Monday, 13 April 2015

माइग्रेन कारण, लक्षण और ज्योतिष उपाय


अगर आप हर रोज सिर पकड़ कर बैठ जाते हैं, या फिर सिर के एक तरफ उठने वाले तेज दर्द से बेहाल हो उठते हैं, तो सावधान हो जाएं। अपने सिर के इस दर्द को हल्के मेंं कतई न लें, क्योंकि सिर मेंं उठने वाला यह तेज़ दर्द माइग्रेन भी हो सकता है। माइग्रेन, एक ऐसी बीमारी जिसके मरीज दुनियाभर मेंं लगातार बढ़ते जा रहे हैं। हमारे देश मेंं भी इसकी तादाद बढ़ती जा रही है। सबसे बड़ा कारण है भागदौड़ की जिंदगी। जो तनाव से तो भरपूर है पर उससे मुक्त होने के लिए हम कोई उपाय नहीं करते। बस यही सारी वजहें धीरे-धीरे माइग्रेन के रुप मेंं बदलने लगती हैं।
माना जाता है कि जैसे ही आप सामान्य स्थिति से एकदम तनाव भरे माहौल मेंं पहुंचते हैं तो सबसे पहले आपका सिर दर्द बढ़ता है। ब्लडप्रेशर हाई होने लगता है और लगातार ऐसी स्थितियां आपके सामने बनने लगे तो समझिए आप माइग्रेन के शिकार हो रहे हैं। सिरदर्द से हर किसी का वास्ता है। ये एक ऐसा रोग है जिसके कई कारण हो सकते हैं। कई बार तो ऐसा लगता है जैसे बेवजह सिरदर्द के शिकार हो गए हों। सिरदर्द का एक गंभीर रूप जो बार-बार या लगातार होता है, उसे माइग्रेन कहते हैं। माइग्रेन को आम बोलचाल की भाषा मेंं अधकपारी भी कहते हैं। माइग्रेन का दर्द सिर के एक ही हिस्से मेंं होता है। यह दर्द असहनीय होता है और ऐसा लगता है जैसे किसी ने सिर के एक हिस्से मेंं सुइयां चुभो दी हों। माइग्रेन का यह दर्द लगातार तीन दिन तक बना रह सकता है। इसके अलावा इस दर्द मेंं मितली, उल्टी और गैस की समस्या भी हो सकती है। दर्द बढऩे पर खतरनाक भी साबित हो सकता है। कई बार माइग्रेन ब्रेन हेमरेज या लकवे की वजह भी बन जाता है। माइग्रेन होने के कई कारण हो सकते हैं, चिकित्सकीय रूप मेंं माइग्रेन के कारणों मेंं प्रमुख रूप से हाई ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और तनाव की समस्या होने पर माइग्रेन होने का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा ज्यादा मात्रा मेंं एल्कोहल के सेवन से भी माइग्रेन होने की संभावना बनी रहती है। शरीर मेंं संक्रमण और किसी तरह के विषैले तत्वों के जमाव की वजह से भी माइग्रेन हो सकता है।
इसके अलावा अपनी संवेदनाओं और भावनाओं को दबाने की वजह से भी माइग्रेन होने की संभावना रहती है। माइग्रेन का कारण आनुवंशिक भी हो सकता है। माइग्रेन की यह समस्या हार्मोनल अंसुतलन की वजह से लड़कों की अपेक्षा लड़कियों मेंं ज्यादा होती है। भरपूर नींद न लेने, भूखे पेट रहने और पर्याप्त मात्रा मेंं पानी न पीने की वजह से भी माइग्रेन की शिकायत हो सकती है। यदि सर मेंं अचानक बहुत तेज़, सिर दर्द होता हो या गर्दन मेंं अकडऩ, बुखार, बेहोशी या आंख या कान मेंं दर्द होना इत्यादि की शिकायत हो तो यह एक गंभीर विकार भी हो सकता है।
किंतु माइग्रेन के ज्योतिष कारण भी होते हैं यदि किसी की जन्मकुंडली देखें तो उसके स्वास्थ्य की स्थिति क्या है, इसकी जानकारी ज्योतिष मेंं बहुत पहले ही जानी जा सकती है। प्राचीन समय मेंं प्रसिद्ध रोग विज्ञानी हिप्पोक्रेट्स सबसे पहले व्यक्ति की जन्मसंबंधी तालिका का अध्ययन करता था और फिर उपचार संबंधी कोई निर्णय लेता था!
कोई व्यक्ति किस रोग से पीडि़त होता है, यह इस पर निर्भर करता है कि उसके भाव या राशि का संबंध जन्म कुंडली मेंं कौन से अनिष्टकर ग्रह से किस रूप मेंं है। ऐसा इसलिए है कि प्रत्येक राशि एक या एकाधिक शारीरिक अंगों से जुड़ी होती है। इसके साथ ही प्रत्येक ग्रह वायु, अग्नि, जल या आर्द्र प्रकृति वाला कोई एक प्रभुत्वकारी गुण लिए हुए होता है। आयुर्वेद मेंं इसे वात-पित्त-कफ के रूप मेंं बताया गया है। इस तरह राशि चक्र मेंं अंकित शारीरिक अंग और प्रभुत्वकारी ग्रह की विशेषता के मेंल से यह तय होता है कि किस व्यक्ति को कौन-सी बीमारी होगी।
सिर, मस्तिष्क एवं आंखों, विशेष रूप से सर का अगला हिस्सा, आंखों से नीचे और सर के पीछे वाले हिस्से से लेकर खोपड़ी के आधार तक का हिस्सा मेष राशि द्वारा नियंत्रित होता है। यह मंगल को प्रतिबिंबित करता है जो दिमाग मेंं अग्निमय ऊर्जा का स्रोत है। सूर्य, चंद्रमा या मेष का कोई अन्य उदीयमान ग्रह जिस व्यक्ति के साथ जुड़ा होगा उसके सरदर्द की संभावना अन्य लोगों की तुलना मेंं अधिक होगी।
यदि सूर्य पहले, दूसरे या बारहवें घर मेंं विघ्नपूर्ण है या मंगल बहुत कमजोर है या नीच के चंद्रमा के साथ दाहक स्थिति मेंं है तब ऐसे लोग अधकपारी सरदर्द (माइग्रेन) से पीडि़त होंगे। साथ ही यदि अनिष्टकर सूर्य या मंगल छठे घर मेंं बैठा है (व्यक्ति की जन्म कुंडली मेंं रोगों का द्योतक) तो व्यक्ति सरदर्द का शिकार होगा।
जन्मपत्री की कमजोरी और/या जन्मपत्री मेंं उच्च स्थान पर बैठे अनिष्टकर देव के कारण एक रोगकारी परिस्थिति निर्मित होती है। इससे सरदर्द की संभावना बनती है। मजबूत सूर्य और मंगल, जो कि क्रमश: प्राण क्षमता और ऊर्जा के प्रतीक हैं, सुरक्षात्मक कवच प्रदान करते हैं।
इस तरह माइग्रेन को दूर करने के चिकित्सकीय उपाय के साथ ज्योतिषीय उपाय सबसे बेहद प्रभावी उपायों मेंं से एक यह है कि सुबह उठकर सूर्य की ओर देखकर कम से कम 42 दिनों तक 3, 11, 21, 51 या 108बार ओम सूर्याय: नम: या ओम आदित्याय नम: या गायत्री मंत्र का जाप करें या सूर्य नमस्कार करें। धन्वंतरि होम और मंगल होम का आयोजन करने से भी प्रभावी तौर पर अनिष्टकर ग्रहों के प्रभाव दूर हो जाते हैं और इस प्रकार सरदर्द आपसे मीलों दूर चला जाता है। मंगलवार को सूर्योदय के समय किसी चौराहे पर जाएं और एक टुकड़ा गुड़ को दांत से दो भागों मेंं बांट कर दो अलग-अलग दिशाओं मेंं फेंक दें। 5 सप्ताह लगातार यह क्रिया करें, माईग्रेन मेंं लाभ होगा।
रविवार के दिन 325 ग्राम दूध अपने सिरहाने रख कर सोएं। सोमवार को सुबह उठकर दूध को पीपल के पेड़ पर चढ़ा दें, 5 रविवार यह क्रिया करें, निश्चित लाभ होगा। माइग्रेन (आधे सिर मेंं दर्द) रोग का इलाज करने के लिए प्रतिदिन ध्यान, शवासन, योगनिद्रा, प्राणायाम या फिर योगासन क्रिया करनी चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों मेंं ठीक हो जाता है।

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बाबा, जो लगाते हैं भूतों का मेला



आज जहां वैज्ञानिक ब्रह्मांड को भेद कर मंगल तक पहुंच चुके हैं, वहीं बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के वाल्मीकि नगर स्टेशन के समीप एक गांव में एक बाबा द्वारा भूतों का मेला लगाकर आस्था के नाम पर अड्डंधविश्वास का खुल्लमखुल्ला खेल खेला जा रहा है। यह मेला प्रत्येक माह पूर्णिमा के दिन लगता है। इस मेले में नेपाल, उत्तर प्रदेश और बिहार के कई जिलों से हजारों की संख्या में पीडि़त महिलाएं आकर बाबा के दरबार में दुआ की भीख मांगती हैं।
आस्था के नाम पर लगने वाले इस मेले में आने वाले पीडि़तों की फेहरिस्त हर बार लंबी होती जाती है। पीडि़त महिलाओं की झाड़-फूंक के बाद भूत भगाने के लिए बाबा द्वारा पेड़ में कील ठोंककर बांध दिया जाता है। वाल्मीकि नगर के इस गांव में चार वर्ष पूर्व, इस भूत का मेला लगाने वाले बाबा का आगमन हुआ था, धीरे-धीरे अंधविश्वास का जाल फैलता गया और धर्म के नाम पर भूतों से निजात दिलाने का ठेका इस बाबा ने ले लिया।
बाबा कैसे करते हैं पीडि़तों का इलाज:
पूर्णिमा के एक दिन पहले हजारों की संख्या में महिलाएं मेला में पहुंच जाती हैं। अगले दिन सुबह गांव के समीप स्थित एक तालाब में स्नान करती हैं, उसके बाद पीपल के पेड़ के नीचे कतारबद्ध होकर वहां गाड़े गये ध्वजा की तरफ ध्यान लगाकर बैठ जाती हैं। इसी बीच पुजारी करेंट बाबा (बदला हुआ नाम) आते हैं और लाइन में बैठी पीडि़ताओं को एक कुआं से जल निकालकर पीने के लिए देते हैं। जल पीने के बाद महिलाओं पर भूत का नशा सवार हो जाता है। इसके बाद वे झूमने और तरह-तरह की हरकतें शुरू कर देती हैं।
पीडि़त महिलाएं जमीन पर हाथ-पैर पटक-पटक कर चिल्लाने लगती हैं, वहीं अपने सिर को हिला-हिलाकर गीत गाने लगती हैं। इस क्रम में उनके खुले बाल और चेहरे को देखकर ऐसा लगता है कि मानो भूत इन महिलाओं पर सवार हो गया है। बाबा कुछ देर बाद महिलाओं को फिर जल पिलाते हैं। इसके बाद वे थोड़ी देर के लिए शांत पड़ जाती हैं। फिर देर रात झांड़-फूंक के बाद बाबा के द्वारा पीपल के पेड़ में एक-एक कील ठोंककर यह कहा जाता है कि तीन बार यहां आने के बाद भूत खुद ही भाग जाएगा।
अय्याशी भी करते हैं बाबा:
मेले में आने वाली महिलाओं के साथ बाबा द्वारा अय्याशी करने की भी सूचना है। बाबा संभ्रांत परिवार की वैसी महिलाओं को अपना निशाना बनाते हैं, जिन्हें बेटा नहीं हो रहा हो या फिर शादी के बाद उनका पति परदेश चला गया हो। हालांकि, इस बात की कहीं से पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन बाबा की अय्याशी स्थानीय लोगों में चर्चा का विषय बनी हुई है। बहरहाल, विज्ञान के नित्य नये खोजों के बीच अंधविश्वास के प्रति बढ़ रहा आस्था का यह खेल कई सवालों को जन्म दे रहा है।

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कितने इन्द्र?


चीपति इन्द्र कोई साधारण देवता नहीं, अपितु एक मन्वन्तर तक स्वर्ग के अधिपति हैं। उन्हें इकहत्तर दिव्य युगों तक दिव्य लोकों का साम्राज्य प्राप्त रहा। तब उन्हें गर्व क्यों न होता? जिस प्रकार किसी का गर्व भंग होता है, उसी प्रकार इन्द्र के गर्व का भंग होना भी स्वाभाविक था। यद्यपि गोवर्द्धन-धारण, पारिजात-हरण आदि अनेक प्रसंगों के माध्यम से इन्द्र का कई बार मानभंग होता रहा। मेघनाद, रावण और हिरण्यकशिपु आदि ने भी जब भय दिखाया तो अनेक बार इन्द्र को दुष्यन्त, खट्वांग, अर्जुन आदि से सहायता की याचना करनी पड़ी। मेघनाद ने तो इन्द्र को पराजित करके ही इन्द्रजीत पद प्राप्त किया था।
इस प्रकार इन्द्र के गर्व-मन्थन की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक कथा यह भी है कि इन्द्र ने एक बार अपना विशाल महल बनाने का आयोजन किया। इसके निर्माण के लिए विश्वकर्मा को नियुक्त किया गया, जिसमें पूरे सौ वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी भवन पूर्ण न हुआ। इससे विश्वकर्मा बड़े श्रान्त रहने लगे। अन्य कोई उपाय न देख विश्वकर्मा ने ब्रह्मा जी की शरण पकड़ी।
ब्रह्मा जी को इन्द्र पर हँसी आयी और विश्वकर्मा पर दया। ब्रह्मा ने बटुक का रूप धारण किया और इन्द्र के पास जाकर पूछने लगे, 'देवेन्द्र! मैं आपके अद्भुत भवन के निर्माण की बात सुनकर यहाँ आया तो वास्तव में वैसा ही भवन देख रहा हूँ। इस भवन के निर्माण में कितने विश्वकर्माओं को आपने लगाया हुआ है?
इन्द्र बोले, 'क्या अनर्गल बात पूछ रहे हैं आप? क्या विश्वकर्मा भी अनेक होते हैं?
'बस देवेन्द्र! इतने प्रश्न से ही आप घबरा गये? सृष्टि कितने प्रकार की है, ब्रह्मा कितने हैं, ब्रह्माण्ड कितने हैं, उन-उन ब्रह्माण्डों में कितने इन्द्र और कितने विश्वकर्मा पड़े हैं, यह कौन जान सकता है? यदि कोई पृथ्वी के धूलिकणों को गिन भी सके, तो भी विश्वकर्मा अथवा इन्द्र की संख्या तो गिनी ही नहीं जा सकती। जिस प्रकार जल में नौकाएँ दीखती हैं, उसी प्रकार विष्णु के सुनिर्मल सागर में असंख्य ब्रह्माण्ड तैरते दीखते हैं।
ब्राह्मण बटुक और इन्द्र में इस प्रकार का वार्तालाप चल ही रहा था कि तभी वहाँ पर दो सौ गज लम्बा-चौड़ा चींटियों का एक विशाल समुदाय दिखाई दिया। उन्हें देखते ही सहसा बटुक को हँसी आ गयी। इन्द्र को विस्मय हुआ तो उसने बटुक से पूछा, 'महासय! अब आप क्यों हंस रहे हैं?
'देवराज! मुझे हँसी इसलिए आयी कि यह जो आप चींटियों का समूह देख रहे हैं न, वे सब-की-सब कभी इन्द्र के पद पर प्रतिष्ठित रह चुकी हैं। इसमें आश्चर्य करने की कोई बात नहीं है, क्योंकि कर्मों की गति ही कुछ इस प्रकार की है। जो आज देवलोक में है, वह दूसरे ही क्षण कभी कीट, वृक्ष या अन्य स्थावर योनियों को प्राप्त हो सकता है।
इन्द्र को बटुक यह प्रकार समझा ही रहे थे कि तभी उज्ज्वल तिलक लगाये एक वयोवृद्ध महात्मा वहाँ आ पहुँचे। बटुक ने उनसे प्रश्न किया, 'महात्मन! आप कहाँ से पधारे हैं? आपका शुभ नाम क्या है? आपका निवास-स्थान कहाँ है? आप किस दिशा में जा रहे हैं? आपके वक्षस्थल पर यह लोमचक्र कैसा है?
आगन्तुक मुनि ने कहा, 'बटुकश्रेष्ठ! वक्षस्थल के लोमचक्रों के कारण लोग मुझे लोमश कहते हैं। मेरे वक्षस्थल के रोम मेरी आयु-संख्या के प्रमाण हैं। जब एक इन्द्र का पतन होता है तो मेरा एक रोआँ गिर पड़ता है। यही मेरे उखड़े हुए कुछ रोमों का रहस्य भी है। ब्रह्मा के दो परार्ध बीतने पर मेरी मृत्यु कही जाती है। असंख्य ब्रह्मा मर गये और मरेंगे। ऐसी दशा में मैं मोह-माया लगाकर क्या करूँगा? भगवान की भक्ति ही सर्वोपरि, सर्व-सुखद और दुर्लभ है। यह मोक्ष से भी बढ़कर है। ऐश्वर्य तो भक्ति में रुकावट तथा स्वप्नवत् मिथ्या है।बटुक के प्रश्नों का इस प्रकार उत्तर देकर महर्षि लोमश वहाँ से आगे चल दिये। ब्राह्मण बटुक भी वहाँ से अन्तर्धान हो गये।
यह सब देखकर इन्द्र को बड़ा विस्मय हुआ। उसके होश और जोश सब ठण्डे हो गये। बात कुछ समझ भी आ गयी। फिर क्या था! इन्द्र ने विश्वकर्मा को बुलाकर उनका मेहनताना देकर हाथ जोड़ दिये कि उनका भवन जितना और जैसा बनना था, वह बन गया है, अब उनको परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है।
फिर इन्द्र ने वहीं से तत्काल वन के लिए प्रस्थान कर दिया। इन्द्र के इस प्रकार सहसा देवलोक से विलुप्त हो जाने का समाचार गुरुदेव बृहस्पति को ज्ञात हुआ तो उन्होंने इन्द्र की खोज करवायी और उनसे कहा कि उनका इस प्रकार सहसा वन को चले जाना उचित नहीं है। उन्होंने समझाया कि सब कार्य अपने समय पर और अपने नियम के अनुसार ही होने चाहिए, भावुकता के आधार पर नहीं। देवगुरु का उपदेश सुनकर इन्द्र को सद्बुद्धि आयी। उन्हें अपने कर्म की अनुभूति हुई। उन्होंने लौटकर पुन: अपना राजपाट और इन्द्रासन सँभाल लिया और लेकिन व्यर्थ के व्यसन और लोलुपता त्याग दिया।

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शांति की चाह और हिंसा की राह ये किसके सपनो का पाकिस्तान



पाकिस्तान इस्लामी गणतंत्र या सिर्फ पाकिस्तान, भारत के पश्चिम में स्थित एक इस्लामी गणराज्य है। यहाँ की प्रमुख भाषाएँ उर्दू, पंजाबी, सिंधी, बलूची और पश्तो हैं। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद और अन्य महत्वपूर्ण नगर कराची व लाहौर हैं। पाकिस्तान के चार सूबे हैं पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान और ख़ैबर-पख्तूनख्वा। कबाइली इलाके और इस्लामाबाद भी पाकिस्तान में शामिल हैं। पाकिस्तान का जन्म सन् 1947 में भारत के विभाजन के फलस्वरूप हुआ था। सर्वप्रथम सन् 1930 में कवि (शायर) मुहम्मद इकबाल ने द्विराष्ट्र सिद्धान्त का जिक्र किया था। उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिम में सिन्ध, बलूचिस्तान, पंजाब तथा अफगान (सूबा-ए-सरहद) को मिलाकर एक नया राष्ट्र बनाने की बात की थी। सन् 1933 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने पंजाब, सिन्ध, कश्मीर तथा बलोचिस्तान के लोगों के लिए पाक्स्तान (जो बाद में पाकिस्तान बना) शब्द का सृजन किया। सन् 1947 से 1972 तक पाकिस्तान दो भागों में बंटा रहा- पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। दिसम्बर, सन् 1971 में भारत के साथ हुई लड़ाई के फलस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना और पश्चिमी पाकिस्तान, पाकिस्तान रह गया।
अब बात करे यदि भारत की तो, भारत के अधिकतर देशों के साथ औपचारिक राजनयिक सम्बन्ध हैं। जनसंख्या की दृष्टि से यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्रात्मक व्यवस्था वाला देश भी है और इसकी अर्थव्यवस्था, विश्व की बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। बात की जाए अगर भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंध की तो, ज्यादा बेहतर नहीं रहे हैं। दोनों देशों के संबंध हमेशा से ही ऐतिहासिक और राजनैतिक मुद्दों कि वजह से तनाव में रहे हैं। इस तनाव की मूल वजह भारत से पाकिस्तान का विभाजन है। ''कश्मीर-विवाद इन दोनों देशों को आज तक उलझाए हुये है और दोनों देश कई बार इस विवाद को लेकर सैनिक कार्रवाई कर चुके हैं। इन देशों में सीमा को लेकर निरंतर तनाव मौजूद रहता है, हालांकि दोनों ही देश एक दूजे के इतिहास, सभ्यता, भूगोल और अर्थव्यवस्था से जुड़े हुए हैं।
''एक बड़े क्षेत्र के बहुसंख्यकों को उनकी इच्छा के विपरीत एक ऐसी सरकार के शासन में रहने के लिए बाध्य नहीं किया सकता, जिसमें दूसरे समुदाय के लोगों का बहुमत हो और इसका एकमात्र विकल्प है विभाजन...। यह कथन था अंतिम अंग्रेज वायसराय, लॉर्ड माउंटबेटन का। इन शब्दों के साथ ही भारत में ब्रिटेन के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने घोषणा की थी कि ब्रिटेन एक देश को नहीं बल्कि दो देश को स्वतंत्रता देने जा रहा है। यह बात उस समय की है जब भारत आजाद नहीं हुआ था। १९४० के बाद जब आजादी पुख्ता होने लगी, हिन्दुओं और मुस्लिमों के आपसी स्वार्थ आपस में टकराने लगे। इसके बाद गुटबाजियाँ शुरू हो गईं और अपने-अपने समुदाय के नेता चुन लिये गए। परिणाम यह हुआ कि १९४७ के आते-आते यह मुद्दा इस मुकाम पर आ गया कि भारत और पाकिस्तान का अलग होना समय की मांग हो गई। माउंटबेटन ने अपना यह बयान 3 जून 1947 को दिया था और उसके 10 सप्ताह बाद ही उन्होंने दोनों देशों के स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग भी लिया।
14 अगस्त को कराची में वे, स्पष्ट मुस्लिम पहचान के साथ गठित राष्ट्र के गवाह बने और इसके अगले दिन दिल्ली में भारत के पहले स्वतंत्रता दिवस समारोह में हिस्सा लिया। भारत की आबादी पाकिस्तान की तीन गुनी थी और ज़्यादातर लोग हिंदू थे। ब्रिटिश जज रैडक्लिफ को दोनों देशों के बीच सीमा का निर्धारण करने का दायित्व सौंपा गया था। रैडक्लिफ न तो इससे पहले भारत आए थे और न ही इसके बाद कभी आए। इसके बावजूद उन्होंने दोनों देशों के बीच जो सीमारेखा खींची उससे करोड़ों लोग अंसतुष्ट हो गए। जल्दबाजी में किए गए इस विभाजन ने 20वीं शताब्दी की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक को जन्म दिया। करोड़ों मुस्लिम सीमा के एक तरफ और हिंदू-सिख दूसरी तरफ पहुँच गए। भारी संख्या में दोनों तरफ के लोगों को सीमा के पार जाना पड़ा। तनाव बढ़ा और सांप्रदायिक संघर्ष शुरू हो गए इसमें कितने लोग मारे गए इसका सही आँकड़ा कोई नहीं बता सकता। किंतु आजादी के दो दिन बाद ही जब यह घोषणा हो गई कि सीमाएं कहाँ होंगी तो पंजाब हिंसा की आग में जल उठा। इसके बाद से वर्षों से यह सीमा विवाद बहस का विषय बना हुआ है।
जम्मू-कश्मीर भारत और पाकिस्तान की सीमा पर मुस्लिम बहुल राज्य था लेकिन यह किस देश के साथ जुड़े ये फैसला जम्मू-कश्मीर के हिंदू शासक को करना था। आजादी के कुछ ही महीनों बाद कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान में युद्ध शुरू हो गया लेकिन इस विवाद का अब तक कोई हल नहीं निकल पाया। पाकिस्तान के भूगोल को लेकर भी गंभीर समस्या थी। इसके पूर्वी हिस्से में बंगाली बोलने वाले लोगों का बहुमत था और पश्चिमी हिस्से में पंजाबी बहुल लोग थे। पूर्वी हिस्से की जनसंख्या अधिक थी लेकिन सत्ता और प्रभाव पश्चिमी पाकिस्तान का अधिक था। वर्ष 1971 में भारतीय सेना ने पश्चिमी पाकिस्तान से आजादी के संघर्ष में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों का साथ दिया और एक नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ।
भारत और पाकिस्तान में लगातार प्रतिद्वंद्विता बनी रही और इसकी वजह से दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग कभी पनप नहीं पाया। भारत में आज भी बड़ी संख्या में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, कुल आबादी का लगभग सातवां हिस्सा। इस वजह से पाकिस्तान से तनाव के कारण भारत की धर्मनिरपेक्ष जीवन पद्धति और धार्मिक सहिष्णुता झुलसती रही। 1980 के दशक के अंत में कश्मीर में अलगाववादी गतिविधि शुरू होने के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्ते और भी खऱाब हो गए। पाकिस्तान लगातार कहता रहा है कि वह कश्मीर के अलगाववादियों को सिर्फ नैतिक समर्थन दे रहा है जबकि सच यह है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान, मुस्लिम चरमपंथियों को संगठित करने के साथ ही हथियार मुहैया करा रहा और प्रशिक्षण भी दे रहा है।
इतिहास के पन्नों में झाका जाए तो देखेंगे, भारत और पाकिस्तान, उस हिंसा के साए से निकलने के लिए निरंतर कोशिश करते रहे हैं जिसके कारण दोनों देशों का जन्म हुआ था। कश्मीर अधूरे विभाजन का एक पहलू भर है। दोनों देशों के बीच राष्ट्रीय पहचान बिल्कुल अलग हैं। इन सबके बावजूद भारत और पाकिस्तान थोड़ी झिझक और कभी-कभी दर्द के साथ ही रिश्तों में मिठास घोलने की कोशिश करते हैं। अगर यह सफल हो गया तो दक्षिण एशिया में 1947 के विभाजन की कड़वी यादें हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगी। इतिहास गवाह है कि भारत और पाकिस्तान को तीन युध्दों से बरबादी के अलावा कुछ और हासिल नहीं हुआ। भारत में रक्षा आवंटन पिछले साल की तुलना में करीब 12.5 फीसदी बढ़ाकर 2,29,000 करोड़ रुपये किया गया है। जबकि वहीं पिछले वर्ष के वित्तीय बजट में पाक का रक्षा बजट 627 अरब रुपए था और वर्ष 2014-15 के वित्तीय बजट में इसकी राशि बढ़ाकर 700 अरब रुपए कर दी गई है। सुरक्षा के नाम पर दोनों देशों का रक्षा बजट हर साल बढ़ता जा रहा है। दोनों देश सम्पन्न राष्ट्रों की श्रेणी में नहीं आते। रक्षा बजट पर खर्च होने वाली राशि यदि शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और आधारभूत ढांचे को मजबूत करने पर खर्च हो तो दोनों देशों की तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी।
भारत-पाक विभाजन में जिन्ना की भूमिका:
मोहम्मद अली जिन्ना का जन्म 20 अक्टूबर 1875 को हुआ था। वे बीसवीं सदी के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे जिन्हें पाकिस्तान के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। वे मुस्लिम लीग के नेता थे जो आगे चलकर पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल बने। पाकिस्तान में, उन्हें आधिकारिक रूप से क़ायदे-आज़म यानी महान नेता और बाबा-ए-कौम यानी राष्ट्रपिता के नाम से नवाजा जाता है। 1896 में जिन्ना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गये। तब तक कांग्रेस भारतीय राजनीतिक का सबसे बड़ा संगठन बन चुका था। मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में हुई। शुरु-शुरू में जिन्ना अखिल भारतीय मुस्लिम लीग में शामिल होने से बचते रहे, लेकिन मुस्लिम लीग का अध्यक्ष बनते ही जिन्ना का यह विचार बिल्कुल पक्का हो गया कि हिन्दू और मुसलमान दोनों अलग-अलग देश के नागरिक हैं अत: उन्हें अलहदा कर दिया जाये। उनका यही विचार बाद में जाकर जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद का सिद्धान्त कहलाया। इन्हीं वजह से 1947 ई. में भारत का विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना हुई। पाकिस्तान के पहले गवर्नर-जनरल बनकर उन्होंने पाकिस्तान को एक इस्लामी राष्ट्र बनाया। भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का मुद्दा भी उन्होंने ही खड़ा किया।
11 सितंबर 1948 को मौत से पहले उन्होंने अपने डॉक्टर कर्नल इलाही बख्श से गहरी उदासी के आलम में कहा था- ''डॉक्टर! पाकिस्तान मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल है। पाकिस्तान में मौजूदा मार-काट बताती है कि मुसलमानों को एक राष्ट्र बताकर आधुनिक, लोक-तांत्रिक और धर्म-निरपेक्ष पाकिस्तान बनाने का जिन्ना का सपना दम तोड़ चुका है।
ज्योतिषीय आंकड़ो में भारत और पाकिस्तान संबंध:
पाकिस्तान का जन्म 14 अगस्त, 1927 को रात्रि 11 बजकर 28मिनट पर कराची में हुआ। इसका जन्म लग्र मेष और राशि कर्क हुआ। इस देश की राजनीति के केंद्र में बुलेट है, क्योंकि लग्रेश मंगल तृतीय स्थान पर है। स्वतंत्रता के बाद से इस देश में लगातार तानाशाह हुए या सेना हावी रही। सप्तमेश, तृतीयेश और दशमेष सभी शनि से आक्रांत यानि इस देश की राजनीति के केंद्र में ही घृणा है। इसके ठीक इतर आवाम में ऐसी बातें नहीं देखने को मिलती मगर सत्ता की दीवारें बड़ी सख़्त और उंची है। शनि के वृश्चिक राशि में प्रवेश के बाद से पाकिस्तान में भी बदलाव की बयार बहनी शुरू होगी। जब वृश्चिक के शनि अपना असर दिखाना शुरू करेंगे तब ४ नवंबर २०१४ के गोचर के अनुसार पाकिस्तान की कुंडली में दशम स्थान का मंगल एवं भाग्यस्थ शनि साथ ही तृतीयेश शुक्र के अष्टमस्थ होने के कारण विवादित क्षेत्रों को लेकर पाकिस्तान सरकार को बड़े कठिन समय देखने होंगे जो कि पूरे ढाई साल चलने वाला है। इसी समय आईएसआईएस, मुस्लिम बाहुल्य देशों में अपना वर्चस्व कायम रखने का पूरा प्रयास करेगा, जिसका मकसद है पैसा और ताकत हथियाना। अर्थात् आने वाले ढाई साल पाकिस्तान के राजनेताओं और अवाम दोनों को परेशान करने वाला है। पाकिस्तान इस समय गम्भीर आर्थिक संकटों से घिरा हुआ है। सन 2008के बाद से ही वहाँ की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी हुई है। चूंकि वर्तमान गोचर के अनुसार चतुर्थेश बुध, राहु से पापाक्रांत होकर सप्तमस्थ है, अत: पाकिस्तान की जनता इन भीषण परिस्थितियों का शिकार है। यहां की अवाम एक ओर वह आर्थिक संकटों से जूझ रही है तो दूसरी ओर कट्टरपंथियों और आतंकियों का दंश भी बर्दाश्त कर रही है। आने वाले ढाई साल वहां आर्थिक स्थिति बदहाली की ओर पहुंच जायेगी ऐसी स्थिति में सैन्य पर बढ़ता खर्चा सत्ता के खिलाफ बगावत भी करा सकता है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में स्वतंत्रता की आवाज भी उंची हो सकती है। ४ नवंबर २०१४ के ही गोचर के अनुसार भारत की कुंडली में भाग्येश शनि, सप्तमस्थ और तृतीयेश चंद्रमा के एकादशेश होकर केतु के साथ होने से भारत में चहुं ओर विकास होगा। रहीं बात भारत और पाकिस्तान के आपसी रिश्तों की तो ज्योतिष के हिसाब से अभी ये बेहतर होते नहीं दिख सकते हैं। संकेत यह भी है कि अगर पाक के नापाक इरादे यहीं नहीं रुके तो गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। एक बात और गौरतलब है कि जैसा कि पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तानी सीमा से सीज फायर का लगातार उल्लंघन किया जा रहा है और उस पर 'बिलावल जैसे नौसिखिया नेताओं की बयानबाजी हो रही है, उससे लगता नहीं है कि पाकिस्तान किसी तरह की शांति और अमन की चाहत अब भी रख रहा है। ज्योतिषीय आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान का आने वाला निकटतम भविष्य ज्यादा अच्छा नहीं रहने वाला है, एवं उसे वैश्विक दवाब का सामना भी करना पड़ सकता है।

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बच्चों से सुख मिलेगा या नहीं?


कि तने बच्चे होंगे आपके? अगर यह जानना चाहते हैं कि आपके कितने बच्चे होंगे और बच्चों से आपको सुख मिलेगा या नहीं। बच्चे गुणवान होंगे या बदमाश तो यह सब आप खुद अपनी हथेली देखकर जान सकते हैं। समुद्रशास्त्र मेंं बताया गया है कि हथेली मेंं सबसे छोटी उंगली के नीचे दिखने वाली खड़ी रेखाओं को एवं अंगूठे के नीचे शुक्र पर्वत के पास जो भी छोटी रेखाएं होती हैं उन्हें संतान रेखा के रुप मेंं देखा जाता है। माना जाता है कि जो संतान रेखा स्पष्ट और साफ होती है वह पुत्र संतान को दर्शाता है जबकि पतली और हल्की रेखाएं कन्या संतान को दर्शाते हैं।
हस्तरेखा विज्ञान के कुछ पुस्तकों के अनुसार हल्की रेखाओं का मतलब यह भी होता है कि यह संतान शारीरिक तौर पर कमजोर हो सकता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार जिनकी हथेली मेंं बुध पर्वत अधिक उभरा हुआ और संतान रेखा स्पष्ट होती हैं उन्हें चार पुत्र और तीन कन्या संतान होने की संभावना रहती है। ऐसे व्यक्ति के बच्चे संस्कारी और गुणवान होते हैं। जिनकी हथेली मेंं शुक्र पर्वत के नीचे यानी अंगूठे के नीचे का भाग अधिक उभरा होता है उन्हें एक संतान होने की संभावना रहती है। जिनकी हथेली मेंं कोई एक संतान रेखा अधिक स्पष्ट और साफ होती हैं उन्हें अन्य संतान की अपेक्षा किसी संतान से विशेष लगाव रहता है और इनसे सुख मिलता है। भाग्य मेंं संतान सुख का प्रमाण ज्योतिष के अनुसार कई चीजों मेंं होता है जैसे कुंडली या हस्त रेखाओं मेंं। हाथ मेंं संतान रेखा भाग्य मेंं संतान सुख की एक बेहद अहम निशानी है।
कहां होती है संतान रेखा? :
संतान रेखाएं ठीक विवाह रेखा के ऊपर होती हैं। बुध पर्वत यानि छोटी अंगुली के ठीक नीचे के भाग मेंं विवाह रेखा होती है। वहीं मौजुद खड़ी रेखाएं संतान रेखा कहलाती हैं। संतान प्राप्ति के योगों को कई अन्य रेखाएं भी प्रभावित करती हैं जैसे मणिबंध रेखा, अंगुठे के नीचे पाई जाने वाली छोटी रेखा आदि।
कैसे पढ़े संतान रेखा :
संतान रेखा स्पष्ट हैं तो इसका अर्थ है संतान अच्छी और माता पिता का सम्मान करने वाली होगी।
* अस्पष्ट और टूटी रेखाएं बच्चें के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।
* इसके अलावा संतान योग को मणिबंध रेखाएं भी प्रभावित करती हैं। यदि पहली मणिबंध रेखा का झुकाव कलाई की तरफ है और वह हथेली मेंं प्रविष्ट होती दिखे तो इसका अर्थ है जातक को संतान प्राप्ति मेंं दुख होंगे। हस्तरेखा के अनुसार किसी भी व्यक्ति के हाथों को देखकर उसके भूत-भविष्य और वर्तमान की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। हाथों की रेखाओं मेंं हृदय रेखा व्यक्ति की सोच, उसके दिल का हाल बताती है। इस रेखा से व्यक्ति मन की सही-सही स्थिति मालूम हो जाती है।
हथेली मेंं हृदय रेखा ही पुरुष की आंतरिक शक्ति को भी प्रदर्शित करती है। इसके जरूरी है हाथों का सही-सही अध्ययन करना। हृदय रेखा से भी संतान संबंधी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हृदय रेखा किसी के हाथों मेंं बृहस्पति क्षेत्र के मध्य से, किसी की तर्जनी अंगुली के यहां से और किसी के हाथों मेंं मध्यमा अंगुली के यहां से प्रारंभ होकर बुध क्षेत्र यानी सबसे छोटी अंगुली की ओर हथेली पार तक जाती है। यदि किसी पुरुष की हथेली मेंं हृदय रेखा समाप्ति स्थल यानी बुध क्षेत्र पर श्रंखलाकार ना हो तो व्यक्ति संतान उत्पन्न करने मेंं अक्षम होता है। ऐसे पुरुषों को संतान सुख या तो प्राप्त ही नहीं होता है या प्राप्त होता भी है तो इसमेंं काफी परेशानियां आती हैं। यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि दोनों हाथों मेंं हृदय रेखा बिना श्रंखला के दिखाई दे रही है तो ऐसे योग बनने की संभावनाएं काफी अधिक होती हैं।
अगर किसी पुरुष की हथेली मेंं संतान रेखा स्पष्ट नहीं हो तो परेशान होने की जरुरत नहीं है। ऐसे व्यक्तियों को अपनी पत्नी की हथेली मेंं संतान रेखा देखनी चाहिए। माना जाता है कि संतान रेखा पुरुषों की अपेक्षा स्त्री के हाथों मेंं अधिक स्पष्ट होती है। हाथ की संतान रेखा भाग्य मेंं संतान सुख की एक बेहद अहम निशानी है।

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रा हू और केतू


रा हू केतू छाया गृह माने जाते हैं हिन्दू ज्योतिष में इन्हे दैत्य माना जाता हैं जो सूर्य व चन्द्र को भी ग्रहण लग देते हैं यह दोनों हमेंशा वक्रावस्था मेंं रहते हुये एक दूसरे के विपरीत भावों मेंं रहते हैं राहू को केतू से ज़्यादा भयानक माना गया हैं पुरानो के अनुसार कश्यप ऋषि की 13 पत्नियों में से एक सिंहिका का पुत्र राहू था जिसके अमृतपान कर लेने से भगवान विष्णु ने अपने चक्रो से दो हिस्से कर दिये थे राहू ऊपर का हिस्सा तथा केतू नीचे का हिस्से कहलाता हैं।
यह दोनों 12 राशियों का भ्रमण 18वर्षों में करते हैं तथा एक राशि में 18माह रहते हैं राहू को विध्वंशक तथा केतू को मोक्षकर्ता माना गया हैं राहू जिस भाव में स्थित होता हैं उस भाव से संबन्धित कारकत्वों को ग्रहण लगा देता हैं अर्थात कमी कर देता हैं जबकि केतु उस भाव विशेष से विरक्ति प्रदान करता हैं राहू को स्त्रीलिंग तथा केतू को नपुंशक माना गया हैं। राहू केतू के मित्र बुध, शुक्र व शनि हैं तथा मंगल इनसे समता रखता हैं। यह दोनों छायाग्रह होने के कारण जिस राशि में होते हैं उसके स्वामी के जैसे ही फल प्रदान करते हैं। केंद्र, त्रिकोण मेंं होने से यह कई शुभ योग प्रदान करते हैं। विशोन्तरी दशा मेंं राहू को 18तथा केतू को 7 वर्ष दिये गए हैं।
चन्द्र से केंद्र मेंं राहू यदि 1 से 8भावों में हों तो जातक लंबा होता हैं और यदि केतू चन्द्र से केंद्र में होकर 1 से 8 भावों में होतो जातक कद में छोटा होता हैं राहू 1, 2, 3, 8, 9 राशियों के अतिरिक्त सभी राशियों मेंं शुभफल प्रदान करता हैं कन्या राशियों में इसे अंधा माना जाता हैं जिस कारण इस राशि में यह कोई फल नहीं देता हैं। लग्न मेंं राहू बहुत शुभ होने पर जातक लंबा व पतला, बहुत घूमने वाला तथा तकनीकी ज्ञान वाला होता हैं परंतु किसी ना किसी रोग से पीडित जरूर रहता हैं यदि राहू चन्द्र संग होतो जातक स्वार्थी व लालची प्रवृति का तथा मानसिक विकार वाला होता हैं ऐसे में यदि चन्द्र केंद्र का स्वामी होतो जातक माता व परिवार का वफादार नहीं होता हैं राहू उसे हावभाव पूर्ण वाणी, बहुत तरक्की तथा दो पत्नीयों का सूख प्रदान कर्ता है। केतू लग्न मेंं जातक को छोटा कद, विकलांगता तथा अन्य अशुभ प्रभाव देता है।
दूसरे भाव में राहू जातक को धन व पैतृक संपत्ति देता हैं परंतु जातक का धन बचता नहीं हैं अर्थात जातक को बरकत नहीं होती ऐसा जातक किसी के मामले में हस्तक्षेप नहीं करता, वाणी संबंधी विकार से ग्रस्त हो सकता हैं परिवार से भी ऐसे जातक की कम निभती हैं बहुधा विवाह बाद परिवार से अलग रहते हैं। केतू यहाँ पर जातक की पुस्तैनी संपत्ति को कर्जे द्वारा नष्ट कर देता हैं जातक को बड़ा परिवार परंतु आमदनी कम देता हैं। तीसरे भाव में सम राशि का राहू शुभ माना जाता हैं यहाँ राहू जातक को परिवार में सबसे छोटा बनाता हैं जो सहोदरो हेतु अशुभ होता है। केतू यहाँ कर्ण रोग तथा कमजोर दिमाग देता हैं बहुधा जातक के परिवार में 3 सदस्य होते हैं। चतुर्थ भाव में राहू भूमि अथवा मकान के सुख में कमी करता हैं जातक मानसिक रूप से व्याकुल व परेशान रहता हैं उसकी माँ का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता उसके मकान में वस्तु अथवा प्रेत दोष अवश्य होता है। केतू यहाँ जातक को घर से उचाट रखता हैं अर्थात जातक घर से बाहर रहना ज़्यादा पसंद करता हैं तथा उसके अपनी माँ से संबंध अच्छे नहीं होते। पंचम भाव में राहू शिक्षा पूर्ण नहीं होने देता परंतु बुद्दिमान बनाता हैं उसे कला, फोटोग्राफी व लेखन का शौक देता है जातक को विवाह सुख में किसी ना किसी रूप में परेशानी जरूर देता हैं पत्नी यदि सुंदर होती हैं तो जातक उस पर शक करता हैं उसे गर्भविकार रहते हैं जिससे संतान संबंधी कष्ट जातक के जीवन में रहते हैं अथवा पहली संतान में परेशानी होती हैं बहुधा जातक की पुत्र संतान नहीं होती। केतू यहाँ संतान हेतु अशुभता देता हैं तथा शिक्षा में रुकावट जरूर देता है। संक्षेप मेंं कहे तो इस भाव मेंं राहू केतू शिक्षा व संतान हेतु अशुभ रहते हैं संतान पर रूखा व्यवहार रखवाते हैं परंतु संतान से बेहद लगाव भी करवाते हैं।
छठे भाव में राहू जातक को ताकतवर बना उसे अच्छी नौकरी प्रदान करता हैं उसे मामा से लाभ प्राप्त कराता हैं पाप प्रभाव में होने से जातक की कलाई पर निशान, नेत्र रोग तथा उसके मामा को पुत्र नहीं देता केतू यहाँ जातक को शत्रुता से बचाता हैं अर्थात जातक के शत्रु नहीं होते। सातवे भाव में राहू जातक को विवाह सूख में किसी न किसी प्रकार से कमी प्रदान करता हैं मंगल संग होने पर राहू यहाँ जातक की पत्नी को मासिक धर्म संबंधी बीमारी देता हैं जिससे जातक के अन्य स्त्रीयों से संपर्क बन जाते हैं मंगल,चन्द्र संग राहू यहाँ नेत्रा व गुप्त रोग देता हैं शुक्र से केंद्र में राहू यहाँ पत्नी भक्त बनाता हैं जो दूसरों को हमेंशा भला बुरा कहता रहता हैं। केतू यहाँ जातक को पत्नी से समय समय पर दूर करता रहता हैं अर्थात जातक व उसकी पत्नी किसी भी कारण से अलग अलग रहते हैं बहुधा जातक की पत्नी वाचाल प्रवृति की होती हैं जिस कारण जातक उसे बात-बात पर टोकता अथवा जलील करता रहता हैं। अष्टम भाव में राहू जातक को लंबी बीमारी द्वारा मृत्यु देता हैं। 2, 4, 5, 6, 8, 10, 12 राशियों का राहू होने पर जातक की पत्नी सुंदर व मृत्यु सुखद अर्थात बेहोशी या सोते हुये होती हैं जातक को अपने जीवन काल में उदर रोग रहता हैं। केतू यहाँ दंतरोग, चर्मरोग इत्यादि देता हैं तथा जातक को आत्महत्या हेतु भी उकसाता रहता हैं।
नवम भाव में राहू सरकार द्वारा लाभ प्रदान करता हैं परंतु संतान देर से देता हैं राहू यदि समराशि में को कष्ट तथा जवानी में जुआ खेलने की आदत देता हैं उसकी इस आदत की वजह से अच्छे लोग उससे दूर रहते हैं तथा वह ग़लत दोस्तों के कारण अपयश पाता हैं। दशम भाव मेंं 2, 4, 5, 6, 8, 10, 12 राशियों का राहू जातक को शुभता, अधिकार व प्रसिद्दि देता हैं ऐसा जातक छोटा काम नही करते प्राय 30 वर्ष बाद इनके जीवन में बदलाव आता हैं यह राजनीति करने में बड़े गुणी होते हैं केतू यहाँ जातक से निम्न कार्य कराता हैं स्वयं का व्यापार करने नहीं देता जातक का चरित्र शंकालु होता हैं तथा पिता को शुभता नहीं देता। एकादश भाव में राहू धन व पद दोनों देता हैं परंतु पुत्र केवल एक ही देता हैं ऐसा जातक कर्ण रोग से पीडि़त होता हैं तथा शीघ्र धनवान बनने की चाह में जातक सट्टा, लॉटरी इत्यादि में धन लगता हैं केतू यहाँ गजेट्स का शौकीन बनाता हैं तथा जातक अपने बड़ों से दूर रहना पसंद करता हैं। द्वादश भाव में राहू नेत्र रोग, एक से अधिक विवाह, नींद में परेशानी तथा डींगे मारने वाला व्यक्तित्व देता हैं ऐसा जातक करता कुछ नहीं हैं परंतु बातें बड़ी बड़ी करता हैं चन्द्र संग होने पर जातक का रुझान आध्यात्मिकता की और बढ़ा देता हैं केतू यहाँ जातक को मस्तमौला व्यक्तित्व देता हैं ऐसा जातक किसी की भी परवाह नहीं करता।

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सत्य का अर्थ


साधारणत: हम सोचते हैं, सत्य कोई वस्तु है, जिसे खोजना है; जैसे सत्य कहीं रखा है- किसी दूर के मंदिर मेंं सुरक्षित है प्रतिमा की भांति. हमेंं यात्रा करनी है, मंदिर के द्वार खोलने हैं और सत्य को उपलब्ध कर लेना है. ऐसा सोचा तो भूल हो गई शुरू से ही. सत्य कोई वस्तु नहीं है. सत्य तो एक प्रतीति है, अनुभूति है.
सत्य का अर्थ है ऐसे जीना, जिस जीवन मेंं कोई वंचना न हो; ऐसे जीना कि बाहर और भीतर का तालमेंल हो. सत्य एक संगीत है. तो कदम-कदम संभालना होगा, क्योंकि सत्य आचरण है. इसलिए महावीर कहते हैं- 'सत्य मेंं तप है, संयम है, समस्त गुणों का वास है. क्योंकि सत्य आचरण है. जिसने सत्य को साध लिया, सब सध जायेगा. फिर अलग से कुछ साधने को बचता नहीं. क्योंकि जिसने बाहर और भीतर का एक ही जीवन शुरू कर दिया, उसके जीवन मेंं हिंसा नहीं हो सकती. उसके जीवन मेंं झूठ नहीं हो सकता; उसके जीवन मेंं क्रोध नहीं हो सकता; उसके जीवन मेंं प्रतिस्पर्धा नहीं हो सकती. असंभव है. सत्य आया तो जैसे प्रकाश आया. अब अंधेरा नहीं हो सकता.
लेकिन सत्य कोई वस्तु नहीं है. सत्य उधार नहीं मिलता. मेंरे पास हो तो भी तुम्हें देने का कोई उपाय नहीं. सत्य कोई सिद्धांत भी नहीं है. नहीं तो एक बार कोई खोज लेता, सबके लिए, सदा के लिए मिल जाता. दो ढंग से जीने के उपाय हैं. एक, जिसे हम असत्य का जीवन कहें. तुम कुछ हो, कुछ होना चाहते हो. असत्य शुरू हो गया. तुम कुछ हो, कुछ और दिखाना चाहते हो. असत्य हो गया. तुम कुछ हो, और कुछ मुखौटे ओढ़ लिए; होना तो कुछ था, प्रदर्शन कुछ और हो गया. असत्य हो गया. इसे समझोगे तो पाओगे कि तुम्हारे तथाकथित धर्मों ने तुम्हें सत्य की तरफ ले जाने मेंं सहायता नहीं दी, बाधा डाल दी. क्योंकि उन सबने तुम्हें पाखंड सिखाया. उन सबने कहा, कुछ हो जाओ. महावीर कहते हैं, तुम जो हो उसी मेंं रह जाओ. कुछ और होने की कोशिश करोगे तो असत्य शुरू हो जाएगा. तुम महावीर होने की कोशिश करोगे तो असत्य हो जाएगा.
तुम बुद्ध होने की कोशिश करोगे तो असत्य हो जायेगा. पच्चीस सौ वर्षों मेंं हजारों लोग महावीर होने की चेष्टा मेंं रत रहे हैं. कोई दूसरा महावीर हो पाया? कोई दूसरा कभी बुद्ध हो पाया? कोई दूसरा राम मिला इस जीवन के पथ पर? कृष्ण की बांसुरी दुबारा सुनी गई? पुनर्कि्त यहां होती नहीं. अनुकरण संभव नहीं. यहां प्रत्येक स्वयं होने को पैदा हुआ है. जिसने भी दूसरा होने की कोशिश की, वह पाखंडी हो जाता है.

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ओंकार ध्वनि मेंं छुपा सेहत का राज


ओं कार ध्वनि को दुनिया के सभी मंत्रों का सार कहा गया है। यह उच्चारण के साथ ही शरीर पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है। भारतीय सभ्यता के प्रारंभ से ही ओंकार ध्वनि के महत्व से सभी परिचित रहे हैं। शास्त्रों मेंं ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है। कई बार मंत्रों मेंं ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जिसका कोई अर्थ नहीं होता लेकिन उससे निकली ध्वनि शरीर पर अपना प्रभाव छोड़ती है। तंत्र योग मेंं एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द मेंं अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि। इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों मेंं गिने जाते हैं। सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दांत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है
क्या करें?
* प्रात: उठकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। इससे शरीर और मन को एकाग्र करने मेंं मदद मिलेगी। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा।
* ओम नमो के साथ नमो शब्द के जुडऩे से मन और मस्तिष्क मेंं नम्रता के भाव पैदा होते हैं। इससे सकारात्मक ऊर्जा तेजी से प्रवाहित होती है।
* ओम नमो गणेश-गणेश आदि देवता हैं जो नई शुरुआत और सफलता का प्रतीक हैं। अत: ओम गं गणपतये नम: का उच्चारण विशेष रूप से शरीर और मन पर नियंत्रण रखने मेंं सहायक होता है।
शरीर मेंं आवेगों का उतार-चढ़ाव:
शब्दों से उत्पन्न ध्वनि से श्रोता के शरीर और मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ता है। बोलने वाले के मुंह से शब्द निकलने से पहले उसके मस्तिष्क से विद्युत तरंगें निकलती हैं। इन्हें श्रोता का मस्तिष्क ग्रहण करने की चेष्टा करता है। उच्चारित शब्द श्रोता के कर्ण-रंध्रों के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुंचते हैं। प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि से श्रोता और वक्ता दोनों हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, भय तथा कामेंच्छा के आवेगों को महसूस करते हैं। अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क मेंं उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से दिल की धड़कन तेज हो जाती है जिससे रक्त मेंं टॉक्सिक पदार्थ पैदा होने लगते हैं। इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरह आल्हादकारी रसायन की वर्षा करती है।

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दो मुट्ठी अनाज की बचत


किसी गांव में एक किसान रहता था। उसके पास थोड़ी सी जमीन थी, जिसमें वह अपने पूरे परिवार का भरण-पोषण करता था। किसान प्रत्येक साल के लिए अनाज उगाकर उससे आसानी से अपना और अपने परिवार के लिए अनाज की व्यवस्था कर लेता था। इस बार बरसात ठीक ना होने से उसके यहां फसल कम हुई। वह फसल कम होने की वजह से चिंतित था। घर में राशन अगले ग्यारह महीने चल सके, उसके पास फसल उतना ही था। बाकी एक महीने का राशन का कहां से इंतजाम होगा। यह चिंता उसे बार-बार सता रही थी। किसान की बहू बहुत समझदार और किफायत से चलने वाली थी तथा उसका ध्यान सबकी ओर बराबर होता था। उसने लगातार अपने ससुर को परेशान होते देखा तब उसने अपने ससूर से परेशानी का कारण जानने की सोची। एक दिन उसने समय देख कर अपने ससुर से पूछा?
पिताजी मैं कई दिनों से आपको देख रही हंू, आप आजकल ठीक से भोजन भी नहीं करते और ना ही ठीक से सोते हैं। आप लगातार आजकल कुछ सोचते रहते हैं और किसी बात को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं। अगर आप अपनी परेशानी को हमसे कहेंगे तो हो सकता है कि कुछ समाधान निकाल सकें। तब किसान ने अपनी चिंता का कारण बहू को बताया, कि बहु इस बार बारिश कम होने से फसल कुछ कम हुई है, जिससे मेरा अनुमान है कि ये धान पूरे साल भर तक हमारे आहार के लिए कम हो सकता है, मेरे अनुमान के अनुसार ग्यारह माह तो आराम से चल जायेगा किंतु एक माह के अनाज की व्यवस्था के लिए मैं क्या करूं। इसका हल मुझे नहीं समझ आ रहा और मैं बस इसी को लेकर परेशान हूं। किसान की बात सुनकर बहू ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह किसी बात की चिंता न करें। उस एक महीने के लिए भी अनाज का इंतजाम हो जाएगा।
जब पूरा वर्ष उनका आराम से निकल गया तब किसान ने पूछा कि आखिर ऐसा कैसे हुआ? बहू ने कहा- पिताजी जब से आपने मुझे राशन के बारे में बताया तभी से मैं जब भी रसोई के लिए अनाज निकालती उसी में से एक-दो मु_ी हर रोज वापस कोठी में डाल देती। बस उसी की वजह से बारहवें महीने का इंतजाम हो गया। ससुर बहुत खुश हुआ और बहू को शाबासी दी। कभी-कभी जीवन में बचत की आदत वक्त आने पर बहुत बड़ा लाभ देती है। जैसे किसान की बहू की किफायत ने उनके बारहवें महीने के लिए अन्न की व्यवस्था की।

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भारतीय राजनीती में शनि के परिवर्तन के भाव


शनि के परिवर्तन का प्रभाव:
2/11/2014 को शाम 4 बजकर 8मिनट पर शनि ''वृश्चिक राशि मे प्रवेश कर रहे हैं जहां वह 26/1/2017 तक रहेंगे इस दौरान 14/3/2015 से 2/8/2015 तक तथा 25/3/2016से 13/8/2016तक 2 बार शनि वक्री होंगे तथा 31/10/2014 से 6/12/2014 तक,12/11/2015 से 17/12/2015 तक तथा 22/11/2016से 28/12/2016तक 3 बार शनि इसी वृश्चिक राशि मे अस्त भी होंगे।
अपनी अति धीमी गति से संचार करने के कारण शनि के किसी भी राशि मे संचार करने से धरती पर पडऩे वाले व्यापक प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता हैं। शनि अब तक अपनी ऊंच राशि ''तुलाÓÓ मे भ्रमण कर रहे थे जिसके व्यापक प्रभाव भारत सहित कई देशो मे विद्रोह व देशो की सरकारो का बदलना रहा हैं। अब चूंकि शनि वृश्चिक राशि अथवा अपनी शत्रु राशि से संचार करेंगे जो की काल पुरुष की आठवी राशि हैं यह देखना काफी असरकारक होगा की यह शनि धरती पर, भारत वर्ष मे तथा धरती के सभी राशिवाले प्राणियों में क्या प्रभाव डालेंगे? इस राशि मे संचार करते हुये शनि मकर, वृष तथा सिंह राशियों पर दृष्टि तथा तुला, वृश्चिक व धनु पर साढ़ेसाती का प्रभाव रखेंगे। पाप ग्रहों का 3,6,व 11वे भावो से गोचर लाभकारी माना जाता हैं चूंकि शनि की गिनती भी पापी ग्रह मे होती हैं अत: जिन राशि के शनि 3, 6व 11वे गोचर करेंगे उन्हे शुभफलों की प्राप्ति होगी तथा अन्य राशि वालो को मिलेजुले फल प्राप्त होंगे।
शनि के लिए कहाँ जाता हैं की शनि जिस भाव मे आते हैं उस भाव की वृद्धि करते हैं तथा जिस भाव को देखते हैं उस भाव की हानी करते हैं इस वृश्चिक राशि पर भ्रमण करते हुये शनि की अधिकतर दृष्टि उत्तर दिशा की और रहेगी जिससे उत्तर की और के देश व प्रांत प्रभावित होंगे जिनमे अस्थिरता, प्राकृतिक आपदाए, भूकंप, बाढ़ तथा सत्ता परिवर्तन जैसे हालात बनेंगे। आइए जानते हैं की विभिन्न राशियों पर शनि के इस वृश्चिक राशि गोचर का क्या प्रभाव पड़ेगा:-
1) मेष राशि- इस पहली राशि से शनि का अष्टम गोचर होगा जो की आजीविका मे परिवर्तन अथवा ऊठा पटक जैसे हालात बनाएगा,धन की पूर्ति बाधक होगी व खर्चे बढ़ेंगे, संतान होने की अथवा संतान से संबंधी कोई समस्या होने की समभावनाएं बनेंगी, कमर पैर से संबन्धित कोई चोट इत्यादि लग सकती हैं। जीवन साथी के लिए अच्छे समाचार प्राप्त होंगे। किसी बड़े निवेश से बचना लाभदायक रहेगा।
उपाय- दशरथ शनि श्रोत का पाठ करे तथा प्रत्येक शनिवार किसी गरीब को सरसों का तेल दान करे।
2)वृष राशि- इस राशि से शनि का सप्तम गोचर होगा जिससे भाग्योदय कारक समय बनेगा कामकाज बढऩे लगेंगे, नई संपत्ति, वाहन इत्यादि खरीदने के योग बनेंगे तथा पुरानी संपत्ति बिकेगी, यात्राएं व भागदौड़ बढ़ेगी, जीवनसाथी व पिता हेतु शुभ समाचार प्राप्त होंगे, कोई भागीधारी का प्रस्ताव भी आ सकता हैं, दाम्पत्य सुख मे कमी हो सकती हैं।
उपाय- शनि श्लोक नीलांजन सभामासम का जाप रोजाना शाम के समय करे तथा किसी को भी शराब व सेन्ट (परफ्यूम) उपहार मे ना दे।
3)मिथुन राशि- इस राशि से शनि का यह छठा गोचर होगा जो की ज्यादातर शुभ होगा जिसके प्रभाव से जो भी चाहेंगे वह होगा, सभी दिशाओ से शुभ समाचार मिलेंगे, उधार लेने व देने की सम्भावनाएं बनेगी, सहोदरों को कष्ट मिलेंगे, अचानक चोट लगने की, धन प्राप्ति की तथा किसी गुप्त विद्या जानने की इच्छा बढ़ेगी, धार्मिक कार्य, लंबी यात्राए व योजनाए बन सकती हैं जिनसे लाभ होगा।
उपाय- कनकधारा श्रोत का पाठ रोजाना करे तथा हर शनिवार एक मु_ी साबुत बादाम जलप्रवाह करे।
4) कर्क राशि- शनि का इस राशि से पांचवा गोचर विवाह व संतान प्राप्ति के अतिरिक्त किसी बड़े पद की प्राप्ति भी करवाएगा, कोई बड़ी जिम्मेदारी अथवा सम्मान मिल सकता हैं, भाग्य से अब काम बनने लगेंगे, परिवार मे किसी की विवाह होने की संभावना बनेगी,धन प्रवाह मे थोड़ा विलंब रहेगा।
उपाय- शाकाहारी रहे तथा एक मु_ी साबुत बादाम मंदिर मे हर शनिवार रखकर आए।
5) सिंह राशि- इस राशि से शनि का चतुर्थ गोचर कार्यक्षेत्र मे ऊठा पटक मचा कर बदलाव अथवा पदोन्नति करवा सकता हैं, मकान व भूमि का सुख बड़ेगा, शारीरिक कष्ट, दुर्घटना व स्वस्थ्य हानी भी होगी परंतु आपकी लोकप्रियता बढ़ती रहेगी, किसी को उधार देना पड़ सकता हैं शत्रु भी सिर उठाएंगे परंतु कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगे।
उपाय- हनुमान चालीसा का पाठ नित्य करे तथा शिवलिंग पर प्रत्येक सोमवार दूध का अभिषेक करे।
6) कन्या राशि- राशि से तीसरा गोचर होने की वजह से शनि का यह गोचर आपको बहुत शुभता प्रदान करेगा आपकी पद प्रतिष्ठा बड़ेगी, संतान प्राप्ति हो सकती हैं, धार्मिक व विदेश यात्राए होंगी, खर्चे बढं़ेगे, विवादों मे आपकी विजय होगी व शनि की साढ़ेसाती से मुक्ति होने से तनावमय जीवन से छुटकारा मिल जाएगा।
उपाय- रोजाना '' नम: शिवाय का 108बार जाप करे तथा 3 कुत्तो को रोजाना कुछ खिलाये।
7) तुला राशि- इस राशि से दूसरा गोचर होने से धन लाभ बड़ेगा, भूमि वाहन व मकान खरीदने की समभावनाए बड़ेगी, आपकी माता को व आपको कोई सम्मान प्राप्त होगा, उतरती हुयी साढ़ेसाती खूब यात्राए कराएगी, नियम के विरुद्ध कार्य करने व बिना जाने पहचाने उधार देने दिलवाने से परेशानियाँ होंगी।
उपाय- प्रतिदिन धर्मस्थान मे जरूर जांये।
8) वृश्चिक राशि- इस राशि से शनि का गोचर कार्यक्षेत्र व बदलाव व पिता के लिए कष्ट लाएगा,जीवन साथी से संबन्धित कोई नया कार्य कर सकते हैं सहोदरो से संबन्धित कोई खबर मिल सकती हैं। शनि साढ़ेसाती की दूसरी ढैया किसी बुजुर्ग की मृत्यु कारण अन्त्येष्टि कर्म मे सम्मिलित करवा सकती हैं स्वयं हेतु विष इत्यादि से भय हो सकता हैं अत: बाहर के खाने से परहेज करे।
उपाय- नित्य शनि चालीसा, हनुमान चालीसा का पाठ करे तथा हर शनिवार बंदरों को केला खिलायें।
9) धनु राशि- इस राशि से द्वादश भाव मे शनि का गोचर शनि की साढ़ेसाती की शुरुआत करेगा जिसके प्रभाव से स्थान परिवर्तन व धननाश होकर रहेगा, धन आने मे दिक्कते होंगी, आपके खिलाफ कोई इल्जाम अथवा कारवाई की जा सकती हैं जिनसे स्वयं स्वास्थ्य संबंधी कष्ट शुरू होने के कारण अस्पताल जाना पड़ सकता है। मामा पक्ष मे परेशानियाँ आएंगी परंतु विदेश अथवा दूर की यात्रा से लाभ भी मिलेगा।
उपाय- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ नित्य करे तथा चींटियों को चावल के आटे का चुरा डाले।
10) मकर राशि- इस राशि से एकादश भाव मे शनि का गोचर होने से शनि व गुरु दोनों ग्रहो की इस राशि पर दृष्टि होगी जिससे जबरदस्त सफलता व धन लाभ की समभावनाएं बनेगी जिस कारण आपके आत्मविश्वास मे बढोतरी होगी, जीवन मे बहुत से बदलाव आएंगे, व्यापार विस्तार हेतु नई योजनाए बनेगी जिनसे लाभ होगा, आप धन को कहीं ना कहीं किसी भी रूप मे निवेश करेंगे, संतान के लिए थोड़ा कष्टकारक समय रहेगा।
उपाय- सोमवार को शिवजी की तथा शनिवार को शनिदेव की पुजा करे, किसी सेवार्थ अस्पताल मे गरीबो के लिए मदर टिंचर नामक दवा दान करें।
11) कुम्भ राशि- इस राशि से दशम गोचर कार्य की अधिकता, नौकरी का छूटना व सम्मान की हानि कराएगा आपको अपने खर्चे निकालने में दिक्कत प्राप्त होंगी, उधार चुकाना मुश्किल होगा, इन सब कारणो से सेहत प्रभावी हो सकती हैं, पिता या किसी पार्टनर से लाभ होगा, लंबी यात्राओ मे धन खर्च होगा, आपका विदेश अथवा अस्पताल से संबंध जुड़ सकता हैं, पत्नी से संबन्धित सुखो मे कमी तथा भूमि व मकान संबंधी योजनाओ मे परेशानियाँ बनेगी।
उपाय- प्रतिदिन किसी धर्मस्थान मे अवश्य जाए तथा शनिवार शाम को शनि सहस्त्रनाम का पाठ करे।
12) मीन राशि- राशि से नवम गोचर धर्म, धन व भाग्य वृद्दि करेंगे, भाई बहनो को लाभ देंगे, शत्रुओ को नुकसान मिलेगा अर्थात आपकी विजय होगी, दुष्साहसी प्रवृति बड़ेगी, कानूनी मामलो मे मदद व लाभ मिलेंगी, पिता के स्वास्थ्य मे सुधार होगा, धर्म गुरुओ से मिलना अथवा विदेश मे तबादला हो सकता है।
उपाय- शनि चालीसा का पाठ रोजाना करे तथा हल्दी का तिलक माथे पर नित्य लगाए।

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भारतीय राजनीती में शनि


बीते दिनों में लगभग 30 वर्ष पहले 1984 में तुला के शनि थे, जिसका परिणाम देश की आंतरिक स्थिति बहुत विपरीत हुई थी। 31 अक्टूबर, 1984 को इसी खराब परिस्थिति में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी और इसके बाद उनके पुत्र राजीव गांधी की ताजपोशी हुई थी। मानो देश में एक तरह के राजनैतिक सत्रावसान के बाद एक नये सत्र की शुरूआत होनी थी। यही वह समय था, जब भारत में कम्प्यूटर सूचना क्रांति का सपना लेकर राजीव गांधी ने अपनी राजनैतिक करियर की शुरूआत की थी। 30 वर्षों के बाद इसी तरह के विकास का नारा लेकर मोदीजी प्रगट हुए। मतलब बहुत साफ है कि तुला के शनि जब भी होंगे, तब समूचा विश्व परिवर्तन के रथ पर आसीन होगा। यह सच है कि तब भी वैश्विक स्थिति और देश की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। पंजाब जल रहा था, आसाम और देश के अन्य क्षेत्रो की स्थितियॉ भी कोई अच्छी नहीं थी। श्रीलंका, पाकिस्तान और अन्य पडोसी देशों में भी काफी अशांति थी। यद्यपि भयानक मारकाट हुई, दुनिया ने क्या खोया क्या पाया? यह हिसाब लगाना कठिन है पर दुनिया की कुछ बुराईयॉ अच्छाई के निशाने पर थी। बुराई खत्म हुई और अच्छाई आ गई। या यूं कहें कि कुछ बदला कुछ अच्छा हुआ तो कुछ बुरा भी हुआ। यहीं पर यूएसएसआर यानि सोवियत संघ के देशों में भी तेल की कीमतो को लेकर उपजे विवाद के बाद प्रजातंत्र की बाते होने लगी। यही वह वक्त था जब चीन में भी राजनैतिक वैचारिक परिवर्तन की नींव रखी जा रही थी। मतलब साफ है कि इस बार भी पुरी दुनिया और देश में भी कुछ नया होगा। काल पुरूष की कुंडली में दशम और एकादश भाव के स्वामी शनि सप्तम यानि तुला राशि में हैं, और नवबंर के प्रथम सप्ताह में ही वृश्चिक राशि यानि अष्टम स्थान में जायेंगे। वृश्चिक राशि में शनि का प्रवेश पुरी दुनिया में जरूर मारकाट मचायेगा। मगर यह याद रहे कि भारत का लग्र वृषभ है अब भारत की राजनीति में, 1984 में चीन में आई आर्थिक बदलाव की तरह बडे आर्थिक परिवर्तन आने हैं। आने वाले 10 वर्षो में भारत विश्व की तीसरी महाशक्ति और नाटो का स्थाई सदस्य बन चुका होगा। इतिहास मोदी को एक स्वप्रदृष्टा की तरह विकास की सोच को आगे बढाने वाला बतायेगा। वर्ष 1955 के पश्चात् यानि 59 वर्षो के बाद उच्च के वृहस्पति और उच्च के शनि का योग आप देख रहे हैं। वह वक्त था जब गणतंत्र की नींव ताजी रखी गई थी नये कानून बने थे और आज यह समय है जिसमें बहुत से कानून को सरकार बदलने के मूड में है। और सफाई नारा है सरकार का। यानि वृश्चिक राशि के शनि पूरे देश ही नहीं पूरे विश्व मेंं भयानक हिंसा के साथ ही सही परंतु बदलाव की आंधी लेकर चल रहे हैं। देश के अंदर हरियाणा तथा महाराष्ट के चुनाव के परिणाम एवं स्थानीय निकायों के चुनाव के परिणाम इसी तरह के परिवर्तनों के संकेत हैं। देश राजनैतिक स्थिरता के माने समझ रहा है। इसलिए क्षेत्रीय दलों महत्व कम होगा। इससे दो बातें साफ है कि पहला सत्ताधारी दल लाभ की स्थिति में होगा और दूसरी बड़ी राजनैतिक पार्टियां भी अपने अंदर गुणात्मक सुधार करने की चेष्टा करेंगे। कुल मिलाकर देश में आर्थिक और राजनैतिक स्थिरता के योग हैं, जो देश को आगे ले जाएंगे। मगर आने वाले ढाई वर्ष देश के लिए आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तन की सोच का समय है। वस्तुत: यह राजनैतिक सामाजिक संक्रमण काल है इसमें भयानक अस्थिरता और अशांति के साथ हिंसा भी दिखाई पड सकती है। परंतु आने वाला समय निश्चित तौर पर बहुत अच्छा है। क्योंकि कई बार परिवर्तनों के लिए प्रकृति ऐसा कदम भी उठा लेती है। मेरी नजर में आने वाला समय विश्वनीयता का होगा, जिसके लिए पूरा विश्व प्रयासरत होगा। चाहे वह उद्योगपति या राजनेता हो या ज्ञानी हो, आध्यात्मिक व्यक्ति हों या नौकरीपेशा हों अथवा व्यापारी हो, चारों ओर प्रयास के केंद्र में विश्वनीयता होगी। जो इसे कायम रखेगा वह लाभ में रहेगा और जो इसे खो देगा, वह व्यवस्था से बाहर हो जायेगा इसलिए मुझे लगता है कि वृश्चिक के शनि देश का मिजाज बदल रहे हैं।


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स्वास्थ्य पर स्वर का प्रभाव


जिस समय जो स्वर चलता है उस समय तुम्हारे शरीर में उसी स्वर का प्रभाव होता है। हमारे ऋषियों ने इस विषय बहुत सुंदर खोज की है। दायें नथुने से चलने वाला श्वास दायाँ स्वर एवं बायें नथुने से चलने वाला श्वास बायाँ स्वर कहलाता हैए जिसका ज्ञान नथुने पर हाथ रखकर सहजता से प्राप्त किया जा सकता है। जिस समय जिस नथुने से श्वासोच्छ्वास अधिक गति से चल रहा हो, उस समय वह या नथुना चालू है ऐसा कहा जाता है।
जब सूर्य नाड़ी अर्थात् दायाँ स्वर ;नथुना चलता हो तब भोजन करने से जल्दी पच जाता है लेकिन पेय पदार्थ पीना हो तब चन्द्र नाड़ी अर्थात् बायाँ स्वर चलना चाहिए। यदि पेय पदार्थ पीते समय बायाँ स्वर न चलता हो तो दायें नथुने को उँगली से दबा दें ताकि बायाँ स्वर चलने लगे। भोजन या कोई भी खाद्य पदार्थ सेवन करते समय पिंगला नाड़ी अर्थात् सूर्य स्वर चालू न हो तो थोड़ी देर बायीं करवट लेटकर या कपड़े की छोटी पोटली बायीं काँख में दबाकर यह स्वर चालू किया जा सकता है। इससे स्वास्थ्य की रक्षा होती है तथा बीमारी जल्दी नहीं आती।
सुबह उठते समय ध्यान रखें कि जो स्वर चलता हो उसी ओर का हाथ मुँह पर घुमाना चाहिए तथा उसी ओर का पैर पहले पृथ्वी पर रखना चाहिए। ऐसा करने से अपने कार्यों में सफलता मिलती है ऐसा कहा गया है।
दायाँ स्वर चलते समय मलत्याग करने से एवं बायाँ स्वर चलते समय मूत्रत्याग करने से स्वास्थ्य की रक्षा होती है। वैज्ञानिकों ने प्रयोग करके देखा कि इससे विपरीत करने पर विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं। प्रकृति ने एक साल तक के शिशु के स्वर पर अपना नियंत्रण रखा है। शिशु जब पेशाब करता है तब उसका बायाँ स्वर चलता है और मलत्याग करता है तब उसका दायाँ स्वर चलता है।
कुछ लोग मुँह से श्वास लेते हैं। इससे श्वासनली और फेफड़ों में बीमारी के कीटाणु घुस जाते हैं एवं तकलीफ सहनी पड़ती है। अत: श्वास सदैव नाक से ही लेना चाहिए। कोई खास काम करने जायें उस वक्त जो भी स्वर चलता हो वही पैर आगे रखकर जाने से विघ्न दूर होने में मदद मिलती है। इस प्रकार स्वर का भी एक अपना विज्ञान है जिसे जानकर एवं छोटी-छोटी सावधानियाँ अपना कर मनुष्य अपने स्वास्थ्य की रक्षा एवं व्यावहारिक जीवन में भी सफलता प्राप्त कर सकता है।
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आप क्यूं चिंतित रहते हैं


आधुनिक भागदौड़ के इस जीवन में प्राय: सभी व्यक्तियों को चिंता सताती रहती है। हर आयुवर्ग तथा हर प्रकार के क्षेत्र से संबंधित अपनी-अपनी चिंता होती हैं। चिंता को भले ही हम आज रोग ना माने किंतु इसके कारण कई प्रकार के लक्षण ऐसे दिखाई देते हैं जोकि सामान्य रोग को प्रदर्शित करते हैं। अगर यह चिंता कारण विशेष या समय विशेष पर हो तो चिंता की बात नहीं होती किंतु कई बार व्यक्ति चिंता करने का आदि होता है, जिसके कारण उसे हर छोटी बात पर चिंता हो जाती है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसे रासायनिक स्त्राव का असंतुलन माना जाता है किंतु वैदिक ज्योतिष के अनुसार इस चिंता का दाता मन को संचालित करने वाला ग्रह चंद्रमा तथा व्यक्ति की जन्मकुंडली में तृतीय स्थान को माना जाता है। चूंकि कालपुरूष का चतुर्थभाव चंद्रमा का भाव होता है अत: बहुत हद तक चतुर्थभाव का प्रतिकूल होना या चतुर्थेश का प्रतिकूल होना भी तनाव का कारण होता है। इसके अलावा अपने जीवन में लगातार चिंता के कारणों तथा उससे जुड़े लोग तथा स्थिति को बेहतर करने का प्रयास करने के अलावा चंद्रमा को मजबूत करने तथा राहु की शांति के अलावा तृतीयेश का उपयुक्त उपाय करने से व्यक्ति को चिंता से मुक्ति मिल सकती है।

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कैसे हो पति-पत्नी के बीच अहंकार की जगह प्रेम


आज के भौतिक संसार में मनुष्य अध्यात्म को छोड़कर भौतिक सुखों के पीछे भाग रहा है। समय के अभाव ने उसे रिश्तों के प्रति उदासीन बना दिया है। परन्तु आज भी मनुष्य अपने घर में संसार के सारे सुखों को भोगना चाहता है। इसके लिए वैवाहिक जीवन को वास्तु से जोडऩा होगा। वास्तव में हम ऐसा क्या करें कि पति-पत्नी के बीच अहंकार की जगह प्रेम, प्रतियोगिता के स्थान पर सानिध्य मिले।
यद्यपि गृहस्थ जीवन में या व्याहारिक जीवन में कोई भी छोटा सा कारण एक बड़े कारण में परिवर्तित हो जाता है। चाहे वह आर्थिक हो या घर के अन्य सदस्यों को लेकर हो। इसका सीधा प्रभाव पति-पत्नी के आपसी संबंधों पर पड़ता है। इसलिए घर का वातावरण ऐसा होना चाहिए कि ऋणात्मक शक्तियां कम तथा सकारात्मक शक्तियां अधिक क्रियाशील हों। यह सब वास्तु के द्वारा ही संभव हो सकता है। घर के ईशान कोण का बहुत महत्व है। यदि पति-पत्नी साथ बैठकर पूजा करें तो उनका आपस का अहंकार खत्म होकर संबंधों में मधुरता बढ़ेगी। गृहलक्ष्मी द्वारा संध्या के समय तुलसी में दीपक जलाने से नकारात्मक शक्तियों को कम किया जा सकता है। घर के हर कमरे के ईशान कोण को साफ रखें, विशेषकर शयनकक्ष के।
पति-पत्नी में आपस में वैमनस्यता का एक कारण सही दिशा में शयनकक्ष का न होना भी है। अगर दक्षिण-पश्चिम दिशाओं में स्थित कोने में बने कमरों में आपकी आवास व्यवस्था नहीं है तो प्रेम संबंध अच्छे के बजाए, कटुता भरे हो जाते हैं। शयनकक्ष के लिए दक्षिण दिशा निर्धारित करने का कारण यह है कि इस दिशा का स्वामी यम, शक्ति एवं विश्रामदायक है। घर में आराम से सोने के लिए दक्षिण एवं नैऋत्य कोण उपयुक्त है। शयनकक्ष में पति-पत्नी का सामान्य फोटो होने के बजाए हंसता हुआ हो, तो वास्तु के अनुसार उचित रहता है। घर के अंदर उत्तर-पूर्व दिशाओं के कोने के कक्ष में अगर शौचालय है तो पति-पत्नी का जीवन बड़ा अशांत रहता है। आर्थिक संकट व संतान सुख में कमी आती है। इसलिए शौचालय हटा देना ही उचित है।
घर के अंदर यदि रसोई सही दिशा में नहीं है तो ऐसी अवस्था में पति-पत्नी के विचार कभी नहीं मिलेंगे। रिश्तों में कड़वाहट दिनों-दिन बढ़ेगी। कारण अग्नि का कहीं ओर जलना। रसोई घर की सही दिशा है आग्नेय कोण। अगर आग्नेय दिशा में संभव नहीं है तो अन्य वैकल्पिक दिशाएं हैं। आग्नेय एवं दक्षिण के बीच, आग्नेय एवं पूर्व के बीच, वायव्य एवं उत्तर के बीच। अत: यदि हम अपने वैवाहिक जीवन को सुखद एवं समृद्ध बनाना चाहते हैं और अपेक्षा करते हैं कि जीवन के सुंदर स्वप्न को साकार कर सकें। इसके लिए पूर्ण निष्ठा एवं श्रद्धा से वास्तु के उपायों को अपनाकर अपने जीवन में खुशहाली लाएं।

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