दुनियाभर में बहुत से देश या धर्म ऐसे हैं जहां ईश्वर को सर्वोच्च शक्ति का
प्रतीक मानकर पूजा जाता है। कहीं मूर्ति पूजा का विधान है तो कहीं लिखित
दस्तावेजों रूपी ग्रंथ को ही ईश्वर माना जाता है। हिन्दू धर्म की बात करें
तो यहां विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा की जाती है। इसके अलावा
यह धर्म ईश्वर के जीवित अवतारों की भी अवधारणा में विश्वास रखता है।
कुछ समय पहले तक विश्व का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र कहा जाने वाला भारत का पड़ोसी मुल्क नेपाल कुछ ऐसी ही कहानी कहता है जो ईश्वर के अवतार पर विश्वास करने पर बल देती है। नेपाल के लोगों को पिछले दिनों भयंकर त्रासदी का सामना करना पड़ा। अत्याधिक तीव्रता से आए भूकंप ने नेपाल की जमीन को हिलाकर रख दिया, हजारों की संख्या में लोग इस प्राकृतिक आपदा की भेंट चढ़ गए। लेकिन एक स्थान ऐसा था जहां मौजूद लोगों पर आंच तक नहीं आई और वह स्थान था जीवित देवी के नाम से प्रख्यात नेपाल की ‘कुमारी देवी’ का मंदिर।
नेपाल में आए विनाशकारी आपदा ने बहुत से लोगों को अपनी चपेट लिया, हजारों लोगों के परिवारों को तबाह कर दिया लेकिन कुछ खुशनसीब लोग ऐसे भी थे जिनका बाल भी बांका नहीं हो सका। स्थानीय लोगों का मानना है कि उस समय वे कुमारी देवी के स्थान पर थे, कुमारी देवी ने ही उनकी जिन्दगी बचाई है।
नेपाल के लोग इन जीवित देवियों, जिन्हें कुमारी देवी कहा जाता है, को महाकाली का स्वरूप मानते हैं और जब तक ये जवान नहीं हो जातीं, अर्थात जब तक इन्हें मासिक धर्म शुरू नहीं हो जाता, तब तक ये कुमारी देवी की पदवी पर रहती हैं और उसके बाद कोई अन्य बालिका कुमारी देवी बनाई जाती है।
नेपाल के लोगों का मानना है कि ये जीवित देवियां आपदा के समय उनकी रक्षा करती हैं। इस मान्यता की शुरुआत 17वीं शताब्दी के आरंभ में ही हो गई थी। तब से लेकर अब तक नेपाल निवासी छोटी बच्चियों को देवी का रूप मानकर उन्हें मंदिरों में रखकर उनकी पूजा करते हैं। उन्हें समाज और अपने परिवारों से अलग रहना पड़ता है।
नेपाल के लोगों की जीवित देवी या कुमारी देवी शाक्य या वज्राचार्य जाति से संबंध रखती हैं, इन्हें नेपाल के नेवारी समुदाय द्वारा पहचाना जाता है। नेपाल में करीब 11 कुमारी देवियां होती हैं जिनमें से रॉयल गॉडेस या कुमारी देवी को सबसे प्रमुख माना गया है।
शाक्य और वज्राचार्य जाति की बच्चियों को 3 वर्ष का होते ही अपने परिवार से अलग कर दिया जाता है और उन्हें ‘कुमारी’ नाम दे दिया जाता है। इसके पश्चात 32 स्तरों पर उनकी परीक्षाएं होती हैं। इन सभी बच्चियों को ‘अविनाशी’ अर्थात जिसका अंत नहीं हो सकता, कहा जाता है।
जिस तरह बौद्ध धर्म के लोग अपने लामा को चुनते हैं उसी तरह कुछ नेपाल की कुमारी देवी का चयन होता है। उनके भीतर कुछ ऐसे लक्षण देखे जाते हैं जो उनके कुमारी देवी बनने की एक कसौटी होते हैं। इसमें उनकी जन्म कुंडली में मौजूद ग्रह-नक्षत्र भी बड़ी भूमिका निभाते हैं।
उनके समक्ष भैंस के कटे सिर को रखा जाता है, इसके अलावा राक्षस का मुखौटा पहने पुरुष वहां नृत्य करते हैं। कोई भी साधारण बच्ची उस दृश्य को देखकर भयभीत हो जाएगी लेकिन जो भी बच्ची बिना किसी डर के वहां रहती है, उसे मां काली का अवतार मानकर कुमारी देवी बनाया जाता है।
कुमारी देवी बनने के बाद उन्हें कुमारी घर में रखा जाता है, जहां रहकर वे अपना ज्यादातर समय पढ़ाई और धार्मिक कार्यों में बिताती हैं। वह केवल त्यौहार के समय ही घर से बाहर निकल सकती हैं लेकिन उनके पांव जमीन पर नहीं पडऩे चाहिए।
‘कुमारी देवी’ की पदवी उनसे तब छीन ली जाती है जब उन्हें या तो मासिक धर्म शुरू हो जाए या फिर किसी अन्य वजह से उनके शरीर से रक्त बहने लगे या फिर मामूली सी खरोंच ही क्यों ना पडज़ाए। कुमारी देवी की पदवी से हटने के बाद उन्हें आजीवन पेंशन तो मिलती है लेकिन नेपाली मान्यताओं के अनुसार यह कहा जाता है कि जो भी पुरुष पूर्व कुमारी देवी से विवाह करता है उसकी मृत्यु कम उम्र में हो जाती है। इसलिए कोई भी पुरुष उनसे विवाह करने के लिए तैयार नहीं होता, जिस कारण उनमें से अधिकांश आजीवन कुंवारी रह जाती हैं।
नेपाल में रहने वाले बौद्ध और हिन्दू धर्म के लोग यह कहते हैं कि ये देवियां हर बुराई और आपदा से उनकी रक्षा करती हैं। इन्हें ईश्वर के समान ही पूजनीय माना जाता है। शाक्य वंश के लोग इन कुमारी देवियों की सुरक्षा का जिम्मा संभालते हैं। जैसे ही बच्चियों को मासिक धर्म शुरू हो जाता है उन्हें कुमारी देवी की पदवी से हटा दिया जाता है और फिर एक नई कुमारी देवी की खोज शुरू की जाती है। पद से निवृत्त हुई कुमारियों को एक सरकारी आवास में रहना होता है। जिस आवास में ये कुमारी देवियां रहती हैं, नेपाल के लोगों के लिए वह स्थान बेहद पवित्र हो जाता है।
वर्तमान समय में मतीना शाक्य को दुर्गा का अवतार मानकर नेपाल की कुमारी देवी के नाम से पूजा जाता है। पूरा नेपाल इन्हें देवी के स्वरूप में पूजता है। जब भी किसी त्यौहार पर कुमारी देवी अपने आवास से बाहर निकलती हैं तब उनकी रक्षा का जिम्मा संभाले हुए शाक्य वंश के लोग उनकी पालकी को अपने कंधे पर उठाकर नगर में घुमाते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार कुमारी देवी के दर्शन करना बहुत शुभ होता है।
कुछ समय पहले तक विश्व का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र कहा जाने वाला भारत का पड़ोसी मुल्क नेपाल कुछ ऐसी ही कहानी कहता है जो ईश्वर के अवतार पर विश्वास करने पर बल देती है। नेपाल के लोगों को पिछले दिनों भयंकर त्रासदी का सामना करना पड़ा। अत्याधिक तीव्रता से आए भूकंप ने नेपाल की जमीन को हिलाकर रख दिया, हजारों की संख्या में लोग इस प्राकृतिक आपदा की भेंट चढ़ गए। लेकिन एक स्थान ऐसा था जहां मौजूद लोगों पर आंच तक नहीं आई और वह स्थान था जीवित देवी के नाम से प्रख्यात नेपाल की ‘कुमारी देवी’ का मंदिर।
नेपाल में आए विनाशकारी आपदा ने बहुत से लोगों को अपनी चपेट लिया, हजारों लोगों के परिवारों को तबाह कर दिया लेकिन कुछ खुशनसीब लोग ऐसे भी थे जिनका बाल भी बांका नहीं हो सका। स्थानीय लोगों का मानना है कि उस समय वे कुमारी देवी के स्थान पर थे, कुमारी देवी ने ही उनकी जिन्दगी बचाई है।
नेपाल के लोग इन जीवित देवियों, जिन्हें कुमारी देवी कहा जाता है, को महाकाली का स्वरूप मानते हैं और जब तक ये जवान नहीं हो जातीं, अर्थात जब तक इन्हें मासिक धर्म शुरू नहीं हो जाता, तब तक ये कुमारी देवी की पदवी पर रहती हैं और उसके बाद कोई अन्य बालिका कुमारी देवी बनाई जाती है।
नेपाल के लोगों का मानना है कि ये जीवित देवियां आपदा के समय उनकी रक्षा करती हैं। इस मान्यता की शुरुआत 17वीं शताब्दी के आरंभ में ही हो गई थी। तब से लेकर अब तक नेपाल निवासी छोटी बच्चियों को देवी का रूप मानकर उन्हें मंदिरों में रखकर उनकी पूजा करते हैं। उन्हें समाज और अपने परिवारों से अलग रहना पड़ता है।
नेपाल के लोगों की जीवित देवी या कुमारी देवी शाक्य या वज्राचार्य जाति से संबंध रखती हैं, इन्हें नेपाल के नेवारी समुदाय द्वारा पहचाना जाता है। नेपाल में करीब 11 कुमारी देवियां होती हैं जिनमें से रॉयल गॉडेस या कुमारी देवी को सबसे प्रमुख माना गया है।
शाक्य और वज्राचार्य जाति की बच्चियों को 3 वर्ष का होते ही अपने परिवार से अलग कर दिया जाता है और उन्हें ‘कुमारी’ नाम दे दिया जाता है। इसके पश्चात 32 स्तरों पर उनकी परीक्षाएं होती हैं। इन सभी बच्चियों को ‘अविनाशी’ अर्थात जिसका अंत नहीं हो सकता, कहा जाता है।
जिस तरह बौद्ध धर्म के लोग अपने लामा को चुनते हैं उसी तरह कुछ नेपाल की कुमारी देवी का चयन होता है। उनके भीतर कुछ ऐसे लक्षण देखे जाते हैं जो उनके कुमारी देवी बनने की एक कसौटी होते हैं। इसमें उनकी जन्म कुंडली में मौजूद ग्रह-नक्षत्र भी बड़ी भूमिका निभाते हैं।
उनके समक्ष भैंस के कटे सिर को रखा जाता है, इसके अलावा राक्षस का मुखौटा पहने पुरुष वहां नृत्य करते हैं। कोई भी साधारण बच्ची उस दृश्य को देखकर भयभीत हो जाएगी लेकिन जो भी बच्ची बिना किसी डर के वहां रहती है, उसे मां काली का अवतार मानकर कुमारी देवी बनाया जाता है।
कुमारी देवी बनने के बाद उन्हें कुमारी घर में रखा जाता है, जहां रहकर वे अपना ज्यादातर समय पढ़ाई और धार्मिक कार्यों में बिताती हैं। वह केवल त्यौहार के समय ही घर से बाहर निकल सकती हैं लेकिन उनके पांव जमीन पर नहीं पडऩे चाहिए।
‘कुमारी देवी’ की पदवी उनसे तब छीन ली जाती है जब उन्हें या तो मासिक धर्म शुरू हो जाए या फिर किसी अन्य वजह से उनके शरीर से रक्त बहने लगे या फिर मामूली सी खरोंच ही क्यों ना पडज़ाए। कुमारी देवी की पदवी से हटने के बाद उन्हें आजीवन पेंशन तो मिलती है लेकिन नेपाली मान्यताओं के अनुसार यह कहा जाता है कि जो भी पुरुष पूर्व कुमारी देवी से विवाह करता है उसकी मृत्यु कम उम्र में हो जाती है। इसलिए कोई भी पुरुष उनसे विवाह करने के लिए तैयार नहीं होता, जिस कारण उनमें से अधिकांश आजीवन कुंवारी रह जाती हैं।
नेपाल में रहने वाले बौद्ध और हिन्दू धर्म के लोग यह कहते हैं कि ये देवियां हर बुराई और आपदा से उनकी रक्षा करती हैं। इन्हें ईश्वर के समान ही पूजनीय माना जाता है। शाक्य वंश के लोग इन कुमारी देवियों की सुरक्षा का जिम्मा संभालते हैं। जैसे ही बच्चियों को मासिक धर्म शुरू हो जाता है उन्हें कुमारी देवी की पदवी से हटा दिया जाता है और फिर एक नई कुमारी देवी की खोज शुरू की जाती है। पद से निवृत्त हुई कुमारियों को एक सरकारी आवास में रहना होता है। जिस आवास में ये कुमारी देवियां रहती हैं, नेपाल के लोगों के लिए वह स्थान बेहद पवित्र हो जाता है।
वर्तमान समय में मतीना शाक्य को दुर्गा का अवतार मानकर नेपाल की कुमारी देवी के नाम से पूजा जाता है। पूरा नेपाल इन्हें देवी के स्वरूप में पूजता है। जब भी किसी त्यौहार पर कुमारी देवी अपने आवास से बाहर निकलती हैं तब उनकी रक्षा का जिम्मा संभाले हुए शाक्य वंश के लोग उनकी पालकी को अपने कंधे पर उठाकर नगर में घुमाते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार कुमारी देवी के दर्शन करना बहुत शुभ होता है।
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