Thursday 6 October 2016

Goddess Katyayani

On the sixth day of navratri Goddess Katyayani is worshipped all over the world. Devi Katyayani is the sixth manifestation among Navdurga. According to Hindu mythology, there was a sage named Katyayana who had a wish that Goddess Durga take the birth as his daughter at his home so he performed the hard penance to please the God. After years of hard penance, God accepted his wish and Goddess Durga was born to sage Katyayana’s Home on Dakshin Krishna Chaturdashi that is why she is known by the name of Katyayani in all over the world. To protect the Devas, Devi Katyayani leads the war from the side of the Gods. When demon Mahishasur crossed all the limits then she killed the demon Mahishasur and freed all the Gods from the torment of Asuras. Goddess Katyayani is one of the violent Devi in the nine goddess of navrati. At the same time, she shows mercy upon devotees and blessed the devotees with affection and full-fill all their true wishes.
Sixth Day of Navratri - Goddess Katyayani
Sixth Day of Navratri 2016 Date:
This year in 2016, sixth day of navratri will be celebrated on October 7 (Friday) and all rituals of Pooja is performed like another days. Mata Katyayani who is worshipped on the sixth day of Navratri Pooja, is known as the Warior Goddess among nine Goddess. Devi Katyayani has ended the torments of devils and demons with her divine power.
Sixth Day of Navratri Date: October 7, 2016 (Friday)
Below we are mentioning the destinations where Goddess Katyayani’s temple is located in India. The devotees, who want to specially worship Maa Katyayani, can go to these temples.
1- Maa Katyayani Temple, Kolhapur, Maharashtra
2- Maa Katyayani Peeth Temple, Vrindavan
3- Chhatarpur Temple, Delhi
4- Sri Kartyayani Temple, Kerala
5- Maa Katyayani Shakthipeeth Adhar Devi, Mount Abu, Rajasthan
6- Sri Kathyayini Amman Temple, Tamil Nadu
About Maa Katyayani:
Navratri sixth day’s goddess, Maa Katyayani is dressed in pink attire and wearing white rosary in her neck. She has four arms and three eyes and lion is her procession. In her upper left hand, she holds the weapon Sword while Lotus Flower in the lower left hand. The right upper hand is in Abhaymudra pose while lower right hand is in Varmudra.
The girls, who worshipped Maa Katyani on the sixth day of Navratri pooja are blessed with desired husband as they wish and all other wishes also has been full filled. If a lady’s marriage is getting late or there is any other trouble then she should worship and do fast to confiscate all the hurdles and problems from her life. The devotees, who worship goddess with huge devotion, faith and with pure mind lead to accomplishment of Dharma, Artha, Kama and Moksha.
Mantras for Sixth Day of Navratri Pooja:
Devotees should worship the sacred Kalash and all the family of God & Goddess on the sixth day of navratri pooja. At the time of ending of navratri puja, Goddess Katyayani worship has to be done by offering flowers and chanting mantras.
Maa Katyayani Mantra:
चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

Wednesday 5 October 2016

तुला लग्न में शनि का प्रभाव



किसी भी ग्रह के फलों का विचार करने के लिये ग्रह की स्थिति, युति व दृष्टि का विश्लेषण किया जाता है. ज्योतिष शास्त्र में सभी नौ ग्रहों के अपने गुण व विशेषताएं है. इसलिये ग्रह अपने गुण व विशेषताओं से भी प्रभावित होते है. जैसे:- गुरु को धन, ज्ञान व संतान का कारक ग्रह कहा जाता है. गुरु प्रभावित दशा अवधि में व्यक्ति को इन सभी कारक वस्तुओं की प्राप्ति की संभावनाएं बनती है. इसी प्रकार अन्य ग्रह भी अपने कारकतत्वों के अनुरुप फल देते है.
शनि को पापी व अशुभ ग्रह कहा जाता है. शनि तीसरे, छठे, दशम व एकादश भाव में शुभ फल देने वाले कहे गहे है. इसके अतिरिक्त पराशरी ज्योतिष का यह सामान्य सिद्धान्त है कि पापी ग्रह बली होकर शुभ भावों में हों, तो ओर भी अधिक कष्टकारी हो जाते है. आईये तुला लग्न की कुण्डली में शनि कुण्डली के विभिन्न भावों में फलों को समझने का प्रयास करते है.
प्रथम भाव में शनि के फल - तुला लग्न, प्रथम भाव में शनि व्यक्ति के स्वास्थ्य को अनुकुल रखने में सहयोग करता है. इस योग की शुभता से व्यक्ति की शिक्षा में भी वृ्द्धि होने की संभावनाएं बनती है. उसे मान-सम्मान, यश, प्रतिष्ठा की प्राप्ति हो सकती है. परन्तु यह योग होने पर व्यक्ति को अपनी चारित्रिक विशेषताओं को बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए. व्यक्ति को व्यापार क्षेत्र में कुछ परेशानियों का सामना करना पड सकता है.
द्वितीय भाव में शनि के फल - यह योग व्यक्ति को अपने जन्म स्थान से दूर रख सकता है. व्यक्ति स्वभाव से दूसरे के लिये त्याग करने वाला हो सकता है. योग के शुभ फलों प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को अपनी माता के सम्मान में कमी नहीं करनी चाहिए. माता का सम्मान करने पर व्यक्ति के सुखों में वृ्द्धि होती है. मान -सम्मान, यश, प्रतिष्ठा दोनों की प्राप्ति होती है. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में अत्यन्त कठिनाईयों का सामना करना पड सकता है. विपरीत परिस्थितियों में धैर्य बनाये रखने से कार्यक्षेत्र की बाधाओं में कमी होने की संभावनाएं बनती है.
तृतीय भाव में शनि के फल- अत्यन्त मेहनत करने के बाद ही सफलता प्राप्ति हो सकती है. व्यक्ति के सभी के साथ कटुतापूर्ण व्यवहार हो सकता है. पर व्यक्ति ज्ञानी व विद्वान होता है. अपनी योग्यता का पूर्ण उपयोग करने से व्यक्ति के कष्टों में कमी हो सकती है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल - शिक्षा पक्ष से यह योग व्यक्ति के लिये शुभ फल देने वाला होता है. व्यक्ति के संतान सुख में भी वृ्द्धि हो सकती है. पर उसके अपनी माता के साथ कुछ मतभेद हो सकते है. भूमि सम्बन्धी विवाद परेशान कर सकते है. इस योग का व्यक्ति अपने शत्रुओं पर अपना प्रभाव बनाये रखता है. स्वभाव में जिद्द व स्वतन्त्रता का भाव होने की संभावनाएं बनती है.
पंचम भाव में शनि के फल - तुला लग्न कि कुण्डली में शनि पंचम भाव में होने पर व्यक्ति के ज्ञान क्षमता में वृ्द्धि करता है. उसे छुपी हुई विधाओं को जानने में रुचि हो सकती है. माता का पूर्ण सुख प्राप्त होने की भी संभावनाएं बनती है. पर ये सभी शुभ फल व्यक्ति को प्रयास करने से ही प्राप्त होते है.
छठे भाव में शनि के फल - व्यक्ति को बाहरी स्थानों अर्थात विदेश स्थानों से लाभ प्राप्त हो सकते है. पर व्यक्ति के शत्रु अधिक शक्तिशाली होते है. इसलिये व्यक्ति को अपने शत्रुओं से हानि हो सकती है. व्ययों के अधिक होने के भी योग बनते है. आलस्य करना इस लग्न के व्यक्तियों के लिये लाभकारी नहीं रहता है. पुरुषार्थ करते रहने से उन्नती की रुकावटों में कमी होती है.
सप्तम भाव में शनि के फल -तुला लग्न के व्यक्ति की कुण्डली में जब शनि सप्तम भाव में हो, तो व्यक्ति के स्वास्थ्य सुख में वृ्द्धि होती है. व्यक्ति को शत्रु पक्ष के कार्यो से सावधान रहना चाहिए. यह योग व्यक्ति के व्यवसाय में अडचनें लेकर आ सकता है. व्यक्ति को अधिक परिश्रम करना पड सकता है. तथा मेहनत के अनुरुप सुख न मिलने की भी संभावनाएं बनती है.
अष्टम भाव में शनि के फल - व्यक्ति के जीवन का अधिकतर भाग संघर्ष में व्यतीत होता है. उसे अपने भाई-बहनों का प्यार कम मिलने की संभावनाएं बनती है. समय पर मित्रों व भाई-बहनों का सहयोग न मिलें यह भी हो सकता है. व्यक्ति को विधा के क्षेत्र में भी बाधाओं का सामना करना पड सकता है. पर व्यक्ति कि शिक्षा उतम व व्यक्ति विद्वान हो सकता है.
यह योग होने पर व्यक्ति को जन्म स्थान से दूर रहने पर उन्नति प्राप्ति कि संभावनाएं बनती है. उसके अपने जीवन साथी से मतभेद हो सकते है. जीवन के अनेक क्षेत्रों में कठिनाईयों को झेलते हुए व्यक्ति सफलता की सीढियां चढता है. यह योग व्यक्ति के संतान सुख में भी वृ्द्धि करता है. इस योग के व्यक्ति के स्वभाव में स्वार्थ का भाव न होने की संभावनाएं बनती है. अर्थात व्यक्ति में दया व निस्वार्थ सेवा का भाव हो सकता है.
नवम भाव में शनि के फल - तुला लग्न की कुण्डली के नवम भाव में शनि होने पर व्यक्ति को अपने शत्रुओं से कष्टों का सामना करना पड सकता है. पर व्यक्ति अपनी बुद्धि के बल पर अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सफल हो सकता है. सफलता के लिये परिश्रम अधिक करना पड सकता है. व्यक्ति को संघर्ष के बाद सुख प्राप्त होने की सम्भावनाएं बनती है.
दशम भाव में शनि के फल - धन, मकान, माता-पिता आदि से अल्प सुख मिलने के योग बनते है. आय मध्यम स्तर की हो सकती है. व्ययों के अधिक होने की संभावनाएं बनती है. दांम्पत्य जीवन के लिये भी यह योग अनुकुल नहीं होता है. व्यक्ति की संतान होती है. पर मतभेद हो सकते है.
एकादश भाव में शनि के फल - कठिनाईयों के साथ आय की प्राप्ति, स्वास्थ्य ठीक रहता है. कार्यक्षेत्र में उन्नती का मार्ग रुकावटों से होकर जाता है. व्यक्ति कुछ स्वार्थी हो सकता है. यह योग व्यक्ति की चिन्ताओं में वृ्द्धि कर सकता है. तथा व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास कम होने कि संभावनाएं बनती है.
द्वादश भाव में शनि के फल - व्यक्ति की वाणी में जोश व तेज हो सकता है. व्यय अधिक हो सकते है. तथा आय में मन्द गति से वृ्द्धि होने की सम्भावनाएं बनती है. व्यक्ति को बौद्धिक कार्यो में सहयोग कम मिलने की संभावनाएं बनती है. योग के फल्स्वरुप व्यक्ति के जीवन के संघर्ष में वृ्द्धि होती है.

वृश्चिक लग्न में शनि का प्रभाव

शनि सभी ग्रहों में सबसे मन्द गति ग्रह है. इसलिये शनि के फल दीर्घकाल तक प्राप्त होते है. इसके अतिरिक्त व्यक्ति के जीवन में किसी भी घटना के घटित होने के लिये शनि के गोचर का विशेष विचार किया जाता है. यहीं कारण है कि शनि को काल कहा जाता है.
जन्म कुण्डली में शनि जिस भाव व जिस राशि में स्थित होता है. उसके अनुसार व्यक्ति को शनि के फल मिलने की संभावनाएं बनती है. शनि से मिलने वाले फलों को समझने के लिये सबसे पहले जन्म कुण्डली में शनि के लग्नेश से संबन्धों को देखा जाता है. उसके पश्चात शनि किस भाव में स्थित है यह देखा जाता है. तथा अन्त में भाव की राशि, अन्य ग्रहों से शनि के संबन्ध का विचार किया जाता है.
अन्त में शनि की दशा व गोचर का विश्लेषण किया जाता है. इन सभी विषयों का बारीकि से अध्ययन करने पर ही शनि के फल स्पष्ट हो सकते है. आईये देखे कि वृ्श्चिक लग्न की कुण्डली में शनि 12 भावों में किस प्रकार के फल दे सकता है.
प्रथम भाव में शनि के फल - वृ्श्चिक लग्न कि कुण्डली में शनि लग्न भाव में हों, तो व्यक्ति के स्वभाव में उग्रता का भाव हो सकता है. इस योग का व्यक्ति स्वभाव से शान्त होता है. व्यक्ति का अपने शत्रुओं पर प्रभाव बना रहता है. उसके वैवाहिक जीवन में उतार-चढाव आने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के अपने पिआ के साथ मतभेद हो सकते है. तथा सरकारी क्षेत्रों से परेशानियां हो सकती है. व्यापार के क्षेत्र में आरम्भ में असफलता परन्तु धैर्य से काम लेने से, बाद में सफलता मिलने की संभावनाएं बनती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल -वृ्श्चिक लग्न के दूसरे भाव में धनु राशि होती है. इस भाव में शनि हो तो व्यक्ति को शेयर बाजार से लाभ प्राप्त हो सकता है. अन्य अचानक से भी धन लाभ होने के योग बनते है. इस योग के कारण व्यक्ति की आय मध्यम स्तर की हो सकती है. व्यक्ति योग्य, कुशल व श्रेष्ठ कार्यो को करने में रुचि लेता है.
उसे अपने परिजनों के कारण कष्टों का सामना करना पड सकता है. इस भाव से शनि अपनी तीसरी दृष्टि से माता के भाव में स्थित अपनी राशि से संम्बन्ध बनाने के कारण मातृ्भाव को बली कर रहा होता है. जिसके कारण व्यक्ति के मातृसुख में वृ्द्धि व सुख-सुविधाओं में भी बढोतरी होने की संभावनाएं बनती है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल - व्यक्ति के पराक्रम में बढोतरी होती है. उसके शिक्षा क्षेत्र में बाधाएं आ सकती है. व्यापारिक क्षेत्र भी इसके कारण प्रभावित हो सकता है. व्यक्ति कठिनाईयों के साथ जीवन में आगे बढता है. यह योग व्यक्ति के भाग्य में कमी का कारण बन सकता है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल - वृश्चिक लग्न के चतुर्थ भाव में शनि कुम्भ राशि में स्थित होता है. इस स्थिति में व्यक्ति को माता का पूर्ण सुख मिलने की संभावनाएं बनती है. भूमि-भवन के विषयों से भी लाभ प्राप्त हो सकते है. व्यक्ति का शत्रु बली हो सकते है. जिसके कारण व्यक्ति को हानि हो सकती है. व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम स्तर का होता है. तथा आजिविका क्षेत्र में मेहनत से उन्नती प्राप्त हो सकती है.
पंचम भाव में शनि के फल - व्यक्ति को शिक्षा के लिये घर से दूर जाना पड सकता है. यह योग व्यक्ति को विदेश में शिक्षा प्राप्ति की संभावनाएं देता है. व्यक्ति को अपनी माता से कम सुख प्राप्त हो सकता है. स्वास्थ्य में कुछ कमी हो सकती है. तथा आय के स्तोत्र उतम रहने की संभावनाएं बनती है.
छठे भाव में शनि के फल - व्यक्ति के शत्रु अधिक शक्तिशाली होते है. इसलिये प्रतियोगियों से पराजय का सामना करना पड सकता है. रोग व ऋण संबन्धी विषय व्यक्ति को परेशान कर सकते है. धैर्य, हिम्मत व साहस को बनाये रखने से विजय व लाभ दोनों होने कि संभावनाएं बनती है.
सप्तम भाव में शनि के फल - भाई- बहनों के सुख में कमी, स्वास्थ्य मध्यम स्तर का होता है. धार्मिक कार्यो में रुचि कम होती है. जीवन साथी का सुख प्राप्त होता है. तथा व्यापार में भी लाभ प्राप्ति के संयोग बनते है. भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. व्यक्ति को शारीरिक मेहनत अधिक करनी पड सकती है. अधिक भाग-दौड के कारण स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है.
अष्टम भाव में शनि के फल - व्यक्ति को दीर्घकालानी रोग होने की संभावनाएं रहती है. इस योग के कारण व्यक्ति की आय में बढोतरी हो सकती है. व्यक्ति की आय उतम स्तर कि हो सकती है. शिक्षा में कमी हो सकती है. संतान का सुख मतभेदों के साथ प्राप्त होता है.
नवम भाव में शनि के फल -भाग्य की उन्नति होती है. पर भाग्य में उतार-चढाव बने रहते है. व्यक्ति अपने शत्रुओं को परेशान करने में सफल होता है. आय बाधित होकर प्राप्त होती है.
दशम भाव में शनि के फल -पिता के साथ मतभेद, सरकारी नियमों से कष्ट, व्यापार में परेशानियां, तथा आय में बढोतरी होती है.
एकादश भाव में शनि के फल - विधा के क्षेत्र में अडचनें, आयु में वृ्द्धि, आय उतम स्तर कि होती है. व्यक्ति को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है.
द्वादश भाव में शनि के फल -माता, भाई बहनों से कम सुख मिलने की संभावनाएं बनती है. आयु में बढोतरी होती है. ऎश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने के अवसर प्राप्त हो सकते है.

साप्ताहिक राशिफल 03 अक्टूबर से 9 अक्टूबर

साप्ताहिक राशिफल - 03-09 अक्टूबर, 2016
1. मेष राशि -
इस सप्ताह आपके पंचम स्थान में राहु शनि दृष्टि होने से किसी भी तरह का वाद विवाद नाकारात्मक रुप ले सकता है इसलिए सावधानी ही अच्छा उपाय है। शत्रु पक्ष हावी होने का प्रयास करेंगे और इस समय आप अपने द्वारा ही किये गए कार्यों में उलझ सकते हैं। जब तक आप पूरी तरह से तैयार न हो तब तक किसी भी तरह का रिस्क न ले अन्यथा लिटिगेशन का सामना करना पड़ सकता है, इसके लिए गुस्से को हावी न होने दे। यात्रा को भी इस सप्ताह के लिए टाल दें। किसी बड़े की सलाह लेना आपके लिए हितकर रहेगा। इस सप्ताह पंचमस्थ राहु होने से संतान पक्ष को लेकर भी तनाव हो सकता है। किंतु कार्य की स्थिति और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर रहने के योग हैं।
संबंधित दोषों की निवृत्ति के लिए निम्न उपाय करें तो लाभ होगा-
1. ऊॅ बृं बृहस्पतयै नमः का एक माला जाप करें....
2. पुरोहित को केला, नारियल का दान करें....
3. साई जी के दर्शन कर दिन की शुरूआत करें....
2. वृषभ राशि -
इस सप्ताह आप ऑफिस में अपना एक विशेष स्थान हासिल करने में सफल होंगे। साथी और आपके बॉस आपसे प्रसन्न होंगे। यात्रा भी सफलता दायक साबित होगा। संतान और परिवार का सहयोग आपके अंदर एक नयी उर्जा का संचार करेगी। जीवनसाथी के साथ समय बिताए अन्यथा उनकी कुछ बाते आपको परेशान कर सकती है। सरकार सम्बन्धी कार्य जिसमे रुकावटे आ रही थी उन्हें पूरा करने में सफलता मिलेगी। इस समय जो आपके साथ दिल से जुड़े हैं वही लोग साथ रहेगे बाकि लोग आपसे दुरी बना लेंगे। इस समय आपके कार्य भार भी बढ सकते हैं और आपके कार्य की अधिकता के कारण खाना और नींद में कमी होने से स्वास्थ्यगत कष्ट बढ़ सकता है।
शुक्र के बुरे प्रभाव से उत्पन्न कष्ट की शांति के लिए -
1. ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2. माॅ महामाया के दर्शन करें...
3. चावल, दूध, दही का दान करें...
3. मिथुन राशि -
इस सप्ताह अचानक किसी छोटी दूरी की यात्रा हो सकती है। मानसिक तनाव बढ़ने की आशंका रहेगी, यात्रा में सावधानी रखे और किसी अनजान के कारण परेशानी हो सकती है। शिक्षा के क्षेत्र में आ रही बाधाए समाप्त होगी और आप अपने में सफल होंगे। दैनिक कार्यों में किसी भी तरह की अनदेखी नुकसान दायक हो सकती है इसलिए अपने कार्य में सावधानी और नियमितता रखें और उसमे बदलाव न करे। खान पान में फेर बदल करे और मसालेदार और तला भुना भोजन न करे, अन्यथा स्वास्थ्यगत कारण कार्य को भी प्रभावित कर सकती है। कुल मिलाकर इस सप्ताह आपके कुछ कार्य में रूकावट और बाधाएॅ हैं जिसे आप नियमित और सावधानी रखते हुए दूर कर सकते हैं।
दोषों को दूर करने के लिए -
1. ‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें.
2. भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,
3. उड़द या तिल दान करें,
4. कर्क राशि -
इस सप्ताह आप अपने पुरे काम जोश और उत्साह के साथ करे और वाणी प्रभावशाली रहेगी जिससे लोग आपकी और आकर्षित होगे। इस समय आपके रहन- सहन और खान- पान में भी सुधर होगा। अविवाहित लोगो की विवाह सम्बन्धी बाते आगे बढेगी और आपको खबर मिल सकती है! माता और पिता के स्वास्थ्य की चिंता से तनाव बढ़ सकता है और जिसका असर आपके कार्यों पर भी देखने को मिलेगा, इसलिए स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए तत्काल चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। इस सप्ताह आपको खान-पान, कार्य एवं परिवार के बीच संतुलन बनाना होगा।
संबंधित कष्टों से बचाव के लिए -
1. ऊॅ बुं बुधाय नमः का एक माला जाप कर गणपति की आराधना करें
2. दूबी गणपति में चढ़ाकर मनन करें,
3. एक मुठ्ठी मूंग का दान करें।
5. सिंह राशि -
इस सप्ताह आपका मन अशांत तो रहेगा परन्तु बीच बीच में कुछ भी ऐसा घटित होता रहेगा जिससे आप अपने दुखो को भूला नहीं पायेंगे। आप अपनी परेशानी किसी से बता भी नहीं सकेंगे और आपको कोई हल भी इसका नहीं समझ आयेगा, इस समय तत्कालीक स्थिति को देखते हुए कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। इस समय लग्नस्थ राहु जो कि शनि दृष्टि भी है, जिसके कारण कष्ट का समय है। इस सप्ताह आपको अपने परिवार के बड़ो से आपनी उलझन रखनी चाहिए। कार्यप्रणाली में लापरवाही या अनदेखी करने से नुकसान हो सकता है इसलिए रिस्क न ले। छोटी यात्रा हो सकती है। इस सप्ताह सावधानी और मन एवं दिमाग पर नियंत्रण रख अपने कार्य पर ध्यान केंद्रित करें।
आज विवादों से बचने के लिए के निम्न उपाय करने चाहिए -
1. ऊॅ रां राहवे नमः का एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें..
2. मूली का दान करें..
3. सूक्ष्म जीवों को आहार दें..
6. कन्या राशि -
इस सप्ताह लग्नस्थ सूर्य, बुध और गुरू के होने से आप की सामाजिक प्रतिष्ठा और आपके कार्य को पहचान मिलेगी, यह सप्ताह आपके लिए सुखदायी होगा। इस सप्ताह आपके कार्य को लेकर की गई यात्रा बेहद सफल साबित होगी और प्रशासनिक और बड़ो का सहयोग आपके साथ रहेगा। तकनिकी क्षेत्र में नया मार्गदर्शन मिलेगा जिससे आपको काफी सहायता मिलेगी। विद्वान लोगो से नजदीकी बढेगी और आपको उनसे लगातार लाभ मिलने का अवसर भी मिलेगा। इस सप्ताह आपके लिए शुभ होगा, जिसमें सामाजिक प्रतिष्ठा, विद्धानों का साथ और सहयोग तथा कार्य में लाभ के योग हैं।
लाभ तथा उत्साह को बनायें रखने के लिए निम्न उपाय आजमायें-
1. ऊॅ कें केतवें नमः का जाप कर दिन की शुरूआत करें...
2. सूक्ष्म जीवों की सेवा करें...
3. गाय या कुत्ते को आहार दें...
5. हल्दी, नारियल का दान करें...
7. तुला राशि -
इस सप्ताह आप अपने तनाव से बाहर आने का प्रयास करेंगे और गुस्से पर भी काबू पा लेंगे। आपको अपनों का सहयोग मिलेगा। कार्यों में नए सुधार आएँगे और आपके कामों को पहचान मिलेगी। वाणी पर संयम बनाये रखें क्योंकि इस समय आप अपने ही कही हुई बातो में उलझ सकते है। यात्रा में कष्ट हो सकता है तो उसे टालने की कोशिश करें। पार्टनरशिप में अविश्वास न आने दें और कार्यों को अपनी नजर के सामने ही कराये अनजान व्यक्ति पर अतिविश्वास आने वाले समय में नुकसान पंहुचा सकता है। कार्यक्षेत्र और शारीरिक स्थिति में सावधानी और सुरक्षा जरूरी है।
अतः सूर्य कृत दोषों की निवृत्ति के लिए -
1. प्रातः स्नान के उपरांत सूर्य को जल में लाल पुष्प तथा शक्कर मिलाकर.... अध्र्य देते हुए..... ऊॅ धृणि सूर्याय नमः का पाठ करें.....
2. गुड़.. गेहू...का दान करें..
3. आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें...
8. वृश्चिक राशि -
इस सप्ताह आप पिछले दिनों जिन परेशानी से गुजर रहे थे और उसके कारण जो मानसिक तनाव हो रहा था, आप उनसे उबरने का प्रयास करेंगे और उसमे सफल भी होंगे। आय के नए साधन मिलेंगे और इच्छा की पूर्ति भी होगी। मीडिया और इलेक्ट्रोनिक क्षेत्र में नए साधन मिलेंगे। प्रशासन के कार्यों में बदलाव संभव है आय के साथ साथ खर्चो में भी वृद्धि होगी और संतान के व्यवहार और अनुशासनहिनता से परेशान रह सकते हैं। किसी अपने के स्वास्थ्य खराब होने के कारण दवाई या अस्पताल पर खर्चा हो सकता है। पारिवारिक और व्यावसायिक रिश्तों में सामंजस्य बिठाना होगा।
शांति के लिए चंद्रमा के निम्न उपाय करें -
1. उॅ नमः शिवाय का जाप करें...
2. दूध, चावल का दान करें...
3. श्री सूक्त का पाठ करें धूप तथा दीप जलायें...
9. धनु राशि -
इस सप्ताह कार्य भार बढेगा और कार्यों में इस तरह से उलझ जाएँगे की आपको अपने खान- पान और और किसी बात के बारे में सोचने का भी अवसर नही मिलेगा ! कार्य क्षेत्र से सम्बंधित यात्रा हो सकती है और परिवार को समय नही दे पाएँगे। कार्यों में शाॅर्टकट अपनाने से बचें, नहीं तो आने वाले समय में नुकसान हो सकता है। आर्थिक दबाव बना रहेगा प्रतिस्था बढेगी लेकिन आपको प्रयास निरंतर करना चाहिए। किसी बेकार के काम में समय बर्बाद होगा। लगातार कार्य और आहार की अनदेखी स्वास्थ्यगत कष्ट दे सकता हैं
सूर्य के शुभ प्रभाव में वृद्धि एवं कष्टों की निवृत्ति के लिए -
1. ऊॅ सों सोमाय नमः का एक माला जाप करें......
2. खीर बनाकर कम से कम एक कन्या को खिलायें....
3. स्वेत वस्त्र धारण करें......
10. मकर राशि -
इस सप्ताह आप जीवन साथी के साथ सुखद समय बीतेगा और आप उनके साथ किसी अच्छी जगह पर समय बिता सकते है भाग्य आपका साथ दे रहा है और आपकी पिछली चल रही परेशानी का अंत भी निकट आ रहा है! कार्य क्षेत्र में तनाव मुक्त होकर कार्य करे सफलता मिलेगी। अचानक धन लाभ हो सकता है और किसी रुके हुए धन की प्राप्ति भी हो सकती है जमीन जायदाद के मामले में लिखित सावधानी रखे नही तो किसी विवाद या कानूनी दावपेच में उलझ सकते है। पारिवारिक सहयोग और नीतिगत रहना ही फायदा देगा। स्वयं के प्रयासों से आपको लाभ होगा और इसी का फल आपको मिलेगा। अपने व्यवहार में नैतिकता तथा सावधानी रखें।
निम्न उपाय आजमायें -
1. ऊॅ अं अंगारकाय नमः का जाप करें...
2. हनुमानजी की उपासना करें..
3. मसूर की दाल, गुड दान करें..
11. कुम्भ राशि -
यात्रा में सावधानी रखना या उसे टालना ही हितकर रहेगा। पिता की सेहत को लेकर तनाव में आ सकते है, समयपूर्व सर्तकता जरूरी है। रुके हुए कार्य पुरे होंगे परन्तु एकाग्रचित होकर कार्य करेंगे जिसका फल भी आपको मिलेगा। धीरे धीरे आपकी प्रतिष्ठा और लोगो का सहयोग भी बढ़ रहा है। आपके शत्रु या विरोधी पक्ष आपके बारे में क्या सोचते हैं और आपके खिलाफ क्या क्या साजिश कर रहे है उन सबकी खबर आप को मिल जायेगी। समय रहते सावधानी रखें। आप अपना पूरा ध्यान अपने कार्यों में ही लगायें और सावधानी तथा सर्तकता बरतें।
गुरू के लिए -
1. ऊॅ गुरूवे नमः का जाप करें...
2. पीली वस्तुओं का दान करें...
3. गुरूजनों का आर्शीवाद लें..
12. मीन राशि -
इस सप्ताह आप जीवनसाथी या अपने पार्टनर मामलों में ही उलझे रहेगे और उसके कारण आपके कार्यों में बाधा उत्पन्न होगी। पूर्व में लिए गए निर्णय अथवा किये हुए कार्यों में थोडा बदलाव करना होगा और आपको उसमे सफलता भी मिलगी। किसी अनजान व्यक्ति की मदद से कार्यों में नया रूप मिलेगा। व्यवहार में बदलाव आएगा, या लाना होगा, जिससे ही आपको विशेष सफलता तथा यश प्राप्त होगा। वाहन चलाते समय एकाग्रचित रहें और कार्य के मामलों में लेन-देन से संबंधित मामलों पर किसी पर विश्वास न करे! किसी भी तरह की परेशानी मानसिक कष्ट का कारण हो सकती है। इस सप्ताह आप विशेषकर विवाद और पार्टनरशीप में सावधानी रखें।
बचने के लिए शांति के लिए -
1. ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें...
2. माॅ महामाया के दर्शन करें...
3. चावल, दूध, दही का दान करें

मकर लग्न में शनि का प्रभाव

ज्योतिष में कुल 12 भाव, 12 राशियां, 9 ग्रह, 27 नक्षत्र होते है. इन सभी के मेल से बनी कुण्ड्ली से व्यक्ति का भविष्य निर्धारित होता है. व्यक्ति को इन में से जिन ग्रहों की दशा - अन्तर्दशा का प्रभाव व्यक्ति पर चल रहा होता है. उन्हीं भाव से संबन्धित घटना घटित होने की संभावनाएं बनती है. सभी 12 भावों के अपने कारकतत्व होते है. जो स्थिर प्रकृ्ति के है.
भाव व राशियों के तरह ग्रहों की भी विशेषताएं होती है. जिनसे ग्रह की शुभता व अशुभता का निर्धारण होता है. पर ग्रह भाव, राशियों में अपनी स्थिति के अनुसार अपने फलों को बदल लेते है. विशेष रुप से लग्नेश व महादशा स्वामी से ग्रह के संबन्ध फलों को प्रभावित करते है. मकर लग्न की कुण्डली के 12 भावों में शनि इस प्रकार के फल दे सकता है.
प्रथम भाव में शनि के फल - मकर लग्न के प्रथम भाव में शनि स्थित होने पर व्यक्ति के स्वास्थ्य सुख में वृ्द्धि होती है. व्यक्ति स्वभाव से स्वाभिमानी होता है. स्वराशि का शनि व्यक्ति के पराक्रम में वृ्द्धि करने में सहयोग करता है. इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के व्यापार में परेशानियां आने की संभावना बनती है. वैवाहिक जीवन के आरम्भ में कष्ट प्राप्त हो सकते है. परन्तु बाद में स्थिति सामान्य होकर व्यक्ति को अपने जीवन साथी का सहयोग प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. अधिनस्थों का सहयोग भी प्राप्त होता है.
द्वितीय भाव में शनि के फल - व्यक्ति धन संचय करने में सफल होता है. व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्यों का सुख प्राप्त होता है. परन्तु माता के सुख में कमी की संभावनाएं बनती है. भूमि- भवन संबन्धी मामलों से भी समस्याएं आ सकती है. इस योग से आयु में कुछ कमी हो सकती है. पर आय वृ्द्धि को सहयोग प्राप्त होता है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल - पराक्रम भाव में मंगल की मेष राशि में शनि व्यक्ति के पराक्रम में वृ्द्धि करता है. पर इस योग के कारण व्यक्ति को अपने भाई -बहनों का सुख कम मिल सकता है. व्यक्ति के भाग्य व शिक्षा क्षेत्र में बाधाएं बनी रहती है. व्यक्ति के व्यय भी बढ सकते है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल - व्यक्ति को अपनी माता का सुख कम मिल सकता है. तथा उसे घर से दूर रहना पड सकता है. शनि के इस भाव में होने से व्यक्ति के धन में कमी हो सकती है. शत्रु पक्ष भी व्यक्ति को हानि पहुंचा सकते है. व्यापार व आय के स्त्रोत ठीक रहने की संभावनाएं बनती है. योग के कारण व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम स्तर का हो सकता है.
पंचम भाव में शनि के फल - शिक्षा, योग्यता, संतान आदि से सुख प्राप्त हो सकते है. विवाहित जीवन में अडचनें आ सकती है. यह योग होने पर व्यक्ति को साझेदारी व्यापार से बचना चाहिए. अन्यथा व्यापार में हानि हो सकती है. आय का स्तर मध्यम रहने के योग बनते है. पर व्यक्ति को धन से सुख की प्राप्ति होती है. इस योग के कारण व्यक्ति के द्वारा किये गये व्यय व्यर्थ विषयों पर नहीं होते है.
छठे भाव में शनि के फल - व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम स्तर का हो सकता है. उसे शारीरिक परिश्रम अधिक करना पड सकता है. तथा व्ययों के भी अधिक होने की संभावनाएं बनती है. यह योग व्यक्ति को चिन्तित रहने का स्वभाव दे सकता है. व इसके कारण उसके धन में कमी हो सकती है.
सप्तम भाव में शनि के फल - जिस व्यक्ति की कुण्ड्ली में सप्तम भाव में शनि स्थित हों, उस व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति को शत्रुओं द्वारा कष्ट प्राप्त हो सकते है. पर भाग्य का सहयोग व्यक्ति को प्राप्त होता है. जीवन साथी से व्यक्ति को सुख प्राप्त होता है. पर साथ ही साथ व्यक्ति को व्यापारिक क्षेत्रों में परेशानियां बनी रह सकती है. व्यक्ति की आय बाधित हो सकती है. मेहनत व लगन से व्यक्ति अपने कार्यो को पूर्ण करने में सफल होता है.
अष्टम भाव में शनि के फल - मकर लग्न के अष्टम भाव में सिंह राशि में शनि व्यक्ति के पिता के स्वास्थ्य में कमी कर सकता है. इस योग के व्यक्ति को अपने पिता का सहयोग कम मिलने की संभावनाएं बनती है. इसके अतिरिक्त मतभेद भी हो सकते है. परिवार के अन्य सदस्यों के सहयोग में बढोतरी होती है. इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के संचय में भी वृ्द्धि को सहयोग प्राप्त होता है. आजिविका क्षेत्र के फल देर से प्राप्त होते है. इसके कारण संतान में कमी हो सकती है.
नवम भाव में शनि के फल - कन्या राशि नवम भाव में शनि की स्थिति व्यक्ति को भाग्य का सहयोग प्राप्त होने की संभावनाएं देती है. व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सफल होता है. व्यक्ति को आय क्षेत्र में परेशानियां आ सकती है. पराक्रम को बनाये रखने से व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र की बाधाओं को दूर करने में सफल होता है. व्यक्ति के अपने छोटे भाई बहनों से संबन्ध मधुर न रहने की संभावनाएं बनती है.
दशम भाव में शनि के फल - यह योग व्यक्ति को व्यापार क्षेत्र में सहयोगी रहता है. उसे अपने कार्यक्षेत्र में भी अच्छी सफलता मिलने की संभावनाएं बनती है. मान-सम्मान प्राप्ति के लिये भी यह योग व्यक्ति के अनुकुल रहता है. व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. तथा उसे माता- भूमि का पूर्ण सुख न मिलें, इस प्रकार के संयोग भी बनते है. वैवाहिक जीवन में कुछ बाधाएं बनी रह सकती है.
एकादश भाव में शनि के फल - व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहता है. तथा व्यक्ति के आत्मबल में भी वृ्द्धि होती है. मान-सम्मान प्रपति की संम्भावनाएं बनती है. योग के कारण व्यक्ति के व्यय बढ सकते है. तथा व्यक्ति को धन संग्रह में अत्यधिक रुचि हो सकती है. शिक्षा क्षेत्र में सफलता मिलने की संभावनाएं बनती है. यह योग होने पर व्यक्ति को दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए. आयु में कमी हो सकती है.
द्वादश भाव में शनि के फल - शनि द्वादश भाव में धनु राशि में होने पर व्यक्ति को सरकारी कार्यो से कष्ट प्राप्त हो सकते है. संचय करनें में भी परेशानियां हो सकती है. शत्रु पर व्यक्ति अपना प्रभाव बनाये रखता है. यह योग सामान्यत: व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि करता है.

Tuesday 4 October 2016

कुम्भ लग्न में शनि का प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र में कुल नौ ग्रह है. तथा सभी ग्रहों की अपनी विशेषताएं है. ग्रह के फलों का विचार करने के लिये सबसे पहले ग्रह की शुभता व अशुभता निर्धारित की जाती है. ज्योतिष के सामान्त नियम के अनुसार शुभ ग्रह केन्द्र- त्रिकोंण भाव में होने पर शुभ फल देते है. इसके विपरीत अशुभ ग्रह इसके अतिरिक्त अन्य भावों में हों तो शुभ फलकारी कहे गये है.
लग्न भाव में लग्नेश हो, तो लग्न भाव को बल प्राप्त होता है. इसी प्रकार लग्नेश का त्रिक भावों में स्थित होना व्यक्ति के स्वास्थ्य में कमी का कारण बन सकता है. शनि को आयु का कारक ग्रह कहा गया है. इस भाव से शनि का संबन्ध बनने पर व्यक्ति की आयु में वृ्द्धि की संभावनाएं रहती है. इसी प्रकार धन भावों से गुरु का संबध व्यक्ति के धन में बढोतरी करता है. आईय़े कुम्भ लग्न में शनि कुण्डली के विभिन्न भावों में किस प्रकार के फल दे सकता है. इस विषय का विश्लेषण करते है.
प्रथम भाव में शनि के फल -
कुम्भ लग्न की कुण्डली में शनि लग्न भाव में हों, तो व्यक्ति के स्वास्थ्य सुख में वृ्द्धि होती है. आत्मबल भी बढता है. योग के कारण व्यक्ति के धन संबन्धी परेशानियों में कमी होती है. व्ययों की अधिकता हो सकती है. यह योग कुण्डली में होने पर व्यक्ति को दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए. वैवाहिक जीवन सुखमय न रहने की संभावनाएं बनती है. व्यापार क्षेत्र भी बाधित हो सकता है. पर अधिनस्थों से सहयोग प्राप्त हो सकता है.
द्वितीय भाव में शनि के फल -
धन संचय करने के लिये व्यक्ति को अत्यधिक परिश्रम करना पड सकता है. माता-भूमि आदि का सुख मिलता है. व्यापार से आय प्राप्ति की इच्छा हो सकती है. पर व्यक्ति को इस क्षेत्र में परेशानियों का सामना करना पड सकता है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल -
व्यक्ति के पराक्रम में वृ्द्धि होती है. शिक्षा के बाधायें आने के बाद सफलता प्राप्ति की संभावनाएं बनती है. भाग्य का सहयोग भी व्यक्ति को प्राप्त होता है. व्यक्ति को धर्म के कार्यो में रुचि रहती है. इसके साथ ही व्ययों के बढने की भी संभावनाएं बनती है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल -
कुम्भ लग्न की कुण्डली के चतुर्थ भाव में शनि की स्थिति होने पर व्यक्ति को माता- भूमि के सुख में कमी हो सकती है. उसका स्वास्थ्य ठीक रहता है. शत्रु प्रबल हो सकते है. व्यापार में परेशानियों के साथ व्यक्ति सफलता की ओर अग्रसर रहता है. बुद्धि व परिश्रम से व्यक्ति को समाज में उच्च स्थान प्राप्त होता है.
पंचम भाव में शनि के फल -
विधा के क्षेत्र में सफलता प्राप्ति में व्यक्ति को कुछ दिक्कतें हो सकती है. व्यापार में अडचनें आ सकती है. आय में कमी की संभावनाएं बनी हुई है. धन संचय भी सरलता से नहीं होता है.
छठे भाव में शनि के फल -
कठोर परिश्रम द्वारा उन्नती, शत्रु शक्तिशाली होते है. व्यक्ति में दया भाव अधिक होने के कारण व्यक्ति अपने शत्रुओं पर भी कठोर नहीं होता है. स्वभाव से व्यक्ति अत्यधिक चिन्ता करने वाला होता है.
सप्तम भाव में शनि के फल -
भाग्य में उतार-चढाव की स्थिति लगी रहती है. मान-प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. परन्तु कुछ समय बाद इसमें भी कमी हो जाती है. दांम्पत्य जीवन में भी परेशानियां लगी रहती है.
अष्टम भाव में शनि के फल -
व्यक्ति को असाध्य रोग हो सकते है. लम्बी अवधि के रोग भी हो सकते है. वाहनों का प्रयोग करते समय दुर्घटनाओं से बचके रहना चाहिए. व्यापार में चोरी जैसी घटनाएं हो सकती है. शिक्षा क्षेत्र बाधित हो सकता है. ऋणों से कष्ट बढने की संभावनाएं बनती है.
नवम भाव में शनि के फल -
मेहनत से उन्नती का मार्ग खुलता है. भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. स्वभाव में मधुरता की कमी होने के कारण व्यक्ति की परेशानियों में बढोतरी होती है.
दशम भाव में शनि के फल -
अत्यधिक मेहनत के बाद सफलता प्राप्त हो सकती है. व्ययों की अधिकता हो सकती है. पर यह योग व्यक्ति के सुखों में बढोतरी कर सकता है.
एकादश भाव में शनि के फल -
आमदनी कम हो सकती है. पर व्यक्ति अपने आत्मबल व मनोबल के द्वारा आय में वृ्द्धि करने में सफल होता है. मान- प्रतिष्ठा की प्राप्ति की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के भौतिक सुखों में वृ्द्धि होती है.
द्वादश भाव में शनि के फल -
व्यय अधिक हो सकते है. धन संचय में कमी हो सकती है. व्यक्ति को शत्रुओं द्वारा कष्ट प्राप्त हो सकता है. ऋणों के बढने की भी संभावनाएं बनती है. यह योग व्यक्ति की धार्मिक आस्था में बढोतरी करता है. व्यक्ति के जीवन में सुखों की अधिकता रहती है.

मीन लग्न में शनि का प्रभाव

जन्म कुण्डली में ग्रह से मिलने वाले फल अनेक कारणों से प्रभावित होते है. जैसा कि सर्वविदित है कि ग्रह के फल दशाओं में प्राप्त होते है. चूंकि कई ग्रहों के पास दो-दो राशियों का स्वामित्व है. ऎसे में दशा अवधि में किस राशि के फल पहले प्राप्त होगें. यह जानने के लिये ग्रह की मूलत्रिकोण राशि का सर्वप्रथम अध्ययन किया जाता है. अब ये फल किस प्रकार के हो सकते है.
इस कार्य में राशि के स्वामी ग्रह की स्थिति, युति, व दृष्टि सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इस ग्रह से संबध बनाने वाले अन्य ग्रहों के प्रभाव से भी ग्रह फल प्रभावित होते है. ग्रह शुभ हों, या अशुभ जब भी उसे कोई शुभ ग्रह देखता है. उसकी शुभता में वृ्द्धि होती है. पर अशुभ ग्रह का दृष्टि प्रभाव होने पर ग्रह की अशुभता में ही बढोतरी होती है. कुण्डली के सभी भाव अपना- अपना महत्व रखते है. इन भावों में स्थित राशियों के महत्व को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है.
मीन लग्न के 12 भावों में शनि किस प्रकार के फल दे सकते है.
प्रथम भाव में शनि के फल -मीन लग्न की कुण्डली के लग्न भाव में शनि हों तो व्यक्ति के शारीरिक सौन्दर्य में कुछ कमी हो सकता है. व्यक्ति को बाल्य काल में स्वास्थ्य में कमी का सामना करना पड सकता है. उसके भाई - बहनों के सुख में भी कमी होने की संभावनाएं बनती है. पर यह योग व्यक्ति के पराक्रम में बढोतरी करता है. शनि के प्रथम भाव में होने के कारण व्यक्ति का दांम्पत्य जीवन कुछ कष्टकारी हो सकता है. व्यापारिक क्षेत्र के लिये भी यह योग बाधाएं लेकर आता है. पिता के साथ व्यक्ति के सम्बध मधुर न रहने की संभावनाएं बनती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल - व्यक्ति को आर्थिक क्षेत्रों में कठिनाईयां हो सकती है. उसके परिवारिक सुखों में कमी की संभावनाएं बनती है. आय सामान्य स्तर की हो सकती है. पर व्यक्ति को मेहनत अधिक करनी पड सकती है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल - व्यक्ति के जीवन में उतार- चढाव अधिक रहने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के शिक्षा में व्यक्ति को संघर्ष करना पड सकता है. व्यक्ति का भाग्य पूरा सहयोग नहीं करता है. व्यक्ति के आय व व्यय अधिक होते है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल - व्यक्ति के पारिवारिक सुख में कमी हो सकती है. उसके शत्रु प्रबल हो सकते है. और शत्रुओं के कारण परेशानियों का सामना करना पड सकता है. कोर्ट-कचहरी का सामना करना पड सकता है. आजिविका में मन्द गति से सफलता प्राप्ति होती है. व्यक्ति को विदेश स्थानों से लाभ होने की संभावनाएं बनती है.
पंचम भाव में शनि के फल - शिक्षा क्षेत्र में बाधाएं आ सकती है. परन्तु इस अशुभता को परिश्रम से कम दिया जा सकता है. संतान पक्ष से कष्ट प्राप्त हो सकते है. व्यापार के क्षेत्र में उतार-चढाव आ सकते है. व्यक्ति के अपने जीवन साथी के साथ संबन्धों में मधुरता की कमी होती है.
छठे भाव में शनि के फल - शत्रुओं पर प्रभाव बनाये रखने में व्यक्ति को सफलता मिलती है. कोर्ट- कचहरी के विषयों में व्यक्ति को विजय प्राप्त होती है. भाई - बहनों का सुख मिलने की भी संभावनाएं बनती है. आत्मबल से व्यक्ति सफल हो सकता है.
सप्तम भाव में शनि के फल - व्यापार मिला-जुला फल देता है. दांम्पत्य सुख में कमी हो सकती है. स्वास्थ्य में कमी के योग भी बनते है. इसके फलस्वरुप व्यक्ति की मान हानि के योग बनते है. व्यय अधिक होता है. भूमि, भवन आदि के मामले व्यक्ति की चिन्ताओं में वृ्द्धि कर सकते है.
अष्टम भाव में शनि के फल -अत्यधिक मेहनत करने से ही सफलता की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के अपने पिता के साथ मतभेद बने रहते है. सरकारी कार्यों में अडचने आ सकती है. धन संचय में कमी हो सकती है. व्यक्ति को उसके शिक्षा क्षेत्र में बाधाएं आ सकती है. तथा संतान के कारण भी कष्ट प्राप्त हो सकते है.
नवम भाव में शनि के फल -यह योग व्यक्ति की धार्मिक आस्था में वृ्द्धि करता है. उसे भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. पर भाग्य का सहयोग प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को प्रयासों को बनाये रखना होता है. ऋण लेने पड सकते है. उसका शत्रुओं पर प्रभाव बना रहता है. आजिविका के लिये यह योग सामान्य रहता है.
दशम भाव में शनि के फल - व्यक्ति को अपने पिता से पूर्ण सुख व सहयोग प्राप्त नहीं हो पाता है. व्ययों के बढने की सम्भावनाएं रहती है. व्यवसाय में परेशानियां बनी रहती है. वैवाहिक जीवन में कष्ट प्राप्त हो सकते है. मकान व भूमि के विषयों से व्यक्ति के कष्ट बढ् सकते है. व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृ्द्धि होती है. कठिन परिश्रम करने से लाभों को भी बढाया जा सकता है.
एकादश भाव में शनि के फल - आय के उतम संभावनाएं बनती है. व्यक्ति को विदेश स्थानों से लाभ प्राप्त हो सकता है. पर उसकी मान -प्रतिष्ठा को ठेस लग सकती है. धन को लेकर व्यक्ति अत्यधिक महत्वकांक्षी हो सकता है. जो सही नहीं है. इसके कारण व्यक्ति के परिवार व अन्य संबध मधुर न रहने की संभावनाएं बनती है. स्वभाव से अहंम की भावना का त्याग करना व्यक्ति के लिये हितकारी रहता है. तथा सुखों में वृ्द्धि के लिये व्यक्ति को स्वार्थ भावना से काम नहीं लेना चाहिए.
द्वादश भाव में शनि के फल -व्यक्ति के व्ययों में वृ्द्धि होती है. विदेश स्थानों से लाभ प्राप्त हो सकता है. व्यक्ति के धन संचय में परेशानियां आ सकती है. तथा उसके शत्रु प्रबल हो सकते है. इस योग के व्यक्ति की सफलता शत्रुओं के कारण बाधित हो सकती है.

राशियों तथा नक्षत्रों का शरीर पर प्रभाव

राशियों तथा नक्षत्रों का अधिकार क्षेत्र शरीर के विभिन्न अंगों पर है, ठीक उसी प्रकार भिन्न-भिन्न ग्रह भी शरीर के विभिन अंगों से संबंधित है. इसके अतिरिक्त कुछ रोग, ग्रह अथवा नक्षत्र की स्वाभाविक प्रकृति के अनुसार जातक को कष्ट देते हैं.
अत: भावों, राशियों, नक्षत्रों तथा ग्रहों एवं विशिष्ट समय पर चल रही दशाओं के व्यापक विचार के बाद शरीर पर रोग का स्थान एवं प्रकृति, निदान तथा रोग का संभावित समय एवं परिणाम ज्ञात करना भी संभव है. चिकित्सा ज्योतिष में विभिन्न ग्रहों के कारक तत्व यहाँ पर संक्षिप्त रूप में दिये जा रहे है.
सूर्य -यह पित्त प्रकृति का कारक ग्रह है. इसका बलाबल किसी व्यक्ति के सामान्य स्वास्थ्य को प्रतिबिंबित करता है. इनका अधिकार क्षेत्र ह्रदय, पेट, अस्थि तथा दाहिनी आँख है. चिकित्सीय क्षेत्र में सूर्य के अधिकार क्षेत्र में सिरदर्द, गंजापन,चि़डचिडापन, ज्वर, दर्द, जलना, पित की सूजन से होने वाले रोग, ह्रदय रोग , नेत्र रोग, पेट की बीमारियाँ आते हैं.
चन्द्र -यह ग्रह वात तत्व, कफ प्रकृति का है. यह मन की स्थिरता तथा पुष्टता को प्रतिबिंबित करता है. मन के प्रतिनिधित्व के अतिरिक्त इसका अधिकार क्षेत्र शरीर में बहने वाले द्रव, रक्त तथा बायीं आँख है. यह मानसिक रोग संबंधी समस्याएं, मानसिक विचलन, भावात्मक अशांति, घबराना, अतिनिद्रा आदि भी दे सकता है.
चन्द्र के अधिकार क्षेत्र में क्षयरोग, रक्ताल्पता, अतिसार, रक्त विषाक्तता, पीलिया, जल और जलीय जंतुओं से होने वाले रोग आते हैं. चन्द्र तथा मंगल मिलकर स्त्रियों में माहवारी चक्र, प्रजनन प्रणाली आदि सम्बन्धी रोग देते है.
मंगल -यह ग्रह पित्त प्रकृति का कारक है. उर्जा शक्ति, उत्साह और जोश का प्रतीक है. तेज व चेतना की प्रबलता को प्रतिबिंबित करता है. इसके अधिकार क्षेत्र है - सिर, अस्थि मज्जा, पित्त, हिमोग्लोबिन, कोशिकाएं, गर्भाशय की अंत: दीवार, दुर्घटना, चोट, शल्य क्रियाएँ, जल जाना, रक्त विकार, तन्तुओं की फटन, उच्च रक्त चाप, पित्त जनित सूजन तथा उसके कारण होने वाला ज्वर. अत्यधिक प्यास, नेत्र विकार, मिरगी, अस्थि टूटना, गर्भाशय के रोग, प्रसव तथा गर्भपात, सिर में चोट, लड़ाई में चोट आदि.
बुध-बुध वात, पित्त तथा कफ तीनों प्रकृति का कारक है. बुध बुद्धि, तर्क तथा विवेक देता है. प्रतिकूल बुध पापी चन्द्र के साथ मिलकर किसी की विचारधारा को व्यग्र कर सकता है. मानसिक विचलन का कारण बन सकता है. इसका अधिकार त्वचा, गला, नाक, फेफड़ा तथा धैर्य हीनता, मानसिक अस्थिरता, मानसिक जटिलता, अभद्र भाषा, दोषपूर्ण वाणी, चक्कर आना, श्वेत कुष्ठ रोग, नपुंसकता और बहरेपन पर है.
गुरु -गुरु कफ प्रकृति के है. शुभ ग्रह होने के कारण रोगों से रक्षा करता है. इसका अधिकार क्षेत्र यकृत विकार, पित्त की थैली के रोग, तिल्ली के रोग, मोटापा, रक्ताल्पता, ज्वर, मूर्छा, कर्ण रोग, मधुमेह इत्यादि है. अग्नाशय का कुछ क्षेत्र तथा शरीर में चर्बी पर भी गुरु का अधिकार है. इसके अतिरिक्त गुरु आलस्य का भी कारक है.
शुक्र -शुक्र वात तथा कफ प्रकृति का है. यह व्यक्ति की यौन क्रियाओं को नियंत्रित करता है. यदि अधिक पीड़ित हो अथवा अशुभ स्थान में हो तो जननांग सम्बन्धी रोग देता है. इसका अधिकार क्षेत्र चेहरा, दृष्टि, वीर्य, जननांग, मूत्र प्रणाली, अश्रुग्रंथी पर है. यह अग्नाशय के कुछ भाग का भी कारक है.इसके द्वारा शरीर की हारमोनल प्रणाली नियंत्रित होती है. शुक्र यौन विकार, नेत्र रोग, मोतिया बिन्द, श्वेत कुष्ठ, गुप्त रोग, मधुमेह आदि रोग दे सकता है.
शनि -यह ग्रह वात और कफ प्रकृति का है. यह असाध्य अथवा अतिदीर्घ कालिक रोग देते है. शनि के अधिकार क्षेत्र में टाँगे, नाडी, बड़ी आंत का अंतिम भाग, गुदा आते हैं. इसके प्रभाव के कारण व्यक्ति को पक्षाघात, पागलपन, कैंसर, अति परिश्रम, थकान, टांग तथा पैर के रोग, चोट, अवसाद तथा खिन्नता के कारण मानसिक अव्यवस्था, पेट के रोग, पेड़ से गिरने तथा पत्थर से चोट आदि लगने की संभावना बनती है.
राहु -राहु के अधिकार क्षेत्र में कार्य को मंदगति से करना, फूहड़पन, हिचकी, उन्माद, कुष्ठ रोग, शक्तिहीनता, असाध्य रोग, विषाक्ता, सर्प दंश, पैरों के रोग आदि आते है. यह शनि के समान होने के कारण शनि के रोग भी देता है.
केतु-राहु के सभी रोग केतु भी दे सकता है, इसके अतिरिक्त केतु अनिश्चित कारण वाले रोग, महामारी, छाले युक्त ज्वर, जहरीले संक्रमण से होने वाले संक्रामक रोग, बहरापन, दोषपूर्ण वाणी, शल्यक्रिया आदि भी दे सकता है.

Astrological aspects for becoming a Good Journalists

There are many kinds of professions in the world. Some are involved in managing wealth, others in catering to guests for a fee, others with creating new products, and so on. In this article we will discuss another very important profession that deals with distributing information. That of a journalist.
In a journalist's profession the Astrologer must acknowledge the influence of goddess Saraswati instead of goddess Lakshmi. In this field the person should know the art of using attractive words and have good writing skills.
Journalist has a talent to change a drop into an ocean, he has the ability to cause a revolution. With the the grace of Goddess Saraswati journalists acquires the ability to mold their words into pearls or as burning coal. The person who is expert in this art will obtain fame, respect as well as popularity.
Mercury is considered the significator of pen and Mars of ink in Astrology. The combination of both the planets, bring the person into the profession of writing. Mercury plays a vital role in the birth-chart of Journalists. Mercury is fickle, unsteady and an influential planet which reacts quickly. When the influence of Mercury, combines with the influence of Jupiter in the birth-chart then it create an auspicious Yoga. The person who is in the profession of Journalist will also have the influence of the sixth house in his birth-chart.
1. Houses in horoscope: Third, Fifth and the Tenth House
The third house is the house of communication in the birth-chart. This house reflects the art of speaking. The third house gives information regarding all the instruments of communication such as television, newspaper and etc. Along with education, the fifth house also give the person an ability to speak artistically. The tenth house is the house of occupation. If three of them have positive influences, the person will achieve success in the field of journalism.
2. Planets: Mercury, Mars and Jupiter
Mercury is the main planet of expression and communication. Combination of Mars and Mercury is similar to the combination of pen and ink, a person who will get this combination in his birth-chart will publish his articles. The Influence of Jupiter makes the person knowledgeable. Jupiter is also responsible for money and fame. Therefore, if it is placed in the auspicious house and have an auspicious effect then the person will achieve both the qualities.
3. Planet: Venus, Rahu, Saturn or Jupiter
The direction of journalism is determined according to the nature of Amatyakaarak, such as:-
If Venus is the Amatyakaarak planet and Moon influences Venus then the person will get into the field of visual media in journalism because Venus is a planet associated with visual media. In that case if the person tries his luck behind the camera or in any channel on Television then he will get into scriptwriting in films or television channels.
The influence of Rahu, Saturn and Jupiter on Amatyakaarak helps a person become a journalist. If Saturn or Jupiter is a Amatyakaarak planet or has their influence on it, then the person will be associated with the field of print media. Mercury and Mars should form a relationship with Amatyakaarak in the birth-chart for good results.
4. Navmansh Kundali and Dashmansh Kundali:
Yogas formed in the birth-chart should be reviewed in the Navamsh Kundali because to determine the field of occupation only through the analysis of birth-chart, will be called carelessness. Therefore, to review his decisions and analysis Astrologers should also study Navamsh Kundali.
Dashmansh Kundali is considered to study deeply the matters related to occupation. If out of three charts, any two indicate that he will earn his income from the field of journalism, then it will be confirmed that he will reap definite benefits and fame from this field.
5. Directions and Transit:
The Yogas in the birth-chart give appropriate results when the Planets and house associated with their occupation form a relationship with the periods in the age of his livelihood. The influence of the double transit on the tenth house/lord is mandatory.
6. Other Yogas:
In the birth-chart of successful journalists, the third house should be in a strong position. It will be auspicious for the journalist if the planets associated with the field of journalism form a relationship with the third house in large number. The planet of Amatyakaarak is strong in the person's birth-chart the person will reach towards success in this profession accordingly.

नवदुर्गा की पांचवी स्वरुप है देवी स्कंदमाता

बीज मन्त्र: या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती है। मां के इस स्वरूप की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मां भक्त के सारे दोष और पाप दूर कर देती है। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। भगवान स्कंद 'कुमार कार्तिकेय' नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है। नवरात्रि-पूजन के पाँचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की अलसी औषधी के रूप में भी पूजा होती है। स्कंद माता को पार्वती एवं उमा के नाम से भी जाना जाता है। अलसी एक औषधि से जिससे वात, पित्त, कफ जैसी मौसमी रोग का इलाज होता है। इस औषधि को नवरात्रि में माता स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी बीमारियां नहीं होती। साथ ही स्कंदमाता की आराधना के फल स्वरूप मन को शांति मिलती है।
स्कंदमाता पूजा विधि
स्कंदमाता की विधि सहित पूजा करनी चाहिए, पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से करना चाहिए जैसे अब तक के चार दिनों में नवरात्रों का पूजन किया जाता है. शुद्ध चित से “सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया. शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी” नामक इस मंत्र से देवी का स्मरण करना चाहिए.
पंचोपचार विधि से देवी स्कन्दमाता की पूजा करने के पश्चात भगवान शिव और ब्रह्मा जी की पूजा करनी चाहिए, नवरात्रे की पंचमी तिथि को कहीं-कहीं भक्त उपांग ललिता का व्रत भी रखते हैं. इस व्रत को फलदायक कहा गया है. जो भक्त देवी स्कन्द माता की भक्ति-भाव सहित पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है. देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है.वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए.
पूजा महत्व
नवरात्रों के पांचवे दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा होती है. माता इस रूप में पूर्णत: वात्सल्य लुटाती हुई नज़र आती हैं. माता का पांचवा रूप शुभ्र अर्थात श्वेत है. जब अत्याचारी का अत्याचार बढ़ता है तब माता संत जनों की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का संहार करती हैं. देवी स्कन्दमाता अपनी भुजाओं में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कन्द या कुमार कार्तिकेय को अपनी गोद में लिये बैठी हैं हुईं भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे स्थित होती हैं.

नवरात्री व्रत

नवरात्रि पर देवी पूजन और नौ दिन के व्रत का बहुत महत्व है. मां दुर्गा के नौ रूपों की अराधना का पावन पर्व शुरू हो रहा है. इन नौ दिनों में व्रत रखने वालों के लिए कुछ नियम होते हैं. इससे जुड़े महत्वपूर्ण नियमों में से एक है नौ दिनों तक अन्न न खाना और इसी के साथ ही प्याज-लहसुन, शराब और नॉन वेज भी का भी परहेज बताया गया है.
नवरात्रि में सिर्फ फलाहारी क्यों?
नवरात्रि के दिन नौ दिन व्रत करने वाले लोग हों या फिर सिर्फ दो दिन का व्रत करने वाले. इस व्रत में सिर्फ फलाहारी का सेवन करना ही अनिवार्य बताया गया है. व्रत रखने वाले लोग फल, जूस, दूध और मावा की बनी मिठाई खाते हैं. इस दौरान सेंधा नमक का सेवन भी किया जा सकता है. कुट्टू का आटा और साबूदाने की बनी चीजों को भी खाना लोग पसंद करते हैं.
नवरात्रि से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं
धार्मिक मान्यताओं की मानें तो व्रत करने से शरीर शुद्ध और मन साफ होता है. इसी वजह से इंसान भगवान की साधना शांति से कर पाता है. ऐसे करने से उसकी इच्छाशक्ति भी प्रबल होती है.
व्रत पर क्या कहता है विज्ञान
धार्मिक ही नहीं व्रत-उपवास के महत्व को सांइस भी मानता है. साल में दो बार आने वाली नवरात्रि के दौरान मौसम बदल रहा होता है और बदलते मौसम में शरीर को रोगमुक्त रखने के लिए अगर नौ दिन के व्रत करना लाभकारी होता है.
क्या कहता है आयुर्वेद?
प्राचीन समय में तपस्वी और मुनि कठोर तप करते थे और इस दौरान वह सिर्फ फूल-फल और पेय पदार्थों का सेवन करते थे. इस कारण से उनका शरीर विषैले तत्वों से दूर रहता था. आयुर्वेद के मुताबिक जब मौसम बदलता है तो मांसाहार, लहसुन, प्याज आदि के सेवन से परहेज करना चाहिए. नवरात्रि के दौरान शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है. इसलिए हल्का भोजन सेहत के लिए अच्छा होता है.

future for you astrological news sitare hamare world famous astroguru pt...

future for you astrological news sitare hamare world famous astroguru pt...

Saturday 1 October 2016

नवरात्री से जुड़े प्रमुख कथाएँ

चैत्र माह में आने वाले मां दुर्गा के नवरात्रे शुरू हो चुके हैं और इसी के साथ मां की भक्ति और शक्ति दोनों का बखान भी होने लगता है. माना जाता है कि नवदुर्गा की पूजा मां के शक्ति स्‍वरूप की को प्रसन्‍न करने के लिए की जाती है. मां की महिमा को कौन नहीं जानता लेकिन उनसे जुड़ी कथाओं के माध्यम से उन्हें जानना और समझना भक्‍तों के लिए थोड़ा आसान हो जाता है.
पहली कथा के अनुसार
लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण-वध के लिए चंडीदेवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ 108 नीलकमल की व्यवस्था की गई, वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया. यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुंचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासंभव पूर्ण होने दिया जाए. इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा, भय इस बात का था कि देवी मां रुष्ट न हो जाएं. दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग कमलनयन नवकंच लोचन कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राज जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए तब देवी ने प्रकट हो हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूं और विजयश्री का आशीर्वाद दिया.
मान्‍याताओं के अनुसार दूसरी कथा
एक बार रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धरकर हनुमानजी सेवा में जुट गए. नि:स्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर मांगने को कहा. इस पर हनुमानजी ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए. ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया.
मंत्र में जयादेवी... भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है. 'भूर्तिहरिणी' यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'करिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया. हनुमानजी ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी.
क्‍या कहती है तीसरी कथा
नवरात्रि पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंसरूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजेय होने का वरदान दे दिया. उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा और प्रत्याशित प्रतिफलस्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देखकर देवता विस्मय की स्थिति में आ गए.महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चंद्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा. देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्‍वी पर विचरण करना पड़ रहा है. तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की. ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था. महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गई थीं. इन 9 दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अंतत: वे महिषासुरमर्दिनी कहलाईं.

शारदीय नवरात्र

मां दुर्गा की आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्र 01 अक्टूबर से प्रारम्भ हो रहे हैं. इस बार प्रतिपदा तिथि दो दिन होने के कारण नवरात्र नौ दिन की बजाय 10 दिन होंगे.
इस बार नवरात्र‍ि में 18 साल बाद महासंयोग बन रहा है. 01 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 20 मिनट से लेकर 07 बजकर 30 तक का समय कलश स्थापना के लिए शुभ है. नवरात्र व्रत की शुरुआत प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना से की जाती है.
कलश स्थापना की जरूरी पूजन सामग्री
- जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र.
- जौ बोने के लिए शुद्ध साफ की हुई मिटटी.
- पात्र में बोने के लिए जौ.
- कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल.
- मोली.
- इत्र.
- साबुत सुपारी.
- दूर्वा.
- कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के.
- पंचरत्न.
- अशोक या आम के 5 पत्ते.
- कलश ढकने के लिए मिटट् का दीया.
- ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल.
- पानी वाला नारियल.
- नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपड़ा.
शारदीय नवरात्र की तिथियां
- पहला दिन: 01 अक्टूबर, 2016 इस दिन घटस्थापना शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 20 मिनट से लेकर 07 बजकर 30 मिनट तक का है. प्रथम नवरात्र को देवी शैलपुत्री रूप का पूजन किया जाता है.
- दूसरा दिन: 02 अक्टूबर, 2016 इस वर्ष प्रतिपदा तिथि दो दिन होने की वजह से आज भी देवी शैलपुत्री की पूजा की जाएगी.
- तीसरा दिन: 03 अक्टूबर 2016 नवरात्र की द्वितीया तिथि को देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है.
- चौथा दिन: 04 अक्टूबर 2016 तृतीया तिथि को देवी दुर्गा के चन्द्रघंटा रूप की आराधना की जाती है.
- पांचवा दिन: 05 अक्टूबर 2016 नवरात्र पर्व की चतुर्थी तिथि को मां भगवती के देवी कूष्मांडा स्वरूप की उपासना की जाती है.
- छठा दिन: 06 अक्टूबर 2016 पंचमी तिथि को भगवान कार्तिकेय की माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है.
- सातवां दिन: 07 अक्टूबर 2016 नारदपुराण के अनुसार आश्विन शुक्ल षष्ठी को मां कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए.
- आठवां दिन: 08 अक्टूबर 2016 नवरात्र पर्व की सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा का विधान है.
- नौंवा दिन: 09 अक्टूबर 2016 अष्टमी तिथि को मां महागौरी की पूजा की जाती है. इस दिन कई लोग कन्या पूजन भी करते हैं.
- दसवां दिन: 10 अक्टूबर 2016 नवरात्र पर्व की नवमी तिथि को देवी सिद्धदात्री स्वरूप का पूजन किया जाता है. सिद्धिदात्री की पूजा से नवरात्र में नवदुर्गा पूजा का अनुष्ठान पूर्ण हो जाता है.
- 11 अक्टूबर 2016 बंगाल, कोलकाता आदि जगहों पर जहां काली पूजा और दुर्गा पूजा की जाती है. वहां दसवें दिन दुर्गा जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है.