Thursday 13 October 2016

वास्तुदोष और रोग

वास्तुशास्त्र अर्थात गृहनिर्माण की वह कला जो भवन मेंं निवास कर्ताओं की विघ्नों, प्राकृतिक उत्पातों एवं उपद्रवों से रक्षा करती है. देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचित इस भारतीय वास्तु शास्त्र का एकमात्र उदेश्य यही है कि गृहस्वामी को भवन शुभफल दे, उसे पुत्र-पौत्रादि, सुख-समृद्धि प्रदान कर लक्ष्मी एवं वैभव को बढाने वाला हो.
इस विलक्षण भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से घर मेंं स्वास्थय, खुशहाली एवं समृद्धि को पूर्णत: सुनिश्चित किया जा सकता है. एक इन्जीनियर आपके लिए सुन्दर तथा मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमेंं निवास करने वालों के सुख और समृद्धि की गारंटी नहींं दे सकता. लेकिन भारतीय वास्तुशास्त्र आपको इसकी पूरी गारंटी देता है.
यहाँ हम अपने पाठकों को जानकारी दे रहे हैं कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन न करने से पारिवारिक सदस्यों को किस तरह से नाना प्रकार के रोगों का सामना करना पड सकता है.
पूर्व दिशा मेंं दोष:
* यदि भवन मेंं पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों मेंं ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई मेंं जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी.
* यदि पूर्व दिशा मेंं रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पड़ता है.
* घर के पूर्वी भाग मेंं कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी मेंं गर्भहानि का सामना करना पड़ता है.
* भवन के पश्चिम मेंं नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार मेंं ही छोडक़र अल्पावस्था मेंं ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.
* यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पड़ता है.
* अगर पूर्व दिशा मेंं शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं.
बचाव के उपाय:
* पूर्व दिशा मेंं पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा.
* पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है. इसके लिए पूर्वी दिवार पर ‘‘सूर्य यन्त्र’’ स्थापित करें और छत पर इस दिशा मेंं लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें.
* पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज मेंं मान-प्रतिष्ठा बढेगी.
पश्चिम दिशा मेंं दोष:
पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.
* यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार मेंं फेफड़े, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पड़ता है.
* यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.
* यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पड़ेगा.
* यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ मेंं धन का अपव्यय होता रहेगा.
* यदि पश्चिम दिशा की दिवार मेंं दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग मेंं अवश्य कोई बीमारी होगी.
* यदि पश्चिम दिशा मेंं रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोड़े-फुन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.
बचाव के उपाय:
* ऐसी स्थिति मेंं पश्चिमी दिवार पर ‘‘वरूण यन्त्र’’ स्थापित करें.
* परिवार का मुखिया न्यूनतम 11 शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों मेंं काले चने वितरित करें.
* पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा मेंं ढाल न रखें.
* पश्चिम दिशा मेंं अशोक का एक वृक्ष लगायें.
उत्तर दिशा मेंं दोष:
उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र मेंं इस दिशा को कालपुरूष का ह्रदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है.
* यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमेंं चबूतरे बने हों, तो घर मेंं गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं.
* यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का शिकार होना पडता है.
बचाव के उपाय:
यदि उत्तर दिशा की ओर बरामदे की ढाल रखी जाये, तो पारिवारिक सदस्यों विशेषतय: स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगें और उस परिवार मेंं किसी को भी अकाल मृत्यु का सामना नहींं करना पडे१गा.
* इस दिशा मेंं दोष होने पर घर के पूजास्थल मेंं ‘‘बुध यन्त्र’’ स्थापित करें.
* परिवार का मुखिया 21 बुधवार लगातार उपवास रखें.
* भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें.
* उत्तर दिशा की दिवार पर हल्का हरा रंग करवायें.
दक्षिण दिशा मेंं दोष:
दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफड़े और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान होता है.
* यदि घर की दक्षिण दिशा मेंं कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोड़ों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमें की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ता है.
* दक्षिण दिशा मेंं उत्तरी दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रैशर, मूर्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट भोगना पड़ता है.
* यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, और उत्तर से अधिक रिक्त स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगें. उन्हें उच्च रक्तचाप, पाचनक्रिया की गडबड़ी, खून की कमी, अचानक मृत्यु अथवा दुर्घटना का शिकार होना पड़ेगा. दक्षिण पिशाच का निवास है, इसलिए इस तरफ थोड़ी जगह खाली छोडक़र ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए.
* यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो ओर प्रवेश द्वार नैऋत्याभिमुख बनवा लिया जाए, तो ऐसा भवन दीर्घ व्याधियाँ एवं किसी पारिवारिक सदस्य को अकाल मृत्यु देने वाला होता है.
बचाव के उपाय:
* यदि दक्षिणी भाग ऊँचा हो, तो घर-परिवार के सभी सदस्य पूर्णत: स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगें. इस दिशा मेंं किसी प्रकार का वास्तुजन्य दोष होने की स्थिति मेंं छत पर लाल रक्तिम रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें.
* घर के पूजनस्थल मेंं ‘‘श्री हनुमंतयन्त्र’’ स्थापित करें.
* दक्षिणमुखी द्वार पर एक ताम्र धातु का ‘‘मंगलयन्त्र’’ लगायें.
* प्रवेशद्वार के अन्दर-बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूँड वाले गणपति जी की लघु प्रतिमा लगायें.

No comments: