प्रत्येक जन्म कुण्डली में 12 भाव होते है. जिन्हें कुण्डली के "घर" भी कहा जाता है. सभी कुण्डली में भाव स्थिर रहते है. पर इन भावों में स्थित राशियां लग्न के अनुसार बदलती रहती है. कुण्डली के प्रथम भाव को लग्न भाव कहते है. तथा इसी भाव से कुण्डली के अन्य भावों की राशियां निर्धारित होती है. लग्न भाव केन्द्र व त्रिकोण भाव दोनों का होता है. तथा कुण्डली का आरम्भ भी इसी भाव से होने के कारण यह भाव विशेष महत्व रखता है.
जब कुण्डली में किसी एक भाव, राशि में स्थित ग्रह से मिलने वाले फलों का विचार किया जाता है. तो सर्वप्रथम यह देखा जाता है कि ग्रह कुण्डली के किस भाव में स्थित है, उस भाव में कौन सी राशि है, तथा उस राशि स्वामी से ग्रह के किस प्रकार के संबन्ध है. इसके अतिरिक्त इस ग्रह से अन्य आठ ग्रहों से किसी भी ग्रह का कोई संबन्ध बन रहा है या नहीं. इन सभी बातों का विचार करने के बाद ही यह निर्धारित किया जाता है कि ग्रह से किस प्रकार के फल प्राप्त हो सकते है.
प्रथम भाव में शनि के फल - व्यक्ति का स्वास्थ्य प्राय: कमजोर हो सकता है. शिक्षा क्षेत्र के लिये शनि का कन्या लग्न में प्रथम भाव में होना उतम होता है. यह योग व्यक्ति के संतान सुख में वृ्द्धि कर सकता है. इस स्थिति में आलस्य में कमी करना व्यक्ति के लिये हितकारी होता है. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में संघर्ष और परिश्रम द्वारा उन्नति प्राप्त हो सकती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल - जिस व्यक्ति कि कुण्डली में यह योग बन रहा हों, उस व्यक्ति के धन में बढोतरी हो सकती है. ऎसा व्यक्ति अपने परिवार व कुटुम्ब आदि विषयों में अधिक खर्च कर सकता है. यह योग व्यक्ति को जीवन के आजिविका के क्षेत्र में परेशानियों के बाद उन्नति प्राप्त होने की संभावनाएं देता है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल- वृ्श्चिक राशि, तीसरे भाव में शनि अपने शत्रु मंगल की राशि में होता है. जिसके कारण शत्रुओं से हानि होने की संभावना बनती है. व्यक्ति को अपने भाई- बहनों से कम सुख प्राप्त होता है. ऎसे में व्यक्ति के मित्र भी समय पर सहयोग नहीं करते है. विधा क्षेत्र से व्यक्ति को अनुकुल फल प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. तथा व्यक्ति की विधा भी उतम हो सकती है. व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में कुछ चिन्ताएं बनी रह सकती है. संतान पक्ष से सुख में कमी हो सकती है. इसके फलस्वरुप व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. तथा सामान्यत: व्यक्ति का जीवन संघर्षमय रहने की संभावनाएं बन सकती है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल -माता के सुख में कमी हो सकती है. भूमि संबन्धी मामले होते है. व्यक्ति को व्यापार के क्षेत्र में अडचनें आ सकती है. व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम स्तर का हो सकता है. मेहनत में बढोतरी कर व्यक्ति शनि के अशुभ फलों में कमी कर सकता है. परन्तु आलस्य करने पर व्यक्ति के जीवन में परेशानियां बढने कि संभावना रहती है. अपनी पूरी क्षमता से प्रयासरत रहने से व्यक्ति के सुखों में वृ्द्धि की संभावनाएं बन सकती है.
पंचम भाव में शनि के फल -इस भाव में शनि की स्थिति व्यक्ति को विधा के क्षेत्र में बाधाएं दे सकती है. यह योग व्यक्ति को गलत तरीकों से शिक्षा क्षेत्र में आगे बढने की प्रवृ्ति दे सकता है. इस स्थिति में व्यक्ति मेहनत के अतिरिक्त अन्य तरीकों से शिक्षा क्षेत्र में सफल होने का प्रयास कर सकता है. व्यक्ति धन संचय में सफल हो सकता है. पर व्यक्ति को मेहनत में कमी न करने से ही यह योग व्यक्ति को शुभ फल देता है.
छठे भाव में शनि के फल - छठे भाव में शनि कुम्भ राशि में हों तो व्यक्ति को दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए. शिक्षा के क्षेत्र में पूर्ण संघर्ष करना इस योग के व्यक्ति के लिये लाभकारी रहता है. व्यक्ति के शत्रु उसके लिये कष्ट का कारण बन सकते है. तथा धैर्य के साथ शत्रुओं का सामना करने से व्यक्ति को विजय प्राप्त होती है.
सप्तम भाव में शनि के फल -यह योग व्यक्ति को जन्म स्थान से दुर रहने पर उन्नति के योग बनते है. स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. कार्यक्षेत्र में सफल होने के लिये व्यक्ति को मेहनत के साथ साथ बुद्धि का प्रयोग भी करना लाभकारी रहता है. उसे अपने जीवन साथी संबन्धी विषयों में चिन्ता हो सकती है. तथा व्यक्ति को भूमि संबन्धी मामलों में परेशानियां का सामना करना पड सकता है.
अष्टम भाव में शनि के फल -मेष राशि में शनि अष्टम भाव में हों तो व्यक्ति की शिक्षा में कमी हो सकती है. व्यक्ति के स्वभाव में चतुराई का भाव होने की संभावनाएं बन सकती है. व्यक्ति को असमय की घटनाओं का सामना करना पड सकता है. इस स्थिति में व्यक्ति को दुर्घटनाओं से बचके रहना चाहिए. धन व सुख-सुविधाओं के विषयों में व्यक्ति को कठोर परिश्रम करना पड सकता है.
नवम भाव में शनि के फल -व्यक्ति बौद्धिक कार्यो के कारण अपने भाग्य की उन्नती करने में सफल होता है. विवादों से बचने के प्रयास करना चाहिए. यह योग व्यक्ति को नीति निपुण बनाये रखने में सहायक होता है. योग के प्रभाव से व्यक्ति के स्वभाव में चतुराई के भाव में वृ्द्धि हो सकती है. तथा शनि के नवम भाव में होने पर व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभाव शाली बना रह सकता है. व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. साथ ही साथ आय भी अधिक होने कि संभावनाएं बनती है.
दशम भाव में शनि के फल- व्यक्ति के मान-सम्मान में बढोतरी होती है. व्ययों के बढने से आर्थिक चिन्ताएं परेशान कर सकती है. व्यक्ति के माता के सुख में कमी हो सकती है. जीवन साथी का स्वास्थ्य मध्यम हो सकता है. कठिन परिश्रम करने से व्यक्ति के कार्यों की बाधाओं में कमी हो सकती है.
एकादश भाव में शनि के फल -दुर्घटना होने के भय रहते है. व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. जिसके फलस्वरुप उसके लाभों में बढोतरी हो सकती है. इस योग के व्यक्ति को अपने व्ययों पर नियन्त्रण रहता है. योग की शुभता से व्यक्ति के संतान सुख में वृ्द्धि होती है. स्वास्थ्य में कमी हो सकती है.
द्वादश भाव में शनि के फल -व्यक्ति को विदेशों से हानि होने की संभावनाएं बनती है. बुद्धि प्रयोग से व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि होती है. धन वृ्द्धि के लिये भी यह योग अनुकुल रहता है. पर रोगो के उपचार में धन का व्यय अधिक हो सकता है.
जब कुण्डली में किसी एक भाव, राशि में स्थित ग्रह से मिलने वाले फलों का विचार किया जाता है. तो सर्वप्रथम यह देखा जाता है कि ग्रह कुण्डली के किस भाव में स्थित है, उस भाव में कौन सी राशि है, तथा उस राशि स्वामी से ग्रह के किस प्रकार के संबन्ध है. इसके अतिरिक्त इस ग्रह से अन्य आठ ग्रहों से किसी भी ग्रह का कोई संबन्ध बन रहा है या नहीं. इन सभी बातों का विचार करने के बाद ही यह निर्धारित किया जाता है कि ग्रह से किस प्रकार के फल प्राप्त हो सकते है.
प्रथम भाव में शनि के फल - व्यक्ति का स्वास्थ्य प्राय: कमजोर हो सकता है. शिक्षा क्षेत्र के लिये शनि का कन्या लग्न में प्रथम भाव में होना उतम होता है. यह योग व्यक्ति के संतान सुख में वृ्द्धि कर सकता है. इस स्थिति में आलस्य में कमी करना व्यक्ति के लिये हितकारी होता है. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में संघर्ष और परिश्रम द्वारा उन्नति प्राप्त हो सकती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल - जिस व्यक्ति कि कुण्डली में यह योग बन रहा हों, उस व्यक्ति के धन में बढोतरी हो सकती है. ऎसा व्यक्ति अपने परिवार व कुटुम्ब आदि विषयों में अधिक खर्च कर सकता है. यह योग व्यक्ति को जीवन के आजिविका के क्षेत्र में परेशानियों के बाद उन्नति प्राप्त होने की संभावनाएं देता है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल- वृ्श्चिक राशि, तीसरे भाव में शनि अपने शत्रु मंगल की राशि में होता है. जिसके कारण शत्रुओं से हानि होने की संभावना बनती है. व्यक्ति को अपने भाई- बहनों से कम सुख प्राप्त होता है. ऎसे में व्यक्ति के मित्र भी समय पर सहयोग नहीं करते है. विधा क्षेत्र से व्यक्ति को अनुकुल फल प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. तथा व्यक्ति की विधा भी उतम हो सकती है. व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में कुछ चिन्ताएं बनी रह सकती है. संतान पक्ष से सुख में कमी हो सकती है. इसके फलस्वरुप व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. तथा सामान्यत: व्यक्ति का जीवन संघर्षमय रहने की संभावनाएं बन सकती है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल -माता के सुख में कमी हो सकती है. भूमि संबन्धी मामले होते है. व्यक्ति को व्यापार के क्षेत्र में अडचनें आ सकती है. व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम स्तर का हो सकता है. मेहनत में बढोतरी कर व्यक्ति शनि के अशुभ फलों में कमी कर सकता है. परन्तु आलस्य करने पर व्यक्ति के जीवन में परेशानियां बढने कि संभावना रहती है. अपनी पूरी क्षमता से प्रयासरत रहने से व्यक्ति के सुखों में वृ्द्धि की संभावनाएं बन सकती है.
पंचम भाव में शनि के फल -इस भाव में शनि की स्थिति व्यक्ति को विधा के क्षेत्र में बाधाएं दे सकती है. यह योग व्यक्ति को गलत तरीकों से शिक्षा क्षेत्र में आगे बढने की प्रवृ्ति दे सकता है. इस स्थिति में व्यक्ति मेहनत के अतिरिक्त अन्य तरीकों से शिक्षा क्षेत्र में सफल होने का प्रयास कर सकता है. व्यक्ति धन संचय में सफल हो सकता है. पर व्यक्ति को मेहनत में कमी न करने से ही यह योग व्यक्ति को शुभ फल देता है.
छठे भाव में शनि के फल - छठे भाव में शनि कुम्भ राशि में हों तो व्यक्ति को दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए. शिक्षा के क्षेत्र में पूर्ण संघर्ष करना इस योग के व्यक्ति के लिये लाभकारी रहता है. व्यक्ति के शत्रु उसके लिये कष्ट का कारण बन सकते है. तथा धैर्य के साथ शत्रुओं का सामना करने से व्यक्ति को विजय प्राप्त होती है.
सप्तम भाव में शनि के फल -यह योग व्यक्ति को जन्म स्थान से दुर रहने पर उन्नति के योग बनते है. स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. कार्यक्षेत्र में सफल होने के लिये व्यक्ति को मेहनत के साथ साथ बुद्धि का प्रयोग भी करना लाभकारी रहता है. उसे अपने जीवन साथी संबन्धी विषयों में चिन्ता हो सकती है. तथा व्यक्ति को भूमि संबन्धी मामलों में परेशानियां का सामना करना पड सकता है.
अष्टम भाव में शनि के फल -मेष राशि में शनि अष्टम भाव में हों तो व्यक्ति की शिक्षा में कमी हो सकती है. व्यक्ति के स्वभाव में चतुराई का भाव होने की संभावनाएं बन सकती है. व्यक्ति को असमय की घटनाओं का सामना करना पड सकता है. इस स्थिति में व्यक्ति को दुर्घटनाओं से बचके रहना चाहिए. धन व सुख-सुविधाओं के विषयों में व्यक्ति को कठोर परिश्रम करना पड सकता है.
नवम भाव में शनि के फल -व्यक्ति बौद्धिक कार्यो के कारण अपने भाग्य की उन्नती करने में सफल होता है. विवादों से बचने के प्रयास करना चाहिए. यह योग व्यक्ति को नीति निपुण बनाये रखने में सहायक होता है. योग के प्रभाव से व्यक्ति के स्वभाव में चतुराई के भाव में वृ्द्धि हो सकती है. तथा शनि के नवम भाव में होने पर व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभाव शाली बना रह सकता है. व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. साथ ही साथ आय भी अधिक होने कि संभावनाएं बनती है.
दशम भाव में शनि के फल- व्यक्ति के मान-सम्मान में बढोतरी होती है. व्ययों के बढने से आर्थिक चिन्ताएं परेशान कर सकती है. व्यक्ति के माता के सुख में कमी हो सकती है. जीवन साथी का स्वास्थ्य मध्यम हो सकता है. कठिन परिश्रम करने से व्यक्ति के कार्यों की बाधाओं में कमी हो सकती है.
एकादश भाव में शनि के फल -दुर्घटना होने के भय रहते है. व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. जिसके फलस्वरुप उसके लाभों में बढोतरी हो सकती है. इस योग के व्यक्ति को अपने व्ययों पर नियन्त्रण रहता है. योग की शुभता से व्यक्ति के संतान सुख में वृ्द्धि होती है. स्वास्थ्य में कमी हो सकती है.
द्वादश भाव में शनि के फल -व्यक्ति को विदेशों से हानि होने की संभावनाएं बनती है. बुद्धि प्रयोग से व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि होती है. धन वृ्द्धि के लिये भी यह योग अनुकुल रहता है. पर रोगो के उपचार में धन का व्यय अधिक हो सकता है.
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