गुरु-चन्द्र का एक दुसरे से केन्द्र में होना गजकेसरी योग का निर्माण करता है. गजकेसरी योग व्यक्ति की वाकशक्ति में वृ्द्धि होती है. इसकी शुभता से धन, संमृ्द्धि व संतान की संभावनाओं को भी सहयोग प्राप्त होता है. गुरु सभी ग्रहों में सबसे शुभ ग्रह है.
इन्हें शुभता, धन, व सम्मान का कारक ग्रह कहा जाता है. इसी प्रकार चन्द्र को भी धन वृ्द्धि का ग्रह कहा जाता है. दोनों के संयोग से बनने वाले गजकेसरी योग से व्यक्ति को अथाह धन प्राप्ति की संभावनाएं बनती है. परन्तु गजकेसरी योग से मिलने वाले फल सदैव सभी के लिये एक समान नहीं होते है.
अनेक कारणों से गजकेसरी योग के फल प्रभावित होते है. कई बार यह योग कुण्डली में बन रहे अन्य योगों के फलस्वरुप भंग हो रहा होता है. तथा इससे मिलने वाले फलों में कमी हो रही होती है. परन्तु योगयुक्त व्यक्ति को इसकी जानकारी नहीं होती है.
गजकेसरी योग का फलादेश करते समय किस प्रकार की बातों का ध्यान रखना चाहिए. आईये यह जानने का प्रयास करते है.
"गजकेसरी योग" फलादेश सावधानियां
1. गुरु-चन्द्र स्वामित्व
गजकेसरी योग से मिलने वाले फलों का विचार करते समय विश्लेषणकर्ता इस बात पर ध्यान देता है कि चन्द्र तथा गुरु किन भावों के स्वामी है. इसमें भी गुरु की राशियां किन भावों में स्थित है, इसका प्रभाव योग की शुभता पर विशेष रुप से पडता है.
जन्म कुण्डली में चन्द व गुरु की राशि शुभ भावों में होंने पर गजकेसरी योग की शुभता में वृ्द्धि व अशुभ भावों में इनकी राशियां स्थित होने पर योग की शुभता कुछ कम होती है.
2. चन्द्र नकारात्मक स्थिति
जब कुण्डली में चन्द्र पीडित होना गजकेसरी योग के अनुकुल नहीं समझा जाता है. अगर चन्द्र केमद्रुम योग में न हों, चन्द्र से प्रथम, द्वितीय अथवा द्वादश भाव में कोई ग्रह नहीं होने पर चन्द्र के साथ-साथ गजकेसरी योग के बल में भी वृ्द्धि होती है.
इसके अलावा चन्द का गण्डान्त में होना, पाप ग्रहों से द्रष्टि संबन्ध में होना, या नीच का होना गजकेसरी योग के फलों को प्रभावित कर सकता है.
3. गुरु, चन्द्र के अशुभ योग
कुण्डली में जब ग्रुरु से चन्द छठे, आंठवे या बारहवें भाव में होंने पर शकट योग बनता है. यह योग क्योकि गुरु से चन्द्र की षडाष्टक स्थिति में होने पर बनता है इसलिये अनिष्टकारी होता है.
इसलिये गजकेसरी योग भी शुभ भावों में बनने पर विशेष शुभ फल देता है. तथा गुरु व चन्द्र की स्थिति इसके विपरीत होने पर गजकेसरी योग की शुभता में कमी होती है.
4. गजकेसरी योग व केमद्रुम योग
गजकेसरी योग क्योकि गुरु से चन्द्र के केन्द्र में होने पर बनता है. इस योग के अन्य नियमों का वर्णन इससे पहले दिया जा चुका है. इन नियमों में यह भी सम्मिलित करना चाहिए. कि चन्द्र के दोनों ओर के भावों में सूर्य, राहू-केतु के अलावा अन्य पांच ग्रहों में से कोई भी ग्रह स्थित होना चाहिए.
5. गुरु नकारात्मक स्थिति
गुरु का वक्री होने पर गजकेसरी योग की गुणवता में कमी होती है. जो पाप ग्रह इनसे युति, द्रष्टि संबन्ध बना रहा हों उस ग्रह की अशुभ विशेषताएं योग में आने की संभावनाएं रहती है.
6. गुरु-चन्द सकारात्मक पक्ष-
अगर गुरु अथवा चन्द्र उच्च, गुरु सुस्थिति में हों तो यह गजकेसरी योग व्यक्ति को उतम फल देगा. व अगर चन्द अथवा गुरु दोनों में से कोई अपनी मूलत्रिकोण राशि में स्थित हों, अच्छे भाव में हों और दूसरा ग्रह भी शुभ स्थिति में हों तब भी गजकेसरी योग की शुभता बनी रहती है.
7. "गजकेसरी योग' दशाओं का प्रभाव
सभी योगों के फल इनसे संबन्धित ग्रहों कि दशाओं में ही प्राप्त होते है. कई बार किसी व्यक्ति की कुण्डली में अनेक धनयोग व राजयोग विधमान होते है. परन्तु उस व्यक्ति को अगर धनयोग व राजयोग बना रहे, ग्रहों की महादशा न मिलें तो व्यक्ति के लिये ये योग व्यर्थ सिद्ध होते है. इसी प्रकार गजकेसरी योग के फल भी व्यक्ति को गुरु व चन्द्र की महादशा प्राप्त होने पर ही प्राप्त होते है.
व्यवहारिक रुप में यह देखने में आया है कि गजकेसरी योग के सर्वोतम फल उन्हीं व्यक्तियों को प्राप्त हुए है. जिनकी कुण्डली में यह योग बन रहा हों तथा जिनका जन्म गुरु या चन्द्र की महादशा में हुआ हों. उस अवस्था में गजकेसरी योग विशेष रुप से लाभकारी रहता है.
इसके अलावा गजकेसरी योग के व्यक्तियों को जन्म के समय गुरु या चन्द्र की अन्तर्दशा प्राप्त होना भी शुभ फलकारी होता है. या फिर गुरु में गुरु की महादशा या चन्द्र में चन्द्र कि महादशा में जन्म होने पर भी गजकेसरी योग का व्यक्ति अपने जीवन में धन व यश की प्राप्ति करता है.
इन्हें शुभता, धन, व सम्मान का कारक ग्रह कहा जाता है. इसी प्रकार चन्द्र को भी धन वृ्द्धि का ग्रह कहा जाता है. दोनों के संयोग से बनने वाले गजकेसरी योग से व्यक्ति को अथाह धन प्राप्ति की संभावनाएं बनती है. परन्तु गजकेसरी योग से मिलने वाले फल सदैव सभी के लिये एक समान नहीं होते है.
अनेक कारणों से गजकेसरी योग के फल प्रभावित होते है. कई बार यह योग कुण्डली में बन रहे अन्य योगों के फलस्वरुप भंग हो रहा होता है. तथा इससे मिलने वाले फलों में कमी हो रही होती है. परन्तु योगयुक्त व्यक्ति को इसकी जानकारी नहीं होती है.
गजकेसरी योग का फलादेश करते समय किस प्रकार की बातों का ध्यान रखना चाहिए. आईये यह जानने का प्रयास करते है.
"गजकेसरी योग" फलादेश सावधानियां
1. गुरु-चन्द्र स्वामित्व
गजकेसरी योग से मिलने वाले फलों का विचार करते समय विश्लेषणकर्ता इस बात पर ध्यान देता है कि चन्द्र तथा गुरु किन भावों के स्वामी है. इसमें भी गुरु की राशियां किन भावों में स्थित है, इसका प्रभाव योग की शुभता पर विशेष रुप से पडता है.
जन्म कुण्डली में चन्द व गुरु की राशि शुभ भावों में होंने पर गजकेसरी योग की शुभता में वृ्द्धि व अशुभ भावों में इनकी राशियां स्थित होने पर योग की शुभता कुछ कम होती है.
2. चन्द्र नकारात्मक स्थिति
जब कुण्डली में चन्द्र पीडित होना गजकेसरी योग के अनुकुल नहीं समझा जाता है. अगर चन्द्र केमद्रुम योग में न हों, चन्द्र से प्रथम, द्वितीय अथवा द्वादश भाव में कोई ग्रह नहीं होने पर चन्द्र के साथ-साथ गजकेसरी योग के बल में भी वृ्द्धि होती है.
इसके अलावा चन्द का गण्डान्त में होना, पाप ग्रहों से द्रष्टि संबन्ध में होना, या नीच का होना गजकेसरी योग के फलों को प्रभावित कर सकता है.
3. गुरु, चन्द्र के अशुभ योग
कुण्डली में जब ग्रुरु से चन्द छठे, आंठवे या बारहवें भाव में होंने पर शकट योग बनता है. यह योग क्योकि गुरु से चन्द्र की षडाष्टक स्थिति में होने पर बनता है इसलिये अनिष्टकारी होता है.
इसलिये गजकेसरी योग भी शुभ भावों में बनने पर विशेष शुभ फल देता है. तथा गुरु व चन्द्र की स्थिति इसके विपरीत होने पर गजकेसरी योग की शुभता में कमी होती है.
4. गजकेसरी योग व केमद्रुम योग
गजकेसरी योग क्योकि गुरु से चन्द्र के केन्द्र में होने पर बनता है. इस योग के अन्य नियमों का वर्णन इससे पहले दिया जा चुका है. इन नियमों में यह भी सम्मिलित करना चाहिए. कि चन्द्र के दोनों ओर के भावों में सूर्य, राहू-केतु के अलावा अन्य पांच ग्रहों में से कोई भी ग्रह स्थित होना चाहिए.
5. गुरु नकारात्मक स्थिति
गुरु का वक्री होने पर गजकेसरी योग की गुणवता में कमी होती है. जो पाप ग्रह इनसे युति, द्रष्टि संबन्ध बना रहा हों उस ग्रह की अशुभ विशेषताएं योग में आने की संभावनाएं रहती है.
6. गुरु-चन्द सकारात्मक पक्ष-
अगर गुरु अथवा चन्द्र उच्च, गुरु सुस्थिति में हों तो यह गजकेसरी योग व्यक्ति को उतम फल देगा. व अगर चन्द अथवा गुरु दोनों में से कोई अपनी मूलत्रिकोण राशि में स्थित हों, अच्छे भाव में हों और दूसरा ग्रह भी शुभ स्थिति में हों तब भी गजकेसरी योग की शुभता बनी रहती है.
7. "गजकेसरी योग' दशाओं का प्रभाव
सभी योगों के फल इनसे संबन्धित ग्रहों कि दशाओं में ही प्राप्त होते है. कई बार किसी व्यक्ति की कुण्डली में अनेक धनयोग व राजयोग विधमान होते है. परन्तु उस व्यक्ति को अगर धनयोग व राजयोग बना रहे, ग्रहों की महादशा न मिलें तो व्यक्ति के लिये ये योग व्यर्थ सिद्ध होते है. इसी प्रकार गजकेसरी योग के फल भी व्यक्ति को गुरु व चन्द्र की महादशा प्राप्त होने पर ही प्राप्त होते है.
व्यवहारिक रुप में यह देखने में आया है कि गजकेसरी योग के सर्वोतम फल उन्हीं व्यक्तियों को प्राप्त हुए है. जिनकी कुण्डली में यह योग बन रहा हों तथा जिनका जन्म गुरु या चन्द्र की महादशा में हुआ हों. उस अवस्था में गजकेसरी योग विशेष रुप से लाभकारी रहता है.
इसके अलावा गजकेसरी योग के व्यक्तियों को जन्म के समय गुरु या चन्द्र की अन्तर्दशा प्राप्त होना भी शुभ फलकारी होता है. या फिर गुरु में गुरु की महादशा या चन्द्र में चन्द्र कि महादशा में जन्म होने पर भी गजकेसरी योग का व्यक्ति अपने जीवन में धन व यश की प्राप्ति करता है.
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