गल में एक पेड़ के नीचे एक वृद्ध गुरु अपने युवा शिष्य के साथ बैठा था। चारों ओर घास का मैदान था। इसमें सैकड़ों सफेद गुलाब के फूल खिले थे। युवक कुंवारा था और अक्सर गुरु के पास सत्संग के लिए आता रहता था। अध्यात्म और धर्म की बातें चल रही थी तभी चर्चा के बीच अचानक युवक ने विषय बदल दिया और गुरु से पूछा- ''गुरूजी, मेरा अध्ययन पूरा हो चुका है। मैंने अपने पिता का व्यवसाय संभाल लिया है और इन दिनों मेरे विवाह की बात भी चल रही है। लेकिन कई युवतियों को देखकर भी मैं अपने लिए कोई योग्य जीवन साथी नहीं तलाश सका। आप बताएं कि मैं क्या करूं?
गुरुजी बोले- ''बेटा, तुम एक काम करो। मैदान में अंतिम छोर तक एक चक्कर लगाओ। जो गुलाब का फूल तुम्हें सबसे खुबसूरत लगे, वह मेरे लिए तोड़कर ले आओ। बस एक शर्त है कि आगे बढ़ा कदम पीछे नहीं मुडऩा चाहिए। युवक गया और थोड़ी देर बाद, खाली हाथ लौट आया। गुरु ने पूछा- ''तुम कोई फूल नहीं लाए?
शिष्य ने जवाब दिया- ''गुरु जी, मैं एक के बाद एक फूल देखता आगे बढ़ा। जब कोई सुंदर फूल देख उसे तोडऩे के लिए झुकता तो मेरे मन में यह ख्याल आता कि हो सकता है आगे इससे भी बेहतर फूल हो। मैदान के अंत में मुझे कुछ सुंदर फूल दिखे भी, लेकिन पास जाकर देखा तो वे मुरझाए हुए थे। उन्हें लाने की मेरी इच्छा ही न हुई। इसलिए मुझे खाली हाथ लौट आना पड़ा।
गुरु ने कहा- ''बेटा, जिंदगी भी ऐसी ही है। यदि सबसे योग्य ढूंढने में लगे रहोगे तो अंत में तुम्हारे हाथ मुरझाए फूल भी नहीं आएंगे। युवक गुरु का संकेत समझ गया।
Pt.P.S Tripathi
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