Monday 13 April 2015

यकृत रोग क्या है


यकृत कार्यकरण: यकृत शरीर के अत्यंत महत्वपूर्ण अंगों मेंं से है। यकृत की कोशिकाएँ आकार मेंं सूक्ष्मदर्शी से ही देखी जा सकने योग्य हैं, परंतु ये बहुत कार्य करती हैं। एक कोशिका इतना कार्य करती हैं कि इसकी तुलना एक कारखाने से (क्योंकि यह अनेक रासायनिक यौगिक बनाती है), एक गोदाम से (ग्लाइकोजन, लोहा और बिटैमिन को संचित रखने के कारण), अपशिष्ट निपटान संयंत्र से (पिपततवर्णक, यूरिया और विविध विषहरण उत्पादों को उत्सर्जित करने के कारण) और शक्ति संयंत्र से (क्योंकि इसके अपचय से पर्याप्त ऊष्मा उत्पन्न होती है) की जा सकती है।
पित्ताशय उस पित्त को सांद्र और संचित करता है, जो उसमेंं यकृतवाहिनी और पित्ताशय वाहिनी द्वारा प्रविष्ट होता है। जब उदर और आँतों मेंं पाचन होता रहता है, तब पिताशय संकुचित होता है, जिससे सांद्रित पित्तग्रहणी मेंं निष्कासित हो जाता है। यकृत समस्त प्राणियों मेंं पाचन संबंधी समस्त क्रियाएं, शरीर मेंं रक्त की आपूर्ति के साथ शारीरिक पोषण का मुख्य आधार है। यकृत की रक्चचाप से लेकर अन्य सभी क्रियाओं के जिए जिम्मेंदार होता है। यकृत के क्षतिग्रस्त हो जाने पर जीवन असंभव हो जाता है।
जिगर की बीमारी के कारण: जिगर की विफलता के रोगों के रूप मेंं विल्सन रोग, हेपेटाइटिस (यकृत शोथ), जिगर कैंसर, क्रोनिक जिगर की सूजन (यकृत चयापचय गतिविधि मेंं परिवर्तन कर सकते हैं और अगर यह एक लंबे समय के लिए प्रभावित हो तो इसके हानिकारक प्रभाव से पूरा शरीर प्रभावित होता है।
यकृत रोग कुछ दवाओं या अल्कोहल लंबे समय से अधिक लेने से। कभी कभी लंबे समय से अधिक रोगग्रस्त जिगर, सिकुड़ा हुआ हो से हो जाता है। हैपेटाइटिस, यकृत की सूजन है। हेपेटाइटिस वायरस (ए, बी और सी) की तरह जनित वायरस के कारण होता है।
यकृत रोग के प्रकार: शराब से संबंधित जिगर की बीमारी, विष प्रेरित जिगर की बीमारी है। अगर एक लंबी अवधि के दौरान बहुत अधिक शराब सेवन किया जाए तो लीवर रोग हो जाता है। शराब से संबंधित तीन प्रकार की बीमारी हो सकती है-वसायुक्त जिगर की बीमारी, हेपेटाइटिस और अंत मेंं सरोसिस हो सकता है।
शराब से संबंधित सूजन परिवर्तन और अंत मेंं अपरिवर्तनीय ऊतक या सिरोसिस के बाद यकृत पर वसा जमने के रूप मेंं जिगर की बीमारी शुरू होती है। हेपेटाइटिस जिगर की क्षति सूजन के रूप मेंं हो जाता है।
जिगर की बीमारी चर्बी जमा होने के परिणाम स्वरूप मधुमेंह और उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल देखा जाता है। हाई ब्लड प्रैशर, सिरोसिस, द्रव, खून बहना, बढ़े हुए प्लीहा, बढ़े हुए पेट और कभी कभी पीलिया। खून बहना घेघा मेंं या मलाशय के माध्यम से हो सकता है।
ज्योतिषीय कारण: ज्योतिष मेंं कुंडली के द्वादश भावों मेंं यकृत का संबंध पंचम भाव से होता है। पंचम भाव का कारण ग्रह गुरु है। गुरु का अपना रंग पीला ही होता है और पीलिया रोग मेंं भी जब रक्त मेंं बिलीरूबिन जाता है, तो शरीर के सभी अंगों को पीला कर देता है। ऐसा पित्त के बिगडऩे से भी होता है। गुरु ग्रह भी पित्त तत्व से संबंध रखता है। पीलिया रोग मेंं बिलीरूबिन पदार्थ रक्त की सहायता से सारे शरीर मेंं फैलता है। रक्त के लाल कण मंगल के कारण होते हैं और तरल चंद्र से। इसलिए मंगल और चंद्र भी इस रोग के फैलने मेंं अपना महत्व रखते है। इस प्रकार पंचम भाव, पंचमेंश, गुरु, मंगल और चंद्र जब अशुभ प्रभावों मेंं जन्मकुंडली एवं गोचर मेंं होते हैं, तो व्यक्ति को पीलिया रोग हो जाता है। जब तक गोचर और दशांतर दशा अशुभ प्रभाव मेंं रहेंगे, तब तक जातक को पीलिया रोग रहेगा; उसके उपरांत नहीं।
विभिन्न लग्नों मेंं यकृत रोग के ज्योतिषीय कारण:
मेष लग्न: गुरु, सूर्य छठे भाव मेंं और अशुभ प्रभाव मेंं हों, तो जातक को यकृत संबंधित रोग होता है।
वृष लग्न: बुध और गुरु किसी भी भाव मेंं राहु तथा शनि से दृष्ट हों और मंगल छठे भाव मेंं स्थित या छठा भाव मंगल से दृष्ट हो, तो यकृत संबंधी रोग होते हंै।
मिथुन लग्न: मंगल दशम भाव मेंं, शुक्र छठे भाव मेंं, गुरु-चंद्र पंचम मेंं, शनि-बुध अष्टम भाव मेंं स्थित हों, तो यकृत रोग या रक्त संबंधी विकार हाते हैं।
कर्क लग्न: गुरु पंचम भाव मेंं, चंद्र छठे भाव मेंं, मंगल दूसरे भाव मेंं, शनि से दृष्ट हों, अर्थात् शनि षष्ठम मेंं रहे, तो जातक को यकृत संबंधी रोग होता है।
सिंह लग्न: गुरु पंचम भाव मेंं शनि से युति करे, राहु लग्न मेंं, सूर्य-मंगल नवम् मेंं रहें, तो यकृत संबंधी रोग से जातक पीडि़त रहता है और पीलिया रोग होता है।
कन्या लग्न: गुरु लग्न मेंं, सूर्य पंचम भाव मेंं, बुध छठे भाव मेंं, शनि सप्तम भाव मेंं, केतु नवम् मेंं हों, तो पीलिया या यकृत संबंधी रोग होता है।
तुला लग्न: शनि तृतीय भाव मेंं मंगल के साथ हो, गुरु लग्न भाव मेंं, शुक्र-बुध छठे भाव मेंं राहु के साथ हों, तो जातक को यकृत रोग होता है।
वृश्चिक लग्न: मंगल दूसरे भाव मेंं, गुरु छठे भाव मेंं, शनि चतुर्थ मेंं चंद्र के साथ हो, तो यकृत रोग होता है।
धनु लग्न: गुरु और मंगल छठे भाव मेंं शनि से दृष्ट हों, चंद्र पंचम भाव मेंं राहु के साथ या उसके द्वारा दृष्ट हो, तो यकृत रोग होता है।
मकर लग्न: शुक्र और पंचम भाव पर गुरु की दृष्टि हो, मंगल एकादश भाव मेंं केतु से दृष्ट हो, तो यकृत रोग होता है।
कुंभ लग्न: गुरु एकादश भाव मेंं, या लग्न मेंं हो, बुध पंचम मेंं सूर्य से अस्त हो और शनि छठे भाव मेंं हो, तो यकृत रोग होता है।
मीन लग्न: गुरु छठे, चंद्र आठवें, मंगल द्वादश, सूर्य-शुक्र पंचम मेंं हों और लग्न पर राहु की दृष्टि हो, तो जातक यकृत संबंधी रोग से पीडि़त होता है।
उपर्युक्त योग अशुभ कारक ग्रहों की दशाओं मेंं अशुभ गोचर ग्रहों की स्थिति से प्रभावित हो कर होते हैं।

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