Tuesday, 14 April 2015

घर के सामने बगीचा वास्तु की नज़र से


वास्तु ऐसा माध्यम है जिससे आप जान सकते हैं कि किस प्रकार आप अपने घर को सुखी व समृद्धशाली बना सकते हैं। नीचे वास्तु सम्मत ऐसी ही जानकारी दी गई है जो आपके लिए उपयोगी होगी-
1- ऐसे मकान जिनके सामने एक बगीचा हो, भले ही वह छोटा हो, अच्छे माने जाते हैं, जिनके दरवाजे सीधे सड़क की ओर खुलते हों क्योंकि बगीचे का क्षेत्र प्राण के वेग के लिए अनुकूल माना जाता है। घर के सामने बगीचे में ऐसा पेड़ नहीं होना चाहिए, जो घर से ऊंचा हो।
2- वास्तु नियम के अनुसार हर दो घरों के बीच खाली जगह होना चाहिए। हालांकि भीड़भाड़ वाले शहर में कतारबद्ध मकान बनाना किफायती होता है लेकिन वास्तु के नियमों के अनुसार यह नुकसानदेय होता है क्योंकि यह प्रकाश, हवा और ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के आगमन को रोकता है।
3- आमतौर पर उत्तर दिशा की ओर मुंह वाले कतारबद्ध घरों में तमाम अच्छे प्रभाव प्राप्त होते हैं जबकि दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाले मकान बुरे प्रभावों को बुलावा देते हैं। हालांकि पूर्व और पश्चिम की ओर मुंह वाले कतारबद्ध मकान अनुकूल स्थिति में माने जाते हैं क्योंकि पश्चिम की ओर मुंह वाले मकान सामान्य ढंग के न्यूट्रल होते हैं।
4- पूर्व की ओर मुंह वाले घर लाभकारी होते हैं। कतार के आखिरी छोर वाले मकान लाभकारी हो सकते हैं यदि उनका दक्षिणी भाग किसी अन्य मकान से जुड़ा हो या पूरी तरह बंद हो। ऐसी स्थिति में जहां कतारबद्ध घर एक-दूसरे के सामने हों, वहां सीध में फाटक या दरवाजे लगाने से बचना चाहिए।
5- यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दक्षिण की ओर मुंह वाले घर यदि सही तरीके से बनाए जाएं तो लाभकारी परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। घर और वास्तु का गहरा नाता है। यही वजह है कि अपने सपनों का घर बनवाते हुए लोग आर्किटेक्ट से सुझाव लेना नहीं भूलते। कई बार वास्तु के हिसाब से चूक होने पर लोग घर में तोड़-फोड़ कराकर इसे दुरुस्त करने में हजारों-लाखों रुपये बर्बाद कर देते हैं। शायद आपको मालूम न हो, इस स्थिति में पेड़-पौधे ये नुकसान रोक सकते हैं। ज्योतिष और वास्तु में ये घर को सकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत करने वाले बताए गए हैं। बस जरूरत है थोड़ी जानकारी और प्रयास की। यदि आपके घर में वास्तु दोष है तो इसे मिटाने के लिए हरियाली का दामन थामना आपके लिए हर लिहाज से बेहतर विकल्प है।
ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार जीवनदायिनी प्रकृति के सहारे आशियाने को सेहत, सौंदर्य और समृद्धि से सराबोर किया जा सकता है। अगर मकान के खुले स्थान पर बगीचा लगा दें तो पूरा घर तरोताजा हवा एवं प्राकृतिक सौंदर्य से महक उठेगा। वास्तुशास्त्र के नजर से पेड़-पौधे उगाते हैं तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी होगा। चूंकि पेड़-पौधों जीवित होते हैं, इसलिए इनकी जीवंत ऊर्जा का सही उपयोग हमारे शरीर और चित्त को प्रसन्न रख सकता है। बस थोड़ा ध्यान रखना होगा कि पेड़-पौधे वास्तुशास्त्र के लिहाज से लगाए जाएं।
वास्तु और पौधे-
वास्तु में माना जाता है कि सकारात्मक ऊर्जा तरंगें हमेशा पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तथा पूर्वोत्तर से दक्षिण-पश्चिम में नैऋत्य कोण की ओर बहती है। ऐसे में ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व एवं उत्तर की ओर हल्के, छोटे व कम घने पेड़-पौधे उगाए जाएं। ताकि घर में आने वाली सकारात्मक ऊर्जा के रास्ते में कोई अवरोध न हो।
तुलसी बेहद उपयोगी-
इन दिशाओं से होकर घर में आने वाली हवा में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के खातिर तुलसी के पौधे बेहद उपयोगी माने जाते हैं। वास्तु के लिहाज से माना जाता है कि तुलसी के पौधों से होकर आने वाली वायु में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है साथ ही ये शुद्ध व स्वास्थ्यवर्धक भी हो जाती है।
इसके अतिरिक्त इन दिशाओं में अन्य औषधीय पौधों का रोपण भी वास्तु में लाभकारी बताया गया है। घर के पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में पुदीना, लेमनग्रास, खस, धनिया, सौंफ, हल्दी, अदरक आदि की उपस्थिति भी तन-मन को ताजगी देते हुए चुस्ती-फुर्ती और आरोग्य देने वाली मानी जाती है।
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री-
मनी प्लांट और क्रिसमस ट्री भी लोग घर में लगाते हैं। दोनों पौधे वास्तु की दृष्टि से समृद्धि कारक माने जाते हैं। शहर में कई परिवारों ने इन पौधों को अपने घरों में लगा रखा है। क्रिसमस ट्री इसाई परिवारों ने अपने घरों में तो मनी प्लांट का पौधा हर धर्म और जाति के लोगों के घरों में देखा जा सकता है।
खूबसूरत बालकनी-
अपने मकान के मुख्य द्वार के आसपास, पूर्व, उत्तर और पूर्वोत्तर में बालकनी पर गुलाब, बेला, चमेली, ग्लेडियोलाई, कॉसमोस, कोचिया, जीनिया, गेंदा और सदाबहार जैसे फूलों के पौधे लगाए जा सकते हैं। अगर जगह कम हो तो स्टैंड वाले गमले में इन्हें लगाया जा सकता है।
पश्चिम या दक्षिणमुखी घर होने पर-
घर पश्चिम और दक्षिणमुखी होने की दशा में उसके आगे या मुख्य द्वार की ओर बड़े-बड़े पेड़-पौधों समेत लताओं वाले पौध लगाए जा सकते हैं।
* पेड़ों को घर की दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगाएं। पेड़ सिर्फ एक दिशा में ही न लग कर इन दोनों दिशाओं में लगे होने चाहिए।
* एक तुलसी का पौधा घर में जरूर लगाएं। इसे उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्वी दिशा या फिर घर के सामने भी लगा सकते हैं।
* मुख्य द्वार पर पेड़ कभी भी न लगाएं। श्वेतार्क मुख्य द्वार पर लगाना वास्तु की दृष्टि से शुभ फलदायक होता है।
* नीम, चंदन, नींबू, आम, आवला, अनार आदि के पेड़-पौधे घर में लगाए जा सकते हैं।
* काटों वाले पौधे नहीं लगाएं। गुलाब के अलावा अन्य काटों वाले पौधे घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करते हैं।
* ध्यान रखें कि आपके आगन में लगे पेड़ों की गिनती 2, 4, 6, 8.. जैसी सम संख्या में होनी चाहिए, विषम में नहीं।
लोग अपने घरों की फुलवारी में या लॉन में छोटे-छोटे पौधे लगाया करते हैं। भवन में छोटे पौधों का अपने आप में बहुत महत्व होता है। घर में लगाए जाने वाले छोटे पौधों में कई पौधे ऐसे होते हैं जिनका औषधीय महत्व है। साथ ही उनका रसोई या सौंंदर्यवद्र्धन संबंधी महत्व भी है।
आज के समय में स्थान के अभाव में प्राय: लोग गमलों में ही पौधे लगाते हैं या लॉन तथा ड्राइंगरूम में सजाकर रख देते हैं। इन पौधों एवं लताओं की वजह से छोटे फ्लैटों में निवास करने वाले खुद को प्रकृति के नजदीक महसूस करते हैं एवं स्वच्छ हवा तथा स्वच्छ वातावरण का आनंद उठाते हैं।
तुलसी का पौधा इसी प्रकार का एक छोटा पौधा है जिसके औषधीय एवं आध्यात्मिक दोनों ही महत्व हैं। प्राय: प्रत्येक हिन्दू परिवार के घर में एक तुलसी का पौधा अवश्य होता है। इसे दिव्य पौधा माना जाता है। माना जाता है कि जिस स्थान पर तुलसी का पौधा होता है वहां भगवान विष्णु का निवास होता है। साथ ही वातावरण में रोग फैलाने वाले कीटाणुओं एवं हवा में व्याप्त विभिन्न विषाणुओं के होने की संभावना भी कम होती है। तुलसी की पत्तियों के सेवन से सर्दी, खांसी, एलर्जी आदि की बीमारियां भी नष्ट होती हैं।

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शनि से होते हैं कई रोग


ज्योतिष के अनुसार रोग विशेष की उत्पत्ति जातक के जन्म समय में किसी राशि एवं नक्षत्र विशेष पर पापग्रहों की उपस्थिति, उन पर पाप दृष्टि, पापग्रहों की राशि एवं नक्षत्र में उपस्थित होना, पापग्रह अधिष्ठित राशि के स्वामी द्वारा युति या दृष्टि रोग की संभावना को बताती है। इन रोगकारक ग्रहों की दशा एवं दशाकाल में प्रतिकूल गोचर रहने पर रोग की उत्पत्ति होती है। प्रत्येक ग्रह, नक्षत्र, राशि एवं भाव मानव शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भाव मंजरी के अनुसार-
कालस्य मौलि: क्रिय आननं गौर्वक्षो नृयुग्मो हृदयं कुलीर: ।
का्रेडे मृगेन्दोथ कटी कुमारी अस्तिस्तुला मेहनमस्य कौर्पि:।।
इरूवास उरू मकरश्र जानु जंघे घटोन्त्यश्ररणौ प्रतीकान्।
सच्ंिन्तयेत्कालनरस्य सूतौ पुष्टान्कृशान्नु: शुभपापयोगात्।।
अर्थात मेष राशि सिर में, वृष मुंह में, मिथुन छाती में, कर्क ह्नदय में, सिंह पेट में, कन्या कमर में, तुला बस्ति में अर्थात पेड़ू में, वृश्च्कि लिंग में, धनु जांघो में, मकर घुटनों में, कुंभ पिंण्डली में तथा मीन राशि को पैरों में स्थान दिया गया है। राशियों के अनुसार ही नक्षत्रों को उन अंगों में स्थापित करने से कल्पिम मानव शरीराकृति बनती है।
इन नक्षत्रों व राशियों को आधार मानकर ही शरीर के किसी अंग विशेष में रोग या कष्ट का पूर्वानुभान किया जा सकता है। शनि तमोगुणी ग्रह क्रूर एवं दयाहीन, लम्बे नाखुन एवं रूखे-सूखे बालों वाला, अधोमुखी, मंद गति वाला एवं आलसी ग्रह है। इसका आकार दुर्बल एवं आंखे अंदर की ओर धंसी हुई है। जहां सुख का कारण बृहस्पति को मानते है। तो दु:ख का कारण शनि है। शनि एक पृथकत्ता कारक ग्रह है, पृथकत्ता कारक ग्रह होने के नाते इसकी जन्मांग में जिस राशि एवं नक्षत्र से सम्बन्ध हो, उस अंग विशेष में कार्य से पृथकत्ता अर्थात बीमारी के लक्षण प्रकट होने लगते हैंै। शनि को स्नायु एवं वात कारक ग्रह माना जाता है। नसों वा नाडियों में वात का संचरण शनि के द्वारा ही संचालित है। आयुर्वेद में भी तीन प्रकार के दोषों से रोगों की उत्पत्ति मानी गई है। ये तीन दोष वात, कफ व पित्त है। हमारे शरीर की समस्त आन्तरिक गतिविधियां वात अर्थात शनि के द्वारा ही संचालित होती है।
आयुर्वेद शास्त्रों में भी कहा गया है:-
पित्त पंगु कफ: पंगु पंगवो मल धातव:।
वायुना यत्र नीयते तत्र गच्छन्ति मेघवत्।।
अर्थात पित्त, कफ और मल व धातु सभी निष्क्रिय हैं। स्वयं ये गति नहीं कर सकते। शरीर में विद्यमान वायु ही इन्हें इधर से उधर ले जा सकती है। जिस प्रकार बादलों को वायु ले जाती है। यदि आयुर्वेद के दृष्टिकोण से भी देखा जाये तो वात ही सभी कार्य समपन्न करता है। इसी वात पर ज्योतिष शास्त्र शनि का नियंत्रण मानता है। शनि के अशुभ होने पर शरीरगत वायु का क्रम टूट जाता है। अशुभ शनि जिस राशि, नक्षत्र को पीडि़त करेगा उसी अंग में वायु का संचार अनियंत्रित हो जायेगा, जिससे परिस्थिति अनुसार अनेक रोग जन्म ले सकते है। इसका आभास स्पष्ट है कि जीव-जन्तु जल के बिना तो कुछ काल तक जीवित रह सकते है, लेकिन बिना वायु के कुछ मिनट भी नहीं रहा जा सकता है। नैसर्गिक कुण्डली में शनि को दशम व एकादश भावों का प्रतिनिधि माना गया है। इन भावों का पीडि़त होना घुटने के रोग, समस्त जोड़ों के रोग, हड्डी, मांसपेशियों के रोग, चर्म रोग, श्वेत कुष्ठ, अपस्मार, पिंडली में दर्द, दायें पैर, बायें कान व हाथ में रोग, स्नायु निर्बलता, हृदय रोग व पागलपन देता है। रोगनिवृति भी एकादश के प्रभाव में है, उदरस्थ वायु में समायोजन से शनि, पेट मज्जा को जहां शुभ होकर मजबूत बनाता है वहीं अशुभ होने पर इसमें निर्बलता लाता है। फलस्वरूप जातक की पाचन शक्ति में अनियमितता के कारण भोजन का सही पाचन नहीं हो पाता, जो रस, धातु, मांस, अस्थि को कमजोर करता है। समस्त रोगों की जड़ पेट है। पाचन शक्ति मजबूत होकर प्याज-रोटी खाने वालो भी सुडौल दिखता है वहीं पंचमेवा खाने वाला बिना पाचन शक्ति के थका-हारा हुआ मरीज लगता है। मुख्य तौर पर शनि को वायु विकार का कारक मानते है जिससे अंग वक्रता, पक्षाघात, सांस लेने में परेशानी होती है। शनि का लौह धातु पर अधिकार है। शरीर में लौह तत्व की कमी होने पर एनीमिया, पीलिया रोग भी हो जाता है। अपने पृथकता कारक प्रभाव से शनि, अंग विशेष को घात-प्रतिघात द्वारा पृथक् कर देता है। इस प्रकार अचानक दुर्घटना से फ्रेक्चर होना भी शनि का कार्य हो सकता है। यदि इसे अन्य ग्रहों का भी थोड़ा प्रत्यक्ष सहयोग मिल जाये तो यह शरीर में कई रोगों को जन्म दे सकता है। जहां सभी ग्रह बलवान होने पर शुभ फलदायक माने जाते है, वहीं शनि दु:ख का कारक होने से इसके विषय में विपरित फल माना है-
आत्मादयो गगनगैं बलिभिर्बलक्तरा:।
दुर्बलैर्दुर्बला: ज्ञेया विपरीत शनै: फलम्।।
अर्थात कुण्डली में शनि की स्थिति अधिक विचारणीय है। इसका अशुभ होकर किसी भाव में उपस्थित होने उस भाव एवं राशि सम्बधित अंग में दु:ख अर्थात रोग उत्पन्न करेगा। गोचर में भी शनि एक राशि में सर्वाधिक समय तक रहता है जिससे उस अंग-विशेष की कार्यशीलता में परिवर्तन आना रोग को न्यौता देना है। कुछ विशेष योगों में शनि भिन्न-भिन्न रोग देता है। आइये जानकारी प्राप्त करें:
सर्वाधिक पीड़ादायक वातरोग:
* छठा भाव रोग भाव है। जब इस भाव या भावेश से शनि का सम्बन्ध बनता है तो वात रोग होता है।
* लग्नस्थ बृहस्पति पर सप्तमस्थ शनि की दृष्टि वातरोग कारक है।
* त्रिकोण भावों में या सप्तम में मंगल हो व शनि सप्त्म में हो तो गठिया होता है।
* शनि क्षीण चंद्र से द्वादश भाव में युति करे तो आथ्र्रराइटिस होता है।
* छठे भाव में शनि पैरों में कष्ट देता है।
* शनि की राहु मंगल से युति एवं सूर्य छठे भाव में हो तो पैरों में विकल होता है।
* छठे या आठवें भाव में शनि, सुर्य चन्द्र से युति करें तो हाथों में वात विकार के कारण दर्द होता है।
* शनि लग्नस्थ शुक्र पर दृष्टि करें तो नितम्ब में कष्ट होता है।
* द्वादश स्थान में मंगल शनि की युति वात रोग कारक है।
* षष्ठेश व अष्टमेश की लग्न में शनि से युति वात रोग कारक है।
* चंद्र एवं शनि की युति हो एवं शुभ ग्रहों की दृष्टि नहीं हों तो जातक को पैरों में कष्ट होता हैं।
उदर रोग:
उदर विकार उत्पत्र करने में भी शनि एक महत्वपुर्ण भूमिका निभाता है। सूर्य एवं चन्द्र को बदहजमी का कारक मानते हैं, जब सूर्य या चंद्र पर शनि का प्रभाव हो, चंद्र व बृहस्पति को यकृत का कारक भी माना जाता है। इस पर शनि का प्रभाव यकृत को कमजोर एवं निष्क्रिय प्रभावी बनाता है। बुध पर शनि के दुष्प्रभाव से आंतों में खराबी उत्पत्र होती है। वर्तमान में एक कष्ट कारक रोग 'एपेण्डीसाइटिस भी बृहस्पति पर शनि के अशुभ प्रभाव से देखा गया है। शुक्र को धातु एवं गुप्तांगों का प्रतिनिधि माना जाता है। जब शुक्र, शनि द्वारा पीडि़त हो तो जातक को धातु सम्बंधी कष्ट होता है। जब शुक्र पेट का कारक होकर स्थित होगा तो पेट की धातुओं का क्षय शनि के प्रभाव से होगा। शनिकृत कुछ विशेष उदर रोग योग:-
* कर्क, वृश्चिक, कुंभ नवांश में शनिचंद्र से योग करें तो यकृत विकार के कारण पेट में गुल्म रोग होता है।
* द्वितीय भाव में शनि होने पर संग्रहणी रोग होता हैं। इस रोग में उदरस्थ वायु के अनियंत्रित होने से भोजन बिना पचे ही शरीर से बाहर मल के रुप में निकल जाता है।
* सप्तम में शनि मंगल से युति करे एवं लग्रस्थ राहु, बुध पर दृष्टि करे तब अतिसार रोग होता है।
* मीन या मेष लग्र में शनि तृतीय स्थान में होने पर उदर में दर्द होता है।
* सिंह राशि में शनि चंद्र की युति या षष्ठ या द्वादश स्थान में शनि, मंगल से युति करे या अष्टम में शनि व लग्र में चंद्र हो या मकर या कुंभ लग्रस्थ शनि पर पापग्रहों की दृष्टि हो, उदर रोग कारक होता है।
* कुंभ लग्र में शनि चंद्र के साथ युति करे या षष्ठेश एवं चंद्र लग्रेश पर शनि का प्रभाव या पंचम स्थान में शनि की चंद्र से युति हो तो प्लीहा रोग होता है।
कुष्ठ रोग:
ज्योतिष शास्त्रों में कुष्ट रोग के कुछ योग दिये हुये हैं। इस प्रकार के योग कई कुण्डलियों में होते भी हैं लेकिन उसको इस योग से कोई पीड़ा नहीं हुई। साधारणतया इस स्थिति में शनि की कारक ग्रहों पर युति का प्रभाव एवं कारक ग्रहों के बलाबल पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है। इन ग्रहों के कुछ शुभ प्रभाव से कुष्ठ तो नहीं होगा लेकिन वात के सूक्ष्म प्रभाव के कारण दाग, दाद, छाजन, फोड़े-फुंसी व एक्जीमा का प्रकोप समझना चाहिए। ये योग निम्न है-
* शनि की मंगल व सूर्य से युति से कुष्ठ होता है।
* लग्न में शनि षष्ठेश से युति करे तो कफ विकार जनित कुष्ठ होता है।
* सिंह व कन्या लग्न में, शनि सूर्य की युति लग्न में हो तो रक्त कुष्ठ होता है।
* शनि की मेष या वृषभ राशि में युति चन्द्र मंगल से हो तो सफेद कुष्ठ होता है।
* शनि कर्क या मीन राशि में चन्द्र मंगल शुक्र से युति करे तो रक्त कुष्ठ होता है।
* शनि सूर्य से युति करे तो कृष्ण कुष्ठ होता है।
* शनि चन्द्र की नवम में युति दाद रोग कारक है।
* जल राशिस्थ द्वितीयस्थ चन्द्र पर शनि की दृष्टि दाद रोग देती है।
हृदय रोग:
हृदय को स्वस्थ बनाये रखने हेतु सूर्य एवं चंद्र व इनकी राशियों पर शुभ प्रभाव आवश्यक है। इस दृष्टि में शुक्र हृदय को मजबूती देता है, उच्चस्थ शुक्र वाला जातक दृढ़ दिलवाला होता है। जब इन सभी कारकों, भाव चतुर्थ व पंचम व इनके भावेशों पर शनि का अशुभ प्रभाव पड़ता है तो जातक हृदय विकार से ग्रसित होता है। हृदय विकार के प्रमुख शनिकृत ज्योतिष योग:-
* चतुर्थ में शनि हृदय रोग कारक है। यदि बृहस्पति व चंद्र भी शनि से पीडि़त हों तो हृदय रोग भी तीव्र होता है।
* मीन लग्न में शनि चतुर्थ में हो एवं सूर्य पीडि़त हो तो हृदय रोग होता है।
* चतुर्थ भावस्थ शनि बृहस्पति व मंगल से युति करे तो हृदय रोग होता है।
* षष्ठेश शनि चतुर्थ भाव में पापयुक्त हो तो हृदय रोग होता है।
शनि के कारण होने वाले अन्य रोग:
* सूर्य व शनि किसी भी प्रकार से सम्बन्ध करें तो खांसी होती है।
* चतुर्थेश के साथ शनि युति करे व मंगल की दृष्टि हो तो पत्थर से घात होता है।
* मकर लग्न में शनि चतुर्थ में पापग्रहों से युति करें तो जल घात होता है।
* मेष, वृश्चिक, कर्क या सिंह राशि में शनि शुक्र से युति, हाथ-पैर कटने का योग बनाते है।
* शनि पर पापग्रहों की दृष्टि हो तो बवासीर रोग होता है।
* लग्नस्थ शनि पर सप्तमस्थ मंगल दृष्टि कर तो बवासीर होता है।
* सप्तम में शनि, वृश्चिक में मंगल व लग्न में सूर्य हो तो बवासीर रोग होता है।
* शनि बारहवें भाव में हो एवं लग्नेश व मंगल सप्तम हो तो भी बवासीर रोग होता है या लग्न्ेाश या मंगल देखे तब भी बवासीर होता है।
* मिथुन या कर्क लग्न में शनि पर राहु केतु का प्रभाव चातुर्थिक ज्वर कारक है।
* शनि-चन्द्र पर मंगल की दृष्टि हो तो पागलपन होता है।
* छठे या आठवे भाव में शनि, मंगल से युति करे तब पागलपन होता है।
* चंद्र-शनि की युति पर मंगल की दृष्टि हो तो उसे किसी पूर्व रोगी के कारण सम्पर्क क्षय होता है।
* लग्न पर मंगल शनि की दृष्टि भी क्षयरोग कारक है।
* छठे या द्वादश भाव में शनि मंगल से युति करे तो गण्डमाला रोग होता है।
* लग्नस्थ शनि सूर्य पर चंद्र शुक्र की दृष्टि गुप्तांग काटने का योग बनता है।
* शनि चंद्र से युति कर मंगल से चतुर्थ या दशम में हो तो संभोग शक्ति में कमी होती है।
* लग्न में शनि, धनु या वृषभ राशि में हो तो अल्प काम शक्ति होती है।
* नेत्र स्थान में पापग्रह शनि से दृष्ट हो तो रोग से आंखें नष्ट होती है।
* द्वितीयेश व द्वादशेश शनि, मंगल से युति करे तो नेत्र रोग होता है।
* लग्नगत सिंह राशि में सूर्य या चंद्र पर शनि या मंगल की दृष्टि से आंखें नष्ट होती है।
* षष्ठेश त्रिक स्थानों में शनि से दृष्ट हो तो बहरापन होता है।
* शनि से चतुर्थ में बुध व षष्ठेश त्रिक में हो तो व्यक्ति बहरा होता है।
* शनि, सूर्य-चंद्र के साथ सप्तम में युति करें तो दंतरोग होता है।
* मकर या कुंभ लग्नस्थ शनि हो तो जातक गंजा होता हैं।
* अष्टमस्थ शुक्र पर शनि-राहु की दृष्टि मधुमेह रोग कारक है।
* धनु और मकर लग्न में शनि त्रिक भावों में बृहस्पति से युति करे तो जातक गंूगा होता है।
* लग्न में शनि, सूर्य-मंगल से युति करे तो पीलिया रोग होता है अर्थात शनि का किसी भी ग्रह के साथ युति दृष्टि द्वारा सम्बन्ध बनाना जातक को उस ग्रह विशेष के कारकत्व में कमजोरी लाकर बीमार बनाता है।
शनिकृत रोगों को दूर करने हेतु कुछ सामान्य एवं प्रभावी उपाय निम्नलिखित है:
* शनि मुद्रिका, शनिवार के दिन शनि मंत्र का जाप करते हुये धारण करें। काले घोड़े की नाल प्राप्त कर घर के मुख्य दरवाजे के ऊपर लगायें।
* बिसा यंत्र से नीलम जड़कर धारण करें। शनि यंत्र को शनिवार के दिन, शनि की होरा में अष्टगंध में भोजपत्र पर बनाकर, उड़द के आटे से दीपक बनाकर उसमें तेल डालकर दीप प्रज्जवलित करें। फिर शनि मंत्र का जाप करते हुये यंत्र पर शमि के फ ूल अर्पित करें। तत्पश्चात इसे धारण करने से शनिकृत बीमारियों से राहत मिलती हैं।
* उड़द के आटे की रोटी बनाकर उस पर तेल लगायें। फिर कुछ उड़द के दाने उस पर रखें। अब रोगी के उपर से सात बार उसारकर उसे सुनसान स्थान में रख आयें। घर से निकालते समय व वापिस घर आते समय पीछे कदापि नहीं देखें एवं न ही इस अवधि में किसी से बात करें। ऐसा प्रयोग 21 दिन करने से राहत मिलती है।
* मिट्टी के नये छोटे घड़े में पानी भरकर रोगी पर से सात बार उसार कर उस जल से 23 दिन शमि को सींचें। इस अवधि में रोगी के सिर से नख तक की नाप का काला धागा भी प्रतिदिन शमि पर लपेटते रहें। इससे भी जातक को चमत्कारिक ढंग से राहत मिलती हैं।
* किसी बर्तन में तेल को गर्म करके उसमें गुड़ डालकर बुलबुले उठने के बाद उतार कर उसमें रोगी अपना मुंह देखकर किसी भिखारी को दे या उड़द की बनी रोटी पर इसे रखकर कुत्ते को खिला दे। यह शनिकृत रोग का सरलतम उपाय हैं।
* एक नारियल के गोले में घी व सिंदूर भरकर उसे रोगी पर कुछ देर रखें फिर शमशान में रख आयें। पीछे नहीं देखना है तथा मार्ग में वार्तालाप नहीं करें। घर आकर हाथ-पैर धो लें।
* शनि के तीव्रतम प्रकोप होने पर शनि मंत्र का जाप करना, सातमुखी रूद्राक्ष की अभिमंत्रित माला धारण करना एवं नित्य प्रति भोजन में से कौओं, कुत्ते व काली गाय को खिलाते रहना, यह सभी उपाय शनि दोष को कम करते हैं। इन उपायों को किसी विद्वान की देख-रेख या मार्गदर्शन में करने से वांछित लाभ मिल सकता है।

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अतृप्त ईच्छाओं से बनते हैं प्रेत




कोई कहे सब अंधविश्वास है, तो कोई कहे बेहद खौफनाक है। भूतों के बारे में सुनते तो सभी हैं परन्तु इनके पौराणिक उद्गम को जानते नहीं और भूत-प्रेत के रहस्य से हमेशा आतंकित रहते हैं। लेकिन गरुड़ पुराण ने उस सारे भय को दूर करते हुए प्रेतयोनि से संबंधित रहस्यों को जीवित मनुष्यों के कर्म फल के साथ जोड़कर सम्पूर्ण अदृश्य जगत का वैज्ञानिक आधार तैयार किया है। वैदिक ग्रन्थ ''गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन उपलब्ध है। अक्सर गरुड़ पुराण का श्रवण हिन्दू समाज में आज भी मृतक की आत्मा की शान्ति के लिए तीसरे दिन की क्रिया से नवें दिन तक पढ़ा जाता है। हिन्दू धर्म में ''प्रेत योनि इस्लाम में ''जिन्नात आदि का वर्णन भूत प्रेतों के अस्तित्व को इंगित करते हैं। पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों को तर्पण करते हैं। इसका अर्थ हुआ कि पितरों का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत प्रेत के रूप में होता है।
भूत कभी भी और कहीं भी हो सकते हैं। चाहे वह विराना हो या भीड़ भार वाला मेट्रो स्टेशन। यहां हम जिस मेट्रो स्टेशन की बात कर रहे हैं वह किसी दूसरे देश का नहीं बल्कि भारत का ही एक मेट्रो स्टेशन है। इस स्टेशन पर भूतों का ऐसा साया है कि कई लोग ट्रैक पर कूद कर जान दे चुके हैं।
यह मेट्रो स्टेशन कोलकाता में स्थित है। इस स्टेशन का नाम है रवीन्द्र सरोवर। इस मेट्रो स्टेशन के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भूतों का साया है। रात 10:30 बजे यहां से आखिरी मेट्रो गुजरती है। उस समय कई मुसाफिर और मेट्रो के ड्राइवरों ने भी इस चीज का अनुभव किया है कि मेट्रो ट्रैक के बीच अचानक कोई धुंधला साया प्रकट होता है और पल में ही गायब हो जाता है।
कोलकाता का यह मेट्रो स्टेशन यहां का सुसाइड प्वाइंट माना जाता है। कारण यह है कि यहां पर कई लोगों ने ट्रैक पर कूद कर आत्महत्या की है। वैसे भूत प्रेतों में विश्वास नहीं करने वाले लोग यह मानते हैं कि यह मेट्रो स्टेशन टॉलीगंज टर्मिनल के बाद पड़ता है जहां अधिकांश मुसाफिर उतर जाते हैं। इसलिए यहां अधिक भीड़ नहीं रहती है। यही कारण हो सकता है कि इस मेट्रो को सुसाइड प्वाइंट और भूतहा कहा जाता है।
भृगुसंहिता तथा जन्मकुंडली में प्रेतयोनि के कारण:
ज्योतिष के अनुसार वे लोग भूतों का शिकार बनते हैं जिनकी कुंडली में पिशाच योग बनता है। यह योग जन्म कुंडली में चंद्रमा और राहु के कारण बनता है। अगर कुंडली में वृश्चिक राशि में राहु के साथ चन्द्रमा होता तब पिशाच योग प्रबल बन जाता है। ये योग व्यक्ति को मानसिक रूप से कमजोर बनाते हैं।
कुंडली द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि व्यक्ति इस प्रकार की दिक्कतों का सामना करेगा या नहीं। कुंडली में बनने वाले कुछ भूत-प्रेत बाधा योग इस प्रकार है:
1. कुंडली के पहले भाव में चंद्र के साथ राहु हो और पांचवे और नौवें भाव में क्रूर ग्रह स्थित हों। इस योग के होने पर जातक या जातिका पर भूत-प्रेत-पिशाच या गंदी आत्माओं का प्रकोप शीघ्र होता है। यदि गोचर में भी यही स्थिति हो तो अवश्य ऊपरी बाधाएं तंग करती है।
2. यदि किसी की कुंडली में शनि-राहु-केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते है।
3. यदि किसी की कुंडली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा प्रेत पिशाच या भूत बाधा तंग करती है।
4. उक्त योगों में दशा अंतर्दशा में भी ये ग्रह आते हों और गोचर में भी इन योगों की उपस्थिति हो तो समझ लें कि जातक या जातिका इस कष्ट से अवश्य परेशान हंै। इस कष्ट से मुक्ति के लिए तांत्रिक, ओझा, मोलवी या इस विषय के जानकार ही सहायता करते हैं।
5. कुंडली में चंद्र नीच का हो और चंद्र-राहु संबंध बन रहा हो, साथ ही भाग्य स्थान पाप ग्रहों के प्रभाव से मुक्त न हो।
6. भूत प्रेत अक्सर उन लोगों को अपना शिकार बना लेते हैं जो ज्योतिषीय नजरिये से कमजोर ग्रह वाले होते हैं। इन लोगों में मानसिक रोगियों की संख्या ज्यादा होती है।
7. वैसे तो कुंडली में किसी भी राशि में राहु और चंद्र का साथ होना अशुभ और पिशाच योग के बराबर अशुभ फल देने वाला माना जाता है लेकिन वृश्चिक राशि में जब चंद्रमा नीच स्थिति में हो जाता है यानि अशुभ फल देने वाला हो जाता है तो इस स्थिति को महत्वपूर्ण माना जाता है। राहु और चंद्रमा मिलकर व्यक्ति को मानसिक रोगी भी बना देते हैं। पिशाच योग राहु द्वारा निर्मित योगों में नीच योग है। पिशाच योग जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में होता है वह प्रेत बाधा का शिकार आसानी से हो जाता है। इनमें इच्छा शक्ति की कमी रहती है। इनकी मानसिक स्थिति कमजोर रहती है, ये आसानी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं। इनके मन में निराशाजनक विचारों का आगमन होता रहता है। कभी-कभी स्वयं ही अपना नुकसान कर बैठते हैं।
8. लग्न चंद्रमा व भाग्य भाव की स्थिति अच्छी न हो तो व्यक्ति हमेशा शक करता रहता है। उसको लगता रहता है कि कोई ऊपरी शक्तियां उसका विनाश करने में लगी हुई हैं और किसी भी इलाज से उसको कभी फायदा नहीं होता।
9. जिन व्यक्तियों का जन्म राक्षस गण में हुआ हो, उन व्यक्तियों पर भी ऊपरी बाधा का प्रभाव जल्द होने की संभावनाएं बनती हैं। जो मनुष्य जितनी अधिक वासनाएँ ओर आकांक्षाएँ अपने साथ लेकर मरता है उसके भूत होने की सम्भावना उतनी ही अधिक रहती है।
आकांक्षाओं का उद्वेग मरने के बाद भी प्राणी को चैन नहीं लेने देता और वह सूक्ष्म शरीरधारी होते हुए भी यह प्रयत्न करता है कि अपने असन्तोष को दूर करने के लिए कोई उपाय, साधन एवं मार्ग प्राप्त करे। साँसारिक कृत्य का उपयोग शरीर द्वारा ही हो सकते हैं। मृत्यु के उपरान्त शरीर रहता नहीं। ऐसी दशा में उस अतृप्त प्राणी की उद्विग्नता उसे कोई शरीर गढऩे की प्रेरणा करती है। अपने साथ लिपटे हुए सूक्ष्म साधनों से ही वह अपनी कुछ आकृति गढ़ पाता है जो पूर्व जन्म के शरीर से मिलती जुलती किन्तु अनगढ़ होती है। अनगढ़ इसलिए कि भौतिक पदार्थों का अभीष्ट अनुदान प्राप्त कर लेना, मात्र उसकी अपनी इच्छा पर ही निर्भर नहीं रहता। 'भूतÓ अपनी इच्छा पूर्ति के लिए किसी दूसरे के शरीर को भी माध्यम बना सकते हैं। उसके शरीर से अपनी वासनाओं की पूर्ति कर सकते हैं अथवा जो स्वयं करना चाहते थे वह दूसरों के शरीर से करा सकते हैं। कुछ कहने या सुनने की इच्छा हो तो वह भी अपने वंशवर्ती व्यक्ति द्वारा किसी कदर पूरी करते देखे गये हंै। इसके लिए उन्हें किसी को माध्यम बनाना पड़ता है। हर व्यक्ति माध्यम नहीं बन सकता। उसके लिए दुर्बल मन:स्थिति को आदेश पालन के लिए उपयुक्त मनोभूमि का व्यक्ति होना चाहिए। प्रेतों के लिए सवारी का काम ऐसे ही लोग दे सकते हैं। मनस्वी लोगों की तीक्ष्ण इच्छा शक्ति उनका आधिपत्य स्वीकार नहीं करतीं।
भूतों के अस्तित्व से किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है। वे भी मनुष्यों की तरह ही जीवनयापन करते हैं। मनुष्य धरती पर स्थूल शरीर समेत रहते हैं, भूत सूक्ष्म शरीर से अन्तरिक्ष में रहते हैं। तुलनात्मक दृष्टि से उनको सामथ्र्य और साधन जीवित मनुष्यों की तुलना में कम होते हैं इसलिए वे डराने के अतिरिक्त और कोई बड़ी हानि नहीं पहुँचा सकते। डर के कारण कई बार घबराहट, चिन्ता, असन्तुलन जैसी कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती है। भूतोन्माद में यह भीरुता और मानसिक दुर्बलता ही रोग बनकर सामने आती है। वे जिससे कुछ अपेक्षा करते हैं उनसे संपर्क बनाते हैं और अपनी अतृप्तिजन्य उद्विग्नता के समाधान में सहायता चाहते हैं। प्राय: डर का मुख्य कारण होता है। इन सबसे बचने के लिए हनुमान-चालीसा बहुत ज्यादा कारगर है, जिसके नाम से ही भूत-प्रेत भाग जाते हैं।

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व्यवसाय का चयन अंक शास्त्र से


व्यवसाय के चुनाव को लेकर अक्सर लोगों में दिशा हीनता की स्थिति चलती रहती है। हम अक्सर जिंदगी में सोचते हैं कि हम कौन सा खास व्यवसाय अपनाना चाहेंगे, क्या बनना चाहेंगे। कई बार सामथ्र्य होते हुए भी हम जो बनना चाहते हैं, नहीं बन पाते हैं, क्योंकि हमारे भाग्य में कुछ और ही लिखा है। कभी अभिभावकों की इच्छा के समक्ष झुकते हुए, हम अपने मनचाहे विषयों का चयन नहीं कर पाते। कभी आर्थिक संसाधनों की कमी मार्ग बाधित कर देती है। कभी स्वास्थ्य से जुड़ी कोई समस्या या फिर प्रतिकूल परिस्थितयाँ। कहने का अभिप्राय यह है कि हम जिंदगी में वह नहीं कर पाते है, जिसके लिए हमारा रुझान है या जो हम हमारे लिए निर्धारित करते हैं। कई बार हमारी पढ़ाई का विषय और हमारे कार्य का क्षेत्र एकदम विपरीत होता है, तो कई बार हमारे द्वारा किए गए कार्य से कुछ समय के बाद हम उसमें बदलाव करके किसी दूसरी ही दिशा या क्षेत्र में कार्य करने लगते हैं। यह सब जीवन में संयोग या इत्फाकन नहीं होता है। इसकी दिशा और दशा कुंडली और आपके जीवन में शामिल अंकशास्त्र के आधार पर किया जा सकता है।
सर्वप्रथम जानिए अपना मूलांक जो कि आपके जन्म दिनांक का जोड़ होता है। भाग्यांक जानने के लिए जोडि़ए जन्म तिथि+माह+वर्ष, उदाहरण के लिए 2.7.1979 = 2+7+1+9+7+9=35=3+5=8 उक्त उदाहरण में मूलांक 2 व भाग्यांक 8 है।
मूलांक हमारे व्यक्तिगत् उपलब्धिओं को निर्धारित करता है तथा भाग्यांक, भाग्य द्वारा मिलने वाली उपलब्धिओं को निर्धारित करता है।
उपरोक्त जानकारी के आधार पर अपने मूलांक व भाग्यांक की गणना कीजिये। तत्पश्चात इन अंकों के आधार पर जानिए कि आपके लिए क्या व्यवसाय उचित व फलदायक रहेगा। आप अपने जन्मांक या भाग्यांक के आधार पर अनुकूल व्यवसाय का चयन कर सकते हैं। जानिये अपनी मूलभूत प्रवृति और स्वंय निर्धारित कीजिये अपना व्यवसाय।
अंक- 1, 10, 19, 28 (मूलांक-1)
मूलभूत प्रवृति: बौद्धिक क्षमता व तर्क शक्ति के धनी, नेतृत्व की प्रवृति, दान पुण्य मैं अग्रणी, विशाल हृदय, दृढ़ निश्चय वाले व प्रशासनिक क्षमता के स्वामी।
अनुकूल व्यवसाय: प्रशासनिक सेवा, प्रबंधन सेवाएँ, लीडरशिप, राजनीति, व्यवसायिक सलाहकार, एनजीओ प्रबंधन व संचालन, सफ ेद रंग की वस्तुओं व दुग्ध उत्पादों का व्यवसाय, खनिज व्यवसाय।
अंक- 2,11, 20, 29 (मूलांक-2)
मूलभूत प्रवृति: कल्पना शक्ति, सृजनात्मक प्रवृति, रचनात्मक गतिविधियों व सैर सपाटे के प्रति रुझान, सब के साथ सामंजस्य बैठा कर चलने वाले व दूसरों की भावनाओं के प्रति संवेदनशील।
अनुकूल व्यवसाय: कला व साहित्य से जुड़े व्यवसाय, अनुवाद कार्य, टूरिज्म व्यवसाय, एविएशन, इंजिनियरिंग, एयर ट्रेवेल एजेंसियां व होटल संचालन, आंतरिक सज्जाकार, फैशन व ग्लेमर से जुड़े व्यवसाय, चांदी व कलात्मक उत्पादों का विक्रय।
अंक- 3,12, 21, 30 (मूलांक-3)
मूलभूत प्रवृति: व्यवसायिक व पारिवारिक दायित्व निभाने मैं अधिक सक्षम, साहित्यिक व रचनात्मक गतिविधायों में रूचि, शैक्षणिक व सामाजिक गतिविधियों की ओर अधिक रुझान, अनुशासन प्रिय, जिम्मेदारी निभाने मैं अग्रणी।
अनुकूल व्यवसाय: साहित्य सेवा, शैक्षणिक सेवाएँ, राजकीय नौकरी, न्यायिक पेशा, होटल उद्यमिता, सोने-सुनहरी वस्तुओं व सम्पति का व्यवसाय, आर्किटेक्ट्स, शैक्षणिक संस्था संचालन, डेकेअर सेंटर्स संचालन।
अंक- 4, 13, 22,31 (मूलांक-4)
मूलभूत प्रवृति: मौलिक सोच व नेतृत्व की क्षमता, परम्परा से हट कर कुछ करने व समाज सुधार, अनुसन्धान आदि मैं रूचि, समस्या के विश्लेषण मैं सक्षम।
अनुकूल व्यवसाय: राजनीति, समाज सेवा, अनुसंधान व आविष्कार, समाज सेवा, सफेद रंग की वस्तुओं का विक्रय, प्रशासनिक व प्रबंधन सेवाएँ, चांदी व हस्तशिल्प उत्पादों का विक्रय, डिजायनर, मॉडल।
अंक- 5, 14, 23 (मूलांक-5)
मूलभूत प्रवृति: गणनात्मक क्षमता, नेतृत्व की प्रवृति, प्रबंधन योग्यता, आत्म निर्भर व अपने स्तर पर निर्णय लेने मैं सक्षम, लय-सुर-ताल मैं रूचि, विदेश मैं बसने के प्रति रुझान, चंचल मन के स्वामी।
अनुकूल व्यवसाय: बैंकिंग, लेखाविद, इवेंट मेनेजमेंट, मनोरोग व बालरोग, नृत्य निर्देशक, संगीतकार, व्यवसाय प्रबंधन, टूरिज्म, ट्रेवेल व लोन एजेंसी संचालन, नर्सरी स्कूल प्रबंधन, सीमेंट, खेल सामग्री का विक्रय, निर्यात व्यवसाय।
अंक- 6,15, 24 (मूलांक-6)
मूलभूत प्रवृति: प्रखर सौंदर्य बोध, साहित्यिक व शैक्षणिक गतिविधियों व रचनात्मक क्रिया कलापों मैं रूचि, स्नेहिल स्वभाव, पारिवारिक व व्यवसायिक दायित्वों के प्रति सजग।
अनुकूल व्यवसाय: कलाकार, कला समीक्षक, फिल्म निर्माता, फैशन व ग्लेमर की गतिविधियों से जुड़े व्यवसाय, सेक्सोलोजिस्ट्स, साहित्यकार, भूरे रंग की वस्तुओं व चर्म उत्पादों का व्यवसाय, आंतरिक सज्जाकार, आर्किटेक्ट्स, आर्ट गेलेरी संचालक।
अंक- 7, 16, 25 (मूलांक-7)
मूलभूत प्रवृति: कल्पना शक्ति, साहित्यिक, रचनात्मक, कलात्मक गतिविधियों की ओर रुझान, सहनशीलता व सामंजस्य की प्रवृति, सुदूर देशों के प्रति आकर्षण।
अनुकूल व्यवसाय: मर्चेंट नेवी, मरीन इंजीनियरिंग, शिपिंग व्यवसाय, चांदी, मोती व समुद्री उत्पादों का व्यवसाय, धर्म प्रचारक, मनोवैज्ञानिक, कलाकार, साहित्यिक व शैक्षणिक क्षेत्र से जुड़े व्यवसाय।
अंक- 8, 17, 26 (मूलांक-8)
मूलभूत प्रवृति: दृढ़ निश्चय के स्वामी, संघर्ष का सामना करने की क्षमता, नेतृत्व की प्रवृति, सामाजिक सरोकार व साहित्यिक गतिविधियों की ओर रुझान, साहित्यिक प्रवृति।
अनुकूल व्यवसाय: शल्य चिकित्सक, मीडिया, पत्रकारिता, धर्म प्रचार, वास्तु परामर्श, ज्योतिष, भवन निर्माण, हीरे, वाहन, पेट्रोल, लोहे, सुनहरी व श्याम वर्ण वस्तुओं का विक्रय, प्रकाशन, ट्रांसपोर्ट व्यवसाय, राजनीति व सामाजिक गतिविधियों से जुड़े व्यवसाय।
अंक- 9, 18, 27 (मूलांक-9)
मूलभूत प्रवृति: आत्म निर्भर, स्वतन्त्र निर्णय लेने में सक्षम, दृढ़ निश्चयी, धार्मिक गतिविधियों व पारिवारिक दायित्व की ओर रुझान, संघर्ष की क्षमता
अनुकूल व्यवसाय: सेना, न्यायिक व्यवसाय, सामाजिक कार्यकर्ता, धार्मिक व राजनैतिक क्षेत्र, प्रकाशन, फोटो, पत्रकारिता, सोने-सम्पति-बहुरंगी भू उत्पादों का विक्रय व कृषि अनुसन्धान व सम्पति विक्रय।

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महाशिवरात्रि


महाशिवरात्रि हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है। हमारे समाज में अधिकतर हिंदू भगवान शिव के उपासक हैं, इसलिए वे महाशिवरात्रि पर्व को काफी उत्साह के साथ मनाते हैं। हरिद्वार में हो रहे कुंभ मेले पर शाही स्नान इसी दिन शुरू हुआ था और प्रयाग में माघ मेले और कुंभ मेले का समापन महाशिवरात्रि के स्नान के बाद ही होता है। महाशिवरात्रि के पर्व पर शिवालयों में महिलाओं और पुरुषों की काफी भीड़ होती है। लोग शिवलिंग पर बेल की पत्तियाँ चढ़ाते हैं, गंगाजल से या दूध से स्नान कराते हैं। भक्तगण 'ओम नम: शिवाय का पाठ करते हैं और चारों तरफ 'हर-हर महादेव के जयकारे सुनाई पड़ते हैं। मन्दिरों के परिसर घंटे-घडिय़ालों की आवाज से गूंज उठते हैं। अधिकांश लोग शिवजी को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखते हैं। भगवान शिव के उपासक काँवडिय़े गंगाजल लेकर भोलेनाथ का अभिषेक करने के लिए निकल पड़ते हैं।
महाशिवरात्रि भगवान शिव के सबसे महत्वपूर्ण पर्व के रूप में सर्वमान्य है। फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को यह पर्व हर वर्ष मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान भोलेनाथ कालेश्वर के रूप में प्रकट हुए थे। महाकालेश्वर भगवान शिव की वह शक्ति है जो सृष्टि का समापन करती है। महादेव शिव जब तांडव नृत्य करते हैं तो पूरा ब्रह्माण्ड विखडिंत होने लगता है। इसलिए इसे महाशिवरात्रि की कालरात्रि भी कहा गया है।
भगवान शिव की वेशभूषा विचित्र मानी जाती है। महादेव अपने शरीर पर चिता की भस्म लगाते हैं, गले में रुद्राक्ष धारण करते हैं और नन्दी बैल की सवारी करते हैं। भूत-प्रेत-निशाचर उनके अनुचर माने जाते हैं। ऐसा वीभत्स रूप धारण करने के उपरांत भी उन्हें मंगलकारी माना जाता है जो अपने भक्त की पल भर की उपासना से ही प्रसन्न हो जाते हैं और उसकी मदद करने के लिए दौड़े चले आते हैं। इसीलिए उन्हें आशुतोष भी कहा गया है। भगवान शंकर अपने भक्तों के न सिर्फ कष्ट दूर करते हैं बल्कि उन्हें श्री और संपत्ति भी प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि की कथा में उनके इसी दयालु और कृपालु स्वभाव का वर्णन किया गया है।
महाशिवरात्रि पर्व को और भी कई रूपों में जाना जाता है। कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन से ही होली पर्व की शुरुआत हो जाती है। महादेव को रंग चढ़ाने के बाद ही होलिका का रंग चढऩा शुरू होता है। बहुत से लोग ईख या बेर भी तब तक नहीं खाते जब तक महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को अर्पित न कर दें। प्रत्येक राज्य में शिव पूजा उत्सव को मनाने के भिन्न-भिन्न तरीके हैं लेकिन सामान्य रूप से शिव पूजा में भांग-धतूरा-गांजा और बेल ही चढ़ाया जाता है। जहाँ भी ज्योतिर्लिंग हैं, वहाँ पर भस्म आरती, रुद्राभिषेक और जलाभिषेक कर भगवान शिव का पूजन किया जाता है।
सागर-मंथन के दौरान जब समुद्र से विष उत्पन्न हुआ था तो मानव जाति के कल्याण के लिए महादेव ने विषपान कर लिया था। विष उनके कंठ में आज भी ठहरा हुआ है, इसीलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा गया है। कुछ लोगों का मानना है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शंकर जी का विवाह पार्वती जी से हुआ था, उनकी बरात निकली थी। वास्तव में महाशिवरात्रि का पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की याद दिलाता है। महाशिवरात्रि के दिन व्रत धारण करने से सभी पापों का नाश होता है और मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति भी नियंत्रित होती है। निरीह लोगों के प्रति दयाभाव उपजता है। ईशान संहिता में इसकी महत्ता का उल्लेख इस प्रकार है-
शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनत्।
चाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं।।
कृष्ण चतुर्दशी के दिन इस पर्व का महत्व इसलिए अधिक फलदाई हो जाता है क्योंकि चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने आती है परंतु फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्यदेव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा इसी दिन से ऋतु परिवर्तन की भी शुरुआत हो जाती है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चन्द्रमा अपनी सबसे कमजोर अवस्था में पहुँच जाता है जिससे मानसिक संताप उत्पन्न हो जाता है। चूँकि चन्द्रमा शिवजी के मस्तक पर सुशोभित है इसलिए चन्द्रमा की कृपा प्राप्त करने के लिए शिवजी की आराधना की जाती है। इससे मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
हिन्दुओं के दो सम्प्रदाय माने गए हैं। एक शैव और दूसरा वैष्णव। अन्य सारे सम्प्रदाय इन्हीं के अन्तर्गत माने जाते हैं। नामपंथी, शांतपंथी या आदिगुरु शंकाराचार्य के दशनामी सम्प्रदाय, सभी शैव सम्प्रदाय के अन्तर्गत आते हैं। भारत में शैव सम्प्रदाय की सैकड़ों शाखाएँ हैं। यह विशाल वट वृक्ष की तरह संपूर्ण भारत में फैला हुआ है। वर्ष में 365 दिन होते हैं और लगभग इतनी ही रात्रियाँ भी। इनमें से कुछ चुनिंदा रात्रियाँ ही होती हैं जिनका कुछ महत्व होता है। उन चुनिंदा रात्रियों में से महाशिवरात्रि ऐसी रात्रि है जिसका महत्व सबसे अधिक है। यह भी माना जाता है कि इसी रात्रि में भगवान शंकर का रुद्र के रूप में अवतार हुआ था।
महाशिवरात्रि पर उपवास का भी अपना विशेष महत्व है। उपवास का अर्थ होता है भगवान का वास। उपवास का अर्थ भूखा रहना या निराहार रहना नहीं है। आराध्य देव को मन में बसा कर किसी उद्देश्य को लेकर इनकी पूजा करना भी उपवास रहना है। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन पवित्र होकर शिव को मन में बसाना भी उपवास है। कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए भगवान शंकर का आशीर्वाद ग्रहण करने का भक्तों के समक्ष शानदार अवसर होता है।
महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण की भी महत्ता है। कुछ संतों का कहना है कि रात भर जागना जागरण नहीं है बल्कि पाँचों इंद्रियों की वजह से आत्मा पर जो बेहोशी या विकार छा गया है, उसके प्रति जागृत होना ही जागरण है। यंत्रवत जीने को छोड़कर अर्थात् तन्द्रा को तोड़कर चेतना को शिव के एक तंत्र में लाना ही महाशिवरात्रि का संदेश है।
नंदी के बिना महादेव
अधिकतर शिवालयों में शिवलिंग के साथ नंदी की मूर्ति जरूर मिलेगी। लेकिन नासिक शहर के पंचवटी इलाके में गोदावरी तट के पास कपालेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग के साथ नंदी की मूर्ति नहीं है। यह देश का पहला ऐसा मंदिर है और यही इसकी विशेषता है। यहाँ पर नंदी के अभाव की रोचक कहानी है। कहते हैं कि एक दिन भरी सभा में ब्रह्मा जी और शंकर जी में विवाद हो गया। उस समय ब्रह्मा के पाँच मुख थे। चार मुख वेदोच्चारण करते थे और पाँचवा मुख सिर्फ निंदा करता था। उसकी निंदा से क्षुब्ध शंकर जी ने अपनी तलवार से उस मुख को काट डाला।
इस घटना के बाद शंकर जी पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शंकर जी ब्रह्मांड में विचरते रहे। जब वह सोमेश्वर में थे तो उन्होंने देखा कि एक ब्राह्मण एक बछड़े की नाक में जंजीर डाल रहा है। गुस्से में बछड़ा ब्राह्मण पर हमला करने चला तो गाय ने समझाया कि ब्राह्मण को मारने से ब्रह्म हत्या का पाप लग जाएगा और उससे मुक्ति पाना आसान नहीं है। बछड़े ने कहा कि उसे पाप से मुक्ति का रास्ता मालूम है। यह कहकर उसने ब्राह्मण को मार डाला। ब्रह्म हत्या से बछड़े के अंग काले पड़ गए तो वह गोदावरी नदी के रामकुंड में पहुँचा। उसने वहाँ पर स्नान किया। उस स्नान से ब्रह्म हत्या के पाप का क्षालन हो गया और उसको अपना सफेद रंग वापस मिल गया।
शंकर जी ने भी उस कुंड में स्नान किया और ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो गए। इसी गोदावरी नदी के पास एक टेकरी है, शंकर जी वहाँ पर चले गए। उन्हें वहाँ जाते देख बछड़ा (नंदी) भी वहाँ पर पहुँच गया। शंकर जी ने उस नंदी को अपने सामने बैठने से मना कर दिया क्योंकि ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दिलाने वाले नंदी को उन्होंने अपना गुरु मान लिया था।

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आपकी कुंडली में केतु


केतु भारतीय ज्योतिष में उतरती लूनर-नोड को दिया गया नाम है। केतु एक रूप में राहु नामक ग्रह के सिर का धड़ है। यह सिर समुद्र मन्थन के समय मोहिनी अवतार रूपी भगवान विष्णु ने काट दिया था। यह एक छाया ग्रह है। माना जाता है कि इसका मानव जीवन एवं पूरी सृष्टि पर अत्यधिक प्रभाव रहता है। केतु को प्राय: सिर पर कोई रत्न या तारा लिये हुए दिखाया जाता है, जिससे रहस्यमयी प्रकाश निकल रहा होता है।
केतु की स्थिति भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु, सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक हैं जो पृथ्वी के सपेक्ष एक दूसरे के उलटी दिशा में (180 डिग्री पर) स्थित रहते हैं। चूंकि ये ग्रह कोई खगोलीय पिंड नहीं हैं, इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। सूर्य और चंद्र के ब्रह्मांड में अपने-अपने पथ पर चलने के कारण ही राहु और केतु की स्थिति भी साथ-साथ बदलती रहती है। ''वक्र चंद्रमा ग्रसे ना राहु पूर्णिमा के समय यदि चाँद, केतु (अथवा राहु) बिंदु पर भी रहे तो पृथ्वी की छाया पडऩे से चंद्र ग्रहण लगता है, क्योंकि पूर्णिमा के समय चंद्रमा और सूर्य एक दूसरे के उलटी दिशा में होते हैं।
हिन्दू ज्योतिष में केतु अच्छी व बुरी आध्यात्मिकता एवं पराप्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक है। केतु विष्णु के मत्स्य अवतार से संबंधित है। केतु, भौतिकीकरण के शोधन के आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक है और हानिकर और लाभदायक, दोनों ही माना जाता है, क्योंकि ये जहां एक ओर दु:ख एवं हानि देता है, वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति को देवता तक बना सकता है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर मोडऩे के लिये भौतिक हानि तक करा सकता है। यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक है।
माना जाता है कि केतु, अपने भक्त के परिवार को समृद्धि दिलाता है, सर्पदंश या अन्य रोगों के प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है। ये अपने भक्तों को अच्छा स्वास्थ्य, धन-संपदा व पशु-संपदा दिलाता है। मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष गणनाओं के लिए केतु को तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानते हैं। केतु स्वभाव से मंगल की भांति ही एक क्रूर ग्रह है तथा मंगल के प्रतिनिधित्व में आने वाले कई क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व केतु भी करता है। यह ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी है अश्विनी, मघा एवं मूल नक्षत्र। यही केतु जन्म कुण्डली में राहु के साथ मिलकर कालसर्प योग की स्थिति बनाता है। केतु को सूर्य व चंद्र का शत्रु कहा गया हैं। केतु, मंगल ग्रह की तरह प्रभाव डालता है। केतु वृश्चिक व धनु राशि में उच्च का और वृष व मिथुन में नीच का होता है।
* भगवान विष्णु के चक्र से कटने पर सिर राहु कहलाया और धड़ केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। केतु राहु का ही कटबन्ध है। राहु के साथ केतु भी ग्रह बन गया। मत्स्य पुराण के अनुसार केतु बहुत-से हैं, उनमें धूमकेतु प्रधान है।
* भारतीय-ज्योतिष के अनुसार यह छायाग्रह है। व्यक्ति के जीवन-क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को यह प्रभावित करता है। आकाश मण्डल में इसका प्रभाव वायव्यकोण में माना गया है। कुछ विद्वानों के मतानुसार राहु की अपेक्षा केतु विशेष सौम्य तथा व्यक्ति के लिये हितकारी है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह व्यक्ति को यश के शिखर पर पहुँचा देता है। केतु का मण्डल ध्वजाकार माना गया है। कदाचित यही कारण है कि यह आकाश में लहराती ध्वजा के समान दिखायी देता है। इसका माप केवल छ: अंगुल है।
* यद्यपि राहु-केतु का मूल शरीर एक था और वह दानव-जाति का था। परन्तु ग्रहों में परिगणित होने के पश्चात उनका पुनर्जन्म मानकर उनके नये गोत्र घोषित किये गये। इस आधार पर राहु पैठीनस-गोत्र तथा केतु जैमिनि-गोत्र का सदस्य माना गया। केतु का वर्ण धूम्र है। कहीं-कहीं इसका ''कपोत-वाहनÓÓ भी मिलता है। जन्म कुंडली में लग्न, षष्ठम, अष्ठम और एकादश भाव में केतु की स्थिति को शुभ नहीं माना गया है। इसके कारण जातक के जीवन में अशुभ प्रभाव ही देखने को मिलते हैं। जन्मकुंडली में केतु यदि केंद्र-त्रिकोण में उनके स्वामियों के साथ बैठे हों या उनके साथ शुभ दृष्टि में हों तो योगकारक बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में ये अपनी शुभ परिणाम जैसे लंबी आयु, धन, भौतिक सुख आदि देते हैं।
* केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैं। केतु की पत्नी सिंहिका और विप्रचित्ति में से एक के एक सौ एक पुत्र हुए।
कुण्डली में केतु :
जातक की जन्म-कुण्डली में विभिन्न भावों में केतु की उपस्थिति भिन्न-भिन्न प्रभाव दिखाती हैं:
* प्रथम भाव में अर्थात लग्न में केतु हो तो जातक चंचल, भीरू, दुराचारी होता है। इसके साथ ही यदि वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, धनी एवं परिश्रमी होता है।
* द्वितीय भाव में हो तो जातक राजभीरू एवं विरोधी होता है।
* तृतीय भाव में केतु हो तो जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है।
* चतुर्थ भाव में हो तो जातक चंचल, वाचाल, निरुत्साही होता है।
* पंचम भाव में हो तो वह कुबुद्धि एवं वात रोगी होता है।
* षष्टम भाव में हो तो जातक वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी होता है।
* सप्तम भाव में हो तो जातक मंदमति, शत्रु से डरने वाला एवं सुखहीन होता है।
* अष्टम भाव में हो तो वह दुर्बुद्धि, तेजहीन, स्त्री द्वेषी एवं चालाक होता है।
नवम भाव में हो तो सुखभिलाषी, अपयशी होता है।
* दशम भाव में हो तो पितृद्वेषी, भाग्यहीन होता है।
* एकादश भाव में केतु हर प्रकार का लाभदायक होता है। इस प्रकार का जातक भाग्यवान, विद्वान, उत्तम गुणों वाला, तेजस्वी किन्तु रोग से पीडि़त रहता है।
* द्वादश भाव में केतु हो तो जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की स्वभाव होता है।
केतु के प्रभाव:
* सूर्य जब केतु के साथ होता है तो जातक के व्यवसाय, पिता की सेहत, मान-प्रतिष्ठा, आयु, सुख आदि पर बुरा प्रभाव डालता है।
* चंद्र यदि केतु के साथ हो और उस पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति मानसिक रोग, वातरोग, पागलपन आदि का शिकार होता है।
* वृश्चिक लग्न में यह योग जातक को अत्यधिक धार्मिक बना देता है।
* मंगल केतु के साथ हो तो जातक को हिंसक बना देता है। इस योग से प्रभावित जातक अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाते और कभी-कभी तो कातिल भी बन जाते हैं।
* बुध केतु के साथ हो तो व्यक्ति लाइलाज बीमारी ग्रस्त होता है। यह योग उसे पागल, सनकी, चालाक, कपटी या चोर बना देता है। वह धर्म विरुद्ध आचरण करता है।
* केतु गुरु के साथ हो तो गुरु के सात्विक गुणों को समाप्त कर देता है और जातक को परंपरा विरोधी बनाता है। यह योग यदि किसी शुभ भाव में हो तो जातक ज्योतिष शास्त्र में रुचि रखता है।
* शुक्र केतु के साथ हो तो जातक दूसरों की स्त्रियों या पर पुरुष के प्रति आकर्षित होता है।
* शनि केतु के साथ हो तो आत्महत्या तक कराता है। ऐसा जातक आतंकवादी प्रवृति का होता है। अगर बृहस्पति की दृष्टि हो तो अच्छा योगी होता है।
* किसी स्त्री के जन्म लग्न या नवांश लग्न में केतु हो तो उसके बच्चे का जन्म आपरेशन से होता है। इस योग में अगर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो कष्ट कम होता है।
* भतीजे एवं भांजे का दिल दुखाने एवं उनका हक छीनने पर केतु अशुभ फल देता है। कुत्ते को मारने एवं किसी के द्वारा मरवाने पर, किसी भी मंदिर को तोडऩे अथवा ध्वजा नष्ट करने पर इसी के साथ ज्यादा कंजूसी करने पर केतु अशुभ फल देता है। किसी से धोखा करने व झूठी गवाही देने पर भी केतु अशुभ फल देते हैं।
अत: मनुष्य को अपना जीवन व्यवस्थित जीना चाहिए। किसी को कष्ट या छल-कपट द्वारा अपनी रोजी नहीं चलानी चाहिए। किसी भी प्राणी को अपने अधीन नहीं समझना चाहिए जिससे ग्रहों के अशुभ कष्ट सहना पड़े।
सकारात्मक केतु और नकारात्मक केतु का प्रभाव:
गुरु के साथ नकारात्मक केतु अपंगता का इशारा करता है, उसी तरह से सकारात्मक केतु साधन सहित और जिम्मेदारी वाली जगह पर स्थापित होना कहता है, मीन का केतु उच्च का माना जाता है और कन्या का केतु नकारात्मक कहा जाता है, मीन राशि गुरु की राशि है और कन्या राशि बुध की राशि है। गुरु ज्ञान से सम्बन्ध रखता है और बुध जुबान से, ज्ञान और जुबान में बहुत अन्तर है। इसी के साथ अगर शनि के साथ केतु है तो काला कुत्ता कहा जाता है, शनि ठंडा भी है और अन्धकार युक्त भी है, गुरु अगर गर्मी का एहसास करवा दे तो ठंडक भी गर्मी में बदल जाती है, चन्द्र केतु के साथ गुरु की मेहरबानी प्राप्त करने के लिये जातक को धर्म कर्म पर विश्वास करना जरूरी होता है, सबसे पहले वह अपने परिवार के गुरु यानी पिता की महरबानी प्राप्त करे, फिर वह अपने कुल के पुरोहित की मेहरबानी प्राप्त करे, या फिर वह अपने शरीर में विद्यमान दिमाग नामक गुरु की मेहरबानी प्राप्त करे।
मंगल को नवग्रहों में तीसरा स्थान प्राप्त है और केतु को नवम स्थान, फिर भी ज्योतिष की पुस्तकों में कई स्थान पर लिखा मिलता है कि मंगल एवं केतु समान फल देने वाले ग्रह हैं। ज्योतिषशास्त्र में मंगल एवं केतु को राहु एवं शनि के समान ही पाप ग्रह कहा जाता है। मंगल एवं केतु दोनों ही उग्र एवं क्रोधी स्वभाव के माने जाते हैं। इनकी प्रकृति अग्नि प्रधान होती है, मंगल एवं केतु एक प्रकृति होने के बावजूद इनमें काफी कुछ अंतर हैं एवं कई विषयों में मंगल केतु एक समान प्रतीत होते हैं।
मंगल एवं केतु में समानता:
मंगल व केतु दोनों ही जोशीले ग्रह हैं, लेकिन इनका जोश अधिक समय तक नहीं रहता है। दूध की उबाल की तरह इनका जोश जितनी चल्दी आसमान छूने लगता है उतनी ही जल्दी वह ठंडा भी हो जाता है। इसलिए, इनसे प्रभावित व्यक्ति अधिक समय तक किसी मुद्दे पर डटे नहीं रहते हैं, जल्दी ही उनके अंदर का उत्साह कम हो जाता है और मुद्दे से हट जाते हैं। मंगल एवं केतु का यह गुण है कि इन्हें सत्ता सुख काफी पसंद होता है। ये राजनीति में एवं सरकारी मामलों में काफी उन्नति करते हैं। शासित होने की बजाय शासन करना इन्हें रूचिकर लगता है। मंगल एवं केतु दोनों को कष्टकारी, हिंसक, एवं कठोर हृदय वाला ग्रह कहा जाता है। परंतु, ये दोनों ही ग्रह जब देने पर आते हैं तो उदारता की पराकष्ठा दिखाने लगते हैं यानी मान-सम्मान, धन-दौलत से घर भर देते हैं।

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ज्योतिषीय योग बनाता है प्रशासनिक अधिकारी


कुण्डली में बनने वाले योग ही बताते है कि व्यक्ति की आजीविका का क्षेत्र क्या रहेगा। प्रशासनिक सेवाओं में प्रवेश की लालसा अधिकांश लोगों में रहती है, बनते बिरले ही हैं। आई. ए. एस. जैसे उच्च पद की प्राप्ति के लिये व्यक्ति की कुण्डली में सर्वप्रथम शिक्षा का स्तर सर्वोत्तम होना चाहिए। कुंडली के दूसरे, चतुर्थ, पंचम एवं नवम भाव व भावेशों के बली होने पर जातक की शिक्षा उत्तम होती है। शिक्षा के कारक ग्रह बुध, गुरु व मंगल बली होने चाहिए, यदि ये बली हैं तो विशिष्ट शिक्षा मिलती है और जातक के लिए सफलता का मार्ग खोलती है। आईये देखें कि कौन से योग प्रशासनिक अधिकारी के कैरियर में आपको सफलता दिला सकते हैं:
* छठा, पहला व दशम भाव व भावेश बली हों तो प्रतियोगी परीक्षा में सफलता अवश्य मिलती है। सफलता के लिये समर्पण, एकाग्रता एवं परिश्रम की आवश्यकता होती है। इसका बोध तीसरे भाव एवं तृतीयेश के बली होने पर होता है। यदि ये बली हैं तो जातक में समर्पण, एकाग्रता एवं परिश्रम करने की क्षमता होती है और व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा में सफलता की मिलने की संभावना भी बढ़ जाती है।
* सूर्य को राजा और गुरु को ज्ञान का कारक कहा गया है। ये दोनों ग्रह मुख्य रूप से प्रशासनिक प्रतियोगिताओं में सफलता और उच्च पद प्राप्ति में सहायक हैं। जनता से अधिक वास्ता पड़ता है इसलिए शनि का बली होना अत्यन्त आवश्यक है। शनि जनता व प्रशासनिक अधिकारियों के बीच की कड़ी है। मंगल को स्याही व बुध को कलम कहा जाता है और ये बली हों तो जातक अपनी कलम का लोहा नौकरी में अवश्य मनवाता है।
* किसी भी प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा में सफलता के लिये लग्न, षष्टम, तथा दशम भावो/ भावेशों का शक्तिशाली होना तथा इनमे पारस्परिक संबन्ध होना आवश्यक है। ये भाव/ भावेश जितने समर्थ होगें और उनमें पारस्परिक सम्बन्ध जितने गहरे होगें उतनी ही उंचाई तक व्यक्ति जा सकेगा।
* सफलता के लिये पूरी तौर से समर्पण तथा एकाग्र मेहनत की आवश्यकता होती है। इन सब गुणों का बोध तीसरा घर कराता है, जिससे पराक्रम के घर के नाम से जाना जाता है। तीसरा भाव इसलिये भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दशम घर से छठा घर है। इस घर से व्यवसाय के शत्रु देखे जाते है।
* इसके बली होने से व्यक्ति में व्यवसाय के शत्रुओं से लडऩे की क्षमता आती है। यह घर उर्जा देता है। जिससे सफलता की उंचाईयों को छूना संभव हो पाता है।
* कुण्डली के सभी ग्रहों में सूर्य को राजा की उपाधि दी गई है तथा गुरु को ज्ञान का कारक कहा गया है। ये दो ग्रह मुख्य रुप से प्रशासनिक प्रतियोगिताओं में सफलता और उच्च पद प्राप्ति में सहायक ग्रह माने जाते हैं। जिनमें इनका योग बनता है, ऐसे अधिकारियों के मुख्यकार्य मुख्य रुप से जनता की सेवा करना है।
* उनके लिये शनि का महत्व अधिक हो जाता है क्योकि शनि जनता व प्रशासनिक अधिकारियों के बीच के सेतू है। कई प्रशासनिक अधिकारी नौकरी करते समय भी लेखन को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में सफल हुए है। यह मंगल व बुध की कृपा के बिना संभव नहीं है। मंगल को स्याही व बुध को कलम कहा जाता है।
* प्रशासनिक अधिकारी मे चयन के लिये सूर्य, गुरु, मंगल, राहु व चन्द्र आदि ग्रह बलिष्ठ होने चाहिए। मंगल से व्यक्ति में साहस, पराक्रम व जोश आता है जो प्रतियोगिताओं में सफलता की प्राप्ति के लिये अत्यन्त आवश्यक है।
* व्यक्ति को आई.ए.एस. बनने के लिये दशम, छठे, तीसरे व लग्न भाव/भावेशों की दशा मिलनी अच्छी होगी।
* भाव एकादश का स्वामी नवम घर में हो या दशम भाव के स्वामी से युति या दृष्ट हो तो व्यक्ति के प्रशासनिक अधिकारी बनने की संभावना बनती है।
* पंचम भाव में उच्च का गुरु या शुक्र होने पर उसपर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तथा सूर्य भी अच्छी स्थिति में हो तो व्यक्ति इन्ही ग्रहों की दशाओं में उच्च प्रशासनिक अधिकारी बनता है।
* लग्नेश और दशमेश स्वग्रही या उच्च के होकर केन्द्र या त्रिकोण में हो और गुरु उच्च का या स्वग्रही हो तो भी व्यक्ति की प्रशासनिक अधिकारी बनने की प्रबल संभावना होती है।
* प्रशासनिक अधिकारी बनकर सफलता पाने के लिए सूर्य, गुरु, मंगल, राहु व चन्द्र आदि ग्रह बली होने चाहिए।
* मंगल से जातक में साहस एवं पराक्रम आता है जोकि अत्यन्त आवश्यक है। सूर्य से नेतृत्व करने की क्षमता मिलती है, गुरु से विवेक सम्मत निर्णय लेने की क्षमता मिलती है और चन्द्र से शालीनता आती है एवं मस्तिष्क स्थिर रहता है।
* यदि कुण्डली में अमात्यकारक ग्रह बली है अर्थात् स्वराशि, उच्च या वर्गोत्तम में है एवं केन्द्र में हो या तीसरे या दसवें हो तो अत्यन्त उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
* एकादशेश नौवें भाव में हो या दशमेश के साथ युत में हो या दृष्ट हों तो जातक में प्रशासनिक अधिकारी बनने की संभावना अधिक होती है।
* पंचम भाव में उच्च का गुरु या शुक्र हो और उस पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो एवं सूर्य अच्छी स्थिति में हो तो जातक इन दशाओं में उच्च प्रशासनिक अधिकारी बनता है।
* लग्नेश और दशमेश स्वराशि या उच्च का होकर केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो और गुरु उच्च या स्वराशि में हो तो जातक प्रशासनिक अधिकारी बनता है।
* लग्न में सूर्य और बुध हो और गुरु की शुभ दृष्टि इन पर हो तो जातक प्रशासनिक सेवा में उच्च पद प्राप्त करने में सफल रहता है।
* आई.ए.एस. बनने के लिये तृतीयेश, षष्ठेश, दशमेश व एकादशेश की दशा मिलनी सोने में सुहागा होता है अर्थात् सफलता निश्चित है।
* तीसरे, छठे, दसवें, एकादश में सर्वाष्टक वर्ग की संख्या बढ़ते क्रम में हो तो प्रशासनिक सेवाओं में धन, यश एवं उन्नति तीनों एक साथ मिलते हैं। ऐसे अधिकारी की सभी प्रशंसा करते हैं।
उक्त ज्योतिष योग कुण्डली में विचार कर आप जातक के प्रशासनिक सेवाओं में सफलता का निर्णय करके जातक को उचित सलाह देकर यश एवं धन के भागी बन सकते हैं। ये योग इस क्षेत्र में अच्छा कैरियर बनाते हैं।

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केजरीवाल अभी कायम हैं


केजरीवाल अभी कायम हैं
गत कुछ वर्षों में भारतीय राजनीति में किसी बड़ी क्रांति की तरफ देखते हैं तो वह क्रांति है आरटीआई का कानून। जिसके पारित कराने में जिनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, वे थे अरविंद केजरीवाल। ये बात सच है कि पिछले दिल्ली के चुनाव में इन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर एक आत्मघाती कदम उठाया, जिसकी चारों ओर निंदा हुई। इससे उनका जनाधार कम हुआ, पार्टी के अंदर व बाहर फूट हुई। जो केजरीवाल आप पार्टी के सर्वेसर्वा माने जाते थे उनका अपनी पार्टी में ही विरोध होने लगा। एक बार तो विरोधियों को लगा होगा कि केजरीवाल खत्म। परंतु ज्योतिष ऐसा नहीं कहता। अब एक नजर अरविंद केजरीवाल के ज्योतिषीय भविष्य पर डालें तो देखेंगे कि उनकी जिंदगी जबरदस्त उतार-चढ़ाव भरी रही। पर वे कभी हारे नहीं, शायद इसकी वजह उनकी कुंडली में है। अरविंद केजरीवाल की राशि और लग्न दोनों वृषभ है। लग्न का चंद्रमा जहां इनके व्यक्तित्व को आकर्षक बना रहा है वहीं मित्र सूर्य के घर में बैठा बुध इन्हें बेहतर वक्तृत्व शैली भी प्रदान कर रहा है। बुध के साथ-साथ स्वगृही सूर्य की उपस्थिति बुधादित्य नामक राजयोग निर्मित करते हैं तथा लाभ स्थान के राहु ने इनके लिए एक नई जगमगाती कथा लिखी। इसी राहू ने इन्हें लोगों के बीच भरोसेमंद बनाया।
वर्तमान में गुरू की महादशा में शुक्र का अंतर १ मार्च को समाप्त हो रहा है और दिल्ली के चुनाव फ रवरी माह में समाप्त हो रहे हैं। इसके बाद सूर्य का अंतर इनकी प्रतिष्ठा और सक्रियता को कई गुना बढ़ायेगा। इसके कई मायने लगाये जा सकते हैं। पर सार यह है कि ये दिल्ली में महत्वपूर्ण भूमिका में होंगे और सरकार के लिये परेशानी पैदा करते रहेंगे और अपना जनाधार बढ़ाते रहेंगे।
अब एक नजर उनके जीवन पर डालें तो मंगल में केतु की दशा में उन्होंने १९८९ में आई.आई.टी. किया तथा राहु में शनि के अंतर में १९९२ में वे आई.आर.एस. में आ गए। यहां आकर उन्होंने भ्रष्टाचार देखा। २००० में राहु में शुक्र का अंतर चल रहा था, उस समय उन्होंने छुट्टी ले ली और नागरिक आंदोलन, परिवर्तन की शुरूआत की। और जब फरवरी २००६ में जब गुरू में राहु का प्रत्यंतर चल रहा था तब उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। इस समय अरुणा राय और इनके प्रयास से आर.टी.आई. का कानून संसद में पास कर दिया गया। ६ फरवरी २००७ जब गुरू में शनि का अंतर चल रहा था तो लोग २००६ के लिए लोक-सेवा में सीएनएन-आईबीएन इस वर्ष का भारतीय Indian of the year शद्घ नामित किया गया। गुरू में शुक्र का अंतर प्रारंभ हुआ जून २०१२ से, यहीं से उन्होंने अन्ना के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल बिल के लिए बड़ा आंदोलन किया जिसे आगे चलकर अगस्त क्रान्ति का नाम दिया गया। परन्तु इस आंदोलन में बड़ी राजनैतिक पार्टियों का सहयोग नहीं मिला और यहीं पर शुक्र की अंतरदशा में ही अपने राजनैतिक कैरियर की शुरूआत की और आप पार्टी की स्थापना की। इन्होंने दिल्ली विधान सभा में २८ सीटें जीतकर देश की राजनीति में खलबली मचा दी थी, हालांकि ग्रहदशाओं के चलते वे अपनी इस सफ लता को दूरगामी बना पाने में सफ ल नहीं हो पाए।
अगर इनके निकटतम भविष्य को देखें, 2015 से प्रारंभ होने वाली सूर्य की अंतर्दशा उन्हें नए पंख प्रदान करेगी। सूर्य की अंतर्दशा उन्हें जरूर बड़ा पद या हैसियत प्रदान करेगी। बड़े-बड़े दिग्गजों को बेचारा बना देने वाले अरविंद केजरीवाल आगे भी अनेक खास को आम बना देने का कौशल दिखा सकते हैं। यदि बहुत बुरा हुआ तो भी केजरीवाल विपक्ष के नेता के तौर पर दिल्ली की राजनीति में कायम रहेंगे।

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भारत की राजनीति और केजरीवाल




स्वतंत्र भारत की कुंडली में लग्र वृषभ और राशि कर्क है, लग्रस्थ राहु है जिसके चलते जनहित की नीतियों का शीर्षासन आजतक हमने देखा, स्वतंत्रता के बाद से लगभग ७० वर्ष में सरकारों की मंशा चाहे जो रही हो, पर धरातल में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, भयानक जनसंख्या विस्फोट, अपराध, सामाजिक विषमता, आर्थिक विषमता, क्षेत्रवाद, भाषावाद और जातिवाद ने बेतहाशा पांव पसारे। मतलब बहुत साफ है, कोई तो वजह रही होगी, वर्ना आप यूं बेवफा न होते! और आज भी भारत की कुंडली को देखने पर लगता है कि यह सरकार भी विकास के मुद्दे पर बड़े उद्योगपति घरानों के गोद में बैठी हुई है, और सर्वहारा फिर लावारिस सा अपनी पहचान खोज रहा है। सरकार के बड़े-बड़े वादे और संभवत: जनता को मूल दर्द से भटकाने की सरकारी कोशिश से लगता है कि सरकार का व्यक्तिगत भी ऐजेंडा है जो लोगों को समझ में आना चाहिए। जबरदस्त औद्योगिक विकास की महत्वाकांक्षा लिये सरकार भूमिअधिग्रहण कानून और पर्यावरण से संबंधित कानूनों में जिस तरह बदलाव लेकर आ रही है, वो फिर किसी अतिवाद का शिकार हो सकती है। इस समय भारत की कुंडली के गोचर के अनुसार २४ जनवरी जब मैं यह लेख लिख रहा हूं तब दशम स्थान में शुक्र मंगल, पांचवे स्थान में राहु, तीसरे स्थान में बृहस्पति, भाग्य स्थान में सूर्य-बुध, ग्यारहवे स्थान में चंद्र-केतु हैं। अमेरिका के सबसे ताकतवर व्यक्ति दिल्ली पहुंचने वाले हैं, पूरा देश रेड कार्पेट बिछाये बैठा है। पूरा मीडिया कार से लेकर कारनामे का बखान कर रहा है। ऐसे में देखने की बात होगी कि देश का भविष्य कैसा है।
ग्रहीय गणना करें तो एकादशेश तीसरे स्थान में है, सरकार औद्योगिक विकास चाहती है, तृतीयेश केतु के साथ एकादशस्थ है, संकल्पनिष्ठा भी पूरी है, ताकत भी पूरी है परंतु भाग्येश शनि सप्तम स्थान पर बैठकर अपने भाव को पूर्ण दृष्टि रखते हैं। यानि कुछ गड़बड़ होगी। ये शनि दशमेश भी हैं यानि कुछ भारी गड़बड़। शनि को न्याय का स्वामी मानते हैं, यहां यह सांस्कृतिक विरासत का भी स्वामी है। क्या देश में समरसता खण्डित होने वाली है? क्या देश अपने लक्ष्य से ईतर किसी दूसरी परेशानी में फंसने वाला है? क्या देश में विघटनकारी शक्तियां कुछ भयानक साजिश कर रहीं हैं, क्या सरकार इससे अनजान हैं? कुछ ऐसा ही होने वाला है। या विकास की गरज से बनाये कानूनों का कुछ लोगों द्वारा दुरूपयोग होने वाला है। कुछ तो ऐसा है जिससे डगर इतनी आसान नहीं रहने वाली। मैं निराशावादी नहीं, और भय फैलाने वाला भी नहीं। अपितु सावधान जरूर हूं और वक्त के आगे देखने की कोशिश करता हूं। आने वाले दिनों में सरकार को इन दोनों ही खतरों से सावधान रहना होगा। शायद यही वे कारण होंगे जो भविष्य में राजनीति का दूसरा केंद्र निर्मित करेंगे। असल में सरकार के पक्ष के कुछ लोग और सरकार के विरोध के कुछ लोग समरसता को भंग करने की भयानक साजिश कर रहे हैं। इसका परिणाम भले ही कुछ हो, पर वह परिणाम तो नहीं आयेगा, जो सरकार चाहती है। सरकार मेरी नजर में इस वक्त अपने मूल स्वाभाव निर्पेक्षता के मूल बिंदु से हट रही है। चाहे वह अपने राजनैतिक सांगठिक मित्रों की वजह से हो या अपने औद्योगिक मित्रों की वजह से। मसला सावधान रहने का है वर्ना देश में राजनीति में पुन: नेतृत्व विकेंद्रित हो सकता है। यहां पर भारत के दूसरे नेतृत्व पर चर्चा करना भी जरूरी है, जिन्होंने बीते दिनों में भारतीय जनतंत्र को प्रभावित किया था। एक थे बाबा रामदेव, दूसरे अन्ना हजारे और तीसरे और इनमें महत्वपूर्ण अरविंद केजरीवाल।
भारतीय राजनीति में महात्मा गाँधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, जयप्रकाश नारायण सरीखे जनता में प्रभाओ शाली नेताओं के नाम की तरह वर्ष २०१४-२०१५ अरविंद केजरीवाल का नाम भी शूमर होगा जिनकी बातों से प्रभावित हो कर देश ने क्रांति का इतिहाश लिखा बेशक इस क्रांति में बहुत लोग शामिल थे और मेरी नज़र में इस क्रांति की स्क्रिप्ट अरविंद केजरीवाल ने लिखी थी तत्कालीन सत्ताशीन कुछ बड़े नेताओं नें मुहिम भी चलाई पर वे नाकाम रहे| अरविंद केजरीवाल चांटे खाकर, भयानक राजनैतिक साजिशों का शिकार होकर भी अत्यंत सहज भाव से भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार और पूंजीवादियों के खिलाफ और गरीब जनता के पक्ष में दृढ़तापूर्वक खड़ा हो तो वह महात्मा गांधी के अलावा सिर्फ अरविंद केजरीवाल हो सकते हैं। हालांकि देश का एक वर्ग इन्हें शायद न स्वीकार करता हो, पर इनके तर्कों के आगे बड़े-बड़े राजनेता नतमस्तक हो जाते हैं। पिछले साल अन्ना, अरविंद और रामदेव बाबा की तिकड़ी एक पूरे राष्ट्रीय पार्टी पर भारी पड़ी मगर तीनों का दुर्भाग्य के इनमें से कोई भी इसका राजनैतिक लाभ नहीं ले पाया क्योंकि तीनों के पास राजनैतिक संगठन की कमी थी। राजनीति के उस्तादों ने सिविल सोसायटी के संगठन में पलीता लगाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन तो कम कर दिया मगर अपनी विश्वसनीयता भी खो बैठे। उधर रामदेव अतिउत्साह में काले धन पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन करके भाजपा के पक्ष में जनता को करने में सफल तो हुये परंतु उनके इस वादे की इतनी किरकिरी हुई कि वे भी अपनी विश्वसनीयता पुन: स्थापित करने में लगे हुये हैं और गाहे-बगाहे सरकार को धमकाते रहते हैं। बचे केजरीवाल, ये इकलौते दूरदृष्टा निकले जिन्होंने वक्त की नजाकत समझा, और एक राजनैतिक पार्टी की स्थापना करदी। मगर सबकुछ इतना जल्दी हुआ कि बहुत सारी जरूरी राजनैतिक सावधानियां नहीं रख पाए और इस पार्टी के आस्तीन में ही बहुतेरे महत्वाकांक्षी लोग पहुच गये जो आगे चल कर पार्टी को हानि पहुचाई ,आंदोलन और विश्वसनीयता तीनों को काफी बट्टा लगाया। बहरहाल, उन लोगों का तो कुछ नहीं पर अरविंद केजरीवाल अपनी सहिष्णुता के साथ अपनी खोई हुई साख पुन: स्थापित करने में लगे हुये हैं। भारत के राजनैतिक पंडित जानते हैं कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में वो चमक नहीं है। समाजवादी अपने प्रदेशों में अव्यवस्था (गुंडई) को नहीं संभाल पा रहे हैं और साथ ही वे वर्तमान विकास की राजनीति के ईतर दूसरे तरीकों में अपना भविष्य ढूंढ़ रहे हैं। ..और बहुजन समाजवादी नेतृत्व भी उत्तर में गलत राजनैतिक प्राथमिकताओं के कारण गैरमनुवादियों और अल्पसंख्यकों पर से अपना सम्मोहन खो चुके हैं। पूरव का कम्यूनिजम अपनी अदूरदर्शी नीतियों और विकास की औद्योगिक नीति के खिलाफ राजनीति कर अपना अस्तित्व खतरे में डाल चुका है। और वर्तमान सरकार पूंजीपतियों के गलबहियां कर रही है। ऐसे में मध्यम और निम्र वर्ग का राष्ट्रीय नेतृत्व शून्य है यानि इनकी बात करने वाला कोई नहीं। आने वाले दिनों में भूल-भुलैया वाली सरकार यदि वास्तविक राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित नहीं करती और केवल आतामशलाघा में जीती है या बहुत जल्दी प्रोपेगेंडा पर आधारित राजनीति की जगह, वास्तविक जनकल्याण की नीतियों पर जैसे मंहगाई, पेट्रोल-डीजल, सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, सुरक्षा, विदेश नीति, कृषि नीति, जनसंख्या, बेरोजगारी, सामाजिक शांति, सामाजिक समरसता ,भ्रस्टाचार, काला धन और न्याय पर ध्यान केंद्रित नहीं करती और भाजपानीत राज्यों में सुशासन और विकास का सपना पूरा नहीं होता तो पक्का जानिये कि आने वाले ढाई वर्षों में जब नीतियों के परिणाम आने शुरू होंगे तो सरकार मीडिया के निशाने पर होगी। और जाने-अनजाने भाजपा के ईतर नेतृत्व पनप सकता है। ऐसी स्थिति में देश की बड़ी पार्टी के रूप में 'आप पार्टी को देखेंगे।आयये अरविंद केजरीवाल का भविस्य देखें अब एक नजर अरविंद केजरीवाल के ज्योतिषीय भविष्य पर भी डालें। अरविंद केजरीवाल की राशि और लग्न दोनों वृषभ है। लग्न का चंद्रमा जहां इनके व्यक्तित्व को आकर्षक बना रहा है वहीं मित्र सूर्य के घर में बैठा बुध इन्हें बेहतर वक्तृत्व शैली भी प्रदान कर रहा है। बुध के साथ-साथ स्वगृही सूर्य की उपस्थिति बुद्धादित्य नामक राजयोग निर्मित करते हैं तथा लाभ स्थान के राहु ने इनके लिए एक नई जगमगाती कथा लिखी। इसी राहू ने इन्हें लोगों के बीच भरोसेमंद बनाया।
वर्तमान में गुरू की महादशा में शुक्र का अंतर १ मार्च को समाप्त हो रहा है। और दिल्ली के चुनाव फ रवरी माह में समाप्त हो रहे हैं। इसके बाद सूर्य का अंतर इनकी प्रतिष्ठा को और सक्रियता को कई गुना बढ़ायेगा। इसके कई मायने लगाये जा सकते हैं। पर सार यह है कि ये दिल्ली में महत्वपूर्ण भूमिका में होंगे और सरकार के लिये परेशानी पैदा करते रहेंगे और अपना जनाधार बढ़ाते रहेंगे।
अब एक नजर उनके जीवन पर डालें तो मंगल में केतु की दशा में उन्होंन १९८९ में आई.आई.टी. किया तथा राहु में शनि के अंतर में १९९२ में वे आई.आर.एस. में आ गए। यहां आकर उन्होंने भ्रष्टाचार देखा। २००० में राहु में शुक्र का अंतर चल रहा था, उस समय उन्होंने छुट्टी ले ली और नागरिक आंदोलन, परिवर्तन की शुरूआत की। और जब फरवरी २००६ में जब गुरू में राहु का प्रत्यंतर चल रहा था तब उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। इस समय अरुणा राय और इनके प्रयास से आर.टी.आई. का कानून संसद में पास कर दिया गया। ६ फरवरी २००७ जब गुरू में शनि का अंतर चल रहा था तो लोग २००६ के लिए लोक-सेवा में सीएनएन-आईबीएन ''इस वर्ष का भारतीय INDIAN OF THE YEAR नामित किया गया। गुरू में शुक्र का अंतर प्रारंभ हुआ जून २०१२ से, यहीं से उन्होंने अन्ना के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल बिल के लिए बड़ा आंदोलन किया जिसे आगे चलकर अगस्त क्रान्ति का नाम दिया गया। परन्तु इस आंदोलन में बड़ी राजनैतिक पार्टियों का सहयोग नहीं मिला और यहीं पर शुक्र की अंतरदशा में ही अपने राजनैतिक कैरियर की शुरूआत की और 'आप पार्टी की स्थापना की और दिल्ली विधान सभा में २८ सीटें जीतकर देश की राजनीति में खलबली मचा दी थी, हालांकि ग्रहदशाओं को चलते वेे अपनी इस सफ लता को दूरगामी बना पाने में सफ ल नहीं हो पाए।
अगर इनके निकटतम भविष्य को देखें, 2015 से प्रारंभ होने वाली सूर्य की अंतर्दशा उन्हें नए पंख प्रदान करेगी। सूर्य की अंतर्दशा उन्हें जरूर बड़ा पद या हैसियत प्रदान करेगी। बड़े-बड़े दिग्गजों को बेचारा बना देने वाले अरविंद केजरीवाल आगे भी अनेक खास को आम बना देने का कौशल दिखा सकते हैं।

Pt.P.S Tripathi
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