Monday 15 June 2015

अवसाद रोग



अवसाद रोग एक मानसिक रोग है, इसको ज्योतिषीय नजरिये से देखा जाए तो किसी व्यक्ति की कुंडली में उसके तीसरे स्थान का स्वामी अगर छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में बैठ जाए या तृतीयेश अपने स्थान से छठवा, आठवा या बारहवा हो जाए तो अवसाद रोग देता है। तीसरे स्थान का स्वामी भी अगर क्रूर ग्रह होकर छठवे, आठवे या बारहवे बैठे तो आक्रामक, और अगर सौम्य ग्रह हो तो अकेलेपन एवं निराशा का भाव आता है।

सब जिन्दगी में कभी न कभी थोड़े समय के लिए नाख़ुश होते हैं मगर डिप्रेशन यानी अवसाद उससे कहीं ज़्यादा गहरा, लंबा और ज़्यादा दुखद होता है. इसकी वजह से लोगों की जिन्दगी से रुचि ख़त्म होने लगती है और रोज़मर्रा के कामकाज से मन उचट जाता है. यह जरूर है कि यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया जा सका है कि अवसाद किस वजह से होता है, मगर माना जाता है कि इसमें कई चीज़ों की अहम भूमिका होती है. जिन्दगी के कई अहम पड़ाव जैसे- किसी नज़दीकी की मौत, नौकरी चले जाना या शादी का टूट जाना, आम तौर पर अवसाद की वजह बनते हैं. इनके साथ ही अगर आपके मन में हर समय कुछ बुरा होने की आशंका रहती है तो इससे भी अवसाद में जाने का ख़तरा रहता है. इसके तहत लोग सोचते रहते हैं ''मैं तो हर चीज़ में विफल हूँ. कुछ मेडिकल कारणों से भी लोगों को अवसाद होता है, जिनमें एक है थायरॉयड की कम सक्रियता होना. कुछ दवाओं के साइड इफ़ेक्ट्स में भी अवसाद हो सकता है. इनमें ब्लड प्रेशर कम करने के लिए इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाएँ भी शामिल हैं. वहीं अगर लग्र, तीसरे या एकादश स्थान में बुध हो तो तनाव या नाकारात्मक व्यवहार के कारण अवसाद आता है। इसी प्रकार इन स्थानों का स्वामी व्ययभाव में हो तो इन ग्रहों की दशाओं में अवसाद आता है। अवसाद होने के कुछ सामान्य लक्षण भी देखे जा सकते हैं जैसे:
1- मूड यानी मिज़ाज न बनना सबसे पहला लक्षण है। सामान्यतया उदासी इसमें नहीं आती लेकिन किसी भी काम या चीज़ में मन न लगना, कोई रुचि न होना, किसी बात से कोई खुशी न होनी, यहां तक गम का भी अहसास न होना अवसाद का लक्षण है.
2- नेगेटिव थोट यानी हर समय नकारात्मक सोच होना.
3- शारीरिक परेशानी जैसे नींद न आना या बहुत नींद आना. रात को दो-तीन बजे नींद का खुलना और अगर यह दो सप्ताह से अधिक चले तो अवसाद की निशानी है. इतना ही नहीं अवसाद बिना किसी एक ख़ास कारण के भी हो सकता है. ये धीरे-धीरे घर कर लेता है और बजाए मदद की कोशिश के आप उसी से संघर्ष करते रहते हैं. दिमाग के रसायन अवसाद की हालत में किस तरह की भूमिका अदा करते हैं अभी तक ये भी पूरी तरह नहीं समझा जा सका है. मगर ज़्यादातर विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि ये सिर्फ दिमाग में किसी तरह के असंतुलन की वजह से ही नहीं होता. इसके कई और भी कारण हो सकते हैं।
अवसाद किसे हो सकता है?
इसका एक छोटा जवाब है- ये किसी को भी हो सकता है. वैसे शोध से पता चलता है कि इसके पीछे कोई आनुवांशिक वजह भी हो सकती है. इसके तहत कुछ लोग जब चुनौतीपूर्ण समय से गुजऱ रहे होते हैं तो उनके अवसाद में जाने की आशंका अधिक रहती है. जिन लोगों के परिवार में अवसाद का इतिहास रहा हो वहाँ लोगों के डिप्रेस्ड होने की आशंका भी ज़्यादा होती है. इसके अलावा गुणसूत्र 3 में होने वाले कुछ आनुवांशिकीय बदलावों से भी अवसाद हो सकता है. इससे लगभग चार प्रतिशत लोग प्रभावित होते हैं.
दवाओं की भूमिका:
दिमाग में रसायन जिस तरह काम करता है, एंटी डिप्रेसेंट्स उसे प्रभावित करता है. मगर इन रसायनों की अवसाद में क्या भूमिका होती है ये पूरी तरह समझी नहीं जा सकी है और एंटी डिप्रेसेंट्स सबके लिए काम भी नहीं करते.
दिमाग में न्यूरोट्रांसमिटर जिस तरह काम करते हैं उसका संतुलन भी अवसाद के चलते बिगड़ जाता है. ये रासायनिक संदेशवाहक होते हैं जो कि न्यूरॉन्स यानी दिमाग की कोशिकाओं के बीच संपर्क कायम करते हैं.
अवसाद से बचने के 6तरीके:
1. नींद को नियमित रखें.
2. अच्छा खाना खाएंऔर समय पर खाएं.
3. तनाव तो सभी को होता है लेकिन ऐसा विचार रखना चाहिए कि इसे कैसे कम रखना है.
4. महत्वाकांक्षा को उतना ही रखना चाहिए जितना हासिल करना संभव हो.
5. परिवार के साथ जुड़े रहना चाहिए. अकेला-पन कभी न कभी अवसाद के जद में आ ही जाता है.
6. अपने कार्य में व्यस्त और मस्त रहना सीखें.
अवसाद के चिकित्सीय ईलाज:
न्यूरोट्रांसमिटर जो संदेश भेजते हैं उन्हें अगले न्यूरॉन में लगे रेसेप्टर ग्रहण करते हैं. कुछ रेसेप्टर किसी ख़ास न्यूरोट्रांसमिटर के प्रति ज़्यादा संवेदनशील हो सकते हैं या फिर असंवेदनशील हो सकते हैं. एंटी डिप्रेसेंट्स, मूड बदलने वाले न्यूरोट्रांसमिटर्स का स्तर धीरे-धीरे करके बढ़ाते हैं. सेरोटॉनिन, नॉरपाइनफ्ऱाइन और डोपामाइन जैसे न्यूरोट्रांसमिटर्स इसमें शामिल हैं. यही वजह है कि अधिकतर लोगों को ये दवाएँ कुछ हफ़्तों तक लेनी पड़ती हैं और उसके बाद ही इसका असर दिखना शुरू होता है.
एंटी डिप्रेसेंट दवाएँ सबसे पहले सन् 1950 में बनी थीं और कुल चार तरह के एंटी डिप्रेसेंट्स हैं. ये रसायन मस्तिष्क को कुछ अलग तरीकों से प्रभावित करते हैं. सबसे आम तौर पर इस्तेमाल होने वाला एंटी डिप्रेसेंट वो है जो सेरोटॉनिन का स्तर दिमाग में बढ़ा देता है. इसके अलावा सेरोटॉनिन और नॉरएड्रीनेलिन री-अपटेक इनहिबिटर्स यानी एसएनआरआई नए एंटी डिप्रेसेंट है, जो नॉरपाइनफ्ऱाइन को निशाना बनाते हैं. ट्राइसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट्स और मोनोएमाइन-ऑक्सिडेज़ इनहिबिटर्स पुराने एंटी डिप्रेसेंट्स हैं और आम तौर पर इस्तेमाल नहीं होते हैं क्योंकि उनमें साइट इफ़ेक्ट्स भी होते हैं. एंटी डिप्रेसेंट्स अवसाद के कुछ लक्षणों में तो आराम पहुँचाते हैं मगर वे उसकी मूल वजह पर असर नहीं करते. यही वजह है कि ये बाकी उपचारों के साथ इस्तेमाल होते हैं अकेले नहीं.

अवसाद के ज्योतिषीय उपाए:
कालपुरुष की कुंडली में तीसरे स्थान का स्वामी ग्रह बुध है अत: बुध की शांति हेतु बुध के मंत्रों का जाप, गणपति की पूजा, हरी वस्तुओं का दान करना चाहिए जिसमें बुध का मंत्र ''ú बुं बुधाय नम: के २८ हजार मंत्रों का जाप, बुधवार को सवा पाव हरी मंूग का दान तथा गणेश की उपासना करना इसके अलावा अवसाद की स्थिती बहुत ज्यादा हो तो ४३ सिक्के चार गीले नारियल और सवा किलो खड़ा मंूग बहते पानी में प्रवाहित करना चाहिए।
जातक की कुंडली के तीसरे भाव का विश£ेषण कराकर उस ग्रह से संबंधित मंत्र जाप, दान तथा व्रत करना चाहिए।


Pt.P.S Tripathi
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