Saturday 21 May 2016

हिंदू नववर्ष और प्रथमं शैलपुत्री

हिन्दू नव वर्ष का आरम्भ हो रहा है जो कि चौत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ब्रह्मा पुराण के अनुसार सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन हुआ था। इसी दिन से ही काल गणना का प्रारम्भ हुआ। इस दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने जगत की रचना प्रारंभ की। इस वर्ष हिदू नव वर्ष अर्थात विक्रम संवत्सर २०७3 श्रीसंवत् नामक संवत्सर अंग्रेजी के 08 अप्रेल 2016 से प्रारंभ हो रहा है।
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
प्रथम दुर्गा शैलपुत्री- देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में श्शैलपुत्रीः के नाम से जानी जाती हैं। शैलराज हिमालय की कन्या ( पुत्री ) होने के कारण नवदुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप श्शैलपुत्रीः कहलाया है। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में प्रथम नवरात्र के दिन होती है। इसके एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। यह नंदी नामक वृषभ पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिवा का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी हैं। शैलपुत्री के अधीन वे समस्त भक्तगण आते हैं , जो योग साधना तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं। जम्मू - कश्मीर से लेकर हिमांचल पूर्वांचल नेपाल और पूर्वोत्तर पर्वतों में शैलपुत्री का वर्चस्व रहता है। आज भी भारत के उत्तरी प्रांतों में जहां-जहां भी हल्की और दुर्गम स्थली की आबादी है, वहां पर शैलपुत्री के मंदिरों की पहले स्थापना की जाती है, उसके बाद वह स्थान हमेशा के लिए सुरक्षित मान लिया जाता है ! कुछ अंतराल के बाद बीहड़ से बीहड़ स्थान भी शैलपुत्री की स्थापना के बाद एक सम्पन्न स्थल बल जाता है।
मंत्र - या देवी सर्वभूतेषु प्रकृति रूपेण संस्थिताः नमस्तसयै, नमस्तसयै, नमस्तसयै नमो नमः

No comments: