Tuesday, 14 April 2015

महाशिवरात्रि


महाशिवरात्रि हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है। हमारे समाज में अधिकतर हिंदू भगवान शिव के उपासक हैं, इसलिए वे महाशिवरात्रि पर्व को काफी उत्साह के साथ मनाते हैं। हरिद्वार में हो रहे कुंभ मेले पर शाही स्नान इसी दिन शुरू हुआ था और प्रयाग में माघ मेले और कुंभ मेले का समापन महाशिवरात्रि के स्नान के बाद ही होता है। महाशिवरात्रि के पर्व पर शिवालयों में महिलाओं और पुरुषों की काफी भीड़ होती है। लोग शिवलिंग पर बेल की पत्तियाँ चढ़ाते हैं, गंगाजल से या दूध से स्नान कराते हैं। भक्तगण 'ओम नम: शिवाय का पाठ करते हैं और चारों तरफ 'हर-हर महादेव के जयकारे सुनाई पड़ते हैं। मन्दिरों के परिसर घंटे-घडिय़ालों की आवाज से गूंज उठते हैं। अधिकांश लोग शिवजी को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखते हैं। भगवान शिव के उपासक काँवडिय़े गंगाजल लेकर भोलेनाथ का अभिषेक करने के लिए निकल पड़ते हैं।
महाशिवरात्रि भगवान शिव के सबसे महत्वपूर्ण पर्व के रूप में सर्वमान्य है। फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को यह पर्व हर वर्ष मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान भोलेनाथ कालेश्वर के रूप में प्रकट हुए थे। महाकालेश्वर भगवान शिव की वह शक्ति है जो सृष्टि का समापन करती है। महादेव शिव जब तांडव नृत्य करते हैं तो पूरा ब्रह्माण्ड विखडिंत होने लगता है। इसलिए इसे महाशिवरात्रि की कालरात्रि भी कहा गया है।
भगवान शिव की वेशभूषा विचित्र मानी जाती है। महादेव अपने शरीर पर चिता की भस्म लगाते हैं, गले में रुद्राक्ष धारण करते हैं और नन्दी बैल की सवारी करते हैं। भूत-प्रेत-निशाचर उनके अनुचर माने जाते हैं। ऐसा वीभत्स रूप धारण करने के उपरांत भी उन्हें मंगलकारी माना जाता है जो अपने भक्त की पल भर की उपासना से ही प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी मदद करने के लिए दौड़े चले आते हैं। इसीलिए उन्हें आशुतोष भी कहा गया है। भगवान शंकर अपने भक्तों के न सिर्फ कष्ट दूर करते हैं बल्कि उन्हें श्री और संपत्ति भी प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि की कथा में उनके इसी दयालु और कृपालु स्वभाव का वर्णन किया गया है।
महाशिवरात्रि पर्व को और भी कई रूपों में जाना जाता है। कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन से ही होली पर्व की शुरुआत हो जाती है। महादेव को रंग चढ़ाने के बाद ही होलिका का रंग चढऩा शुरू होता है। बहुत से लोग ईख या बेर भी तब तक नहीं खाते जब तक महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को अर्पित न कर दें। प्रत्येक राज्य में शिव पूजा उत्सव को मनाने के भिन्न-भिन्न तरीके हैं लेकिन सामान्य रूप से शिव पूजा में भांग-धतूरा-गांजा और बेल ही चढ़ाया जाता है। जहाँ भी ज्योतिर्लिंग हैं, वहाँ पर भस्म आरती, रुद्राभिषेक और जलाभिषेक कर भगवान शिव का पूजन किया जाता है।
सागर-मंथन के दौरान जब समुद्र से विष उत्पन्न हुआ था तो मानव जाति के कल्याण के लिए महादेव ने विषपान कर लिया था। विष उनके कंठ में आज भी ठहरा हुआ है, इसीलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा गया है। कुछ लोगों का मानना है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शंकर जी का विवाह पार्वती जी से हुआ था, उनकी बरात निकली थी। वास्तव में महाशिवरात्रि का पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की याद दिलाता है। महाशिवरात्रि के दिन व्रत धारण करने से सभी पापों का नाश होता है और मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति भी नियंत्रित होती है। निरीह लोगों के प्रति दयाभाव उपजता है। ईशान संहिता में इसकी महत्ता का उल्लेख इस प्रकार है-
शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनत्।
चाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं।।
कृष्ण चतुर्दशी के दिन इस पर्व का महत्व इसलिए अधिक फलदाई हो जाता है क्योंकि चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने आती है परंतु फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्यदेव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा इसी दिन से ऋतु परिवर्तन की भी शुरुआत हो जाती है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चन्द्रमा अपनी सबसे कमजोर अवस्था में पहुँच जाता है जिससे मानसिक संताप उत्पन्न हो जाता है। चूँकि चन्द्रमा शिवजी के मस्तक पर सुशोभित है इसलिए चन्द्रमा की कृपा प्राप्त करने के लिए शिवजी की आराधना की जाती है। इससे मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
हिन्दुओं के दो सम्प्रदाय माने गए हैं। एक शैव और दूसरा वैष्णव। अन्य सारे सम्प्रदाय इन्हीं के अन्तर्गत माने जाते हैं। नामपंथी, शांतपंथी या आदिगुरु शंकाराचार्य के दशनामी सम्प्रदाय, सभी शैव सम्प्रदाय के अन्तर्गत आते हैं। भारत में शैव सम्प्रदाय की सैकड़ों शाखाएँ हैं। यह विशाल वट वृक्ष की तरह संपूर्ण भारत में फैला हुआ है। वर्ष में 365 दिन होते हैं और लगभग इतनी ही रात्रियाँ भी। इनमें से कुछ चुनिंदा रात्रियाँ ही होती हैं जिनका कुछ महत्व होता है। उन चुनिंदा रात्रियों में से महाशिवरात्रि ऐसी रात्रि है जिसका महत्व सबसे अधिक है। यह भी माना जाता है कि इसी रात्रि में भगवान शंकर का रुद्र के रूप में अवतार हुआ था।
महाशिवरात्रि पर उपवास का भी अपना विशेष महत्व है। उपवास का अर्थ होता है भगवान का वास। उपवास का अर्थ भूखा रहना या निराहार रहना नहीं है। आराध्य देव को मन में बसा कर किसी उद्देश्य को लेकर इनकी पूजा करना भी उपवास रहना है। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन पवित्र होकर शिव को मन में बसाना भी उपवास है। कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए भगवान शंकर का आशीर्वाद ग्रहण करने का भक्तों के समक्ष शानदार अवसर होता है।
महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण की भी महत्ता है। कुछ संतों का कहना है कि रात भर जागना जागरण नहीं है बल्कि पाँचों इंद्रियों की वजह से आत्मा पर जो बेहोशी या विकार छा गया है, उसके प्रति जागृत होना ही जागरण है। यंत्रवत जीने को छोड़कर अर्थात् तन्द्रा को तोड़कर चेतना को शिव के एक तंत्र में लाना ही महाशिवरात्रि का संदेश है।
नंदी के बिना महादेव
अधिकतर शिवालयों में शिवलिंग के साथ नंदी की मूर्ति जरूर मिलेगी। लेकिन नासिक शहर के पंचवटी इलाके में गोदावरी तट के पास कपालेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग के साथ नंदी की मूर्ति नहीं है। यह देश का पहला ऐसा मंदिर है और यही इसकी विशेषता है। यहाँ पर नंदी के अभाव की रोचक कहानी है। कहते हैं कि एक दिन भरी सभा में ब्रह्मा जी और शंकर जी में विवाद हो गया। उस समय ब्रह्मा के पाँच मुख थे। चार मुख वेदोच्चारण करते थे और पाँचवा मुख सिर्फ निंदा करता था। उसकी निंदा से क्षुब्ध शंकर जी ने अपनी तलवार से उस मुख को काट डाला।
इस घटना के बाद शंकर जी पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शंकर जी ब्रह्मांड में विचरते रहे। जब वह सोमेश्वर में थे तो उन्होंने देखा कि एक ब्राह्मण एक बछड़े की नाक में जंजीर डाल रहा है। गुस्से में बछड़ा ब्राह्मण पर हमला करने चला तो गाय ने समझाया कि ब्राह्मण को मारने से ब्रह्म हत्या का पाप लग जाएगा और उससे मुक्ति पाना आसान नहीं है। बछड़े ने कहा कि उसे पाप से मुक्ति का रास्ता मालूम है। यह कहकर उसने ब्राह्मण को मार डाला। ब्रह्म हत्या से बछड़े के अंग काले पड़ गए तो वह गोदावरी नदी के रामकुंड में पहुँचा। उसने वहाँ पर स्नान किया। उस स्नान से ब्रह्म हत्या के पाप का क्षालन हो गया और उसको अपना सफेद रंग वापस मिल गया।
शंकर जी ने भी उस कुंड में स्नान किया और ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो गए। इसी गोदावरी नदी के पास एक टेकरी है, शंकर जी वहाँ पर चले गए। उन्हें वहाँ जाते देख बछड़ा (नंदी) भी वहाँ पर पहुँच गया। शंकर जी ने उस नंदी को अपने सामने बैठने से मना कर दिया क्योंकि ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दिलाने वाले नंदी को उन्होंने अपना गुरु मान लिया था।

Pt.P.S Tripathi
Mobile no-9893363928,9424225005
Landline no-0771-4035992,4050500

Feel Free to ask any questions in


No comments: