Saturday 29 October 2016

मिथुन लग्न में मंगल का प्रभाव

मिथुन लग्न में जन्म लेने वाले जातकों की जन्मकुंडली के विभिन्न भावों में मंगल का प्रभाव (फल) निम्नानुसार जान लेना चाहिए- लग्न (प्रथम भाव) में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को शारीरिक श्रम ट्टारा धन का यथेष्ट लाभ होता है तथा शत्रु पर विजय प्राप्त होती है । माता एवं सुख के पक्ष में कुछ असंतोषयुक्त लाभ होता है । स्त्री की तरफ से रोग तथा परेशानी होती
है। परिश्रम द्वारा व्यवसाय से लाभ होता है । यदि जातक नौकरी में है तो उसकी उन्नति संभव होगी । आयु में वृद्धि तथा पुरातत्व का लाभ होगा । ऐसा जातक क्रोधी, परिश्रमी, झगड़ालू और लाभ कमाने वाला होता है ।
द्वितीय स्थान में अपने मित्र चंद्रमा की कर्क राशि पर नीच का मंगल स्थित होने से जातक को धन एबं कुंदुम्ब के संबंध में हानि उठानी पड़ती है । शत्रुओँ द्वारा उत्पन्न किए गए झगडों से भी हानि होती है । गलत कार्यों (सट्टे-लॉटरी) द्वारा धन- हानि होती है । संतानपक्ष से कुछ कष्ट होता है तथा विद्या के क्षेत्र में गुप्त युक्तियों द्वारा लाभ होता है । जातक धन-प्राप्ति के लिए कठिन परिश्रम करता है । धर्म में उसकी सच्ची अद्धा नहीं होती । यदि तृतीय भाव में मंगल की उपस्थिति को तो जातक के पराक्रम की बृद्धि होती है । शत्रु पर विजय मिलती है । जातक उससे लाभ भी उठाता है । भाग्य का सामान्य लाभ होता है । पिता तथा राज्य की ओर से धन, सम्मग्न, यश एवं प्रभाव की वृद्धि होती है । जातक अपने परिश्रम द्वारा धनोपार्जन के क्षेत्र में भारी सफलत्ता प्राप्त करता है । चतुर्थ भाव में मंगल के स्थित होने पर जातक को जमीन-जायदाद का कुछ परेशानियों के साथ लाभ मिलता है । यश की प्राप्ति होती है, आमदनी अच्छी होती है और उन्नति के मार्ग प्रशस्त होते हैं । यदि पंचम भाव में मंगल की स्थिति को तो जातक क्रो संतानपक्ष से सामान्य वैमनस्य के साथ लाभ होता है । विद्या-बुद्धि की प्राप्ति होती है, आयु की वृद्धि और पुरातत्व का लाभ होता है । दैनिक जीवन प्रभावपूर्ण रहता है । जातक को पेट-संबंधी रोग बने रहते हैं । वह परिश्रम के बल पर धनी तथा सुखी होता है । षष्ठ भाव में मंगल का प्रभाव होने से जातक शत्रुपक्ष पर अत्यंत प्रभाव रखता है । कठिन परिश्रम द्वारा अपनी आय में वृद्धि करता है । भाग्य एवं धर्म के प्रति कुछ कमी और असंतोष रहता है ।
यदि सप्तम भाव में मंगल उपस्थित हो तो जातक व्यावसायिक क्षेत्र में सफलता पाता है । उसकी स्त्री कुछ रोगिणी रहती है । उसे पिता द्वारा धन की प्राप्ति और समाज की ओर से मान-सम्मान मिलता है । शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है, किन्तु धन-संग्रह में कमी रहती है । कुंदुम्ब के कारण क्लेश मिलता है । अष्टम ( आयु एवं पुरातत्व ) भाव में शनि की मकर राशि में स्थित उच्च के मंगल से जातक की आयु में वृद्धि होती है, परिश्रम द्वारा धन-लाभ होता है तथा विदेश प्रवास से धन का बहुत ही अधिक लाभ होता है । जीवन निर्वाह के लिए एकमुश्त आमदनी का योग है । भाई-बहनों की तरफ से कुछ क्लेश रहता है ।
नवम त्रिकोण ( भाग्य एवं धर्म) है कुंभ राशि पर स्थित मंगल से जातक की भाग्योन्नती परिश्रम और कुछ कठिनाइयों के बाद होती है । उसे धर्म का पालन बड़े अच्छे के साथ करना पड़ता है । व्यय अधिक रहता है, मगर बाहरी स्थानों से लाभ प्राप्त होता है । भाई-बहनों का पूर्ण सुख मिलता है । जातक जमीन-जायदाद वाला होता है । नवम भाव में गुरु की मीन राशि पर स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को स्वयं के परिश्रम से धन और यश की प्राप्ति होती है । वैरियों पर विशेष प्रभाव बना रहता है । शरीर स्वस्थ एबं शक्तिशाली रहता है । कभी-कभी छोटे-मोटे रोगों का सामना भी करना पड़ जाता है । भूमि आदि के सुख में कुछ परेशानियों के साथ सफलता मिलती है । जीवन भर आमदनी अच्छी रहती है ।
एकादश भाव में मंगल के प्रभाव से जातक को धन का लाभ पर्याप्त तथा स्थायी रूप से प्राप्त होता है, किन्तु मंगल के शत्रु स्थानाधिपति होने के कारण कभी-कभी कुछ कठिनाइयां उठानी पड़ती हैं । परिवार की ओर से भी कष्ट मिलता है । पुत्र लाभ होता है । यदि समझदारी से काम न लिया जाए तो आगे चलकर पुत्र- क्लेश का योग बन जाता है । जातक विद्या का धनी होता है । द्वादश भाव में वृष राशि पर मंगल के प्रभाव से जातक का व्यय अधिक रहता है तथा पराक्रम की वृद्धि होती है । शत्रुपक्ष से हानि और लाभ दोनों ही मिलते हैं । स्त्री की तरफ से कुछ परेशानी बनी रहती है ।

No comments: