शास्त्रों में सेना के व्यवसाय का संबंध क्षात्र धर्म से है। इस धर्म को भगवद्गीता में इस प्रकार परिभाषित किया गया है- शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्षयं युद्देचाप्यपलायनम् । दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्।। यह सभी गुण परंपरागत रूप से मंगल ग्रह से जुड़े होते हैं। मंगल शक्ति, पराक्रम, साहस व शौर्य का प्रतीक है। सेना विभाग में उत्कृष्टता सिद्ध करने के लिए साहस सबसे बड़ी सम्पदा है। मंगल प्रधान व्यक्ति अपनी प्रतिभा को प्रत्येक ऐसी जगह पर आसानी से सिद्ध कर लेता है जहां वीरता ही श्रेष्ठता का मापदण्ड हो। ज्योतिष में गुरु, शुक्र को ब्राह्मण, मंगल, सूर्य को क्षत्रिय, चंद्र, बुध को वैश्य और शनि को शूद्र माना गया है। सेनानायक बनने के लिए क्षत्रिय बल (पराक्रम, शक्ति, शौर्य व बाहु बल) के कारक मंगल का बल सर्वाधिक महत्वपूर्ण व आवश्यक है। इसलिए सेना विभाग में सफलता के लिए जन्मकुंडली में मंगल के बल की नापतौल करनी होगी। यदि मंगल मेष, सिंह, वृश्चिक या मकर राशि में स्थित हो तो बली समझा जाता है। मेष राशि का मंगल चमकदार व सुंदर व्यक्तित्व का धनी तो बनाता ही है साथ ही जातक को हमेशा ही ऊर्जावान, सक्रिय, कर्मशील, निर्भीक, खतरा उठाने की क्षमता से युक्त व गर्मजोशी वाला बनाए रखता है। ऐसे मंगल जातक को ऐसे कार्य करने की प्रेरणा देता है जिनके बारे में अन्य लोग सोच भी नहीं सकते। ऐसे जातक मौलिक, साधन सम्पन्न, चतुर, यांत्रिक कार्य करने की योग्यता वाले व अधिक साहसी होते हैं। ऐसे जातकों में अत्यधिक उत्साह होता है और उन्हें खेलों तथा मांसपेशियों के व्यायाम में विशेष आनन्द आता है। सिंह राशि का मंगल जातक को राजसी प्रवृति व साहस से भर देता है। ऐसा जातक स्वाभाविक रूप से नेतृत्व शक्ति सम्पन्न व विपरीत परिस्थितियों से निबटने की क्षमताओं से युक्त होते हैं। ऐसे जातक निर्भीक, मेहनती व मान-सम्मान के प्रति सजग तथा जिम्मेदारियों को समझने व निभाने वाले होते हैं। ऐसा मंगल जातक को शारीरिक ऊर्जा व शक्ति सम्पन्न बनाता है। वृश्चिक राशि का मंगल जातक को जासूसी स्वभाव वाला बनाता है। मकर राशि के मंगल से जातक में जबर्दस्त आत्मबल तथा किसी भी परिस्थिति से लड़ने की क्षमता व स्वयं को परिस्थितिजन्य हालात में ढालने की योग्यता देता है। इस प्रकार की योग्यताएं सैनिक बनने के लिए नितान्त आवश्यक होती हैं। यदि मंगल कुंडली के प्रथम, तृतीय, षष्ठ या दशम् भाव में उपरोक्त राशियों में बैठकर संबंध बनाए तो सेना विभाग में अवश्य सफलता देगा। कुंडली में लग्न से शारीरिक शक्ति, तीसरे भाव से पराक्रम व दशम भाव को राजकृपा का कारक भाव माना जाता है। इसलिए इस प्रकार के करियर के लिए लग्न, तृतीय व दशम् भाव बली होना आवश्यक है। जहां तीसरे भाव से लड़ने-भिड़ने की शक्ति व तुरंत निर्णय लेने की शक्ति का विचार किया जाता है वहीं छठे भाव से तुरंत निर्णय लेकर शत्रु पर टूट पड़ने की क्षमता व विजयी होने के सामथ्र्य के बारे में विचार किया जाता है। बुध बौद्धिक क्षमता, गुरु ज्ञान व प्रशासनिक योग्यता तथा सूर्य मान-सम्मान व राजकृपा का कारक है तो इन ग्रहों के उत्तम योग बली मंगल वाले जातक को साधारण सैनिक की अपेक्षा एक सफल सैनिक अधिकारी बना देंगे। यदि मंगल व शनि का दशम् भाव/दशमेश से संबंध हो तो जातक सेना विभाग में नौकरी करता है। बली गुरु और मंगल का योग पुलिस विभाग में अधिकारी बनने के लिए उत्तम माना गया है। बली बुध, गुरु और मंगल के प्रभाव से आई.ए.एस. अधिकारी बनने का बड़ा योग बनेगा। सूर्य राजकृपा का कारक है इसलिए यदि उपरोक्त योगों का दशमस्थ सूर्य से श्रेष्ठ संबंध बने तो जातक उच्च सरकारी पदों पर शीघ्रता से उन्नति व प्रोमोशन आदि प्राप्त करता है। यदि अष्टमस्थ मंगल बली हो तो जासूसी योग्यता होने से जटिल मामलों को सुलझाने में सफलता मिलती है। इसलिए जातक को सीक्रेट सर्विस, सी.बी.आई. या आमी के ऐसे विभाग में सफलता प्राप्त करते हुए देखा गया है जहां इस प्रकार की योग्यता की आवश्यकता होती है। सूर्य, मंगल व शनि के संबंध को भी सूक्ष्मता से समझा जाना चाहिए क्योंकि इन ग्रहों पर पाप ग्रहों का प्रभाव रहने या इनके शत्रुराशिगत रहने से जातक अपने पराक्रम व शक्ति को सरकार के विरुद्ध प्रयोग करता है। मंगल व शनि के अतिरिक्त राहु-केतु का महत्त्व भी कम नहीं है। राहु शनिवत् व केतु मंगलवत् होता है। इसलिए उपरोक्त योगायोग में इनका विचार करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। परंतु राहु-केतु छाया ग्रह हैं इसलिए ये गुप्त प्रकार के व्यवसायों में सफलता के कारक माने गये हैं जैसे अंडरकवर एजेंट (खुफिया एजेंट), जासूस, अंडरहैन्ड डीलिंग्स, सीक्रेट आॅपरेशन या गोरिल्ला युद्ध आदि। राहु, केतु नीच व पीड़ित आदि अवस्था में नहीं होने चाहिए अन्यथा जातक भय व भ्रम का शिकार होगा व इस प्रकार के कार्य का कुशलतापूर्वक संपादन नहीं कर सकेगा जहां आत्मविश्वास व साहस की अधिक आवश्यकता होती है।
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