Saturday 21 May 2016

भक्ति से प्रसन्न होने वाली सप्तमं देवी -काल रात्रि -

मॉ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रम्हाण्ड के सदृष गोल हैं। इनके विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वास-प्रष्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएॅ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ अर्थात् गदहा है। इनकी चार भुजाओं में से दाहिने ओर के उपर की भुजा में वरमुद्रा तथा नीचे की भुजा अभयमुद्रा में है। बायीं ओर की उपर की भुजा में लोहे का कॉटा और नीचे की भुजा में खड्ग है। इनका यह रूप अत्यंत भयानक है किंतु ये सदैव शुभ फल देने वाली हैं अतः इनका एक नाम शुभंकरी भी है।
काल अर्थात ‘समय’ व समय का निर्णय बुद्धि ही करती है। रात्रि अर्थात शून्य या अंधकार। अंधकार काल का संचार करता है। तमस, बुद्धि रूपी प्रकाश से तिरोहित होता है। माँ कालरात्रि पूर्ण रूप में दिगम्बरा है, काला रंग मानों सभी कुछ अपने में विलय करने की शक्ति का परिचायक है। सृष्टि का विलय व सहांरात्मक शक्ति स्वरूपिणी मां काल रात्रि विवेक व बोध रूपी भक्ति से प्रसन्न होती है। समस्त जड़ता, अज्ञान तमस रूपी अंधकार का नाश करती है।

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