भय का त्याग जरुरी..यद्यपि यह मानवीय स्वाभाव का अंग है...आहार निद्रा भय मैथुनं च सर्वेषाम प्राणीनाह समाःयह तीन बात सभी जीवों में सामान रूप से पाई जाती है....एक बार की बात है कि ईसा मसीह अपने कुछ शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें तीन दुबले-पतले व्यक्ति दिखाई दिए। ईसा ने उनसे प्रश्न किया, 'तुम्हारी यह शारीरिक हालत कैसे हो गई?'
उन्होंने उत्तर दिया- आग के डर से।
ईसा मसीह बोले, बड़े अचरज की बात है कि तुम प्रभु द्वारा उत्पन्न की गई वस्तु से डरते हो। उन्होंने कहा कि परमात्मा डरनेवालों को बचाता जरूर है, बशर्ते डरना छोड़ दो और बेहिचक उसकी आराधना करो। ईसा मसीह मार्ग में जब आगे बढ़े तो उन्हें तीन व्यक्ति और दिखाई दिए, जो पहले मिले तीन व्यक्तियों से भी अधिक दुबले थे और उनके चेहरे भी पीले पड़ गए थे। ईसा मसीह ने उनसे भी उनकी इस दयनीय दशा का कारण पूछा।
उन तीनों ने जवाब दिया कि स्वर्ग की कामना रखने के कारण हमारी यह दशा हुई है। ईसा बोले, भगवान का भजन-पूजन जारी रखो। वह तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी करेगा, क्योंकि तुम उसके द्वारा निर्मित वस्तु की इच्छा कर रहे हो।
आगे चलने पर उन्हें तीन और दुर्बल व्यक्ति दिखे, लेकिन उनके चेहरे उन्हें दीप्तिमान दिखाई दिए।ईसा मसीह ने पूछा, क्यों भाई, तुम्हें किस बात का भय है, जो तुमने अपनी ऐसी हालत बना रखी है?
उन्होंने उत्तर दिया, 'प्रभु के प्रति प्रेम के कारण हमारी यह हालत हुई है।'
ईसा मसीह बोले, 'तुम लोग तो उसके निकट हो, बहुत ही निकट। तुम्हें तो ईश्वर की प्राप्ति अवश्य ही होगी।
तुम सिर्फ इतना करो कि भयभीत होना छोड़ दो, क्योंकि जो भयभीत होकर ईश्वर की भक्ति करता है, उसमें निराशा और असहायता के भाव उत्पन्न होते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति की भक्ति से विमुख हो जाने की आशंका उत्पन्न होती है। इसलिए परमात्मा को प्राप्त करने के लिए भय का त्याग करना ही उचित है।
Pt.P.S.Tripathi
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