मेष लग्न में यदि मंगल लगनस्त हो तथा बृहस्पति एवं सूर्य से युक्त अथवा दृष्ट्र हो, तो धनवान होने में संदेह नहीं करना चाहिए । इसके साथ यदि द्धितीयेश शुक्र तथा एकादशेश शनि के मध्य विनिमय-परिवर्तन रोग निर्मित हो रहा हो, तो अत्यधिक धनी-मानी होने की सृष्टि होती और सूर्य का संयोग हो रहा हो, तो जातक कै अथोंदूगम की कोई सीमा नहीं होती । यदि शनि और शुक्र लाभ अथवा द्वितीय भाव में संयुक्त न होकर, लग्न में लग्नेश मंगल, पंचमेश सूर्य एवं नवमेश वृहस्पति से युक्त हों अथवा शनि, मंगल, शुक्र लग्नस्त होकर बृहस्पति और सूर्य द्धारा दुष्ट हों, तो भी जातक अपार धनवान होता हे । इस स्थिति से भी अधिक धनवान, धनार्जन, धनसंचय,धन संवर्द्धन, धनोदूगम एवं धनोत्पत्ति तब होती है जब लग्न पर मंगल, वृहस्पति और सूर्य का पूर्ण एवं प्रबट्ठा प्रभाव हो, शनि और शुक्र पंचम अथवा नवम भावस्थ हों अथवा कैन्द्र स्थानों में एकदूसरे से किसी न किसी रूप में संबंधों उल्लेखनीय है किं नवांश की महत्वपूर्ण भूमिका की उपेक्षा नहीँ की जानी चाहिए । यदि मेष लग्न हो तया मंगल स्वनवांशस्थ डो अथवा सिंह या
धनु राशि का नवांश प्राप्त कर रहा हो, तो मंगल की, धन प्रदान करने की क्षमता में अवश्य अभिवृद्धि होती है । इसी प्रकार यदि नवमेश बृहस्पति की दृष्टि लग्नस्थ वृहस्पति पर पड़ रही हो और वह स्वनबांश, उच्व नवांश या फिर मेष, सिहे या धनु नवांश मेँ स्थित हो, तो धनयोग की प्रबलता स्वत: सिद्ध होती है । लग्नस्थ मंगल पर सूर्य की दृष्टि हो अथवा सूर्य से मंगल संयुक्त हो, तो धनयोग क्री श्रेष्ठता की अभिव्यक्ति होतीं है परन्तु सूर्य, यदि लग्नस्थ होकर मेष, सिंह व धनु नबांशरथ हो, तो प्रबल धनयोग की संसिद्धि, समस्त संदेहों को पराजित करती है उल्लेखनीय है कि सभी ग्रह स्थितियाँ एक जन्मग्रेग में एक साथ निर्मित नहीँ हो सकती हैं अत: जिस जन्मग्रेग मेँ इन ग्रहयोगों की प्रबलता एवं अधिकता हो, वह व्यक्ति उतना ही समृद्ध, सम्पन्न, सम्पत्तिवान तवा धनवान होगा लग्न, त्रिकोण, लाभ भाव, धन भाव तथा थनकारक बृहस्पति का अध्ययन तो स्वाभाविक है परन्तु कतिपय भाव स्थितियों पर प्राय: पाठकों का ध्यान कैन्दित नहीं हो पाता हे और ये भाव भी अधोंपार्जन की दृष्टि ये पर्याप्त महत्वपूर्ण हैं । धन भाव एवं लाभ भाव से त्रिकोण भावस्थ ग्रहों की अवहेलनाहै । यदि शनि और उ, लाभ या धन भाव में संयुक्त रूप से स्थित हों तथा लग्न में मंगल, वृहस्पतिग्रहों की अवहेलना करना मिथ्या परिणाम का प्रतिपादन करता है षष्ठ तथा दशम भाव, धन भाव के त्रिकोण स्थान होते हैं । इसी प्रकार लाभ भाव के त्रिकोण स्थान, तृतीय तथा सप्तम मय होते हैं इसीलिए तृतीय, षष्ठ, दशम तथा एकादश भावस्थ ग्रहों
द्वारा वसुमति योग की संरचना होती है जो धनवान होने की संपुष्टि करती है मेष लग्न से तृतीय भाव मिथुन तथा षष्ठ भाव कन्या होता है । यदि मिथुन या कन्या राशि में बुध स्थित हो, शुक्र अथवा शनि से संयुक्त हो, तो धनयोग का निर्माण होता है । इसी प्रकार मेष लग्न के जातक के जन्मग्रेग में मिथुन अथवा कन्या राशि में बुध के साय सूर्य अथवा अति भी शुभ फल प्रदान करते हैं इसी विधान का अनुकरण करते हुए यदि सप्तम अथवा यम भाव में शुक अथवा शनि संस्थित हो या उनके मध्य विनिमय दुष्टिसम्बन्ध स्थापित हो रहा हो, तो जातक धनवान होता है । यदि शनि और शुक्र के मध्य विनिमय नवांश परिवर्त्तन हो रहा हो, तो धनयोग की प्रबलता को आधार प्राप्त होता है मेष लग्न में पंचमस्थ सूर्य पर एकादशरथ शनि अथवा अति दुष्टिनिक्षेप बरि, तो अत्यन्त शुभ फल प्राप्त होता है । यदि एकादश भाव में बृहस्पति तथा शनि संयुक्त रूप से संस्थित हों तथापंचम भाव में सूर्य, सिंह राशिंगत ही, तो जातक के ज़न्मा३ग में धनयोग की सृष्टि होती है । इसी प्रकार से मेष लग्न में उत्पन्न होने वाले जातक के ज़न्मग्रेग के नवम भाव में बृहस्पति की स्थिति उत्वम भाग्य प्रदान करती है । वृहस्पति पर यदि सूर्य अथवा शुक्र हो, तो भी धन सम्बन्धी शुभ फलों में वृद्धि होती है । बृहस्पति, सूर्य और मंगल की नवम भाव मेँ युति की अत्यधिक प्रशंसा की जानी चाहिए । क्योंकि तीनों त्रिक्रोणों के अधिपति के नवम भाव में स्थित होने से उत्तम भाग्य तथा धनयोग की संरचना होती हे पाठकगण भ्रमित न हों, इसलिए इस बिषय का अधिक विस्तार न करते हुए इतना कहना ही उपयुक्त होगा कि नक्षत्रों के बलाबल तथा शुभाशुभ पर विचार करना भी अपेक्षित है । नवम भाव में धनु राशिगत वृहस्पति, यदि धनु, कर्क, सिंह अथवा मेष नवांश में स्थित हो, तो निश्चित रूप से बृहस्पति के शुभत्व में वृद्धि होगी तथा जातक अत्यधिक भाग्यवान व्यक्ति वो रूप में प्रतिष्ठित और प्रशंसित होगा । इसी प्रकार से नवम भावस्थ बृहस्पति यदि उत्तराषाढ़ नक्षत्र कं प्रथम पद में स्थित हो, तो उसके शुभत्व का विस्तार होगा । यदि बृहस्पति दसवर्ग बल मेँ अधिक से अधिक स्ववर्ग अथवा उच्व राशि कै वर्गो को प्राप्त करेगा, तो उत्तमोत्तम फल प्रदान करने मेँ सफल होगा । यदि दसवर्ग बल की गणना न की गई हो, तो षडवर्ग बल के आधार पर बृहस्पति, मंगल, सूर्य, शनि और केतु के बलाबल पर विचार करने के उपरान्त ही जातक कै धन सम्बन्धी विषयों के भविष्य कथन की अभिव्यक्ति करनी चाहिऐ |
धनु राशि का नवांश प्राप्त कर रहा हो, तो मंगल की, धन प्रदान करने की क्षमता में अवश्य अभिवृद्धि होती है । इसी प्रकार यदि नवमेश बृहस्पति की दृष्टि लग्नस्थ वृहस्पति पर पड़ रही हो और वह स्वनबांश, उच्व नवांश या फिर मेष, सिहे या धनु नवांश मेँ स्थित हो, तो धनयोग की प्रबलता स्वत: सिद्ध होती है । लग्नस्थ मंगल पर सूर्य की दृष्टि हो अथवा सूर्य से मंगल संयुक्त हो, तो धनयोग क्री श्रेष्ठता की अभिव्यक्ति होतीं है परन्तु सूर्य, यदि लग्नस्थ होकर मेष, सिंह व धनु नबांशरथ हो, तो प्रबल धनयोग की संसिद्धि, समस्त संदेहों को पराजित करती है उल्लेखनीय है कि सभी ग्रह स्थितियाँ एक जन्मग्रेग में एक साथ निर्मित नहीँ हो सकती हैं अत: जिस जन्मग्रेग मेँ इन ग्रहयोगों की प्रबलता एवं अधिकता हो, वह व्यक्ति उतना ही समृद्ध, सम्पन्न, सम्पत्तिवान तवा धनवान होगा लग्न, त्रिकोण, लाभ भाव, धन भाव तथा थनकारक बृहस्पति का अध्ययन तो स्वाभाविक है परन्तु कतिपय भाव स्थितियों पर प्राय: पाठकों का ध्यान कैन्दित नहीं हो पाता हे और ये भाव भी अधोंपार्जन की दृष्टि ये पर्याप्त महत्वपूर्ण हैं । धन भाव एवं लाभ भाव से त्रिकोण भावस्थ ग्रहों की अवहेलनाहै । यदि शनि और उ, लाभ या धन भाव में संयुक्त रूप से स्थित हों तथा लग्न में मंगल, वृहस्पतिग्रहों की अवहेलना करना मिथ्या परिणाम का प्रतिपादन करता है षष्ठ तथा दशम भाव, धन भाव के त्रिकोण स्थान होते हैं । इसी प्रकार लाभ भाव के त्रिकोण स्थान, तृतीय तथा सप्तम मय होते हैं इसीलिए तृतीय, षष्ठ, दशम तथा एकादश भावस्थ ग्रहों
द्वारा वसुमति योग की संरचना होती है जो धनवान होने की संपुष्टि करती है मेष लग्न से तृतीय भाव मिथुन तथा षष्ठ भाव कन्या होता है । यदि मिथुन या कन्या राशि में बुध स्थित हो, शुक्र अथवा शनि से संयुक्त हो, तो धनयोग का निर्माण होता है । इसी प्रकार मेष लग्न के जातक के जन्मग्रेग में मिथुन अथवा कन्या राशि में बुध के साय सूर्य अथवा अति भी शुभ फल प्रदान करते हैं इसी विधान का अनुकरण करते हुए यदि सप्तम अथवा यम भाव में शुक अथवा शनि संस्थित हो या उनके मध्य विनिमय दुष्टिसम्बन्ध स्थापित हो रहा हो, तो जातक धनवान होता है । यदि शनि और शुक्र के मध्य विनिमय नवांश परिवर्त्तन हो रहा हो, तो धनयोग की प्रबलता को आधार प्राप्त होता है मेष लग्न में पंचमस्थ सूर्य पर एकादशरथ शनि अथवा अति दुष्टिनिक्षेप बरि, तो अत्यन्त शुभ फल प्राप्त होता है । यदि एकादश भाव में बृहस्पति तथा शनि संयुक्त रूप से संस्थित हों तथापंचम भाव में सूर्य, सिंह राशिंगत ही, तो जातक के ज़न्मा३ग में धनयोग की सृष्टि होती है । इसी प्रकार से मेष लग्न में उत्पन्न होने वाले जातक के ज़न्मग्रेग के नवम भाव में बृहस्पति की स्थिति उत्वम भाग्य प्रदान करती है । वृहस्पति पर यदि सूर्य अथवा शुक्र हो, तो भी धन सम्बन्धी शुभ फलों में वृद्धि होती है । बृहस्पति, सूर्य और मंगल की नवम भाव मेँ युति की अत्यधिक प्रशंसा की जानी चाहिए । क्योंकि तीनों त्रिक्रोणों के अधिपति के नवम भाव में स्थित होने से उत्तम भाग्य तथा धनयोग की संरचना होती हे पाठकगण भ्रमित न हों, इसलिए इस बिषय का अधिक विस्तार न करते हुए इतना कहना ही उपयुक्त होगा कि नक्षत्रों के बलाबल तथा शुभाशुभ पर विचार करना भी अपेक्षित है । नवम भाव में धनु राशिगत वृहस्पति, यदि धनु, कर्क, सिंह अथवा मेष नवांश में स्थित हो, तो निश्चित रूप से बृहस्पति के शुभत्व में वृद्धि होगी तथा जातक अत्यधिक भाग्यवान व्यक्ति वो रूप में प्रतिष्ठित और प्रशंसित होगा । इसी प्रकार से नवम भावस्थ बृहस्पति यदि उत्तराषाढ़ नक्षत्र कं प्रथम पद में स्थित हो, तो उसके शुभत्व का विस्तार होगा । यदि बृहस्पति दसवर्ग बल मेँ अधिक से अधिक स्ववर्ग अथवा उच्व राशि कै वर्गो को प्राप्त करेगा, तो उत्तमोत्तम फल प्रदान करने मेँ सफल होगा । यदि दसवर्ग बल की गणना न की गई हो, तो षडवर्ग बल के आधार पर बृहस्पति, मंगल, सूर्य, शनि और केतु के बलाबल पर विचार करने के उपरान्त ही जातक कै धन सम्बन्धी विषयों के भविष्य कथन की अभिव्यक्ति करनी चाहिऐ |
No comments:
Post a Comment