रहती है। इसका सब से बड़ा कारण है, मुहूर्त का ध्यान न रखना या बिना मुहूर्त के जब मरजी शादी कर लेना। मुहूर्त शादी के बंधन को मजबूत करता है और अशुभता में कमी लाता है। किंतु मुहूर्त का पालन करने पर भी सुख में कमी देखी गई है। इसका प्रमुख कारण विवाह स्थल पर पवित्रता का न होना है। बराती मदिरापान किए होते हैं, जूते पहने रहते हैं, बीड़ी, सिगरेट, हुक्का सब चलते रहते हैं तथा लड़के-लड़की आपस में छेड़खानी व मजाक करते रहते हैं और पंडित जी को तंग करते रहते है। इससे मंत्र उच्चारण में बाधा आती है। यदि सब कुछ ठीक हो जाए तो घर आकर नव दंपति अपने देवी देवता पितरों को ठीक ढंग से विदा किए बिना ही अपने कमरे में या होटल में बंद हो जाते हैं। बड़े आदर से शादी से पहले रस्म अदा की जाती है और देवता पितरों को आमंत्रित किया जाता है, परंतु उन्हें विदा करना भूल जाते हैं। फलतः वे शाप देते हैं और दाम्पत्य सुख को प्रभावित करते हैं। हम सरदारों, ईसाइयों व मुसलमानों का उदाहरण देते है कि वे तो कोई मुहूर्त नहीं देखते, न करते। सरदार गुरुद्वारे में ग्रंथ साहिब के फेरे लेते हैं और पूर्ण पवित्रता का ध्यान रखते हैं। ग्रन्थ साहिब विष्णु भगवान हैं वे शुभ कार्य दोपहर 12 बजे करते हैं, 12 बजे सूर्य बली होता है और दशम भाव में होता है। इसी प्रकार चर्च में जिस समय प्रार्थना हो रही होती है उस समय ऐसा लगता है मानो स्वयं भगवान आने वाले हों। किसी का उदाहरण देने से पहले हमें अपने आप को जरूर देखना चाहिए। हमारे यहां तो शादी में लाखों रुपये खर्च करते हैं। ढोल बाजे वालों पर खूब पैसे उड़ाते हैं, परंतु पंडित जो आप को आशीर्वाद देगा, उस की दक्षिणा पर झगड़ा होता है। तो मुहूर्त का पूरा फल कैसे मिलेगा। इसलिए कितने ही अशुभ ग्रह सप्तम में पड़े हों या अशुभ योग बना रहे हांे विवाह में मुहूर्त व परंपरा का ध्यान रखें व विधिपूर्वक इस कार्य का संपादन करें, भगवान जरूर सुख देगा।

बुधाष्टमी व्रत व् पूजन का महत्व

व्यक्ति के जीवन में कई बार आकस्मिक हानि प्राप्त होती है साथ ही कई बार योग्यता तथा सामथ्र्य होने के बावजूद जीवन में वह सफलता प्राप्त नहीं होती, जिसकी योग्यता होती है। इस प्रकार का कारण ज्योतिषषास्त्र द्वारा किया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, अष्टम, नवम भाव में से किसी भाव में राहु के होने पर जातक के जीवन में आकस्मिक हानि का योग बनता है। बुध के साथ राहु होने पर जडत्व दोष बनता है, जिसमें विकास तथा बुद्धि प्रभावित होती है। इस प्रकार के दोष जातक की कुंडली में बनने पर जातक के जीवन में स्वास्थ्य की हानि, सुख में कमी, आर्थिक संकट, आय में बाधा, संतान से कष्ट अथवा वंशवृद्धि में बाधा, विवाह में विलंब तथा वैवाहिक जीवन में परेषानी, गुप्तरोग, उन्नति में कमी तथा अनावश्यक तनाव दिखाई देता है। यदि किसी व्यक्ति के जीवन में इस प्रकार का दोष दिखाई दे बुधाष्टमी पूजन तथा व्रत करना चाहिए जिससे जीवन में सुख तथा समृद्धि का रास्ता प्रश्स्त करता है।

Sitare Hamare Saptahik Rashifal 11 17 July 2016

Sitare Hamare on 13 July 2016

Tuesday 12 July 2016

बच्चों का कभी-कभी पढाई में मन क्यूँ नहीं लगता-ज्योतिषय विवेचन



बच्चों के पढ़ाई में मन नहीं लगने के कारण माता-पिता चिंतित रहते हैं, जो स्वाभाविक है। इसका एक कारण चित्त की चंचलता हो सकती है। दूसरा कारण मन के कारक चंद्र का दुर्बल होना होता है। वहीं मन का प्रतिनिधित्व करने वाले दूसरे भाव या उसके स्वामी का पीड़ित होना भी इसका एक कारण है। शिक्षा के कारण ग्रहों बृहस्पति (ज्ञान) और बुध (बुद्धि) अशुभ होने की स्थिति में भी जातक की शिक्षा अधूरी रह सकती है। यहां मन के कारक चंद्र की उन विभिन्न स्थितियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है, जिनके फलस्वरूप जातक का मन पढ़ाई में नहीं लगता या फिर उसकी शिक्षा अधूरी रह जाती है। चंद्र की केमदु्रम योग (चंद्रमा के आगे पीछे कोई ग्रह ना हो, राहु, केतु छोड़कर) में स्थिति। चंद्र की क्षीणावस्था। चंद्र का अस्त होना या पापकर्तरी योग में होना। चंद्र का पाप ग्रहों से पीड़ित होना। चंद्र का ग्रहण योग में होना।राहु, केतु, शनि और सूर्य के साथ चंद्र की युति। कई छात्रों को अत्यधिक परिश्रम के बावजूद अंक कम मिलते हैं। इसका भी कोई विशेष कारण हो सकता है। इस कारण को जानने के लिए लग्न (शरीर), द्वितीय भाव (मन), तृतीय भाव (पराक्रम), चतुर्थ (बु़िद्ध), पंचम (शिक्षा) तथा षष्ठ (प्रतियोगिता) भावों के अलावा तृतीय भाव तथा सूर्य (मनोबल) और चंद्र (मानसिक बल) का विश्लेषण करना आवश्यक है। षष्ठेश की स्थिति का विशेष रूप से विश्लेषण करना चाहिए। द्वितीयेश व चुतर्थेश शुभ हों तो जातक प्रबल स्मरण शक्ति का स्वामी होता है। द्वितीयेश और चतुर्थेश का संबंध षष्ठेश, अष्टमेश और द्वादशेश से हो, तो स्मरण शक्ति कमजोर होती है। छात्रगण के लाभार्थ शिक्षा में अवरोध को दूर करने और परीक्षा में वांछित फल की प्राप्ति के कुछ उपाय यहां प्रस्तुत हैं। एकाग्रता हेतु: नित्य मां के चरण स्पर्श करें और ¬ सोम सोमाय नमः का जप करें। परिश्रम के अनुरूप अंक प्राप्ति हेतु: किसी योग्य ज्योतिर्विद के परामर्श के अनुरूप लग्नेश या पंचमेश का रत्न या उपरत्न धारण करें। स्मरण शक्ति को सुदृढ़ करने हेतु: पन्ना धारण करें और ¬ ऐं सरस्वत्यै नमः का जप करें। अच्छे अंक की प्राप्ति हेतु: लग्न (लक्ष्य), सूर्य (मनोबल) और चंद्र (मन) अनुकूल हों, तो छात्र को अच्छे अंक प्राप्त होते हैं। आत्मविश्वास को मजबूत करने के लिए पिता के चरण स्पर्श करें और सूर्य को अघ्र्य दें। पढ़ाई पर अधिक ध्यान दें, किंतु साथ ही थोड़ा समय खेल, परिवार और मित्रों के लिए भी निकालें। प्रसन्नचित्त रहें और शाकाहारी तथा पौष्टिक भोजन लें। मन की चंचलता दूर करने हेतु: लौंग को अपने ऊपर से 7 बार उतार कर बाहरी सड़क पर फेंक दें, मन की चंचलता दूर और निर्णय क्षमता सुदृढ़ होगी। शिक्षा संबंधी किसी भी कष्ट से मुक्ति हेतु: गणेश को प्रतिदिन 3 से 5 पत्तियों वाली दूर्वा चढ़ाएं और उनके द्वादश नामों का पाठ करें। इससे मन शांत तथा अनुकूल रहेगा और शिक्षा में आने वाली रुकावटें दूर होंगी।

ग्रहों के दुष्प्रभावों का शमन

भवन संबंधी उपाय - गृह प्रवेश से पहले तुलसी का पौधा, अपने इष्ट देवता की तस्वीर, पानी से भरा कलश एवं गाय को प्रवेश कराना अति शुभकारी होता है। इससे घर में सुख-शांति आती है और संपन्नता बढ़ती है। - भवन की नींव भरते समय शहद से भरा बरतन दबा दें। इससे जातक आजीवन खतरों से मुक्त रहेगा। - जन्मकुंडली में शनि अशुभ हो तो गृह निर्माण करने से पूर्व गोदान करें। - शनि जन्मकुंडली के चैथे घर में स्थित हो तो जातक को पैतृक भूमि पर मकान नहीं बनाना चाहिए। यदि जातक ऐसा करता है तो परिवार के सदस्यों को जिदंगीभर कष्ट उठाने पड़ते हैं। पुत्र रोगी रहता है। तंदुरूस्त होने की हालत में किसी झूठे मुकदमे में फंसकर कारावास की सजा उसे भुगतनी पड़ती है। Û शनि जन्मकुंडली के छठे घर में हो तो भवन निर्माण के पूर्व उस भूमि पर हवनादि करें और जमीन को शुद्ध कर लें। इससे केतु का प्रभाव मंदा पड़ जाता है। - जन्मकुंडली के ग्यारहवें घर में शनि हो तो मुख्य द्वार की चैखट बनाने से पूर्व उसके नीचे चंदन दबा दें। - एक बार भवन निर्माण का कार्य प्रारंभ हो जाए तो बीच में उसे रोकें नहीं अन्यथा अधूरे मकान में राहु का वास होगा। - भवन निर्माण शुरू कराने से पूर्व भवन निर्माण करने वालों (कारीगरों) को मिष्टान्न खिलाएं। - भवन निर्माण से पूर्व मकान की जमीन पर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। - भवन निर्माण करते समय जमीन में से या जमीन पर चींटियां निकलें तो उन चींटियों को शक्कर एवं आटा मिलाकर खिलाएं। - भवन के मालिक की जन्मकुंडली में पांचवें घर में केतु हो तो भवन निर्माण से पहले केतु का दान अवश्य दें। संतान संबंधी उपाय - संतान प्राप्ति के लिए ‘संतान गोपाल स्तोत्रम’ का पाठ करें। गणेशजी की आराधना करें। - संतान नहीं हो रही हो तो अपने भोजन का आधा हिस्सा गाय को खिलाएं तथा संतान को रोगमुक्त करने के लिए भी गाय को भोजन खिलाएं। जातक पीपल के पेड़ का जलसिंचन करें। - संतान को दीर्घायु बनाने के लिए पिता को बृहस्पतिवार का व्रत करना चाहिए। - अपनी पत्नी को उचित सम्मान दें। रोग मुक्ति के लिए - रोग मुक्ति के लिए अपने भोजन का चैथाई हिस्सा गाय को और चैथाई हिस्सा कुत्ते को खिलाएं। - घर में कोई बीमार हो जाए तो उस रोगी को शहद में चंदन मिलाकर चटाएं। - पुत्र रोगी हो तो कन्याओं को हलवा खिलाएं। - केतु के अनिष्ट प्रभाव के कारण रोग हो जाए तो तंदूर की मीठी रोटी कौए को खिलाएं। - पत्नी बीमार हो तो गोदान करें। - पुत्री बीमार हो तो पीपल के पेड़ की लकड़ी उसके सिरहाने रखें। - मंदिर में गुप्त दान करें। - रविवार के दिन बूंदी के सवा किलो लड्डू मंदिर में प्रसाद के रूप में बांटें। - सिरदर्द होता हो तो चंदन और केसर का तिलक रोगी के सिर पर लगाएं। आम उपाय - हमेशा सच बोलें। कोर्ट या कचहरी में झूठी गवाही न दें। - दूसरों की निंदा न करें। खुदगर्ज न बनें। - माता-पिता का यथोचित आदर करें और उनके आज्ञाकारी रहें। - तीर्थयात्रा अवश्य करें। - गाय के बछड़े को स्नेह से पालें। - पूरियां घी में तलकर गरीबों को खिलाएं। - शनि विपरीत चल रहा हो तो सफेद वस्त्र में काले तिल बांधकर पानी मंे प्रवाहित करें। तिल-गुड़ की बनी रेवड़ियां बांटें। -- सोते समय सिरहाने दूध से भरा बर्तन रखें। प्रातः उठकर बिना किसी से कुछ बोले वह दूध बरगद के पेड़ में डालें। दान संबंधी उपाय - नीच ग्रह की वस्तुओं का दान कभी भी न लें। यदि ग्रह उच्च का हो तो ग्रह संबंधी दान न करें। - चंद्र अगर जन्मकुंडली के छठे घर में हो तो ऐसे जातक को पानी की प्याऊ लगाना, धर्मशाला का निर्माण कराना, कुएं खुदवाना, गरीबों को भोजन खिलाना, गोदान करना आदि सभी जनकल्याण के कार्य कतई नहीं करने चाहिए। ऐसा करने से वंश वृद्धि रुक जाती है। - जन्मकुंडली के आठवें घर में शनि होने पर भोजन, धन, वस्त्र, गाय आदि का दान नहीं करना चाहिए। जन्मकुंडली के पांचवें घर में बृहस्पति बैठा हो तो धन का दान न करें। जन्मकुंडली के नौवें घर में बृहस्पति बैठा हो तो मंदिर या किसी भी धार्मिक कार्य के लिए दान नहीं करना चाहिए। - जन्मकुंडली के नौवें घर में शुक्र बैठा हो तो धन या अनाज से संबंधित दान नहीं करना चाहिए। - जन्मकुंडली के बारहवें घर में चंद्र बैठा हो तो पंडित या अन्य किसी व्यक्ति से कोई भी धार्मिक कार्य संपन्न नहीं कराना चाहिए और न ही दान देना चाहिए। - जन्मकुंडली के सातवें घर में बृहस्पति बैठा हो तो पुरोहित को धन या अनाज दान में न दें। - जन्मकुंडली के छठे घर में शनि अशुभ हो तो निकट संबंधी के विवाह में शामिल न हों या उसे विवाह के लिए आर्थिक सहयोग न दें। - किसी कन्या के विवाह के लिए आप स्वयं धन खर्च करें। अपने पुत्र या पत्नी से न करवाएं। - जन्मकुंडली के दूसरे घर में राहु हो तो तेल या चिकनाईवाले पदार्थों का दान नहीं करना चाहिए। - जन्मकुंडली में शुक्र चैथे घर में बैठा हो और साथ में राहु भी हो तो सोना दान में नहीं देना चाहिए। जन्मकुंडली के आठवें घर में राहु सूर्य के साथ बैठा हो तो कन्या के विवाह के अवसर पर ब्राह्मण को दान न दें। - शनि अशुभ चल रहा हो तो चांदी का दान न करें। - जन्मकुंडली के सातवें घर में केतु बैठा हो तो लोहा या लोहे की वस्तु का दान न करें। - जन्मकुंडली के चैथे घर में मंगल बैठा हुआ हो तो वस्त्र दान कभी नहीं करना चाहिए। ग्रह-युति की अनिष्टता दूर करने के उपाय - सूर्य-चंद्र जन्मकुंडली के ग्यारहवें घर में बैठे हों तो शराब और कबाब का सेवन कभी न करें। - सूर्य-शुक्र की युति जन्मकुंडली के दसवें घर में हो तो चैथे घर में बैठे ग्रह शुभ प्रभाव देंगे। - सूर्य-बुध की युति जन्मकुंडली के चैथे या सातवें घर में हो तो रात को अगर व्यापार या कारोबार किया जाए तो उसमें लाभ मिलेगा। - सूर्य-बुध की युति जन्मकुंडली के ग्यारहवें घर में हो तो अपने घर में कोई किरायेदार न रखें। - सूर्य-केतु की युति जन्मकुंडली के किसी भी घर में हो तो प्रातःकाल गाय का कच्चा दूध सूर्य को चढ़ाएं। - सूर्य-बुध की युति जन्मकुंडली के सातवें घर में हो तो मिट्टी के बरतन में शहद और शक्कर भरकर उस बरतन को ढक्कन लगाकर निर्जन स्थान में रख आएं। - घर के मुख्य द्वार पर गोमूत्र छिड़कें। इससे केतु, बुध एवं शुक्र का दुष्प्रभाव दूर हो जाता है। प्रतिदिन गोमूत्र आंगन में छिड़कें तो घर पर कभी भी विपत्ति नहीं आएगी। - चंद्र-शुक्र की युति जन्मकुंडली के किसी भी स्थान में होने पर घर में कुएं न खुदवाएं या नल न लगवाएं। किसी कारणवश ऐसा करना लाजमी हो तो पहले शुक्र का उपाय करें और बाद में घर में नल लगवाएं। - पति-पत्नी दोनों लाल रंग के रूमाल का इस्तेमाल करें तो स्वास्थ्य ठीक रहता है। - जन्मकुंडली में बुध नीच का हो तो मंगल या केतु की सहायता लें। - जन्मकुंडली में चंद्र-शनि की युति हो तो शनि या केतु का उपाय करें। - चंद्र ग्रहण के समय में केतु की चीजें पानी में प्रवाहित करें। - सांप को दूध पिलाएं। - जन्मकुंडली में बैठा चंद्र अशुभ या मंदा हो तो सांप को दूध कतई न पिलाएं। - शनि-चंद्र का अशुभ प्रभाव जन्मकुंडली में हो तो सूर्य की कृपा प्राप्त करने के लिए सूर्य की चीजें दान करें। - शनि एवं बृहस्पति की युति हो तो गाय का बछड़ा दान में दें। चंद्र-केतु की युति हो तो बुध या केतु की चीजों का दान ब्राह्मण को दें। - केतु का अशुभ प्रभाव मिटाने के लिए अनाज का दान दें। - विद्या प्राप्ति में अवरोध उत्पन्न होता हो तो राहु और केतु की चीजें धर्मशाला में दान दें। - केतु को प्रसन्न करने के लिए 43 दिनों तक फलों का दान करें। - मंगल-बुध की अशुभ युति जन्मकुंडली में हो तो मंगल की कृपा के लिए घर में होम-हवनादि संपन्न कराएं। - मंगल-शनि की युति हो तो मंगल-शनि के उपाय करें। - मंगल और राहु की युति हो तो राहु की चीजें मिट्टी के बरतन में भरकर जमीन के नीचे दबाएं। - चूल्हे के पास बैठकर भोजन न करें। मंगल का उपाय करें। - जन्मकुंडली में बुध-शनि की युति हो तो मांस-मदिरा का सेवन कभी न करें। नारी सम्मान की रक्षा करें। - किसी के साथ एहसान फरामोशी न करें। - बुध एवं राहु की युति हो तो चांदी की 5 ठोस गोलियां बहते पानी में प्रवाहित करें। - राहु एवं सूर्य की युति हो तो नीम के पेड़ की एक टहनी लाकर दाएं तरफ के दरवाजे पर बांध दें। -4 हरी मिर्च, एक नींबू काले धागे में पिरोकर घर या दुकान की दहलीज पर बांध दें। - बृहस्पति-सूर्य की युति हो तो पिता की सेवा करें। उनकी आज्ञा का पालन करें। - चंद्र-बृहस्पति की युति हो तो शुद्ध या पुराना सोना घर के अंधेरे कोने में दबा दें। - बृहस्पति-चंद्र की युति हो तो चांदी के बर्तन दान करें। - बुध-शुक्र की युति हो तो गद्दे पर न सोएं। - बुध-बृहस्पति की युति हो तो कन्याओं के कान-नाक छिदवाएं। - बृहस्पति-राहु की युति हो तो केतु के उपायों से केतु को प्रसन्न करें। - बृहस्पति -केतु की युति हो तो नींबू एवं रेवड़ियां धर्म स्थान में दान दें। - शुक्र-शनि की युति हो तो मंदिर में नारियल चढ़ाएं। शुक्र-बुध की युति हो तो चंद्र के उपाय करें। - शनि-राहु की युति होने पर देवी के मंदिर में नारियल चढ़ाएं। - शनि-राहु की युति हो तो बादाम और नारियल बहते पानी में बहाएं और कन्याओं को मिठाई बांटें। - राहु-केतु की युति जब वर्षफल में हो तो तब चांदी का पतरा जेब में रखें। -जन्मकुंडली के चैथे घर में राहु-केतु की युति वर्षफल में हो तब बृहस्पति का उपाय करें। - चंद्र-राहु की युति हो तो मां दुर्गा की उपासना करें। - सूर्य-शुक्र की युति जन्मकुंडली में हो तो कानों में सोने की बालियां पहनें। - सूर्य-बुध की युति होने पर कुलदेवता की उपासना करें। -चंद्र-मंगल की युति हो तो मंगल की चीजों का दान करें। - चंद्र-राहु की युति हो तो दूध में सूजी (रवा) एवं शहद मिलाकर खीर बनाएं, कुमारी कन्याओं को खिलाएं और स्वयं भी खाएं। - बुध-शनि की युति हो तो गद्दे पर न सोएं। मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं। काली गाय को पालें। - मंगल-बुध की युति होने पर काले चने उबालकर बांटें। बृहस्पति, चंद्र व केतु के उपाय करें। - चंद्र-शुक्र या चंद्र-मंगल या मंगल-शुक्र की युति हो तो कन्यादान करें। - वर्षफल में राहु-केतु इकट्ठे हो जाएं तो पांच ब्राह्मणों को दान दें। - बृहस्पति-सूर्य की युति हो तो, पीपल के वृक्ष को पानी से सींचें। संध्याकाल में शुद्ध घी का दीपक पेड़ के नीचे प्रज्ज्वलित करें। - शुक्र-मंगल की युति हो तो मुख्य द्वार के नीचे चांदी की कील ठोकें। - पांच ग्रहों की युति होने पर शनि का दान करें और ब्राह्मण को घी में बना पक्का भोजन खिलाएं। विभिन्न ग्रहों के दुष्परिणाम को कम करने के लिए कुछ सामान्य उपाय व परहेज सूर्य रिश्वतखोरी न करें। अपना चरित्र उत्तम रखें। पिता का सम्मान करें। विष्णु पूजा करें। गेहूं, गुड़ और तांबे का दान करें। तांबे का पैसा बहते हुए पानी में बहाएं। चंद्र माता व दादी का सम्मान करें। गंगा स्नान करें। शिव पूजा करें। चांदी, चावल और दूध का दान करें। मंगल भाई, मित्र व संबंधी के साथ विश्वासघात न करें। शुद्ध चांदी शरीर पर धारण करें। मसूर की दाल बहते हुए पानी में बहाएं। हनुमानजी की पूजा करें। बुध बहन, बेटी, बुआ व मौसी से आशीर्वाद प्राप्त करें। सुराख वाले तांबे का पैसा प्रवाहित करें। मां दुर्गा की पूजा करें। गुरु देवता, ब्राह्मण, पिता व गुरु की पूजा करें। धार्मिक पुस्तकें दान करें। ब्रह्माजी की उपासना करें। शुक्र अपनी स्त्री का सम्मान करें। गाय की सेवा करें। लक्ष्मी की उपासना करें। गोदान करें। शनि मीट और शराब का सेवन न करें। चाचा व ताऊ का सम्मान करें। नौकरों को प्रसन्न रखें। भैरो जी की उपासना करें। राहु ससुराल से संबंध न बिगाड़ें। बिजली का सामान घर में ठीक से रखें। सरस्वती का पूजन करें। केतु काला सफेद कुत्ता घर में पालें। गणेश जी की आराधना करें। कुत्ते को न मारें। अकेले अनदेखे ग्रह का प्रभाव विभिन्न ग्रहों के दुष्परिणाम को कम करने के लिए कुछ सामान्य उपाय व परहेज जब कोई ग्रह कुंडली में किसी भी भाव में अकेला बैठा हो और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि न पड़ रही हो तो उसके फल में विशेषता आ जाती है जो कि निम्न प्रकार की होगी- सूर्य अकेला सूर्य किसी भाव में हो और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक अपने बूते पर तरक्की करता है और धनवान बनता है। चंद्र अकेला चंद्र किसी भाव में हो और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो ऐसा जातक अपने कुल की रक्षा करने वाला, दयालु व नम्र स्वभाव का होता है। किसी भी विपरीत परिस्थिति में अपने आप को बचाने की अद्भुत शक्ति उसमें होती है। मंगल अकेला मंगल किसी भी भाव में हो और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक बहादुर तो बनता है पर वह स्वतंत्र नहीं रहता। उसे अपनी शक्तियों का अहसास नहीं रहता। बुध अकेला बुध किसी भी भाव में हो और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक लोभी, लालची रहता है। देश विदेश में आवारा सा घूमता है। गुरु अकेला गुरु किसी भी भाव में हो और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक के जीवन पर कोई भी अशुभ प्रभाव नहीं डालता। शुक्र अकेला शुक्र किसी भी भाव में हो और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक पर कोई भी अशुभ प्रभाव नहीं डालता। शनि अकेला शनि किसी भी भाव में हो और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो सामान्य फल देता है। राहु अकेला राहु किसी भी भाव में हो और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक किसी की परवाह नहीं करता। जातक की रक्षा वह अवश्य करता है किंतु आर्थिक दृष्टि से सामान्य ही रखता है। केतु केतु अकेला किसी भी भाव में हो और उस पर किसी भी ग्रह की दृष्टि न पड़ रही हो तो जातक को हर तरह से ताकतवर बनाता है। वह जातक को आर्थिक दृष्टि से सामान्य ही रखता है।

अगर आप किसी मुकदमें या कोर्ट कचेहेरी के केस में फंस जायें तो क्या करें.....

कोई भी जातक जब किसी मुकदमे में फंसता है तो न केवल उसके धन की क्षति होती है अपितु समय का भी व्यर्थ ही दुरूपयोग होता है। वह जातक मानसिक व शारीरिक दोनों रूप से दुख काटता है। अपने व्यवसाय या नौकरी में भी समय न देने की वजह से नुकसान उठाता है। पारिवारिक व सामाजिक उत्तरदायित्वों को भी पूर्ण नहीं कर पाता व दिन पर दिन इन्हीं उलझनों में फंसता चला जाता है और अपने जीवन को कठिनाइयों से परिपूर्ण मानने लगता है। कई बार देखा गया है कि जातक झूठे मुकदमों के चलते इतना परेशान हो जाता है कि अपनी जीवन लीला तक भी समाप्त कर लेता है। भगवान ऐसी परिस्थितियां किसी के साथ भी न बनायें। परंतु यह जीवन है। इसमें जातक जाने अनजाने अपने कर्मों के अनुरूप इन परिस्थ्तिियों में फंस जाता है। अगर आप भी इन्हीं परिस्थितियों में फंस गये हैं तो आप इन परिस्थितियों से निकलने के लिए क्या करें? - ज्योतिष शास्त्र के द्वारा जानें कि आप मुकदमों में कैसे फंस गये। - जब किसी जातक की कुंडली में मंगल व राहु की युति व कोई संबंध पाया जाता है तो जातक मुकदमों में फंसता है। - किसी भी तरह के मुकदमे में फंसने पर आप क्या करें? - सुबह स्नान व नित्यकर्म करने के उपरांत सूर्योदय के समय तांबे के बर्तन में जल व रोली मिला कर सूर्य को अघ्र्य दें तथा 9 बार ऊँ आदित्य नमः का जप करें व उस जल का तिलक माथे पर लगावें। इस क्रिया के उपरांत वहीं आसन पर बैठ हनुमान जी का ध्यान लगाकर तीन माला जप इस श्लोक का करें: दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हारे तेते। लगातार 27 दिन तक यह प्रक्रिया करें अवश्य ही आपको मुकदमे से छुटकारा मिलेगा। -नौकरी में किसी तरह के झूठे इल्जाम लगने पर आप मुकदमे में फंस गये हों तो क्या करें? मंगलवार की सायं को हनुमान जी को चमेली का तेल चढ़ावें व तुलसी के पत्तों की माला हनुमानजी के गले में डालें (केवल पुरुष जातक)। स्त्रियां माला को चरणों पर अर्पित करें। एक माला जप इस मंत्र का करें: ऊँ नमो भगवते रामदूतय मन ही मन मुकदमे से छुटकारा पाने की कामना करें। इस प्रक्रिया को 11 मंगलवार को करें अवश्य ही आप झूठे मुकदमे से छुटकारा पायेंगे। - आप दोषी नहीं हैं किंतु आपको सजा या जेल हो गई है तो ऐसी परिस्थिति में आप क्या करें? उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें व प्रतिदिन 9 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें और भगवान हनुमान जी से मन ही मन अपने ऊपर आये कष्ट के निवारण की कामना करें, अवश्य ही आपके कष्टों का निवारण होगा। प्याज, मांस, मदिरा का प्रयोग न करें। - परिवार में व भाइयों में जमीन-जायदाद व कारोबार में बंटवारे के विवाद में मुकदमे में आप फंस गये हैं तो आप क्या करें? लगातार 9 मंगलवार हनुमान जी के मंदिर जा कर बजरंगबाण का पाठ करें। पाठ उपरांत हलवा पूरी का प्रसाद गरीबों के बच्चों में बांटें। फैसला शीघ्र होगा और मुकदमे से भी छुटकारा मिलेगा।

सामाजिक जीवन में शिक्षा और ज्योतिष

मनुष्य का जन्म भले ही मनुष्य के रूप में होता है लेकिन मनुष्य बनने और बने रहने के लिए उसे आजीवन और अनवरत संघर्ष करना पड़ता है। तात्पर्य यह कि मनुष्यता की जिस अर्थ में चर्चा होती है उस अर्थ में मनुष्यता नित्य अर्जनशील गुण और चरित्र है। मनुष्य के लिए सबसे कठिन काम होता है अमानुषिक परिस्थिति में भी अपनी मनुष्यता को बरकरार रखना। इस कठिन काम में दक्षता हासिल करने के लिए बहुत सारे उपाय काम में लाये जाते हैं। उन उपायों में से ही एक उपाय है शिक्षा। सामान्य बात-चीत में लोग एक दूसरे से शिक्षित और अशिक्षित के व्यवहार में अंतर की अपेक्षा व्यक्त करते हैं। शिक्षा ही व्यक्ति को सामाजिक व्यवहार करना सिखाती है और ज्योतिष में तीसरे तथा पंचम स्थान के स्वामी की स्थिति व्यक्ति में शिक्षा के स्तर को दर्शाती है। अतः यदि किसी को सामाजिक जीवन में संस्कारशील होना हो तो उसे अपनी कुंडली में तीसरे और पंचम स्थान के ग्रहों को मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए।

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Monday 11 July 2016

राजनीति का ज्योतिषीय कारक

राजनीति का ज्योतिषीय कारक -
राजनीतिक सफलता हेतु विषिष्ट संयोगो उन संयोगो द्वारा लोकप्रियता, वैभव तथा सम्मान प्राप्ति हेतु इच्छिुक होता है। कुंडली के द्वारा राजनीतिक जीवन में असफलता तथा उचाईयों के संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। राजनीति में सफल कैरियर हेतु व्यक्ति में जो गुण होने चाहिए उसमें प्रमुख रूप से नेतृत्व क्षमता, सेवा का भाव, सामाजिक हित अथवा अहित के संदर्भ में विचार लोकप्रियता तथा प्रभावी व्यक्तित्व का गुण होना चाहिए। किसी सफल राजनेता की कुंडली में छठवां, सांतवां, दसवां तथा ग्यारहवां घर प्रमुख माना जा सकता है। क्योंकि सत्ता में प्रमुख रहने हेतु दषम स्थान का उच्च संबंध होना चाहिए चूॅकि दसम स्थान को राजनीति का स्थान या सत्ता का केंद्र माना जाता है साथ ही एकादष स्थान में संबंध होने से लंबे समय तक शाासन तथा विरासत का कारक होता है। छठवां घर सेवा का घर माना जाता है अतः इस घर से दषम स्थान का संबंध राजनीति में सेवा का भाव देता है। साथ ही सांतवा घर दषम से दषम होने के कारण प्रभावी होता है। किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु तथा सूर्य, गुरू इत्यादि का प्रभावी होना भी राजनीति जीवन में सफलता का कारक माना जाता है। चूॅकि राहु को नीतिकारक ग्रह का दर्जा प्राप्त है वहीं सूर्य को राज्यकारक, शनि को जनता का हितैषी और मंगल नेतृत्व का गुण प्रदाय करता है। इस योग में तीसरे स्थान से संबंध रखने से व्यक्ति अच्छा वक्ता माना जा सकता है। अतः राजनीति में सफल होने हेतु इन ग्रहों तथा स्थानों का प्रभावी होना व्यक्ति को राजनीति जीवन में सफल बना सकता है।

मंगल की आक्रामकता

छोटा बच्चा समझ के ना बहलाना रे - मंगल की आक्रामकता -
भारतीय वैदिक ज्योतिष में मंगल को मुख्य तौर पर ताकत और आक्रमण का कारक माना जाता है। मंगल के प्रबल प्रभाव वाले जातक आमतौर पर दबाव से ना डरने वाले तथा अपनी बात हर प्रकार से मनवाने में सफल रहते हैं। मंगल से मानसिक क्षमता, शारीरिक बल और साहस वाले कार्यक्षेत्र होते हैं। मंगल शुष्क और आग्नेय ग्रह है तथा मानव के शरीर में अग्नि तत्व का प्रतिनिधि करता है तथा रक्त एवं अस्थि का प्रतीक होता है। मंगल पुरूष राषि को प्रदर्षित करता है। मकर राषि में सर्वाधिक बलषाली तथा उच्च का होता है। मंगल के निम्न प्रकार से उच्च या अनुकूल होने पर बालक पर मंगल की आक्रामकता का पूर्ण प्रभाव दिखाई देता है। जिसके कारण बालक उर्जा से भरपूर तथा तेज होता है, जिससे तर्कषक्ति, विवाद तथा खेल में विषेष रूचि होती है। जिसके कारण उसमें आक्रामकता का ज्यादा प्रभाव होने से नियंत्रित तथा अनुषासित रख पाना कठिन होता है। यदि बच्चा अपने को बच्चा ना समझ बहकाव की दिषा में अग्रसर हो तो किसी विद्धान ज्योतिष से कुंडली में मंगल की स्थिति का विष्लेषण कराकर मंगलस्तोत्र का पाठ, तुला दान तथा मंगल की शांति कराना लाभकारी होता है। स्वअनुषासन में रखने हेतु बचपन से अपने बच्चे को हनुमान चालीसा का जाप करने की आदत डालना भी अच्छा होगा।

अष्टकवर्ग क्या है??

प्रश्न: अष्टकवर्ग क्या है? उत्तर: प्रत्येक ग्रह अपना प्रभाव किसी निश्चित स्थान से दूसरे स्थान पर डालता है। इन प्रभावों को अष्टकवर्ग में महत्व देकर फलित करने की एक सरल विधि तैयार की गयी है। अष्टकवर्ग में राहु-केतु को छोड़कर शेष सात ग्रह (सूर्य से शनि) और लग्न सहित आठ को महत्व दिया गया है। इसलिए इस पद्धति का नाम अष्टकवर्ग है। प्रश्न: अष्टकवर्ग में रेखा और बिंदु से क्या अभिप्राय है? उत्तर: अष्टकवर्ग में ग्रह अपना जो शुभ या अशुभ प्रभाव भाव में छोड़ते हैं उसे ही रेखा और बिन्दु से जाना जाता है। रेखा शुभ प्रभाव को दर्शाती हैं और बिन्दु अशुभ प्रभाव को। लेकिन कहीं कहीं पर बिन्दु को शुभ और रेखा को अशुभ माना जाता है। प्रश्न: अष्टकवर्ग फलित करने में कैसे सहायक है, इस पर प्रकाश डालें। उत्तर: अक्सर देखने में आता है कि कुंडली में ग्रह अपने शुभ स्थानों पर हैं, शुभ योगों में है तो भी जातक को उस अनुसार फल प्राप्त नहीं होता। यह क्यों नहीं होता, इसका खुलासा अष्टकवर्ग करता है। अष्टकवर्ग में यदि ग्रह को शुभ अंक अधिक प्राप्त नहीं हैं भले ही वह उच्च का हो, स्वराशि में हो, मूलत्रिकोण पर हो, शुभ योगों में हो, वह ग्रह फल नहीं देगा। छः, सात, आठ अंक यदि ग्रह को भाव में प्राप्त हैं तो वह विशेष शुभ फल देगा। प्रश्न: कितने अंक (बिन्दु या रेखा) शुभ फल देने में सक्षम हैं? उत्तर: यदि ग्रह को चार अंकों से कम अंक भाव में प्राप्त हैं तो ग्रह अपना शुभ प्रभाव नहीं दे पाता। पांच से आठ अंक प्राप्त ग्रह क्रमशः शुभ प्रभाव देने में सक्षम होते हैं। प्रश्न: सर्वाष्टक वर्ग और भिन्नाष्टक वर्ग में क्या अंतर है? उत्तर: सभी नव ग्रहों के शुभ प्राप्त अंकों को जोड़ कर जो वर्ग बनता है उसे सर्वाष्टक वर्ग कहते हैं और भिन्न-भिन्न ग्रह को जो शुभ अंक प्राप्त हैं उन्हें भिन्नाष्टक कहते हैं। प्रश्न: अष्टकवर्ग में किसी भाव में ग्रहों को जो कुल अंक प्राप्त होते हैं उनका अधिक महत्व है या किसी ग्रह को प्राप्त अंकों का अधिक महत्व है? उत्तर: महत्व दोनों का ही है। जब हम किसी भाव के कुल अंकों की बात करते हैं तो उनसे यह मालूम होता है कि उस भाव में सभी ग्रह मिलकर उस भाव का कैसा फल देंगे और जब किसी भाव में किसी विशेष ग्रह के फल को जानना चाहते हैं तो उस ग्रह को प्राप्त अंकों से जानते हैं। यदि किसी भाव में कुल 30 या अधिक अंक प्राप्त हैं तो यह समझना चाहिए कि उस भाव से संबंधित विशेष फल जातक को प्राप्त होंगे और उसी भाव में यदि किसी ग्रह को 5 या उससे अधिक अंक प्राप्त हैं तो यह जानना चाहिए कि उस ग्रह की दशा में उस भाव से संबंधित विशेष फल प्राप्त होंगे। कुल अंक निश्चित करते हैं उस भाव से संबंधित उपलब्धियां और ग्रह के अपने अंक निश्चित करते हैं कि कौन सा ग्रह कितना फल देगा, अर्थात अपनी दशा-अंतर्दशा और गोचर अनुसार फल कैसा देगा। प्रश्न: सभी भावों में अंकों को जोड़ने से जो अंक प्राप्त होते हैं, वे कहीं 337 और कहीं 386 होते हैं, ऐसा क्यों? उत्तर: कुछ विद्वान सात ग्रहों और लग्न के अंकों को जोड़ कर कुल अंकों की गणना करते हैं और कुछ सिर्फ सात ग्रहों को ही लेते हैं। इस प्रकार लग्न और सात ग्रहों को लेते हैं तो अंकों की संख्या 386 आती है, अगर लग्न को छोड़ देते हैं तब संख्या 337 आती है। प्रश्न: कितने अंकों वाला अष्टक वर्ग बनाना चाहिए, अर्थात 337 या 386? उत्तर: जब हम अष्टकवर्ग की बात करते हैं तो सात ग्रह और लग्न की बात होती है, इसलिए लग्न को यदि छोड़ देंगे तो अष्टकवर्ग अधूरा सा लगता है। इसलिए लग्न सहित अंकों को लें तो तर्कसंगत बात लगती है। इसलिए 386 ही लेना चाहिए। प्रश्न: गोचर का अष्टकवर्ग से क्या संबंध है? उत्तर: गोचर का फल अष्टकवर्ग के ही सिद्धांत पर आधारित है। जन्म राशि से ग्रह किस भाव में गोचर कर रहा है उसी अनुसार फल देता है। यदि ग्रह गोचर में शुभ स्थानों पर गोचर कर रहा है और उस स्थान पर ग्रह को उसके शुभ 6 या अधिक अंक प्राप्त हैं तो जातक को उस भाव से संबंधित विशेष शुभ फल प्राप्त होगा। प्रश्न: अष्टकवर्ग के अनुसार प्रत्येक ग्रह को जन्म राशि से कौन-कौन से शुभ स्थान प्राप्त हंै? उत्तर: प्रत्येक ग्रह के जन्म राशि से निम्न शुभ स्थान हंै। सूर्य: 3,6,10,11 चंद्र: 1,3,6,7,10,11 मंगल: 3,6,11 बुध: 2,4,6,8,10,11 गुरु: 2,5,7,9,11 शुक्र: 1,2,3,4,5,8,9,11,12 शनि: 3,6,11 प्रश्न: गोचर में ग्रह जितने समय एक राशि में रहता है, उस पूरी अवधि में शुभ फल देगा या किसी विशेष अवधि में? उत्तर: गोचर में ग्रह पूरे समय एक सा फल नहीं देता। जब ग्रह राशि में गोचर करते समय अपनी कक्षा में रहता है, उस समय विशेष लाभ देता है। प्रश्न: यह कक्षा क्या है? उत्तर: अष्टकवर्ग में हर राशि को बराबर आठ भागों में बांट कर कक्षा बनाई गई है। प्रत्येक कक्षा का स्वामी एक ग्रह होता है। जब ग्रह अपनी कक्षा में गोचर करता है तब शुभ फल देता है। प्रश्न: कौन सी कक्षा का स्वामी कौन है, कैसे जानें? उत्तर: एक राशि के आठ बराबर भाग अर्थात एक भाग 30 45’ का होता है। कक्षा के स्वामी का संबंध ग्रह की पृथ्वी से दूरी से है। जो सब से दूर है उसे प्रथम कक्षा तथा उसी अनुसार गुरु को दूसरी कक्षा दी गई है। एक से आठ कक्षाओं के स्वामी क्रमशः शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध, चंद्र और लग्न हैं। प्रत्येक राशि में भ्रमण करते समय ग्रह जब अपनी कक्षा से गोचर करेगा, विशेष फल देगा। प्रश्न: जन्म समय ग्रह यदि अपनी कक्षा में हो तो कैसा लाभ देता है? उत्तर: यदि जन्म समय में ग्रह अपनी कक्षा में है तो ग्रह का फल विशेषकर शुभ हो जाता है। प्रश्न: ढइया या साढ़ेसाती का प्रभाव भी क्या अष्टकवर्ग से जाना जा सकता है? उत्तर: साढ़ेसाती में जातक के लिए हर समय एक सा प्रभाव नहीं रहता। यदि शनि कुंडली में शुभकारी हो जाए तो साढ़ेसाती या ढइया का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है। शनि शुभकारी हो कर अपनी उच्च राशि, स्वग्रही, मूल त्रिकोण में हो और उसे अष्टकवर्ग में शुभ अंक प्राप्त हांे तो जातक को शुभ फल भी देता है। इसके विपरीत सभी फल अशुभ रहते हैं। प्रश्न: आज का गोचर शुभ है या अशुभ, कैसे जानें? उत्तर: जिस जातक की कुंडली देख रहे हैं उसके अष्टकवर्ग पर ध्यान दें। जैसे अगर आज का गुरु का गोचर देखना है। गुरु गोचर में तुला राशि में चल रहा है और जिस जातक के लिए गुरु का गोचर देख रहे हैं उसके गुरु के अंक द्वादश राशियों में मेष से क्रमशः 5,2,5,6,3,5,5,5,5,4,4,7 हैं और जातक की राशि कन्या है। गुरु राशि से द्वितीय स्थान पर गोचर कर रहा है। द्वितीय स्थान पर तुला राशि है। जातक के लिए राशि से गुरु का गोचर शुभ है। जातक की कुंडली के अष्टकवर्ग में तुला राशि में 5 अंक प्राप्त हैं और आज के गुरु के गोचर को तुला में 7 अंक प्राप्त हैं। इसलिए जातक के लिए आज का गुरु का गोचर शुभ है। तीव्रगति ग्रह चंद्र भी आज तुला राशि में है। जातक के लिए चंद्र का द्वितीय गोचर सामान्य है। चंद्र को तुला राशि में आज 5 अंक प्राप्त हैं, इसलिए चंद्र गोचर भी शुभ हुआ। कुल मिला कर देखें तो कन्या राशि वाले इस जातक के लिए गुरु और चंद्र का गोचर शुभ है। अन्य ग्रहों का गोचर कन्या राशि के संदर्भ में शनि 11वें शुभ है, मंगल आठवें अशुभ, बुध पांचवें सामान्य, शुक्र चैथे शुभ है। प्रश्न: अष्टकवर्ग में श्री पद्धति और पराशर पद्धति क्या हैं? उत्तर: दोनों पद्धतियां अष्टकवर्ग में माननीय हैं। श्री पद्धति और पराशर पद्धति में शुक्र और चंद्र के अंकों में कुछ अंतर है। व्यावहारिक तौर पर पराशर पद्धति ही विशेष मानी गई है। पराशर पद्धति से ही फल करना उचित रहेगा। प्रश्न: अष्टकवर्ग चलित कुंडली से बनाना चाहिए या लग्न कुंडली से? उत्तर: आम तौर पर देखा गया है कि लग्न कुंडली से ही अष्टकवर्ग बनाया जाता है। यदि चलित कुंडली का ध्यान रखते हुए अष्टकवर्ग बनाएं तो हम पाएंगे कि हमें और भी सटीक फल प्राप्त होते हैं। चलित के आधार पर अष्टकवर्ग का फल कहना उचित होगा। प्रश्न: क्या घटना के समय निर्धारण के लिए भी अष्टकवर्ग कार्य करता है? उत्तर: अष्टकवर्ग में शोधन कर शोध्य पिंड से घटना के समय का निर्धारण किया जा सकता है। मान लें जातक के विवाह के लिए समय निकालना चाहते हैं। विवाह का कारक ग्रह शुक्र है। शुक्र के शोध्य-पिंड लें और शुक्र से सप्तम भाव में शुक्र को प्राप्त अंक लें। शोध्य पिंड को शुक्र के अंकों से गुणा कर 27 से भाग दें | शेष जो रहे उससे अश्विनी नक्षत्र से गणना कर जो नक्षत्र आए, जब गुरु उस नक्षत्र पर भ्रमण करेगा तब जातक का विवाह होगा। इसी प्रकार गुणनफल को 12 का भाग देने पर जो शेष रहे उसे मेष राशि से गणना कर जो राशि आए, जब (गोचर का) गुरु उस राशि में भ्रमण करेगा, तब विवाह होगा। इसी प्रकार शोध्य पिंड से विभिन्न घटनाओं के समय का निर्धारण कर सकते हैं। प्रश्न: क्या फल कथन अष्टक वर्ग शोधन के उपरांत करना चाहिए? उत्तर: गोचर फल या भावों के फल को जानने के लिए अष्टकवर्ग शोधन से पूर्व देखना चाहिए। घटना का समय निर्धारण करने के लिए शोधन कर शोध्य पिंड से गणना कर देखना चाहिए। प्रश्न: क्या दशा के फल की शुभता-अशुभता जानने में भी अष्टक वर्ग सहायक है? उत्तर: दशा के फल की शुभता भी अष्टकवर्ग से जानी जा सकती है। जिन भावों में दशानाथ को अधिक अंक प्राप्त हैं, उन भावों से जातक को शुभ फल प्राप्त होंगे और यदि ग्रह का गोचर भ्रमण भी शुभ हो तो उस समय जातक को विशेष फल प्राप्त होंगे। इसी तरह दशा, अंतर्दशा नाथ आदि यदि सभी ग्रहों को शुभ अंक जिस-जिस भाव में अधिक हैं, सभी का फल शुभ होगा। प्रश्न: किस भाव में अधिक और किस भाव में कम अंक शुभ होते हैं? उत्तर: षष्ठ, अष्टम और द्वादश भाव में अंक कम होने चाहिए। अन्य भावों में अंक अधिक होना शुभ है। सप्तम भाव में भी बहुत अधिक अंक शुभ नहीं माने जाते। प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम, एकादश भावों में जितने अधिक अंक हांे, उतना शुभ होता है। प्रश्न: क्या जातक की आयु का भी निर्णय अष्टकवर्ग से किया जा सकता है? उत्तर: अष्टकवर्ग का शोधन कर शोध्य पिंड से जातक की आयु का निर्णय किया जाता है। सभी ग्रहों के शोध्य पिंडों (सूर्य से शनि) को लग्न से अष्टम भाव में जो अंक प्राप्त हैं, उनसे गुणा कर गुणनफल को 27 का भाग देने से जो भागफल आए, वह ग्रह की आयु होती है। उसी तरह सभी ग्रहों की आयु जोड़ देने पर 324 का गुणा कर 365 का भाग देने से जो आए, वह जातक की आयु होती है। प्रश्न: क्या अष्टकवर्ग को देखकर यह कहा जा सकता है कि जातक का सामाजिक जीवन कैसा होगा? उत्तर: शुभ भावों में अधिक अंक हैं तो कहा जा सकता है कि जातक का सामाजिक जीवन सामान्य से अच्छा है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जातक के पास धन तो बहुत है पर कोई निजी मकान इत्यादि नहीं होता या किसी चीज का अभाव होता है। इसके लिए यदि धन भाव, एकादश भाव और त्रिकोण भावों में अंक अच्छे हंै और चतुर्थ में कम तो ऐसा देखने में आया है कि धन होते हुए भी जातक अपना जीवन किराए के मकान में व्यतीत करता है या अपना मकान होते हुए भी अपने मकान में नहीं रह पाता। केवल अष्टकवर्ग को देखकर इतनी भविष्यवाणी की जा सकती है।

पापी ग्रहों से पारिवारिक कलह का निवारण

आजकल प्रत्येक परिवार, चाहे वह संयुक्त हो अथवा एकल, गृह कलह से ग्रस्त दिखाई देता है। गृह क्लेश के फैले विषाक्त वातावरण से परिवार का मुखिया, परिवार का प्रत्येक सदस्य तनावग्रस्त जीवन व्ययतीत करता है। गृह कलह का यह वातावरण परिवार के सदस्यों में रक्तचाप, हृदय रोग, उन्माद, मधुमेह जैसी बीमारियों को जन्म देता है, वहीं पति-पत्नी में तलाक, परिवार में बिखराव, जमीन जायदाद तथा व्यवसाय के बंटवारे और लड़ाई झगड़ों का मुख्य कारण बनता है। गृह कलह मुख्य रूप से पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-भाई, सास-बहू, ननद-भाभी, देवरानी-जेठानी के मध्य होती देखी गई है। यहां ज्योतिषीय दृष्टि से गृह कलह के कारणों एवं उनके निवारण का विश्लेषण प्रस्तुत है। दाम्पत्य जीवन में गृह-कलह पति-पत्नी की कामना होती है कि उनके दाम्पत्य जीवन में किसी प्रकार की कड़वाहट पैदा न हो तथा जीवन में सदैव सुख की बयार बहती रहे। लेकिन अधिकतर परिवारों में पति-पत्नी के मध्य लड़ाई-झगड़े, संबंध विच्छेद, तलाक आदि होते देखे गए हैं। इसके लिए ज्योतिषीय दृष्टि से देंखे कि किस प्रकार की ग्रह स्थिति होती है जो गृह कलह को जन्म देती है। जन्मकुंडली में सप्तम भाव, सप्तमेश, सप्तम भाव में स्थित ग्रह, सप्तम भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रह तथा सप्तम भाव के कारक ग्रह से व्यक्ति के दाम्पत्य जीवन के बारे में विचार किया जाता है। यदि जातक का सप्तम भाव निर्बल हो, सप्तम भाव पर पापी ग्रह शनि, मंगल, सूर्य या राहु-केतु का प्रभाव हो, गुरु और शुक्र अस्त हों अथवा पापाक्रांत हों तो दाम्पत्य सुख में बाधा आती है। शनि: शनि का प्रभाव सप्तम भाव पर होने पर दाम्पत्य जीवन शुष्क और नीरस होता है। विवाह के पश्चात जीवन साथी के प्रति उत्साह और उमंग की भावना क्षीण होने लगती है। परस्पर आकर्षण में कमी आ जाती है। पति-पत्नी साथ रहते हुए भी पृथक रहने के समान जीवन व्यतीत करते हैं। पति-पत्नी के आपस में चिड़चिड़ापन, स्वभाव में कड़वाहट, व्यवहार में रुखा पन आ जाता है जिसके फलस्वरुप पति-पत्नी में छोटी-छोटी बातों पर विवाद पैदा हो जाते हैं। झगड़े होने से परिवार के वातावरण में कलह के बादल छा जाते हैं। मंगल: मंगल पापी और उग्र ग्रह माना जाता है। जातक की कुंडली में मंगल जन्म लग्न से पहले, चैथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में स्थित होने पर जातक मंगली माना जाता है। मंगल जातक के स्वभाव में अधिक उग्रता और क्रोध पैदा करता है। यदि लग्न अथवा सप्तम भाव पर मंगल स्थित हो या सप्तम भाव पर मंगल का प्रभाव हो तथा किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक क्रोधी, स्वाभिमानी एवं अहंकारी होता है। स्वभाव में उग्रता, हठीलापन होने से परिवार में उठने वाली छोटी-छोटी बातों पर पति-पत्नी के मध्य विवाद या झगड़े उत्पन्न हो जाते हैं जो अंत में गृह-कलह पैदा करते हैं। सूर्य: जन्मकुंडली में सूर्य का प्रथम एवं सप्तम भावों पर प्रभाव होने पर और निर्बल व नीच राशि के सूर्य के सप्तम भाव में होने पर जातक अहंकारी, स्वाभिमानी एवं अड़ियल स्वभाव का होता है। जीवनसाथी से स्वाभिमान का टकराव होता है, जिससे विवाद की स्थिति बनती है। राहु: लग्न एवं सप्तम भाव में राहु के दुष्प्रभाव के कारण दाम्पत्य जीवन में विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। अन्य परिवार के सदस्यों के दखल के कारण पति-पत्नी के मध्य विवाद, लड़ाई-झगड़े खड़े होते हैं जिससे उनके दाम्पत्य जीवन में सुख की कमी आती है। पति-पत्नी एक दूसरे को कोसते रहते हंै, एक-दूसरे की निंदा तथा आलोचना करते रहते हैं। राहु के इस दुष्प्रभाव को कम करने के लिए पति-पत्नी को आपस में आलोचना करने के स्थान पर एक-दूसरे की प्रशंसा करनी चाहिए। गृह कलह को समाप्त करने के ज्योतिषीय उपाय जैसा पूर्व में बताया गया है, गृह कलह के पीछे जातक की कुंडली में स्थित क्रूर और पापी ग्रह शनि, मंगल, सूर्य तथा राहु की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। परिवार के मुखिया या पीड़ित व्यक्ति को गृह कलह के दौरान चल रही क्रूर व पापी ग्रहों की महादशा अंतर्दशा के अनुसार निम्न ज्योतिषीय उपाय करने चाहिए। गृह कलह का कारक शनि होने पर - भगवान शिव के मंदिर में या घर पर प्राण प्रतिष्ठित पारद शिवलिंग पर नित्य गाय के कच्चे दूध मिश्रित जल से ¬ नमः शिवाय’ मंत्र से अभिषेक करें, साथ ही रुद्राक्ष माला से महामृत्युंजय मंत्र का एक माला जप करें। यदि जप संभव न हो तो उक्त मंत्र की कैसेट या सी.डी. चलाएं। - गृह कलह से पीड़ित व्यक्ति को काले घोडे़ की नाल से निर्मित छल्ला शुक्ल पक्ष के शनिवार को मध्यमा में धारण करना चाहिए। - प्रत्येक शनिवार को पीपल वृक्ष के नीचे सूर्योदय से पूर्व तिल के तेल का दीपक प्रज्वलित करें। शुद्ध जल, दूध और पुष्प वृक्ष को अर्पित कर तिल का प्रसाद चढ़ाएं। वहीं बैठकर निम्न शनि मंत्र का 21 बार उच्चारण करें। ‘‘¬ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः’’ - शुक्ल पक्ष के शनिवार को हनुमान मंदिर में हनुमान के चरणों में लाल सिंदूर मिश्रित अक्षत अर्पित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण 21 बार करें: ‘‘¬ श्री रामदूताय नमः’’ साथ ही हनुमान जी से परिवार में गृह कलह समाप्त करने की प्रार्थना करें तथा हनुमान जी के चरणों का सिंदूर लेकर अपने माथे पर लगाएं। ऐसा कम से कम 7 शनिवार करें। गृह कलह का कारण मंगल ग्रह होने पर - शुक्ल पक्ष के मंगलवार को स्नान कर हनुमान मंदिर जाएं तथा 100 ग्राम चमेली का तेल और 125 ग्राम सिंदूर हनुमान विग्रह पर चढ़ाएं। साथ ही गुड़ और चने चढ़ाएं। पूजा अर्चना कर वहीं बैठकर बजरंग-बाण का पाठ करें तथा हनुमान जी से गृह कलह समाप्त हो इसके लिए प्रार्थना करें। यह क्रम कम से कम 7 मंगलवार दोहराएं। - लाल वस्त्र में 2 मुट्ठी मसूर की दाल बांधकर मंगलवार को भिखारी को दान करें। - बंदरों को प्रत्येक मंगलवार चने, केले खिलाएं। गृह कलह का कारण सूर्य ग्रह होने पर - गृह कलह पीड़ित व्यक्ति को या गृहस्वामी को सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान सूर्य को तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरकर उसमें रोली, अक्षत, लाल पुष्प तथा गुड़ डालकर सूर्य मंत्र अथवा गायत्री मंत्र से अघ्र्य दे। साथ ही रविवार को विष्णु मंदिर में पुष्प-प्रसाद आदि चढ़ाएं तथा तांबे का पात्र दान करें। हर रविवार को या नित्य सूर्य कवच का पाठ करें। - तांबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करें। मोली हाथ में बांधते समय उसे 6 बार लपेट कर बांधें। - लाल गाय को रविवार को दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूं भरकर खिलाना चाहिए, गेहूं जमीन पर नहीं डालना चाहिए। गृह कलह का कारण राहु ग्रह होने पर - प्राण प्रतिष्ठित पारद शिवलिंग पर नित्य जलाभिषेक करें तथा रुद्राक्ष माला से प्रतिदिन ‘¬ नमः शिवाय’ का जप करें। - प्रातःकाल पक्षियों को दाना डालें, यह कार्य बुधवार से प्रारंभ करें। - नीले वस्त्र में नारियल बांधकर शुक्ल पक्ष के शनिवार को नदी या जलाशय में प्रवाहित करें। ऐसा 7 शनिवार करें। - केसर का तिलक करें। - रसोईघर में बैठकर भोजन करें। - मजदूरों, हरिजनों और अपंग व्यक्तियों की आर्थिक सहायता करें, उन्हें वस्त्र आदि का दान करें। पति-पत्नी के मध्य गृह-कलह शांत करने के सामान्य उपाय यहां कुछ सरल उपाय दिए जा रहे हैं जो दाम्पत्य जीवन में व्याप्त गृह कलह के शमन में कुछ सीमा तक सहायक हो सकते है। - यदि पति-पत्नी के मध्य वाक युद्ध होता रहता है तो जिस व्यक्ति के कारण कलह होता हो उसे बुधवार के दिन कुछ समय के लिए (दो घंटे के लिए) मौन व्रत धारण करना चाहिए। - यदि पति-पत्नी के मध्य परस्पर सामंजस्य एवं सहयोग की भावना का अभाव हो तो उन्हें गुरुवार को साथ-साथ राम-सीता मंदिर या लक्ष्मीनारायण मंदिर जाकर भगवान को पुष्प एवं प्रसाद चढ़ाने चाहिए तथा प्रेम का वातावरण घर में बना रहे ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए और प्रसाद का भोग लगाकर मंदिर में बांटना चाहिए! - पति को चाहिए कि वह शुक्रवार अपनी जीवन संगिनी को सुंदर पुष्प या इत्र की शीशी भंेट करे तथा उसके साथ सफेद मिठाई खाए। - घर के वातावरण को सुखमय बनाए रखने के लिए घर में गमले में सुगंधित सुंदर पुष्प के पौधे लगाने चाहिए। बड़े कमरे में कृत्रिम सुंदर पुष्प युक्त गमले सजा कर रखें। यदि किसी के जीवन साथी की जन्म कुंडली में आठवें भाव में शनि या राहु स्थित हो तो दूसरे को नीले या काले वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए। - यदि किसी जातक की पत्नी की जन्मकुंडली में आठवें भाव में मंगल स्थित हो तो गृह कलह का कारण बनता है। इस मंगल के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए महिला जातक को निम्न उपाय करने चाहिए। - समय समय पर विधवा स्त्री का आशीर्वाद लेती रहे। - रोटी बनाते समय तवा गर्म होने पर पहले उस पर ठंडे पानी के छींटे डाले और फिर रोटीे। - अपने शयन कक्ष में लाल वस्त्र में सौंफ बांधकर रखे। - शयन कक्ष में गमले में मोर पंख सजाकर इस प्रकार रखे कि वे कमरे के बाहर से दृष्टिगोचर न हों किंतु पति-पत्नी को पलंग से नजर आते रहें। - घर में कलह से मुक्ति के लिए परिवार की स्त्रियों को सूर्योंदय से पूर्व जागना चाहिए और सूर्योदय से पूर्व ही घर की सफाई कर लेनी चाहिए।

जोड़ों का दर्द उसके ज्योतिष्य कारण व् उपाय



जोड़ों के दर्द से पीड़ित लोगों को दैनिक काम-काज करने में बहुत समस्या आती है। जिन रोगों में यह दर्द, लक्षण, रूप मिलता है इनमें से एक है संधिगत वात। जोड़ों के इस विकार में वायु ही मुख्य कारण होता है। आयुर्वेद के अनुसार हड्डी और जोड़ों में वायु का निवास होता है। वायु के असंतुलन से जोड़ भी प्रभावित होते हैं। अतः वायु गड़बड़ा जाने से जोड़ों में दर्द होता है। क्योंकि गठिया रोग जोड़ों से संबंधित है इसलिए जोड़ों की रचना को भी समझ लेना उचित होगा। गठिया में जोड़ों की रचना में विकृति पैदा होती है। हड्डियों के बीच का जोड़ एक झिल्ली से बनी थैली में रहता है, जिसे सायनोवियल कोष या आर्टीक्युलेट कोष कहते हैं। जोड़ों की छोटी रचनाएं इसी कोष में रहती हैं। हड्डियों के बीच की क्रिया ठीक तरह से हो तथा हड्डियों के बीच घर्षण न हो, इसलिए जोड़ों में हड्डियों के किनारे लचीले और नर्म होते हैं। यहां पर एक प्रकार की नर्म हड्डियां रहती हैं, जिन्हें कार्टीलेज या आर्टीक्युलेट कहते हैं, जो हड्डियों को रगड़ खाने से बचाती है। पूरे जोड़ को घेरे हुए एक पतली झिल्ली होती है जिसके कारण जोड़ की बनावट ठीक रहती है। इस झिल्ली से पारदर्शी, चिकना तरल पदार्थ उत्पन्न होता है, जिसे सायनोवियल तरल कहते हैं। संपूर्ण सायनोवियल कोष में यह तरल भरा रहता है। किसी भी बाह्य चोट से जोड़ को बचाने का काम यह तरल करता है। इस तरल के रहते जोड़ अपना काम ठीक ढंग से करता है। गठिया रोग का एक कारण शरीर में अधिक मात्रा में यूरिक एसिड का होना माना गया है। जब गुर्दों द्वारा यह कम मात्रा में विसर्जित होता है या मूत्र त्यागने की क्षमता कम हो जाती है तो मोनो सोडियम -बाइयूरेट -क्रिस्टल जोड़ों के उत्तकों में जमा होकर तेज उत्तेजना एवं प्रदाह उत्पन्न करने लगता है। तब प्रभावित भाग में रक्त संचार असहनीय दर्द पैदा कर देता है। गठिया रोगियों का वजन अक्सर ज्यादा होता है और ये देखने में स्वस्थ एवं प्रायः मांसाहारी और खाने-पीने के शौकीन होते हैं। भारी और तैलीय भोजन, मांस, मक्खन, घी और तेज-मसाले, शारीरिक एवं मानसिक कार्य न करना, क्रोध, चिंता, शराब का सेवन, पुरानी कब्ज आदि कारणों से जोड़ों में मोनो-सोडियम बाइयूरेट जमा होने से असहनीय पीड़ा होती है जिससे मानव गठिया रोग से पीड़ित हो जाता है। गठिया रोग के लक्षण गठिया रोग के निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं: - जोड़ों की गांठों में सूजन, जोड़ांे में कट-कट सी आवाज होना, पैर के अंगूठे में सूजन, सुबह सवेरे तेज पीड़ा, हाथ-पैर के जोड़ों में सूजन। -दर्द, रात में तेज दर्द एवं दिन में आराम, मूत्र कम और पीले रंग का आना। बचाव इस रोग से बचने के लिए इसके कारणों पर ध्यान देते रहें। यह आनुवांशिक रोग भी है। इसलिए अगर परिवार में यह रोग किसी को था या है तो अपनी जांच करवाएं। अगर आपके रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा अधिक आती है तो, आप अपने खाने-पीने को सही रखें। जिन खाद्य पदार्थों से यूरिक एसिड ज्यादा बनता है जैसे मांस, मद्यपान, भारी भोजन इत्यादि, उनकी मात्रा कम कर दें एवं योगासन तथा व्यायाम करें। ज्योतिषीय दृष्टिकोण काल पुरूष की कुंडली में दशम भाव और मकर राशि महत्वपूर्ण जोड़ों का नेतृत्व करती है जैसे ‘घुटने’। इसलिए दशम भाव एवं मकर राशि के दूषित प्रभावों में रहने से रोग उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त शनि, शुक्र और मंगल ग्रह एवं लग्न यदि किसी कुंडली में निर्बल और दुष्प्रभावों में हो तो जातक को गठिया जैसा रोग देता है। जैसा कि हमने जाना कि आयुर्वेद के अनुसार वात दोष होने से गठिया रोग उत्पन्न होता है जिसमें यूरिक एसिड की मात्रा कम हो जाती है। शनि ग्रह वात प्रकृति का है और रोग को धीरे-धीरे बढ़ाता है। शुक्र ग्रह वात-कफ प्रकृति का है। यह शरीर में हार्मोन को संतुलित रखता है। इसलिए इसके दूषित हो आयुर्वेदिक उपचार सरसों के तेल में अजवायन और लहसुन जलाकर तेल मालिश करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है। काले तिलों को पीस कर बराबर मात्रा में गुड़ मिलाकर बकरी के दूध से सेवन करने से आराम मिलता है। मजीठ, हरड़, बहेड़ा, आंवला, कुटकी, बच, नीम की छाल, दारू हल्दी, गिलोय का काढ़ा बना कर पीने से गठिया में आराम मिलता है। बड़ी इलायची, तेजपत्ता, दाल चीनी, शतावर, गंगरेन, पुनर्नका, असगंध, पीपर, रास्ना, सोंठ, गोखरू, विधारा, तज निशीथ, इन सबको गिलोय रस में घोट कर गोली बनाकर बकरी के दूध के साथ दो-दो गोली सुबह शाम सेवन करने से आराम मिलता है। असगंध के पत्ते में चुपड़कर गर्म कर के दर्द के स्थान पर बांधने से आराम होता है। दशमूल काढ़ा या दशमूलारिष्ट की चार-चार चम्मच दिन में दो-तीन बार थोड़ा सा पानी मिलाकर लेने से गठिया दर्द में आराम मिलता है। अश्वगंधा चूर्ण एक ग्राम, शृंग भस्म 500 मि. ग्राम और वृद्ध वात चिंतामणि रस 65 मि. ग्राम, तीनों को मिलाकर तीन बार दूध या शहद के साथ सेवन करें। लहसुन को दूध में उबालकर, खीर बना कर खाने से गठिया रोग ठीक होता है। सौंठ, अखरोट और काले तिल, अनुपात 1ः2ः4 में पीसकर, सुबह-शाम गरम पानी से 15 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से लाभ मिलता है। जाने से हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं जिससे शरीर विकृत होने लगता है। मंगल ग्रह पित्त प्रकृति का है जो रक्त के लाल कणों का कारक है इसलिए ग्रह के दूषित होने से रक्त में विकार उत्पन्न होता है और जोड़ों को शुष्क कर देता है। जोड़ों में तरल पदार्थ की मात्रा को इतना कम कर देता है कि उठते-बैठते जोड़ों से आवाज आने लगती है और जोड़ विकृत हो जाते हैं। जोड़ों की विकृति चोट एवं दुर्घटना से भी हो जाती है और दुर्घटना भी मंगल के दुष्प्रभावों में रहने से होती है। इसलिए यदि किसी की कुंडली में शनि, शुक्र, मंगल, दशम भाव, दशमेश, लग्न, लग्नेश यदि दुष्प्रभावों में रहते हैं तो संबंधित ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर के अशुभ रहने से गठिया रोग होता है। विभिन्न लग्नों में गठिया रोग मेष: लग्नेश मंगल शनि से युक्त दशम भाव में हो और शुक्र पंचम या षष्ठ में सूर्य से अस्त हो तो जातक को गठिया जैसा रोग हो सकता है। वृष लग्न: शुक्र षष्ठ भाव में चंद्र से युक्त हो और शनि से दृष्ट हो, मंगल राहु से युक्त होकर दशम भाव में हो तो जातक को गठिया जैसा रोग हो सकता है। मिथुन लग्न: लग्नेश बुध षष्ठ या अष्टम भाव में हो और अस्त हो, मंगल दशम भाव में गुरु से युक्त या दृष्ट हो, शनि द्वादश भाव में चंद्र से युक्त होकर स्थित या दृष्टि रखता हो तो जातक को गठिया जैसा रोग देता है। कर्क लग्न: चंद्र शनि से युक्त होकर षष्ठ भाव में हो, मंगल लग्न में राहु या केतु से युक्त या दृष्ट हो, बुध दशम भाव में शुक्र से युक्त हो तो जातक को गठिया जैसा रोग देता है। सिंह लग्न: शनि दशम भाव में चंद्र से युक्त हो, लग्नेश सूर्य, राहु से युक्त होकर तृतीय या षष्ठ भाव में हो, शुक्र अस्त हो तो जातक जोड़ों के दर्द से परेशान रहता है। कन्या लग्न: शनि लग्न में राहु या केतु से युक्त हो, लग्नेश बुध षष्ठ या अष्टम भाव में अस्त हो, मंगल दशम भाव में चंद्र से युक्त या दृष्ट हो तो जातक जोड़ों के दर्द से परेशान रहता है। तुला लग्न: लग्नेश शुक्र अस्त होकर चंद्र से दृष्ट या युक्त होकर जल राशि में हो, शनि षष्ठ भाव में गुरु से युक्त या दृष्ट हो, मंगल अस्त हो तो जातक जोड़ों के दर्द से परेशान रहता है। वृश्चिक लग्न: बुध लग्नस्थ होकर राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो, शनि षष्ठ भाव में चंद्र से युक्त या दृष्ट हो, मंगल अष्टम भाव में हो तो जातक को संबंधित रोग देता है। धनु लग्न: लग्नेश गुरु अष्टम या द्वादश भाव में चंद्र से युक्त हो, शनि वक्री होकर दशम भाव में या दशम भाव पर दृष्टि, मंगल, शुक्र अस्त हो तो जातक को गठिया रोग देते हैं। मकर लग्न: गुरु राहु से युक्त होकर दशम भाव में हो, लग्नेश शनि वक्री हो, सूर्य लग्न में हो, शुक्र अस्त हो, मंगल दशम भाव में हो तो जातक को गठिया जैसा रोग होता है। कुंभ लग्न: मंगल दशम भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, सूर्य लग्न में या अष्टम भाव में गुरु से युक्त हो, शनि वक्री हो तो जातक को जोड़ों का दर्द देता है। मीन लग्न: गुरु तृतीय, षष्ठ या अष्टम भाव में मंगल से युक्त या दृष्ट हो, शुक्र-शनि दशम भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, चंद्र अस्त हो तो जातक को गठिया जैसा रोग देते हैं। उपरोक्त सभी योगों का प्रभाव अपनी संबंधित ग्रहों की दशा-अंतर्दशा एवं गोचर के दुष्प्रभावों के कारण होता है। इसके उपरांत जातक रोग रहित हो जाता है।

विभिन्न ग्रहों में राहु और केतु का प्रभाव

यह कथा एक ऐसी नारी की है जिसके जीवन का आरंभ अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ। लेकिन उसकी किस्मत न केवल उसे एक समृद्ध परिवार में ले गई, अपितु उसे जीवन का वह रंग भी दिखाया जिसकी कल्पना शायद उसने कभी नहीं की थी। सुमति का बचपन अत्यंत गरीबी में बीता। उसके पिता एक छोटी सी नौकरी करते थे जिससे एक अत्यंत बड़े परिवार का गुजर बसर काफी मुश्किल से होता था। अनेक बार उन्हें धान कूट कर चावल से ही संतुष्ट होना पड़ता। सोलह साल की उम्र में ही सुमति का विवाह श्रीधर से हो गया। आंखों में अपने सुनहरे भविष्य के सपने संजोए सुमति अपनी ससुराल चली गई। श्रीधर वन रक्षक के पद पर आसीन थे वे अपने काम में अत्यंत व्यस्त रहते। विवाह के कुछ दिन तक तो उन्होंने घर के प्रति अधिक ध्यान दिया जिससे कि नवविवाहिता को अच्छा लगे लेकिन धीरे-धीरे वे अपनी पुरानी दुनिया में वापस लौटने लगे। कहते हैं शराब और शबाब का चस्का एक बार लग जाए तो छुड़ाए नहीं छूटता। सुमति का जादू अधिक दिन तक नहीं चला और उसे अधिकतर समय पति के इंतजार में ही बिताना पड़ता। विवाह के एक वर्ष बाद ही सुमति ने एक पुत्री को जन्म दिया और उसका खाली समय पुत्री के साथ बीतने लगा। लेकिन जीवन के सभी ऐशो ऐराम होते हुए भी पति की बेरुखी उसे मर्माहत कर देती। आस पड़ौस में लोगों को अथवा अपने मायके में अपनी बहनों एवं बहनोइयों को चुहलबाजी करते या हंसते बोलते देखती तो उसका मन टीस से भर जाता। वह अत्यंत दुखी रहने लगी। क्या सुखी जीवन का अर्थ अच्छा खाना, पहनना एवं पति के प्रति अपने कर्तव्य पूरे करना ही है? क्या उसकी इच्छाओं अथवा कामनाओं की कोई कद्र नहीं? वह भी अपने पति के साथ अपने मन की बात करना चाहती थी, हंसना चाहती थी, पर उन्हें तो बात करने का समय ही नहीं था। ऐसे ही चलते-चलते जाने कब पांच वर्ष बीत गए और वह तीन बच्चों की मां बन गई। चूंकि वह बिलकुल अनपढ थी और पति के पास परिवार के लिए समय नहीं था, सो घर पर बच्चों को पढ़ाने के लिए एक अध्यापक की व्यवस्था की गई। शिखर, जो वहीं सरकारी काॅलेज में प्रवक्ता के पद पर आसीन थे, सुमति के घर उसके बच्चों को पढ़ाने आने लगे। सुमति के जीवन में मानो बसंत का एक झोंका सा आ गया। बच्चों के पढ़ने के बाद वह उन्हें जबरन रोक लेती और घंटों उनसे बतियाती। और धीरे-धीरे कब उसने शिखर के तन और मन पर आधिपत्य स्थापित कर लिया, वह जान ही नहीं पाई। अब तो जीवन के रंग मानो बदल-से गए। श्रीधर की व्यस्तता एवं उदासीनता दिनानुदिन बढ़ती गई। उनकी जरूरत सुमति पहले की तरह पूरी करती रही। उसकी अपनी जिंदगी में मानो फिर से बहार आ गई थी। अगले वर्ष सुमति फिर से मां बनी और इस बार मां बनने का सुख उसके रोम-रोम से झलक रहा था। त्रिया चरित्र को समझना बहुत मुश्किल है। कहा है: स्त्रयाः चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं देवो न जानाति कुतो मनुष्य। अर्थात स्त्री के चरित्र और पुरुष के भाग्य को मनुष्य की कौन कहे भगवान भी नहीं समझ पाते। सुमति ने भी श्रीधर के सामने शिखर की इतनी तारीफ की कि श्रीधर ने उन्हें अपने ही घर में मकान, बिना किसी किराए के, दे दिया। सुमति को मानो मुंह मांगी दौलत मिल गई और आज इतने वर्ष बाद भी जब सुमति के सभी बच्चों का विवाह हो चुका है, शिखर अपने परिवार सहित अभी भी उनके घर में रहते हैं। इस कथा के दूसरे पहलू पर गौर कर तो शास्त्रानुसार, फेरों पर दिए गए वचनानुसार पर पुरुष की कल्पना करना भी पाप है और सुमति ने जो कृत्य किया वह निश्चित रूप से समाज में अनुचित था। शायद ईश्वर भी (चाहे हम उसे मानें अथवा नहीं) हमारे कुकृत्यों का फल हमें इसी जन्म में दे देता है जिसे हमें भोगना ही पड़ता है। सुमति के विवाहित पुत्र को इन सब बातों का पता चला तो उसने आत्म हत्या कर ली और उसकी पत्नी ने अन्यत्र विवाह कर लिया। सुमति अपनी पोती का लालन-पालन कर रही है। श्रीधर सब कुछ जानकर भी मौन रहकर पश्चताप के आग में जलते हुए सुमति के साथ रह रहे हैं।

सुमति की कुमति...लघु कथा

यह कथा एक ऐसी नारी की है जिसके जीवन का आरंभ अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ। लेकिन उसकी किस्मत न केवल उसे एक समृद्ध परिवार में ले गई, अपितु उसे जीवन का वह रंग भी दिखाया जिसकी कल्पना शायद उसने कभी नहीं की थी। सुमति का बचपन अत्यंत गरीबी में बीता। उसके पिता एक छोटी सी नौकरी करते थे जिससे एक अत्यंत बड़े परिवार का गुजर बसर काफी मुश्किल से होता था। अनेक बार उन्हें धान कूट कर चावल से ही संतुष्ट होना पड़ता। सोलह साल की उम्र में ही सुमति का विवाह श्रीधर से हो गया। आंखों में अपने सुनहरे भविष्य के सपने संजोए सुमति अपनी ससुराल चली गई। श्रीधर वन रक्षक के पद पर आसीन थे वे अपने काम में अत्यंत व्यस्त रहते। विवाह के कुछ दिन तक तो उन्होंने घर के प्रति अधिक ध्यान दिया जिससे कि नवविवाहिता को अच्छा लगे लेकिन धीरे-धीरे वे अपनी पुरानी दुनिया में वापस लौटने लगे। कहते हैं शराब और शबाब का चस्का एक बार लग जाए तो छुड़ाए नहीं छूटता। सुमति का जादू अधिक दिन तक नहीं चला और उसे अधिकतर समय पति के इंतजार में ही बिताना पड़ता। विवाह के एक वर्ष बाद ही सुमति ने एक पुत्री को जन्म दिया और उसका खाली समय पुत्री के साथ बीतने लगा। लेकिन जीवन के सभी ऐशो ऐराम होते हुए भी पति की बेरुखी उसे मर्माहत कर देती। आस पड़ौस में लोगों को अथवा अपने मायके में अपनी बहनों एवं बहनोइयों को चुहलबाजी करते या हंसते बोलते देखती तो उसका मन टीस से भर जाता। वह अत्यंत दुखी रहने लगी। क्या सुखी जीवन का अर्थ अच्छा खाना, पहनना एवं पति के प्रति अपने कर्तव्य पूरे करना ही है? क्या उसकी इच्छाओं अथवा कामनाओं की कोई कद्र नहीं? वह भी अपने पति के साथ अपने मन की बात करना चाहती थी, हंसना चाहती थी, पर उन्हें तो बात करने का समय ही नहीं था। ऐसे ही चलते-चलते जाने कब पांच वर्ष बीत गए और वह तीन बच्चों की मां बन गई। चूंकि वह बिलकुल अनपढ थी और पति के पास परिवार के लिए समय नहीं था, सो घर पर बच्चों को पढ़ाने के लिए एक अध्यापक की व्यवस्था की गई। शिखर, जो वहीं सरकारी काॅलेज में प्रवक्ता के पद पर आसीन थे, सुमति के घर उसके बच्चों को पढ़ाने आने लगे। सुमति के जीवन में मानो बसंत का एक झोंका सा आ गया। बच्चों के पढ़ने के बाद वह उन्हें जबरन रोक लेती और घंटों उनसे बतियाती। और धीरे-धीरे कब उसने शिखर के तन और मन पर आधिपत्य स्थापित कर लिया, वह जान ही नहीं पाई। अब तो जीवन के रंग मानो बदल-से गए। श्रीधर की व्यस्तता एवं उदासीनता दिनानुदिन बढ़ती गई। उनकी जरूरत सुमति पहले की तरह पूरी करती रही। उसकी अपनी जिंदगी में मानो फिर से बहार आ गई थी। अगले वर्ष सुमति फिर से मां बनी और इस बार मां बनने का सुख उसके रोम-रोम से झलक रहा था। त्रिया चरित्र को समझना बहुत मुश्किल है। कहा है: स्त्रयाः चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं देवो न जानाति कुतो मनुष्य। अर्थात स्त्री के चरित्र और पुरुष के भाग्य को मनुष्य की कौन कहे भगवान भी नहीं समझ पाते। सुमति ने भी श्रीधर के सामने शिखर की इतनी तारीफ की कि श्रीधर ने उन्हें अपने ही घर में मकान, बिना किसी किराए के, दे दिया। सुमति को मानो मुंह मांगी दौलत मिल गई और आज इतने वर्ष बाद भी जब सुमति के सभी बच्चों का विवाह हो चुका है, शिखर अपने परिवार सहित अभी भी उनके घर में रहते हैं। इस कथा के दूसरे पहलू पर गौर कर तो शास्त्रानुसार, फेरों पर दिए गए वचनानुसार पर पुरुष की कल्पना करना भी पाप है और सुमति ने जो कृत्य किया वह निश्चित रूप से समाज में अनुचित था। शायद ईश्वर भी (चाहे हम उसे मानें अथवा नहीं) हमारे कुकृत्यों का फल हमें इसी जन्म में दे देता है जिसे हमें भोगना ही पड़ता है। सुमति के विवाहित पुत्र को इन सब बातों का पता चला तो उसने आत्म हत्या कर ली और उसकी पत्नी ने अन्यत्र विवाह कर लिया। सुमति अपनी पोती का लालन-पालन कर रही है। श्रीधर सब कुछ जानकर भी मौन रहकर पश्चताप के आग में जलते हुए सुमति के साथ रह रहे हैं।

हस्तरेखा और योग दर्शन

हस्त रेखा विज्ञान एक अद्भुत विज्ञान है। हाथ के मध्य में सभी तीर्थ, सागर ग्रह, तिथियां, दिशाएं, नक्षत्र, योग आदि के दर्शन किए जाते हैं। इसी हाथ में सभी देवताओं का वास माना गया है। इसी कारण से प्रतिदिन प्रातः काल हस्त दर्शन की बात कही गई है। यहां हाथों में योग व नक्षत्रों के स्थानों की व्याख्या प्रस्तुत है। हथेली के मध्य में प्रारंभ में अश्विनी नक्षत्र को स्थापित करते हैं। उंगलियों के मूल में भरणी, कृत्तिका व रोहिणी, अंगूठे के नीचे मृगशिरा, आद्र्रा व पुनर्वसु, मणिबंध की ओर पुष्य, आश्लेषा व मघा और करभ में पूर्वा फा., उत्तरा फाव हस्त नक्षत्र को स्थापित करते हैं। इस प्रकार सत्ताईस नक्षत्रों में से तेरह नक्षत्र हथेली में स्थापित रहते हैं। शेष नक्षत्रों का स्थान कनिष्ठा से प्रारंभ माना जाता है। कनिष्ठा में मूल से चित्रा, स्वाति व विशाखा, अनामिका में अनुराधा, ज्येष्ठा व मूल मध्यमा में, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़ व अभिजित तर्जनी में श्रवण, धनिष्ठा व शतभिषा और अंगूठे में पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद व रेवती नक्षत्र स्थापित रहते हैं। हथेली में उंगलियों की ओर पूर्व दिशा, अंगूठे की ओर दक्षिण, मणिबंध की ओर पश्चिम, ककरभ की ओर उत्तर दिशा स्थापित मानी जाती है। नक्षत्र द्वारा फल देखने की विधि: आप जिस जातक का हाथ जिस नक्षत्र में देख रहे हों, उस नक्षत्र को हथेली के मध्य में स्थापित करके शेष नक्षत्रों को इसी च्रक्र विधि से स्थापित कर लें। इस प्रकार उपर्युक्त विधि के अनुसार उस दिन के नक्षत्र से आगे के तेरह नक्षत्र हथेली में स्थापित हो जाएंगे। इसी तरह शेष पंद्रह नक्षत्र भी उंगलियों में स्थापित करके नक्षत्र चक्र बना लें। अब जातक का नक्षत्र जिस स्थान पर आए, उस पर्वत या रेखा के अनुसार फल कहने का नियम है। सत्ताईस नक्षत्रों की भांति सत्ताईस योगों की भी स्थापना हथेली में करके शुभाशुभ विचार करें। हथेली के मध्य में विषकुंभ, पूर्व दिशा में प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, दक्षिण में शोभन, अतिगंड, सुलभा, पश्चिम में धृति, शूल, गंड उत्तर में वृद्धि ध्रुव, व्याघात् इस प्रकार हथेली में तेरह योगों की गणना हो जाती है। शेष चैदह नक्षत्रों को उंगलियों में स्थान दिया जाता है। कनिष्ठा के पहले पर्व में हर्षण, द्वितीय में वज्र, तृतीय में सिद्धि, अनामिका में क्रमशः व्यतिपात, वरीयान, परिघ, मध्यमा में शिव, सिद्धि, साध्य, तर्जनी में शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, अंगूठे में ऐन्द्र और वैधृति योग के दर्शन किए जाते हैं। योगों को देखने की विधि: प्रश्नकर्ता का जिस योग में जन्म हो उस योग को हाथ में मघा में स्थापित करके शेष नक्षत्रों में ठीक उसी क्रम में स्थापित करके फल कहना चाहिए। यदि किसी जातक को योग स्पष्ट न हो, तो जिस दिन हाथ का परीक्षण किया जा रहा हो उस दिन का योग लेना चाहिए। जो योग अशुभ स्थान (उंगलियों का अग्र भाग, हथेली में दक्षिण दिशा के योग, पश्चिम दिशा के योग तथा मध्य का योग) में पड़े वह समय शुभ कार्य हेतु वर्जित माना गया है। अन्य स्थानों में पड़े योग शुभ माने गए हैं। ये योग ‘‘यथा नाम तथा गुण’’ के अनुसार भी फल देते हैं। जैसे विष्कुंभ-जहर का घड़ा, प्रीति-प्रेम आयुष्मान - लंबी आयु, सौभाग्य अच्छा भाग्य, हर्षण- प्रसन्नता देने वाला, वज्र- बिजली सिद्धि सफल होना, व्यतिपात- उत्पन्न गिरा हुआ। इसी प्रकार अन्य योगों का फल देखना चाहिए। इस प्रकार जिनका आशय शुभ हो और शुभ स्थान में हो, तो फल शुभ कहना चाहिए। जैसे पूर्व दिशा में आयुष्मान योग अति शुभ है। पूर्व दिशा शुभ है और योग भी शुभ है।

Sunday 10 July 2016

Decisive factors in marriage

As delayed marriages are one of the biggest problems an astrologer has to confront, this topic is a small attempt to answer this question based on my humble experience over 15 years. In astrology no event can occur unless and until three conditions given below are fulfilled. Before making any predictions first ensure: • Whether the marriage is promised to the native? In the absence of combinations of planets essential for marriage, any forecast is going to meet a failure. • If planetary combinations are available, whether the period capable of conferring marriage is operating at an appropriate age? In case the period is going to operate quite late in life, the yogas present are almost negated. • Whether the current transit of the planet is also supporting the period operating? Marriage Promised or Not? This is the question, answer to which is the most tedious. The standard text books are replete with numerous combinations for denial of marriage. It is neither possible nor practical to memorize all these combinations. Moreover, most of the combinations appear to be self-contradicting when applied to practical horoscopes. However, the following factors can be successfully applied to judge the denial of marriage. Before this consider the following planets as the most dangerous planets for marriage or married life in order of decreasing evil. These are Jupiter, Sun, Saturn, Rahu and lord of the 12th house. Sun, Saturn, Rahu and the 12th lord are the planets capable of causing separations and their combined influence on any house (indisputably) denies the results of that particular house. Jupiter in this category is a recent discovery because Jupiter is a natural benefic and its aspect on any house is supposed to increase the fruits of that house. Perhaps being a spiritual planet and planet relating to saintly life, it is not good for marriages at prime age (20 -27 years). For seeing the denial of marriage please check, in addition to other tools at your hand, the following factors: • Both lagan and navmansa chart- navmansa charts particularly for denial of marriages. • Whether in Navmansa chart Jupiter is located or aspecting the 7th house or its lord or its significator Venus (both male and female nativities). • Whether in Navmansa chart Mars or other planets capable of causing separations as stated above also aspect Jupiter, 7th house or its lord singly or jointly. •If 7th lord of navmansa chart is posited in 6th or 12th house. • If any debilitated planet is located in 7th house in navmansa? If answer to any of the 3 factors is yes, then it is going to be a case of denial of marriage. Otherwise marriage may not be denied, though it may be delayed. Marriage Delayed In addition to many other factors one factor surely plays a big role in delaying the marriage. Jupiter located in 7th house or its aspect on 7th house definitely delays the marriage beyond 28 years if Jupiter is associated or aspected by either Mars or Rahu or Saturn. The more the influence, the more the delay. Their influence on 7th house, 7th lord or the significator of 7th house can delay the marriage beyond 36 years also. Any attempt to strengthen Jupiter by topaz etc may only multiply the problem. Marriage When ? Most prominent factor to decide this question is, of course, dasa operation of the planets capable of conferring marriage. If between the age of 18 to 28 any of the following sub dasa is operating (in order of decreasing significance) then marriage can be safely predicted during that period: 1. Of 7th lord, 2. Lagan lord, 3. Planet occupying the 1st house, 4. Planet occupying the lagan, 5. Dasa of significator of marriage. In addition to this, it is part of my observations that in female nativities, sub dasa of Rahu is also responsible for marriages. Disharmonious Marriages The ultimate purpose of marriage is the comforts derived from it. Following factors play a great role in disharmonious married lives: • Marriage between persons whose lagan lords, not signs, are permanent enemies. •Lord of 7th disposed in 6th or 12th house • Influence of planets capable of causing separations (Sun, Saturn, Rahu and lord of 12th House) on 7th house or it’s lord or on both. • Jupiter influencing the 7th house if married between 18-22 years of age. Harmonious Marriages Jupiter delays the marriages but it does not cause discomforts to married life itself. Influence of benefics including Jupiter on 7th house or its lord promises a good married life. In addition to this, if in two horoscopes one’s lagan is other’s 7th lord then other negative factors in the horoscopes are greatly eliminated. Manglik dosa has no role in preventing the comfortable married life. Manglik dosa can be ignored if other factors are favorable. Role of Compatibility The discussion on the topic will be incomplete without a comment on compatibility. Though proper care should be taken to see gunas but more important thing is the compatibility of horoscopes. In the absence of a strong foundation of horoscopes, compatibility even with 30 gunas or more becomes meaningless. A strong horoscope with 18 or even less gunas will ensure good married life. Out of the 8 types of compatibilities only Gan, Bhakut and Nadi play bigger role. Even out of these Nadi Dosa and Bhakut dosa of 6-8 are almost without any solution. Middle Nadi particularly affects the health of either of the spouse and Bhakut of 6-8 is most damaging even if a single planet capable of causing separations is influencing the 7th house or its lord.

Relationship of various diseases and astrological concepts

As far as astrology is concerned, it will be better to recall the names of Indian sagese specially Mahatma Bhragu Rishi, Bharagu has given us “Bhragu Samhita” an astrological treatise. Through this we are able to decipher the past, present and future incidents of each and every human being on this earth. This is really amazing that thousand of years in advance an Indian Rishi by the study of stars ruling at the time of birth and their constant movements could perfectly predict all the important incidents and aspects of Individuals living on this earth for all times to come. As such when astrology can pointedly discover in advance all the happenings relating to man, then certainly it can give us full information about the birth-span of each individual and the diseases he is going to contact. It can definitely tell as to when, how and which part of his body will be affected by the disease. It will also specifically announce as to how and in what manner astrology is going to remedy the inflections. Sages have provided us all those remedies on the basis of their knowledge, spiritual practices, sadhnas and isht bal etc. Through these, they have composed Mantras which are efficacious in relieving persons from diseases and tribulations. These Mantras comprise of smaller ones as well as bigger ones. The smaller ones work wonder in some particular ailment and the bigger ones are all pervading and are efficacious for all and sundry ailments and for all times. “Maha Mrytyunjay” is the most efficacious and the most powerful of the mantras. As the name itself shows it can conquer death itself. This mantra is dedicated to Lord Shiva who in Indian mythology is the God having all the three powers Creation, Propitiation and Distraction. It has been a practical experience in India that by chanting this Mantra a man who is decried to die instantly can be bestowed with a longer life. Each planet has a different speed of travel round the Sun. The planet which is nearest to Sun, takes the shortest time to complete its round of the Sun. Planets bestow good or bad effects on a person as per his birth chart and rashi. Native’s diseases also appear according to the rashies or planets in each house of the horoscope. The combinations and permutations of the stars and planets with the rashies in the twelve houses of the birth-chart have to tell the story of the native’s health and corresponding disease and disorders in the past, present and future. For instance if Moon is positioned in Lagna Dhanu i.e. Sagittarius or Kumbha i.e. Aquarius it will be responsible for disease relating to water like coryza etc, if he is running under the main or sub period of Moon. If this disease occurs to an individual in an ordinary way, doctors say that he will be cured within three days. Since Moon is responsible for this disease and Moon takes fifty four hours or two & one fourth of a day to take a round of one Rashi, native automatically gets cured and becomes normal within three days. Such type of diseases relate to water and cold and influence of Moon is evident. Since Moon moves speedily, its afflictions too get cured soon. Moon represents coolness. If a native is passing under the influence of the Lord of the sixth house it means he is under the influence of a planet giving rise to disease. If according to the birth chart Saturn or Rahu are related to sixth house, the house of disease or they are related to the Lord of the tenth house, the native is sure to be afflicted by a disease which is to last for a long time. Just as Moon being a fast moving planet, diseases are cured soon, so Saturn & Rahu being slow moving planet diseases caused due to their influence last long. Diseases like Cancer, Asthma, Ulcer, T. B. are related to planet Saturn. If a person is afflicted by such type of diseases its treatment has to be very lengthy and he cannot expect to be rescued soon. He has to endure for a long time due to the bad effects of slow moving planets like Saturn and Rahu. Further it has been seen that during the period of planet Rahu a native contacts mental disease, stress, blood cancer etc. which too are serious long time diseases and they are not cured soon. While a person is being treated for certain diseases by medical persons it is always fruitful to follow the path shown by our Rishies and Sages for speedy and successful recovery. For this our saints have devised different types of Mantras for different ailments and also different sorts of worshiping methods and processes, ways of charity and other systems for appeasing the bad influencing planets responsible for particular diseases. These astrological remedies do promote the effectiveness of the medicines in a big way. This is not to be discarded as superstition. Our maharshies and astrologers have suggested three ways for the treatment of a patient. They are mantra, mani (stones) and medicines. This means that one can be benefited by all these three means. From times immemorial many problems are being solved by using different stones for different set of diseases and problems. The stones and their colours have a great relationship with the planets governing a native through his birth chart & horoscope. Maha Mrytyunjaya Mantra as said above is really a talisman which is remedial in combating untimely death. This is on age old method of cure. It has also come to notice that as soon as the influence of main period or sub period or transit period of a particular planet is over, the patient automatically gets cured without any treatment or medicine. As such there exists a deep relationship between astrology, planets and diseases. Diseases occur according to nature of planets and their transits and periods of their influence.

क्या आपकी शादी बार बार टूट रही है......करायें कुंडली विष्लेषण

शादी टूट रही हो तो करायें कुंडली का विष्लेषण -
विवाह की उम्र में अच्छा जीवनसाथी मिल जायें और विवाह तय हो जाएॅ। इससे ज्यादा खुशी का पल पूरे परिवार के कुछ नहीं होता किंतु कई बार सब कुछ अच्छा चलते चलते अचानक किसी मामूली बात पर भी रिश्ता टूट जाता है। सामाजिक तौर पर कारण चाहे जो भी बताया जाए, किंतु सच है कि ज्योतिषीय दृष्टि से देखा जाए तो किसी जातक की कुंडली में अगर लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम या दसम स्थान पर शनि हो अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा जैसे सौम्य ग्रह शनि से आक्रांत हो अथवा शनि की दशा चल रही हो तो रिश्ता तय होकर टूट सकता है। अतः कुंडली का विवेचन किसी विद्धान ज्योतिष से कराकर पहले ग्रह शांति कराना चाहिए, इसके लिए लड़के का अर्क विवाह के साथ कात्यायनी मंत्र का जाप और लड़की का कुंभ विवाह के साथ मंगल का व्रत करने से विवाह लगने में आने वाली परेशानी से बचा जा सकता है साथ ही योग्य जीवनसाथी का साथ मिलने के योग बनते हैं।

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