प्रश्न: अष्टकवर्ग क्या है? उत्तर: प्रत्येक ग्रह अपना प्रभाव किसी निश्चित स्थान से दूसरे स्थान पर डालता है। इन प्रभावों को अष्टकवर्ग में महत्व देकर फलित करने की एक सरल विधि तैयार की गयी है। अष्टकवर्ग में राहु-केतु को छोड़कर शेष सात ग्रह (सूर्य से शनि) और लग्न सहित आठ को महत्व दिया गया है। इसलिए इस पद्धति का नाम अष्टकवर्ग है। प्रश्न: अष्टकवर्ग में रेखा और बिंदु से क्या अभिप्राय है? उत्तर: अष्टकवर्ग में ग्रह अपना जो शुभ या अशुभ प्रभाव भाव में छोड़ते हैं उसे ही रेखा और बिन्दु से जाना जाता है। रेखा शुभ प्रभाव को दर्शाती हैं और बिन्दु अशुभ प्रभाव को। लेकिन कहीं कहीं पर बिन्दु को शुभ और रेखा को अशुभ माना जाता है। प्रश्न: अष्टकवर्ग फलित करने में कैसे सहायक है, इस पर प्रकाश डालें। उत्तर: अक्सर देखने में आता है कि कुंडली में ग्रह अपने शुभ स्थानों पर हैं, शुभ योगों में है तो भी जातक को उस अनुसार फल प्राप्त नहीं होता। यह क्यों नहीं होता, इसका खुलासा अष्टकवर्ग करता है। अष्टकवर्ग में यदि ग्रह को शुभ अंक अधिक प्राप्त नहीं हैं भले ही वह उच्च का हो, स्वराशि में हो, मूलत्रिकोण पर हो, शुभ योगों में हो, वह ग्रह फल नहीं देगा। छः, सात, आठ अंक यदि ग्रह को भाव में प्राप्त हैं तो वह विशेष शुभ फल देगा। प्रश्न: कितने अंक (बिन्दु या रेखा) शुभ फल देने में सक्षम हैं? उत्तर: यदि ग्रह को चार अंकों से कम अंक भाव में प्राप्त हैं तो ग्रह अपना शुभ प्रभाव नहीं दे पाता। पांच से आठ अंक प्राप्त ग्रह क्रमशः शुभ प्रभाव देने में सक्षम होते हैं। प्रश्न: सर्वाष्टक वर्ग और भिन्नाष्टक वर्ग में क्या अंतर है? उत्तर: सभी नव ग्रहों के शुभ प्राप्त अंकों को जोड़ कर जो वर्ग बनता है उसे सर्वाष्टक वर्ग कहते हैं और भिन्न-भिन्न ग्रह को जो शुभ अंक प्राप्त हैं उन्हें भिन्नाष्टक कहते हैं। प्रश्न: अष्टकवर्ग में किसी भाव में ग्रहों को जो कुल अंक प्राप्त होते हैं उनका अधिक महत्व है या किसी ग्रह को प्राप्त अंकों का अधिक महत्व है? उत्तर: महत्व दोनों का ही है। जब हम किसी भाव के कुल अंकों की बात करते हैं तो उनसे यह मालूम होता है कि उस भाव में सभी ग्रह मिलकर उस भाव का कैसा फल देंगे और जब किसी भाव में किसी विशेष ग्रह के फल को जानना चाहते हैं तो उस ग्रह को प्राप्त अंकों से जानते हैं। यदि किसी भाव में कुल 30 या अधिक अंक प्राप्त हैं तो यह समझना चाहिए कि उस भाव से संबंधित विशेष फल जातक को प्राप्त होंगे और उसी भाव में यदि किसी ग्रह को 5 या उससे अधिक अंक प्राप्त हैं तो यह जानना चाहिए कि उस ग्रह की दशा में उस भाव से संबंधित विशेष फल प्राप्त होंगे। कुल अंक निश्चित करते हैं उस भाव से संबंधित उपलब्धियां और ग्रह के अपने अंक निश्चित करते हैं कि कौन सा ग्रह कितना फल देगा, अर्थात अपनी दशा-अंतर्दशा और गोचर अनुसार फल कैसा देगा। प्रश्न: सभी भावों में अंकों को जोड़ने से जो अंक प्राप्त होते हैं, वे कहीं 337 और कहीं 386 होते हैं, ऐसा क्यों? उत्तर: कुछ विद्वान सात ग्रहों और लग्न के अंकों को जोड़ कर कुल अंकों की गणना करते हैं और कुछ सिर्फ सात ग्रहों को ही लेते हैं। इस प्रकार लग्न और सात ग्रहों को लेते हैं तो अंकों की संख्या 386 आती है, अगर लग्न को छोड़ देते हैं तब संख्या 337 आती है। प्रश्न: कितने अंकों वाला अष्टक वर्ग बनाना चाहिए, अर्थात 337 या 386? उत्तर: जब हम अष्टकवर्ग की बात करते हैं तो सात ग्रह और लग्न की बात होती है, इसलिए लग्न को यदि छोड़ देंगे तो अष्टकवर्ग अधूरा सा लगता है। इसलिए लग्न सहित अंकों को लें तो तर्कसंगत बात लगती है। इसलिए 386 ही लेना चाहिए। प्रश्न: गोचर का अष्टकवर्ग से क्या संबंध है? उत्तर: गोचर का फल अष्टकवर्ग के ही सिद्धांत पर आधारित है। जन्म राशि से ग्रह किस भाव में गोचर कर रहा है उसी अनुसार फल देता है। यदि ग्रह गोचर में शुभ स्थानों पर गोचर कर रहा है और उस स्थान पर ग्रह को उसके शुभ 6 या अधिक अंक प्राप्त हैं तो जातक को उस भाव से संबंधित विशेष शुभ फल प्राप्त होगा। प्रश्न: अष्टकवर्ग के अनुसार प्रत्येक ग्रह को जन्म राशि से कौन-कौन से शुभ स्थान प्राप्त हंै? उत्तर: प्रत्येक ग्रह के जन्म राशि से निम्न शुभ स्थान हंै। सूर्य: 3,6,10,11 चंद्र: 1,3,6,7,10,11 मंगल: 3,6,11 बुध: 2,4,6,8,10,11 गुरु: 2,5,7,9,11 शुक्र: 1,2,3,4,5,8,9,11,12 शनि: 3,6,11 प्रश्न: गोचर में ग्रह जितने समय एक राशि में रहता है, उस पूरी अवधि में शुभ फल देगा या किसी विशेष अवधि में? उत्तर: गोचर में ग्रह पूरे समय एक सा फल नहीं देता। जब ग्रह राशि में गोचर करते समय अपनी कक्षा में रहता है, उस समय विशेष लाभ देता है। प्रश्न: यह कक्षा क्या है? उत्तर: अष्टकवर्ग में हर राशि को बराबर आठ भागों में बांट कर कक्षा बनाई गई है। प्रत्येक कक्षा का स्वामी एक ग्रह होता है। जब ग्रह अपनी कक्षा में गोचर करता है तब शुभ फल देता है। प्रश्न: कौन सी कक्षा का स्वामी कौन है, कैसे जानें? उत्तर: एक राशि के आठ बराबर भाग अर्थात एक भाग 30 45’ का होता है। कक्षा के स्वामी का संबंध ग्रह की पृथ्वी से दूरी से है। जो सब से दूर है उसे प्रथम कक्षा तथा उसी अनुसार गुरु को दूसरी कक्षा दी गई है। एक से आठ कक्षाओं के स्वामी क्रमशः शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुध, चंद्र और लग्न हैं। प्रत्येक राशि में भ्रमण करते समय ग्रह जब अपनी कक्षा से गोचर करेगा, विशेष फल देगा। प्रश्न: जन्म समय ग्रह यदि अपनी कक्षा में हो तो कैसा लाभ देता है? उत्तर: यदि जन्म समय में ग्रह अपनी कक्षा में है तो ग्रह का फल विशेषकर शुभ हो जाता है। प्रश्न: ढइया या साढ़ेसाती का प्रभाव भी क्या अष्टकवर्ग से जाना जा सकता है? उत्तर: साढ़ेसाती में जातक के लिए हर समय एक सा प्रभाव नहीं रहता। यदि शनि कुंडली में शुभकारी हो जाए तो साढ़ेसाती या ढइया का बुरा प्रभाव समाप्त हो जाता है। शनि शुभकारी हो कर अपनी उच्च राशि, स्वग्रही, मूल त्रिकोण में हो और उसे अष्टकवर्ग में शुभ अंक प्राप्त हांे तो जातक को शुभ फल भी देता है। इसके विपरीत सभी फल अशुभ रहते हैं। प्रश्न: आज का गोचर शुभ है या अशुभ, कैसे जानें? उत्तर: जिस जातक की कुंडली देख रहे हैं उसके अष्टकवर्ग पर ध्यान दें। जैसे अगर आज का गुरु का गोचर देखना है। गुरु गोचर में तुला राशि में चल रहा है और जिस जातक के लिए गुरु का गोचर देख रहे हैं उसके गुरु के अंक द्वादश राशियों में मेष से क्रमशः 5,2,5,6,3,5,5,5,5,4,4,7 हैं और जातक की राशि कन्या है। गुरु राशि से द्वितीय स्थान पर गोचर कर रहा है। द्वितीय स्थान पर तुला राशि है। जातक के लिए राशि से गुरु का गोचर शुभ है। जातक की कुंडली के अष्टकवर्ग में तुला राशि में 5 अंक प्राप्त हैं और आज के गुरु के गोचर को तुला में 7 अंक प्राप्त हैं। इसलिए जातक के लिए आज का गुरु का गोचर शुभ है। तीव्रगति ग्रह चंद्र भी आज तुला राशि में है। जातक के लिए चंद्र का द्वितीय गोचर सामान्य है। चंद्र को तुला राशि में आज 5 अंक प्राप्त हैं, इसलिए चंद्र गोचर भी शुभ हुआ। कुल मिला कर देखें तो कन्या राशि वाले इस जातक के लिए गुरु और चंद्र का गोचर शुभ है। अन्य ग्रहों का गोचर कन्या राशि के संदर्भ में शनि 11वें शुभ है, मंगल आठवें अशुभ, बुध पांचवें सामान्य, शुक्र चैथे शुभ है। प्रश्न: अष्टकवर्ग में श्री पद्धति और पराशर पद्धति क्या हैं? उत्तर: दोनों पद्धतियां अष्टकवर्ग में माननीय हैं। श्री पद्धति और पराशर पद्धति में शुक्र और चंद्र के अंकों में कुछ अंतर है। व्यावहारिक तौर पर पराशर पद्धति ही विशेष मानी गई है। पराशर पद्धति से ही फल करना उचित रहेगा। प्रश्न: अष्टकवर्ग चलित कुंडली से बनाना चाहिए या लग्न कुंडली से? उत्तर: आम तौर पर देखा गया है कि लग्न कुंडली से ही अष्टकवर्ग बनाया जाता है। यदि चलित कुंडली का ध्यान रखते हुए अष्टकवर्ग बनाएं तो हम पाएंगे कि हमें और भी सटीक फल प्राप्त होते हैं। चलित के आधार पर अष्टकवर्ग का फल कहना उचित होगा। प्रश्न: क्या घटना के समय निर्धारण के लिए भी अष्टकवर्ग कार्य करता है? उत्तर: अष्टकवर्ग में शोधन कर शोध्य पिंड से घटना के समय का निर्धारण किया जा सकता है। मान लें जातक के विवाह के लिए समय निकालना चाहते हैं। विवाह का कारक ग्रह शुक्र है। शुक्र के शोध्य-पिंड लें और शुक्र से सप्तम भाव में शुक्र को प्राप्त अंक लें। शोध्य पिंड को शुक्र के अंकों से गुणा कर 27 से भाग दें | शेष जो रहे उससे अश्विनी नक्षत्र से गणना कर जो नक्षत्र आए, जब गुरु उस नक्षत्र पर भ्रमण करेगा तब जातक का विवाह होगा। इसी प्रकार गुणनफल को 12 का भाग देने पर जो शेष रहे उसे मेष राशि से गणना कर जो राशि आए, जब (गोचर का) गुरु उस राशि में भ्रमण करेगा, तब विवाह होगा। इसी प्रकार शोध्य पिंड से विभिन्न घटनाओं के समय का निर्धारण कर सकते हैं। प्रश्न: क्या फल कथन अष्टक वर्ग शोधन के उपरांत करना चाहिए? उत्तर: गोचर फल या भावों के फल को जानने के लिए अष्टकवर्ग शोधन से पूर्व देखना चाहिए। घटना का समय निर्धारण करने के लिए शोधन कर शोध्य पिंड से गणना कर देखना चाहिए। प्रश्न: क्या दशा के फल की शुभता-अशुभता जानने में भी अष्टक वर्ग सहायक है? उत्तर: दशा के फल की शुभता भी अष्टकवर्ग से जानी जा सकती है। जिन भावों में दशानाथ को अधिक अंक प्राप्त हैं, उन भावों से जातक को शुभ फल प्राप्त होंगे और यदि ग्रह का गोचर भ्रमण भी शुभ हो तो उस समय जातक को विशेष फल प्राप्त होंगे। इसी तरह दशा, अंतर्दशा नाथ आदि यदि सभी ग्रहों को शुभ अंक जिस-जिस भाव में अधिक हैं, सभी का फल शुभ होगा। प्रश्न: किस भाव में अधिक और किस भाव में कम अंक शुभ होते हैं? उत्तर: षष्ठ, अष्टम और द्वादश भाव में अंक कम होने चाहिए। अन्य भावों में अंक अधिक होना शुभ है। सप्तम भाव में भी बहुत अधिक अंक शुभ नहीं माने जाते। प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम, एकादश भावों में जितने अधिक अंक हांे, उतना शुभ होता है। प्रश्न: क्या जातक की आयु का भी निर्णय अष्टकवर्ग से किया जा सकता है? उत्तर: अष्टकवर्ग का शोधन कर शोध्य पिंड से जातक की आयु का निर्णय किया जाता है। सभी ग्रहों के शोध्य पिंडों (सूर्य से शनि) को लग्न से अष्टम भाव में जो अंक प्राप्त हैं, उनसे गुणा कर गुणनफल को 27 का भाग देने से जो भागफल आए, वह ग्रह की आयु होती है। उसी तरह सभी ग्रहों की आयु जोड़ देने पर 324 का गुणा कर 365 का भाग देने से जो आए, वह जातक की आयु होती है। प्रश्न: क्या अष्टकवर्ग को देखकर यह कहा जा सकता है कि जातक का सामाजिक जीवन कैसा होगा? उत्तर: शुभ भावों में अधिक अंक हैं तो कहा जा सकता है कि जातक का सामाजिक जीवन सामान्य से अच्छा है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जातक के पास धन तो बहुत है पर कोई निजी मकान इत्यादि नहीं होता या किसी चीज का अभाव होता है। इसके लिए यदि धन भाव, एकादश भाव और त्रिकोण भावों में अंक अच्छे हंै और चतुर्थ में कम तो ऐसा देखने में आया है कि धन होते हुए भी जातक अपना जीवन किराए के मकान में व्यतीत करता है या अपना मकान होते हुए भी अपने मकान में नहीं रह पाता। केवल अष्टकवर्ग को देखकर इतनी भविष्यवाणी की जा सकती है।
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