Thursday 18 August 2016

कुंडली के फलादेश में कारक ग्रहों का महत्व

जन्म कुण्डली के बारह भावों से भिन्न-भिन्न बातों को देखा जाता है। ज्योतिष का मूल नियम यह है कि भाव की शुभाशुभता का विचार भाव और भावेश की बलवत्ता और उस पर पड़ने वाली अन्य ग्रहों की युति एवं दृष्टि द्वारा निर्णित होता है साथ ही नित्य कारक ग्रहों से भी भाव की शुभाशुभता का विचार करते हैं। इस प्रकार भाव, भावेश और कारक इन तीनों के संयुक्त प्रभाव के फलस्वरूप भाव फल का निश्चय किया जाता है। यहां हम कारक और उनके महत्व की चर्चा करेंगे। कारक दो प्रकार के होते हैं- स्थिर कारक और चर कारक। स्थिर कारक का अर्थ यह है कि किसी भी लग्न की कुण्डली हो और कोई भी राशि जातक की हो स्थिर कारक में कोई अन्तर नहीं आता है अर्थात् स्थिर कारक ग्रह अंशादि सापेक्ष नहीं है। पितृ कारक ग्रह वह है जो सूर्य और शुक्र में बली हो अर्थात् सूर्य और शुक्र की स्थिति जातक की कुण्डली में क्या है इस पर विचारोपरान्त दोनों में जो बली सिद्ध होगा वही ग्रह पितृकारक माने जायेंगे। मातृकारक ग्रह वह है जो चन्द्रमा और शुक्र में बलवान सिद्ध होता है। इसी प्रकार मंगल ग्रह से बहन, साला, छोटे भाई का विचार किया जाता है। बुध ग्रह से चाची, गुरु से पितामह का, शुक्र से स्वामी का और शनि से पुत्र, पिता, सास-ससुर, मातामह, मातामही आदि तत्समान जनों का विचार करना चाहिए। इसके अतिरिक्त बारह भावों के भी कारक कहे गये हैं- लग्न अथवा प्रथम भाव का कारक सूर्य है। द्वितीय भाव का गुरु, तृतीय भाव का मंगल, चतुर्थ भाव का चंद्रमा, पंचम भाव का गुरु, छठे भाव का मंगल, सप्तम भाव का शुक्र, अष्टम भाव का शनि, नवम भाव का गुरु, दशम भाव का बुध, एकादश भाव का गुरु और द्वादश भाव का कारक शनि है इन स्थिर कारकों के बाद चर कारक का प्रसंग आता है। चर कारक ग्रह वह हैं जो जातकों के कुण्डलियों में उनके ग्रहांशों के आधार पर निर्णित होते हैं। चूंकि अलग-अलग कुण्डलियों में ग्रह के अंशादि अलग-अलग होते हैं इसलिए ये कारक भी स्थिर न होकर बदलते रहते हैं। जन्म पत्रिकाओं में जिस ग्रह का अंश सबसे अधिक होता है वह आत्मकारक कहलाते हैं। उससे कम अंशादि वाला ग्रह अमात्य कारक अर्थात् मंत्री, उससे कम अंशादि वाला ग्रह भातृ कारक, उससे कम अंश वाला ग्रह मातृकारक, उससे कम अंश वाला ग्रह पितृकारक, उससे न्यून अंश वाला ग्रह पुत्र कारक, उससे कम अंश वाला ग्रह ज्ञाति कारक और उससे भी कम अंश वाला ग्रह दारा कारक होता है। कुछ विद्वान मातृ कारक और पुत्र कारक ग्रह एक ही मानते हैं। चर कारक निश्चय करने में अंश से लेकर विकला तक विचार करना चाहिए। यदि ग्रह एक ही कारक के प्रतिनिधि माने जाते हैं। इस स्थिति में उससे आगे वाले कारक का लोप हो जाता है। तब उस कारकत्व का निर्णय स्थिर कारक से करने का विधान शास्त्रों ने दिया है। उपरोक्त चर कारक आठ हो गए हैं परन्तु ग्रहों की संख्या रवि से शनि पर्यन्त सात ही है। अतः विद्वान राहु को भी चर कारक निर्णय में स्थान देते हैं। परन्तु राहु के कारक विचार में राहु के अंश को 30 डिग्री में से घटाकर समझना चाहिए क्योंकि राहु सदैव उल्टा चलता है।

क्या अंक ज्योतिष द्वारा नामकरण हो सकता है??????

लड़की का विवाह होने के बाद उसके नाम के आगे का उपनाम (सरनेम) बदल जाता है और उसकी दुनिया व भाग्य भी बदल जाता है। संन्यास के बाद गुरु संन्यास आश्रम में प्रवेश करने वाले का नया नाम रख देते हैं और इस प्रकार उसकी दुनिया ही बदल जाती है। इसी प्रकार फिल्म इंडस्ट्री में बड़े एक्टर नया नाम रखकर अपने फिल्मी करियर का आरंभ करते हैं जिससे उनके गत जीवन का प्रभाव उनके करियर पर न पडे़। बहुत से लेखक भी ऐसा करते हैं। बहुत से लोगों का यह मानना है कि नाम परिवर्तन से भाग्य परिवर्तन हो जाता है। पूर्ण रूप से नाम बदलने से तो जीवन का स्वरूप ही बदल जाता है परंतु नाम में सूक्ष्म परिवर्तन भी भाग्य में बदलाव लाता है। हमारा नाम हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। प्रत्येक व्यक्ति की यह महत्वाकांक्षा होती है कि जीवन में उसका नाम हो जाए। कोई भी व्यक्ति ऐसा नाम नहीं रखना चाहता जो किसी बदनाम या अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति का हो। सामान्यतः वे अपनी मनोवृत्ति के अनुसार किसी महान व्यक्ति के नाम या उसके समानार्थक किसी अन्य संबोधन को चुनते हैं। इसीलिए राम तो बहुतों का नाम होता है परंतु रावण किसी का नहीं होता। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मराशि के नक्षत्रचरणानुसार दिए गए नामाक्षर से ही नामकरण होना चाहिए। बहुत से लोगों का यह मानना है कि हमें अपनी जन्मराश्यानुसार अपना नाम नहीं रखना चाहिए अन्यथा जादू टोना करने वाले लोगों को हमारे ग्रह नक्षत्रों की गति का अनुमान होने से हमें नुकसान हो सकता है। परंतु यथार्थ में यदि हमें अपनी जन्मपत्री के वास्तविक शुभ फल को प्राप्त करना है तो हमें अपने नाम के आदि अक्षर का चयन जन्म राशि नक्षत्र चरणानुसार ही करना चाहिए। यदि हमें नक्षत्रचरणानुसार अक्षर पसंद नहीं आ रहे हैं तो राशि अक्षर ले लेना चाहिए। यदि यह भी पसंद न हो तो हमें मित्र राशि के अक्षरानुसार नाम रखना चाहिए। ज्योतिष में नाम के केवल प्रथम अक्षर को ही महत्व दिया गया है। शायद इसीलिए एकता कपूर के धारावाहिक अधिकतर ‘क’ अक्षर से आरंभ होने वाले नाम के ही होते हैं। अंक शास्त्र में नामांक का विशेष महत्व है। अंक शास्त्र का वैज्ञानिक आधार जन्म दिनांक के पीछे काम करने वाला वाइब्रेशन होता है। अंक शास्त्र में मूलांक व भाग्यांक का हमारे व्यक्तित्व पर असर पड़ता है। यदि नाम का भी इन अंकों के साथ रेजोनेन्स होता है तो हमें शुभ फल प्राप्त होते हैं अन्यथा नाम प्रभावहीन हो जाता है। नाम में तीन महत्वपूर्ण अंक होते हैं। पहला नामाक्षर यानि जिस अक्षर से नाम आरंभ हो रहा है उस अक्षर का अंक। इसके अतिरिक्त आपके नाम के योग का अंक अर्थात नामांक। अंत में आपके पूर्ण नाम का योग अर्थात पूर्ण नामांक। नाम का चयन करते हुए नामांक तक पहुुंचने की प्रक्रिया में इस बात का ध्यान रखना परमावश्यक होता है कि आपका नामांक आपका मूलांक या भाग्यांक अथवा उनका मित्रांक हो अन्यथा उसकी वाईब्रेशन आपको अधिक बेहतर परिणाम नहीं दे सकेगी।

शनि की भी पूर्ण भागेदारी है आपके कैरिअर बनाने में...........

शनि को ब्रह्माण्ड का बैलेंस व्हील माना जाता है अर्थात् शनि सृष्टि के संतुलन चक्र का नियामक है। क्योंकि बैलेंस शनि का मुख्य गुण है इसलिए यह बैलेंस की कारक राशि तुला में अतिप्रसन्न अर्थात् उच्चराशिस्थ होते हैं तथा व्यावसायिक जीवन में अधिक संतुलन, सुरक्षा व स्थिरता अर्थात् जाॅब सैक्यूरिटी आदि देने में समर्थ होते हैं। इसे न्याय का कारक इसलिए माना जाता है क्योंकि यह मनुष्य को उसकी गलतियों और पाप कर्मों के लिए दण्डित करके मानवता की रक्षा करता है और सृष्टि में संतुलन स्थापित करने की प्रक्रिया को स्थिरता पूर्वक गति देता रहता है। यदि जातक की जन्मकुंडली में करियर के उच्चतम शिखर पर पहंुचने के सभी शुभ योग विद्यमान हों तो यह सही है कि जातक अपने करियर में ऊंचा उठेगा लेकिन उन्नति प्राप्त होने का उसका मार्ग सरल होगा या कठिनाइयों से भरा हुआ होगा इसका सूक्ष्म विष्लेषण करने हेतु कुंडली में शनि की स्थिति का अध्ययन करना होगा। यदि कुंडली में शनि की स्थिति उत्तम हो, यह 3, 6, 10 या 11वें भाव में स्थित हो, नीचराषिस्थ व पीड़ित न हो तो आसानी से सफलता मिलेगी। नीचराषिस्थ होने की स्थिति में पूर्ण नीचभंग हो रहा हो तो भी सफलता मिल सकती है। परंतु यदि शनि का नीचभंग नहीं हुआ या शनि शत्रुराषिस्थ व पीड़ित होकर अषुभ भाव में स्थित हुआ तो जातक की सफलता पर प्रष्न चिह्न लग जाएगा तथा विषेष योग्यता संपन्न होने के बावजूद भी उसे जीवन में कठिनाइयों व संघर्ष से जूझना पड़ेगा तथा वह साधारण जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाएगा। शनि हमें यथार्थवादी बनाकर हमारी वास्तविक शक्तियों व योग्यताओं से अवगत करवाता है तथा हमें एकान्तप्रिय होकर निरंतर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर करवाता है अर्थात् हमें थ्वबनेमक रखता है। कालपुरुष के अनुसार शनि को व्यवसाय के कारक दशम भाव का स्वामी माना जाता है। हमारे जीवन में स्थिरता व संतुलन का विचार दशम भाव से भी किया जाता है क्योंकि दशम भाव व्यवसाय का घर होता है और जितना हम व्यावसायिक स्तर पर सफल होते हैं उतनी ही श्रेष्ठ सफलता हमें जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी प्राप्त होती है। निष्कर्षतः हम कह सकते हैं संतुलन अर्थात् बैलेंस के कारक शनि की राशि का व्यवसाय के भाव में होना उचित ही है। ग्रहों में शनि को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि यह ग्रह बलवान होकर शुभ भाव में स्थित हो तो सफलता जातक के कदम चूमती है। शनि की विशेष उत्तम स्थिति से जातक को बहुत से नौकर-चाकर, उच्च पद्वी, सत्ता व धन सम्पदा आदि सभी कुछ प्राप्त हो जाता है। शनि को सत्ता का कारक इसलिए माना जाता है क्योंकि राजनीति, कूटनीति, मंत्रीपद सभी इसी के इर्द-गिर्द घूमते हैं। यदि कुंडली में शनि लग्न में बैठा हो तो यह कालपुरुष की दशम राशि मकर को दशम दृष्टि से देखकर न केवल व्यावसायिक जीवन में सफलता की गारंटी देता है अपितु अपनी लग्नस्थ स्थिति के कारण जातक को कुशल विचारक व योजनाबद्ध तरीके से कार्य करने की योग्यता भी देता है। बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों, व्यापारियों, वैज्ञानिकों, तांत्रिकों व ज्योतिषियों की कुंडली में शनि की इस प्रकार की स्थिति देखी जा सकती है। यदि लग्नस्थ शनि नीच का भी हो तो भी व्यावसायिक जीवन में स्थिरता व अधिकार प्राप्ति का कारक बनता है क्योंकि वह दशम दृष्टि से अपनी राशि को देखता है और कालपुरुष के अनुसार भी दशम भाव में इसकी मकर राशि ही होती है जिसे व्यवसाय की कारक राशि माना जाता है। लग्नस्थ शनि सभी लग्नों के लिए श्रेष्ठ है यद्यपि चर लग्न के लिए शनि की लग्नस्थ स्थिति अधिक उत्तम मानी जाएगी क्योंकि चर लग्नों के जातकों में शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता होती है जबकि शनि का गुण धैर्य व स्थिरितापूर्वक एकाग्रचित्त होकर कार्य सम्पादन करना है। इसलिए इन दोनों गुणों का सम्मिश्रण जातक को श्रेष्ठस्तरीय सफलता का सूत्र व मार्ग स्पष्ट कर देता है। यदि कर्क लग्न के शनि का विचार करें तो यह सामान्य रूप से प्रबल अकारक होता है लेकिन शुभ भाव लग्न में बैठकर यह न केवल अष्टमेश का शुभ फल देकर दीर्घायु बनाता है अपितु जातक को रिसर्च ओरिएंटड, गुप्त व कूटनीतिक योग्यताओं से सम्पन्न भी कर देता है। कर्क लग्न की अपनी यह विशेषता होती है कि इससे प्रभावित जातकों का शरीर, मन और आत्मा एकात्म समन्वित होते हैं। लग्न से शरीर व आत्मा का विचार तो होता ही है साथ ही मन की राशि कर्क के लग्न में आ जाने से चंद्रमा का प्रभाव भी लग्न मंे आ जाएगा क्योंकि यह लग्नेश होगा इसलिए ऐसी कंुडली में लग्नस्थ शनि शरीर, मन व आत्मा तीनों को प्रभावित करेगा अर्थात् मानव को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले ग्रह शनि का प्रभाव आपके जीवन के हर पक्ष पर सीधे रूप से पड़ेगा और फलस्वरूप आप सर्वाधिक सफलता प्राप्त करने में सक्षम होंगे तथा राजनीति के गलियारों में आपकी कुशलता का विशेष डंका बजेगा। तुला लग्न की पत्री में लग्नस्थ शनि उच्चराशिस्थ होकर चतुर्थेश व पंचमेश होकर आपको शश योग से समन्वित करके परम भाग्यशाली बना देगा तथा जीवन के हर क्षेत्र में आप सफल होंगे। ऐसा भी संभव है कि आप योग, अध्यात्म, वैराग्य, दर्शन, त्याग आदि की कठिनतम रहस्यमयी आध्यात्मिक दुनिया में प्रवेश करके संसार को चमत्कृत कर दें अथवा कोई बड़े वैज्ञानिक बनें। मकर राशि की कुंडली में लग्नेश शनि अपार धन सम्पदा से सम्पन्न बड़ा व्यापारी तो बना ही देगा साथ ही आपकी एकाग्रचित्त होकर निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति को भी सुदृढ़ करेगा। अधिकतर ऐसा देखा गया है कि दशम भावस्थ शनि चाहे किसी भी राशि का हो, जातक के जीवन में व्यावसायिक स्थिरता बनी रहती है। यदि ऐसा शनि नीच का हो तो भी जातक का कार्य चलता रहता है। नीच राशि का शनि अक्सर ज्योतिष कार्यों से या अन्य परामर्श संबंधी कार्यों से लाभान्वित कराता है। शनि का दशम भाव से संबंध होने से लोहे का व्यापार तथा तिल, तेल, खनिज पदार्थ, पेट्रोल, शराब आदि के क्रय-विक्रय से, ठेकेदारी से, दण्डाधिकारी, सरपंच अथवा मंत्री पद आदि से लाभान्वित करवा सकता है। जब शनि गोचर में उच्चराशिस्थ होता है तो समाज, देश व संसार में जगह-जगह पर न्याय व्यवस्था के समुचित रूप से स्थापित किए जाने की आवाजें उठने लगती हैं। ऐसा 30 वर्ष में एक बार होता है और ऐसे में शनि समाज में फैली अव्यवस्थाओं और अन्याय को नियंत्रित करता ही है। मानव के स्वभाव, भाग्य व जीवन चक्र का नियमन चंद्र की गति, नक्षत्र व चंद्र पर अन्य ग्रहों के प्रभाव द्वारा होता है इसलिए जातक की मानसिकता, मनः स्थिति, ग्रह दशा के क्रम व गोचर का विचार भी चंद्रमा को केंद्र में रखकर ही किया जाता है। कुंडली में सत्ता की प्राप्ति के प्रबल कारक शनि का गोचर में चंद्रमा के निकट आना जीवन में जिम्मेदारियों के बढ़ने तथा सत्ता प्राप्ति का सबब बनते देखा गया है। इसे साढ़ेसाती भी कहते हैं। कुंडली में शनि की खराब स्थिति तथा साढ़ेसाती में अशुभ भाव व राशि में वक्री या अस्त होकर गोचर करना करियर में जबर्दस्त नुकसान देता है, नौकरी छूट जाती है, राजनीति में हार तथा व्यापार में हानि उठानी पड़ती है। वहीं कुंडली में शनि की शुभ स्थिति हो तथा अच्छे राजयोग बन रहे हों तो ऐसे में साढ़ेसाती के समय शनि का शुभ भाव व राशि में गोचर करियर में श्रेष्ठतम सफलता प्रदान करता है। जितनी श्रेष्ठ कुंडली होगी उतनी ही ऊंची सफलता सुनिश्चित हो जाएगी। श्रेष्ठतम कुंडली में शुभ साढ़ेसाती सत्ता का सुख देती है। चाहे ग्रह योग व साढ़ेसाती का सूक्ष्म निरीक्षण कितना ही शुभ फलदायी प्रतीत होता हो परंतु जातक को साढ़ेसाती के समय व्यापार में जोखिम नहीं उठाना चाहिए। शनि की साढ़ेसाती आपको अपने व्यवसाय के बारे में सूक्ष्म रूप से यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करती है साथ ही आपको जोखिम उठाने के लिए मना करती है। आपके लिए ऐसी कठिनाइयां भी उत्पन्न करती है जिससे आप अपनी गलतियों से सीखें। यह तकलीफें देकर आपको न केवल एक अच्छा इंसान बना देती है अपितु करियर को भी समुचित दिशा प्रदान करती है। जब कुंडली में शनि की स्थिति श्रेष्ठ हो, धन व लाभ भाव के स्वामी विशेष बली हों तथा गुरु व बुध भी उत्तम स्थिति में हों और गोचरस्थ शनि चंद्रमा से तृतीय, षष्ठ व एकादश भावों में शुभ राशि व शुभ ग्रहों के ऊपर से गोचर कर रहा हो तो वह समय व्यापारिक क्षेत्र में उन्नति के लिए विशेष श्रेष्ठ होता है। इस समय यदि शुभ भावों में स्थित ग्रह की दशा भी चल रही हो तो जोखिम भी उठाए जा सकते हैं क्योंकि सफलता तय है। जिस समय दशम भाव, दशमेश व दशम के कारक पर शनि व गुरु दोनों का गोचरीय प्रभाव आ रहा हो और यह गोचर चंद्रमा से शुभ हो व शुभ राशि में भी हो तो करियर में उन्नति निश्चित रूप से होती है। यदि शनि मेष या वृश्चिक राशि में हो या मंगल से दृष्ट हो तो जातक मशीनरी, फैक्ट्री, धातु, इंजीनियरिंग, इंटीरियर या बिजली संबंधी कार्यों, केंद्रीय सरकार, कृषि विभाग, खान, खनिज या वास्तुकला विभाग में कार्य करता है। यदि इस ग्रह योग पर गुरु व शुक्र का भी प्रभाव हो तो ऐसा जातक न केवल धन लाभ अर्जित करता है अपितु उसे भूमि व संपत्ति का लाभ भी प्राप्त होता है। यदि शनि वृष या तुला राशि में हो अथवा इस पर शुक्र की दृष्टि हो तो कला, प्रबंधन, कम्प्यूटर के व्यवसाय से लाभ उठाता है। यदि गुरु व बुध का शुभ प्रभाव भी इस ग्रह योग पर पड़ता हो तो कानूनविद्, वकील, न्यायाधीश आदि के लिए विशेष श्रेष्ठ होता है। शनि और शुक्र मित्र हैं इसलिए शनि पर शुक्र का यह प्रभाव सौभाग्यवर्धक माना जाता है। शनि से गुरु, शुक्र व बुध की शुभ स्थिति के फलस्वरूप जीवन में आय लाभ नियमित रूप से होता रहता है। ऐसे जातक अपने व्यवसाय में विशेष सुखी होते हैं। उनके पास धन, वाहन और भवन सभी मौजूद रहते हैं। शनि मिथुन या कन्या में हो अथवा बुध से दृष्ट हो तो ऐसे जातक एकाउंटिंग, काॅस्टिंग, अभिनय, बुद्धिजीवी वाले कार्यों, व्यापार, विपत्तिय सौदों, विज्ञान व वाकपटुता आदि के अतिरिक्त लेखन कला व कानून संबंधी कार्यों से धन लाभ प्राप्त करते हैं। यदि गुरु व शुक्र का भी प्रभाव रहे तो धन कमाना सरल होने लगता है। ऐसे जातक को मित्रों से भी सहयोग मिलता है। शनि कर्क राशि में हो या चंद्रमा से दृष्ट हो तो ऐसा व्यक्ति कला, ज्योतिष, राजनीति, धर्म, यात्रा, पेय पदार्थ, साहित्य, जल, मदिरा आदि के कार्यों से लाभ उठाते हैं। ऐसे लेगों के करियर में बार-बार परिवर्तन होते हैं। करियर में यात्राएं भी खूब होती हैं लेकिन यह आवश्यक नहीं कि ऐसे लोग कठिन परिश्रम वाले कार्यों में संलग्न होना चाहें। ऐसे लोग अधिकतर शांत व नरम स्वभाव के होते हैं। शनि सिंह राशि में हो अथवा सूर्य से दृष्ट हो तो ऐसे जातक को सरकारी नौकरी या सत्ताधारी लेागों से लाभ मिलता है। इसका यह भी संकेत निकाल सकते हैं कि पिता पुत्र का व्यापार या साझेदारी आदि में संबंध है। इसके कारण सरकारी नौकरी व राजनीति से लाभ मिलता है। शनि सूर्य की शत्रुता के चलते कुछ संघर्ष के पश्चात् सफलता मिलती है। इसलिए यदि गुरु, शुक्र व बुध आदि ग्रहों का शनि पर प्रभाव न हो तो व्यावसायिक जीवन में संघर्ष का सामना करना पड़ता है। लेकिन यदि गुरु, शुक्र, बुध व बलवान चंद्रमा का प्रभाव आ जाए तो जातक को विशेष प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है। यदि शनि धनु या मीन राशि म हो या गुरु से दृष्ट हो तो जातक को कानून, वन विभाग, लकड़ी या धार्मिक संस्थाओं आदि में विशेष सफलता मिलती है। यह ग्रह योग जातक को मनोविज्ञान, गुप्त ज्ञान (पराविद्या), प्रशासनिक कार्य, प्रबंधन कार्य, शिक्षक, अन्वेषक, वैज्ञानिक, ज्योतिषी, मार्गदर्शक, वकील, इतिहासकार, चिकित्सक, धर्मोपदेशक आदि के रूप में प्रतिष्ठित कराता है। ऐसे जातक में वाद-विवाद करने का विशेष चातुर्य होता है व व्यक्तित्व विशेष आकर्षक होता है। इनके बहुत से मित्र होते हैं तथा व्यावसायिक जीवन में निश्चित रूप से प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। ऐसा ग्रह योग स्वतंत्र व्यवसाय या रोजगार की प्राप्ति करवाता है। शनि मकर या कुंभ राशि में हो तो जातक को सेवा, यात्रा, जन आंदोलन, विक्रय कार्य अथवा लायजनिंग संबंधी कार्यों से लाभ होता है। शनि विदेशी भाषा का कारक है इसलिए विद्या व भाषा पर अधिकार देने वाले ग्रहों जैसे शुक्र, गुरु, बुध व केतु से इसका शुभ संबंध और स्थिति जातक को अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषाओं का विद्वान बनाती है। शनि के ऊपर, गुरु, बुध, केतु इन सभी का प्रभाव पड़े तो मशहूर वकील बने। शनि पर केवल राहु का प्रभाव हो तो जातक छोटी नौकरी से गुजर बसर करता है परंतु यदि राहु के साथ-साथ गुरु, शुक्र का भी प्रभाव हो तो प्रारंभ में नौकरी करने के पश्चात् जातक धीरे-धीरे अपने आप को स्वतंत्र व्यवसाय में भी स्थापित कर लेता है।

शुभाशुभ सपनों का ज्योतिष्य फल

शुभाशुभ स्वप्नों के पुराणोक्त फल सुरेश चंद्र श्रीवास्तव जागृतावस्था में देखे, सुने एवं अनुभूत प्रसंगों की पुनरावृत्ति, सुषुप्तावस्था में मनुष्य को किसी न किसी रूप में एवं कभी-कभी बिना किसी तारतम्य के, शुभ और अशुभ स्वप्न के रूप में, दिग्दर्शित होती है, जिससे स्वप्न दृष्टा स्वप्न में ही आह्लादित, भयभीत और विस्मित होता है। वैज्ञानिक, या चिकित्सकीय दृष्टि से मानसिक उद्विग्नता, पाचन विकार, थकान, चिंता एवं आह्लाद के आधिक्य पर भी स्वप्न आधारित होते हैं। बहरहाल, शुभ स्वप्नों से शुभ कार्यों के अधिकाधिक प्रयास से कार्यसिद्धि में संलग्न होने का संकेत मिलता है और अशुभ स्वप्नों में आगामी संभावित दुखद स्थिति के प्रति सचेत रहने की नसीहत लेना विद्वानों द्वारा श्रेयष्कर बताया गया है। तदनुसार - लक्षण स्वप्न शुभाशुभ, कह्यो, मत्स्य भगवान। शुभ प्रयासरत, अशुभ से होंहि सचेत सुजान॥ श्री मत्स्य पुराण के 242 वें अध्याय में बताया गया है कि सतयुग में जब भगवान अनंत जगदीश्वर ने मत्स्यावतार लिया था, तो मनु महाराज ने उनसे मनुष्य द्वारा देखे गये शुभाशुभ स्वप्न फल का वृत्तांत बताने का आग्रह किया था। मनु महराज ने, अपनी जिज्ञासा शांत करने हेतु, मत्स्य भगवान से पूछा कि हे भगवान! यात्रा, या अनुष्ठान के पूर्व, या वैसे भी सामान्यतया जो अनेक प्रकार के स्वप्न मनुष्य को समय-समय पर दिखायी देते हैं, उनके शुभाशुभ फल क्या होते हैं, बताने की कृपा करें, यथा- स्वप्नाखयानं कथं देव गमने प्रत्युपस्थिते। दृश्यंते विविधाकाराः कशं तेषां फलं भवेत्॥ मत्स्य भगवान ने स्वप्नों के फलीभूत होने की अवधि के विषय में बताते हुये कहा : कल्कस्नानं तिलैर्होमो ब्राह्मणानां च पूजनम्। स्तुतिश्च वासुदेवस्य तथा तस्यैव पूजनम्॥6॥ नागेंद्रमोक्षश्रवणं ज्ञेयं दुःस्वप्नाशनम्। स्वप्नास्तु प्रथमे यामे संवस्तरविपाकिनः॥7॥ षड्भिर्भासैर्द्वितीये तु त्रिभिर्मासैस्तृतीयके। चतुर्थे मासमात्रेण पश्यतो नात्र संशयः॥8॥ अरुणोदयवेलायां दशाहेन फलं भवेत्। एकस्यां यदि वा रात्रौशुभंवा यदि वाशुभम्॥9। पश्चाद् दृषृस्तु यस्तत्र तस्य पाकं विनिर्दिशेत्। तस्माच्छोभनके स्वप्ने पश्चात् स्वप्नोनशस्यते॥20॥ अर्थात, रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे गये स्वप्न का फल एक संवत्सर में अवश्य मिलता है। दूसरे प्रहर में देखे गये स्वप्न का फल 6 माह में प्राप्त होता है। तीसरे पहर में देखे गये स्वप्न का फल 3 माह में प्राप्त होता है। चौथे पहर में जो स्वप्न दिखायी देता है, उसका फल 1 माह में निश्चित ही प्राप्त होता है। अरुणोदय, अर्थात सूर्योदय की बेला में देखे गये स्वप्न का फल 10 दिन में प्राप्त होता है। यदि एक ही रात में शुभ स्वप्न और दुःस्वप्न दोनों ही देखे जाएं, तो उनमें बाद वाला स्वप्न ही फलदायी माना जाना चाहिए, अर्थात् बाद वाले स्वप्न फल के आधार पर मार्गदर्शन करना चाहिए। क्योंकि बाद वाला स्वप्न फलीभूत होता है, अतः यदि रात्रि में शुभ स्वप्न दिखायी दे, तो उसके बाद सोना नहीं चाहिए। शैलप्रासादनागाश्ववृषभारोहणं हितम्। द्रुमाणां श्वेतपुष्पाणां गमने च तथा द्विज॥2॥ द्रुमतृणारवो नाभौ तथैव बहुबाहुता। तथैव बहुशीर्षत्वं फलितोद्भव एवं च॥22॥ सुशुक्लमाल्यधारित्वं सुशुक्लांबरधारिता। चंद्रार्कताराग्रहणं परिमार्जनमेव च॥23॥ सक्रध्वजालिंग्नं च तदुच्छ्रायक्रिया तथा। भूंयंबुधीनां ग्रसनं शत्रुणां च वधक्रिया॥24॥ अर्थात, शुभ स्वप्नों के फल बताते हुए श्री मत्स्य भगवान ने मनु महाराज को बताया कि पर्वत, राजप्रासाद, हाथी, घोड़ा, बैल आदि पर आरोहण हितकारी होता है तथा जिन वृक्षों के पुष्प श्वेत, या शुभ हों, उनपर चढ़ना शुभकारी है। नाभि में वृक्ष एवं घास-फूस उगना तथा अपने शरीर में बहुत सी भुजाएं देखना, या अनेक शिर, या मस्तक देखना, फलों को दान करते देखना, उद्भिजों के दर्शन, सुंदर, शुभ अर्थात् श्वेत माला धारण करना, श्वेत वस्त्र पहनना, चंद्रमा, सूर्य और ताराओं को हाथ से पकड़ना, या उनके परिमार्जन का स्वप्न दिखायी देना, इंद्र धनुष को हृदय से लगाना, या उसे ऊपर उठाने का स्वप्न दिखायी देना और पृथ्वी, या समुद्र को निगल लेना एवं शत्रुओं का वध करना, ऐसे स्वप्न देखना सर्वथा शुभ होता है। इसके अतिरिक्त भी जो स्वप्न शुभ होते हैं, वे निम्न हैं : जयो विवादे द्यूते व संग्रामे च तथा द्विज। भक्षणं चार्द्रमांसानां मत्स्यानां पायसस्य च॥25॥ दर्शनं रुधिरस्यापि स्नानं वा रुधिरेण च। सुरारुधिरमद्यानां पानं क्षीरस्य चाथ वा॥26॥ अन्त्रैर्वा वेषृनं भूमौ निर्मलं गगनं तथा। मुखेन दोहनं शस्तं महिषीणां तथा गवाम्॥27॥ सिंहीनां हस्तिनीनां च वडवानां तथैव च। प्रसादो देवविप्रेभ्यो गुरुभ्यश्च तथा शुभः॥28॥ मत्स्य भगवान ने, मनु महाराज से उक्त तारतम्य में स्वप्नों के शुभ फलों की चर्चा करते हुए, बताया कि स्वप्न में संग्राम, वाद-विवाद में विजय, जुए के खेल में जीतना, कच्चा मांस खाना, मछली खाना, खून दिखाई देना, या रुधिर से नहाते हुए दिखाई देना, सुरापान, रक्तपान, अथवा दुग्धपान, अपनी आंतों से पृथ्वी को बांधते हुए देखना, निर्मल नभ देखना, भैंस, गाय, सिंहनी, हथिनी, या घोड़ी के थन में मुंह लगा कर दूध पीना, देवता, गुरु और ब्राह्मण को प्रसन्न देखना सभी शुभ फलदायी एवं शुभ सूचक होते हैं। मत्स्य भगवान ने और भी शुभ स्वप्नों की चर्चा करते हुए मनु महाराज को बताया : अंभसा त्वभिषेकस्तु गवां श्रृग्सुतेन वा। चंद्राद् भ्रष्टेना वाराजशशेयोसज्यप्रदो हि सः॥29॥ राज्याभिषेकश्च तथा छेदनं शिरसस्तथा। मरणं चह्निदाहश्च वह्निदाहो गृहादिषु॥30। लब्धिश्च राज्यलिग्न ा ं तंत्रीवाद्याभिवादनम्। तथोदकानां तरणं तथा विषमलड़घनम्॥31॥ हस्तिनीवडवानां च गवां च प्रसवों गृहे। आरोहणमथाश्वानां रोदनं च तथा शुभम्॥32। वरस्रीणां तथा लाभस्तथालिग्नमेव च। निगडैर्बंधनं धन्यं तथा विष्ठानुलेपनम्॥32॥ जीवतां भूमिपालानां सुह्दामपि दर्शनम्। दर्शनं देवतानां च विमलानां तथांभसाम्॥34॥ शुभांयथैतानि नरस्तु हष्ट्वा प्राप्नोत्ययत्वाद् ध्रुवमर्थलाभम्। स्वप्नानि वै धर्मभृतां वरिष्ठ व्याधेर्विमोक्षं च तथातुरोऽपि॥35॥ और भी अधिक शुभ स्वप्नों के फल मनु महाराज को बताते हुए श्री मत्स्य भगवान ने कहा कि राजन ! गौवों के सींग से स्रवित जल, या चंद्रमा से गिरते हुए जल से स्नान का स्वप्न सर्वथा शुभ एवं राज्य की प्राप्ति कराने वाला होता है। राज्यारोहण का स्वप्न, मस्तक कटने का स्वप्न, अपनी मृत्यु, प्रज्ज्वलित अग्नि देखना, घर में लगी आग का स्वप्न देखना, राज्य चिह्नों की प्राप्ति, वीणा वादन, या श्रवण, जल में तैरना, दुरूह स्थानों को पार करना, घर में हस्तिनी, घोड़ी तथा गौ का प्रसव देखना, घोड़े की सवारी करते देखना, स्वयं को रोते देखना आदि स्वप्न शुभ और मंगल शकुन के द्योतक होते हैं। इसके अतिरिक्त सुंदरियों की प्राप्ति तथा उनका आलिंगन, जंजीर में स्वयं को बंधा देखना, शरीर में मल का लेप देखना, जो राजा मौजूद हैं, उन्हें स्वप्न में देखना, मित्रों को स्वप्न में देखना, देवताओं का दर्शन, निर्मल जल देखने के स्वप्न भी सर्वथा शुभकारी होते हैं, जिससे बिना प्रयास के धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा रुग्ण व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है। अशुभ स्वप्नों एवं उनके फलों के विषय में श्री मत्स्य भगवान मनु महाराज को बताते हुए कहते हैं : इदानीं कथयिष्यामि निमित्तं स्वप्नदर्शने। नाभिं विनान्यगात्रेषु तृणवृक्षसमुरवः॥2। चूर्णनं मूध्निं कांस्यानां मुण्डनं नग्नता तथा। मलिनांबरधारित्त्वमभ्यग्ः पटदिग्धता॥3॥ उच्चात् प्रपतनं चैव दोलारोहणमेव च। अर्जनं पटलोहानां हयानामपि मारणम्॥4॥ रक्तपुष्पद्रुमाणां च मंडलस्य तथैव च। वराहर्क्षखरोष्ट्राणां तथा चारोहणक्रिया॥5॥ भक्षणं पक्षिमत्स्यानां तैलस्य कृसरस्य च। नर्तनं हसनं चैव विवाहो गीतमेव च॥6॥ तंत्रीवाद्यविहीनानां वाद्यानामभिवादनम्। स्रोतोऽवगाहगमनं स्नानं गोमयवारिणा॥7॥ पटोदकेन च तथा महीतोयेन चाप्यथ। मातुः प्रवेशा जठरे चितारोहणमेव च॥8॥ शक्रध्वजाभिपतनं पतनं शशिसूर्ययोः। दिव्यांतरिक्षभौमानामुत्पातानां च दर्शनम्॥9॥ अर्थात, मत्स्य भगवान ने विभिन्न स्वप्नों के अशुभ फलों की ओर इंगित करते हुए मनु महाराज से कहा कि हे राजन! स्वप्न में नाभि के अतिरिक्त, शरीर के अन्य अंगों में घास, फूस, पेड़-पौधे उगे हुए देखना, सिर पर कांसे को कुटता देखना, मुंडन देखना, अपने को नग्न देखना, स्वयं को मैले कपड़े पहने हुए देखना, तेल लगाना, कीचड़ में धंसना, या कीचड़ लिपटा देखना, ऊंचे स्थान से गिरना, झूला झूलना, कीचड़ और लोहा आदि एकत्रित करना, घोड़ों को मारना, लाल फूलों के पेड़ पर चढ़ना, या लाल पुष्पों के पेड़ों का मंडल, सूअर, भालू, गधे और ऊंटों की सवारी करना, पक्षियों का भोजन करना, मछली, तेल और खिचड़ी खाना, नृत्य करना, हंसना, विवाह एवं गाना-बजाना देखना, बीणा के अलावा अन्य वाद्यों को बजाना, जल स्रोत में नहाने जाना, गोबर लगा कर जल स्नान, कीचड़युक्त उथले जल में नहाना, माता के उदर में प्रवेश करना, चिता पर चढ़ना, इंद्र पताका का गिरना, चंद्रमा एवं सूर्य को गिरते देखना, अंतरिक्ष में उल्का पिंडों के उत्पात आदि स्वप्न में देखना सर्वथा अशुभ है। देवद्विजातिभूपालगुरूणं क्रोध एवं च। आलिग्नं कुमारीणां पुरुषाणां च मैथुनम्॥10॥ हानिश्चैव स्वगात्राणां विरेकवमनक्रिया। दक्षिणाशाभिगमनंव्याधिनाभिभवस्तथा॥11॥ फलापहानिश्च तथा पुष्पहानिस्तथैव च। गृहाणां चैव पातश्च गृहसम्मार्जनं तथा॥2॥ क्रीड़ा पिशाचक्रव्याद्वानरर्क्षनररैपि। परादभिभवश्चैव तस्मांच व्यसनारवः॥3॥ काषायवस्रधारित्वं तद्वत् स्त्रीक्रीडनं तथा। स्नेहपानवगाहौ च रक्तमाल्यानुलेपनम्॥4॥ एवमादीनि चान्यानि दुःस्वप्नानि विनिर्दिशेत्। एषा। संकथनं धन्यं भूयः प्रस्वापनं तथा॥5॥ अर्थात, श्री मत्स्य भगवान्, स्वप्नों के अशुभ फलों के विषय में मनु महाराज को बताते हुए पुनः कहते हैं कि देवता! राजा और गुरुजनों को क्रोध करते देखना, स्वप्न में कुमारी कन्याओं का आलिंगन करना, पुरुषों का मैथुन करना, अपने शरीर का नाश, कै-दस्त करते स्वयं को देखना, स्वप्न में दक्षिण दिशा की यात्रा करना, अपने को किसी व्याधि से ग्रस्त देखना, फलों और पुष्पों को नष्ट होते देखना, घरों को गिरते देखना, घरों में लिपाई, पुताई, सफाई होते देखना, पिशाच, मांसाहारी पशुओं, बानर, भालू एवं मनुष्यों के साथ क्रीड़ा करना, शत्रु से पराजित होना, या शत्रु की ओर से प्रस्तुत किसी विपत्ति से ग्रस्त होना, स्वयं को मलिन वस्त्र स्वयं पहने देखना, या वैसे ही वस्त्र पहने स्त्री के साथ क्रीड़ा करना, तेल पीना, या तेल से स्नान करना, लाल पुष्प, या लाल चंदन धारण करने का स्वप्न देखना आदि सब दुःस्वप्न हैं। ऐसे दुःस्वप्नों को देखने के बाद तुरंत सो जाने से, या अन्य लोगों को ऐसे दुःस्वप्न बता देने से उनका दुष्प्रभाव कम हो जाता है। दुःस्वप्नों के दुष्प्रभाव के शमन का उपाय बताते हुये मत्स्य भगवान मनु महाराज से कहते है : कलकस्नानं तिलैर्होमो ब्रह्मणानां च पूजनम्। स्तुतिश्च वासुदेवस्य तथातस्यैव पूजनम्॥ नागेंद्रमोक्ष श्रवणं ज्ञेयं दुःस्वप्नाशनम्॥ अर्थात, ऐसे दुःस्वप्न देखने पर कल्क स्नान करना चाहिए, तिल की समिधा से हवन कर के ब्राह्मणों का पूजन, सत्कार करना चाहिए। भगवान वासुदेव की स्तुति (पूजन द्वादश अक्षरमंत्र ' ˙ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप) करनी चाहिए और गजेंद्र मोक्ष कथा का पाठ, या श्रवण करना चाहिए। इनसे दुःस्वप्नों के दुष्प्रभाव का शमन होता है।

Wednesday 17 August 2016

हाथों में संजीवनी रेखा....



अक्षया जन्मपत्रियां ब्रह्मणा निर्मिता स्वयम्। ग्रह रेखाप्रदा यास्यां याववज्जीवं व्यवस्थिता।। अर्थात मनुष्य का हाथ ऐसी जन्मपत्री है जो कभी नष्ट नहीं होती। स्वयं ब्रह्मा जी ने इसे बनाया है। नस्ति हस्तात्परं ज्ञानं त्रेलोक्ये सचराचरे। यदब्रह्मा पुस्तकं हस्ते धृत बोधाय जान्मिनाय।। तीनों लोकों में हस्त ज्ञान सबसे बढ़कर है। इसकी रचना स्वयं ब्रह्मा जी ने की है। वास्तव में यह मनुष्य का मार्गदर्शन करती रहेगी। भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अंतर्गत अंग लक्षण विज्ञान का अध्ययन किया जाता है और मनुष्य की शारीरिक संरचना एवं गुण-अवगुण का कथन किया जाता है। सामुद्रिक शास्त्र में भी लक्षण शास्त्र की तरह चलने, उठने-बैठने और अंग पर तिल, मस्सों को देखकर व्यक्ति के विचारों का ज्ञात किया जाता है। मनुष्य के समस्त अंगों की बजाय केवल हाथ से ही गुण, धर्म, स्वभाव और भाग्य को जानने-समझने की तकनीक को अपनाया जा रहा है। इसी तकनीक को हस्तरेखा विज्ञान का नाम दिया। संजीवनी रेखा: जीवन रेखा एक महत्वपूर्ण रेखा है। जीवन रेखा से जीवन प्रवाह देखा जाता है। यह लंबी, तंग व गहरी होनी चाहिए। जीवन रेखा अंगूठे और तर्जनी के बीच से आरंभ होती है और गोलाई लिए हुए शुक्र क्षेत्र को घेरती हुई मणिबंध या उसके समीप तक आती है। इसे गुरुड़ पुराण में कुल रेखा भी कहते हैं। कुल रेखा तु प्रथमा अंगुष्ठादनुवर्तते। भारतीय मत के अनुसार जीवन रेखा को बहुत नामों से जाना जाता है:- 1. पितृ रेखा, 2. गोत्र रेखा, 3. बल रेखा, 4. मूल रेखा, 5. वृक्ष रेखा, 6. धर्म रेखा, 7. धृति रेखा इसी जीवन रेखा को पाश्चात्य मत के अनुसार स्पमि स्पदम अथवा टपजंस स्पदम कहते हैं। प्रत्येक हाथ में इसकी लंबाई कम या ज्यादा हो सकती है। किसी के हाथ में यह रेखा सीधी आगे को बढ़ती है जिससे इसका शुक्र क्षेत्र छोटा हो जाता है। एक अच्छे पामिस्ट को यह सब ध्यान में रखना चाहिए। इसे हमने संजीवनी रेखा का नाम दिया है। प्रकृति ने जिस प्रकार हमारे चेहरे पर नाक, कान के स्थान निर्दिष्ट किए हैं उसी प्रकार हाथ में जीवन रेखा, शीर्ष रेखा तथा अन्य चिन्हों के स्थान भी निर्दिष्ट किए हैं। इसलिए अगर कोई रेखा अपने प्राकृतिक स्थान से हटकर असाधारण स्थिति को ग्रहण कर ले तो असाधारण परिणामों की आशा करना युक्तिसंगत होगा। अगर मनुष्य के स्वाभाविक गुणों में इस प्रकार परिवर्तनों का प्रभाव पड़ सकता है तो उसके स्वास्थ्य पर क्यों नहीं पड़ेगा। हस्त विज्ञान या सामुद्रिक विज्ञान रेखाओं द्वारा रोग और मृत्यु के संबंध में भविष्यवाणी कर सकता है। इस बात को हम सभी स्वीकार करते हैं कि प्रत्येक मनुष्य के शरीर में कीटाणु स्नायुओं के तालमेल को दूषित करते हैं। उसका प्रभाव स्नायु के माध्यम से हाथ पर पड़ता है। इस रेखा पर जीवन की अवधि, रोग और मृत्यु अंकित होती है और अन्य जिन घटनाओं का पूर्वाभास कराती हैं उनकी पुष्टि जीवन रेखा करती है। संजीवनी रेखा कैसी होनी चाहिए जीवन रेखा लंबी, तंग व गहरी होनी चाहिए, चैड़ी कदापि नहीं होनी चाहिए। यह भी देखा जाता है कि प्रायः कोमल हाथ वाले व्यक्ति रोग आदि से लड़ने की कम क्षमता रखते हैं। थुलथुल हाथ वाले कुछ आरामतलब होते हैं जबकि गठीले हाथ वाले शक्तिशाली होते हैं। संजीवनी रेखा के गुण-दोष जीवन रेखा में कुछ अच्छाई होती है और कहीं खराब होने से उसमें दोष आ जाता है। इसलिए जीवन रेखा के गुण-दोषों का संबंध समझना आवश्यक है। 1. गहरी और अच्छी जीवन रेखा प्राणशक्ति और ताकत को बढ़ाती है। 2. चैड़ी और हल्की जीवन रेखा में उपरोक्त दोनों गुणों का ही अभाव होता है। जीवन रेखा के चैड़ी व हल्की होने पर जातक शारीरिक रूप से इतना शक्तिशाली नहीं होता है कि उसमें उपरोक्त गुण पर्याप्त मात्रा में विद्यमान हों और जब जीवन प्रवाह दुर्बल होता है तो बौद्धिक विकास भी पूर्ण नहीं हो सकता। 3. बलवान गहरी और स्पष्ट जीवन रेखा अच्छी होती है। इसमें अच्छी प्राणशक्ति व ताकत होती है किंतु ऐसे हाथ में यदि शुक्र पर्वत बहुत उन्नत हो तो जातक अत्यधिक काम वासना में लिप्त रहकर अपना जीवन नष्ट कर देते हैं। बलवान जीवन रेखा से अच्छी पाचन शक्ति भी प्राप्त होती है किंतु अंगुलियों के तीसरे पोर मोटे व लंबे हों तो उसे रक्तचाप की शिकायत रहती है। 4. यदि किसी की हथेली का रंग गुलाबी हो और बृहस्पति की अंगुली का तीसरा पोर मजबूत हो तो वह बहुत ज्यादा खाने-पीने का शौकीन होता है। वह मिर्गी के रोग का शिकार भी हो सकता है। परंतु उसका ऊपरी मंगल क्षेत्र बहुत उन्नत हो तब ऐसा होता है। 5. तंग और पतली जीवन रेखा से भी जीवन प्रवाह शक्ति सामान्य से कम प्रकट होती है। ऐसे व्यक्ति शारीरिक परिश्रम नहीं कर सकते। उनमें धैर्य की कमी होती है। ये जल्दी बीमार हो जाते हैं और सुस्त भी रहते हैं। 6. कभी-कभी जीवन रेखा छोटी-छोटी रेखाओं में बंटी होती है तब भी जीवन प्रवाह की कमी प्रकट होती है। यह जातक में सामान्य दुर्बलता, गिरा हुआ स्वास्थ्य और स्नायविक कमजोरी प्रकट करती है। ऐसी रेखा वाला व्यक्ति उदास होता है। 7. श्रृंखलाकार जीवन रेखा भी दोषपूर्ण मानी जाती है। रेखा में जहां भी श्रृंखला होगी जातक उस समय बीमार होगा। जो व्यक्ति बचपन में ज्यादा बीमार रहता है उसकी जीवन रेखा आरंभ में किसी अन्य रेखा की तरह या श्रृंखलाबद्ध या दोषपूर्ण होती है। यदि जीवन रेखा कुछ दूरी तक ही श्रृंखलाबद्ध है और आगे अच्छी व दोषरहित है तो जातक उसी अवधि तक अस्वस्थ रहता है जहां तक रेखा श्रृंखलाबद्ध है। 8. यदि यह रेखा श्रृंखलाबद्ध ही नहीं अपितु चैड़ी व हल्की भी हो तो और भी खराब होती है क्योंकि ऐसी जगह दो हानिकारक कारण एकत्रित होते हैं। 9. सीढ़ीनुमा रेखा - यह रेखा छोटे-छोटे खंडों के रूप में होती है। जीवन रेखा का आरंभ: जीवन रेखा साधारणतया बृहस्पति पर्वत के नीचे से शुरू होकर शुक्र पर्वत को घेरती हुई मणिबंध या उसके समीप तक जाती है। अगर रेखा बृहस्पति पर्वत से आरंभ हो तो इससे अभिमान व महत्वाकांक्षा प्रकट होती है। जीवन रेखा का संबंध शीर्ष रेखा और हृदय रेखा से यदि जीवन रेखा शीर्ष रेखा से जुड़ी हो तो इसका तात्पर्य यह है कि जातक काफी बुद्धिमान होगा और तर्क व कारण सहित निष्कर्ष निकालता है। लेकिन व्यक्ति को भावुक भी बनाता है। इसमें स्वतंत्र विचार की कमी हो सकती है। जीवन रेखा से वंश वृद्धि: जीवन रेखा को भारतीय मत के अनुसार गोत्र रेखा या कुल रेखा कहते हैं। दोनों का अर्थ है वंश वृद्धि। इसका अर्थ हुआ कि जिसकी जीवन रेखा सुंदर और बलवान होगी तथा जीवन रेखा से घिरा हुआ भाग गुणयुक्त होगा उसी के कुल की वृद्धि होगी। पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र आदि की वृद्धि भी इसी से देखी जाती है। अगर संतान स्वस्थ होती है तो कुल या गोत्र की वृद्धि संभव है। इसलिए भारतीय महर्षियों ने कुल वृद्धि या गोत्र वृद्धि का अर्थ केवल पुत्र तक ही सीमित नहीं रखा है। यदि किसी को निर्बल अवस्था में निर्बल पुत्र हो गया और आगे उसकी वंश वृद्धि नहीं हुई तो गोत्र वृद्धि नहीं मानी जाएगी। पुरुषों तथा स्त्रियों दोनों की संतानोत्पादक शक्ति, शुक्र क्षेत्र तथा जीवन रेखा पर बहुत अधिक मात्रा में अवलंबित है। इसी कारण अंगुष्ठ के नीचे के भाग पर करपृष्ठ की ओर निकली हुई रेखाओं से संतान का विचार किया जाता है। भविष्य पुराण में लिखा है: अंगुष्ठ मूल रेखाः पुत्राः स्युर्दारिकाः सूक्ष्मा। प्रयोग पारिजात में लिखा है- मूलांगुष्ठस्य नृणां स्थूल रेखा भविन्त यावत्यः। तादन्तः पत्राः स्य सूक्ष्माभिः पत्रिकास्ताभि।। अर्थात् अंगूठे के मूल में जो स्थूल रेखाएं हों उन्हें पुत्र रेखा तथा जो सूक्ष्म रेखाएं हों उन्हें कन्या रेखा समझना चाहिए। स्त्रियों के हाथ में भी इन्हीं रेखाओं को संतान रेखा माना जाता है। मोटी रेखाएं हों उतने पुत्र और जितनी कटी हुई रेखाएं हों उतनी कन्या संतानें होंगी। जीवन रेखा या आयु रेखा द्वारा समय का निर्धारण: मनुष्य की आयु प्रमाण सौ वर्ष ही वर्णित किया गया है जो कि ऋषियों द्वारा वेद मंत्रों में किया गया है। किंतु इस वर्तमान युग में मनुष्य की आयु का प्रमाण निर्धारित नहीं हो सकता है क्योंकि हम यही देखते हैं कि बच्चा मां के पेट से लेकर 100 वर्ष की अवस्था तक किसी समय भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। इसलिए शत प्रतिशत ठीक बात तो ईश्वर के अतिरिक्त कोई नहीं जानता है। फिर भी श्वासों की गिनती के अनुसार सुंदर, साफ और स्पष्ट जीवन रेखा को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति वर्षों की गणना के अनुसार वर्षों की अमुक संख्या तक जीवित रह सकता है। फिर भी जिन मनुष्यों की अवस्था 100 से अधिक होती है उनकी आयु या जीवन रेखा मणिबंध से कलाई तक पहुंच जाती है। फिर छोटी आयु वाले व्यक्ति की जीवन रेखा छोटी और बड़ी आयु की जीवन रेखा बड़ी होती है। आधुनिक और प्राचीन सभी हस्त विशेषज्ञों में अपनी-अपनी गणना के अनुसार इस आयु विभाग गणित में कुछ अंतर तथा मतभेद अवश्य ही रहा है। देखने में अभी तक यही आया है कि यूरोप निवासियों से करीब-करीब सभी ने सप्तवर्षीय नियम को अपना है और भारतीय प्राचीन गं्रथों ने पंचवर्षीय नियम को अपनाकर अपना निर्णय लिया है। रेखाओं के आधार पर घटनाओं का निश्चित समय तय किया जा सकता है। समय निर्धारण मुख्यतः जीवन रेखा के आधार पर किया जाता है। कुछ लोग शनि रेखा का भी प्रयोग करते हैं नीचे कुछ रीतियां इस प्रकार हैं- मनुष्श् को यह मानना होगा कि दुःखमय जीवन से छुटकारा हमें ईश्वर ही दे सकता है उसी पर भरोसा करे। अगर कोई दुःख है तो उसे स्वीकार करके तन-मन अर्पण करके ईश्वर से प्रार्थना करे कि इस कष्ट को भोगने की शक्ति दे। ईश्वर अच्छे सुख के दिन लायेगा विश्वास करे। जो ईश्वर के भक्त हैं वह कहते हैं- 1. भगवान ने जो परिस्थिति दी वह साधन रूप है। विश्वास करके उसे बरतो, फल महान अनूप है। 2. श्विासहीन मनुष्य को सर्वत्र अन्धा कूप है। विश्वास से ही मिलते हरि विश्वास प्रभु का रूप है। अतः मनुष्य को सुख के लिए नित्य प्रयत्न करते रहना चाहिए यही ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान के उद्देश्य हैं।

हाथों में छ: ऊँगली होना शुभ या अशुभ:ज्योतिष्य दर्पण

जिनके हाथ में छः अंगुलियां होती हैं, वह व्यक्ति बहुत भाग्यशाली होता है, परंतु कुछ लोग इसे एक अशुभ लक्षण भी मानते हैं। लेकिन वास्तव में छः अंगुलियां होने पर व्यक्ति को अपने जीवन में किस प्रकार के फल प्राप्त होते हैं- सामान्य तौर पर प्रत्येक मनुष्य के हाथ में पांच अंगुलियां होती हैं। किंतु कई बार आनुवांशिक अव्यवस्था के कारण परिवार में अतिरिक्त (छठी) अंगुली वाली संताने भी पैदा हो जाती हैं। हाथ में स्थित छठी अंगुली की अपनी कोई स्वतंत्र कार्य प्रणाली नहीं होती, ना ही इस अतिरिक्त अंगुली का अपना कार्इे पर्वत होता है। हाथ में यह छठी अंगुली जिस अंगुली के साथ जुड़ी हुई होती है, उसी अंगुली की क्रियाशीलता पर अतिरिक्त अंगुली की क्रिया निर्भर करती है अर्थात् इस अतिरिक्त अंगुली का अपना कार्इे स्वतत्रं अस्तित्व नहीं हातो। यह तो मृत अंगुली के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहती है। इसीलिए मध्यकालीन युग में आरै आज भी कुछ लोग इस अतिरिक्त अंगुली को शल्य चिकित्सा द्वारा कटवा दिया करते हैं। कुछ शाधेकर्ताओं का मत है कि प्रत्यके 1,00,000 बच्चों में लगभग 50 बच्चे ऐसे पैदा होते हैं जिनके हाथ में यह अतिरिक्त अंगुली पाई जाती है। हाथ में इस अतिरिक्त छठी अंगुली की स्थिति दो प्रकार से पाई जाती है। पहली स्थिति में छठी अगुंली कनिष्ठिका अंगुली की जुड़वा अंगुली के रूप में दिखाई देती है। दूसरी स्थिति में यह छठी अंगुली, अंगूठे के साथ जुड़ी हुई दिखाई देती है। पा्रचीन मत के अनसुार छठी अंगुली को सौभाग्य के सूचक के रूप में माना जाता रहा है। जबकि मध्यकालीन युग में इस छठी अगुंली का संबधं जादू टाने में माहिर व्यक्ति से माना जाता था और छठी अंगुली के धारक व्यक्ति को जादू-टोने, इंद्रजाल और मायावी विद्याओं में पारंगत समझा जाता था। आधुनिक मतानुसार छः अंगुलियों के धारक व्यक्ति को विश्वास के योग्य नहीं पाया जाता है। यदि यह छठी अंगुली कनिष्ठिका से जुड़ी हो तो ऐसे व्यक्ति बिल्कुल भी विश्वास के योग्य नहीं होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में बात-बात पर केवल झूठ ही बोलते हैं, इसलिए ऐसे लोग विश्वास के योग्य बिल्कुल भी नहीं होते हैं। जनश्रुति के अनुसार 'ऐनी बोलेन' जो कि 'हैनरी' (अष्टम) की पत्नी एवं एलिजाबेथ (प्रथम) की मां थी, इनके दोनों हाथों में छः-छः अंगुलियां थीं। अपनी इसी प्रसिद्धि के कारण ये अपने इन हाथों को हमेशा लंबी आस्तीन के वस्त्रों से ढककर रखती थी। लेवीन ऐनी बोलेन के प्रतिपक्षी उन पर हमेशा वास्तव में एक डायन होने के आरोप लगाते थे। प्राचीन मतानुसार छः अंगुलियों को सौभाग्य का परिचायक मानते थे| यदि यह छठी अंगुली कनिष्ठिका से जुडी़ हो तो ऐसे व्यक्ति बिल्कुल भी विश्वास के योग्य नहीं होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में बात-बात पर केवल झूठ ही बोलते है इसलिए एसे लागे विश्वास के योग्य बिल्कुल भी नहीं होते हैं। यह छठी अंगुली कनिष्ठिका से जुड़ी होने पर व्यक्ति के अंदर चालाकी, बेईमानी, कूटनीति आदि में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि कर देती है। ऐसे व्यक्ति कब किस स्थिति में धोखा दे जाएं, इस बात की पहचान करना भी असंभव प्रतीत होता है। ऐसे व्यक्ति चालाकी और बेईमानी में बहतु निपुण हाते हैं इसलिए ये लागे विश्वास योग्य नहीं माने जाते है इसी तरह, यदि यह छठी अगंलुी अंगष्ुठ के साथ जुड़ी हो तो ऐसे व्यक्ति में विवेक की मात्रा सामान्य से कहीं अधिक होती है। लेकिन कभी-कभी इसी विवेक का दुरुपयोग भी इस छठी अंगुली के कारण ही होता है।

51 शक्तिपीठ की पौराणिक कथा

मां दुर्गा के नौ स्‍वरूपों के बारे में हर कोई जानता है और नवरात्रि में मां के इन्‍हीं रूपों की आराधना की जाती है. हिंदू धर्म में नवदुर्गा पूजन के समय ही मां के मंदिरों में भी भक्‍तों का तांता लगता है और उनमें भी मां के शक्तिपीठों का महत्‍व अलग ही माना जाता है.
पवित्र शक्ति पीठ पूरे भारत के अलग-अलग स्‍थानों पर स्थापित हैं. देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है तो देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है, वहीं तन्त्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं. देवी पुराण के मुताबिक 51 शक्तिपीठ में से कुछ विदेश में भी स्थापित हैं. भारत में 42, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 तथा नेपाल में 2 शक्तिपीठ हैं.
शक्तिपीठ की पौराणिक कथा
मां के 51 शक्तिपीठों की एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता दुर्गा ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से उनका विवाह हुआ था. एक बार मुनियों के एक समूह ने यज्ञ आयोजित किया. यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था. जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए. भगवान शिव दक्ष के दामाद थे.
यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए. अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने भी एक यज्ञ का आयोजन किया. उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शिव को इस यज्ञ का निमंत्रण नहीं भेजा.
भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए और जब नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है. यह जानकर वे क्रोधित हो उठीं. नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की जरूरत नहीं होती है. जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने उन्हें समझाया लेकिन वह नहीं मानी तो प्रभु ने स्वयं जाने से इंकार कर दिया.शंकर जी के रोकने पर भी जिद कर सती यज्ञ में शामिल होने चली गईं. यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया. इस पर दक्ष, भगवान शंकर के बारे में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे. इस अपमान से पीड़ित सती ने यज्ञ-कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी.भगवान शंकर को जब यह पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया. ब्रम्हाण्ड में प्रलय व हाहाकार मच गया. शिव जी के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सजा दी. भगवान शंकर ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी होकर सारे भूमंडल में घूमने लगे.भगवती सती ने शिवजी को दर्शन दिए और कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के अंग अलग होकर गिरेंगे, वहां महाशक्तिपीठ का उदय होगा. सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर घूमते हुए तांडव भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी. पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर धरती पर गिराते गए. जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से माता के शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते. शास्‍त्रों के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, उनके वस्त्र या आभूषण गिरे , वहां-वहां शक्तिपीठ का उदय हुआ. इस तरह कुल 51 स्थानों में माता के शक्तिपीठों का निर्माण हुआ. अगले जन्म में सती ने राजा हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया |

खूनी दस्त का ज्योतिष्य दृष्टिकोण



रक्तयुक्त पेचिशः खूनी दस्त शरीर की वायु दूषित होने से रक्तयुक्त अतिसार रोग पैदा होता है। मानसिक रोग से शरीर की वायु दूषित होती है। यह वायु शरीर में बड़ी आंत में पैदा होती है। अतः दूषित वायु का असर सबसे पहले बड़ी आंतों पर होता है। इससे बड़ी आंत की कार्यप्रणाली बिगड़ जाती है, जिससे रक्तयुक्त अतिसार की स्थिति पैदा होती है। आज हर व्यक्ति अपने क्षेत्र में सारी ऊंचाइयों को छू लेना चाहता है, जिसकी तमन्ना ने उसके मस्तिष्क में घर कर लिया है। इस तमन्ना की प्रत्यक्षता पा लेने में उसे काफी दुःख झेलने पड़ते हैं, जिससे क्रोध, चिंता, तनाव आदि कई मानसिक विकार अपना सिर उठा लेते हैं। इन्हीं के कारण शरीर का हर अंग बुरी तरह से प्रभावित होता है और कमजोर अंग सबसे पहले रोगग्रस्त हो जाता है। उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह, उदर रोग आदि इसी तरह से उत्पन्न होने वाले रोग हैं। इसी श्रृंखला में एक रोग है, 'रक्तयुक्त अतिसार' या पेचिश। आयुर्वेद के ग्रंथों में अतिसार छः प्रकार के बताये गये हैं। उनमें से एक है शोकज अतिसार, जिसमें दस्त का कारण, किसी प्रकार का मानसिक आघात होता है। इसके रोगी में दस्त रक्तमिश्रित, दुर्गंधयुक्त, या बिल्कुल गंधहीन आते हैं। आयुर्वेद शास्त्रों के अनुसार दूषित पित्त से उत्पन्न दस्त लगने पर भी अगर व्यक्ति गर्म, तेज, मसालेदार चीजें सेवन करता रहे, तो परिणामस्वरूप मल रक्तयुक्त आने लगता है। आधुनिक विज्ञान अभी इसके कारणों को सही रूप से ढूंढ नहीं पाया है। लेकिन मानसिक तनाव के साथ यह जुड़ा हुआ है, ऐसा निश्चित रूप से कहा जा सकता है। लक्षण : इस रोग में पहले बड़ी आंत में सूजन आती है और भीतरी सतह पर किसी कारण से घाव हो जाते हैं, जिससे रोगी को 3-4 बार रक्तयुक्त मल होता है। अगर साथ में अन्य लक्षण भी हों, जैसे दस्त में पीव आना, आंव सहित मल आना, शरीर में जलन, अधिक प्यास लगना, शरीर का वजन घटते जाना, बुखार, फीकापन, नाड़ी की गति बढ़ जाना और बड़ी आंतें फूल जाना आदि तो स्थिति गंभीर मानी जाती है। लंबे समय तक यही स्थिति रहने से कभी-कभी बड़ी आंतों के फट जाने से मलाशय का कैंसर जैसी गंभीर अवस्था भी पैदा हो जाती है, जिसमें तत्काल उपचार की आवश्यकता होती है। यह रोग अधिकतर बूढ़े लोगों को होता है। इसकी शुरुआत अचानक होती है। शोक, चिंता, भावनात्मक कुंठायुक्त मानसिक स्थिति में चंद दिन, या महीने गुज़र जाने से रोग अधिक गंभीर हो जाता है। फिर पेट में दर्द, बेचैनी के साथ पतले दस्त शुरू हो जाते हैं। रोगी का वजन घट जाता है। इसमें खून की कमी स्पष्ट नजर आती है। आयुर्वेद के अनुसार पेट की अग्नि की मंदता इस रोग की जड़ होती है। इस बात को चिकित्सा के समय ध्यान में रखना चाहिए।
ज्योतिष्य दृष्टिकोण- काल पुरुष की कुंडली में पेट की आंतों का स्थान षष्ठ भाव है, जिसका कारक ग्रह मंगल है। मंगल रक्त का भी कारक है। मानसिक तनाव लग्नेश चंद्र के दुष्प्रभावों से होता है। इसलिए जिस कुंडली में लग्न, लग्नेश, चंद्र, मंगल, षष्ठेश और षष्ठ भाव दुष्प्रभावों में हों, तो जातक को रक्तयुक्त पेचिश होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। तुला लग्न में षष्ठेश लग्न में हो, मंगल षष्ठ भाव में केतु से युक्त, या दृष्ट हो और शनि सप्तम भाव में हो, चंद्र लग्न में ही हो और लग्नेश अष्टम भाव में राहु-केतु के प्रभाव में हो, तो गुरु, या केतु, या मंगल की दशा-अंतर्दशा में ऐसा रोग होता है। विभिन्न लग्नों में रक्तयुक्त पेचिश : मेष लग्न : लग्नेश मंगल षष्ठ भाव में चंद्र से युक्त, या दृष्ट हो, बुध लग्न में हो, षष्ठ भाव पर शनि की दृष्टि हो, केतु शनि से युक्त, या दृष्ट हो, तो खूनी पेचिश की संभावना मंगल, या चंद्र की दशा-अंतर्दशा में होती है। वृष लग्न : लग्नेश और षष्ठेश मंगल से युक्त हो कर सप्तम भाव में हों, षष्ठ भाव गुरु से युक्त, या दृष्ट हो, चंद्र-लग्न राहु-केतु के प्रभाव में हों, तो रक्तयुक्त पेचिश गुरु, या मंगल की दशांतर्दशा में होती है। मिथुन लग्न : लग्नेश द्वादश भाव में, या षष्ठ भाव में गुरु से युक्त, या दृष्ट हो, चंद्र अष्टम भाव में शनि से युक्त, या दृष्ट हो, सूर्य लग्न में राहु, या केतु से दृष्ट हो, तो गुरु व मंगल की दशा-अंतर्दशा में रोग होता है। कर्क लग्न : षष्ठेश मंगल से युक्त हो कर द्वादश भाव में शनि से दृष्ट हो, लग्नेश चंद्र षष्ठ भाव में हो, सूर्य पंचम भाव में राहु-केतु से युक्त, या दृष्ट हो, तो केतु, या शनि की दशा-अंतर्दशा में रक्तयुक्त पेचिश रोग होता है। गोचर में मंगल दुष्प्रभावों में होने से ऐसा होता है। सिंह लग्न : लग्न में सूर्य हो, लग्नेश सूर्य षष्ठ भाव में मंगल से युक्त, या दृष्ट हो कर राहु-केतु के प्रभाव में हो, बुध पंचम भाव में हो और शुक्र सप्तम भाव में हो, तो रक्तयुक्त पेचिश होने की संभावना शनि या मंगल की दशा-अंतर्दशा में होती है। कन्या लग्न : षष्ठेश अष्टम भाव में, मंगल षष्ठ भाव में केतु से युक्त हो, लग्नेश बुध द्वितीय भाव में, सूर्य लग्न में हो और चंद्र नीच का हो, तो रक्तयुक्त पेचिश मंगल की दशा-अंतर्दशा में होने की संभावना होती है। तुला लग्न : षष्ठेश लग्न में हो, मंगल षष्ठ भाव में केतु से युक्त, या दृष्ट हो और शनि सप्तम भाव में हो, चंद्र लग्न में ही हो और लग्नेश अष्टम भाव में राहु-केतु के प्रभाव में हो, तो गुरु, या केतु, या मंगल की दशा-अंतर्दशा में ऐसा रोग होता है। वृश्चिक लग्न : षष्ठ भाव में बुध सप्तम भाव में शनि, या राहु से युक्त, या दृष्ट हो, लग्नेश अष्टम भाव में शुक्र से युक्त हो, चंद्र लग्न में हो, तो जातक को रक्तयुक्त पेचिश मंगल, बुध, या शनि की दशांतर्दशा में होता है। मंगल गोचर में दुष्प्रभावों मे रहे, तब भी रोग होता है। धनु लग्न : षष्ठेश सप्तम भाव में हो, सप्तमेश बुध षष्ठ भाव में लग्नेश गुरु शनि से युक्त, या दृष्ट अष्टम, या द्वादश भाव में हो, षष्ठ भाव राहु से दृष्ट, या युक्त हो, चंद्र लग्न में मंगल से युक्त हो, तो रक्तयुक्त पेचिश मंगल, या शुक्र की दशा-अंतर्दशा में होती है। मकर लग्न : षष्ठेश बुध पंचम भाव में, गुरु षष्ठ भाव में, लग्नेश शनि अष्टम भाव में, चंद्र लग्न में राहु-केतु से युक्त, सप्तम भाव मंगल से दृष्ट, या युक्त हो, तो रक्तयुक्त पेचिश गुरु, या मंगल की दशा-अंतर्दशा में होने की संभावना होती है। कुंभ लग्न : चंद्र द्वितीय भाव में राहु-केतु से युक्त हो, गुरु सप्तम भाव में, मंगल षष्ठ भाव में बुध से युक्त हो, लग्नेश शनि अष्टम भाव में शुक्र से युक्त हो, तो जातक को मंगल, चंद्र, या शनि की दशा में रक्तयुक्त पेचिश होती है। मीन लग्न : लग्नेश गुरु षष्ठ भाव में शनि से दृष्ट हो, मंगल लग्न में राहु-केत से युक्त, या दृष्ट हो, चंद्र अष्टम भाव में बुध से युक्त हो, सूर्य सप्तम भाव में हो और शुक्र अस्त हो, तो जातक को रक्तयुक्त पेचिश सूर्य, मंगल, या शनि की दशा-अंतर्दशा में होने की संभावना होती है। उपर्युक्त सभी योग चलित कुंडली पर आधारित हैं। रोग संबंधित ग्रह की दशा-अंतर्दशा और गोचर के प्रतिकूल रहने से होता है। तदोपरांत रोग दूर हो जाता है।

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Tuesday 16 August 2016

कुंडली में शनि का गोचरीय प्रभाव

कुंडली में यदि शनि ग्रह बलशाली हो तो जातक को आवासीय सुख प्रदान करता है। निम्न वर्ग का नेतृत्व प्राप्त होता है। दुर्बल शनि शारीरिक दुर्बलता-शिथिलता, निर्धनता, प्रमाद एवं व्याधि प्रदान करता है- मन्दे पूर्णबले गृहादिसुखृद भिल्लाधिपत्यं भवेन्नयूने विलहरः शरीरकृशता रोगोऽपकीर्तिर्भवेत।। शनि ग्रह किसी भी एक राशि में लगभग 2 वर्ष 6 माह विचरण करते हुये लगभग 30 वर्ष में 12 राशियों का भोग करते हैं। शनि ग्रह के इस राशि भ्रमण को ही गोचर कहते हैं। शनि ग्रह का किसी एक राशि में भ्रमण करने से शुभ या अशुभ फल भी 2 वर्ष 6 माह तक ही रहता है। गोचरीय फल- 1. शनि जब चंद्र राशि में होता है:- उस समय जातक की बौद्धिक क्षमता क्षीण हो जाती है। दैहिक एवं आंतरिक व्यथायें प्रखर होने लगती है। अत्यंत आलस्य रहता है। विवाहित पुरूष को धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री को पति एवं आत्मीय जनों से संघर्ष रहता है। मित्रों से दुख प्राप्त होता है, गृह-सुख विनष्ट होता है। अनपढ़ एवं घातक वस्तुओं से क्षति संभव है, मान-प्रतिष्ठा धूल-धूसरित होती है, प्रवास बहुत होते हैं। असफलतायें भयभीत करती हैं, दरिद्रता का आक्रमण होता है, सत्ता का प्रकोप होता है, व्याधियां पीड़ित करती हैं। 2. चंद्र राशि से शनि जब द्वितीय स्थान में होता है: स्वस्थान का परित्याग होता है, दारूण दुख रहता है, बिना प्रयोजन विवाद व संघर्ष होते हैं। निकटतम संबंधियों से अवरोध उत्पन्न होता है। विवाहित पुरूष की धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री के पति को मारक पीड़ा सहन करनी पड़ती है। दीर्घ काल का दूर प्रवास संभव होता हैं, धनागम, सुखागम बाधित होते हैं आरंभ किये गये कार्य अधूरे रहते हैं। 3. चंद्र राशि से शनि जब तृतीय स्थान में होता है: भूमि का पर्याप्त लाभ होता है, व्यक्ति स्वस्थ, आनंद व संतुष्ट रहता है। एक अनिर्वचनीय जागृति रहती है, धनागम होता है, धन-धान्य से समृद्धि होती है। आजीविका के साधन प्राप्त होते हैं। समस्त कार्य सहजता से संपन्न होते हैं। व्यक्ति शत्रु विजयी सिद्ध होता है, अनुचर सेवा करते हैं, आचरण में कुत्सित प्रवृत्तियों की अधिकता होती है। पदाधिकार प्राप्त होते हैं। 4. चंद्र राशि से शनि जब चतुर्थ स्थान में होता है:- बहुमुखी अपमान होता है। समाज एवं सत्ता के कोप से साक्षात्कार होता है, आर्थिक कमी शिखर पर होती है। व्यक्ति की प्रवृत्तियां स्वतः धूर्ततायुक्त एवं पतित हो जाती है, विरोधियों एवं व्याधियों का आक्रमण पीड़ादायक होता है। नौकरी में स्थान परिवर्तन अथवा परित्याग संभव होता है, यात्राएं कष्टप्रद होती हैं। आत्मीय जनों से पृथकता होती है, पत्नी एवं बंधु वर्ग विपत्ति में रहते हैं। 5. चंद्र राशि से शनि जब पंचम स्थान में होता है: मनुष्य की रूचि कुत्सित नारी/ नारियों में होती है। उनकी कुसंगति विवेक का हरण करती है, पति का धर्मपत्नी और पत्नी का पति से प्रबल तनाव रहता है, आर्थिक स्थिति चिंताजनक होती है, व्यक्ति सुविचारित कार्यपद्धति का अनुसरण न कर पाने के कारण प्रत्येक कार्य में असफल होता है। व्यवसाय में अवरोध उत्पन्न होते हैं, पत्नी वायु जनित विकारों से त्रस्त रहती है। संतति की क्षति होती है, जातक जन समुदाय को वंचित करके उसके धन का हरण करता है। सुखों में न्यूनता उपस्थित होती है शांति दुर्लभ हो जाती है, परिवारजनों से न्यायिक विवाद होते हैं। 6. चंद्र राशि से शनि जब षष्ठ स्थान में होता है- शत्रु परास्त होते हैं, आरोग्य की प्राप्ति होती है, अनेकानेक उत्तम भोग के साधन उपलब्ध होते हैं, संपत्ति, धान्य एवं आनंद का विस्तार होता है, भूमि प्राप्त होती है, आवासीय सुख प्राप्त होता है। स्त्री वर्ग से लाभ होता है। 7. चंद्र राशि से शनि जब सप्तम स्थान में होता है- कष्टदायक यात्राएं होती हैं, दीर्घकाल तक दूर प्रवास व संपत्ति का विनाश होता है, व्यक्ति आंतरिक रूप से संत्रस्त रहता है, गुप्त रोगों का आक्रमण होता है, आजीविका प्रभावित होती है, अपमानजनक घटनायें होती हैं, अप्रिय घटनायें अधिक होती हैं, पत्नी रोगी रहती है, किसी कार्य में स्थायित्व नहीं रह जाता। 8. चंद्र राशि से शनि जब अष्टम स्थान में होता है- सत्ता से दूरी रहती है, पत्नी/पति के सुख में कमी संभव है, निन्दित कृत्यों व व्यक्तियों के कारण संपत्ति व सम्मान नष्ट होता है, स्थायी संपत्ति बाधित होती है, कार्यों में अवरोध उपस्थित होते हैं, पुत्र सुख की क्षति होती है, दिनचर्या अव्यवस्थित रहती है। व्याधियां पीड़ित करती हैं। व्यक्ति पर असंतोष का आक्रमण होता है। 9. चंद्र राशि में शनि जब नवम् स्थान में होता है - अनुचर (सेवक) अवज्ञा करते हैं, धनागम में कमी रहती है। बिना किसी प्रयोजन के यात्राएं होती हैं, विचारधारा के प्रति विद्रोह उमड़ता है, क्लेश व शत्रु प्रबल होते हैं, रूग्णता दुखी करती है, मिथ्याप्रवाह एवं पराधीनता का भय रहता है, बंधु वर्ग विरूद्ध हो जाता है, उपलब्धियां नगण्य हो जाती है, पापवृत्ति प्रबल रहती हैं, पुत्र व पति या पत्नी भी यथोचित सुख नहीं देते। 10. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी के बीच गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है। 11. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी में गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है। 11. चंद्र राशि से शनि जब एकादश स्थान में होता है: बहुआयामी आनंद की प्राप्ति होती है। लंबे समय के रोग से मुक्ति प्राप्त होती है, अनुचर आज्ञाकारी व परिश्रमी रहते हैं, पद व अधिकार में वृद्धि होती है, नारी वर्ग से प्रचुर संपत्ति प्राप्त होती है, पत्थर, सीमेंट, चर्म, वस्त्र एवं मशीनों से धनागम होता है, स्त्री तथा संतान से सुख प्राप्त होता है। 12. चंद्र राशि से शनि जब द्वादश स्थान में होता है: विघ्नों तथा कष्टों का अंबार लगा रहता है, धन का विनाश होता है। संतति सुख हेतु यह भ्रमण मारक हो सकता है अथवा संतान को मृत्यु तुल्य कष्ट होते हैं। श्रेष्ठजनों से विवाद होता है, शरीर गंभीर समस्याओं से ग्रस्त रहता है, सौभाग्य साथ नहीं देता, व्यय अधिक होता है, जिस कारण मन उद्विग्न रहने से सुख नष्ट हो जाते हैं।

आर्थिक सम्पन्नता एवं विपन्नता में सूर्यदेव की महत्ता...........

युवाओं की प्रथम मनोभावना यही रहती है कि जीवन में एक निश्चित आय-स्रोत की सुनिश्चितता हो। आर्थिक सम्पन्नता एवं विपन्नता व्यक्ति के जीवन का महत्वपूर्ण पहलू है। प्रत्येक युवा ऐसे कार्यक्षेत्र का चयन चाहता है जहाँ आर्थिक सम्पन्नता के साथ उसकी सामाजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सके। इसलिए जो भी, जिस प्रकार की शिक्षा ग्रहण कर पाता है उसी शिक्षा-जनित स्रोतों के माध्यम से सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है क्योंकि सरकारी नौकरी में अच्छे आर्थिक परिलाभों के साथ-साथ पूर्ण सामाजिक सुरक्षा भी प्राप्त हो जाती है। इस दिशा में सभी युवा अथक परिश्रम एवं अध्ययन करते हैं परन्तु सरकारी क्षेत्र मे नौकरी प्राप्त करने में कम ही युवा सफल हो पाते हैं, ऐसा क्यों होता है? बढ़ती बेरोजगारी ने इस समस्या को और भी विकराल बना दिया है। आर्थिक मारामारी के दौर में अभिभावक लाखों रूपया व्यय कर प्रतियोंिगता परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं। सभी अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चे प्रतियोगी परीक्षा में अच्छे अंक पाकर सरकारी क्षेत्र में किसी ऊँचे ओहदे पर बैठे। मेहनत समान रूप से भी करते हैं लेकिन कुछ ही युवा प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो पाते हैं। यद्यपि आजीविका का अर्जन सभी अपने-अपने ढंग से करते हैं लेकिन सरकारी नौकरी अर्जित करने का सौभाग्य कम ही युवाओं को मिल पाता है। तुलसीदास जी ने अपने महाकाव्य में वर्णित किया है कि - जनम मरन सब दुखसुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन वियोगा।। काल करम बस होहीं गोसाई । बरबस राति दिवस की नांई ।। प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्यकाल के बारे में जानना चाहता है कि उसका भावी जीवनकाल कैसा रहेगा ? खासतौर पर युवा बेरोजगार यह जानने के लिए उत्सुक रहता है कि उसकी आजीविका का कार्यक्षेत्र कौन सा होगा ? इस आधार पर मनुष्य द्वारा अर्जित फल कर्म एवं काल पर निर्भर है। कर्म से मानव अपने प्रारब्ध को संशोधित कर सकता है । निश्चित समय पर किए गए कर्म सुफल प्रदान करने वाले तथा असमय किए गए कार्य कुफलदायी सिद्ध होते हैं। कर्म से ही व्यक्ति की पहचान होती है तथा समय पर कर्म करने पर सफलता प्राप्त होती है। ज्योतिष सूचना शास्त्र है। यह व्यक्ति के कर्मफल की सूचना प्रदान करता है। जन्म कुण्डली के ग्रह योग एवं ग्रह स्थितियों के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि जातक किस क्षेत्र में कर्म करेगा? उसकी आजीविका किस स्रोत के माध्यम से प्राप्त होगी। आजीविका, राजकीय पद, राजकीय सम्मान, राज्य कृपा प्राप्ति का विचार करने के लिए जन्मकुण्डली के दषम भाव का अध्ययन किया जाता है। प्रसिद्ध ग्रंथ जातकतत्वम् के अनुसार - राज्यपदव्यापारमुद्रानृपमानराज्यपितृमहत्पदाप्तिपुण्याज्ञाकीर्ति- वृष्टिप्रवृतिप्रवासकर्माजीवजानु पूत्र्यादिदषमाच्चिन्त्यम् ।। दशम भाव में स्थित ग्रह, दृष्टि, युति तथा दशमेश ग्रह के बलाबल का परीक्षण कर आजीविका के क्षेत्र का निर्धारण करने के शास्त्रीय निर्देश हैं। पद-प्रतिष्ठा किस प्रकार की होगी इसका अनुमान लगाने के लिए पंचम-नवम भाव का विचार किया जाता है। धन की स्थिति, मात्रा एवं आय की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए द्वितीय-एकादश भाव पर विचार किया जाता है। राज्य कृपा, राजा, राज्य सुख का प्रदाता ग्रह सूर्य को माना गया है। दशम भाव का चर कारक दशमेश ग्रह माना जाता है। दशम भाव के चार स्थिर कारक ग्रह हैं, सूर्य, बुध, गुरू एवं शनि ग्रह, जो आजीविका निर्धारण के अनिवार्य विचारणीय अंग हैं। मंगल भी दशम भाव में बली माना जाता है। इन स्थिर कारक एवं चर कारक ग्रहों की स्थिति जातक के संपूर्ण आजीविका क्षेत्र सहित सफलता-असफलता की गाथा बयां करते है। इस प्रकार आजीविका क्षेत्र के साथ आर्थिक स्त्रोतों का अनुमान किसी एक भाव या एक ग्रह से नहीं लगाया जा सकता है, इसके लिए विभिन्न भावों एवं ग्रहों के आपसी सम्बन्धों के समग्र अध्ययन की आवश्यकता होती है। यहाँ हम ऐसे ग्रह योगों की चर्चा करेंगे जो सरकारी क्षेत्र में नौकरी प्राप्ति में सहायक सिद्ध होते हैं। ज्योतिष के प्राचीन ग्रन्थ जातकतत्वम् के अनुसार - सार्केऽंशे राजकार्यकर्ता ।। केन्द्रेऽर्के राजकार्यकर्ता ।। केन्द्रे कोणे चन्द्रे राजकार्यकर्ता ।। राज्येशे लाभे केन्द्रे वा राजकार्यकर्ता ।। लग्नाम्बुगे जीवे राजकार्यकर्ता ।। इस आधार पर कारकांश कुण्डली के केन्द्र त्रिकोण में सूर्य स्थित हो तो मनुष्य राजकार्यकर्ता होता है। केन्द्र-त्रिकोण में बलवान चन्द्रमा होने पर जातक सरकारी क्षेत्र से आजीविका अर्जित करता है। दशमेश ग्रह बलवान होकर लग्न से केन्द्र अथवा लाभ भाव में स्थित हो तो जातक सरकारी कर्मचारी होता है। जन्मकुण्डली में लग्न अथवा चतुर्थ भाव में गुरू बलवान होकर स्थित हो तो सरकारी क्षेत्र में नौकरी दिलवाने में सहायक सिद्ध होते हैं । जन्मकुण्डली में सभी सातों ग्रहों की स्थिति महत्वपूर्ण होती है। इनमें कोई भी एक बली ग्रह राजकीय क्षेत्र से आजीविका या सरकारी पद प्राप्ति में सहायक हो जाता है। प्राथमिक अनुसंधान से प्राप्त निष्कर्षों के अनुसार सूर्य, चन्द्रमा, गुरू, शनि एवं मंगल उत्तरोत्तर रूप से राजकीय नौकरी दिलाने में सहायक सिद्ध होते हैं। सूर्य एवं गुरू तो निश्चित रूप से राजकीय धन से ही रोजी-रोटी देने वाले ग्रह हैं। गुरू धन, समृद्धि एवं सूर्य ऊर्जा, जीवनशक्ति, इच्छाशक्ति, राज्य एवं अधिकार का नैसर्गिक कारक है। इसी प्रकार बुध विद्या, बुद्धि, वाक्शक्ति, व्यापार, संचार, लेखन का तथा शनि ग्रह श्रम एवं अध्यवसाय का नैसर्गिक कारक ग्रह है । 

श्रवाण मास में मंगला गौरी व्रत का महत्व

श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत किया जाता है. भविष्यपुराण और नारदपुराण में इस व्रत का जिक्र किया गया है. इस दिन देवी पार्वती की पूजा गौरी स्वरूप में की जाती है.
मंगला गौरी व्रत का महत्व
हिन्दू धर्मानुसार जिन जातकों की कुंडली में विवाह-दोष या जिनकी शादी में देरी हो रही हो उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए. सुखी वैवाहिक जीवन के लिए भी इस व्रत को बेहद अहम माना जाता है.
मंगला गौरी व्रत विधि
शास्त्रों के अनुसार श्रावण माह के प्रत्येक मंगलवार को प्रातः स्नान कर मंगला गौरी की फोटो या मूर्ति को सामने रखकर अपनी कामनाओं को मन में दोहराना चाहिए. आटे से बने दीपक में 16 बत्तियां जलाकर देवी के सामने रखना चाहिए. इसके साथ ही सोलह लड्डू,पान, फल, फूल, लौंग, इलायची और सुहाग की निशानियों को देवी के सामने रखकर उसकी पूजा करनी चाहिए. पूजा समाप्त होने पर सभी वस्तुएं ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए साथ ही गौरी प्रतिमा को नदी या तालाब में बहा देना चाहिए.
इस दिन यह अवश्य ध्यान रखें कि इस पूजा में उपयोग की जाने वाली सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए. पांच वर्ष तक मंगला गौरी व्रत करने के बाद पांचवे वर्ष के श्रावण माह के अंतिम मंगलवार को इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए.
पूजा के दौरान मंत्र जाप
मम पुत्रा पौत्रा सौभाग्य वृद्धये|
श्रीमंगला गौरी प्रीत्यर्थं पंच वर्ष पर्यन्तं मंगला गौरी व्रत महं करिष्ये||
मंगला गौरी व्रत फल
मान्यता के अनुसार इस व्रत को पूरे विधा- विधान से करने सुहागिन स्त्रियों को मां गौरी अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं. इसके अलावा यह व्रत सुखी जीवन तथा लंबी आयु के लिए भी शुभ फलदायी माना जाता है.
मंगला गौरी व्रत कथा
कथा के अनुसार एक गांव में बहुत धनी व्यापारी रहता था कई वर्ष बीत जाने के बाद भी उसका कोई पुत्र नहीं हुआ. कई मन्नतों के पश्चात बड़े भाग्य से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई. परंतु उस बच्चे को श्राप था कि 16 वर्ष की आयु में सर्प काटने के कारण उसी मृत्यु हो जाएगी. संयोगवश व्यापारी के पुत्र का विवाह सोलह वर्ष से पूर्व मंगला गौरी का व्रत रखने वाली स्त्री की पुत्री से हुआ. व्रत के फल स्वरूप उसकी पुत्री के जीवन में कभी वैधव्य दुख नहीं आ सकता था. इस प्रकार व्यापारी के पुत्र से अकाल मृत्यु का साया हट गया तथा उसे दीर्घायु प्राप्त हुई.|

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Monday 15 August 2016

Astrology Sitare Hamare Saptahik Rashifal 15 21 August 2016

साप्ताहिक राशिफल - 15-21 अगस्त, 2016

मेष राशि-
सप्ताह का पूर्वार्ध आपके लिए बेहद सकारात्मक रहेगा. शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक प्रफुल्लता बरकरार रहेगी. अभी तक आपके जो भी कार्य अटके पडे थे, वे सभी कार्य अपनो के सहयोग से पूर्णता को प्राप्त होने लगेंगें. इस समय भाग्य का प्रबल साथ-सहयोग मिलने वाला है, फायदा उठायें. हालाँकि जीवन साथी का स्वास्थ्य थोडा कमजोर बना रहेगा और उनसे किंचित वाद-विवाद व मनोमालिन्य की स्थितियाँ यदा-कदा निर्मित होती ही रहेंगीं. समझदारी से काम लें. वाणी पर संयम बनाये रखें. सप्ताहांत में अस्वस्थता का अनुभव करेंगे. संतानों से आपकी अपेक्षाएं पूरी ना होने से आपको झुंझलाहट हो सकती है. साथ ही व्यर्थ की भागदौड भी बनी रहेगी. जीवन साथी से सप्ताह के मध्य में विवाद से मानसिक तनाव संभव. मानसिक एकाग्रता बनाये रखें तो विद्यार्थियों के लिये यह समय मनोवांछित सफलता प्रदान करने वाला सिद्ध होगा. खट्टे पदार्थों का सेवन कदापि ना करें. बाहर के खानपान से बचें.
उपाय -
(1) पीपल के वृक्ष का नित्य धी का दीपक जलाते रहें.
(2) चीढ़ियों के लिए आहार निकालें.
वृष राशि-
सप्ताह की शुरूआत से ही आपका पराक्रम बढा रहेगा. मेहनत करने से पीछे नही हटेंगे. रोजगार में अच्छी सफलता के योग बन रहे हैं, विशेषतः नौकरी पेशा व्यक्तियों के लिये यह समय काफी बढिया रहने वाला है. भ्रमण, मनोरंजन और विलासिता के कारण खर्च की अधिकता बढी रहेगी, जिसकी वजह से सप्ताहांत में बजट असंतुलित हो सकता है. विदेश जाने हेतु प्रयासरत्त जातकों को इस दिशा में यह समय सफलता प्राप्ति के संकेत दर्शा रहा है. सप्ताह के प्रारंभ में आजीविका प्राप्ति के लिहाज से काफी अच्छा रहेगा. जिससे कि बेरोजगार जातकों को यह समय रोजगार दिला पाने में सहायक रहेगा. समय का सदुपयोग करें क्योंकि मानसिक रूप से आप अपने आसपास बहुत सी ऋणात्मक उर्जा का संचय करते जा रहे हैं,जिसके फलस्वरूप आपमें आलस्य और प्रमाद हावी रहेगा.
उपाय -
(1) चींटियों को चावल, शक्कर मिश्रित कर डालते रहें.
(2) सोमवार और शनिवार को शिवलिंग पर जल और सफेद पुष्प चढायें.
मिथुन राशि-
इस सप्ताह का प्रारंभ आपके लिये धनदायक रहने वाला है. अविवाहित जातकों के विवाह हेतु रिश्ते की बात पक्की हो सकती है. कार्य-व्यवसाय में भरपूर सफलता मिलती रहेगी. हालाँकि सप्ताह के मध्य में किसी मूल्यवान वस्तु की चोरी अथवा किसी नजदीकी व्यक्ति से झगडे के कारण तनाव हो सकता है, अतः विशेष तौर पर सावधानी बनाये रखें. सप्ताह के उतरार्ध में घर परिवार में किसी नये सदस्य आगमन की संभावना है. कोई शुभ प्रसंग की खबर मिलेगी. इस समय में आपके खर्चे काफी बढे हुये रहेंगे. भ्रमण मनोरंजन के लिये बाहर जाने का अवसर मिलेगा. कुल मिलाकर आय-व्यय बराबर रहकर यह सप्ताह आपके लिए सुख एवं शांतिपूर्वक व्यतीत होने वाला मिला-जुला सप्ताह है.
उपाय -
(1) रूद्राभिषेक करें और शिव चालीसा का पाठ करते रहें.
(2) जलपूरित घट का दान करें.

कर्क राशि-
सप्ताह के प्रारंभ से ही शरीर में रूग्णता महसूस करेंगे. जो व्यक्ति पहले से ही किसी रोग से पीडित रहे हैं, उनका पुराना रोग पुनः उभर आने की संभावना है. साथ ही स्वयं की माता अथवा घर की किसी बुजुर्ग स्त्री हेतु भी यह समय किंचित कष्टकारक हो रहा है. सप्ताह के उतर्रार्ध में ही रोगादि भय से छुटकारा मिल पाएगा. लेकिन धन, व्यापार एवं व्यवसाय मे किंचित रूकावट अनुभव करेंगे. जीवन साथी से संबंध किंचित तनावपूर्ण रहेंगे लेकिन इष्ट-मित्रों का अच्छा साथ सहयोग मिलता रहेगा. बेरोजगार जातकों को आजीविका पक्ष में मनोनुकूल सफलता प्राप्ति के अति उत्तम योग निर्मित हो रहे है. किसी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में जुटे जातक समय का यथेष्ट लाभ उठा पायेंगें.
उपाय -
(1) गाय को हरा चारा खिलाएं.
(2) श्री गणपति स्तोत्र का नित्य पाठ करें.
सिंह राशि -
सप्ताह के प्रारंभ में मन अनायास खिन्न रहेगा. कोई भी कार्य करने में मन नही लगेगा. बेवजह आलस्य और प्रमाद हावी रहेगा. मन की चंचलता अतिशय बढी हुई रहेगी इस वजह से झुंझलाहट और परेशानी ज्यादा बडेगी. मन-मस्तिष्क में ऋणात्मक भावों की अधिकता रहेगी. अंधविश्वास जैसी कुरीतियों के प्रति रूझान बढेगा. कोर्ट-कचहरी अथवा किसी राजकीय कार्य हेतु धन का वृथा व्यय होने का अंदेशा है. बुधवार के पश्चात् कोई पुराना रूका हुआ धन या बीमे की राशि प्राप्त होने की इस समय प्रबल संभावना है. यदि आपका धन कहीं फंसा हुआ है तो आलस्य एवं संकोच का त्याग कर प्रयास आरम्भ करें, धन मिलने में आसानी रहेगी. यह समय इंजीनियरींग तथा किसी शोधरत्त छात्रों को अपने कार्य में अच्छी सफलता मिलने का है.
उपाय -
(1) शाम के समय पीपल के वृक्ष के नीचे तिल के तेल का दीपक लगायें.
(2) शनि मंत्र का जाप करें।
कन्या राशि -
सप्ताह के प्रारंभ से ही पार्टनर का सुंदर साथ मिलेगा. अभी तक के अटके कार्य अल्प प्रयास से ही संपूर्णता को प्राप्त होंगे. धार्मिक कार्यों में खर्च होगा और मन प्रफुल्लित रहेगा. संतान प्राप्त होने या संतान से सुख प्राप्त होने के प्रबल योग हैं. सप्ताह के मध्य में धन का आगमन सहज होगा. व्यापार व्यवसाय में सफलता प्राप्त होकर आशातीत लाभ प्राप्त होने की संभावना है. लेकिन आपके खर्चे भी उसी अनूरूप बढे हुये रहेंगे. विदेश गमन के इच्छुक व्यक्तियों को आसानी से वीजा प्राप्त होने की संभावना है. इस सप्ताह किए गए प्रयास में सफलता मिलेगी. माँस-मदिरा इत्यादि तामसिक पदार्थों का सेवन न करें, उदर विकार की संभावना है.
उपाय -
(1) मछली को तिल चावल मिश्रित कर खिलायें
(2) पौधों का रोपण करें.

तुला राशि -
सप्ताह के प्रारंभ में शरीर ऊर्जावान रहेगा जिसकी बदौलत आप दुगुने उत्साह से कार्य कर पायेंगे. व्यापार व्यवसाय में आशातीत सफलता प्राप्त होगी. घर परिवार व जीवन साथी से बढिया तालमेल बना रहेगा, घर में शादी-विवाह योग्य सदस्यों के लिये रिश्ते की बात तय हो सकती है. सप्ताह मध्य थोडा सचेत रहें, क्योंकि किसी से लडाई-झगडे के प्रति भी सावधान रहें. व्यर्थ ही किसी से उलझाव की स्थिति न बनने दें. सप्ताह के उतरार्ध में शरीर में आलस्य रहेगा. रिटेल कार्य से संबंधित व्यक्तियों को लाभ में कमी की वजह से मानसिक चिन्ता एवं खिन्नता का शिकार होना पडेगा. भ्रम एवं तनाव मन पर हावी रहेंगी. आलस्य आदि का त्यागकर कार्य में मन लगायें, आहार का संयम और अनिद्रा की स्थिति से बचें.
उपाय -
(1) नित्यप्रति रूद्राभिषेक करें.
(2) गुरू को प्रणाम कर दिन की शुरूआत करें.

वृश्चिक राशि -
सपताह के प्रारंभ से ही शरीर में रुग्णता रहेगी, पुराने रोग कष्ट दे सकते हैं. पुराने लिये कर्ज को चुकाने की भी चिंता रहेगी. यह समय छात्रों के लिये सफलता प्राप्त करने में सहयोगी रहेगा. ननिहाल पक्ष की ओर से किसी सुखद समाचार की प्राप्ति हो सकती है. सप्ताह के उतरार्ध में भाग्य का अच्छा सहयोग मिलेगा. धार्मिक कार्यों में मन लगेगा. लेकिन जीवन साथी से किसी प्रकार की व्यहारिक मतभेद संभव. जो जातक धातु अथवा विधुत संबंधी कार्यों में संलग्न हैं, उनके लिए सप्ताह के मध्य से भरपूर लाभ प्राप्ति हेतु परिस्थितियों का निर्माण हो रहा है. किसी भी तरह का निवेश आपके लिए हितकारी रहेगा.
उपाय -
(1) गौ सेवा करें.
(2) हरे फलो का दान करें.
धनु राशि -
सप्ताह की शुरुआत में मन प्रसन्न और स्वस्थ रहेगा. इस समय में आपको शरीर, बुद्धि और भाग्य का अदभुत सहयोग मिलेगा. यही समय है जिसमें आप अपने सभी पुराने रूके कार्यों को निपटा लें और समय का सदुपयोग करें. संतान की तरफ से साथ-सहयोग मिलता रहेगा. मन की प्रसन्नता भी बरकरार रहेगी. सप्ताह के उतरार्ध में कुछ शारीरिक कष्ट रहेगा, किंतु आपके प्रयास की अनुकूलता लाभ देगी. किसी व्यक्तिविशेष के प्रति अपने मन में चल रहे अविश्वास को समाप्त करने के पूर्ण प्रयास करें. अन्यथा आप किसी महत्वपूर्ण सम्बन्ध को खो देंगें. इस समय पर आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि छोटी छोटी बातों को बडा करके न देखें. माँस-मदिरा इत्यादि तामसिक अभक्ष्य पदार्थों का सेवन न करना ही आपके हित में रहेगा.
उपाय -
(1) मस्तक पर नित्य सफेद चंदन का तिलक लगायें.
(2) सूर्य को अध्र्य देकर सूर्य नमस्कार करें.

मकर राशि -
सप्ताह के प्रारंभ से ही मन चंचल और आशिक मिजाजी में रहेगा. इंटरनेट, मुवी तथा दोस्तों के प्रति विशेष आकर्षण रहेगा. बहुत सोच समझकर कदम बढायें, समय की बर्बादी से असफलता मिल सकती है. यदि मन के अपेक्षा बुद्धि से काम लेंगे तो पुराने चले आ रहे कार्य में सफलता हासिल हो सकती है. यह समय भ्रमण मनोरंजन, आमोद प्रमोद और भोग विलास की सामग्रियां पर खर्च करने में ही व्यतीत होगा. पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें. सप्ताह का उतरार्ध काफी अहम साबित होगा. यदि पूर्व में की गई अपनी गलतियों और लापरवाही को आपने नहीं दोहराया तो आप आगे आने वाले अच्छे समय में इसका निश्चित ही फायदा उठाने में कामयाब रहेंगे. प्रेम प्रसंग, व्यापार कारोबार में सफलता के योग हैं. जीवन साथी से तालमेल मधुर बना रहेगा. जोखिम लेने की प्रवृति पर थोडा संयम रखें. सप्ताह मध्य शेयर बाजार में किसी प्रकार का अल्पकालीक निवेश करने से यथासंभव बचें अन्यथा नुकसान होना निश्चित जानिए.
उपाय -
(1) दुग्ध, शरबत इत्यादि किसी पेय पदार्थ का दान करते रहे.
(2) पक्षियों को चारा डालें.

कुंभ राशि -
सप्ताह का पूर्वार्ध आपके लिए काफी भागदौड वाला रहेगा लेकिन इस भागदौड का समुचित फल आपको प्राप्त होगा. यह समय ज्ञान प्राप्ति में विशेष सहायक रहेगा एवं विद्यार्थियों को मेहनत अनुरूप अच्छी सफलता प्राप्त होने के योग हैं. जो जातक बहुत लम्बी समयावधि से किसी रोगादि का सामना कर रहे हैं, उनके लिए यह समय थोडा कष्टमय वातावरण का निर्माण कर सकता है. अपने खान पान व डाक्टर की सलाह पर अवश्य ध्यान दे. सप्ताह का मध्य भ्रमण-मनोरंजनपूर्वक एवं मित्रादि सहित शांति पूर्वक व्यतीत होगा. प्रेम प्रसंगों में सफलता मिलेगी. किसी विशेष महत्वपूर्ण कार्य हेतु ऋणादि लेने की आवश्यकता पड सकती है. सेहत का विशेष तौर पर ख्याल रखें.
उपाय -
(1) मंगल का व्रत रखें एवं गाय को आहार दें.
(2) विवाद से बचें तथा मंगल के मंत्रजाप करें.
मीन राशि -
सप्ताह के पूर्वार्ध में घर परिवार में कोई शुभ प्रसंग का अवसर आयेगा. आपकी वाणी में काफी ओजस्विता रहेगी जिससे आपके सभी कार्य सहज रूप से बन जायेंगे. धनागमन की अच्छी संभावना है. कार्य रोजगार उत्तम रहेगा. माता के स्वास्थ्य में गिरावट हो सकती है. किसी मित्र की तरफ से कोई अशुभ समाचार प्राप्त हो सकता है. सप्ताह की समाप्ति काफी भागदौड से पूर्ण एवं थका देने वाला रहेगा. क्रोध और चिडचिडापन बढने वाला है, जिस पर संयमपूर्वक काबू रखना आवश्यक है. बुद्धि के उपयोग से सभी कार्य पूर्ण हो सकेंगे. अपना संतुलन ना खोंये. संतान पक्ष की ओर से परेशानी मिलेगी. विद्यार्थियों के लिये समय उत्तम है बशर्तें संयम से मेहनत करते रहें.
उपाय -
(1) श्री भैरव चालीसा का नित्य पाठ करें.
(2) शनिवार का उपवास रखें.

Wednesday 10 August 2016

Pisces monthly horoscope for august 2016

For the natives born under the Sign Pisces, the month of August could pose many difficulties related to business and work. Mars shifting after a long stay in own Sign Scorpio, to fiery Sagittarius, could bring in troubled times for many, particularly those in business. They may have to toil hard to meet their goals and targets. The influence of Venus over the weekend is likely to add to the hardships. Now, there could be disagreements and differences of opinion with your working partner that could slow down progress. It is only in the second week, as Saturn becomes direct in motion that the situation shall ease up a bit. You may be keen to learn and master a few skills in the coming days that may equip you to accept new challenges. However, as a kind of cumulative effect of transiting planets, some problem or the other persists. Business partner may continue to rankle. There is all possibility of work getting severely affected in the coming days. Things come to such a head that you may want to call off the partnership. Many of you may suffer due to lack of communication with an important person that could spoil your prospects for a lucrative venture. Mid-month, professionals too could be harried by the incessant flow of disturbances and distractions. They may not be able to focus and perform effectively here. Married folks may have little peace of mind this month. Crowding of four planets in opposition to your sign does not seem positive for married life. Transit of Saturn and Mars in the tenth House could have adverse effect on the career trajectory of your spouse creating tension at home. As far as health is concerned, you need to be careful. A minor issue, if neglected, could flare up to something major and become troublesome. Chronic problems of middle aged and above could worsen. It is recommended that alternative medicines as it could bring much desired relief. Overall, August appears to be troublesome and difficult, professionally as well as personally.
Health- This month no serious threat to your well-being is foreseen. However, you are to be worried by slow digestion here. Take effective measures to keep your digestive system in order. Avoid eating junk food or street food, stick to home cooked food and eat lots of fruits and vegetables which contain a lot of fiber as it will improve your digestion. Besides, try to do some yoga and breathing exercises to increase your immunity and stamina.
Financial growth- It is advisable that you to handle your money matters with a cool head and due deliberations this month. You are to remain in a strong condition on the financial front. Benefic Planets are to present good opportunity to gain monetarily. However, the opportunity will be fleeting and if you are not alert, it could very well slip out of your hands. Take care that you develop a habit of saving some money on a regular basis, so that when it amounts to something substantial, you can invest it well.This month you will perform well, but ones doing job should not boast about their achievements and ability as well, too often. Businesspersons are to feel kind of low on not being able to make progress as desired. Perhaps a change in marketing strategy is warranted. Professionals will be happy on receiving some new high-worth client, while freelancers may be a bit disappointed at their inability to clinch a lucrative project.
For the natives born under the Sign Pisces, the month of August could pose many difficulties related to business and work. Mars shifting after a long stay in own Sign Scorpio, to fiery Sagittarius, could bring in troubled times for many, particularly those in business. They may have to toil hard to meet their goals and targets. The influence of Venus over the weekend is likely to add to the hardships. Now, there could be disagreements and differences of opinion with your working partner that could slow down progress. It is only in the second week, as Saturn becomes direct in motion that the situation shall ease up a bit. You may be keen to learn and master a few skills in the coming days that may equip you to accept new challenges. However, as a kind of cumulative effect of transiting planets, some problem or the other persists. Business partner may continue to rankle. There is all possibility of work getting severely affected in the coming days. Things come to such a head that you may want to call off the partnership. Many of you may suffer due to lack of communication with an important person that could spoil your prospects for a lucrative venture. Mid-month, professionals too could be harried by the incessant flow of disturbances and distractions. They may not be able to focus and perform effectively here. Married folks may have little peace of mind this month. Crowding of four planets in opposition to your sign does not seem positive for married life. Transit of Saturn and Mars in the tenth House could have adverse effect on the career trajectory of your spouse creating tension at home. As far as health is concerned, you need to be careful. A minor issue, if neglected, could flare up to something major and become troublesome. Chronic problems of middle aged and above could worsen. It is recommended that alternative medicines as it could bring much desired relief. Overall, August appears to be troublesome and difficult, professionally as well as personally.
Health- This month no serious threat to your well-being is foreseen. However, you are to be worried by slow digestion here. Take effective measures to keep your digestive system in order. Avoid eating junk food or street food, stick to home cooked food and eat lots of fruits and vegetables which contain a lot of fiber as it will improve your digestion. Besides, try to do some yoga and breathing exercises to increase your immunity and stamina.
Financial growth- It is advisable that you to handle your money matters with a cool head and due deliberations this month. You are to remain in a strong condition on the financial front. Benefic Planets are to present good opportunity to gain monetarily. However, the opportunity will be fleeting and if you are not alert, it could very well slip out of your hands. Take care that you develop a habit of saving some money on a regular basis, so that when it amounts to something substantial, you can invest it well.This month you will perform well, but ones doing job should not boast about their achievements and ability as well, too often. Businesspersons are to feel kind of low on not being able to make progress as desired. Perhaps a change in marketing strategy is warranted. Professionals will be happy on receiving some new high-worth client, while freelancers may be a bit disappointed at their inability to clinch a lucrative project.

Aquarius monthly horoscope for august 2016

A month of mixed fortunes and myriad ups and downs awaits you. You may not be your high-performing self, given the adverse influence of planets. There may be health issues to deal with. Saturn’s continuing transit, anyway, makes things tough for you. Add to it the not-so-favourable movements of other planets, and things may get a bit rocky. You could also be tense and agitated. Relax! Let this pass, and until then, just focus on staying put. On the positive side, you will gain money, over and above your regular income. In the second week too, you may feel somewhat dejected, a nagging feeling crowding, clouding your mind. You may not be able think clearly, and may keep feeling that fortune is not favouring you. Singles may feel frustrated on not being able to make much headway in a desired relationship. Those married will be depressed about the indifferent attitude of their spouse. Thankfully, as the ruler of your Sign Saturn becomes direct, happier times seem round the corner. By mid-month, planetary positions shall relent, helping working professionals breather easy, while aiding freshers find a suitable job. Those in business may not gain here, though. However, in the coming days, positive influence of Jupiter will strengthen your financial position. You could be keen to experiment with new ideas to move ahead. Some sort of strife may surface in a meaningful relationship, though, which you may find difficult to resolve. At the beginning of the fourth week, you could enjoy socializing, partying and making important contacts. This should refresh you substantially. Around 24th-25th, you may again be feeling down. Refrain from any fresh investments. As the month draws to a close, the simmering difference in marriage may lead to open tiffs. Be polite, lest you repent later! Job holders could face hurdles in routine work. Later, Mercury turns retrograde in its own Sign Virgo. Now is the time to review past decisions and locate weaknesses in your working method.
Health- The Planetary configurations here do not bode well for you on the health front. Influence of Saturn over the Sun does not present a bright picture about your health this month. You may fall prey to some viral kind of infection and may need to be hospitalized for a couple of days. Take preventive measures in the very initial stage to keep things under control. Besides, disorder in digestive system may worry you. Take care that you have only nutritious food, and cut out all junk food.
Financial growth- Planets here indicate that you should refrain from taking decision about major financial involvement. No major noticeable monetary gains are to accrue. No major unexpected expenses to upset your financial planning. You are to manage your routine incidental expenses comfortably.It is advisesable you to keep an eye out for opportunities to earn extra money. This will help you set aside a good chunk of money for investing in long-term securities.This month, Venus shifts into own Sign, good at balancing, Libra, ninth from your Sign. Expect lady luck to support your cause now. Same day, Mercury turns retrograde, in own Sign Virgo. Now is the time to look back to review decisions taken earlier and identify your mistakes. Good times for ones employed to clear pending task and clear the desk. Clearly, this is a time for indulging in some intense introspection.

Capricon monthly horoscope for august 2016

Time to balance your personal and professional lives. On 1st and 2nd, love and happiness shall be strong in your marriage. These will be great days, provided you refuse to be stuck and broody. The prompt compliance to all your needs by your partner shall make you elated. In this week itself, Mercury joins Jupiter in Virgo, which should be a helpful planetary movement. Utilise this time to your advantage, and maximise your gains. On the 9th, Moon’s transit through Libra will help you strike balance in many aspects of your life. Those in business will have enough time now to implement their developmental work. The new fortnight could begin with some serious introspection. As you evaluate your performance, you may feel depressed and frustrated. You may also feel that you have not got the right exposure to match your potential and abilities. For love matters, though, this time remains good. Singles could enjoy cosy moments with a new found love. However, things may be a little damp in the marital realm. There is only a little bit of romance between married couples. Some health issue could hold you back from enjoying sensual pleasures fully. What’s more, bad health could also interfere with your day-to-day working. The fourth week could get you busy with domestic matters, but it will also bring forth an opportunity to strengthen your finances. But, as always, your fortunes may keep fluctuating. Remain motivated and do your best. Influence of Saturn still looks inauspicious for health. By the month end, married folks should have something to cheer. On 31st, Venus enters Libra, and this will herald a good time for you. New opportunities may surface. But, there’s a hitch – on the same day, Mercury turns retrograde. Watch your words, as you run a risk of coming across as too blunt.
Health- Planets will not look too kindly on you this month as far as your health is concerned. Influence of Saturn over Sun does not spell well for remaining in good health. Some long lasting health issue can catch up with you, and cause a great deal of anxiety, so try to look for some alternative therapy to cure the ailment once and for all. Remain watchful about signals manifested in your body about which warn you about impending health issues. Do some light exercises to stay fit.
Financial growth- A cluster of Planets in the ninth House is likely to give kind of new direction to you to work and also strengthen your position on financial front. Encouraging returns from investment made earlier is to lift spirits. This period here does not seem supportive for making fresh investments. Park your surplus funds in a safe avenue. Do not under any circumstances blow up your surplus funds on unnecessary things.Do not get deterred by fluctuation in fortune and remain motivated to do your best, in whichever field you are working. Businesspersons and professionals are to be favored by Planets to make faster progress. Ones doing job are likely to get good exposure to manifest your inherent ability. Freelancers will be happy with the work flow. All in all, a favorable phase for businessmen and professionals alike.

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Tuesday 9 August 2016

Sagittarius monthly horoscope for august 2016

In the month of August, the natives of the Sign Sagittarius could be engaged with spirituality and financial matters. What could come handy in the coming weeks is their inherent traits of being optimistic and carefree, even in the face of opposition and odds. As trouble and hardships unfold at the beginning, with the presence of Mars and two strong planets transiting through your sign, many of you cool Sagittarians could be plodding along without a trace of worry. Maybe, it is spirituality and pious thoughts that may give you strength here. Anyway, you stand a good chance to move ahead in this direction, going by planetary indications. With your monetary gains being unsatisfactory at the moment, soothing thoughts and sentiments will provide you relief. As it is, natives of your Sign have an inclination to seek solace in spirituality, when things are not moving as desired. Financially, you could get stability by the middle of August. With Saturn becoming direct in motion, financial matters may start looking up. You shall organise your assets and shuffle your financial portfolio, so that you get better returns. The congregation of Venus, Mercury, Mars and Saturn shall further strengthen your financial status. Businessmen and professionals may find themselves better placed to successfully negotiate high worth deals. This appears to be a happy phase for them. They could probably toy with the idea of turning their dreams into reality now. Nearing the end of August, Saturn might have strong bearing on your fortune. It could help you identify the right direction to progress. Those employed could be entrusted with additional responsibilities for which you might be supported by Venus and Mercury. There is also romance lined up for many in August. Those who are single might be favoured by the current planetary position to forge romantic alliance. It is advisable that this does not seem like a good phase to push for physical intimacy. Overall, August looks like a good month sprinkled with piety, progress and supportive planetary positions.
Health- A delicate time is indicated by the Planets this month on the health front. Mars in your Sign is likely to work well in keeping your immune system strong. Ones having pain in joints need to eat fruits and vegetables with high calcium content. Remain careful about health here for now. Also, be very careful while indulging in physical activities, such as driving or climbing up or down the stairs. Also, be careful while using sharp instruments.
Financial Growth- The Planets here bode well for you on the financial front this month. Now with Saturn having become direct in motion, you have good time to put matters related to finance in order. Now is a good time to shuffle your financial portfolio in a manner that you benefit more. Venus and Mercury transiting through Virgo, 10th from your Sign, are to help you to pick the right one to benefit from. However,you not to take any undue risks.The stars will favor both businessmen and professionals. Mars and Saturn transiting through your Sign is a right recipe for result-oriented actions. Businesspersons and professionals are to find themselves better placed to successfully negotiate a lucrative deal. Short-term travel is to bear encouraging results for them. If employed, you are to be entrusted with some additional responsibility and a complex task to handle, and if you do it well, it will raise your professional prestige.

Scorpio monthly horoscope for august 2016

In the month of August, the natives of the Zodiac Sign Scorpio may be concerned primarily with money matters and relationships. Several crucial planetary transits happening this month are likely to affect your fortune; while some could bring cheer, others caution. To begin with, there is Moon transiting through own sign watery Cancer in the ninth House related to fortune in general. Under its influence, businessmen and professionals should be able to negotiate a big deal. However, with both Mars and Saturn transiting through the second House, indicative of finances, you need to be careful during this phase. Similarly, Moon affects the ebb and flow of destiny as it changes positions. While transiting through the twelfth House it could induce you to earn money fast, but as it gets debilitated, it could throw up roadblocks for earning. For job holders there is rigorous schedule in store at this moment. Mid-month too you may need to be careful about money matters. Do not make any major commitments without thoroughly studying all implications. On the fourth Tuesday, Sun comes out of own Sign Leo to enter an earthly sign Virgo. Now five planets are transiting through Virgo. This shall lead to some financial gains. As far as relationships are concerned, they may not be forged as desired at the beginning of the month. A debilitated Venus cautions against new friendship, particularly with someone of the opposite sex. Singles eager to enjoy intimate moments may not have their wish fulfilled. Many of you could be stressed about unrest in the family now. Do not ignore family needs and requirements. Also, refrain from getting sarcastic or critical about family members. Married couples may not get much happiness this month. Your partner could be submerged in work and might not get enough time to attend to anything else. Around Wednesday, in the fifth week, Venus comes out of its sign of debilitation. This will help you cool down and enjoy life as it comes. Overall, a month of mixed bag: some phases appear good, while others may be ordinary.
Health- No major worries this month here. In regard to health, minor issues such as common cold and cough are likely to worry you. No major health issue is to crop up to cause you any great worry. You are to enjoy good general health here. However,it is advised you not to take good health for granted, and streamline your lifestyle, have a healthy diet and exercise regularly. Give addictions, if any, immediately.
Financial growth-On the monetary front, the Planets are likely to favour you much. However, with two Planets of contrasting nature transiting through the second House, indicative of financial issues, handle matters related to finance very carefully. Deliberate well enough before making any major commitment in money matters. Try to inculcate a habit of saving regularly and as much as you can, and then invest it wisely in long-term securities.This phase is good for businesspersons and professionals alike. Businesspersons doing business with government controlled institutions, particularly, are to have a gainful time here. You are likely to develop a meaningful relationship with a very influential person, who can help you spread your business far and wide. This is to go a long way in enhancing your prospects in general. Professionals may be overloaded with work, but some hard work will see you through.