Tuesday 4 October 2016

मीन लग्न में शनि का प्रभाव

जन्म कुण्डली में ग्रह से मिलने वाले फल अनेक कारणों से प्रभावित होते है. जैसा कि सर्वविदित है कि ग्रह के फल दशाओं में प्राप्त होते है. चूंकि कई ग्रहों के पास दो-दो राशियों का स्वामित्व है. ऎसे में दशा अवधि में किस राशि के फल पहले प्राप्त होगें. यह जानने के लिये ग्रह की मूलत्रिकोण राशि का सर्वप्रथम अध्ययन किया जाता है. अब ये फल किस प्रकार के हो सकते है.
इस कार्य में राशि के स्वामी ग्रह की स्थिति, युति, व दृष्टि सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इस ग्रह से संबध बनाने वाले अन्य ग्रहों के प्रभाव से भी ग्रह फल प्रभावित होते है. ग्रह शुभ हों, या अशुभ जब भी उसे कोई शुभ ग्रह देखता है. उसकी शुभता में वृ्द्धि होती है. पर अशुभ ग्रह का दृष्टि प्रभाव होने पर ग्रह की अशुभता में ही बढोतरी होती है. कुण्डली के सभी भाव अपना- अपना महत्व रखते है. इन भावों में स्थित राशियों के महत्व को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है.
मीन लग्न के 12 भावों में शनि किस प्रकार के फल दे सकते है.
प्रथम भाव में शनि के फल -मीन लग्न की कुण्डली के लग्न भाव में शनि हों तो व्यक्ति के शारीरिक सौन्दर्य में कुछ कमी हो सकता है. व्यक्ति को बाल्य काल में स्वास्थ्य में कमी का सामना करना पड सकता है. उसके भाई - बहनों के सुख में भी कमी होने की संभावनाएं बनती है. पर यह योग व्यक्ति के पराक्रम में बढोतरी करता है. शनि के प्रथम भाव में होने के कारण व्यक्ति का दांम्पत्य जीवन कुछ कष्टकारी हो सकता है. व्यापारिक क्षेत्र के लिये भी यह योग बाधाएं लेकर आता है. पिता के साथ व्यक्ति के सम्बध मधुर न रहने की संभावनाएं बनती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल - व्यक्ति को आर्थिक क्षेत्रों में कठिनाईयां हो सकती है. उसके परिवारिक सुखों में कमी की संभावनाएं बनती है. आय सामान्य स्तर की हो सकती है. पर व्यक्ति को मेहनत अधिक करनी पड सकती है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल - व्यक्ति के जीवन में उतार- चढाव अधिक रहने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के शिक्षा में व्यक्ति को संघर्ष करना पड सकता है. व्यक्ति का भाग्य पूरा सहयोग नहीं करता है. व्यक्ति के आय व व्यय अधिक होते है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल - व्यक्ति के पारिवारिक सुख में कमी हो सकती है. उसके शत्रु प्रबल हो सकते है. और शत्रुओं के कारण परेशानियों का सामना करना पड सकता है. कोर्ट-कचहरी का सामना करना पड सकता है. आजिविका में मन्द गति से सफलता प्राप्ति होती है. व्यक्ति को विदेश स्थानों से लाभ होने की संभावनाएं बनती है.
पंचम भाव में शनि के फल - शिक्षा क्षेत्र में बाधाएं आ सकती है. परन्तु इस अशुभता को परिश्रम से कम दिया जा सकता है. संतान पक्ष से कष्ट प्राप्त हो सकते है. व्यापार के क्षेत्र में उतार-चढाव आ सकते है. व्यक्ति के अपने जीवन साथी के साथ संबन्धों में मधुरता की कमी होती है.
छठे भाव में शनि के फल - शत्रुओं पर प्रभाव बनाये रखने में व्यक्ति को सफलता मिलती है. कोर्ट- कचहरी के विषयों में व्यक्ति को विजय प्राप्त होती है. भाई - बहनों का सुख मिलने की भी संभावनाएं बनती है. आत्मबल से व्यक्ति सफल हो सकता है.
सप्तम भाव में शनि के फल - व्यापार मिला-जुला फल देता है. दांम्पत्य सुख में कमी हो सकती है. स्वास्थ्य में कमी के योग भी बनते है. इसके फलस्वरुप व्यक्ति की मान हानि के योग बनते है. व्यय अधिक होता है. भूमि, भवन आदि के मामले व्यक्ति की चिन्ताओं में वृ्द्धि कर सकते है.
अष्टम भाव में शनि के फल -अत्यधिक मेहनत करने से ही सफलता की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के अपने पिता के साथ मतभेद बने रहते है. सरकारी कार्यों में अडचने आ सकती है. धन संचय में कमी हो सकती है. व्यक्ति को उसके शिक्षा क्षेत्र में बाधाएं आ सकती है. तथा संतान के कारण भी कष्ट प्राप्त हो सकते है.
नवम भाव में शनि के फल -यह योग व्यक्ति की धार्मिक आस्था में वृ्द्धि करता है. उसे भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. पर भाग्य का सहयोग प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को प्रयासों को बनाये रखना होता है. ऋण लेने पड सकते है. उसका शत्रुओं पर प्रभाव बना रहता है. आजिविका के लिये यह योग सामान्य रहता है.
दशम भाव में शनि के फल - व्यक्ति को अपने पिता से पूर्ण सुख व सहयोग प्राप्त नहीं हो पाता है. व्ययों के बढने की सम्भावनाएं रहती है. व्यवसाय में परेशानियां बनी रहती है. वैवाहिक जीवन में कष्ट प्राप्त हो सकते है. मकान व भूमि के विषयों से व्यक्ति के कष्ट बढ् सकते है. व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृ्द्धि होती है. कठिन परिश्रम करने से लाभों को भी बढाया जा सकता है.
एकादश भाव में शनि के फल - आय के उतम संभावनाएं बनती है. व्यक्ति को विदेश स्थानों से लाभ प्राप्त हो सकता है. पर उसकी मान -प्रतिष्ठा को ठेस लग सकती है. धन को लेकर व्यक्ति अत्यधिक महत्वकांक्षी हो सकता है. जो सही नहीं है. इसके कारण व्यक्ति के परिवार व अन्य संबध मधुर न रहने की संभावनाएं बनती है. स्वभाव से अहंम की भावना का त्याग करना व्यक्ति के लिये हितकारी रहता है. तथा सुखों में वृ्द्धि के लिये व्यक्ति को स्वार्थ भावना से काम नहीं लेना चाहिए.
द्वादश भाव में शनि के फल -व्यक्ति के व्ययों में वृ्द्धि होती है. विदेश स्थानों से लाभ प्राप्त हो सकता है. व्यक्ति के धन संचय में परेशानियां आ सकती है. तथा उसके शत्रु प्रबल हो सकते है. इस योग के व्यक्ति की सफलता शत्रुओं के कारण बाधित हो सकती है.

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