कोई कहे सब अंधविश्वास है, तो कोई कहे बेहद खौफनाक है। भूतों के बारे में सुनते तो सभी हैं परन्तु इनके पौराणिक उद्गम को जानते नहीं और भूत-प्रेत के रहस्य से हमेशा आतंकित रहते हैं। लेकिन गरुड़ पुराण ने उस सारे भय को दूर करते हुए प्रेतयोनि से संबंधित रहस्यों को जीवित मनुष्यों के कर्म फल के साथ जोड़कर सम्पूर्ण अदृश्य जगत का वैज्ञानिक आधार तैयार किया है। वैदिक ग्रन्थ ''गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन उपलब्ध है। अक्सर गरुड़ पुराण का श्रवण हिन्दू समाज में आज भी मृतक की आत्मा की शान्ति के लिए तीसरे दिन की क्रिया से नवें दिन तक पढ़ा जाता है। हिन्दू धर्म में ''प्रेत योनि इस्लाम में ''जिन्नात आदि का वर्णन भूत प्रेतों के अस्तित्व को इंगित करते हैं। पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों को तर्पण करते हैं। इसका अर्थ हुआ कि पितरों का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत प्रेत के रूप में होता है।
भूत कभी भी और कहीं भी हो सकते हैं। चाहे वह विराना हो या भीड़ भार वाला मेट्रो स्टेशन। यहां हम जिस मेट्रो स्टेशन की बात कर रहे हैं वह किसी दूसरे देश का नहीं बल्कि भारत का ही एक मेट्रो स्टेशन है। इस स्टेशन पर भूतों का ऐसा साया है कि कई लोग ट्रैक पर कूद कर जान दे चुके हैं।
यह मेट्रो स्टेशन कोलकाता में स्थित है। इस स्टेशन का नाम है रवीन्द्र सरोवर। इस मेट्रो स्टेशन के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भूतों का साया है। रात 10:30 बजे यहां से आखिरी मेट्रो गुजरती है। उस समय कई मुसाफिर और मेट्रो के ड्राइवरों ने भी इस चीज का अनुभव किया है कि मेट्रो ट्रैक के बीच अचानक कोई धुंधला साया प्रकट होता है और पल में ही गायब हो जाता है।
कोलकाता का यह मेट्रो स्टेशन यहां का सुसाइड प्वाइंट माना जाता है। कारण यह है कि यहां पर कई लोगों ने ट्रैक पर कूद कर आत्महत्या की है। वैसे भूत प्रेतों में विश्वास नहीं करने वाले लोग यह मानते हैं कि यह मेट्रो स्टेशन टॉलीगंज टर्मिनल के बाद पड़ता है जहां अधिकांश मुसाफिर उतर जाते हैं। इसलिए यहां अधिक भीड़ नहीं रहती है। यही कारण हो सकता है कि इस मेट्रो को सुसाइड प्वाइंट और भूतहा कहा जाता है।
भृगुसंहिता तथा जन्मकुंडली में प्रेतयोनि के कारण:
ज्योतिष के अनुसार वे लोग भूतों का शिकार बनते हैं जिनकी कुंडली में पिशाच योग बनता है। यह योग जन्म कुंडली में चंद्रमा और राहु के कारण बनता है। अगर कुंडली में वृश्चिक राशि में राहु के साथ चन्द्रमा होता तब पिशाच योग प्रबल बन जाता है। ये योग व्यक्ति को मानसिक रूप से कमजोर बनाते हैं।
कुंडली द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि व्यक्ति इस प्रकार की दिक्कतों का सामना करेगा या नहीं। कुंडली में बनने वाले कुछ भूत-प्रेत बाधा योग इस प्रकार है:
1. कुंडली के पहले भाव में चंद्र के साथ राहु हो और पांचवे और नौवें भाव में क्रूर ग्रह स्थित हों। इस योग के होने पर जातक या जातिका पर भूत-प्रेत-पिशाच या गंदी आत्माओं का प्रकोप शीघ्र होता है। यदि गोचर में भी यही स्थिति हो तो अवश्य ऊपरी बाधाएं तंग करती है।
2. यदि किसी की कुंडली में शनि-राहु-केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते है।
3. यदि किसी की कुंडली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा प्रेत पिशाच या भूत बाधा तंग करती है।
4. उक्त योगों में दशा अंतर्दशा में भी ये ग्रह आते हों और गोचर में भी इन योगों की उपस्थिति हो तो समझ लें कि जातक या जातिका इस कष्ट से अवश्य परेशान हंै। इस कष्ट से मुक्ति के लिए तांत्रिक, ओझा, मोलवी या इस विषय के जानकार ही सहायता करते हैं।
5. कुंडली में चंद्र नीच का हो और चंद्र-राहु संबंध बन रहा हो, साथ ही भाग्य स्थान पाप ग्रहों के प्रभाव से मुक्त न हो।
6. भूत प्रेत अक्सर उन लोगों को अपना शिकार बना लेते हैं जो ज्योतिषीय नजरिये से कमजोर ग्रह वाले होते हैं। इन लोगों में मानसिक रोगियों की संख्या ज्यादा होती है।
7. वैसे तो कुंडली में किसी भी राशि में राहु और चंद्र का साथ होना अशुभ और पिशाच योग के बराबर अशुभ फल देने वाला माना जाता है लेकिन वृश्चिक राशि में जब चंद्रमा नीच स्थिति में हो जाता है यानि अशुभ फल देने वाला हो जाता है तो इस स्थिति को महत्वपूर्ण माना जाता है। राहु और चंद्रमा मिलकर व्यक्ति को मानसिक रोगी भी बना देते हैं। पिशाच योग राहु द्वारा निर्मित योगों में नीच योग है। पिशाच योग जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में होता है वह प्रेत बाधा का शिकार आसानी से हो जाता है। इनमें इच्छा शक्ति की कमी रहती है। इनकी मानसिक स्थिति कमजोर रहती है, ये आसानी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं। इनके मन में निराशाजनक विचारों का आगमन होता रहता है। कभी-कभी स्वयं ही अपना नुकसान कर बैठते हैं।
8. लग्न चंद्रमा व भाग्य भाव की स्थिति अच्छी न हो तो व्यक्ति हमेशा शक करता रहता है। उसको लगता रहता है कि कोई ऊपरी शक्तियां उसका विनाश करने में लगी हुई हैं और किसी भी इलाज से उसको कभी फायदा नहीं होता।
9. जिन व्यक्तियों का जन्म राक्षस गण में हुआ हो, उन व्यक्तियों पर भी ऊपरी बाधा का प्रभाव जल्द होने की संभावनाएं बनती हैं। जो मनुष्य जितनी अधिक वासनाएँ ओर आकांक्षाएँ अपने साथ लेकर मरता है उसके भूत होने की सम्भावना उतनी ही अधिक रहती है।
आकांक्षाओं का उद्वेग मरने के बाद भी प्राणी को चैन नहीं लेने देता और वह सूक्ष्म शरीरधारी होते हुए भी यह प्रयत्न करता है कि अपने असन्तोष को दूर करने के लिए कोई उपाय, साधन एवं मार्ग प्राप्त करे। साँसारिक कृत्य का उपयोग शरीर द्वारा ही हो सकते हैं। मृत्यु के उपरान्त शरीर रहता नहीं। ऐसी दशा में उस अतृप्त प्राणी की उद्विग्नता उसे कोई शरीर गढऩे की प्रेरणा करती है। अपने साथ लिपटे हुए सूक्ष्म साधनों से ही वह अपनी कुछ आकृति गढ़ पाता है जो पूर्व जन्म के शरीर से मिलती जुलती किन्तु अनगढ़ होती है। अनगढ़ इसलिए कि भौतिक पदार्थों का अभीष्ट अनुदान प्राप्त कर लेना, मात्र उसकी अपनी इच्छा पर ही निर्भर नहीं रहता। 'भूतÓ अपनी इच्छा पूर्ति के लिए किसी दूसरे के शरीर को भी माध्यम बना सकते हैं। उसके शरीर से अपनी वासनाओं की पूर्ति कर सकते हैं अथवा जो स्वयं करना चाहते थे वह दूसरों के शरीर से करा सकते हैं। कुछ कहने या सुनने की इच्छा हो तो वह भी अपने वंशवर्ती व्यक्ति द्वारा किसी कदर पूरी करते देखे गये हंै। इसके लिए उन्हें किसी को माध्यम बनाना पड़ता है। हर व्यक्ति माध्यम नहीं बन सकता। उसके लिए दुर्बल मन:स्थिति को आदेश पालन के लिए उपयुक्त मनोभूमि का व्यक्ति होना चाहिए। प्रेतों के लिए सवारी का काम ऐसे ही लोग दे सकते हैं। मनस्वी लोगों की तीक्ष्ण इच्छा शक्ति उनका आधिपत्य स्वीकार नहीं करतीं।
भूतों के अस्तित्व से किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है। वे भी मनुष्यों की तरह ही जीवनयापन करते हैं। मनुष्य धरती पर स्थूल शरीर समेत रहते हैं, भूत सूक्ष्म शरीर से अन्तरिक्ष में रहते हैं। तुलनात्मक दृष्टि से उनको सामथ्र्य और साधन जीवित मनुष्यों की तुलना में कम होते हैं इसलिए वे डराने के अतिरिक्त और कोई बड़ी हानि नहीं पहुँचा सकते। डर के कारण कई बार घबराहट, चिन्ता, असन्तुलन जैसी कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती है। भूतोन्माद में यह भीरुता और मानसिक दुर्बलता ही रोग बनकर सामने आती है। वे जिससे कुछ अपेक्षा करते हैं उनसे संपर्क बनाते हैं और अपनी अतृप्तिजन्य उद्विग्नता के समाधान में सहायता चाहते हैं। प्राय: डर का मुख्य कारण होता है। इन सबसे बचने के लिए हनुमान-चालीसा बहुत ज्यादा कारगर है, जिसके नाम से ही भूत-प्रेत भाग जाते हैं।
भूत कभी भी और कहीं भी हो सकते हैं। चाहे वह विराना हो या भीड़ भार वाला मेट्रो स्टेशन। यहां हम जिस मेट्रो स्टेशन की बात कर रहे हैं वह किसी दूसरे देश का नहीं बल्कि भारत का ही एक मेट्रो स्टेशन है। इस स्टेशन पर भूतों का ऐसा साया है कि कई लोग ट्रैक पर कूद कर जान दे चुके हैं।
यह मेट्रो स्टेशन कोलकाता में स्थित है। इस स्टेशन का नाम है रवीन्द्र सरोवर। इस मेट्रो स्टेशन के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भूतों का साया है। रात 10:30 बजे यहां से आखिरी मेट्रो गुजरती है। उस समय कई मुसाफिर और मेट्रो के ड्राइवरों ने भी इस चीज का अनुभव किया है कि मेट्रो ट्रैक के बीच अचानक कोई धुंधला साया प्रकट होता है और पल में ही गायब हो जाता है।
कोलकाता का यह मेट्रो स्टेशन यहां का सुसाइड प्वाइंट माना जाता है। कारण यह है कि यहां पर कई लोगों ने ट्रैक पर कूद कर आत्महत्या की है। वैसे भूत प्रेतों में विश्वास नहीं करने वाले लोग यह मानते हैं कि यह मेट्रो स्टेशन टॉलीगंज टर्मिनल के बाद पड़ता है जहां अधिकांश मुसाफिर उतर जाते हैं। इसलिए यहां अधिक भीड़ नहीं रहती है। यही कारण हो सकता है कि इस मेट्रो को सुसाइड प्वाइंट और भूतहा कहा जाता है।
भृगुसंहिता तथा जन्मकुंडली में प्रेतयोनि के कारण:
ज्योतिष के अनुसार वे लोग भूतों का शिकार बनते हैं जिनकी कुंडली में पिशाच योग बनता है। यह योग जन्म कुंडली में चंद्रमा और राहु के कारण बनता है। अगर कुंडली में वृश्चिक राशि में राहु के साथ चन्द्रमा होता तब पिशाच योग प्रबल बन जाता है। ये योग व्यक्ति को मानसिक रूप से कमजोर बनाते हैं।
कुंडली द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि व्यक्ति इस प्रकार की दिक्कतों का सामना करेगा या नहीं। कुंडली में बनने वाले कुछ भूत-प्रेत बाधा योग इस प्रकार है:
1. कुंडली के पहले भाव में चंद्र के साथ राहु हो और पांचवे और नौवें भाव में क्रूर ग्रह स्थित हों। इस योग के होने पर जातक या जातिका पर भूत-प्रेत-पिशाच या गंदी आत्माओं का प्रकोप शीघ्र होता है। यदि गोचर में भी यही स्थिति हो तो अवश्य ऊपरी बाधाएं तंग करती है।
2. यदि किसी की कुंडली में शनि-राहु-केतु या मंगल में से कोई भी ग्रह सप्तम भाव में हो तो ऐसे लोग भी भूत प्रेत बाधा या पिशाच या ऊपरी हवा आदि से परेशान रहते है।
3. यदि किसी की कुंडली में शनि-मंगल-राहु की युति हो तो उसे भी ऊपरी बाधा प्रेत पिशाच या भूत बाधा तंग करती है।
4. उक्त योगों में दशा अंतर्दशा में भी ये ग्रह आते हों और गोचर में भी इन योगों की उपस्थिति हो तो समझ लें कि जातक या जातिका इस कष्ट से अवश्य परेशान हंै। इस कष्ट से मुक्ति के लिए तांत्रिक, ओझा, मोलवी या इस विषय के जानकार ही सहायता करते हैं।
5. कुंडली में चंद्र नीच का हो और चंद्र-राहु संबंध बन रहा हो, साथ ही भाग्य स्थान पाप ग्रहों के प्रभाव से मुक्त न हो।
6. भूत प्रेत अक्सर उन लोगों को अपना शिकार बना लेते हैं जो ज्योतिषीय नजरिये से कमजोर ग्रह वाले होते हैं। इन लोगों में मानसिक रोगियों की संख्या ज्यादा होती है।
7. वैसे तो कुंडली में किसी भी राशि में राहु और चंद्र का साथ होना अशुभ और पिशाच योग के बराबर अशुभ फल देने वाला माना जाता है लेकिन वृश्चिक राशि में जब चंद्रमा नीच स्थिति में हो जाता है यानि अशुभ फल देने वाला हो जाता है तो इस स्थिति को महत्वपूर्ण माना जाता है। राहु और चंद्रमा मिलकर व्यक्ति को मानसिक रोगी भी बना देते हैं। पिशाच योग राहु द्वारा निर्मित योगों में नीच योग है। पिशाच योग जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में होता है वह प्रेत बाधा का शिकार आसानी से हो जाता है। इनमें इच्छा शक्ति की कमी रहती है। इनकी मानसिक स्थिति कमजोर रहती है, ये आसानी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं। इनके मन में निराशाजनक विचारों का आगमन होता रहता है। कभी-कभी स्वयं ही अपना नुकसान कर बैठते हैं।
8. लग्न चंद्रमा व भाग्य भाव की स्थिति अच्छी न हो तो व्यक्ति हमेशा शक करता रहता है। उसको लगता रहता है कि कोई ऊपरी शक्तियां उसका विनाश करने में लगी हुई हैं और किसी भी इलाज से उसको कभी फायदा नहीं होता।
9. जिन व्यक्तियों का जन्म राक्षस गण में हुआ हो, उन व्यक्तियों पर भी ऊपरी बाधा का प्रभाव जल्द होने की संभावनाएं बनती हैं। जो मनुष्य जितनी अधिक वासनाएँ ओर आकांक्षाएँ अपने साथ लेकर मरता है उसके भूत होने की सम्भावना उतनी ही अधिक रहती है।
आकांक्षाओं का उद्वेग मरने के बाद भी प्राणी को चैन नहीं लेने देता और वह सूक्ष्म शरीरधारी होते हुए भी यह प्रयत्न करता है कि अपने असन्तोष को दूर करने के लिए कोई उपाय, साधन एवं मार्ग प्राप्त करे। साँसारिक कृत्य का उपयोग शरीर द्वारा ही हो सकते हैं। मृत्यु के उपरान्त शरीर रहता नहीं। ऐसी दशा में उस अतृप्त प्राणी की उद्विग्नता उसे कोई शरीर गढऩे की प्रेरणा करती है। अपने साथ लिपटे हुए सूक्ष्म साधनों से ही वह अपनी कुछ आकृति गढ़ पाता है जो पूर्व जन्म के शरीर से मिलती जुलती किन्तु अनगढ़ होती है। अनगढ़ इसलिए कि भौतिक पदार्थों का अभीष्ट अनुदान प्राप्त कर लेना, मात्र उसकी अपनी इच्छा पर ही निर्भर नहीं रहता। 'भूतÓ अपनी इच्छा पूर्ति के लिए किसी दूसरे के शरीर को भी माध्यम बना सकते हैं। उसके शरीर से अपनी वासनाओं की पूर्ति कर सकते हैं अथवा जो स्वयं करना चाहते थे वह दूसरों के शरीर से करा सकते हैं। कुछ कहने या सुनने की इच्छा हो तो वह भी अपने वंशवर्ती व्यक्ति द्वारा किसी कदर पूरी करते देखे गये हंै। इसके लिए उन्हें किसी को माध्यम बनाना पड़ता है। हर व्यक्ति माध्यम नहीं बन सकता। उसके लिए दुर्बल मन:स्थिति को आदेश पालन के लिए उपयुक्त मनोभूमि का व्यक्ति होना चाहिए। प्रेतों के लिए सवारी का काम ऐसे ही लोग दे सकते हैं। मनस्वी लोगों की तीक्ष्ण इच्छा शक्ति उनका आधिपत्य स्वीकार नहीं करतीं।
भूतों के अस्तित्व से किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है। वे भी मनुष्यों की तरह ही जीवनयापन करते हैं। मनुष्य धरती पर स्थूल शरीर समेत रहते हैं, भूत सूक्ष्म शरीर से अन्तरिक्ष में रहते हैं। तुलनात्मक दृष्टि से उनको सामथ्र्य और साधन जीवित मनुष्यों की तुलना में कम होते हैं इसलिए वे डराने के अतिरिक्त और कोई बड़ी हानि नहीं पहुँचा सकते। डर के कारण कई बार घबराहट, चिन्ता, असन्तुलन जैसी कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती है। भूतोन्माद में यह भीरुता और मानसिक दुर्बलता ही रोग बनकर सामने आती है। वे जिससे कुछ अपेक्षा करते हैं उनसे संपर्क बनाते हैं और अपनी अतृप्तिजन्य उद्विग्नता के समाधान में सहायता चाहते हैं। प्राय: डर का मुख्य कारण होता है। इन सबसे बचने के लिए हनुमान-चालीसा बहुत ज्यादा कारगर है, जिसके नाम से ही भूत-प्रेत भाग जाते हैं।
Pt.P.S Tripathi
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