पराशरी ज्योतिष के सामान्य नियम के अनुसार ग्रहों के फल भाव, राशि व ग्रह पर अन्य ग्रहों की दृष्टि, युति व स्थिति से प्रभावित होते है. शनि तीसरे, छठे, दसवें व ग्यारहवें भाव में शुभ फल देते है. शनि आयु भाव अर्थात अष्टम भाव के कारक ग्रह है. इस भाव में शनि सामान्यता: अनुकुल फल देते है. शेष भावों में शनि के फलों को शुभ नहीं कहा गया है.
कर्क लग्न के लिये शनि सप्तमेश व अष्टमेश भाव के स्वामी होते है. इस लग्न के लिये शनि कुण्डली के बारह भावों में स्थित होकर किस प्रकार के फल दे सकते है. आईये यह जानने का प्रयास करते है.
प्रथम भाव में शनि के फल -शनि कुण्डली के प्रथम भाव में होने पर व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. भाई -बहनों के सुख में कमी हो सकती है. व्यक्ति की हिम्मत और साहस में वृ्द्धि होती है. व्यक्ति को अपने जीवन साथी से सुख प्राप्त होता है. पर वैवाहिक जीवन में कुछ रुकावटें बनी रह सकती है. व्यक्ति को आजिविका के क्षेत्र में बाधाएं आने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के लाभों में बढोतरी होती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल - इस योग के व्यक्ति को माता का पूर्ण सुख प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. जमीन व भूमि के विषयों से भी सुख प्राप्त होता है. पर व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्यों से परेशानियां हो सकती है. ऎश्वर्य पूर्ण जीवन व्यतीत करने के अवसर प्राप्त हो सकते है. इसके कारण व्ययों की अधिकता व संचय में कमी हो सकती है. दांम्पत्य जीवन के सुख में कमी हो सकती है.
तृतीय भाव में शनि के फल -कर्क लग्न के व्यक्ति की कुण्डली में शनि तीसरे भाव में हों, उस व्यक्ति के स्वभाव में क्रोध का भाव हो सकता है. उसके पराक्रम में भी बढोतरी होने की सम्भावनाएं बनती है. भाई-बहनों से संबन्ध मधुर न रहने के योग बनते है. तथा समय पर उसे अपने मित्रों का सहयोग न मिलने की भी संभावनाएं बनती है.
शनि का तीसरे भाव में होना व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है. इसके फलस्वरुप उसके व्ययों में बढोतरी हो सकती है. बाहरी व्यक्तियों से संबन्ध मधुर न रहने के योग बनते है. उसके धन में कमी हो सकती है. व्यापारिक क्षेत्र में बाधाएं आ सकती है. तथा व्यक्ति का मन धार्मिक कार्यो में नहीं लगता है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल - कर्क लग्न के व्यक्ति के चतुर्थ भाव में शनि व्यक्ति के अपनी माता के सुख में कमी करते है. उसके अपनी माता से विवाद पूर्ण संबन्ध हो सकते है. भूमि- भवन के मामलों में चिन्ताएं बढती है. परन्तु प्रयास करने से बाद में स्थिति सामान्य हो जाती है. इस योग के व्यक्ति के व्यापार में बाधाएं आने की संभावनाएं बनती है.
इस स्थिति में व्यक्ति को अपने शत्रुओं से कष्ट प्राप्त हो सकते है. ऎसे में व्यक्ति अगर हिम्मत से काम लें तो शत्रुओं को परास्त करने में सफल होता है. उसका दांम्पत्य जीवन कलह पूर्ण हो सकता है. सरकारी नियमों का सख्ती से पालन करना उसके लिये हितकारी रहता है.
पंचम भाव में शनि के फल -कर्क लग्न के पंचम भाव में वृ्श्चिक राशि आती है. इस भाव में शनि व्यक्ति को प्रेम में असफलता दे सकते है. पंचम भाव क्योकि शिक्षा का भाव भी है. इसलिये शिक्षा में भी रुकावटें आने के योग बनते है. व्यक्ति अपने मनोबल को उच्च रखे तो वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है. इस योग के व्यक्ति का जीवन साथी शिक्षित व चिंतन शील होने की संभावनाएं बनती है.
व्यक्ति के धन संचय में कमी हो सकती है. आजिविका क्षेत्र थोडा सा प्रभावित होता है. पर आय सामान्य रहती है. यह योग व्यक्ति को सदैव चिन्तित रहने की संभावनाएं देता है.
छठे भाव में शनि के फल- कर्क लग्न, धनु राशि, छठे भाव में शनि व्यक्ति कि आजिविका को अनुकुल रखता है. इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के नौकरी करने की संभावनाएं बनती है. उसके अपने दांम्पत्य जीवन में मतभेद हो सकते है. विदेश स्थानों से लाभ प्राप्त हो सकते है. तथा व्ययों की अधिकता हो सकती है. इस योग का व्यक्ति अपने पुरुषार्थ तथा बुद्धि से लाभ प्राप्त करने में सफल होता है.
सप्तम भाव में शनि के फल -यह योग व्यक्ति के व्यापार को अच्छा बनाये रखने में सफल होता है. व्यक्ति को अपने ग्रहस्थ जीवन में सुख की कुछ कमी हो सकती है. धन में भी कमी हो सकती है. मेहनत व प्रयास में कमी न करना हितकारी रहता है.
अष्टम भाव में शनि के फल -इस भाव में शनि अपनी स्वराशि कुम्भ राशि में स्थित होने के कारण व्यक्ति की आयु में वृ्द्धि करता है. व्यक्ति के जीवन साथी के स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. उसे भूमि संबन्धी विषयों में परेशानियां हो सकती है. पिता और सरकारी पक्ष से कष्ट प्राप्त हो सकते है. विधा व संतान विषयों में भी कठिनाईयां हो सकती है. इन से संबन्धित सुखों में कमी हो सकती है.
नवम भाव में शनि के फल -आमदनी के स्त्रोत ठीक रहते है. शत्रु पर प्रभाव बना रहता है. जीवन साथी का सुख प्राप्त होता है. व्यक्ति को व्यापार से लाभ प्राप्त हो सकता है. व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. उसे अपने भाई- बहनों से कम सहयोग प्राप्त होता है. यह योग व्यक्ति के अपने छोटे भाई बहनों से संबन्ध मधुर न रहने की संभावनाएं देता है.
दशम भाव में शनि के फल पिता का पूर्ण सहयोग प्राप्त नहीं होता है. सरकार की ओर से भी परेशानियां आ सकती है. व्यक्ति के ग्रहस्थ जीवन सुख में कमी हो सकती है. तथा उसके स्वयं के स्वास्थ्य में कमी की संभावनाएं बनती है. व्यवसायिक क्षेत्र से आमदनी अनुकुल प्राप्त होती है.
एकादश भाव में शनि के फल -स्वास्थ्य मध्यम रहता है. उसके शिक्षा क्षेत्र में रुकावटें आ सकती है. यह योग व्यक्ति की बुद्धिमता में वृ्द्धि करता है. व्यक्ति अपने परिश्रम व चतुराई से अपने आय में वृ्द्धि करने में सफल होता है.
द्वादश भाव में शनि के फल- आमदनी से खर्च अधिक होता है. हमेशा किसी न किसी समस्या में फंसे रहते है. जीवन साथी के सुख में कमी हो सकती है. परिवार के सदस्यों से सहयोग व सुख कम प्राप्त होने की सम्भावनाएं बनती है.
कर्क लग्न के लिये शनि सप्तमेश व अष्टमेश भाव के स्वामी होते है. इस लग्न के लिये शनि कुण्डली के बारह भावों में स्थित होकर किस प्रकार के फल दे सकते है. आईये यह जानने का प्रयास करते है.
प्रथम भाव में शनि के फल -शनि कुण्डली के प्रथम भाव में होने पर व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. भाई -बहनों के सुख में कमी हो सकती है. व्यक्ति की हिम्मत और साहस में वृ्द्धि होती है. व्यक्ति को अपने जीवन साथी से सुख प्राप्त होता है. पर वैवाहिक जीवन में कुछ रुकावटें बनी रह सकती है. व्यक्ति को आजिविका के क्षेत्र में बाधाएं आने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के लाभों में बढोतरी होती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल - इस योग के व्यक्ति को माता का पूर्ण सुख प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. जमीन व भूमि के विषयों से भी सुख प्राप्त होता है. पर व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्यों से परेशानियां हो सकती है. ऎश्वर्य पूर्ण जीवन व्यतीत करने के अवसर प्राप्त हो सकते है. इसके कारण व्ययों की अधिकता व संचय में कमी हो सकती है. दांम्पत्य जीवन के सुख में कमी हो सकती है.
तृतीय भाव में शनि के फल -कर्क लग्न के व्यक्ति की कुण्डली में शनि तीसरे भाव में हों, उस व्यक्ति के स्वभाव में क्रोध का भाव हो सकता है. उसके पराक्रम में भी बढोतरी होने की सम्भावनाएं बनती है. भाई-बहनों से संबन्ध मधुर न रहने के योग बनते है. तथा समय पर उसे अपने मित्रों का सहयोग न मिलने की भी संभावनाएं बनती है.
शनि का तीसरे भाव में होना व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है. इसके फलस्वरुप उसके व्ययों में बढोतरी हो सकती है. बाहरी व्यक्तियों से संबन्ध मधुर न रहने के योग बनते है. उसके धन में कमी हो सकती है. व्यापारिक क्षेत्र में बाधाएं आ सकती है. तथा व्यक्ति का मन धार्मिक कार्यो में नहीं लगता है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल - कर्क लग्न के व्यक्ति के चतुर्थ भाव में शनि व्यक्ति के अपनी माता के सुख में कमी करते है. उसके अपनी माता से विवाद पूर्ण संबन्ध हो सकते है. भूमि- भवन के मामलों में चिन्ताएं बढती है. परन्तु प्रयास करने से बाद में स्थिति सामान्य हो जाती है. इस योग के व्यक्ति के व्यापार में बाधाएं आने की संभावनाएं बनती है.
इस स्थिति में व्यक्ति को अपने शत्रुओं से कष्ट प्राप्त हो सकते है. ऎसे में व्यक्ति अगर हिम्मत से काम लें तो शत्रुओं को परास्त करने में सफल होता है. उसका दांम्पत्य जीवन कलह पूर्ण हो सकता है. सरकारी नियमों का सख्ती से पालन करना उसके लिये हितकारी रहता है.
पंचम भाव में शनि के फल -कर्क लग्न के पंचम भाव में वृ्श्चिक राशि आती है. इस भाव में शनि व्यक्ति को प्रेम में असफलता दे सकते है. पंचम भाव क्योकि शिक्षा का भाव भी है. इसलिये शिक्षा में भी रुकावटें आने के योग बनते है. व्यक्ति अपने मनोबल को उच्च रखे तो वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है. इस योग के व्यक्ति का जीवन साथी शिक्षित व चिंतन शील होने की संभावनाएं बनती है.
व्यक्ति के धन संचय में कमी हो सकती है. आजिविका क्षेत्र थोडा सा प्रभावित होता है. पर आय सामान्य रहती है. यह योग व्यक्ति को सदैव चिन्तित रहने की संभावनाएं देता है.
छठे भाव में शनि के फल- कर्क लग्न, धनु राशि, छठे भाव में शनि व्यक्ति कि आजिविका को अनुकुल रखता है. इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के नौकरी करने की संभावनाएं बनती है. उसके अपने दांम्पत्य जीवन में मतभेद हो सकते है. विदेश स्थानों से लाभ प्राप्त हो सकते है. तथा व्ययों की अधिकता हो सकती है. इस योग का व्यक्ति अपने पुरुषार्थ तथा बुद्धि से लाभ प्राप्त करने में सफल होता है.
सप्तम भाव में शनि के फल -यह योग व्यक्ति के व्यापार को अच्छा बनाये रखने में सफल होता है. व्यक्ति को अपने ग्रहस्थ जीवन में सुख की कुछ कमी हो सकती है. धन में भी कमी हो सकती है. मेहनत व प्रयास में कमी न करना हितकारी रहता है.
अष्टम भाव में शनि के फल -इस भाव में शनि अपनी स्वराशि कुम्भ राशि में स्थित होने के कारण व्यक्ति की आयु में वृ्द्धि करता है. व्यक्ति के जीवन साथी के स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. उसे भूमि संबन्धी विषयों में परेशानियां हो सकती है. पिता और सरकारी पक्ष से कष्ट प्राप्त हो सकते है. विधा व संतान विषयों में भी कठिनाईयां हो सकती है. इन से संबन्धित सुखों में कमी हो सकती है.
नवम भाव में शनि के फल -आमदनी के स्त्रोत ठीक रहते है. शत्रु पर प्रभाव बना रहता है. जीवन साथी का सुख प्राप्त होता है. व्यक्ति को व्यापार से लाभ प्राप्त हो सकता है. व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. उसे अपने भाई- बहनों से कम सहयोग प्राप्त होता है. यह योग व्यक्ति के अपने छोटे भाई बहनों से संबन्ध मधुर न रहने की संभावनाएं देता है.
दशम भाव में शनि के फल पिता का पूर्ण सहयोग प्राप्त नहीं होता है. सरकार की ओर से भी परेशानियां आ सकती है. व्यक्ति के ग्रहस्थ जीवन सुख में कमी हो सकती है. तथा उसके स्वयं के स्वास्थ्य में कमी की संभावनाएं बनती है. व्यवसायिक क्षेत्र से आमदनी अनुकुल प्राप्त होती है.
एकादश भाव में शनि के फल -स्वास्थ्य मध्यम रहता है. उसके शिक्षा क्षेत्र में रुकावटें आ सकती है. यह योग व्यक्ति की बुद्धिमता में वृ्द्धि करता है. व्यक्ति अपने परिश्रम व चतुराई से अपने आय में वृ्द्धि करने में सफल होता है.
द्वादश भाव में शनि के फल- आमदनी से खर्च अधिक होता है. हमेशा किसी न किसी समस्या में फंसे रहते है. जीवन साथी के सुख में कमी हो सकती है. परिवार के सदस्यों से सहयोग व सुख कम प्राप्त होने की सम्भावनाएं बनती है.
No comments:
Post a Comment