महाभारत काल में एक खलनायक के रूप में प्रस्तुत हुए हैं दुर्योधन। कौरवों
में ज्येष्ठ एवं सबसे श्रेष्ठ कहलाने वाले दुर्योधन, यदि अपने मामा शकुनि
की बातों में ना आते तो शायद आज वे महाभारत काल के सबसे बेहतरीन पात्र के
रूप में याद किए जाते। क्योंकि उनमें अर्जुन या भीम से कम प्रतिभा नहीं थी,
साथ ही वे एक अच्छे मित्र भी साबित हुए थे। लेकिन महाभारत की कहानी ने
उन्हें पल-पल ईष्र्या से भरा हुआ बताया। एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दर्शाया
गया जिसे केवल और केवल स्वार्थ ने घेर रखा था। लेकिन कुछ इतिहासकारों के
मुताबिक दुर्योधन वही कर रहे थे जो कौरवों के लिए उत्तम था। खैर हम यहां
दुर्योधन की अच्छाई या बुराई की गणना नहीं कर रहे, बल्कि आपको महाभारत का
एक ऐसा प्रसंग सुनाने जा रहे हैं जिसके बारे में आपने पहले कभी नहीं जाना
होगा।
महाभारत युद्ध पूर्ण रूप से पाण्डवों और कौरवों की लड़ाई थी, जिसमें एक ओर पांच पाण्डव थे तो दूसरी ओर थे 100 कौरव भाई। पाण्डवों के साथ यदि स्वयं नारायण थे तो दूसरी ओर कौरवों की रक्षा के लिए लाखों की तादाद में मौजूद थी नारायणी सेना।
लेकिन इतनी बड़ी सेना के बावजूद भी कौरव युद्ध ना जीत सके। पड़ोसी राज्यों से भी उन्हें काफी मदद मिली। कई शूरवीर योद्धा और राजा उनकी सेना में मौजूद थे, लेकिन पाण्डवों को परास्त करने की शक्ति किसी में ना थी। महाभारत युद्ध के परिणामों को सभी शोधकर्ताओं ने अपने-अपने अंदाज में समझा है। इस युद्ध को करीब से समझने के बाद सभी ने अपना एक अलग निष्कर्ष दिया है और बताया है कि कौरव आखिर क्यूं हारे। लेकिन स्वयं दुर्योधन ने भी अपनी वह खामियां बताई थीं, जिसकी वजह से कौरव युद्ध हारे। उसने बताया कि यदि ये खामियां ना होतीं, तो कौरव विजेता हो सकते थे। दरअसल यह घटना उस समय की है जब खून में लथपथ दुर्योधन रणभूमि में जमीन पर गिरा हुआ था। वह घड़ी दूर नहीं थी जब किसी भी पल वो अपना दम तोड़ सकता था। दुर्योधन जमीन पर पड़े हुए अपने हाथ की तीन अंगुलियों को बार-बार उठाकर कुछ बड़बड़ा रहा था, लेकिन पीड़ा के कारण उसकी ध्वनि साफ सुनाई नहीं दे रही थी। तभी श्रीकृष्ण उसके पास गए और उसकी दुविधा का कारण पूछा।
तब उसने बताया कि उसने महाभारत के युद्ध के दौरान तीन गलतियां की हैं, इन्हीं गलतियों के कारण वह युद्ध नहीं जीत सका। यदि वह पहले ही इन गलतियों को पहचान लेता, तो आज जीत का ताज उसके सिर होता।
श्रीकृष्ण ने सहजता से दुर्योधन से उसकी उन तीन गलतियों के बारे में पूछा तो उसने बताया, पहली गलती यह थी कि दुर्योधन ने स्वयं नारायण के स्थान पर उनकी नारायणी सेना को चुना। यदि नारायण युद्ध में कौरवों के पक्ष में होते, तो आज परिणाम कुछ और ही होता।
दूसरी गलती उसने यह की कि अपनी माता के लाख कहने पर भी वह उनके सामने पेड़ के पत्तों से बना लंगोट पहनकर गया। यदि वह नग्नावस्था में जाता, तो आज उसे कोई भी योद्धा परास्त नहीं कर सकता था।
दुर्योधन के अनुसार तीसरी भूल जो उसने की थी वो थी युद्ध में आखिर में जाने की भूल। यदि वह पहले जाता तो कई बातों को समझ सकता था और शायद उसके भाई और मित्रों की जान बच जाती।
श्रीकृष्ण ने नम्रता से दुर्योधन की यह सारी बात सुनी। फिर उन्होंने उसे समझाया कि ‘हार का मुख्य कारण तुम्हारा अधर्मी व्यवहार और अपनी ही कुलवधू का वस्त्राहरण करवाना था। तुमने स्वयं अपने कर्मों से अपना भाग्य लिखा। यह सुनकर दुर्योधन को अपनी असली गलती का आभास हुआ।
महाभारत युद्ध पूर्ण रूप से पाण्डवों और कौरवों की लड़ाई थी, जिसमें एक ओर पांच पाण्डव थे तो दूसरी ओर थे 100 कौरव भाई। पाण्डवों के साथ यदि स्वयं नारायण थे तो दूसरी ओर कौरवों की रक्षा के लिए लाखों की तादाद में मौजूद थी नारायणी सेना।
लेकिन इतनी बड़ी सेना के बावजूद भी कौरव युद्ध ना जीत सके। पड़ोसी राज्यों से भी उन्हें काफी मदद मिली। कई शूरवीर योद्धा और राजा उनकी सेना में मौजूद थे, लेकिन पाण्डवों को परास्त करने की शक्ति किसी में ना थी। महाभारत युद्ध के परिणामों को सभी शोधकर्ताओं ने अपने-अपने अंदाज में समझा है। इस युद्ध को करीब से समझने के बाद सभी ने अपना एक अलग निष्कर्ष दिया है और बताया है कि कौरव आखिर क्यूं हारे। लेकिन स्वयं दुर्योधन ने भी अपनी वह खामियां बताई थीं, जिसकी वजह से कौरव युद्ध हारे। उसने बताया कि यदि ये खामियां ना होतीं, तो कौरव विजेता हो सकते थे। दरअसल यह घटना उस समय की है जब खून में लथपथ दुर्योधन रणभूमि में जमीन पर गिरा हुआ था। वह घड़ी दूर नहीं थी जब किसी भी पल वो अपना दम तोड़ सकता था। दुर्योधन जमीन पर पड़े हुए अपने हाथ की तीन अंगुलियों को बार-बार उठाकर कुछ बड़बड़ा रहा था, लेकिन पीड़ा के कारण उसकी ध्वनि साफ सुनाई नहीं दे रही थी। तभी श्रीकृष्ण उसके पास गए और उसकी दुविधा का कारण पूछा।
तब उसने बताया कि उसने महाभारत के युद्ध के दौरान तीन गलतियां की हैं, इन्हीं गलतियों के कारण वह युद्ध नहीं जीत सका। यदि वह पहले ही इन गलतियों को पहचान लेता, तो आज जीत का ताज उसके सिर होता।
श्रीकृष्ण ने सहजता से दुर्योधन से उसकी उन तीन गलतियों के बारे में पूछा तो उसने बताया, पहली गलती यह थी कि दुर्योधन ने स्वयं नारायण के स्थान पर उनकी नारायणी सेना को चुना। यदि नारायण युद्ध में कौरवों के पक्ष में होते, तो आज परिणाम कुछ और ही होता।
दूसरी गलती उसने यह की कि अपनी माता के लाख कहने पर भी वह उनके सामने पेड़ के पत्तों से बना लंगोट पहनकर गया। यदि वह नग्नावस्था में जाता, तो आज उसे कोई भी योद्धा परास्त नहीं कर सकता था।
दुर्योधन के अनुसार तीसरी भूल जो उसने की थी वो थी युद्ध में आखिर में जाने की भूल। यदि वह पहले जाता तो कई बातों को समझ सकता था और शायद उसके भाई और मित्रों की जान बच जाती।
श्रीकृष्ण ने नम्रता से दुर्योधन की यह सारी बात सुनी। फिर उन्होंने उसे समझाया कि ‘हार का मुख्य कारण तुम्हारा अधर्मी व्यवहार और अपनी ही कुलवधू का वस्त्राहरण करवाना था। तुमने स्वयं अपने कर्मों से अपना भाग्य लिखा। यह सुनकर दुर्योधन को अपनी असली गलती का आभास हुआ।
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