Monday 13 April 2015

ज्योतिष से करें शिक्षा क्षेत्र का चुनाव


बौद्धिक विकास एवं शिक्षा एक दूसरे के पूरक हैं। इसके लिए विवेक शक्ति, बुद्धि, प्रतिभा एवं स्मरण शक्ति तथा विद्या पर विचार करने की आवश्यकता होगी। सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार शिक्षा का विचार तृतीय एवं पंचम भाव से किया जाता है। जातक परिजात के अनुसार चतुर्थ एवं पंचम भावों से शिक्षा का विचार करते हैं। फलदीपिका मेंं लग्नेश, पंचम भाव और पंचमेंश के साथ ही चंद्रमा, बृहस्पति एवं बुध को शिक्षा का कारक बताया गया है। चंद्रमा लग्न स्वरूप मन का कारक है। बृहस्पति ज्ञान का नैसर्गिक कारक है, जबकि बुध विवेक शक्ति, बुद्धि, स्मरण शक्ति का कारक है। इसके अतिरिक्त शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्वस्थ तन की भी आवश्यकता है। यदि इनके साथ-साथ विद्या, बुद्धि, स्मरण शक्ति, विविध शिक्षा योगों का अध्ययन करें, तो सभी बातें स्वत: ही स्पष्ट हो जाएंगी। शिक्षा का योग बृहस्पति उच्च का हो कर पांचवें स्थान को देखता हो। बुध उच्च का हो। पंचमेंश बली हो कर 1, 4, 5 भावों मेंं हो। पंचमेंश केंद्र, या त्रिकोण मेंं हो। नवमेंश केंद्र, या त्रिकोण मेंं हो। द्वितीयश्ेा एवं बहृस्पति त्रिकोण में हो दशमेंश लग्न मेंं हो। बृहस्पति और चंद्र मेंं राशि परिवर्तन योग हो। बृहस्पति और बुध की युति, या दृष्टि संबंध हो। बृहस्पति, बुध एवं शुक्र केंद्र या त्रिकोण मेंं हों। चंद्र से त्रिकोण मेंं बृहस्पति एवं बुध से त्रिकोण मेंं मंगल हो। विद्वान योग बुध, सूर्य के साथ अपने घर मेंं हो। लग्न मेंं मंगल हो, चतुर्थ स्थान मेंं सूर्य एवं बुध हों तथा दशम भाव मेंं शनि और चंद्रमा हों, तो जातक विद्वान होता है। गणितज्ञ योग शनि-बुध ग्यारहवें भाव मेंं हों। लग्न मेंं बृहस्पति एवं अष्टम भाव मेंं शनि हों। लग्न से दूसरे, तीसरे, या पांचवें भाव मेंं केतु और बृहस्पति हों। धन भाव मेंं मंगल हो और शुभ ग्रहों की उस पर दृष्टि हो। बृहस्पति केंद्र और त्रिकोण मेंं हो। शुक्र मीन का हो एवं बुध धनेश हो। मंगल और चंद्र दूसरे भाव मेंं हों तथा केंद्र मेंं बुध स्थित हो।
चिकित्सक योग सूर्य औषधियों का कारक है। मंगल रक्त का कारक है। शनि अस्थियों, चर्म तथा मृत शरीर का कारक है। दशम भाव व्यवसाय, एकादश आय एवं द्वितीय भाव विद्या एवं धन के हैं। यदि उपर्युक्त ग्रहों का संबंध संबंधित भावों से हो, तो जातक चिकित्सा शिक्षा ग्रहण करता है। केंद्र मेंं मंगल हो और शुक्र द्वारा दृष्ट हो। केतु और बृहस्पति की युति हो। शुक्र-चंद्र की युति दशम भाव मेंं हो और सूर्य की उनपर दृष्टि हो। इंजीनियर योग सूर्य और बुध की युति केंद्र, या त्रिकोण मेंं हो। शनि पंचम भाव मेंं हो और बुध एकादश मेंं हो। राहु-मंगल की युति केंद्र, या त्रिकोण मेंं हो। शनि एवं मंगल की युति, या दृष्टि संबंध। शुक्र बली हो। उसपर मंगल, शनि, या बृहस्पति की दृष्टि हो। शनि-मंगल की युति एवं केंद्र मेंं बृहस्पति हो। अभिनेता का योग शुक्र स्वराशि का हो कर केंद्र, या त्रिकोण मेंं हो। बुध और शुक्र की युति हो। बुध चंद्रमा के नवांश मेंं हो और सूर्य द्वारा दृष्ट हो। शुक्र एवं बुध लग्नेश से युत हों तथा भाव बली हों। वृषभ, या तुला राशिस्थ मंगल पर बृहस्पति की दृष्टि हो। बुध कर्क राशि मेंं हो तथा उस पर चंद्रमा, या शुक्र की दृष्टि हो। चंद्र और शुक्र मेंं पारस्परिक युति या दृष्टि हो। पत्रकारिता का योग बली बृहस्पति, या बुध दशम भाव मेंं हो। स्वराशि का बुध, या बृहस्पति केंद्र, या त्रिकोण मेंं हो। शुक्र पर बृहस्पति की दृष्टि, या युति। चंद्रमा, गुरु और शुक्र परस्पर त्रिकोण मेंं हों। अध्यापक के योग पंचमेंश बली हो कर केंद्र मेंं स्थित हो। बुध स्वराशि का हो एवं उसपर बृहस्पति की दृष्टि, या युति हो। शुक्र एवं बृहस्पति की युति केंद्र, या त्रिकोण मेंं हो। बृहस्पति एवं मंगल की युति, या दृष्टि हो। बृहस्पति एवं चंद्र की युति, या दृष्टि हो। आध्यात्मिक योग एकादश स्थान मेंं शनि हो। दशम स्थान मेंं मीन राशि का मंगल, या बुध हो। नवमेंश स्वग्रही हो। दशमाधिपति नवम मेंं हो और बलवान नवमेंश बृहस्पति, या शुक्र से युक्त, या दृष्ट हो। लग्नेश दशम स्थान मेंं और दशमेंश नवम स्थान मेंं हों तथा उस पर पाप ग्रह की दृष्टि एवं दशमेंश शुभ ग्रह के नवमांश मेंं हो। ज्योतिषी योग बुध केंद्र मेंं हो, द्वितीयेश बली हो, या शुक्र दूसरे भाव मेंं हो। केंद्र, या त्रिकोण मेंं बुध एवं बृहस्पति की युति।
शिक्षा मेंं महत्वाकांक्षा: जन्मकुंडली का नवम भाव धर्म त्रिकोण स्थान है, जिसके स्वामी देव गुरु ब्रहस्पति है यह भाव शिक्षा मेंं महत्वाकांक्षा व उच्च शिक्षा तथा उच्च शिक्षा किस स्तर की होगी इसको दर्शाते हैं यदि इसका सम्बन्ध पंचम भाव से हो जाये तो अच्छी शिक्षा तय करते है।
शिक्षा का स्तर: जन्मकुंडली का पंचम भाव बुद्धि, ज्ञान, कल्पना, अतिन्द्रिय ज्ञान, रचनात्मक कार्य, याददाश्त व पूर्व जन्म के संचित कर्म को दर्शाता है यह शिक्षा के संकाय का स्तर तय करता है।
शिक्षा किस प्रकार की होगी: जन्मकुंडली का तृतीय भाव मन का भाव है यह इस बात का निर्धारण करता है कि आपकी मानसिक योग्यता किस प्रकार की शिक्षा मेंं होगी जब वे चतुर्थ भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवे भाव मेंं गया हो या नीच राशि, अस्त राशि, शत्रु राशि मेंं बैठा हो व कारक गृह (चंद्रमा) पीडि़त हो तो शिक्षा मेंं मन नहीं लगता है।
शिक्षा का उपयोग: जन्मकुंडली का द्वितीय भाव वाणी, धन संचय, व्यक्ति की मानसिक स्थिति को व्यक्त करता है तथा यह दर्शाता है कि शिक्षा आपने ग्रहण की है वह आपके लिए उपयोगी है या नहीं है यदि इस भाव पर पाप ग्रह का प्रभाव हो तो व्यक्ति शिक्षा का उपयोग नहीं करता है। जातक को बचपन से किस विषय की पढाई करवानी चाहिए इस हेतु हम मूलत: निम्न चार पाठ्यक्रम (विषय) ले सकते है- गणित, जीव विज्ञान, कला और वाणिज्य। कौन से विषय का चयन उसके जीवन मेंं उपयोगी होगा इसका निर्धारण जन्म कुंडली से किया जा सकता है।
शिक्षा मेंं अवरोध उत्पन्न करने वाले कारण:
राहु अगर पंचम भाव मेंं पंचमेंश से युत या दृष्ट हो और पाप पीडि़त हो, तो विद्या ग्रहण मेंं बाधा आती है। पंचमेंश पंचम भाव से अष्टम अर्थात लग्न से द्वादश भाव मेंं हो, अस्त हो या नीच राशि मेंं हो, या अन्य प्रकार से निर्बल हो, तो भी शिक्षा प्राप्ति मेंं रुकावटें आती हैं। द्वितीय भाव का स्वामी अपने भाव से अष्टम मेंं निर्बल हो, पाप पीडि़त हो तो विद्याध्ययन मेंं व्यवधान उत्पन्न होता है। द्वितीय, पंचम और पंचम से पंचम, नवम भाव पाप मध्य हों, पाप पीडि़त हों, त्रिकेश इन भावों मेंं हो, सर्वाष्टक वर्ग मेंं इन भावों मेंं शुभ रेखा अल्प हो, तो भी शिक्षा ग्रहण करने मेंं व्यवधान आता है। इसके अतिरिक्त बुद्धि का कारक बुध एवं ज्ञान का कारक ग्रह गुरु निर्बल हो, त्रिक भाव मेंं हो, अस्त हो, नीच राशि मेंं हो, पाप पीडि़त हो, तो विद्याध्ययन मेंं बाधा आती है। जातक की शिक्षा उच्च कोटि की नहीं होती है।
ऊपर वर्णित जितने अधिक घटक पाप प्रभाव मेंं होंगे, निर्बल होंगे जातक की शिक्षा मेंं उतना ही अधिक व्यवधान आएगा।
इसके अतिरिक्त शिक्षा ग्रहण काल खंड मेंं अशुभ ग्रह की दशांतर्दशा हो या शनि का प्रभाव हो, या गोचर मेंं शिक्षा से संबंधित घटक ग्रहों की स्थिति अशुभ हो तो भी विद्याध्ययन मेंं बाधा आती है। पंचम भाव से त्रिकोण मेंं शनि गोचर मेंं हो या पंचमेंश से त्रिकोण मेंं गुरु गोचर मेंं हो, तो शिक्षा के भाव पंचम का नाश होता है और विद्याध्ययन मेंं रुकावट आती है। पंचम भाव, बुध, गुरु, पंचमेंश या तृतीयेश पर एकाधिक ग्रहों का विच्छेदात्मक प्रभाव हो, तो इस स्थिति मेंं भी विद्याध्ययन मेंं व्यवधान आता है और शिक्षा के प्रति जातक की रुचि कम होती है - विशेष कर जब इन विच्छेदात्मक ग्रहों की दशांतर्दशा हो। पंचम भाव के स्वामी ग्रह का अधिशत्रु ग्रह यदि अष्टक वर्ग मेंं शुभ रेखा रहित राशि मेंं हो, तो उसकी दशा मेंं पंचम भाव प्रदर्शित विद्या के क्षेत्र मेंं व्यवधान आता है।
उपाय:
सरस्वती से संबंधित मंत्र का नियमित जप करने से विद्या मेंं सफलता के लिए निम्नोक्त मंत्र का जप करना चाहिए।
ह्रीं श्रीं ऐं वागवादिनि भगवती अर्हनमुख। निवासिनि सरस्वती ममास्ये प्रकाशं कुरू कुरू स्वाहा ऐं नम:।।
इसके साथ ही बुद्धि के देवता प्रथम पूज्य श्री गणेश का ध्यान करने से विद्या और बुद्धि का विकास होता है और अध्ययन मेंं आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
यदि शिक्षा से संबंधित ग्रह जन्मकुंडली मेंं शुभ हो परंतु निर्बल हो और अपने शुभ प्रभाव देने मेंं असमर्थ हो तो उसे बल प्रदान करने के लिए उससे संबंधित रत्न भी धारण किया जा सकता है। यदि जातक शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं हो, तो गुरु के उपाय करने चाहिए। किसी भी मंत्र का जप प्रतिदिन एक माला करें। मंत्र जप शुरू करने से पहले स्नान आदि करके शरीर को शुद्ध कर लें। मंत्र जप के लिए ब्राह्म मुहूर्त का समय सबसे उत्तम होता है। वैसे तो जब भी खाली समय हो, मंत्र का जप कर सकते हैं। जप पूर्व की ओर मुख करके करना चाहिए। जप किसी आसन पर बैठकर करना चाहिए ताकि शरीर का सीधा संपर्क जमीन से न हो। जप यथासंभव रुद्राक्ष या तुलसी की माला पर करें। जप करते समय माला को किसी वस्त्र से ढक कर रखें।

Pt.P.S Tripathi
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