Monday 13 April 2015

घर सुख संबंधी मुख्य ज्योतिषीय सिद्धांत:


घर सुख संबंधी मुख्य ज्योतिषीय सिद्धांत:
1. चतुर्थ स्थान मेंं शुभ ग्रह हों तो घर का सुख उत्तम रहता है।
2. चंद्रमा से चतुर्थ मेंं शुभ ग्रह होने पर घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं।
3. चतुर्थ स्थान पर गुरु-शुक्र की दृष्टि उच्च कोटि का गृह सुख देती है।
4. चतुर्थ स्थान का स्वामी 6, 8, 12 स्थान मेंं हो तो गृह निर्माण मेंं बाधाएँ आती हैं। उसी तरह 6, 8, 12 भावों मेंं स्वामी चतुर्थ स्थान मेंं हो तो गृह सुख बाधित हो जाता है।
5. चतुर्थ स्थान का मंगल घर मेंं आग से दुर्घटना का संकेत देता है। अशांति रहती है।
6. चतुर्थ मेंं शनि हो, शनि की राशि हो या दृष्टि हो तो घर मेंं सीलन, बीमारी व अशांति रहती है।
7. चतुर्थ स्थान का केतु घर मेंं उदासीनता देता है।
8. चतुर्थ स्थान का राहु मानसिक अशांति, पीड़ा, चोरी आदि का डर देता है।
9. चतुर्थ स्थान का अधिपति यदि राहु से अशुभ योग करे तो घर खरीदते समय या बेचते समय धोखा होने के संकेत मिलते हैं।
10. चतुर्थ स्थान का पापग्रहों से योग घर मेंं दुर्घटना, विस्फोट आदि के योग बनाता है।
11. चतुर्थ स्थान का अधिपति 1, 4, 9 या 10 मेंं होने पर गृह-सौख्य उच्च कोटि का मिलता है।
उपरोक्त संकेतों के आधार पर कुंडली का विवेचन कर घर खरीदने या निर्माण करने की शुरुआत की जाए तो लाभ हो सकता है। इसी तरह पति, पत्नी या घर के जिस सदस्य की कुंडली मेंं गृह-सौख्य के शुभ योग हों, उसके नाम से घर खरीदकर भी कई परेशानियों से बचा जा सकता है।
गुरु का योग घर बनाने वाले कारकों से होता है तो रहने के लिये घर बनता है । शनि का योग जब घर बनाने वाले कारकों से होता है तो कार्य करने के लिये घर बनने का योग होता है जिसे व्यवसायिक स्थान भी कहा जाता है। बुध किराये के लिये बनाये जाने वाले घरों के लिये अपनी सूची बनाता है तो मंगल कारखाने और डाक्टरी स्थान आदि बनाने के लिये अपनी अपनी तरह से बल देता है। लेकिन घर बनाने के लिये मुख्य कारक शुक्र का अपना बल देना भी मुख्य है।
वर्षफल के हिसाब से शुक्र जब राहु, केतु के सम्बन्ध से अछूता हो और शुभ ग्रहों के साथ बैठा हो तो मकान ही मकान बनवायेगा लेकिन जब केवल राहु, केतु के साथ हो तो मकान बनने से बर्बाद होगा और हानि देगा। पुष्य नक्षत्र से शुरू कर इसी नक्षत्र मेंं पूर्ण किया मकान अति उत्तम होता है तथा पूर्ण होने पर मकान की प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
शुभ लग्न मेंं शुरू किये मकान के लिए निम्न सावधानियां जरूरी हैं:
कोने: जमीन के टुकड़ों को एक गिन उस के कोने देखें। चार कोने वाला (90 डिग्री) का मकान सर्वोत्त्म है, आठ कोनो वाला मातमी या बीमारी देने वाला, अठारह कोनों वाला हो तो सोना, चांदी देने वाला होता है। तीन या तेरह कोनों वाला हो तो भाई बन्धुओं को मौतें, आग, फांसी देने वाला होता है। पांच कोनों वाला हो तो सन्तान का दुख व बरबादी, मध्य से बाहर या मछली की पेट की तरह उठा हुआ मकान हो तो खानदान घटेगा यानी दादा तीन, बाप दो, स्वयं अकेला और नि:सन्तान होता है।
दीवारें: कोने देखने के बाद, मकान बनाने के पहले दीवारों का क्षेत्रफल और नींव छोड़कर हरेक हिस्सा या कमरे का अंदरूनी क्षेत्रफल अलग-अलग देखा जाए तो जातक (मालिक मकान) के अपने हाथों का क्षेत्रफल भी देखा जाए। उस का हाथ चाहे 18,19 या 17 इंच का हो पैमाना उस के हाथ की लम्बाई का हो।
मुख्य द्वार: 1 पूर्व मेंं उत्तम, नेक व्यक्ति आए जाए, सुख हो। 2 पश्चिम मेंं दूसरे दर्जे का उत्तम। 3 उत्तर मेंं नेक, लम्बे सफर, पूजा पाठ नेक कार्य के लिए आने जाने का रास्ता जो परलोक सुधारे। 4 दक्षिण मेंं हानिकारक, मौत की जगह।
निम्न सावधानियां रखें नया मकान बनवाते समय:
हमारे ग्रंथ पुराणों आदि मेंं वास्तु एवं ज्योतिष से संबंधित गूढ़ रहस्यों तथा उसके सदुपयोग सम्बंधी ज्ञान का अथाह समुद्र व्याप्त है जिसके सिद्धान्तों पर चलकर मनुष्य अपने जीवन को सुखी, समृद्ध, शक्तिशाली और निरोगी बना सकता है।
सुखी परिवार अभियान मेंं वास्तु एक स्वतंत्र इकाई के रूप मेंं गठित की गयी है और उस पर श्रेष्ठ वातावरण और परिणाम के लिए वास्तु के अनुसार जीवनशैली और ग्रह का निर्माण अति आवश्यक है। इस विद्या मेंं विविधताओं के बावजूद वास्तु सम्यक उस भवन को बना सकते हैं, जिसमेंं कि कोई व्यक्ति पहले से निवास करता चला आ रहा है। वास्तु ज्ञान वस्तुत: भूमि व दिशाओं का ज्ञान है।
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