पेट के रोग को ज्योतिष में देखा जाये तो चतुर्थ, पंचम एवं दशम भाव से देखा
जाता है। इन स्थानों के स्वामीग्रह यदि छठे, आठवे या बारहवें अथवा अपने घर
से छठे, आठवे, बारहवे स्थान में हो जाये, अथवा क्रूर ग्रहों से आक्रांत हो
तो पेट के रोग देते हैं। साथ ही अगर लग्र, तीसरे, पंचम, सप्तम, दशम स्थानों
में शनि अथवा राहु हों, तब भी पेट के रोगी हो सकते हैं। अत: यदि चिकत्सकीय
ईलाज से लाभ न प्राप्त हो रहा हो तो उक्त ग्रहों की शांति करानी एवं मंत्र
जाप करना एवं उक्त ग्रहों की सामग्री दान करना चाहिए।
पेट के रोग कई सारे और रोगों का कारण बन सकते हैं। क्या होते हैं पेट के रोगों के कारण और क्या है इनका इलाज? कुछ सरल उपाय जिन्हें अपना कर हम स्वस्थ हो सकते हैं। पेट के कुछ आम रोग हैं एसिडिटी, जी मिचलाना और अल्सर। जानते हैं इनके कारणों, लक्षण, ईलाज और बचने के उपायों के बारे में। साथ ही यह भी जानते हैं कि कैसे योग अपना कर और अपनी भावनाओं में बदलाव लाकर हम इन रोगों से बच सकते हैं।
एसिडिटी:
हमारे पेट में बनने वाला एसिड या अम्ल उस भोजन को पचाने का काम करता है, जो हम खाते हैं, लेकिन कई बार पचाने के लिए पेट में पर्याप्त भोजन ही नहीं होता या फिर एसिड ही आवश्यक मात्रा से ज्यादा बन जाता है। ऐसे में एसिडिटी या अम्लता की समस्या हो जाती है। इसे आमतौर पर दिल की चुभन या हार्टबर्न भी कहा जाता है। वसायुक्त और मसालेदार भोजन का सेवन आमतौर पर एसिडिटी की प्रमुख वजह है। इस तरह का भोजन पचाने में मुश्किल होता है और एसिड पैदा करने वाली कोशिकाओं को आवश्यकता से अधिक एसिड बनाने के लिए उत्तेजित करता है।
एसिडिटी के आम कारण:
* लगातार बाहर का भोजन करना।
* भोजन करना भूल जाना।
* अनियमित तरीके से भोजन करना।
* मसालेदार खाने का ज्यादा सेवन करना।
* विशेषज्ञों का मानना है कि तनाव भी एसिडिटी का एक कारण है।
* काम का अत्यधिक दबाव या पारिवारिक तनाव लंबे समय तक बना रहे तो शारीरिक तंत्र प्रतिकूल तरीके से काम करने लगता है और पेट में एसिड की मात्रा आवश्यकता से अधिक बनने लगती है।
एसिडिटी से बचने के लिए क्या करें:
पानी: सुबह उठने के फौरन बाद पानी पिएं। रात भर में पेट में बने आवश्यकता से अधिक एसिड और दूसरी गैर जरूरी और हानिकारक चीजों को इस पानी के जरिए शरीर से बाहर निकाला जा सकता है।
फल: केला, तरबूज, पपीता और खीरा को रोजाना के भोजन में शामिल करें। तरबूज का रस भी एसिडिटी के इलाज में बड़ा कारगर है।
नारियल पानी: अगर किसी को एसिडिटी की शिकायत है, तो नारियल पानी पीने से काफी आराम मिलता है। अदरक: खाने में अदरक का प्रयोग करने से पाचन क्रिया बेहतर होती है और इससे जलन को रोका जा सकता है।
दूध: भोजन के अम्लीय प्रभाव को दूध पूरी तरह निष्प्रभावी कर देता है और शरीर को आराम देता है। एसिडिटी के इलाज के तौर पर दूध लेने से पहले डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए, क्योंकि कुछ लोगों में दूध एसिडिटी को बढ़ा भी सकता है।
सब्जियां: बींस, सेम, कद्दू, बंदगोभी और गाजर का सेवन करने से एसिडिटी रोकने में मदद मिलती है। लौंग: एक लौंग अगर कुछ देर के लिए मुंह में रख ली जाए तो इससे एसिडिटी में राहत मिलती है। लौंग का रस मुंह की लार के साथ मिलकर जब पेट में पहुंचता है, तो इससे काफी आराम मिलता है।
कार्बोहाइडे्रट: कार्बोहाइडे्रट से भरपूर भोजन जैसे चावल एसिडिटी रोकने में मददगार है, क्योंकि ऐसे भोजन की वजह से पेट में एसिड की कम मात्रा बनती है।
समय से भोजन: रात का भोजन सोने से दो से तीन घंटे पहले अवश्य कर लेना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि भोजन पूरी तरह से पच गया है। इससे आपका स्वास्थ्य बेहतर होगा।
व्यायाम: नियमित व्यायाम और ध्यान की क्रियाएं पेट, पाचन तंत्र और तंत्रिका तंत्र का संतुलन बनाए रखती हैं।
एसिडिटी दूर रखने के लिए किन चीजों से बचें:
* तला भुना, वसायुक्त भोजन, अत्यधिक चॉकलेट और जंक पदार्थों से परहेज करें।
* शरीर का वजन नियंत्रण में रखने से एसिडिटी की समस्या कम होती है।
* ज्यादा धूम्रपान और किसी भी तरह की मदिरा का सेवन एसिडिटी बढ़ाता है, इसलिए इनसे परहेज करें।
* सोडा आधारित शीतल पेय व कैफीन आदि का सेवन न करें। इसकी बजाय हर्बल टी का प्रयोग करना बेहतर है। घर का बना खाना ही खाएं। जितना हो सके, बाहर के खाने से बचें।
* दो बार के खाने में ज्यादा अंतराल रखने से भी एसिडिटी हो सकती है।
* कम मात्रा में थोड़े-थोड़े समय अंतराल पर खाना खाते रहें।
* अचार, मसालेदार चटनी और सिरके का प्रयोग भी न करें।
ईलाज:
शरीर के अंदर उत्सर्जित हुई एसिड की ज्यादा मात्रा को निष्प्रभावी करके एंटासिड एसिडिटी के लक्षणों में तुरंत राहत प्रदान करते हैं। कुछ अन्य दवाएं हिस्टैमिन अभिग्राहकों को रोक देती हैं, जिससे पेट कम एसिड बनाता है।
जी मिचलाना और उल्टी:
जी मिचलाना और उल्टी आना अपने आप में कोई रोग नहीं हैं, बल्कि ये शरीर में मौजूद किसी रोग के लक्षण हैं। जी मिचलाने में ऐसा अहसास होता है कि पेट अपने आपको खाली कर देना चाहता है, जबकि उल्टी करना पेट को खाली होने के लिए बाध्य करने का काम है। शरीर में मौजूद उस बीमारी का पता लगाना और इलाज करना आवश्यक है, जिसकी वजह से उल्टी आना या जी मिचलाना जैसे लक्षण उभर रहे हैं। मरीज को आराम पहुंचाने के साथ-साथ पानी की कमी (खासकर बुजुर्गों और बच्चों में) को रोकने के लिए भी उल्टी और जी मिचलाने के लक्षणों को नियंत्रित करना बेहद महत्वपूर्ण है।
जी मिचलाना और उल्टी के कारण:
* लंबी यात्रा में पैदल चलना।
* गर्भावस्था की प्रारंभिक अवस्था।
* गर्भावस्था के 50 से 90 प्रतिशत मामलों में जी मिचलाना आम बात है।
* 25 से 55 प्रतिशत मामलों में उल्टी आने के लक्षण भी हो सकते हैं।
* दवाओं की वजह से होने वाली उल्टी।
* तेज दर्द।
* भावनात्मक तनाव या डर।
* पेट खराब होना।
* संक्रामक रोग जैसे पेट का फ्लू।
* आवश्यकता से ज्यादा खा लेना।
* खास तरह की गंध को बर्दाश्त न कर पाना।
* दिल का दौरा पडऩा।
* दिमाग में लगी चोट।
* ब्रेन ट्यूमर।
* अल्सर।
* कुछ तरह का कैंसर।
* पेट में संक्रमण की वजह से होने वाला तीव्र जठर शोथ।
* अल्कोहल और धूम्रपान जैसी पेट को तकलीफ देने वाली चीजें।
* कुछ ऐसे मामले जिनमें मस्तिष्क से आने वाले संकेतों की वजह से उल्टी आती है।
* कुछ दवाएं और इलाज।
* मल त्याग में अवरोध।
आमतौर पर उल्टी आने का कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन यह किसी गंभीर बीमारी का लक्षण अवश्य हो सकती है। इसके अलावा, इसकी वजह से होने वाली पानी की कमी चिंता का विषय है। पानी की कमी होने का खतरा बच्चों में सबसे ज्यादा होता है।
उल्टी में डॉक्टर की सलाह:
उल्टी के साथ अगर नीचे दिए लक्षणों में से कोई भी होता है तो आपको तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
* उल्टी के साथ खून आ रहा है। यह खून देखने में तेज लाल या कॉफी के रंग का हो सकता है।
* तेज सिरदर्द या गर्दन की जकडऩ।
* आलस, व्याकुलता या सतर्कता में कमी।
* पेट में तेज दर्द।
* 101 डिग्री फॉरेनहाइट से ज्यादा बुखार।
* डायरिया या दस्त।
* सांस या नब्ज का तेज चलना।
पेप्टिक अल्सर:
पेट या छोटी आंत की परत में होने वाले घाव को पेप्टिक अल्सर कहते हैं जिसके कारण हैं:
* पेट में हेलिकोबेक्टर पायलोरी नामक बैक्टिरिया की वजह से होने वाला संक्रमण।
* डिस्प्रिन, ऐस्प्रिन, ब्रूफेन जैसी दर्दनाशक दवाएं।
* तमाम तरह के अन्य और अज्ञात कारण।
* तनाव और मसालेदार खाने से अल्सर नहीं होता, लेकिन अगर अल्सर पहले से है तो इनसे वह और ज्यादा बिगड़ सकता है।
* धुम्रपान।
* मल के साथ खून आना या मल देर से होना।
* सीने में दर्द।
* थकान।
* उल्टी, हो सकता है कि उल्टी के साथ खून भी आए।
* वजन में कमी।
अल्सर के लक्षण:
पेप्टिक अल्सर का सबसे प्रमुख लक्षण पेट में होने वाला दर्द है जो हल्का, तेज या अत्यधिक तेज हो सकता है। अपच और खाने के बाद पेट में होने वाला दर्द।
* भरा पेट होने जैसा अहसास।
* भरपूर मात्रा में तरल पदार्थ न ले पाना।
* जल्दी जल्दी भूख लगना और पेट खाली होने जैसा अहसास।
* खाना खाने के एक से तीन घंटे बाद ही ऐसा लगने लगता है।
* हल्का जी मिचलाना।
अल्सर के ईलाज:
अल्सर के इलाज में एंटिबायोटिक दवाओं के साथ में पेट के एसिड को दबाने वाली दवाएं दी जाती हैं, जिनसे एच पायलोरी को नष्ट किया जा सके। जटिलताएं अल्सर की जटिलताओं में शामिल हैं खून आना, छिद्रण और पेट में अवरोध। अगर नीचे दिए गए लक्षण हैं तो फौरन डॉक्टरी मदद लें।
* पेट में अचानक तेज दर्द।
* पेट का कठोर हो जाना, जो छूने पर मुलायम लगता है।
* बेहोशी आना, ज्यादा पसीना आना या व्याकुलता।
* खून की उल्टी होना या मल के साथ खून आना।
* अगर खून काला या कत्थई है तो चिंता की बात ज्यादा है।
* राहत खानपान और जीवनशैली में बदलाव करके इसमें राहत मिलती है।
अल्सर से बचाव के कुछ तरीके:
रेशेदार भोजन करें, खासकर फल और सब्जियां। इससे अल्सर होने का खतरा कम होता है। अगर पहले से अल्सर है तो उसके अच्छा होने में इन चीजों से मदद मिलेगी।
* फ्लेवॉनॉइड युक्त चीजें जैसे सेब, अजवायन, करौंदा और उसका रस, प्याज, लहसुन और चाय एच पायलोरी की बढ़ोतरी को रोकते हैं।
* कुछ लोगों में मसालेदार खाना खाने से अल्सर के लक्षण और बिगड़ सकते हैं।
* धूम्रपान और अल्कोहल का सेवन बंद कर दें।
* कैफीन रहित समेत सभी तरह की कॉफी कम पिएं। सोडायुक्त पेय भी कम लें। ये सभी चीजें पेट में एसिड की मात्रा को बढ़ा सकती हैं।
* योग या ध्यान क्रियाओं के जरिए खुद को विश्राम देने की कोशिश करें और तनाव कम करें। ये क्रियाएं दर्द कम करने और दर्दनाशक दवाओं की आवश्यकता को कम करने में मददगार हैं। ध्यान रखें दिल का दौरा भी अल्सर के दर्द या अपच जैसे लक्षण दे सकता है। जबड़ों के बीच के क्षेत्र में और नाभि के क्षेत्र में किसी भी तरह की दिक्कत या दर्द हो या सांस लेने में परेशानी हो तो अपने डॉक्टर से सलाह करें। बिना डॉक्टर की सलाह के अपने आप ही मेडिकल स्टोर से एंटासिड न खरीदें।
योग मदद कर सकता है:
एक कहावत है, इंसान साइकोसोम या मनोकाय होता है। कई रोग मनोदैहिक होते हैं। अगर दिमाग में कोई तनाव है, तो पेट में एसिडिटी होगी। दिमाग में तनाव है तो दमा हो सकता है। उसी तनाव की वजह से अलग अलग लोगों को अलग अलग तरह के रोग होते हैं। तनाव की वजह से कौन सा रोग होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस इंसान के अंदर कौन सी चीज जन्म से ही कमजोर है। शरीर और मस्तिष्क दो अलग अलग चीजें नहीं हैं। मस्तिष्क शरीर का सूक्ष्म पहलू है। आमतौर पर जब योग की बात आती है, तो हमारा ज्यादातर काम प्राणमय कोश के स्तर पर ही होता है, क्योंकि अगर हम प्राणमय कोश या ऊर्जा शरीर को पूरी तरह से सक्रिय और संतुलित कर देंगे तो अन्नमय कोश और मनोमय कोश अपने आप ही सही तरीके से संतुलित और स्वस्थ हो जाएंगे।
पेट के रोग कई सारे और रोगों का कारण बन सकते हैं। क्या होते हैं पेट के रोगों के कारण और क्या है इनका इलाज? कुछ सरल उपाय जिन्हें अपना कर हम स्वस्थ हो सकते हैं। पेट के कुछ आम रोग हैं एसिडिटी, जी मिचलाना और अल्सर। जानते हैं इनके कारणों, लक्षण, ईलाज और बचने के उपायों के बारे में। साथ ही यह भी जानते हैं कि कैसे योग अपना कर और अपनी भावनाओं में बदलाव लाकर हम इन रोगों से बच सकते हैं।
एसिडिटी:
हमारे पेट में बनने वाला एसिड या अम्ल उस भोजन को पचाने का काम करता है, जो हम खाते हैं, लेकिन कई बार पचाने के लिए पेट में पर्याप्त भोजन ही नहीं होता या फिर एसिड ही आवश्यक मात्रा से ज्यादा बन जाता है। ऐसे में एसिडिटी या अम्लता की समस्या हो जाती है। इसे आमतौर पर दिल की चुभन या हार्टबर्न भी कहा जाता है। वसायुक्त और मसालेदार भोजन का सेवन आमतौर पर एसिडिटी की प्रमुख वजह है। इस तरह का भोजन पचाने में मुश्किल होता है और एसिड पैदा करने वाली कोशिकाओं को आवश्यकता से अधिक एसिड बनाने के लिए उत्तेजित करता है।
एसिडिटी के आम कारण:
* लगातार बाहर का भोजन करना।
* भोजन करना भूल जाना।
* अनियमित तरीके से भोजन करना।
* मसालेदार खाने का ज्यादा सेवन करना।
* विशेषज्ञों का मानना है कि तनाव भी एसिडिटी का एक कारण है।
* काम का अत्यधिक दबाव या पारिवारिक तनाव लंबे समय तक बना रहे तो शारीरिक तंत्र प्रतिकूल तरीके से काम करने लगता है और पेट में एसिड की मात्रा आवश्यकता से अधिक बनने लगती है।
एसिडिटी से बचने के लिए क्या करें:
पानी: सुबह उठने के फौरन बाद पानी पिएं। रात भर में पेट में बने आवश्यकता से अधिक एसिड और दूसरी गैर जरूरी और हानिकारक चीजों को इस पानी के जरिए शरीर से बाहर निकाला जा सकता है।
फल: केला, तरबूज, पपीता और खीरा को रोजाना के भोजन में शामिल करें। तरबूज का रस भी एसिडिटी के इलाज में बड़ा कारगर है।
नारियल पानी: अगर किसी को एसिडिटी की शिकायत है, तो नारियल पानी पीने से काफी आराम मिलता है। अदरक: खाने में अदरक का प्रयोग करने से पाचन क्रिया बेहतर होती है और इससे जलन को रोका जा सकता है।
दूध: भोजन के अम्लीय प्रभाव को दूध पूरी तरह निष्प्रभावी कर देता है और शरीर को आराम देता है। एसिडिटी के इलाज के तौर पर दूध लेने से पहले डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए, क्योंकि कुछ लोगों में दूध एसिडिटी को बढ़ा भी सकता है।
सब्जियां: बींस, सेम, कद्दू, बंदगोभी और गाजर का सेवन करने से एसिडिटी रोकने में मदद मिलती है। लौंग: एक लौंग अगर कुछ देर के लिए मुंह में रख ली जाए तो इससे एसिडिटी में राहत मिलती है। लौंग का रस मुंह की लार के साथ मिलकर जब पेट में पहुंचता है, तो इससे काफी आराम मिलता है।
कार्बोहाइडे्रट: कार्बोहाइडे्रट से भरपूर भोजन जैसे चावल एसिडिटी रोकने में मददगार है, क्योंकि ऐसे भोजन की वजह से पेट में एसिड की कम मात्रा बनती है।
समय से भोजन: रात का भोजन सोने से दो से तीन घंटे पहले अवश्य कर लेना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि भोजन पूरी तरह से पच गया है। इससे आपका स्वास्थ्य बेहतर होगा।
व्यायाम: नियमित व्यायाम और ध्यान की क्रियाएं पेट, पाचन तंत्र और तंत्रिका तंत्र का संतुलन बनाए रखती हैं।
एसिडिटी दूर रखने के लिए किन चीजों से बचें:
* तला भुना, वसायुक्त भोजन, अत्यधिक चॉकलेट और जंक पदार्थों से परहेज करें।
* शरीर का वजन नियंत्रण में रखने से एसिडिटी की समस्या कम होती है।
* ज्यादा धूम्रपान और किसी भी तरह की मदिरा का सेवन एसिडिटी बढ़ाता है, इसलिए इनसे परहेज करें।
* सोडा आधारित शीतल पेय व कैफीन आदि का सेवन न करें। इसकी बजाय हर्बल टी का प्रयोग करना बेहतर है। घर का बना खाना ही खाएं। जितना हो सके, बाहर के खाने से बचें।
* दो बार के खाने में ज्यादा अंतराल रखने से भी एसिडिटी हो सकती है।
* कम मात्रा में थोड़े-थोड़े समय अंतराल पर खाना खाते रहें।
* अचार, मसालेदार चटनी और सिरके का प्रयोग भी न करें।
ईलाज:
शरीर के अंदर उत्सर्जित हुई एसिड की ज्यादा मात्रा को निष्प्रभावी करके एंटासिड एसिडिटी के लक्षणों में तुरंत राहत प्रदान करते हैं। कुछ अन्य दवाएं हिस्टैमिन अभिग्राहकों को रोक देती हैं, जिससे पेट कम एसिड बनाता है।
जी मिचलाना और उल्टी:
जी मिचलाना और उल्टी आना अपने आप में कोई रोग नहीं हैं, बल्कि ये शरीर में मौजूद किसी रोग के लक्षण हैं। जी मिचलाने में ऐसा अहसास होता है कि पेट अपने आपको खाली कर देना चाहता है, जबकि उल्टी करना पेट को खाली होने के लिए बाध्य करने का काम है। शरीर में मौजूद उस बीमारी का पता लगाना और इलाज करना आवश्यक है, जिसकी वजह से उल्टी आना या जी मिचलाना जैसे लक्षण उभर रहे हैं। मरीज को आराम पहुंचाने के साथ-साथ पानी की कमी (खासकर बुजुर्गों और बच्चों में) को रोकने के लिए भी उल्टी और जी मिचलाने के लक्षणों को नियंत्रित करना बेहद महत्वपूर्ण है।
जी मिचलाना और उल्टी के कारण:
* लंबी यात्रा में पैदल चलना।
* गर्भावस्था की प्रारंभिक अवस्था।
* गर्भावस्था के 50 से 90 प्रतिशत मामलों में जी मिचलाना आम बात है।
* 25 से 55 प्रतिशत मामलों में उल्टी आने के लक्षण भी हो सकते हैं।
* दवाओं की वजह से होने वाली उल्टी।
* तेज दर्द।
* भावनात्मक तनाव या डर।
* पेट खराब होना।
* संक्रामक रोग जैसे पेट का फ्लू।
* आवश्यकता से ज्यादा खा लेना।
* खास तरह की गंध को बर्दाश्त न कर पाना।
* दिल का दौरा पडऩा।
* दिमाग में लगी चोट।
* ब्रेन ट्यूमर।
* अल्सर।
* कुछ तरह का कैंसर।
* पेट में संक्रमण की वजह से होने वाला तीव्र जठर शोथ।
* अल्कोहल और धूम्रपान जैसी पेट को तकलीफ देने वाली चीजें।
* कुछ ऐसे मामले जिनमें मस्तिष्क से आने वाले संकेतों की वजह से उल्टी आती है।
* कुछ दवाएं और इलाज।
* मल त्याग में अवरोध।
आमतौर पर उल्टी आने का कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन यह किसी गंभीर बीमारी का लक्षण अवश्य हो सकती है। इसके अलावा, इसकी वजह से होने वाली पानी की कमी चिंता का विषय है। पानी की कमी होने का खतरा बच्चों में सबसे ज्यादा होता है।
उल्टी में डॉक्टर की सलाह:
उल्टी के साथ अगर नीचे दिए लक्षणों में से कोई भी होता है तो आपको तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
* उल्टी के साथ खून आ रहा है। यह खून देखने में तेज लाल या कॉफी के रंग का हो सकता है।
* तेज सिरदर्द या गर्दन की जकडऩ।
* आलस, व्याकुलता या सतर्कता में कमी।
* पेट में तेज दर्द।
* 101 डिग्री फॉरेनहाइट से ज्यादा बुखार।
* डायरिया या दस्त।
* सांस या नब्ज का तेज चलना।
पेप्टिक अल्सर:
पेट या छोटी आंत की परत में होने वाले घाव को पेप्टिक अल्सर कहते हैं जिसके कारण हैं:
* पेट में हेलिकोबेक्टर पायलोरी नामक बैक्टिरिया की वजह से होने वाला संक्रमण।
* डिस्प्रिन, ऐस्प्रिन, ब्रूफेन जैसी दर्दनाशक दवाएं।
* तमाम तरह के अन्य और अज्ञात कारण।
* तनाव और मसालेदार खाने से अल्सर नहीं होता, लेकिन अगर अल्सर पहले से है तो इनसे वह और ज्यादा बिगड़ सकता है।
* धुम्रपान।
* मल के साथ खून आना या मल देर से होना।
* सीने में दर्द।
* थकान।
* उल्टी, हो सकता है कि उल्टी के साथ खून भी आए।
* वजन में कमी।
अल्सर के लक्षण:
पेप्टिक अल्सर का सबसे प्रमुख लक्षण पेट में होने वाला दर्द है जो हल्का, तेज या अत्यधिक तेज हो सकता है। अपच और खाने के बाद पेट में होने वाला दर्द।
* भरा पेट होने जैसा अहसास।
* भरपूर मात्रा में तरल पदार्थ न ले पाना।
* जल्दी जल्दी भूख लगना और पेट खाली होने जैसा अहसास।
* खाना खाने के एक से तीन घंटे बाद ही ऐसा लगने लगता है।
* हल्का जी मिचलाना।
अल्सर के ईलाज:
अल्सर के इलाज में एंटिबायोटिक दवाओं के साथ में पेट के एसिड को दबाने वाली दवाएं दी जाती हैं, जिनसे एच पायलोरी को नष्ट किया जा सके। जटिलताएं अल्सर की जटिलताओं में शामिल हैं खून आना, छिद्रण और पेट में अवरोध। अगर नीचे दिए गए लक्षण हैं तो फौरन डॉक्टरी मदद लें।
* पेट में अचानक तेज दर्द।
* पेट का कठोर हो जाना, जो छूने पर मुलायम लगता है।
* बेहोशी आना, ज्यादा पसीना आना या व्याकुलता।
* खून की उल्टी होना या मल के साथ खून आना।
* अगर खून काला या कत्थई है तो चिंता की बात ज्यादा है।
* राहत खानपान और जीवनशैली में बदलाव करके इसमें राहत मिलती है।
अल्सर से बचाव के कुछ तरीके:
रेशेदार भोजन करें, खासकर फल और सब्जियां। इससे अल्सर होने का खतरा कम होता है। अगर पहले से अल्सर है तो उसके अच्छा होने में इन चीजों से मदद मिलेगी।
* फ्लेवॉनॉइड युक्त चीजें जैसे सेब, अजवायन, करौंदा और उसका रस, प्याज, लहसुन और चाय एच पायलोरी की बढ़ोतरी को रोकते हैं।
* कुछ लोगों में मसालेदार खाना खाने से अल्सर के लक्षण और बिगड़ सकते हैं।
* धूम्रपान और अल्कोहल का सेवन बंद कर दें।
* कैफीन रहित समेत सभी तरह की कॉफी कम पिएं। सोडायुक्त पेय भी कम लें। ये सभी चीजें पेट में एसिड की मात्रा को बढ़ा सकती हैं।
* योग या ध्यान क्रियाओं के जरिए खुद को विश्राम देने की कोशिश करें और तनाव कम करें। ये क्रियाएं दर्द कम करने और दर्दनाशक दवाओं की आवश्यकता को कम करने में मददगार हैं। ध्यान रखें दिल का दौरा भी अल्सर के दर्द या अपच जैसे लक्षण दे सकता है। जबड़ों के बीच के क्षेत्र में और नाभि के क्षेत्र में किसी भी तरह की दिक्कत या दर्द हो या सांस लेने में परेशानी हो तो अपने डॉक्टर से सलाह करें। बिना डॉक्टर की सलाह के अपने आप ही मेडिकल स्टोर से एंटासिड न खरीदें।
योग मदद कर सकता है:
एक कहावत है, इंसान साइकोसोम या मनोकाय होता है। कई रोग मनोदैहिक होते हैं। अगर दिमाग में कोई तनाव है, तो पेट में एसिडिटी होगी। दिमाग में तनाव है तो दमा हो सकता है। उसी तनाव की वजह से अलग अलग लोगों को अलग अलग तरह के रोग होते हैं। तनाव की वजह से कौन सा रोग होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस इंसान के अंदर कौन सी चीज जन्म से ही कमजोर है। शरीर और मस्तिष्क दो अलग अलग चीजें नहीं हैं। मस्तिष्क शरीर का सूक्ष्म पहलू है। आमतौर पर जब योग की बात आती है, तो हमारा ज्यादातर काम प्राणमय कोश के स्तर पर ही होता है, क्योंकि अगर हम प्राणमय कोश या ऊर्जा शरीर को पूरी तरह से सक्रिय और संतुलित कर देंगे तो अन्नमय कोश और मनोमय कोश अपने आप ही सही तरीके से संतुलित और स्वस्थ हो जाएंगे।
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