Tuesday 14 April 2015

केशान्त संस्कार


हिन्दू धर्म के अनुसार सभी व्यक्तियों के लिए 16संस्कार बहुत महत्व रखते हैं। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। गुरु शंकराचार्य के अनुसार ''संस्कारों हि नाम संस्कार्यस्य गुणाधानेन वा स्याद्दोषापनयनेन वा अर्थात मानव को गुणों से युक्त करने तथा उसके दोषों को दूर करने के लिए जो कर्म किया जाता है, उसे ही संस्कार कहते हैं। इन संस्कारों के बिना एक मानव के जीवन में और किसी अन्य जीव के जीवन में विशेष अंतर नहीं है। ये संस्कार व्यक्ति के दोषों को खत्म कर उसे गुण युक्त बनाते हैं।
सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिये संस्कारों का आविष्कार किया। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है।
केशान्तकर्मणा तत्र यथोक्त-चरितव्रत:।
शास्त्रों में वर्णित सोलह संस्कारों में एक संस्कार है केशान्त संस्कार। केशान्त संस्कार को गोदान संस्कार भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म संस्कारों में केशान्त संस्कार एकादश संस्कार है।
बालक का प्रथम मुंण्डन प्राय: पहले या तीसरे वर्ष में हो जाता है। यह बात पहले ही कही जा चुकी है। प्रथम मुंण्डन का प्रयोजन केवल गर्भ के केशमात्र दूर करना होता है।
उसके बाद इस केशान्त संस्कार में भी मुंडन करना होता है। जिससे बालक वेदारम्भ तथा क्रिया-कर्मों के लिए अधिकारी बन सके अर्थात वेद-वेदान्तों के पढऩे तथा यज्ञादिक कार्यों में भाग ले सके। इसलिए कहा भी है कि शास्त्रोक्त विधि से भली-भाँति व्रत का आचरण करने वाला ब्रह्मचारी इस केशान्त-संस्कार में सिर के केशों को को कटवाता है।
बालक जब 16वर्ष का हो जाता है तब यह संस्कार किया जाता है। वास्तव में यह संस्कार गुरूकुल में वेदाध्ययन पूर्ण करने के पश्चात सम्पन्न किया जाता था। इस संस्कार में छात्र दाढ़ी बनाते थे उसके पश्चात पवित्र जल में स्नान करते थे। इन क्रियाओं के बाद छात्रों को स्नातक की उपाधि दी जाती थी एवं उन्हें गृहस्थ आश्रम में प्रवेश की आज्ञा दी जाती थी।
इस संस्कार में दाढ़ी बनाने के पश्चात उन बालों को या तो गाय के गोबर में मिला दिया जाता था या गौशाला में गढ्ठा खोदकर दबा दिया जाता था अथवा किसी नदी में प्रवाहित कर दिया जाता था। इस प्रकार की क्रिया इसलिए की जाती थी ताकि कोई तांत्रिक उन बालों पर अपनी तान्त्रिक क्रिया के द्वारा उसे नुकसान न पहुंचा सके। इस संस्कार के बाद गुरू को गाय दान दिया जाता था। यह संस्कार शुभ मुहुर्त देखकर आयोजित किया जाता था। गुरुकुल में वेदाध्ययन पूर्ण कर लेने पर आचार्य के समक्ष यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था। वस्तुत: यह संस्कार गुरुकुल से विदाई लेने तथा गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का उपक्रम है। वेद-पुराणों एवं विभिन्न विषयों में पारंगत होने के बाद ब्रह्मचारी के समावर्तन संस्कार के पूर्व बालों की सफाई की जाती थी तथा उसे स्नान कराकर स्नातक की उपाधि दी जाती थी। केशान्त संस्कार शुभ मुहूर्त में किया जाता था।
मुहुर्त का आंकलन :
केशान्त संस्कार उस मुहुर्त में किया जाता था जिसमें स्वाती, पुनर्वसु, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, मृगशिरा, रेवती, चित्रा और ज्येष्ठा में से कोई नक्षत्र मौजूद होता। इन नक्षत्रों में से किसी नक्षत्र की मौजूदगी में यह संस्कार आयोजित किया जाता था। आप भी इस संस्कार के लिए इन नियमों को अपना सकते हैं।
तिथि:
द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथि को इस संस्कार हेतु उपयुक्त तिथि माना जाता था आज भी छात्र उपरोक्त नक्षत्र और तिथि का ध्यान करते हुए वार और लग्न को दखते हुए पहली बार दाढ़ी बनाएं तो उनके लिए शुभ होगा।
वार:
वार के रूप में इस संस्कार के लिए सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को शुभ माना गया है।
लग्न :
केशान्त संस्कार के लिए मुहुर्त देखते समय लग्न का विचार करना भी बहुत आवश्यक होता था। इस संस्कार के लिए शुभ लग्न तब माना जाता था जबकि जन्म राशि और जन्म राशि से अष्टम राशि के लग्न नहीं हों, अर्थात इस संस्कार के लिए सभी लग्न शुभ माने जाते थे सिर्फ जन्म राशि और उससे आठवीं राशि के लग्न का त्याग किया जाता था।
निषेध:
इस संस्कार के लिए चन्द्र एवं तारा शुद्धि का विचार करना आवश्यक होता था। चतुर्थ, अष्टम एवं द्वादश का चन्द्र होने पर चन्द्र दोष होता है अत: इनका त्याग किया जाता था। तृतीय, पंचम एवं सप्तम का तारा भी दोषपूर्ण होता था अत: इनका भी त्याग किया जाता था।

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