Tuesday 12 July 2016

सामाजिक जीवन में शिक्षा और ज्योतिष

मनुष्य का जन्म भले ही मनुष्य के रूप में होता है लेकिन मनुष्य बनने और बने रहने के लिए उसे आजीवन और अनवरत संघर्ष करना पड़ता है। तात्पर्य यह कि मनुष्यता की जिस अर्थ में चर्चा होती है उस अर्थ में मनुष्यता नित्य अर्जनशील गुण और चरित्र है। मनुष्य के लिए सबसे कठिन काम होता है अमानुषिक परिस्थिति में भी अपनी मनुष्यता को बरकरार रखना। इस कठिन काम में दक्षता हासिल करने के लिए बहुत सारे उपाय काम में लाये जाते हैं। उन उपायों में से ही एक उपाय है शिक्षा। सामान्य बात-चीत में लोग एक दूसरे से शिक्षित और अशिक्षित के व्यवहार में अंतर की अपेक्षा व्यक्त करते हैं। शिक्षा ही व्यक्ति को सामाजिक व्यवहार करना सिखाती है और ज्योतिष में तीसरे तथा पंचम स्थान के स्वामी की स्थिति व्यक्ति में शिक्षा के स्तर को दर्शाती है। अतः यदि किसी को सामाजिक जीवन में संस्कारशील होना हो तो उसे अपनी कुंडली में तीसरे और पंचम स्थान के ग्रहों को मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए।

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